बुधवार, 29 अप्रैल 2020

अहमदाबाद गुरूपूर्णिमा 2009

।। राम राम सा ।।
मित्रो कुछ वर्षो पहले आशाराम जी बापू के छेलौ के साथ मै भी गुरू पूर्णिमा को अहमदाबाद गया था वहाँ की घटना हुई थी उसे देखकर बहुत दुख हुआ क्योकि बापूजी ने  ईसाई मिशनरियों  के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था धर्मांतरण का खुलकर विरोध करते थे उसके ठीक लगभाग  तीन वर्ष बाद एक षडयंत्र के तहत जोधपुर मे गिरप्तार कर जैल भेज दिया गया था । इसमे सच्चाई कितनी है ये तो मुझे पता नही है लेकीन मुझे तो षडयंत्र ही लग रहा है । क्योकि बापू ने धर्मांतरण करावाने के लिये सोनिया गाँधी को फटकार लगाई थी  
उस घटना का वर्णन है जो मैने मेरे बुक ंंमे लिखा था और लोकडाउन मे  बैठे बैठे आज शैयर कर रहा हुँ।  
मुंबई सूँ गाड़ी चढ्या पहुँचा अहमदाबाद ।
स्टेसन छौड़ बाहर आया बापू मुर्दाबाद ।।
बापू मुर्दाबाद अहमदाबादी सब बौले ।
मारे डण्डा उनको जो कोई हरिओम बोले ।।
जय श्री कृष्णा बोलता पूगा चेनजी रे घर ।
गुस्से मे अहमदाबादी लोग लागो मन मे डर ।।
सुबह हुई दर्शन को निकले आधे मार्ग आया।
लाठी पत्थर बरसण लागा बिना दरसण आया।।
अफरा तफरी मच गई फैन्कण लागा भाटा ।
आधा साधक आश्रम मे आधा पासा नाटा ।।
कई बसों रा शीशा टुट्ग्या कई बसो मे आग ।
चारो तरफ से पत्थर आया लगी भागम-भाग ।।
हरिःओम नी कैवण दियों बोलो जय श्री राम ।
तीन दिनौ तक छुपने रहया भजिया राजराम ।।
दरसण बापू रा हुआ नही म्हारेँ मे हो ग्यौ धौको।
दरसण तो म्हें जरुर करौला फैर आवैला मौकौ।।
महापुरुषो रा दुसमण घणा गवाह है इतिहास ।
जुठा आरौप लगाने वालो होगा तुम्हारा विनाश ।।

रविवार, 26 अप्रैल 2020

राजस्थानी भाषा दोहा

राजस्थानी कहावती दूहा

बा'रा कोसां बोली पळटै
बनफल पळटै पाका ।
सो कोसां तो साजन पळटै
लखण नीं पळटै लाखां ।।

बांण्या थारी बाण
कोई सक्यो नै जांण ।
पाणी पीवै छाण
अणछाण्यो लोही पीवै ।।

पंचकोसी प्यादो रैवै
दस कोसी असवार ।
कै तो नार कुभारजा
कै रांडोलो भरतार ।।

दूर जंवाई फूल बरोबर
गांव जंवाई आधो ।
घर जंवाई गधै बरोबर
चाये जियां लादो ।।

पुजारी री पागङी
ऊंटवाळ री जोय ।
मांदै री मोचङी
पङी पुराणी होय ।।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

मोहित मृग की कहानी

मुरु  एक मृग था। सोने के रंग में ढला उसका सुंदर सजीला बदन; माणिक, नीलम और पन्ने की कांति की चित्रांगता से शोभायमान था। मखमल से मुलायम उसके रेशमी बाल, आसमानी आँखें तथा तराशे स्फटिक-से उसके खुर और सींग सहज ही किसी का मन मोह लेने वाले थे। तभी तो जब भी वह वन में चौकडियाँ भरता तो उसे देखने वाला हर कोई आह भर उठता।

जाहिर है कि रुरु एक साधारण मृग नहीं था। उसकी अप्रतिम सुन्दरता उसकी विशेषता थी। लेकिन उससे भी बड़ी उसकी विशेषता यह थी कि वह विवेकशील था; और मनुष्य की तरह बात-चीत करने में भी समर्थ था। पूर्व जन्म के संस्कार से उसे ज्ञात था कि मनुष्य स्वभावत: एक लोभी प्राणी है और लोभ-वश वह मानवीय करुणा का भी प्रतिकार करता आया है। फिर भी सभी प्राणियों के लिए उसकी करुणा प्रबल थी और मनुष्य उसके करुणा-भाव के लिए कोई अपवाद नहीं था। यही करुणा रुरु की सबसे बड़ी विशिष्टता थी।

