श्लोक :- गजानंद आनंद करो दो सुखसम्पति में सिष
दुश्मन को सज्जन करो देवा निवतजिमावा खीर |
सूंढाला दुःख भंजना तो सदा जी बालही वेश
सारू पहला सिवरियो श्री गवरी नन्दगणेश ||
भजन
अरे में थाने सिवरू गजानंद देवा
मारे वचनो रा पालन हारा जी ओ
सरस्वती मात देवी शारदा ने सिवरू
हिर्दय करो नी उजियाला जी ओ
निंदरा निवारू भोला नाथ री
निंदरा निवारू भोला नाथ री ||
जननी नी जायो रे उदर नहीं आयो
माता गवरा रो केवायो जी ओ
गवरा रो केवायो जी ओ
में थाने सिवरू गजानंद देवा
वचनो रा पालन हारा जी ओ
निंदरा निवारू भोला नाथ री ||
पानी सु ही पतलो पवन सु ही जिनो
शोभा तो वरणी नी जाए जी ओ
शोभा तो वरणी नी जाए जी ओ
में थाने सिवरू गजानंद देवा
वचनो रा पालन हारा जी ओ
निंदरा निवारू भोला नाथ री ||
हाथ पसरु हीरो हाथ में नी आवे
मुठिया में नहीं रे समावे जी ओ
मुठिया में नहीं रे समावे जी ओ
में थाने सिवरू गजानंद देवा
वचनो रा पालन हारा जी ओ
सरस्वती मात देवी शारदा ने सिवरू
हिर्दय करो नी उजियाला जी ओ
निंदरा निवारू भोला नाथ री
निंदरा निवारू भोला नाथ री ||
बोलिया गोरसनाथ मछन्दर रा चेला
पत बाने वाली राखो जी ओ
पत बाने वाली राखो जी ओ
में थाने सिवरू गजानंद देवा
वचनो रा पालन हारा जी ओ
सरस्वती मात देवी शारदा ने सिवरू
हिर्दय करो नी उजियाला जी ओ
निंदरा निवारू भोला नाथ री
निंदरा निवारू भोला नाथ री ||
में थाने सिवरू गजानंद देवा
वचनो रा पालन हारा जी ओ
सरस्वती मात देवी शारदा नेसिवरू
हिर्दय करो नी उजियाला जीओ
निंदरा निवारू भोला नाथ री
निंदरा निवारू भोला नाथ री ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें