शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

मतीरा कविता

मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
सोनै जिसड़ी रेतड़ली पर
जाणै पन्ना जड़िया,
चुरा सुरग स्यूं अठै मेलग्यो
कुण इमरत रा घड़िया?
आं अणमोलां आगै लुकग्या
लाजां मरता हीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
कामधेणु रा थण ही धरती
आं में दूया जाणै,
कलप बिरख रै फळ पर स्यावै
निलजो सुरग धिंगाणै।*
लीलो कापो गिरी गुलाबी
इंद्र धणख सा लीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
कुचर कुचर नै खपरी पीवो
गंगाजळ सो पांणी,
तिस तो कांईं चीज, भूख नै
ईं री घूंट भजाणी,
हरि-रस हूंतो फीको,
ओ रस, जे पी लेती मीरां!
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें