शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

माँ बहुत झूठ बोलती है. ...........सुबहजल्दी जगाने को, सात बजे को आठ कहती है। नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है। मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है। छोटी छोटी परेशानियों पर बड़ा बवंडर करती है। ..........माँ बहुत झूठ बोलती है।। थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है। जो मैं न रहूँ घर पे तो, मेरी पसंद की कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है। मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूजन बोलती है। .........माँ बहुत झूठ बोलती है।। दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर, मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है। कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में, छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है। .........माँ बहुत झूठ बोलती है।। टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,समझदार हो, अब न कुछ बोलूँगी मैं, ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है। अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती हो जाती है। .........माँ बहुत झूठ बोलती है।। तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी, सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं, बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है, बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है। .........माँ बहुत झूठ बोलती है।। मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है। सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है। उसके व्रत, नारियल, धागे,फेरे, सब मेरे नाम, तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है। ..........माँ बहुत झूठ बोलती है।। भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ, उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है। मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे, मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है। ..........माँ बहुत झूठ बोलती है।। उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ खुश होती जैसे, खुद पर उपकार समझती है। मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर, सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है। ..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।" हर माँ को समर्पित

"अहंकार की गति"

"अहंकार की गति" एक मूर्तिकार उच्चकोटि की ऐसी सजीव मूर्तियाँ बनाता था, जो सजीव लगती थीं। लेकिन उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था। उसे जब लगा कि जल्दी ही उसक मृत्यु होने वाली है तो वह परेशानी में पड़ गया। यमदूतों को भ्रमित करने के लिये उसने एकदम अपने जैसी दस मूर्तियाँ उसने बना डालीं और योजनानुसार उन बनाई गईमूर्तियों के बीच मे वह स्वयं जाकर बैठ गया। यमदूत जब उसे लेने आए तो एक जैसी ग्यारह आकृतियाँ देखकर स्तम्भित रह गए। इनमें से वास्तविक मनुष्य कौन है- नहीं पहचान पाए। वे सोचने लगे, अब क्या किया जाए। मूर्तिकार के प्राण अगर न ले सके तो सृष्टि का नियम टूट जाएगा और सत्य परखने के लिये मूर्तियाँ तोड़ें तो कला का अपमान होगा। अचानक एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े दुर्गुण अहंकार की स्मृति आई। उसने चाल चलते हुए कहा- "काश इन मूर्तियों को बनाने वाला मिलता तो मैं से बताता कि मूर्तियाँ तो अति सुंदर बनाई हैं, लेकिन इनको बनाने में एक त्रुटि रह गई।" यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा कि मेरी कला में कमी कैसे रह सकत है, फिर इस कार्य में तो मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। वह बोल उठा- "कैसी त्रुटि?" झट से यमदूत ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला, बस यही त्रुटि कर गए तुम अपने अहंकार में। क्या जानते नहीं कि बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करतीं।

बुधवार, 20 जनवरी 2016

मनुष्य की कीमत

एक बार लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?” पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये. फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.” बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ? पिताजी – हाँ बेटे. बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है? सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा. रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी? बालक – 200 रूपये. पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ? बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का . पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो? बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.” फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.” बालक अपने पिता की बात समझ चुका था . दोस्तो अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है. हम अपनी ताजी हालत को देख कर अपने आप को बेकार समझने लगते है. लेकिन हममें हमेशा अथाह शक्ति होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है. हमारी जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारी कीमत कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत खास हैं . हमें हमेशा अपने आप में सुधार करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये.

सातूं सुख

पैलो सुख-निरोगी काया, दूजो सुख-हो घर में माया। तीजो सुख-पतिबरता नारी, चौथो सुख-सुत आग्याकारी। पांचवो सुख-सुथांन वासो, छट्ठो सुख-हो नीर-निवासी। सातवों सुख-राज में पासो।।