एक दिन रुरु जब वन में स्वच्छंद विहार कर रहा था तो उसे किसी मनुष्य की चीत्कार सुनायी दी। अनुसरण करता हुआ जब वह घटना-स्थल पर पहुँचा तो उसने वहाँ की पहाड़ी नदी की धारा में एक आदमी को बहता पाया। रुरु की करुणा सहज ही फूट पड़ी। वह तत्काल पानी में कूद पड़ा और डूबते व्यक्ति को अपने पैरों को पकड़ने कि सलाह दी। डूबता व्यक्ति अपनी घबराहट में रुरु के पैरों को न पकड़ उसके ऊपर की सवार हो गया। नाजुक रुरु उसे झटक कर अलग कर सकता था मगर उसने ऐसा नहीं किया। अपितु अनेक कठिनाइयों के बाद भी उस व्यक्ति को अपनी पीठ पर लाद बड़े संयम और मनोबल के साथ किनारे पर ला खड़ा किया।

सुरक्षित आदमी ने जब रुरु को धन्यवाद देना चाहा तो रुरु ने उससे कहा, “अगर तू सच में मुझे धन्यवाद देना चाहता है तो यह बात किसी को ही नहीं बताना कि तूने एक ऐसे मृग द्वारा पुनर्जीवन पाया है जो एक विशिष्ट स्वर्ण-मृग है; क्योंकि तुम्हारी दुनिया के लोग जब मेरे अस्तित्व को जानेंगे तो वे निस्सन्देह मेरा शिकार करना चाहेंगे।” इस प्रकार उस मनुष्य को विदा कर रुरु पुन: अपने निवास-स्थान को चला गया।

कालांतर में उस राज्य की रानी को एक स्वप्न आया। उसने स्वप्न में रुरु साक्षात् दर्शन कर लिए। रुरु की सुन्दरता पर मुग्ध; और हर सुन्दर वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा से रुरु को अपने पास रखने की उसकी लालसा प्रबल हुई। तत्काल उसने राजा से रुरु को ढूँढकर लाने का आग्रह किया। सत्ता में मद में चूर राजा उसकी याचना को ठुकरा नहीं सका। उसने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई-भी रानी द्वारा कल्पित मृग को ढूँढने में सहायक होगा उसे वह एक गाँव तथा दस सुन्दर युवतियाँ पुरस्कार में देगा।

राजा के ढिंढोरे की आवाज उस व्यक्ति ने भी सुनी जिसे रुरु ने बचाया था। उस व्यक्ति को रुरु का निवास स्थान मालूम था। बिना एक क्षण गँवाये वह दौड़ता हुआ राजा के दरबार में पहुँचा। फिर हाँफते हुए उसने रुरु का सारा भेद राजा के सामने उगल डाला।

राजा और उसके सिपाही उस व्यक्ति के साथ तत्काल उस वन में पहुँचे और रुरु के निवास-स्थल को चारों ओर से घेर लिया। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्होंने रुरु को रानी की बतायी छवि के बिल्कुल अनुरुप पाया। राजा ने तब धनुष साधा और रुरु उसके ठीक निशाने पर था। चारों तरफ से घिरे रुरु ने तब राजा से मनुष्य की भाषा में यह कहा “राजन् ! तुम मुझे मार डालो मगर उससे पहले यह बताओ कि तुम्हें मेरा ठिकाना कैसे मालूम हुआ ?”

उत्तर में राजा ने अपने तीर को घुमाते हुए उस व्यक्ति के सामने रोक दिया जिसकी जान रुरु ने बचायी थी। रुरु के मुख से तभी यह वाक्य हठात् फूट पड़ा

“निकाल लो लकड़ी के कुन्दे को पानी से
न निकालना कभी एक अकृतज्ञ इंसान को।”

राजा ने जब रुरु से उसके संवाद का आशय पूछा तो रुरु ने राजा को उस व्यक्ति के डूबने और बचाये जाने की पूरी कहानी कह सुनायी। रुरु की करुणा ने राजा की करुणा को भी जगा दिया था। उस व्यक्ति की कृतध्नता पर उसे रोष भी आया । राजा ने उसी तीर से जब उस व्यक्ति का संहार करना चाहा तो करुणावतार मृग ने उस व्यक्ति का वध न करने की प्रार्थना की ।

