शनिवार, 5 दिसंबर 2020

पुरानी राजस्थानी-भाषा की पढाई

 क. कको केवलियो।

ख. खखो खाजलो।

ग. गगा गोरी गाय।

घ. घघो घोट पलाण्यो जाय।

ड़. आगे नंद्यो भागोजाय।

च. चडा चडारी चांच है।

छ. छछ्या विद्या पीटला।

ज. जजो जेवर वाणी रो।

झ. झझा जीरी शांडी रो।

ञ. नन्यो भाट चोट्टो।

ट. टटाल पोली खांड घी।

ठ. ठठा जीरा गाडुवा।

ड. डडो डावण गंठे।

ढ. क्ढा हूणा पूंछ है।

ण. राणो ताणओ हेल है।

त. ततो तमाली तेल है।

थ. थथो थावरियो।

द. ददो दीवटियो।

ध. धधो धानरो।

न. ननो फुलायरो।

प. पाप पाटकडी।

फ. फफो फुलायरो।

ब. बबा में चानणी।

भ. भाव कटाररो।

म. बामण मोटको।

य. जग्गु जाडा पेटरो।

र. राईबालो रांकलो।

ल. लला घोडी लात वावे।

व. ववावेंगण वासदे।

श. शीया घोटा मरडीया।

ष. षषा खूणा फाडिया।

स. साग्से दन्ते।

ह. हावलो हींडोलणो।

ल लेरे लाची दो पणियार।

क्ष. माथे मोटो घडो चढांव।

त्र खडिया खातर मोरचोर, पाले बंध्या दो चोर।

ज्ञ.

मंगल मेशरो, दे विद्या परमेशरी।

परमेशररी रे पायलागू, हाथजोड विद्या मांगू।

विद्या रे घरघावडी, शेंश विद्या आवडी।

आंवडी में दीवो, म्हारा गुरुजी बावजी घणा वरस जीवो।

क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ

ट ठ ड ठ ण, त थ द ध न

प फ ब भ म, य र ल व

श ष स ह ल क्ष त्र ज्ञ

ओलखवारा अखरा

अ क च ट त प य श

ख छ ह ठ फ र ष

ग ज ड द ब ज्ञ ल स

घ झ ढ ध भ व ह ल

ड क्ष ञ ण न म त्र।

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020

बचपन मे स्कूल के दिन


।। राम राम सा ।।
काचर बोर मतीरा गौरी निपजे मरूधर देश
मोह माया री फेरी, पिव जा बसिया परदेश!!

थैला भर भर लावता,लूण मिर्च लगाव ने खावता
मोरा री पांखिया चूगता,बैगा उठे ने खेतां नावता!! 

पगडंडी सू स्कूल जाता,मूंग री फळिया घणी खाता
छोटिया ने कांधे बिठाता, जद ग्वार रा खेत आता!! 

मारसाब थैला खंगालता,बोरा रा जद ढक लागता! 
आदो हिस्सो ले जावता,आफिस जा वे भी खावता

खाटि छा री बोतल लाता,वे छोरा डंडा कम खाता
बात आ में भी जाणता,मोटी काकड़ी गुरु रे लाता!

रही कोनी वे आज बातां,शैला गुरू ने है धमकाता
जो भी काचर है खाता,स्टेंडर्ड उसका गिर जाता!

सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

सरपंच चुनाव सिनली

।। राम राम सा ।।

आगे-आगे लक्ष्मी चलत है,पीछे अन्नू  बाई।
बीच बिचाळै धमलीबाईं ईणमे फर्क ना कांई।।

हरजी बिना  सूनी ये सीणली ,लक्ष्मी बिना सरपंचाई।
घरनारी बिना सूनी रै रसोई, श्रवण बिना चतुराई।।

सावण बरस भादवो बरसै,पवन चले पुरवाई।
सिणली गाँव सरपंचो मे ,जीत रही लक्ष्मी बाई।।

रविवार, 27 सितंबर 2020

जान्को राखे साईयाँ मार सके ना कोय ।

।। राम राम सा ।।

जाको राखे साइयां, मार सके न कोय’।

मित्रों इसका अर्थ ये की जिसके साथ ईश्वर होता है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। संपूर्ण सृष्टि ईश्वर निर्मित है। उन्होंने ही संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण किया है । विभिन्न ग्रह, पृथ्वी, समुद्र, पर्वत, नदियाँ, विभिन्न प्राणी, मनुष्य आदि सभी उन्हीं की रचना है। जड़ – चेतन सभी उन्हीं की इच्छा का परिणाम हैं। अत: उनकी इच्छा के बगैर कोई भी हमारा बाल बांका नहीं कर सकता।
भारतीय पुराणों, इतिहासों आदि में इस सूत्र को कथा के साथ समझाया गया हैं कि ईश्वर किसी भी रूप में आकर साकार हो जाते हैं और संकट से बचाते हैं।
भगवान जिसकी रक्षा करते हैं उसका कुछ भी नहीं बिगड़ सकता।
हालांकि ईश्वर की कृपा किस रूप में और किसके माध्यम से हो जाए कोई नहीं जानता लेकिन ज्यादातर चमत्कार होने पर भगवान की कृपा समझते है और उसे धन्यवाद देते हैं।
सारांश यह है कि जब तक ईश्वर की मर्जी ना हो, तब तक यहां का एक पत्ता भी नहीं हिलता है। जिस मनुष्य का जीवित रहना निश्चित है, वह मौत को भी ईश्वर कृपा से मात दे देता हैं। परन्तु ईश कृपा का भागी वही मनुष्य बनता है, जिसनें कुछ अच्छा किया हो, जो अपने गुणों और प्रतिभा से के सहारे से समाज की तन, मन, धन से सेवा करता है और सांसारिक लोगों से अधिक उस सर्वशक्तिमान भगवान पर विश्वास रखता है।
संक्षेप में ईश्वर पर आस्था रखते हुए धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करने वालों की भगवान हमेशा रक्षा करते है। अत: अच्छे और धर्म कर्म करने के लिए सदैव तत्पर रहे। सर्वव्यापक परमात्मा सदा आपकी रक्षा करेंगे

बुधवार, 16 सितंबर 2020

देशी चेक पोस्ट (सिनली)

 देशी चैक पोस्ट 

ये हमारे गाँव सिनली से धवा गाँव की सरहद और एक सिनली से चाली गांव के रास्ते पर व एक सुरानाडा से शुभदन्ड जाने वाले रास्ते पर लगाया गया है। यहाँ से आने जाने वालो के लिये कोई चार्ज नहीं है । ये दिन मे खुला रहता है ।शाम को आठ बजे से सुबह 6 बजे तक बन्द रहता है । इस चेक पोस्ट को आवारा पशुओं को रोकने के लिए बनाते है । क्योकि आवारा पशु फसल को बर्बाद न करे ।
इनका खोलने व बन्द करने का नियमित समय होता है जिसमे पास के खेत वाले निगरानी रखते हैं वैसे तो इस देशी चेक पोस्ट की के पीछे सभी खेत वालो की जिम्मेदारी होती हैं ।
अगर रात को कोई देर से आए तो खुद गाड़ी से उतर कर चेक पोस्ट को खोले ओर गाड़ी अंदर लेते ही फिर से बन्द करे
ओर उधर चलने से पहले एक बार चेक करें और हॉर्न बजाए ताकि कहि आप ठीक से बंद नही कर पाए हैं तो नजदीकी घर वाले उसे ठीक से चेक कर पाए, अगर किसी गाड़ी वाले ने चेक पोस्ट बन्द नही किया तो सुबह जो भी भाई रात को आया गया था । सुबह उनकी खेर नही ।
इसलिए जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी यात्रा करनी पडती है । और अगर गलती से देर हो गई तो ।यह चेक पोस्ट खोलना और बन्द करना मुसकिल हो जाता है । इस चेक पोस्ट को देसी टेक्नीकल से बन्द करते है जिससे खोलने के लिए हम लोगो के लिए 1 घण्टे की गई.।और ठीक से बंद न हुआ तो सुबह अपनी खेर नही।
इसलिए सबसे ज्यादा डर लगता हैं !
विशेष सूचना-
इधर से कोई भी गुजरे आते और जाते दोनो वक्त खुद ही गेट खोलनी पड़ती हैं और खुद ही बन्द करनी होती हैं !

शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

बाड़ खेत ने खाय

 मधुमाखी रो सेत, रीछङा आज भखे ।

बाङ खेत ने खाय, जिको कुण रोक सके ।
रेवङ रा रुखाळ, भेङिया आज बणे ।
ओडी गाडर खाल,  अहिंसा सबद भणे ।
साथी रंगीया स्याळ, कपट रा हेत किया ।
अवसर रे उनमान, खोळिया बदळ दिया ।
ले लिनो बैराग, जके ईमान रखे.... ।
बाङ खेत ने खाय, जिको कुण रोक सके ।।

अफसरिया हैं आज, ढोल ज्यूं अजगरिया ।
कागा मोती खाय, हंस रे काकरिया ।
खून परायो चूस, जिकै मुख रातो हैं ।
ज्यूं खटमल बुग, जवा चिचङा साथी हैं
फळीयो तरवर अमर बेल, ज्यूं छायं ढके ।
बाङ खेत ने खाय, जिको कुण रोक सके ।।

हाथी आंकस हीण, बाग रो नास करे ।
ऊंट नकेल तुङाय, ताकङा तेज भरे ।
सूर उजाङे साख, रोजङा फाल चरे ।
नाहर सूतो नींद, स्याळिया मौज करे ।
बिना तेज रो राज, कियां अब राम रखें... ।
बाङ खेत ने खाय, जिको कुण रोक सके ।।

दफ्तर राज कचेङी, चढता दीन करे ।
पंडो ने परसाद, चढे जद काम चले ।
तोल ताकङी, आज मिळे इंसाफ कठै ।
झट पलङो झूक जाय, नोट रो बाट जठै ।
काळा कोट दलाल, हाथ में न्याव बिकै... ।
बाङ खेत ने खाय, जिको कुण रोक सके ।।

नकटी व्हेगी नीत, न्याव खूद आंधो हैं ।
हर मांचे हर ठौङ फरज क्यूं मांदो हैं ।
नौकर रिश्वत खोर, नेताजी बहरा हैं ।
चिमचां रे घर चैन, आज दिन आंरा हैं ।
ईमानदार रे घरां, नहीं पकवान पकै... ।
बाङ खेत ने खाय, जिको कुण रोक सके ।।

राष्ट्र पुरख री पीर, समझ कुण पावे हैं ।
समग्र कान्ती रो सूत्र, हाथ नहीं आवे हैं ।
नीम हकीम बैठ, नब्ज टंटोळ रिया ।
सर्वोदय रा वैद, नहीं अब बोल रिया ।
गांधी सुरग उदास, काळजो हाय धुके ।
बाङ खेत ने खाय, जिको कुण रोक सके.... ।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

श्री राजाराम जी महाराज का नारी शक्ति के लिए भजन अमृतवाणी

 हाँ रे सुणजो बेनडिया,
अरे हाँ रे सुणजो बेनडीया,
सतगुरु जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


दोय घडी तडके जागो,
नित कर्म सु निपटों रे,
दोय घडी तडके जागो,
नित कर्म सु निपटों ए,
बहना नित कर्म सु निपटों रे,
चाकी पाछे राज ऊचारे,
चाकी पाछे राज ऊजारे,
राम रिजावो रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


प्रभाता री प्रभाती वा,
मीठी राग मन मोवे रे,
प्रभाता री प्रभाती वा,
मीठी राग मन मोवे,
ए बहना मीठी राग मन मोवे रे,
सुतोडो सावरियो सुनने,
सुतोडो सावरियो सुनने,
राजी होवे रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


 

एक गठ्ठी रो घालो टालो,
नित रो धान ओ न्यारो,
एक गठ्ठी रो घालो टालो,
नित रो धान ओ न्यारो,
ए बहना नित धान ओ न्यारो रे,
पंखेरू चुगावो जिनसु,
पंखेरू चुगावो जिनसु,
पुण्य घनेरो रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


एक बाटीयो कुत्ता तायी,
करे ने न्यारो राखो रे,
एक बाटीयो कुत्ता तायी,
करेने न्यारो राखो ए,
बहना करेने न्यारो राखो रे,
नितरो थे बहना नेम पकडलो,
नित रो थे बहना नेम पकडलो,
जिनसु तिरनो रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


भूखो तिरसो द्वारे आवे,
जिनने आदर देनो रे,
भूखो तिरसो द्वारे आवे,
जिनने आदर देनो ए,
बहना जिनने आदर देनो रे,
दया धर्म मन राख संता री,
दया धर्म मन राख संता री,
सेवा करजो रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


कानों खोडो लूलो लंगडो,
चाहे कोढियो आंधो रे,
कानो खोडो लूलो लंगडो,
चाहे कोढियो आंधो,
ए बहना चाहे कोढियो आंधो रे,
ऐसो ही मिल जावे पति तो,
ऐसो ही मिल द जावे पति तो,
सेवा करनी रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


घर का धणी रो कयो नी माने,
बाल विधवा होवे रे,
घर का धणी रो कयो नी माने,
बाल विधवा होवे,
ए बहना बाल विधवा होवे रे,
भ्रूणहत्या करे घनेरी,
भ्रूणहत्या करे घनेरी,
हे कालो मूंडो रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


अपने पति ने जो दुख देवे,
होवे गडूरी कुतीया रे,
अपने पति ने जो दुख देवे,
होवे गडूरी कुतीया,
ए बहना होवे गडूरी कुतीया रे,
भौ भौ करती फिरे भटकती,
भौ भौ करती फिरे भटकती,
भूखा मरती रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


करे लडाई पति सु वेतो,
होवे गधेडी बांदरीया,
करे लडाई अपने पति सु,
होवे गधेडी बांदरीया,
बहना होवे गधेडी बांदरीया,
गले में पासा गाल बाजीगर,
गले में पासा गाल बाजीगर,
भीख मंगावे रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


स्त्रियाँ रो धर्म श्रेष्ठ है,
पति री सेवा करनी रे,
स्त्रियाँ रो धर्म श्रेष्ठ है,
पति री सेवा करनी ए,
बहना पति री सेवा करनी रे,
पति व्रता ने स्वर्ग मिले वे,
पति व्रता ने स्वर्ग मिले वे,
मुक्ति पावे रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


गंगा गीता ओर गायत्री,
तीर्थ इनसु नीचा रे,
गंगा गीता ओर गायत्री,
तीर्थ इनसु नीचा ए,
बहना तीर्थ इनसु नीचा रे,
पति री सेवा सबसु ऊंची,
पति री सेवा सबसु ऊंची,
वेद बतावे रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


पति व्रता जो हुई स्त्रियाँ,
अमर नाम कहावे रे,
पति व्रता जो हुई स्त्रियाँ,
अमर नाम कहावो ए,
बहना अमर नाम कहावो रे,
ज्यारी पूजा करे जगत सब,
ज्यारी पूजा करे जगत सब,
सतीया बाजे रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


पराया मर्द ने यु देखो थे,
जाण सगोडो भाई रे,
पराया पुरूष ने यु देखो थे,
जाण सगोडो भाई ए,
बहना जाण सगोडो भाई रे,
पर पुरूषों सु प्रीत लगावे,
पराया मर्द सु प्रीत लगावे,
नरका मे जावे रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


ग्यारस अमावस्या ओर पूनम,
नेम धर्म रा दिन कहिजे रे,
ग्यारस अमावस्या ओर पूनम,
नेम धर्म रा दिन कहिजे,
ए बहना नेम धर्म रा दिन कहिजे,
समझदार स्त्रियाँ एतो,
समझदार स्त्रियाँ एतो,
तीनो ही टाले रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


पैसो पास होवे तो बहना,
तीर्थ करवा जाईजो रे,
पैसो पास होवे तो बहना,
तीर्थ करवा जाईजो,
ए बहना तीर्थ करवा जाईजो रे,
तीर्थ किदा सु पाप कटे है,
तीर्थ किदा सु पाप कटे है,
वेद बतावे रे,
सुणजो बेनडीया,
राजाराम जी थाने ज्ञान बतावे रे,
सुणजो बेनडीया।।


राजाराम जी केवे बहना,
झूठ कभी मत बोलो रे,
राजाराम जी केवे बहना,
झूठ कभी मत बोलो,
ए बहना झूठ कभी मत बोलो रे,
धन्य धान थारे पुत्र घनेरा,
धन्य धान थारे पुत्र घनेरा,
धर्म निभावो रे,
सुणजो बेनडीया,

श्री राजाराम जी महाराज की भविश्यवाणी भजन के रुप मे प्रस्तुत

सुणजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला,
राजाराम कहे मेरे भाया,
धर्म कर्म हट जावेला,
राजाराम कहे मेरे भाया,
धर्म कर्म हट जावेला।।


एक सेर रो धान बिकेला,
पानी टोंक तुलावेला,
एक सेर रो धान बिकेला,
पानी टोंक तुलावेला,
भूमि बीज उपदेसी ज्यादा,
इन्द्र न बरसावेला,
भूमि बीज उपदेसी ज्यादा,
इन्द्र न बरसावेला,
मानको बढ़ जासी ज्यादा,
धान हाथ नही आवेला,
मानको बढ़ जासी ज्यादा,
धान हाथ नही आवेला,
एक रोटी रे कारण लडकर,
अपनो प्राण गमावेला,
एक रोटी रे कारण लडकर,
अपनो प्राण गमावेला,
सुणजो रे संसारी भाया,
ऐडो जमानो आवेला।।


धर्म पुण्य मे ध्यान न धरसी,
पाप घणो बढ़ जावेला,
धर्म पुण्य मे ध्यान न धरसी,
पाप घणो बढ़ जावेला,
देवा ने पूजे नही पापी,
गोविन्द ने नहीं गावेला,
देवा ने पूजे नही पापी,
गोविन्द ने नहीं गावेला,
गंगा गया पाप घणो लागे,
पापीडा यु केवेला,
गंगा गया पाप घणो लागे,
पापीडा यु केवेला,
दया किया सु दर्द ऊपजे,
दान किया दुख पावेला,
दया किया सु दर्द ऊपजे,
दान किया दुख पावेला,
सुनजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


 

पंडित ने पूछे नही कोई,
गुरखा वेद सुनावेला,
पंडित ने पूछे नही कोई,
गुरखा वेद सुनावेला,
चेलकीया गादी पर बैठा,
गुरू ने ज्ञान सुनावेला,
चेलकीया गादी पर बैठा,
गुरू ने ज्ञान सुनावेला,
राजा ए राज तज देसी,
जागीरी सब जावेला,
राजा ए राज तज देसी,
जागीरी सब जावेला,
पूंजीपति ए एक पलक मे,
निर्धनीया हो जावेला,
पूंजीपति ए एक पलक मे,
निर्धनीया हो जावेला,
सुनजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


छत्रपति ए खेती करसी,
करसा आसन लेवेला,
छत्रपति ए खेती करसी,
करसा आसन लेवेला,
ठाकर कंवर भोमिया भाई,
बडिया बन कर जावेला,
ठाकर कंवर भोमिया भाई,
बडिया बन कर जावेला,
प्रेम भाव आपस में प्यारे,
एक नही ए रेवेला,
प्रेम भाव आपस में प्यारे,
एक नही ए रेवेला,
आ है थारी आ है म्हारी,
यु करता मर जावेला,
आ है थारी आ है म्हारी,
यु करता मर जावेला,
सुनजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


भाई ने भाई नहीं जाणे,
दुश्मन ज्यु ए देखेला,
भाई ने भाई नही जाणे,
दुश्मन ज्यु ए देखेला,
सासरिया रा कोड घनेरा,
करता ही नही थाकेला,
सासरिया रा कोड घनेरा,
करता ही नहीं थाकेला,
सासरिया ने सीरो लापसी,
पुरडी खीर रंदावेला,
सासरिया ने सीरो लापसी,
पुरडी खीर रंदावेला,
काका भाबा मात पिता ने,
जूता सु जीमावेला,
काका भाबा मात पिता ने,
जूता सु जीमावेला,
सुनजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


बेटो बाप रो कयो नी माने,
अकड़ तनो अकडावेला,
बेटो बाप रो कयो नी माने,
अकड़ तनो अकडावेला,
बूढिया मे अकल नही है,
पागल ज्यु बतलावेला,
बूढिया मे अकल नही है,
पागल ज्यु बतलावेला,
नेम धर्म कर्म तज देसी,
सब दिन टका कमावेला,
नेम धर्म कर्म तज देसी,
सब दिन पैसा कमावेला,
ईश्वर ने ईश्वर नही जाणे,
आप ब्रह्म बन जावेला,
ईश्वर ने ईश्वर नही जाणे,
आप ब्रह्म बन जावेला,
सुनजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


टाबरिया रोटी रे कारण,
सब दिन शोर मचावेला,
टाबरिया रोटी रे कारण,
सब दिन शोर मचावेला,
भूखा मरता फिरे भटकता,
धान हाथ नही आवेला,
भूखा मरता फिरे भटकता,
धान हाथ नही आवेला,
महामारी ओर हेजो बढ़सी,
हाहाकार मचावेला,
महामारी ओर हेजो बढ़सी,
हाहाकार मचावेला,
काली माता चक्र चलावे,
भेरू डमरू बजावेला,
काली माता चक्र चलावे,
भेरू डमरू बजावेला,
सुनजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


समंदा पार विदेशी एतो,
आपस में लड जावेला,
समंदा पार विदेशी एतो,
आपस में लड जावेला,
धुआधार ओर घोर मचेला,
लाखा ही मर जावेला,
धुआधार ओर घोर मचेला,
लाखा ही मर जावेला,
स्त्रियाँ घेणो तज देसी,
दो दो चूडी पेरेला,
स्त्रियाँ घेणो तज देसी,
दो दो चूडी पेरेला,
सुहाग भाग सब छोड़ ए बहना,
केसा ने सुलझावेला,
सुहाग भाग सब छोड़ ए बहना,
केस ने सुलझावेला,
सुनजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


रसोई सासु बन लासी,
नन्दल थाल परोसेला,
रसोई सासु बन लासी,
नन्दल थाल जीमावेला,
ढोलीये बैठोडी बनडी,
आँखीया सु डरावेला,
ढोलीये बैठोडी बनडी,
आँखीया सु डरावेला,
जेठजी बलीतो लासी,
देवर पानी लावेला,
जेठजी बलीतो लासी,
देवर पानी लावेला,
सुसरोजी ए कपडा सुखासी,
बनडो पाँव दबावेला,
सुसरोजी ए कपडा सुखासी,
बनडो पाँव दबावेला,
सुनजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


जात पात री रित न रेसी,
सब एक बन जावेला,
जात पात री रीत न रेसी,
सब एक बन जावेला,
छोटा मोटा साथ जीमेला,
ऊंच नीच नही जाणेला,
छोटा मोटा साथ जीमेला,
ऊंच नीच नही जाणेला,
राजाराम जी कहे मेरे बंधू,
धर्म कर्म हट जावेला,
राजाराम जी कहे मेरे भाया,
धर्म कर्म हट जावेला,
कुदरत एसी आय बनेला,
सब एक हो जावेला,
कुदरत एसी आय बनेला,
सब एक हो जावेला,
सुणजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला।।


सुणजो रे संसारी लोगा,
ऐडो जमानो आवेला,
राजाराम कहे मेरे भाया,
धर्म कर्म हट जावेला,

