बुधवार, 29 अप्रैल 2020

अहमदाबाद गुरूपूर्णिमा 2009

।। राम राम सा ।।
मित्रो कुछ वर्षो पहले आशाराम जी बापू के छेलौ के साथ मै भी गुरू पूर्णिमा को अहमदाबाद गया था वहाँ की घटना हुई थी उसे देखकर बहुत दुख हुआ क्योकि बापूजी ने  ईसाई मिशनरियों  के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था धर्मांतरण का खुलकर विरोध करते थे उसके ठीक लगभाग  तीन वर्ष बाद एक षडयंत्र के तहत जोधपुर मे गिरप्तार कर जैल भेज दिया गया था । इसमे सच्चाई कितनी है ये तो मुझे पता नही है लेकीन मुझे तो षडयंत्र ही लग रहा है । क्योकि बापू ने धर्मांतरण करावाने के लिये सोनिया गाँधी को फटकार लगाई थी  
उस घटना का वर्णन है जो मैने मेरे बुक ंंमे लिखा था और लोकडाउन मे  बैठे बैठे आज शैयर कर रहा हुँ।  
मुंबई सूँ गाड़ी चढ्या पहुँचा अहमदाबाद ।
स्टेसन छौड़ बाहर आया बापू मुर्दाबाद ।।
बापू मुर्दाबाद अहमदाबादी सब बौले ।
मारे डण्डा उनको जो कोई हरिओम बोले ।।
जय श्री कृष्णा बोलता पूगा चेनजी रे घर ।
गुस्से मे अहमदाबादी लोग लागो मन मे डर ।।
सुबह हुई दर्शन को निकले आधे मार्ग आया।
लाठी पत्थर बरसण लागा बिना दरसण आया।।
अफरा तफरी मच गई फैन्कण लागा भाटा ।
आधा साधक आश्रम मे आधा पासा नाटा ।।
कई बसों रा शीशा टुट्ग्या कई बसो मे आग ।
चारो तरफ से पत्थर आया लगी भागम-भाग ।।
हरिःओम नी कैवण दियों बोलो जय श्री राम ।
तीन दिनौ तक छुपने रहया भजिया राजराम ।।
दरसण बापू रा हुआ नही म्हारेँ मे हो ग्यौ धौको।
दरसण तो म्हें जरुर करौला फैर आवैला मौकौ।।
महापुरुषो रा दुसमण घणा गवाह है इतिहास ।
जुठा आरौप लगाने वालो होगा तुम्हारा विनाश ।।

रविवार, 26 अप्रैल 2020

राजस्थानी भाषा दोहा

राजस्थानी कहावती दूहा

बा'रा कोसां बोली पळटै
बनफल पळटै पाका ।
सो कोसां तो साजन पळटै
लखण नीं पळटै लाखां ।।

बांण्या थारी बाण
कोई सक्यो नै जांण ।
पाणी पीवै छाण
अणछाण्यो लोही पीवै ।।

पंचकोसी प्यादो रैवै
दस कोसी असवार ।
कै तो नार कुभारजा
कै रांडोलो भरतार ।।

दूर जंवाई फूल बरोबर
गांव जंवाई आधो ।
घर जंवाई गधै बरोबर
चाये जियां लादो ।।

पुजारी री पागङी
ऊंटवाळ री जोय ।
मांदै री मोचङी
पङी पुराणी होय ।।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

मोहित मृग की कहानी

मुरु  एक मृग था। सोने के रंग में ढला उसका सुंदर सजीला बदन; माणिक, नीलम और पन्ने की कांति की चित्रांगता से शोभायमान था। मखमल से मुलायम उसके रेशमी बाल, आसमानी आँखें तथा तराशे स्फटिक-से उसके खुर और सींग सहज ही किसी का मन मोह लेने वाले थे। तभी तो जब भी वह वन में चौकडियाँ भरता तो उसे देखने वाला हर कोई आह भर उठता।

जाहिर है कि रुरु एक साधारण मृग नहीं था। उसकी अप्रतिम सुन्दरता उसकी विशेषता थी। लेकिन उससे भी बड़ी उसकी विशेषता यह थी कि वह विवेकशील था; और मनुष्य की तरह बात-चीत करने में भी समर्थ था। पूर्व जन्म के संस्कार से उसे ज्ञात था कि मनुष्य स्वभावत: एक लोभी प्राणी है और लोभ-वश वह मानवीय करुणा का भी प्रतिकार करता आया है। फिर भी सभी प्राणियों के लिए उसकी करुणा प्रबल थी और मनुष्य उसके करुणा-भाव के लिए कोई अपवाद नहीं था। यही करुणा रुरु की सबसे बड़ी विशिष्टता थी।