रुरु की विशिष्टताओं से प्रभावित राजा ने उसे अपने साथ अपने राज्य में आने का निमंत्रण दिया । रुरु ने राजा के अनुग्रह का नहीं ठुकराया और कुछ दिनों तक वह राजा के आतिथ्य को स्वीकार कर पुन: अपने निवास-स्थल को लौट गया।

रोहिड़ा राजस्थान का सागवान

राम राम सा
रोहिड़े के फुल को राजस्थान का राज्य पुष्प ऐसे ही नही कहते हैं।केसरिया रंग के फूलों से लदा ये रेगिस्तान पेड़ इन सरसों के पीले फूलों की महक में चार चांद लगा रहा है।सुबह सुबह हवा से पेड़ से नीचे गिरे हुये फूलो का बेसब्री से  इंतज़ार भेड़ बकरियां गाय भेंस के अलावा सभी जानवर करते है । जनवरी फरवरी और मार्च के महिने में राजस्थान  के भ्रमण पर जाए तो यहाँ के पीले खेतों में कुछ ऐसे ही नजारे हमे देखने को मिल जाते है ।

खाली दारु की बोतले बेचकर हेलीकाप्टर खरीद लिया


एक समय की बात है, करंटपुरा नामक कस्बे में दो दोस्त रहा करते थे। पहला जबर्दस्त पियक्कड़ और दूसरा भला इंसान। दूसरा हमेशा पहले को समझाता रहता था।

कुछ समय बाद दूसरा दोस्त कामकाज के सिलसिले में कस्बे से शहर जा पहुंचा। कुछ समय कमाई-धमाई की, फिर वापस गांव लौटा। अपनी नई साइकिल के पैडल मारते हुए सीधे अपने दोस्त के घर पहुँचा। पहला हमेशा की तरह धुत्त मिला।

दूसरे ने पूछा, "और क्या चल रहा है?"

पहला बोला, "कुछ नहीं बस, पी रहे हैं.. जी रहे हैं... तुम सुनाओ।"

दूसरा बोला, "बस, बढ़िया, शहर में कामकाज चल निकला है। साइकिल खरीद ली है, तुम साले सुधर जाओ।"

और पैडल मारते हुए वापस शहर की तरफ निकल लिया।

कुछ दिनों बाद फिर शहर से कस्बे में पहुंचा। इस बार स्कूटर पर था। सीधे दोस्त के घर का रास्ता लिया। वहां फिर वही क्या चल रहा है? वही पी रहे हैं, जी रहे हैं... सुधर जाओ टाइप बातें हुईं। फिर दूसरे ने स्कूटर को किक लगाई और फिर शहर की दिशा में वापस हो लिए।

इस बार दूसरा कुछ महीनों बाद कस्बे में पहुंचा। इस बार कार में था। सीधे दोस्त के घर का रास्ता लिया। पता चला कि वो घर पर नहीं हैं, खेत गया हुआ है। तो दूसरे ने कार सीधे खेत की दिशा मे दौड़ा दी। वहां पहुंचा तो देखता क्या है कि पहला खेत के बीचों-बीच खाट पर बैठ पी रहा है। पास में ही एक हेलिकॉप्टर खड़ा है। दूसरा सीधे अपने दोस्त के पास जा पहुँचा और वही पुरानी बातचीत शुरू हो गई, "और क्या चल रहा है?"

पहला बोला, "बस, कुछ नहीं यार, वही पी रहे हैं, जी रहे हैं... पीते-पीते बोतलें ज्यादा इकट्ठी हो गईं तो बेचकर हेलिकॉप्टर खरीद लिया और पार्किंग के लिए खेत भी खरीद लिया है, और तुम सुनाओ।"

दूसरा वहीं बेहोश हो गया।

राजस्थानी दोहा

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पूजो मिनखा प्रीत
आंख आपरी तेज है , देखै पड़दां पार ।
खुद रै भीतर मैलड़ो , क्यूं नीं दीठै यार ।।
काया थांरी फूटरी , कंचन वरणों भान ।
लछण थांरां कुळछणां , बण बैठ्या भगवान ।।
आग लगाओ जगत में , खुद रा सेको रोट ।
डूब मरो रे निसरमो , थांरै कोठै खोट ।।
खोट कमाओ धपटवां , थान जगाओ जोत ।
खूब पटाओ देवता , चौड़ै आग्या पोत ।।
गाभा पैरो ऊजळा , मनड़ां राखो मैल ।
मिनखपणों है भायला , थांरै आगै फैल ।।
बातज मानों सांचली , पूजो मिनखा प्रीत ।
मिनखपणैं नै पूजतां , जग जाओला जीत ।।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