गुरुवार, 28 मई 2020

रुपाराम जी तरक किलवा

राव #श्री #रुपारामजी #तरक के इतिहास की एक झलक
🙏🙏🙏🇮🇳🇮🇳🇮🇳🙏🙏🙏
राजस्थान राज्य के जालौर जिले के सांचौर तहसील से पश्चिम दिशा में 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित किलवा गांव में उस समय के आंजना समाज के एक समाजसेवी एवं किसान श्री सोमदेवजी तरक के घर सन् 1350 (संवत् 1406) में एक पुत्र का जन्म हुआ और पिताश्री सोमदेवजी ने अपने पुत्र का नाम रुपाराम रखा।
रुपाराम बचपन से ही ज़िद्द के पक्के थे और मात्र 8 वर्ष की उम्र में ही समाजसेवा करने की ज़िद्द ठान ली थी।
तभी रूपाजी तरक के माता-पिता का स्वर्गवास हो गया और उनके भाइयों ने रुपाराम को पालने से मना कर दिया तो रूपाजी के पिताश्री सोमदेवजी के धर्मभाई (एक व्यापारी/बालदी) अपने साथ रूपारामजी को लेकर गए और बड़ा किया और लगभग 15 साल की उम्र में रूपारामजी वापस किलवा आ गए।
रूपारामजी के पिताजी गांव-चौधरी थे तो उन्होंने रुपारामजी के लिए बहुत सारा धन जमीन में गाड़ रखा था। तो फिर रूपारामजी ने किलवा आकर उस धन का पता लगाया.... और कुछ धन लेकर किलवा के ठाकर के पास के पास पहुंचे और अपने खानदान के बारे में बताया तभी ठाकर ने उसके परिवार के भाइयों को बुलाया तो भाइयों ने मना कर दिया कि हम अपना खेत वापस नहीं देंगे और यदि तुम मोहरों से भरा एक सरू हमें देंगे तो जरूर आपको आपकी जमीन लौटा दी जाएगी। तभी रूपाजी तरक ने एक सरू धन भाइयों को दिया।
उस समय के ठाकर के पिताजी का स्वर्गवास हो गया था लेकिन माताजी जीवित थे एवं पहले माताजी ने सोमदेवजी को धर्मभाई कर रखा था क्योंकि ठाकर के माताजी के एक भी सगा भाई नहीं था। तो उस समय उन्होंने अपने घर से मोटी मोहरों से भरी हुई हथेली को अपने भतीजे रूपारामजी को देकर कहा कि ले भतीजे......अपनी समाज को उजली करना अर्थात् समाज के भविष्य को उज्जवल करना। 
उस समय जोधपुर दरबार में राठौड़ वंश का शासन था। उस समय रूपारामजी तरक रवाना(Tax) भरने के लिए धन लेकर लेकर जोधपुर दरबार में पहुंचे... रवाना जमा करवाया और किलवा में एक बड़ा सामूहिक विवाह प्रसंग आयोजित करवाने की चर्चा की और टक्का प्रथा जैसी कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को ख़त्म करने के लिए सहयोग मांगा....राजा ने रूपारामजी को खुश होकर सहयोग देने का आश्वासन दिया और बदले में रुपारामजी ने राजा को आर्थिक एवं सैन्य सहयोग देने का वादा किया। और उसी समय रूपारामजी तरक ने धन देकर सत्यपुर नगर के राजकुमार राव श्री वरजांगजी के विवाह करवाने में आर्थिक मदद की थी। और सैन्य सहयोग भी दिया था, तभी कुछ समय बाद राव वरजांगजी के द्वारा सामूहिक विवाह प्रसंग आयोजन की शुरुआत करवाने के लिए रूपारामजी तरक को अढळक सोने की मोहरे दान में दी और बाद में श्री रुपाराम जी तरक ने इस धन से स्तम्भों से तोरण बांधा गया था जिसका प्रमाण यह शिलालेख दे रहा हैं... इस स्तंभ पर रूपाजी तरक, राव वरजांगजी और कई लोगों के नाम अंकित है एवं इसकी जानकारी एक गीत में मिल रही हैं जो आप सभी के समक्ष पेश कर रहा हूँ ।
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चढ़यो वरजांग परणवा सारू ,
घण थट जांन कियो घमसाण ।।
संवत चौदे सो वरस इकताळे ,
जादव घर जुड़या जैसाण ।।1।।
राण अमरांण उदयपुर राणो , 
भिड़या भूप तीनों कुळभांण ।।
चड़ हठ करण ज्यूँ छोळां दे ,
चित्त ऊजळ जितयो चहुआंण ।।2।।
आँजणा मदद करि हद ऊपर ,
साढ़ा तीन करोड़ खुरसाण ।।
मशरिक मोद हुओ मन मोटो ,
सोवन चिड़ी कियो चहुआंण ।।3।।
किलवे जाग जद रूपसी कीनो , 
आयो सोनगरो धणी अवसाणं ।।
मांगो आज मुख हुतां थे म्हांसूं ,
भाखे मशरिक राव कुळभांण ।।4।।
कुळ गुरू तणी मांगणी किन्ही ,
तांबा पत्र लिखियो कुळ तेण ।।
चहुआंण वंश ने आँजणा शामिल ,
दतक वर सुध नटे नह देंण ।।5।।
साख भड़ मोय आज सब शामिल ,
गौ ब्रह्म हत्या री ओ गाळ ।।
वेण लेखांण साख चंद्र सूरज ,
शुकवि बेहु कुळ झाली साळ ।।6।।
टंकन मीठा मीर डभाल।
इस गीत को पढ़ने या सुनने से हमें पता लगता है कि राव वरजांगजी , खिमरा सोढा और उदयपुर राणा साहब यानी तीन बारातें जैसलमेर आई थी जिसमें रूपाजी तरक के भूतेळा सहायक था और क्योंकि उस समय ज्यादातर गढ़ो में चौहान शासकों का शासन था तो जालौर शासक सोनगरा चौहान श्री वीरमदेवजी ने भी रुपारामजी... को हरसंभव सहयोग देने का वादा किया था।
श्री रूपारामजी तरक के निवेदन पर राव श्री वरजांगजी चितलवाना ने सात विशी यानी 140 कन्याओं का विवाह करवाया । उस समय तुरी जाति के लोगों ने सोने के एक टक्के को अदा करने की हठ पकड़ रखी थी। जिसके कारण 140 कन्याएं विवाह योग्य होने के बावजूद विवाह नहीं हो पा रहा था तब सामूहिक विवाह करवाया गया।
बाद में संवत् 1441 में एक बार और रूपाजी तरक के पिताश्री सोमदेव जी के स्वर्गवास के बाद यादगार के रूप में श्री रूपाराम तरक ने सभी हिंदू समाजों के साथ मिलकर किलवा में सामूहिक विवाह प्रसंग आयोजित करवाने का विचार किया क्योंकि उस समय हिंदू धर्म से संबंधित समाजों में घोर कुरीतियों और अंधविश्वास के कारण #समाज तत्कालीन समाज की मुख्यधारा से बहुत पिछड़ा हुआ था। और उसी समय आंजना समाज के साथ-साथ अन्य हिंदू समाजों (#अधिकतर समाजों) में भी लड़की के विवाह के लिए ट‌‌‌क्का प्रथा प्रचलित थी।
अगर कोई हिंदू परिवार अपनी लड़की का विवाह करवाता तो तुरा लोग एक टक्का लेते, नहीं तो विवाह नहीं होने देते। इस कारण हिंदू धर्म से संबंधित सभी समाजों में लड़कियों का विवाह टक्का नहीं देने पर रुक जाता था।
इसलिए श्री रूपाराम तरक ने इन कुरीतियों को मिटाने के लिए मारवाड़ एवं गुजरात के सभी हिंदू समाजों के प्रमुख विचार-विमर्शकारों के साथ बैठकर निर्णय लेने का फैसला किया। और बैठकें हुई और 6 महीने जगन (प्रसाद) चलाया था, तो सभी समाजों ने सर्वसम्मति से श्री रूपारामजी तरक को इन कुरीतियों को समाप्त करने के लिए नेतृत्वकर्ता बनाने की इच्छा जाहिर की थी तब श्री रूपारामजी तरक ने भी सभी समाजों का सम्मान रखते हुए नेतृत्व करने का निवेदन स्वीकार किया था। और पश्चिमी राजस्थान #मारवाड़ एवं गुजरात के सभी हिंदू समाजों निमंत्रण भेजा कि सभी समाज के लोग आकर इस सामूहिक विवाह कार्यक्रम में अपनी बेटी का विवाह करवा सकता है। तब उस समय गुजरात एवं मारवाड़ क्षेत्र में जगह-जगह श्री रुपारामजी तरक की चर्चा होने लगी कि ऐसा नेतृत्वकर्ता कौन है.? एवं इनकी वजह क्या है.? किस माँ ने ऐसे वीर पुरुष को जन्म दिया.?
हर किसी व्यक्ति की जुबान पर यानी 36 कौम की जुबान पर श्री रूपाराम तरक का नाम था। तुरा समुदाय में भी श्री रुपाराम तरक को लेकर चर्चा होने लगी कि ऐसा व्यक्ति कौन है.? जो हमें बच्चे से लेकर बुड्ढे तक सभी को सोने की मोहर/टक्का देंगे।... क्योंकि सर्व हिंदू समाज की कन्याओं के सामूहिक विवाह प्रसंग का आयोजन करवाया जा रहा था।... 
लेकिन सामूहिक विवाह वाली रात से पहले तुरियों के आराम करने के लिए एक विशाल बाड़ा बनाकर लकड़ी की मजबूत दीवार बनाई गई और उस बाड़े में बारूद बिछाया गया..... और यह सब कार्य योजनाबद्ध तरीके से किया गया ताकि किसी तुरी को पता ना चल सके।... सब तुरी इकट्ठा हुए और दोहपर का भोजन करके श्री रूपारामजी से बोले कि अब हमें मोहर दे दो.... तो रूपारामजी ने कहा कि आपने अभी खाना खाया है तो बाड़े में जाकर थोड़ी देर आराम कर लो.... फिर आप सभी को मोहर देने का कार्यक्रम रखते हैं।.... तब सभी तुरी बाड़े में जाकर सो गए लेकिन उनको बारूद होने की कोई भनक तक नहीं लगी... इसीलिए जब वह गहरी नींद में सो रहे थे तभी उस बाड़े में बिछाए गए बारूद में विस्फोट हुआ और लगभग सभी तुरी लोग इसमें जल गए और मर गए।
लेकिन एक मरते हुए तूरी ने श्री रुपाराम को एक श्राप दिया था कि आपने कितना भी महान् काम किया हो लेकिन आपके इस ऐतिहासिक कार्य को आगे जाकर लोग भूल जाएंगे और आपके इस ऐतिहासिक कार्य को महत्व नहीं मिलेगा।..... 
और उसी दिन.... रात को श्री रूपाराम तरक ने अपने खर्चे पर सन् 1385 (संवत् 1441 ) में लगभग 1600 कन्याओं का सामूहिक विवाह प्रसंग आयोजित करवाया।
और श्री रूपाराम ने अपने पिताश्री सोमदेवजी इच्छा पूरी की।
किलवा गांव में 1600 कन्याओं के विवाह के उपलक्ष में तोरण द्वार पर अंकित लिपि आज भी विद्यमान है लेकिन लिपि की भाषा प्राचीन होने के कारण आज तक इस लिपि को कोई पढ़ नहीं पाया है लेकिन इस लिपि को लेकर कई बातें / दन्त कथाएं प्रचलित है।........
श्री रूपाराम तरक का इतिहास पूरे आंजणा/#कलबी समाज का इतिहास है। और सच कहूं तो पूरे हिंदू समाज का इतिहास है क्योंकि उस समय 1600 कन्याओं में 14 वर्णों की कन्याएं शामिल थी। इसमें से एक वर्ण कलबी समाज था। और भी कई वर्णें जैसे- सुथार, जाट, राजपूत (चौहानों को छोड़कर), रसपूत, ब्राह्मण, माली, नाई आदि समाज भी शामिल थे।... क्योंकि पूरे हिंदू धर्म की संस्कृति को बदनाम करने के लिए तुरा समुदाय ने आतंक फैला रखा था।. और टक्का प्रथा जैसी कुरीतियां प्रचलित थी... जिसे समाप्त करने के लिए श्री रूपाराम तरक ने सभी समाजों को निमंत्रण भेज कर सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शामिल होने का न्यौता दिया और कहा कि हिंदू धर्म से संबंधित किसी भी समाज/वर्ण का व्यक्ति आकर अपनी कन्या का विवाह करवा सकता है... यह खबर पूरे पश्चिमी राजस्थान एवं गुजरात में सभी जगह फैल गई और 14 वर्णों /#समाजों की 1600 कन्याओं का सामूहिक विवाह कार्यक्रम आयोजन किया गया और हिंदू धर्म से संबंधित सभी समाजों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया था। । उस दिन के बाद से तुरियों का परित्याग करके रावों को कलबियों के बहिवाचन का काम सौंपा गया था।
ऐसे ऐतिहासिक कार्यों की पहचान आंजणा/कलबी समाज के पुरखों की राव द्वारा नामों की पोथी (राव नामो वाचे ) पढ़ते समय सबसे पहले #रूपाजी_तरक नाम का वाचन करते हैं.... इससे मालूम पड़ता है कि राव समाज के लिए भी रूपाजी तरक का एक ऐतिहासिक महत्व रहा है क्योंकि सामूहिक विवाह प्रसंग के समय आंजणा/कलबी समाज के वंशजों की जानकारी रखने, नया नाम जोड़ने और वंशावली वाचनें का काम राव समाज को सौंप दिया। 