एक दिन रुरु जब वन में स्वच्छंद विहार कर रहा था तो उसे किसी मनुष्य की चीत्कार सुनायी दी। अनुसरण करता हुआ जब वह घटना-स्थल पर पहुँचा तो उसने वहाँ की पहाड़ी नदी की धारा में एक आदमी को बहता पाया। रुरु की करुणा सहज ही फूट पड़ी। वह तत्काल पानी में कूद पड़ा और डूबते व्यक्ति को अपने पैरों को पकड़ने कि सलाह दी। डूबता व्यक्ति अपनी घबराहट में रुरु के पैरों को न पकड़ उसके ऊपर की सवार हो गया। नाजुक रुरु उसे झटक कर अलग कर सकता था मगर उसने ऐसा नहीं किया। अपितु अनेक कठिनाइयों के बाद भी उस व्यक्ति को अपनी पीठ पर लाद बड़े संयम और मनोबल के साथ किनारे पर ला खड़ा किया।

सुरक्षित आदमी ने जब रुरु को धन्यवाद देना चाहा तो रुरु ने उससे कहा, “अगर तू सच में मुझे धन्यवाद देना चाहता है तो यह बात किसी को ही नहीं बताना कि तूने एक ऐसे मृग द्वारा पुनर्जीवन पाया है जो एक विशिष्ट स्वर्ण-मृग है; क्योंकि तुम्हारी दुनिया के लोग जब मेरे अस्तित्व को जानेंगे तो वे निस्सन्देह मेरा शिकार करना चाहेंगे।” इस प्रकार उस मनुष्य को विदा कर रुरु पुन: अपने निवास-स्थान को चला गया।

कालांतर में उस राज्य की रानी को एक स्वप्न आया। उसने स्वप्न में रुरु साक्षात् दर्शन कर लिए। रुरु की सुन्दरता पर मुग्ध; और हर सुन्दर वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा से रुरु को अपने पास रखने की उसकी लालसा प्रबल हुई। तत्काल उसने राजा से रुरु को ढूँढकर लाने का आग्रह किया। सत्ता में मद में चूर राजा उसकी याचना को ठुकरा नहीं सका। उसने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई-भी रानी द्वारा कल्पित मृग को ढूँढने में सहायक होगा उसे वह एक गाँव तथा दस सुन्दर युवतियाँ पुरस्कार में देगा।

राजा के ढिंढोरे की आवाज उस व्यक्ति ने भी सुनी जिसे रुरु ने बचाया था। उस व्यक्ति को रुरु का निवास स्थान मालूम था। बिना एक क्षण गँवाये वह दौड़ता हुआ राजा के दरबार में पहुँचा। फिर हाँफते हुए उसने रुरु का सारा भेद राजा के सामने उगल डाला।

राजा और उसके सिपाही उस व्यक्ति के साथ तत्काल उस वन में पहुँचे और रुरु के निवास-स्थल को चारों ओर से घेर लिया। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्होंने रुरु को रानी की बतायी छवि के बिल्कुल अनुरुप पाया। राजा ने तब धनुष साधा और रुरु उसके ठीक निशाने पर था। चारों तरफ से घिरे रुरु ने तब राजा से मनुष्य की भाषा में यह कहा “राजन् ! तुम मुझे मार डालो मगर उससे पहले यह बताओ कि तुम्हें मेरा ठिकाना कैसे मालूम हुआ ?”

उत्तर में राजा ने अपने तीर को घुमाते हुए उस व्यक्ति के सामने रोक दिया जिसकी जान रुरु ने बचायी थी। रुरु के मुख से तभी यह वाक्य हठात् फूट पड़ा

“निकाल लो लकड़ी के कुन्दे को पानी से
न निकालना कभी एक अकृतज्ञ इंसान को।”

राजा ने जब रुरु से उसके संवाद का आशय पूछा तो रुरु ने राजा को उस व्यक्ति के डूबने और बचाये जाने की पूरी कहानी कह सुनायी। रुरु की करुणा ने राजा की करुणा को भी जगा दिया था। उस व्यक्ति की कृतध्नता पर उसे रोष भी आया । राजा ने उसी तीर से जब उस व्यक्ति का संहार करना चाहा तो करुणावतार मृग ने उस व्यक्ति का वध न करने की प्रार्थना की ।

