शनिवार, 27 फ़रवरी 2016
अनजाने कर्म का फल - Sएक राजा, ब्राह्मणों को महल के आँगन में भोजन करा रहा था। राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था। उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के ऊपर से गुजरी। तभी पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से जहर निकाला। तब रसोईया जो भोजन ब्राह्मणों के लिए पका रहा था, उसमें साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें गिर गई। किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वे ब्राह्मण, जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाने से मौत हो गयी। जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दु:ख हुआ।
ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना कठिन हो गया कि, इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा?
(1) राजा
*.जिसको पता ही नहीं था कि, खाना जहरीला हो गया है।
(2 ) रसोईया
*.जिसको पता ही नहीं था कि, खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है।
(3) वह चील
*.जो जहरीला साँप लिए महल के ऊपर से गुजरी।
या
(4) वह साँप
*.जिसने अपनी आत्म-रक्षा में जहर निकाला।
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा। कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य में आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा। उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि –“देखो भाई ! जरा ध्यान रखना .. वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है।”
बस, जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा।
यमराज के दूतों ने पूछा –
प्रभु ऐसा क्यों ?? जबकि उन ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की तो कोई भूमिका भी नहीं थी।
तब यमराज ने कहा कि –
भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता है, तब उसे बड़ा आनन्द मिलता है, पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से …
*.ना तो राजा को आनंद मिला ..
*.ना उस रसोइया को मिला..
*.ना तो उस साँप को आनंद मिला . … और
*.ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला। इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा।
बस, इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता है, तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता है।अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि, हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया?
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं।
इसलिए, आज से ही संकल्प कर लो कि किसी के भी, और किसी भी पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से कभी नहीं करना यानी किसी की भी बुराई या चुगली कभी नहीं करनी है।
लेकिन यदि फिर भी हम ऐसा करते हैं तो हमें ही इसका फल आज नहीं तो कल जरूर भुगतना ही पड़ेगा।
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016
हंसी का खजाना
पत्नी: --पूजा किया करो,
बड़ी बलाएँ टल जाती है
पति : -
तेरे बाप ने बहुत की होगी,
उसकी टल गयी,
मेरे पल्ले पड़ गयी
सुबह पत्नी चाय नाश्ता पूछने आई तो मैंने कहा बना दो। फिर रुक कर पूछने लगी जी ये अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न मिल रहा है ऐसा कौन सा बडा काम किया था उन्होंने ?
मैंने कहा:- शादी नहीं की थी |
बस उसके बाद ना चाय आई ना नाश्ता ।
😅
सुबह जब ऑफिस के लिए निकला तो श्रीमती जी बोली:
भगवान के हाथ जोड़ कर घर से निकला करो... सब काम अच्छे होते हैं|
मैंने कहा:
मैं नहीं मानता... शादी वाले दिन भी हाथ जोड़ कर ही घर से निकला था
दामाद अपनी सास से बात करता हैं :
आपकी बेटी में तो हज़ारों कमियाँ हैं ।
सास : हाँ बेटा , इसी वजह से तो उसे अच्छा लड़का नही मिला.
Solid Insult....!!!
😟😟😦😧😧😜😜😈😈😬😬
🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀
👉बीवी पति से : सुनिये जी वो आदमी जो दारू पी कर नाच रहा है ना मैने उसे 10 साल पहले रिजेक्ट कर दिया था 😌😌
पति: 😳😳😳😳 बताओ, साला अभी तक celebrate कर रहा है 😲😜🙌✌👌👍
👉बीवी मंदिर गयी और मन्नत का धागा बाँधने के लिए हाथ उठाये…
फिर कुछ सोच कर मन्नत का धागा बांधे बिना ही हाथ नीचे कर लिये।
पति: ये क्या ? मन्नत नही मॉंगी ?
पत्नी: माँगने ही लगी थी कि ईश्वर आपकी तमाम मुश्किलें दूर कर दे….
फिर सोचा कहीं मैं ही न निपट जाऊँ! 😀 😛
माँ बहुत झूठ बोलती है.
...........सुबहजल्दी जगाने को, सात बजे को आठ कहती है।
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है।
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है।
छोटी छोटी परेशानियों पर बड़ा बवंडर करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है।
जो मैं न रहूँ घर पे तो,
मेरी पसंद की कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है।
मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूजन बोलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर,
मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है।
कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में,
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,समझदार हो,
अब न कुछ बोलूँगी मैं,
ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है।
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती हो जाती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी,
सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है,
बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है।
सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है।
उसके व्रत, नारियल, धागे,फेरे, सब मेरे नाम,
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ,
उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है।
मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे,
मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ खुश होती जैसे,
खुद पर उपकार समझती है।
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर,
सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।"
हर माँ को समर्पित
"अहंकार की गति"
"अहंकार की गति"
एक मूर्तिकार उच्चकोटि की ऐसी सजीव मूर्तियाँ बनाता था, जो सजीव लगती थीं। लेकिन उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था।
उसे जब लगा कि जल्दी ही उसक मृत्यु होने वाली है तो वह परेशानी में पड़ गया। यमदूतों को भ्रमित करने के लिये उसने एकदम अपने जैसी दस मूर्तियाँ उसने बना डालीं और योजनानुसार उन बनाई गईमूर्तियों के बीच मे वह स्वयं जाकर बैठ गया।
यमदूत जब उसे लेने आए तो एक जैसी ग्यारह आकृतियाँ देखकर स्तम्भित रह गए। इनमें से वास्तविक मनुष्य कौन है- नहीं पहचान पाए। वे सोचने लगे, अब क्या किया जाए। मूर्तिकार के प्राण अगर न ले सके तो सृष्टि का नियम टूट जाएगा और सत्य परखने के लिये मूर्तियाँ तोड़ें तो कला का अपमान होगा।
अचानक एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े दुर्गुण अहंकार की स्मृति आई। उसने चाल चलते हुए कहा- "काश इन मूर्तियों को बनाने वाला मिलता तो मैं से बताता कि मूर्तियाँ तो अति सुंदर बनाई हैं, लेकिन इनको बनाने में एक त्रुटि रह गई।"
यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा कि मेरी कला में कमी कैसे रह सकत है, फिर इस कार्य में तो मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। वह बोल उठा-
"कैसी त्रुटि?"
झट से यमदूत ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला, बस यही त्रुटि कर गए तुम अपने अहंकार में। क्या जानते नहीं कि बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करतीं।
रविवार, 7 फ़रवरी 2016
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