रूपाजी तरक के समय सबसे पहले यह काम रावजी श्री गलारामजी राव को सौंपा गया था। इसीलिए श्री रुपारामजी तरक से लेकर आज तक आंजणा/ कलबी समाज की वंशावली रखने का काम राव समाज करता आ रहा है।
अतः कह सकता हूं की श्री रूपारामजी तरक ने हिंदू समाज में उस समय के मारवाड़ की रियासतों के सहयोग से अपनी ज्ञानरूपी गंगा को प्रवाहित कर हिंदू समाज की हजारों कन्याओं का विवाह रचाया था।

सोने रो टक्को देकर सारो यों सुख करयो,
ऐड़ा रूपाभाई तरक जीणै समाज रों नाम रोशन करयो।
हजारों कन्याओं रो भविष्य उज्जवल करयो,
अने पीढ़ी-पीढ़ी रो सुख करयो।

अतः स्पष्ट है कि 1600 कन्याओं के विवाह के दिन से ही हिंदू समाज में दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा को समाप्त करने का प्रयास किया और आंजणा/कलबी समाज के साथ साथ सर्व हिंदू समाजों के उज्जवल भविष्य की एक नई शुरुआत की और अंधविश्वासों से ऊपर उठकर जागृत करने की अलख जगाई।
इसीलिए वीर-योद्धा और दानी-पुरुष श्री रूपारामजी तरक की वीरता की कहानियां सुनकर दाता श्री राजारामजी महाराज भी किलवा की तपोभूमि पर एक बार पधार चुके हैं और किलवा पधारकर श्री राजारामजी महाराज ने शिलालेखों और इस तपोभूमि का भ्रमण किया था एवं समझने की कोशिश की थी, साथ ही श्री रूपारामजी तरक के इतिहास को लेकर प्रशंसा भी की थी और 7 दिन किलवा में रुके भी थे ताकि स्थानीय लोगों के बीच में रहकर उस इतिहास को समझ सके...क्योंकि यह (श्री रुपाराम तरक का समय) श्री राजारामजी महाराज के समय से भी लगभग 5०० साल पुराना इतिहास है।....
उस समय श्री राजारामजी महाराज ने किलवा के लोगों से प्रार्थना की थी कि आप रूपारामजी के इतिहास को सबके सामने लाए और ऐतिहासिक भूमि को धरोहर के रूप में संभालना शुरू कर दें। अर्थात् दाता श्री राजाराम जी महाराज ने भी किलवा गांव वालों को बोला था कि आप रुपाराम के इतिहास को संरक्षण देना....उसके बाद आज तक हमारे समाज में एकता नहीं दिखी। 
लेकिन बड़े दुख की बात है कि आज तक श्री रुपारामजी तरक के इतिहास के बारे में न तो किसी ने समझाने का प्रयास किया और ना ही उस इतिहास को संरक्षित किया।
बड़ी विडंबना के साथ कहना पड़ रहा है कि आज श्री रूपाराम तरक के इतिहास के स्रोतों को ढूंढने और जानने में बहुत मुश्किलें आ रही है। क्योंकि उस इतिहास के बारे में जानकारी के स्रोत आसानी से नहीं मिल रहे।...

यह बात भी विचार करने लायक है कि रूपारामजी को मिले उस श्राप की वजह से एकता में विघ्न पड़ रहा है.... सोचने वाली बात है.???
क्योंकि अगर हम सब समाज (36 कौम) के भाई-लोग आज भी सोचे तो एक बार में ही यह बात समझ में आ जाएगी है कि 600 वर्ष पुराने ऐतिहासिक कार्यों को आज तक किसी ने महत्व देने का प्रयास ही नहीं किया और एक इतिहास की तरह कभी नहीं देखा गया... न ही किसी ने रूचि ली कि उस इतिहास को लेकर कुछ यादगार स्मारक बनाई जाए...!!!!!
लेकिन अब भी वक्त है कि इस ऐतिहासिक कार्य को यादगार बना सकते हैं अगर हम सब समाज एक हो जाए।... वैसे भी आज के समय में जातिवाद के जहर ने 36 कौम की एकता को जरूर तोड़ा है लेकिन अगर हम ऊपर उठकर कुछ सोचेंगे तो रूपारामजी तरक के समय में जैसी एकता दिखीं थी, वैसा इतिहास वापस दोहरा सकते हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब 36 कौम में मजबूत एकता होगी।
फिर भी किसी सुनी हुई बात का बड़े बुजुर्गों से पूछ कर सटीक जानकारी आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं। 
यह बात रावों के बही-वाचन से और बड़े-बुजुर्गों से सुनकर आप सभी तक पहुंचाने का प्रयास किया है। 