धारावी एक स्लम बस्ती

राम राम सा
मुंबई के धारावी इलाके में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले रोजाना बढ़ रहे हैं। जो सभी लोगों के लिये  चिंता का विषय हैं।लाखौ लोगो की आबादी वाले धारावी मे ज्यादतर गरीब मजदूर  उतरप्रदेश बिहार बंगाल व देश के सभी राज्यो के भी लोग रहते है धारावी मे ज्यादातर दुकाने राजस्थानी प्रवासियो की है। जिन मे से कुछ दुकानदारों का रहवासी घर धारावी से बाहर है लेकिन ज्यादतर लोग धारावी मे ही रहते है । उनके लिये  कोरोना संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है । अचानक हुये लोकडाउन मे मजदूर यहाँ से बाहर नही जा सके। धारावी में ज्यादातर लोग छोटे-छोटे घरों में रहते हैं.। एक दौ रोड़ छोडक़र बाकी की गलियाँ ऐसी है कि अगर सामने से कोई आदमी आये तो बिना एक दुसरे के टक्कर लगे निकल ही नही सकते है । और चालौ मे दौ घरों के दरवाजो के बीस मे मात्र तीन फिट की ही दुरी रहती है।एक एक घर मे पांच  छह सदस्य रहते है ।ज्यादतर परिवार ऐसे भी है जिसमे दस बारह सदस्य भी है। कुछ लोगो का ये भी कहना है कि ये सब उपर वाले की कृपा है आठ-नौ बच्चे दिये है चार पाँच वापस ले लेगा तो कौनसा फर्क पड़ने वाला है।धारावी मे सामान्य दिनो मे भी इतनी भीड़ रहती है कि जैसे कहीँ मेला लगा हुआ है। छोटी जगह मे भिड़ ज्यादा है । ऐसे मे सौशल डिस्टेंसिंग किसी हालत मे सम्भव नही है। अब तक धारावी में लगभग दौ सौ आस-पास मामले दर्ज किए गए हैं. धारावी एशिया का सबसे बड़ा स्लम इलाका है.।धारावी में थर्मल स्क्रीनिंग टेस्टिंग व सेनेटाराईज भी धीमी गति से हो रहा है और कुछ लोग भी लॉकडाउन सख्ती से पालन नही कर रहे है ।धारावी जनसँख्या का एक बड़ा क्षेत्र  व पतली पतली गल्लियाँ होने के कारण पूरे क्षेत्र में लॉकडाउन सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी पर्याप्त संख्या नहीं हैं.।कुछ लोग दैनिक आवश्यकताओं रासन दूध, सब्जियां, फल आदि लेने के लिये घरों से बाहर निकलते है तो इसी का फायदा उठाकर कुछ उपद्रवि भी फालतु ने बाहर घुमने आ जाते है । धारावी मे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो ना के बराबर है इसी कारण ये जानलेवा बिमारी फेलने मे समय नही लगेगा। केन्द्र सरकार व राज्य सरकारो से मेरा अनुरोध है कि समय रहते इन सभी मजदूरो को जल्दी अपने अपने राज्यों में मे भेजने की तैयारी करें। अन्यथा आज की स्थिति को देखते हुये तो ऐसा लग रहा है कि कुछ ही दिनो मे शायद मुंबई के सारे हॉस्पीटल कम पड़ जायेंगे। 
सरकार का कहना है कि सब सुरक्षित व सही है लेकिन सात लाख लोगो मे हजार बारह सौ लोग सुरक्षित होने से धारावी सुरक्षित नहीं हो सकती है यहाँ पर कोई भी सौसल डिस्टेंसिंग की पालना नही हो रही है ।यहाँ पर लोगो को रासन की कमी भले हो जाये एक दौ दिन भूखा रहकर चला देंगे लेकिन सरकार की तरफ शराब गुटखा नॉनवेज आदि की कोई कमी नही है ।ये सब बेचने के लिये लोग गली गली घुम रहे है ।लेकिन  गरीब मजदूरो के लिये यहाँ पर कुछ संसथाए ही मदद कर रही है। सरकारी मदद सिर्फ स्थानिय निवासियों तक ही सीमित है । जो मतदाता है उसी को ही मदद मिलती है। एक महिना तो मजदूरों ने जैसे तैसे करते निकाल दिया है । लेकिन अब इन के पास कुछ नहीं बचा है। ऐसे मे कुछ लोग तो चिन्ता से मर जायेंगे । समय  रहते प्रसासन को जागना चाहिये। 

रविवार, 19 अप्रैल 2020

मोहित मृग की कहानी

मुरु  एक मृग था। सोने के रंग में ढला उसका सुंदर सजीला बदन; माणिक, नीलम और पन्ने की कांति की चित्रांगता से शोभायमान था। मखमल से मुलायम उसके रेशमी बाल, आसमानी आँखें तथा तराशे स्फटिक-से उसके खुर और सींग सहज ही किसी का मन मोह लेने वाले थे। तभी तो जब भी वह वन में चौकडियाँ भरता तो उसे देखने वाला हर कोई आह भर उठता।

जाहिर है कि रुरु एक साधारण मृग नहीं था। उसकी अप्रतिम सुन्दरता उसकी विशेषता थी। लेकिन उससे भी बड़ी उसकी विशेषता यह थी कि वह विवेकशील था; और मनुष्य की तरह बात-चीत करने में भी समर्थ था। पूर्व जन्म के संस्कार से उसे ज्ञात था कि मनुष्य स्वभावत: एक लोभी प्राणी है और लोभ-वश वह मानवीय करुणा का भी प्रतिकार करता आया है। फिर भी सभी प्राणियों के लिए उसकी करुणा प्रबल थी और मनुष्य उसके करुणा-भाव के लिए कोई अपवाद नहीं था। यही करुणा रुरु की सबसे बड़ी विशिष्टता थी।

एक दिन रुरु जब वन में स्वच्छंद विहार कर रहा था तो उसे किसी मनुष्य की चीत्कार सुनायी दी। अनुसरण करता हुआ जब वह घटना-स्थल पर पहुँचा तो उसने वहाँ की पहाड़ी नदी की धारा में एक आदमी को बहता पाया। रुरु की करुणा सहज ही फूट पड़ी। वह तत्काल पानी में कूद पड़ा और डूबते व्यक्ति को अपने पैरों को पकड़ने कि सलाह दी। डूबता व्यक्ति अपनी घबराहट में रुरु के पैरों को न पकड़ उसके ऊपर की सवार हो गया। नाजुक रुरु उसे झटक कर अलग कर सकता था मगर उसने ऐसा नहीं किया। अपितु अनेक कठिनाइयों के बाद भी उस व्यक्ति को अपनी पीठ पर लाद बड़े संयम और मनोबल के साथ किनारे पर ला खड़ा किया।

सुरक्षित आदमी ने जब रुरु को धन्यवाद देना चाहा तो रुरु ने उससे कहा, “अगर तू सच में मुझे धन्यवाद देना चाहता है तो यह बात किसी को ही नहीं बताना कि तूने एक ऐसे मृग द्वारा पुनर्जीवन पाया है जो एक विशिष्ट स्वर्ण-मृग है; क्योंकि तुम्हारी दुनिया के लोग जब मेरे अस्तित्व को जानेंगे तो वे निस्सन्देह मेरा शिकार करना चाहेंगे।” इस प्रकार उस मनुष्य को विदा कर रुरु पुन: अपने निवास-स्थान को चला गया।

कालांतर में उस राज्य की रानी को एक स्वप्न आया। उसने स्वप्न में रुरु साक्षात् दर्शन कर लिए। रुरु की सुन्दरता पर मुग्ध; और हर सुन्दर वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा से रुरु को अपने पास रखने की उसकी लालसा प्रबल हुई। तत्काल उसने राजा से रुरु को ढूँढकर लाने का आग्रह किया। सत्ता में मद में चूर राजा उसकी याचना को ठुकरा नहीं सका। उसने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई-भी रानी द्वारा कल्पित मृग को ढूँढने में सहायक होगा उसे वह एक गाँव तथा दस सुन्दर युवतियाँ पुरस्कार में देगा।

राजा के ढिंढोरे की आवाज उस व्यक्ति ने भी सुनी जिसे रुरु ने बचाया था। उस व्यक्ति को रुरु का निवास स्थान मालूम था। बिना एक क्षण गँवाये वह दौड़ता हुआ राजा के दरबार में पहुँचा। फिर हाँफते हुए उसने रुरु का सारा भेद राजा के सामने उगल डाला।

राजा और उसके सिपाही उस व्यक्ति के साथ तत्काल उस वन में पहुँचे और रुरु के निवास-स्थल को चारों ओर से घेर लिया। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्होंने रुरु को रानी की बतायी छवि के बिल्कुल अनुरुप पाया। राजा ने तब धनुष साधा और रुरु उसके ठीक निशाने पर था। चारों तरफ से घिरे रुरु ने तब राजा से मनुष्य की भाषा में यह कहा “राजन् ! तुम मुझे मार डालो मगर उससे पहले यह बताओ कि तुम्हें मेरा ठिकाना कैसे मालूम हुआ ?”

उत्तर में राजा ने अपने तीर को घुमाते हुए उस व्यक्ति के सामने रोक दिया जिसकी जान रुरु ने बचायी थी। रुरु के मुख से तभी यह वाक्य हठात् फूट पड़ा

“निकाल लो लकड़ी के कुन्दे को पानी से
न निकालना कभी एक अकृतज्ञ इंसान को।”

राजा ने जब रुरु से उसके संवाद का आशय पूछा तो रुरु ने राजा को उस व्यक्ति के डूबने और बचाये जाने की पूरी कहानी कह सुनायी। रुरु की करुणा ने राजा की करुणा को भी जगा दिया था। उस व्यक्ति की कृतध्नता पर उसे रोष भी आया । राजा ने उसी तीर से जब उस व्यक्ति का संहार करना चाहा तो करुणावतार मृग ने उस व्यक्ति का वध न करने की प्रार्थना की ।

रुरु की विशिष्टताओं से प्रभावित राजा ने उसे अपने साथ अपने राज्य में आने का निमंत्रण दिया । रुरु ने राजा के अनुग्रह का नहीं ठुकराया और कुछ दिनों तक वह राजा के आतिथ्य को स्वीकार कर पुन: अपने निवास-स्थल को लौट गया।

मानसरोवर मे दौ हंस

मानसरोवर में दो स्वर्ण हंस रहते थे । दोनों हंस बिल्कुल एक जैसे दिखते थे और दोनों का आकार भी अन्य हंसों की तुलना में थोड़ा बड़ा था। दोनों समान रुप से गुणवान और शीलवान भी थे। फर्क था तो बस इतना कि उनमें एक राजा था और दूसरा उसका वफादार सेनापति। वाराणसी नरेश ने जब उनके विषय में सुना तो उस के मन में उन हंसों को पाने की प्रबल इच्छा जागृत हुई । तत्काल उसने अपने राज्य में मानस-सदृश एक मनोरम-सरोवर का निर्माण करवाया, जिसमें हर प्रकार के आकर्षक जलीय पौधे और विभिन्न प्रकार के कमल जैसे पद्म, उत्पल, कुमुद, पुण्डरीक, सौगन्धिक, तमरस और कहलर विकसित करवाये । मत्स्य और जलीय पक्षियों की सुंदर प्रजातियाँ भी वहाँ बसायी गयीं । साथ ही राजा ने वहाँ बसने वाले सभी पक्षियों की पूर्ण सुरक्षा की भी घोषणा करवायी, जिससे दूर-दूर से आने वाले पंछी स्वच्छंद भाव से वहाँ विचरण करने लगे।

एक बार, वर्षा काल के बाद जब हेमन्त ॠतु प्रारम्भ हुआ और आसमान का रंग बिल्कुल नीला होने लगा तब मानस के दो हंस वाराणसी के ऊपर से उड़ते हुए जा रहे थे । तभी उनकी दृष्टि राजा द्वारा निर्मित सरोवर पर पड़ी । सरोवर की सुन्दरता और उसमें तैरते रमणीक पक्षियों की स्वच्छंदता उन्हें सहज ही आकर्षित कर गयी । तत्काल वे नीचे उतर आये और महीनों तक वहाँ की सुरक्षा, सुंदरता और स्वच्छंदता का आनंद लेते रहे। अन्ततोगत्वा वर्षा ॠतु के प्रारंभ होने से पूर्व वे फिर मानस को प्रस्थान कर गये। मानस पहुँच कर उन्होंने अपने साथियों के बीच वाराणसी के कृत्रिम सरोवर की इतनी प्रशंसा की कि सारे के सारे हंस वर्षा के बाद वाराणसी जाने को तत्पर हो उठे।

हंसों के राजा युधिष्ठिर और उसके सेनापति सुमुख ने अन्य हंसों की इस योजना को समुचित नहीं माना । युधिष्ठिर ने उनके प्रस्ताव का अनुमोदन न करते हुए, यह कहा कि,

पंछी और जानवरों की एक प्रवृत्ति होती है।
वे अपनी संवेदनाओं को अपनी चीखों से प्रकट करते हैं।
किन्तु जन्तु जो कहलाता है “मानव” बड़ी चतुराई से करता है,
अपनी भंगिमाओं को प्रस्तुत जो होता है उनके भावों के ठीक विपरीत।

फिर भी कुछ दिनों के बाद हंस-राज को हंसों की ज़िद के आगे झुकना पड़ा और वह वर्षा ॠतु के बाद मानस के समस्त हंसों के साथ वाराणसी को प्रस्थान कर गया। जब मानस के हंसों का आगमन वाराणसी के सरोवर में हुआ और राजा को इसकी सूचना मिली तो उसने अपने एक निषाद को उन दो विशिष्ट हंसों को पकड़ने के लिए नियुक्त किया।

एक दिन युधिष्ठिर जब सरोवर की तट पर स्वच्छंद भ्रमण कर रहा था तभी उसके पैर निषाद द्वारा बिछाये गये जाल पर पड़े। अपने पकड़े जाने की चिंता छोड़ उसने अपनी तीव्र चीखों से अपने साथी-हंसों को तत्काल वहाँ से प्रस्थान करने को कहा जिससे मानस के सारे हंस वहाँ से क्षण मात्र में अंतर्धान हो गये। रह गया तो केवल उसका एकमात्र वफादार हमशक्ल सेनापति-सुमुख। हंसराज ने अपने सेनापति को भी उड़ जाने की आज्ञा दी मगर वह दृढ़ता के साथ अपने राजा के पास ही जीना मरना उचित समझा। निषाद जब उन हंसों के करीब पहुँचा तो वह आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि पकड़ा तो उसने एक ही हंस था फिर भी दूसरा उसके सामने निर्भीक खड़ा था। निषाद ने जब दूसरे हंस से इसका कारण पूछा तो वह और भी चकित हो गया, क्योंकि दूसरे हंस ने उसे यह बताया कि उसके जीवन से बढ़कर उसकी वफादारी और स्वामि-भक्ति है। एक पक्षी के मुख से ऐसी बात सुनकर निषाद का हृदय परिवर्तन हो गया। वह एक मानव था; किन्तु मानव-धर्म के लिए वफादार नहीं था। उसने हिंसा का मार्ग अपनाया था और प्राणातिपात से अपना जीवन निर्वाह करता था। शीघ्र ही उस निषाद ने अपनी जागृत मानवता के प्रभाव में आकर दोनों ही हंसों को मुक्त कर दिया।

दोनों हंस कोई साधारण हंस तो थे नहीं। उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से यह जान लिया था कि वह निषाद निस्सन्देह राजा के कोप का भागी बनेगा। अगर निषाद ने उनकी जान बख़शी थी तो उन्हें भी निषाद की जान बचानी थी। अत: तत्काल वे निषाद के कंधे पर सवार हो गये और उसे राजा के पास चलने को कहा। निषाद के कंधों पर सवार जब वे दोनों हंस राज-दरबार पहुँचे तो समस्त दरबारीगण चकित हो गये। जिन हंसों को पकड़ने के लिए राजा ने इतना प्रयत्न किया था वे स्वयं ही उसके पास आ गये थे। विस्मित राजा ने जब उनकी कहानी सुनी तो उसने तत्काल ही निषाद को राज-दण्ड से मुक्त कर पुरस्कृत किया। उसने फिर उन ज्ञानी हंसों को आतिथ्य प्रदान किया तथा उनकी देशनाओं को राजदरबार में सादर सुनता रहा।

इस प्रकार कुछ दिनों तक राजा का आतिथ्य स्वीकार कर दोनों ही हंस पुन: मानस को वापिस लौट गये।

