गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

महा कुम्भ प्रयागराज 2025

 
।। राम राम सा ।।
मित्रों 2025 का प्रयागराज महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान 26 फरवरी 2025 को हुआ है इसी के साथ मेला का समापन हो गया है मेला तो अभी भी थोड़े दिनों तक और रहेगा  इस मेले में बहुत ही रौनक रही है लगभग भारत की आधी आबादी मेला में स्नान करके गई है विदेशों से भी बहुत लोग आए थे 
आज कल दूर की बड़ी तीर्थयात्रा करना एकदम आसान हो गया है  थैला उठाया और रवाना हो गये  क्योंकि पैसे की कोई कमी नहीं है, और आजकल आवागमन  के साधन बहुत हो गए हैं रेलगाड़ी  बसे ,छोटी कारें , हर वक्त मिल जाती हैं यही तीर्थयात्रा करना  तीस-चालीस सालों पहले बहुत ही मुश्किल काम हुआ करता था यातायात के  साधन बहुत ही कम थे लोग कुछ लोग खर्चा करने से भी हिसकिसाते थे सौ, दौ सौ किलोमीटर तक की नजदीक  तीर्थयात्रा तो कर देते थे लेकिन लंबी दूरी की तीर्थयात्रा बहुत ही कम लोग करते थे हमारे यहाँ सबसे बड़ा तीर्थ  द्वारकाधीश  ठाकुरद्वारा को मानते थे  द्वारका तीर्थयात्रा पर भेजने के लिए  प्रत्येक गांव में सात आठ लोग फागुन महीना लगते ही तैयार रहते थे जो इनके आने-जाने के लिए खर्चे की व्यवस्था करते थे इस बार गांव से किस किस को द्वारका भेजना है उसकी तैयारी करते थे  लेकिन फागुन महीने में अपने- अपने परिवार के बुजुर्ग बच्चों की निगरानी भी रखते थे रात को सोते समय कमरे को बाहर से कड़ी लगा देते थे जागकर भी पहरा देते कि कोई रात को उठाकर द्वारका के लिए भेज ना दे, जाने वाले तो कितना भी कड़ा पहरा रखने के बावजूद भी निकल जाते थे द्वारका तीर्थ निकलने के बाद वापस आने तक चार पाँच दिन घर पर भजन कीर्तन हरजस  हुआ करते थे और वापस आने पर ढोल थाली गुलाल से स्वागत होता था और जागरण जरूरी होता था पहले भी    माता-पिता ,चाचा चाची, बहिन भुआ या अन्य किसी रिस्तेदार को अगर तीर्थ यात्रा कराने के लिए लेकर जाते थे तो उनको कम से कम तीन चार दिन तो तैयारी करने में लग जाते थे सबसे पहले साथ में ले जाने के लिये जितने दिनों की यात्रा होती उतने दिनों का खाने-पीने के सामान की व्यवस्था करते, घर से निकलने से पहले  किड़ीनगरे  को आटा डालते थे ,पक्षियों को दाना डालते थे, काले कुत्ते को ढूंढकर रोटी देते थे और गाय को रोटियाँ खिलाते थे और सभी से वापस सकुशल वापस लौटने की प्रार्थना करते थे घर से निकलते समय  ठाकुर जी के मंदिर में  या घर पर  बने मंदिर पर नारियल चढ़ाते थे और ठाकुर जी से साथ में चलने का आग्रह करते थे  कि वापस आने तक हमारे साथ साथ रहे और वापस आकर भी सबसे पहले मंदिर में  दर्शन करते थे जब तक वापस घर नहीं आते तब तक बीस में कोई भी रिस्तेदार या कितना ही पहचान वाला क्यों ना हो किसी के घर पर नहीं रुकते थे और जिस तीर्थ स्थल पर जाते थे उस जगह रात रुकना जरूरी था क्योंकि उनका ऐसा मानना  था कि  तीर्थयात्रा का पूर्ण फल नहीं मिलेगा,  फिर घर आने पर माँ, चाची, भूआ या बहिन,  भाभी द्वारा तिलक करके आरती की जाती थी जागरण दिया जाता था,  आजकल की तरह दिखावे का आडम्बर नहीं होता था  अब कोई कहते हैं कि तीर्थयात्रा पर गया और क्या मिला, कौन-से पाप धोकर आए हों  कुछ लोगों का कहना है कि गंगा नदी का पानी बहुत ही प्रदुषित हो गया है करोड़ों लोगों के मल -मूत्र से पानी के अंदर बैक्टीरिया फेल गया है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है से सब भ्रमित करने वालीं बाते हैं  गंगाजल वर्ल्ड की सभी नदियों से पवित्र जल है लेकिन तीर्थयात्रा से ना तो पुण्य  मिलता है और ना ही पाप धुलता है ये सब अपने अपने कर्म के अनुसार ही मिलेगा  लेकिन तीर्थयात्रा से आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता है ईश्वर के प्रति  अपनी आस्था मज़बूत होती है मन प्रसन्न होता है और नई ऊर्जा मिलती है दैनिक जीवन की परेशानियों से मुक्ति मिलती है बुरे विचार खत्म होते हैं और सोच अच्छी बनती है स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है पौराणिक ज्ञान का अनुभव बढ़ता है अलग-अलग जगहों की जीवन शैली और रीति-रिवाजों को जानने का मौका मिलता है इंसानों में आत्म-विकास, ज्ञान, समझ, बढ़ती है  बहुत कुछ सीखने को मिलता है लेकिन अगर हमारे आसपास कोई जानवर भूखे प्यासे तड़प रहे हैं गर्मियों के दिनों में पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था नहीं है हम  अपने परिवार के या अन्य बड़े-बुज़ुर्गों को आदर नहीं करते हैं तो चाहे हम चारधाम की यात्रा करे बारह शिवलिंग के दर्शन करे या चारो कुम्भयात्रा करें गंगा या नहाए  कहीं भी कुछ नहीं मिलेगा सब व्यर्थ है ऐसे लोगों को किसी भी तीर्थ का फल नहीं मिलता है। इस बार कुछ लोगों एक नया नाटक करते हुए भी सबने देखा है तीर्थयात्रा से लौटने के बाद घरवालों द्वारा पैर  धुलवाना ऐसा तो हमने पहले कभी नहीं देखा है  लेकिन दिखावा करना ही समय की मांग है  
गुमना राम चौधरी  सिंणली