रुरु की विशिष्टताओं से प्रभावित राजा ने उसे अपने साथ अपने राज्य में आने का निमंत्रण दिया । रुरु ने राजा के अनुग्रह का नहीं ठुकराया और कुछ दिनों तक वह राजा के आतिथ्य को स्वीकार कर पुन: अपने निवास-स्थल को लौट गया।

रोहिड़ा राजस्थान का सागवान

राम राम सा
रोहिड़े के फुल को राजस्थान का राज्य पुष्प ऐसे ही नही कहते हैं।केसरिया रंग के फूलों से लदा ये रेगिस्तान पेड़ इन सरसों के पीले फूलों की महक में चार चांद लगा रहा है।सुबह सुबह हवा से पेड़ से नीचे गिरे हुये फूलो का बेसब्री से  इंतज़ार भेड़ बकरियां गाय भेंस के अलावा सभी जानवर करते है । जनवरी फरवरी और मार्च के महिने में राजस्थान  के भ्रमण पर जाए तो यहाँ के पीले खेतों में कुछ ऐसे ही नजारे हमे देखने को मिल जाते है ।

खाली दारु की बोतले बेचकर हेलीकाप्टर खरीद लिया


एक समय की बात है, करंटपुरा नामक कस्बे में दो दोस्त रहा करते थे। पहला जबर्दस्त पियक्कड़ और दूसरा भला इंसान। दूसरा हमेशा पहले को समझाता रहता था।

कुछ समय बाद दूसरा दोस्त कामकाज के सिलसिले में कस्बे से शहर जा पहुंचा। कुछ समय कमाई-धमाई की, फिर वापस गांव लौटा। अपनी नई साइकिल के पैडल मारते हुए सीधे अपने दोस्त के घर पहुँचा। पहला हमेशा की तरह धुत्त मिला।

दूसरे ने पूछा, "और क्या चल रहा है?"

पहला बोला, "कुछ नहीं बस, पी रहे हैं.. जी रहे हैं... तुम सुनाओ।"

दूसरा बोला, "बस, बढ़िया, शहर में कामकाज चल निकला है। साइकिल खरीद ली है, तुम साले सुधर जाओ।"

और पैडल मारते हुए वापस शहर की तरफ निकल लिया।

कुछ दिनों बाद फिर शहर से कस्बे में पहुंचा। इस बार स्कूटर पर था। सीधे दोस्त के घर का रास्ता लिया। वहां फिर वही क्या चल रहा है? वही पी रहे हैं, जी रहे हैं... सुधर जाओ टाइप बातें हुईं। फिर दूसरे ने स्कूटर को किक लगाई और फिर शहर की दिशा में वापस हो लिए।

इस बार दूसरा कुछ महीनों बाद कस्बे में पहुंचा। इस बार कार में था। सीधे दोस्त के घर का रास्ता लिया। पता चला कि वो घर पर नहीं हैं, खेत गया हुआ है। तो दूसरे ने कार सीधे खेत की दिशा मे दौड़ा दी। वहां पहुंचा तो देखता क्या है कि पहला खेत के बीचों-बीच खाट पर बैठ पी रहा है। पास में ही एक हेलिकॉप्टर खड़ा है। दूसरा सीधे अपने दोस्त के पास जा पहुँचा और वही पुरानी बातचीत शुरू हो गई, "और क्या चल रहा है?"

पहला बोला, "बस, कुछ नहीं यार, वही पी रहे हैं, जी रहे हैं... पीते-पीते बोतलें ज्यादा इकट्ठी हो गईं तो बेचकर हेलिकॉप्टर खरीद लिया और पार्किंग के लिए खेत भी खरीद लिया है, और तुम सुनाओ।"

दूसरा वहीं बेहोश हो गया।

राजस्थानी दोहा

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पूजो मिनखा प्रीत
आंख आपरी तेज है , देखै पड़दां पार ।
खुद रै भीतर मैलड़ो , क्यूं नीं दीठै यार ।।
काया थांरी फूटरी , कंचन वरणों भान ।
लछण थांरां कुळछणां , बण बैठ्या भगवान ।।
आग लगाओ जगत में , खुद रा सेको रोट ।
डूब मरो रे निसरमो , थांरै कोठै खोट ।।
खोट कमाओ धपटवां , थान जगाओ जोत ।
खूब पटाओ देवता , चौड़ै आग्या पोत ।।
गाभा पैरो ऊजळा , मनड़ां राखो मैल ।
मिनखपणों है भायला , थांरै आगै फैल ।।
बातज मानों सांचली , पूजो मिनखा प्रीत ।
मिनखपणैं नै पूजतां , जग जाओला जीत ।।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