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

अहमदाबाद गुरूपूर्णिमा 2009

।। राम राम सा ।।
मित्रो कुछ वर्षो पहले आशाराम जी बापू के छेलौ के साथ मै भी गुरू पूर्णिमा को अहमदाबाद गया था वहाँ की घटना हुई थी उसे देखकर बहुत दुख हुआ क्योकि बापूजी ने  ईसाई मिशनरियों  के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था धर्मांतरण का खुलकर विरोध करते थे उसके ठीक लगभाग  तीन वर्ष बाद एक षडयंत्र के तहत जोधपुर मे गिरप्तार कर जैल भेज दिया गया था । इसमे सच्चाई कितनी है ये तो मुझे पता नही है लेकीन मुझे तो षडयंत्र ही लग रहा है । क्योकि बापू ने धर्मांतरण करावाने के लिये सोनिया गाँधी को फटकार लगाई थी  
उस घटना का वर्णन है जो मैने मेरे बुक ंंमे लिखा था और लोकडाउन मे  बैठे बैठे आज शैयर कर रहा हुँ।  
मुंबई सूँ गाड़ी चढ्या पहुँचा अहमदाबाद ।
स्टेसन छौड़ बाहर आया बापू मुर्दाबाद ।।
बापू मुर्दाबाद अहमदाबादी सब बौले ।
मारे डण्डा उनको जो कोई हरिओम बोले ।।
जय श्री कृष्णा बोलता पूगा चेनजी रे घर ।
गुस्से मे अहमदाबादी लोग लागो मन मे डर ।।
सुबह हुई दर्शन को निकले आधे मार्ग आया।
लाठी पत्थर बरसण लागा बिना दरसण आया।।
अफरा तफरी मच गई फैन्कण लागा भाटा ।
आधा साधक आश्रम मे आधा पासा नाटा ।।
कई बसों रा शीशा टुट्ग्या कई बसो मे आग ।
चारो तरफ से पत्थर आया लगी भागम-भाग ।।
हरिःओम नी कैवण दियों बोलो जय श्री राम ।
तीन दिनौ तक छुपने रहया भजिया राजराम ।।
दरसण बापू रा हुआ नही म्हारेँ मे हो ग्यौ धौको।
दरसण तो म्हें जरुर करौला फैर आवैला मौकौ।।
महापुरुषो रा दुसमण घणा गवाह है इतिहास ।
जुठा आरौप लगाने वालो होगा तुम्हारा विनाश ।।

रविवार, 26 अप्रैल 2020

राजस्थानी भाषा दोहा

राजस्थानी कहावती दूहा

बा'रा कोसां बोली पळटै
बनफल पळटै पाका ।
सो कोसां तो साजन पळटै
लखण नीं पळटै लाखां ।।

बांण्या थारी बाण
कोई सक्यो नै जांण ।
पाणी पीवै छाण
अणछाण्यो लोही पीवै ।।

पंचकोसी प्यादो रैवै
दस कोसी असवार ।
कै तो नार कुभारजा
कै रांडोलो भरतार ।।

दूर जंवाई फूल बरोबर
गांव जंवाई आधो ।
घर जंवाई गधै बरोबर
चाये जियां लादो ।।

पुजारी री पागङी
ऊंटवाळ री जोय ।
मांदै री मोचङी
पङी पुराणी होय ।।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

मोहित मृग की कहानी

मुरु  एक मृग था। सोने के रंग में ढला उसका सुंदर सजीला बदन; माणिक, नीलम और पन्ने की कांति की चित्रांगता से शोभायमान था। मखमल से मुलायम उसके रेशमी बाल, आसमानी आँखें तथा तराशे स्फटिक-से उसके खुर और सींग सहज ही किसी का मन मोह लेने वाले थे। तभी तो जब भी वह वन में चौकडियाँ भरता तो उसे देखने वाला हर कोई आह भर उठता।

जाहिर है कि रुरु एक साधारण मृग नहीं था। उसकी अप्रतिम सुन्दरता उसकी विशेषता थी। लेकिन उससे भी बड़ी उसकी विशेषता यह थी कि वह विवेकशील था; और मनुष्य की तरह बात-चीत करने में भी समर्थ था। पूर्व जन्म के संस्कार से उसे ज्ञात था कि मनुष्य स्वभावत: एक लोभी प्राणी है और लोभ-वश वह मानवीय करुणा का भी प्रतिकार करता आया है। फिर भी सभी प्राणियों के लिए उसकी करुणा प्रबल थी और मनुष्य उसके करुणा-भाव के लिए कोई अपवाद नहीं था। यही करुणा रुरु की सबसे बड़ी विशिष्टता थी।

एक दिन रुरु जब वन में स्वच्छंद विहार कर रहा था तो उसे किसी मनुष्य की चीत्कार सुनायी दी। अनुसरण करता हुआ जब वह घटना-स्थल पर पहुँचा तो उसने वहाँ की पहाड़ी नदी की धारा में एक आदमी को बहता पाया। रुरु की करुणा सहज ही फूट पड़ी। वह तत्काल पानी में कूद पड़ा और डूबते व्यक्ति को अपने पैरों को पकड़ने कि सलाह दी। डूबता व्यक्ति अपनी घबराहट में रुरु के पैरों को न पकड़ उसके ऊपर की सवार हो गया। नाजुक रुरु उसे झटक कर अलग कर सकता था मगर उसने ऐसा नहीं किया। अपितु अनेक कठिनाइयों के बाद भी उस व्यक्ति को अपनी पीठ पर लाद बड़े संयम और मनोबल के साथ किनारे पर ला खड़ा किया।

सुरक्षित आदमी ने जब रुरु को धन्यवाद देना चाहा तो रुरु ने उससे कहा, “अगर तू सच में मुझे धन्यवाद देना चाहता है तो यह बात किसी को ही नहीं बताना कि तूने एक ऐसे मृग द्वारा पुनर्जीवन पाया है जो एक विशिष्ट स्वर्ण-मृग है; क्योंकि तुम्हारी दुनिया के लोग जब मेरे अस्तित्व को जानेंगे तो वे निस्सन्देह मेरा शिकार करना चाहेंगे।” इस प्रकार उस मनुष्य को विदा कर रुरु पुन: अपने निवास-स्थान को चला गया।

कालांतर में उस राज्य की रानी को एक स्वप्न आया। उसने स्वप्न में रुरु साक्षात् दर्शन कर लिए। रुरु की सुन्दरता पर मुग्ध; और हर सुन्दर वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा से रुरु को अपने पास रखने की उसकी लालसा प्रबल हुई। तत्काल उसने राजा से रुरु को ढूँढकर लाने का आग्रह किया। सत्ता में मद में चूर राजा उसकी याचना को ठुकरा नहीं सका। उसने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई-भी रानी द्वारा कल्पित मृग को ढूँढने में सहायक होगा उसे वह एक गाँव तथा दस सुन्दर युवतियाँ पुरस्कार में देगा।

राजा के ढिंढोरे की आवाज उस व्यक्ति ने भी सुनी जिसे रुरु ने बचाया था। उस व्यक्ति को रुरु का निवास स्थान मालूम था। बिना एक क्षण गँवाये वह दौड़ता हुआ राजा के दरबार में पहुँचा। फिर हाँफते हुए उसने रुरु का सारा भेद राजा के सामने उगल डाला।

राजा और उसके सिपाही उस व्यक्ति के साथ तत्काल उस वन में पहुँचे और रुरु के निवास-स्थल को चारों ओर से घेर लिया। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्होंने रुरु को रानी की बतायी छवि के बिल्कुल अनुरुप पाया। राजा ने तब धनुष साधा और रुरु उसके ठीक निशाने पर था। चारों तरफ से घिरे रुरु ने तब राजा से मनुष्य की भाषा में यह कहा “राजन् ! तुम मुझे मार डालो मगर उससे पहले यह बताओ कि तुम्हें मेरा ठिकाना कैसे मालूम हुआ ?”

उत्तर में राजा ने अपने तीर को घुमाते हुए उस व्यक्ति के सामने रोक दिया जिसकी जान रुरु ने बचायी थी। रुरु के मुख से तभी यह वाक्य हठात् फूट पड़ा

“निकाल लो लकड़ी के कुन्दे को पानी से
न निकालना कभी एक अकृतज्ञ इंसान को।”

राजा ने जब रुरु से उसके संवाद का आशय पूछा तो रुरु ने राजा को उस व्यक्ति के डूबने और बचाये जाने की पूरी कहानी कह सुनायी। रुरु की करुणा ने राजा की करुणा को भी जगा दिया था। उस व्यक्ति की कृतध्नता पर उसे रोष भी आया । राजा ने उसी तीर से जब उस व्यक्ति का संहार करना चाहा तो करुणावतार मृग ने उस व्यक्ति का वध न करने की प्रार्थना की ।

रुरु की विशिष्टताओं से प्रभावित राजा ने उसे अपने साथ अपने राज्य में आने का निमंत्रण दिया । रुरु ने राजा के अनुग्रह का नहीं ठुकराया और कुछ दिनों तक वह राजा के आतिथ्य को स्वीकार कर पुन: अपने निवास-स्थल को लौट गया।

रोहिड़ा राजस्थान का सागवान

राम राम सा
रोहिड़े के फुल को राजस्थान का राज्य पुष्प ऐसे ही नही कहते हैं।केसरिया रंग के फूलों से लदा ये रेगिस्तान पेड़ इन सरसों के पीले फूलों की महक में चार चांद लगा रहा है।सुबह सुबह हवा से पेड़ से नीचे गिरे हुये फूलो का बेसब्री से  इंतज़ार भेड़ बकरियां गाय भेंस के अलावा सभी जानवर करते है । जनवरी फरवरी और मार्च के महिने में राजस्थान  के भ्रमण पर जाए तो यहाँ के पीले खेतों में कुछ ऐसे ही नजारे हमे देखने को मिल जाते है ।

खाली दारु की बोतले बेचकर हेलीकाप्टर खरीद लिया


एक समय की बात है, करंटपुरा नामक कस्बे में दो दोस्त रहा करते थे। पहला जबर्दस्त पियक्कड़ और दूसरा भला इंसान। दूसरा हमेशा पहले को समझाता रहता था।

कुछ समय बाद दूसरा दोस्त कामकाज के सिलसिले में कस्बे से शहर जा पहुंचा। कुछ समय कमाई-धमाई की, फिर वापस गांव लौटा। अपनी नई साइकिल के पैडल मारते हुए सीधे अपने दोस्त के घर पहुँचा। पहला हमेशा की तरह धुत्त मिला।

दूसरे ने पूछा, "और क्या चल रहा है?"

पहला बोला, "कुछ नहीं बस, पी रहे हैं.. जी रहे हैं... तुम सुनाओ।"

दूसरा बोला, "बस, बढ़िया, शहर में कामकाज चल निकला है। साइकिल खरीद ली है, तुम साले सुधर जाओ।"

और पैडल मारते हुए वापस शहर की तरफ निकल लिया।

कुछ दिनों बाद फिर शहर से कस्बे में पहुंचा। इस बार स्कूटर पर था। सीधे दोस्त के घर का रास्ता लिया। वहां फिर वही क्या चल रहा है? वही पी रहे हैं, जी रहे हैं... सुधर जाओ टाइप बातें हुईं। फिर दूसरे ने स्कूटर को किक लगाई और फिर शहर की दिशा में वापस हो लिए।

इस बार दूसरा कुछ महीनों बाद कस्बे में पहुंचा। इस बार कार में था। सीधे दोस्त के घर का रास्ता लिया। पता चला कि वो घर पर नहीं हैं, खेत गया हुआ है। तो दूसरे ने कार सीधे खेत की दिशा मे दौड़ा दी। वहां पहुंचा तो देखता क्या है कि पहला खेत के बीचों-बीच खाट पर बैठ पी रहा है। पास में ही एक हेलिकॉप्टर खड़ा है। दूसरा सीधे अपने दोस्त के पास जा पहुँचा और वही पुरानी बातचीत शुरू हो गई, "और क्या चल रहा है?"

पहला बोला, "बस, कुछ नहीं यार, वही पी रहे हैं, जी रहे हैं... पीते-पीते बोतलें ज्यादा इकट्ठी हो गईं तो बेचकर हेलिकॉप्टर खरीद लिया और पार्किंग के लिए खेत भी खरीद लिया है, और तुम सुनाओ।"

दूसरा वहीं बेहोश हो गया।

राजस्थानी दोहा

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पूजो मिनखा प्रीत
आंख आपरी तेज है , देखै पड़दां पार ।
खुद रै भीतर मैलड़ो , क्यूं नीं दीठै यार ।।
काया थांरी फूटरी , कंचन वरणों भान ।
लछण थांरां कुळछणां , बण बैठ्या भगवान ।।
आग लगाओ जगत में , खुद रा सेको रोट ।
डूब मरो रे निसरमो , थांरै कोठै खोट ।।
खोट कमाओ धपटवां , थान जगाओ जोत ।
खूब पटाओ देवता , चौड़ै आग्या पोत ।।
गाभा पैरो ऊजळा , मनड़ां राखो मैल ।
मिनखपणों है भायला , थांरै आगै फैल ।।
बातज मानों सांचली , पूजो मिनखा प्रीत ।
मिनखपणैं नै पूजतां , जग जाओला जीत ।।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

धारावी एक स्लम बस्ती

राम राम सा
मुंबई के धारावी इलाके में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले रोजाना बढ़ रहे हैं। जो सभी लोगों के लिये  चिंता का विषय हैं।लाखौ लोगो की आबादी वाले धारावी मे ज्यादतर गरीब मजदूर  उतरप्रदेश बिहार बंगाल व देश के सभी राज्यो के भी लोग रहते है धारावी मे ज्यादातर दुकाने राजस्थानी प्रवासियो की है। जिन मे से कुछ दुकानदारों का रहवासी घर धारावी से बाहर है लेकिन ज्यादतर लोग धारावी मे ही रहते है । उनके लिये  कोरोना संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है । अचानक हुये लोकडाउन मे मजदूर यहाँ से बाहर नही जा सके। धारावी में ज्यादातर लोग छोटे-छोटे घरों में रहते हैं.। एक दौ रोड़ छोडक़र बाकी की गलियाँ ऐसी है कि अगर सामने से कोई आदमी आये तो बिना एक दुसरे के टक्कर लगे निकल ही नही सकते है । और चालौ मे दौ घरों के दरवाजो के बीस मे मात्र तीन फिट की ही दुरी रहती है।एक एक घर मे पांच  छह सदस्य रहते है ।ज्यादतर परिवार ऐसे भी है जिसमे दस बारह सदस्य भी है। कुछ लोगो का ये भी कहना है कि ये सब उपर वाले की कृपा है आठ-नौ बच्चे दिये है चार पाँच वापस ले लेगा तो कौनसा फर्क पड़ने वाला है।धारावी मे सामान्य दिनो मे भी इतनी भीड़ रहती है कि जैसे कहीँ मेला लगा हुआ है। छोटी जगह मे भिड़ ज्यादा है । ऐसे मे सौशल डिस्टेंसिंग किसी हालत मे सम्भव नही है। अब तक धारावी में लगभग दौ सौ आस-पास मामले दर्ज किए गए हैं. धारावी एशिया का सबसे बड़ा स्लम इलाका है.।धारावी में थर्मल स्क्रीनिंग टेस्टिंग व सेनेटाराईज भी धीमी गति से हो रहा है और कुछ लोग भी लॉकडाउन सख्ती से पालन नही कर रहे है ।धारावी जनसँख्या का एक बड़ा क्षेत्र  व पतली पतली गल्लियाँ होने के कारण पूरे क्षेत्र में लॉकडाउन सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी पर्याप्त संख्या नहीं हैं.।कुछ लोग दैनिक आवश्यकताओं रासन दूध, सब्जियां, फल आदि लेने के लिये घरों से बाहर निकलते है तो इसी का फायदा उठाकर कुछ उपद्रवि भी फालतु ने बाहर घुमने आ जाते है । धारावी मे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो ना के बराबर है इसी कारण ये जानलेवा बिमारी फेलने मे समय नही लगेगा। केन्द्र सरकार व राज्य सरकारो से मेरा अनुरोध है कि समय रहते इन सभी मजदूरो को जल्दी अपने अपने राज्यों में मे भेजने की तैयारी करें। अन्यथा आज की स्थिति को देखते हुये तो ऐसा लग रहा है कि कुछ ही दिनो मे शायद मुंबई के सारे हॉस्पीटल कम पड़ जायेंगे। 
सरकार का कहना है कि सब सुरक्षित व सही है लेकिन सात लाख लोगो मे हजार बारह सौ लोग सुरक्षित होने से धारावी सुरक्षित नहीं हो सकती है यहाँ पर कोई भी सौसल डिस्टेंसिंग की पालना नही हो रही है ।यहाँ पर लोगो को रासन की कमी भले हो जाये एक दौ दिन भूखा रहकर चला देंगे लेकिन सरकार की तरफ शराब गुटखा नॉनवेज आदि की कोई कमी नही है ।ये सब बेचने के लिये लोग गली गली घुम रहे है ।लेकिन  गरीब मजदूरो के लिये यहाँ पर कुछ संसथाए ही मदद कर रही है। सरकारी मदद सिर्फ स्थानिय निवासियों तक ही सीमित है । जो मतदाता है उसी को ही मदद मिलती है। एक महिना तो मजदूरों ने जैसे तैसे करते निकाल दिया है । लेकिन अब इन के पास कुछ नहीं बचा है। ऐसे मे कुछ लोग तो चिन्ता से मर जायेंगे । समय  रहते प्रसासन को जागना चाहिये। 

