मंगलवार, 1 सितंबर 2015
नासिक-त्रयंबकेश्वर सिंहस्थ कुंभ मेला
कुम्भ मेला की पौराणिक कहानी :
वेदों में दिए विवरण के अनुसार जब अमृत की खोज में समुद्र मंथन किया गया था | तब उस कार्य को सिद्ध करने के लिए मंडरा पर्वत को मथाई के तौर पर समुद्र के बीच रखा गया | उसमे चारों तरफ शेष नाग को लपेटा गया जिसको दोनों तरफ से खींच कर समुद्र मंथन करना था | इस कार्य के लिए देवताओं और दानवो दोनों को लिया गया एक तरफ देवता दूसरी तरफ दानव खड़े हुए और वर्षो तक मंथन चला जिसमे हलाहल विष निकला | इससे सभी को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस हलाहल विष का पान कर लिया | तभी से उनका नाम नीलकंठेश्वर पड़ा | इसके बाद कई हजार वर्षो तक मंथन करने के बाद उसमे से कुबेर देवता अमृत का घड़ा लेकर निकलने | उस अमृत के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध हो गया | अगर दानवों को अमृत मिल जाता तो अनर्थ हो जाता इसलिये यह अमृत का घड़ा मोहिनी नामक अप्सरा ले जाती हैं | भगवान विष्णु मोहिनी का रूप धर कर आते हैं | जब वे इस घड़े को ले जाते हैं | तब इसकी चार बुँदे पृथ्वी पर गिरती हैं | तब ही इन चार शहरों में महा कुम्भ का आयोजन होता हैं |
देवता और दानव की लड़ाई को रोकने के लिए मोहिनी फैसला करती हैं कि वो बारी- बारी से सभी को अमृत पान करायेगी | और इस तरह मोहिनी छल से देवताओं को अमृत और दानवों को जल का पान कराती हैं | जिसे एक दानव समझ लेता हैं और देवताओं का भेस धर देवताओं की तरफ बैठ जाता हैं | मोहिनी उसे अमृत पान करा देती हैं वो इस छल को समझ जाती हैं और तुरंत विष्णु रूप में आकर उस दानव का सर सुदर्शन से धड़ से अलग कर देती हैं | चूँकि दानव ने अमृत पान किया ही था इसलिये उसका धड़ मर जाता हैं और मस्तक अमर हो जाता हैं | इस प्रकार देवता अमृत पान कर अमर हो जाते हैं |
तभी से इन चार शहरों नासिक, उज्जैन, प्रयाग एवम हरिद्वार में कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता हैं | यह महा कुम्भ इन शहरों में प्रति बारह वर्षों में आता हैं | जब भी कुम्भ होता हैं उस माह को सिंहस्थ का पवित्र महिना माना जाता हैं |
इस वर्ष इस महा कुम्भ का आयोजन महाराष्ट्र के नाशिक त्रयम्बकेश्वर गोदावरी नदी के तट पर आयोजित हुआ हैं |नागा साधू :
कुम्भ मेले में बड़ी मात्रा में नागा साधू भाग लेते हैं | ये साधू वर्षो तक हिमालय की गुफाओं में कठिन साधना, तपस्या में लीन रहते हैं | ये केवल सिंहस्त कुम्भ के समय ही बाहर आते हैं | मान्यता यह कि सिंहस्त कुम्भ में अमृत बरसता हैं | ये साधू उस पवित्र अमृत की चाह में ही सामान्य जनता के बीच आते हैं और स्नान कर वापस उन्ही हिमालय की पहाड़ियों में चले जाते हैं |
इस साधुओं को दुनियाँ के किसी आडम्बर से कोई मतलब नहीं होता | इनकी उम्र कितनी हैं | यह भी नहीं कहा जा सकता | तपस्या में लीन इन साधुओं की जटाएं बड़ी- बड़ी हो जाती हैं | हिमालय की ठण्ड में ये साधू बिना कोई गरम कपड़े पहने तपस्या में लीन रहते हैं | और वहाँ सूखे कंद मूल फल खाकर अपना जीवन बिताते हैं | यह केवल इस अमृत की चाह में उन डरावनी गुफाओं में तपस्या करते रहते हैं |नासिक महाकुंभ : पहला शाही स्नान
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कई लाखों भारतीय, पुरुष और महिला, युवा और वृद्ध, व्यक्ति और भिक्षु, इलाहाबाद कुंभ मेला में आते हैं । भारत में पवित्र स्थल त्यौहार, कहा जाता है मेलों, हिंदू धर्म की तीर्थयात्रा परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। एक देवता या शुभ ज्योतिषीय काल के जीवन में एक पौराणिक घटना का जश्न मनाते हुए, देश भर से तीर्थयात्रियों की भारी संख्या को आकर्षित करता है।
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