गुरुवार, 18 जून 2015

रंग रंगीलो रस भरियो, ओ म्हारो राजस्थान।।

छम-छम बाजे पायली रुके नहीं बरसात हरी मलमली चूनरी तितली चूड़ा हाथ। बादल में मादल बजे नभ गूँजे संतूर मन में बिच्छू-सा चुभे घर है कितनी दूर। कच्ची पक्की मेड़ पर एक छाते का साथ हवा मनचली खींचती पकड़-पकड़ कर हाथ। बरसी बरखा झूम के सबके मिटे मलाल खेतों में हलचल बढ़ी खाली हैं चौपाल। गड़-गड़ बाजी बादरी भिगो गई दालान खट्ठे मन मीठे हुए क्या जामुन क्या आम। बादल की अठखेलियाँ बारिश का उत्पात ऐसा दोनों का मिलन सूखे को दी मात।

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