लोकडाउन 2

।। राम राम सा।। 
मित्रो कल रात को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लाइव प्रेसकांफ्रेंस मे कुछ बाते कही है । जो राज्य के हित के साथ देश हित के लिये भी सही हो सकती है। लेकिन उसके लिये सभी राज्यो की सहमती भी जरुरी है उन्होने कहा कि कोटा मे पढने वाले छात्र जो देश के बहुत से राज्यो से है उन्हे वापस पहुँचाने की पहल की जिसमे उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा किसी ने हाँ नही भरी थी । और राजस्थान के मजदूर व छोटे छोटे व्यवसायी जो पुरे देश के हर कौने मे बैठे है । और दुसरे राज्यो के मजदूर जो राजस्थान मे है उन्हे एक बार अपने राज्यों मे भेजने के लिये केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को पहल करनी चाहिये । दूसरे राज्यो से किसी भी भाई को आपने राज्य में जाने के लिए दोनों राज्यो की भूमिका जरूर है क्योंकि यह 144 धारा केंद्र सरकार के पास में है ऐसे में आप घर छोड़कर बाहर तक नही जा सकते पुलिस के पास विशेष रूप आपको हिरासत में लेने का अधिकार है ।
अब कानून व्यवस्था बनाए रखने के तो ठीक है लेकिन बड़े शहरो मे तो दिनों-दिन व्यवस्था बिगड़ती जा रही है ।  ये वो गरीब मजदूर लोग है, जिनके पास न तो खुद का घर है और न ही उनका परिवार यहाँ पर रहता है। 21 दिनों के लॉक डाउन ने, न सिर्फ इनसे इनका काम छीना बल्कि इन्हें रोटी-पानी के लिए तरसा दिया था । फिर भी इन्होंने खुद को बांधे रखा और एक-एक दिन गिनकर 14 अप्रैल के दिन का इंतजार किया। लेकिन पुनः जब 19 दिनों के लॉक डाउन के बढ़ने की खबर से निराश हो गये है ।  अब इनके संयम का बांध टुट गया है बड़े शहरों मे स्तिथि भी भयंकर हो गई है सोशल डिस्टेंसिंग किसी भी प्रकार से सम्भव नहीं है।
अब समय रहते केन्द्र सरकार व राज्य सरकारो  को सोचना चाहिये कि जगह जगह फन्सै हुये मजदूरो का स्वास्थय परिक्षण करवाकर अपने अपने गृहराज्यो मे भेजने का उपाय शुरु करें तो आने वाले दिनों के लिये उचित होगा । नही तो आगे हाहाकार मच सकता है।
अब कुछ स्थानिय नेता भी दौ तीन दिन से राजनिती की रोटियाँ  सेकने लग गये है जो एक लेटर लिख कर अपने Twitter account Facebook,  WhatsApp ,Instagram account पर डाल रहे है । कोई कुछ कह रहा है तो कोई और ही कह रहा है । जो लोग अपने पत्र सोशल मीडिया पर डाल कर प्रचार कर रहे है ।सब ढोंग कर रहे है इनको करना कुछ नही हैं सिर्फ दिखावा के अलावा कुछ नही है लेकिन 
सरकारें मजदूरों के प्रति अपनी इतनी भी नैतिक जिम्मेदारी नहीं समझ रहीं कि अब जब उनके पास ना तो काम-धंधा है, न पैसे है और बहुतों के पास तो सिर छुपाने की जगह भी नहीं, तो कम से कम उनको पेट भर भोजन मिलता रहे। सरकारों द्वारा कहीं भी मजदूरों की इतनी-सी मांग भी नहीं मानी जा रही है, कि उन्हें भोजन-पानी और बकाया मजदूरी उपलब्ध कराई जाये या फिर उन्हें अपने घर जाने दिया जाये।
आज लाखौ लोगो को खाना खिलाना किसी भी राज्य सरकार के बस की बात नही है । देश के कोई भी शहर कोई भी गली मोहले मे खाना उन्ही को मिलता है जो अपने वोटर है और  जो मजदूर अन्य किसी राज्य से है उन गरीबों को खाना नसीब नही होता है ।
अगर सरकारों के पास मजदूरों को घरों तक भेजने की व्यवस्था मुमकिन नहीं तो , कम से कम खाने पीने की व्यवस्था तो करवाये।
आज तक कोई भी राज्य सरकार के पास मे  मजदुरो व उनकी संख्या के वास्तविक आंकड़े तक नहीं भी नही हैं,  लॉकडाउन देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य के विरुद्ध भीषण कदम  जरुर हो सकता है लेकिन इसके कारण लोगों को न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामाजिक व मनौवैज्ञानिक दबावों से भी गुजरना पड़़ रहा है, जिसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर लम्बा और गहरा विपरीत असर जरुर होगा । जो आने वाले समय मे घातक सिद्ध होगा । सरकार अगर इस बात का इन्तज़ार कर रही है कि  मरीज मिलने बंद होने के बाद मे सभी को अपने अपने राज्यों में जाने की अनुमती देंगे  तो ये उनकी भूल हो सकती है ।क्योकि अभी तक मामले तेज गति से बढ़ रहे हैं।लोगो को आठ-दस दिनो तक पता ही नही चलता है और कई  संक्रमित लोग जानबूझ कर सामने नही आ रहे है। इसिलिए सरकार  को निर्णय लेना चाहिये ।