मित्रो एक महिने बाद होली का त्योहार आने वाला है और आज 8 फरवरी को होली की रोपणी रोपी गई है। हम सब गाँव छोड़ कर कमाने के लिये बाहर जरुर रहते है गाँव मे के कार्यक्रमों मे मौजुद नही रहते है फिर भी सौशलमिडिया के जरिये लाइव देख सकते है । आज हमारे गाँव सिनली में पंडित जी जितेन्द्र कुमार के द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार पर रोपणी का डंडा रोपा गया। इस मौके ठाकुर जी मन्दिर के मठाधिश, वरिष्ठ अध्यापक गुलाब राम जी सुथार गांव चौधरी देवाराम जी काग व गाँव के सभी गणमान्य ग्रामवासी मौजूद रहे । गाँव चौधरी देवाराम जी काग हमारे गांव का कोई भी सार्वजनिक काम हो उसमे समय का योगदान देकर उपस्थित रहते है ।
मित्रो बचपन मे तो रोपणी के साथ ही होली के फागण की मस्ती का आगाज हो जाता था । लेकिन समय के साथ कई परम्पराएं बदल गई हैं।हमारे गाँव के अधिकतर युवा व्यापार के लिये तो कुछ नौकरी के लिये बाहर रहते है इसलिये होली जैसा महत्वपूर्ण त्योहार पहले महीने भर तक मनाया जाता था। अब सिर्फ दो दिन का ही बनकर रह गया है। अब लोगों में न तो उतना उत्साह है और न ही उल्लास है। सिर्फ हमारे गाँव की बात नही है सभी गाँवों का यही हाल है आज गाँव के अधिकतर युवा किसी ना किसी रुप से नशे के गिरप्त मे होने के कारण हम होली की संस्कृति खो रहे है ।
मेरे देखते हुए होली के त्योहार मे बहुत बदलाव आया है पहले औरते गाँव के चौहटे मे एकत्रित होकर एक माह तक होली के गीत (लूर ) गाती थीं , आदमी चंग पर फागण गाते थे । लेकिन अब वे गीत एक दो दिन ही कहीं पर ही सुनाई देते है ।
परम्परागत अनुसार, होली का आगाज रोपणी से ही होता है। आज भी यह परम्परा गाँवों शहरों मे हर जगह निभाई जाती है। बुजुर्गों के द्वारा सुना है कि होली की रोपणी भी गाँव का नाक होता है
पहले के समय मे इसे मैणा चुरा लेते थे इसलिये जिस गाँव मे रोपणी चुराई हुई है उस गाँव मे आज भी रोपणी नही रोपी जाती है । लेकिन हमारे गाँव का नाक तो है ।हमे गाँव के बुजुर्गो पर गर्व है इसलिये हमारे गाँव की रोपणी प्रथा को जीवित रखा है ।
अधिकांश गाँवों मे होलिका दहन के कुछ समय पहले यह रोपणी लगाकर खानापूर्ति कर ली जाती है।
गाँवों मे पहले रोपणी के बाद एक माहिने तक कोई शुभ कार्य एवं विवाह नहीं होते थे । होली का डंडा रोपण के साथ ही शुभ कार्यों और विवाह पर विराम लग जाता था । होलिका दहन के बाद ही शुभ काम शुरू होते थे । अब बहुत सी जगह पर शादी करते हुये भी देखते है । मुहूर्त भी होते हुये देखते है ।
गुमनाराम पटेल सिनली जोधपुर
मित्रो बचपन मे तो रोपणी के साथ ही होली के फागण की मस्ती का आगाज हो जाता था । लेकिन समय के साथ कई परम्पराएं बदल गई हैं।हमारे गाँव के अधिकतर युवा व्यापार के लिये तो कुछ नौकरी के लिये बाहर रहते है इसलिये होली जैसा महत्वपूर्ण त्योहार पहले महीने भर तक मनाया जाता था। अब सिर्फ दो दिन का ही बनकर रह गया है। अब लोगों में न तो उतना उत्साह है और न ही उल्लास है। सिर्फ हमारे गाँव की बात नही है सभी गाँवों का यही हाल है आज गाँव के अधिकतर युवा किसी ना किसी रुप से नशे के गिरप्त मे होने के कारण हम होली की संस्कृति खो रहे है ।
मेरे देखते हुए होली के त्योहार मे बहुत बदलाव आया है पहले औरते गाँव के चौहटे मे एकत्रित होकर एक माह तक होली के गीत (लूर ) गाती थीं , आदमी चंग पर फागण गाते थे । लेकिन अब वे गीत एक दो दिन ही कहीं पर ही सुनाई देते है ।
परम्परागत अनुसार, होली का आगाज रोपणी से ही होता है। आज भी यह परम्परा गाँवों शहरों मे हर जगह निभाई जाती है। बुजुर्गों के द्वारा सुना है कि होली की रोपणी भी गाँव का नाक होता है
पहले के समय मे इसे मैणा चुरा लेते थे इसलिये जिस गाँव मे रोपणी चुराई हुई है उस गाँव मे आज भी रोपणी नही रोपी जाती है । लेकिन हमारे गाँव का नाक तो है ।हमे गाँव के बुजुर्गो पर गर्व है इसलिये हमारे गाँव की रोपणी प्रथा को जीवित रखा है ।
अधिकांश गाँवों मे होलिका दहन के कुछ समय पहले यह रोपणी लगाकर खानापूर्ति कर ली जाती है।
गाँवों मे पहले रोपणी के बाद एक माहिने तक कोई शुभ कार्य एवं विवाह नहीं होते थे । होली का डंडा रोपण के साथ ही शुभ कार्यों और विवाह पर विराम लग जाता था । होलिका दहन के बाद ही शुभ काम शुरू होते थे । अब बहुत सी जगह पर शादी करते हुये भी देखते है । मुहूर्त भी होते हुये देखते है ।
गुमनाराम पटेल सिनली जोधपुर



कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें