रविवार, 1 अक्टूबर 2017
मारवाडी हँसगुला
शुक्रवार, 28 जुलाई 2017
गुरुवार, 27 जुलाई 2017
राजस्थान में बरसात
तन मन भिज्या जोर का राखूं किंया रखाय
🌴🌴रुक जा अब तो बादळी घणी गई मैं भीज
एकर हींडो हींडलयूं सावणीये री तीज 🌿🌿लाज मरूँ तव नाम ले सुन्दर म्हारा श्याम
थारे आया सायबा सरसी सगळा काम
:🌲🌲 संग सहेल्यां साथ री करे घणी है तंग
नाम पूछती श्याम रो परणी किण रे संग
बुधवार, 5 जुलाई 2017
सु-विचार
हमेशा सचाई की जीत होती हैं
सोमवार, 26 जून 2017
आपणा वडेरा
Aajkal Jivno doro hogyo
घणां पालिया शौक जीवणों दोरो होग्यो रेदेवे राम नें दोष जमानों फौरो होग्यो रेच्यारानां री सब्जी ल्यांता आठानां री दालदोन्यूं सिक्का चाले कोनीं भूंडा होग्या हालच्यार दिनां तक जान जींमती घी की भेंती धारएक टेम में छींकां आवे ल्याणां पडे उधारजीवणों दोरो---मुंडे मूंड बात कर लेंता नहीं लागतो टक्कोबिनां कियां रिचार्ज रुके है मोबाईल रो चक्कोलालटेन में तेल घालता रात काटता सारीबिजली रा बिल रा झटका सूं आंख्यां आय अंधारीजीवणों दोरो---लाड कोड सुं लाडी ल्यांता करती घर रो कामपढी लिखी बिनणिंयां बैठी दिनभर करै आरामघाल पर्स में नोट बीनणीं ब्यूटी पारलर जावेबैल बणें घाणीं रो बालम परणीं मोज उडावेजीवणों दौरो---टी वी रा चक्कर में टाबर भूल्या खाणों पीणोंचौका छक्का रा हल्ला में मुश्किल होग्यो जीणोंबिल माथै बिल आंता रेवे कोई दिन जाय नीं खालीलूंण तेल शक्कर री खातर रोज लडै घरवालीजीवणों दौरो---एक रुपैयो फीस लागती पूरी साल पढाईपाटी बस्ता पोथी का भी रुप्या लागता ढाईपापाजी री पूरी तनखा एडमिशन में लागेफीस किताबां ड्रेसां न्यारी ट्यूशन रा भी लागेजीवणों दौरो---सुख री नींद कदै नीं आवे टेंशन ऊपर टैंशनदो दिन में पूरी हो ज्यावे तनखा हो या पैंशनगुटखां रा रेपर बिखरयोडा थांरी हंसी उडावेरोग लगेला साफ लिख्यो पणं दूणां दूणां खावेजीवणों दौरो---पैदल चलणों भूली दुनियां गाडी ऊपर गाडीआगे बैठे टाबर टींगर लारै बैठे लाडीमैडम केवे पीवर में म्हें कदै नीं चाली पालीमन में सोचे साब गला में केडी आफत घालीजीवणों दोरो---चाऐ पेट में लडै ऊंदरा पेटरोल भरवावेमावस पूनम राखणं वाला संडे च्यार मनावेहोटलां में करे पार्टी डिस्को डांस रचावेनशा पता में गेला होकर घर में राड मचावेजीवणों दौरो ---अंगरेजी री पूंछ पकडली हिंदी कोनीं आवेकोका कोला पीवे पेप्सी छाछ राब नहीं भावेकीकर पडसी पार मुंग्याडो नितरो बढतो जावेसुख रा साधन रा चक्कर में दुखडा बढता जावेजितरी चादर पांव पसारो मन पर काबू राखोगजानंद भगवान भज्यां ही भलो होवसी थांकोजीवणों दौरो होग्यो र
गुरुवार, 15 जून 2017
Maika v sasural
*मायका Vs ससुराल*ससुराल में वो पहली सुबह आज भी याद है। कितना हड़बड़ा के उठी थी, ये सोचते हुए कि देर हो गयी हैऔर सब ना जाने क्या सोचेंगे ?एक रात ही तो नए घर में काटी है और इतना बदलाव, जैसे आकाश में उड़ती चिड़िया को, किसी ने सोने के मोतियों का लालच देकर, पिंजरे में बंद कर दिया हो।शुरू के कुछ दिन तो यूँ ही गुजर गए। हम घूमने बाहर चले गए। जब वापस आए, तो सासू माँ की आंखों में खुशी तो थी, लेकिन बस अपने बेटे के लिए ही दिखी मुझे।सोचा, शायद नया नया रिश्ता है, एक दूसरे को समझते देर लगेगी। लेकिन समय ने जल्दी ही एहसास करा दिया कि मैं यहाँ बहु हूँ। जैसे चाहूं वैसे नही रह सकती। *कुछ कायदा, मर्यादा हैं, जिनका पालन मुझे करना होगा। धीरे धीरे बात करना, धीरे से हँसना, सबके खाने के बाद खाना, ये सब आदतें, जैसे अपने आप ही आ गयीं*।घर में माँ से भी कभी कभी ही बात होती थी। धीरे धीरे पीहर की याद सताने लगी। ससुराल में पूछा, तो कहा गया -- *अभी नही, कुछ दिन बाद*।जिस पति ने कुछ दिन पहले ही मेरे माता पिता से, ये कहा था कि *पास ही तो है, कभी भी आ जायेगी, उनके भी सुर बदले हुए थे*।अब धीरे धीरे समझ आ रहा था, कि शादी कोई खेल नही। इसमें सिर्फ़ घर नही बदलता, बल्कि आपका पूरा जीवन ही बदल जाता है।आप कभी भी उठके, अपने पीहर नही जा सकते। यहाँ तक कि कभी याद आए, तो आपके पीहर वाले भी, बिन पूछेनही आ सकते।पीहर का वो अल्हड़पन, वो बेबाक हँसना, वो जूठे मुँह रसोई में कुछ भी छू लेना, जब मन चाहे तब उठना, सोना, नहाना, सब बस अब यादें ही रह जाती हैं।अब मुझे समझ आने लगा था, कि क्यों विदाई के समय, सब मुझे गले लगा कर रो रहे थे ? असल में मुझसेदूर होने का एहसास तो उन्हें हो ही रहा था, लेकिन एक और बात थी, जो उन्हें अन्दर ही अन्दर परेशान कर रही थी, *कि जिस सच से उन्होंने मुझे इतने साल दूर रखा, अब वो मेरे सामने आ ही जाएगा*।पापा का ये झूठ कि में उनकी बेटी नही बेटा हूँ, अब और दिन नही छुप पायेगा। उनकी सबसे बड़ी चिंता ये थी, *अब उनका ये बेटा, जिसे कभी बेटी होने का एहसास ही नही कराया था, जीवन के इतने बड़े सच को कैसे स्वीकार करेगा* ?माँ को चिंता थी कि *उनकी बेटी ने कभी एक ग्लास पानी का नही उठाया, तो इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी कैसे उठाएगी* ?सब इस विदाई और मेरे पराये होने का मर्म जानते थे, सिवाये मेरे। इसलिए सब ऐसे रो रहे थे, जैसे मैं डोली में नहीं, अर्थी में जा रही हूँ।आज मुझे समझ आया, कि उनका रोना ग़लत नही था। *हमारे समाज का नियम ही ये है, एक बार बेटी डोली में विदा हुयी, तो फिर वो बस मेहमान ही होती है, घर की। फिर कोई चाहे कितना ही क्यों ना कह ले, कि ये घर आज भी उसका है ? सच तो ये है, कि अब वो कभी भी, यूँ ही अपने उस घर, जिसे मायका कहते हैं, नही आ सकती...!!*