धारावी एक स्लम बस्ती

राम राम सा
मुंबई के धारावी इलाके में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले रोजाना बढ़ रहे हैं। जो सभी लोगों के लिये  चिंता का विषय हैं।लाखौ लोगो की आबादी वाले धारावी मे ज्यादतर गरीब मजदूर  उतरप्रदेश बिहार बंगाल व देश के सभी राज्यो के भी लोग रहते है धारावी मे ज्यादातर दुकाने राजस्थानी प्रवासियो की है। जिन मे से कुछ दुकानदारों का रहवासी घर धारावी से बाहर है लेकिन ज्यादतर लोग धारावी मे ही रहते है । उनके लिये  कोरोना संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है । अचानक हुये लोकडाउन मे मजदूर यहाँ से बाहर नही जा सके। धारावी में ज्यादातर लोग छोटे-छोटे घरों में रहते हैं.। एक दौ रोड़ छोडक़र बाकी की गलियाँ ऐसी है कि अगर सामने से कोई आदमी आये तो बिना एक दुसरे के टक्कर लगे निकल ही नही सकते है । और चालौ मे दौ घरों के दरवाजो के बीस मे मात्र तीन फिट की ही दुरी रहती है।एक एक घर मे पांच  छह सदस्य रहते है ।ज्यादतर परिवार ऐसे भी है जिसमे दस बारह सदस्य भी है। कुछ लोगो का ये भी कहना है कि ये सब उपर वाले की कृपा है आठ-नौ बच्चे दिये है चार पाँच वापस ले लेगा तो कौनसा फर्क पड़ने वाला है।धारावी मे सामान्य दिनो मे भी इतनी भीड़ रहती है कि जैसे कहीँ मेला लगा हुआ है। छोटी जगह मे भिड़ ज्यादा है । ऐसे मे सौशल डिस्टेंसिंग किसी हालत मे सम्भव नही है। अब तक धारावी में लगभग दौ सौ आस-पास मामले दर्ज किए गए हैं. धारावी एशिया का सबसे बड़ा स्लम इलाका है.।धारावी में थर्मल स्क्रीनिंग टेस्टिंग व सेनेटाराईज भी धीमी गति से हो रहा है और कुछ लोग भी लॉकडाउन सख्ती से पालन नही कर रहे है ।धारावी जनसँख्या का एक बड़ा क्षेत्र  व पतली पतली गल्लियाँ होने के कारण पूरे क्षेत्र में लॉकडाउन सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी पर्याप्त संख्या नहीं हैं.।कुछ लोग दैनिक आवश्यकताओं रासन दूध, सब्जियां, फल आदि लेने के लिये घरों से बाहर निकलते है तो इसी का फायदा उठाकर कुछ उपद्रवि भी फालतु ने बाहर घुमने आ जाते है । धारावी मे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो ना के बराबर है इसी कारण ये जानलेवा बिमारी फेलने मे समय नही लगेगा। केन्द्र सरकार व राज्य सरकारो से मेरा अनुरोध है कि समय रहते इन सभी मजदूरो को जल्दी अपने अपने राज्यों में मे भेजने की तैयारी करें। अन्यथा आज की स्थिति को देखते हुये तो ऐसा लग रहा है कि कुछ ही दिनो मे शायद मुंबई के सारे हॉस्पीटल कम पड़ जायेंगे। 
सरकार का कहना है कि सब सुरक्षित व सही है लेकिन सात लाख लोगो मे हजार बारह सौ लोग सुरक्षित होने से धारावी सुरक्षित नहीं हो सकती है यहाँ पर कोई भी सौसल डिस्टेंसिंग की पालना नही हो रही है ।यहाँ पर लोगो को रासन की कमी भले हो जाये एक दौ दिन भूखा रहकर चला देंगे लेकिन सरकार की तरफ शराब गुटखा नॉनवेज आदि की कोई कमी नही है ।ये सब बेचने के लिये लोग गली गली घुम रहे है ।लेकिन  गरीब मजदूरो के लिये यहाँ पर कुछ संसथाए ही मदद कर रही है। सरकारी मदद सिर्फ स्थानिय निवासियों तक ही सीमित है । जो मतदाता है उसी को ही मदद मिलती है। एक महिना तो मजदूरों ने जैसे तैसे करते निकाल दिया है । लेकिन अब इन के पास कुछ नहीं बचा है। ऐसे मे कुछ लोग तो चिन्ता से मर जायेंगे । समय  रहते प्रसासन को जागना चाहिये।