रविवार, 19 अप्रैल 2020

मोहित मृग की कहानी

मुरु  एक मृग था। सोने के रंग में ढला उसका सुंदर सजीला बदन; माणिक, नीलम और पन्ने की कांति की चित्रांगता से शोभायमान था। मखमल से मुलायम उसके रेशमी बाल, आसमानी आँखें तथा तराशे स्फटिक-से उसके खुर और सींग सहज ही किसी का मन मोह लेने वाले थे। तभी तो जब भी वह वन में चौकडियाँ भरता तो उसे देखने वाला हर कोई आह भर उठता।

जाहिर है कि रुरु एक साधारण मृग नहीं था। उसकी अप्रतिम सुन्दरता उसकी विशेषता थी। लेकिन उससे भी बड़ी उसकी विशेषता यह थी कि वह विवेकशील था; और मनुष्य की तरह बात-चीत करने में भी समर्थ था। पूर्व जन्म के संस्कार से उसे ज्ञात था कि मनुष्य स्वभावत: एक लोभी प्राणी है और लोभ-वश वह मानवीय करुणा का भी प्रतिकार करता आया है। फिर भी सभी प्राणियों के लिए उसकी करुणा प्रबल थी और मनुष्य उसके करुणा-भाव के लिए कोई अपवाद नहीं था। यही करुणा रुरु की सबसे बड़ी विशिष्टता थी।

एक दिन रुरु जब वन में स्वच्छंद विहार कर रहा था तो उसे किसी मनुष्य की चीत्कार सुनायी दी। अनुसरण करता हुआ जब वह घटना-स्थल पर पहुँचा तो उसने वहाँ की पहाड़ी नदी की धारा में एक आदमी को बहता पाया। रुरु की करुणा सहज ही फूट पड़ी। वह तत्काल पानी में कूद पड़ा और डूबते व्यक्ति को अपने पैरों को पकड़ने कि सलाह दी। डूबता व्यक्ति अपनी घबराहट में रुरु के पैरों को न पकड़ उसके ऊपर की सवार हो गया। नाजुक रुरु उसे झटक कर अलग कर सकता था मगर उसने ऐसा नहीं किया। अपितु अनेक कठिनाइयों के बाद भी उस व्यक्ति को अपनी पीठ पर लाद बड़े संयम और मनोबल के साथ किनारे पर ला खड़ा किया।

सुरक्षित आदमी ने जब रुरु को धन्यवाद देना चाहा तो रुरु ने उससे कहा, “अगर तू सच में मुझे धन्यवाद देना चाहता है तो यह बात किसी को ही नहीं बताना कि तूने एक ऐसे मृग द्वारा पुनर्जीवन पाया है जो एक विशिष्ट स्वर्ण-मृग है; क्योंकि तुम्हारी दुनिया के लोग जब मेरे अस्तित्व को जानेंगे तो वे निस्सन्देह मेरा शिकार करना चाहेंगे।” इस प्रकार उस मनुष्य को विदा कर रुरु पुन: अपने निवास-स्थान को चला गया।

कालांतर में उस राज्य की रानी को एक स्वप्न आया। उसने स्वप्न में रुरु साक्षात् दर्शन कर लिए। रुरु की सुन्दरता पर मुग्ध; और हर सुन्दर वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा से रुरु को अपने पास रखने की उसकी लालसा प्रबल हुई। तत्काल उसने राजा से रुरु को ढूँढकर लाने का आग्रह किया। सत्ता में मद में चूर राजा उसकी याचना को ठुकरा नहीं सका। उसने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई-भी रानी द्वारा कल्पित मृग को ढूँढने में सहायक होगा उसे वह एक गाँव तथा दस सुन्दर युवतियाँ पुरस्कार में देगा।

राजा के ढिंढोरे की आवाज उस व्यक्ति ने भी सुनी जिसे रुरु ने बचाया था। उस व्यक्ति को रुरु का निवास स्थान मालूम था। बिना एक क्षण गँवाये वह दौड़ता हुआ राजा के दरबार में पहुँचा। फिर हाँफते हुए उसने रुरु का सारा भेद राजा के सामने उगल डाला।

राजा और उसके सिपाही उस व्यक्ति के साथ तत्काल उस वन में पहुँचे और रुरु के निवास-स्थल को चारों ओर से घेर लिया। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्होंने रुरु को रानी की बतायी छवि के बिल्कुल अनुरुप पाया। राजा ने तब धनुष साधा और रुरु उसके ठीक निशाने पर था। चारों तरफ से घिरे रुरु ने तब राजा से मनुष्य की भाषा में यह कहा “राजन् ! तुम मुझे मार डालो मगर उससे पहले यह बताओ कि तुम्हें मेरा ठिकाना कैसे मालूम हुआ ?”

उत्तर में राजा ने अपने तीर को घुमाते हुए उस व्यक्ति के सामने रोक दिया जिसकी जान रुरु ने बचायी थी। रुरु के मुख से तभी यह वाक्य हठात् फूट पड़ा

“निकाल लो लकड़ी के कुन्दे को पानी से
न निकालना कभी एक अकृतज्ञ इंसान को।”

राजा ने जब रुरु से उसके संवाद का आशय पूछा तो रुरु ने राजा को उस व्यक्ति के डूबने और बचाये जाने की पूरी कहानी कह सुनायी। रुरु की करुणा ने राजा की करुणा को भी जगा दिया था। उस व्यक्ति की कृतध्नता पर उसे रोष भी आया । राजा ने उसी तीर से जब उस व्यक्ति का संहार करना चाहा तो करुणावतार मृग ने उस व्यक्ति का वध न करने की प्रार्थना की ।

रुरु की विशिष्टताओं से प्रभावित राजा ने उसे अपने साथ अपने राज्य में आने का निमंत्रण दिया । रुरु ने राजा के अनुग्रह का नहीं ठुकराया और कुछ दिनों तक वह राजा के आतिथ्य को स्वीकार कर पुन: अपने निवास-स्थल को लौट गया।

मानसरोवर मे दौ हंस

मानसरोवर में दो स्वर्ण हंस रहते थे । दोनों हंस बिल्कुल एक जैसे दिखते थे और दोनों का आकार भी अन्य हंसों की तुलना में थोड़ा बड़ा था। दोनों समान रुप से गुणवान और शीलवान भी थे। फर्क था तो बस इतना कि उनमें एक राजा था और दूसरा उसका वफादार सेनापति। वाराणसी नरेश ने जब उनके विषय में सुना तो उस के मन में उन हंसों को पाने की प्रबल इच्छा जागृत हुई । तत्काल उसने अपने राज्य में मानस-सदृश एक मनोरम-सरोवर का निर्माण करवाया, जिसमें हर प्रकार के आकर्षक जलीय पौधे और विभिन्न प्रकार के कमल जैसे पद्म, उत्पल, कुमुद, पुण्डरीक, सौगन्धिक, तमरस और कहलर विकसित करवाये । मत्स्य और जलीय पक्षियों की सुंदर प्रजातियाँ भी वहाँ बसायी गयीं । साथ ही राजा ने वहाँ बसने वाले सभी पक्षियों की पूर्ण सुरक्षा की भी घोषणा करवायी, जिससे दूर-दूर से आने वाले पंछी स्वच्छंद भाव से वहाँ विचरण करने लगे।

एक बार, वर्षा काल के बाद जब हेमन्त ॠतु प्रारम्भ हुआ और आसमान का रंग बिल्कुल नीला होने लगा तब मानस के दो हंस वाराणसी के ऊपर से उड़ते हुए जा रहे थे । तभी उनकी दृष्टि राजा द्वारा निर्मित सरोवर पर पड़ी । सरोवर की सुन्दरता और उसमें तैरते रमणीक पक्षियों की स्वच्छंदता उन्हें सहज ही आकर्षित कर गयी । तत्काल वे नीचे उतर आये और महीनों तक वहाँ की सुरक्षा, सुंदरता और स्वच्छंदता का आनंद लेते रहे। अन्ततोगत्वा वर्षा ॠतु के प्रारंभ होने से पूर्व वे फिर मानस को प्रस्थान कर गये। मानस पहुँच कर उन्होंने अपने साथियों के बीच वाराणसी के कृत्रिम सरोवर की इतनी प्रशंसा की कि सारे के सारे हंस वर्षा के बाद वाराणसी जाने को तत्पर हो उठे।

हंसों के राजा युधिष्ठिर और उसके सेनापति सुमुख ने अन्य हंसों की इस योजना को समुचित नहीं माना । युधिष्ठिर ने उनके प्रस्ताव का अनुमोदन न करते हुए, यह कहा कि,

पंछी और जानवरों की एक प्रवृत्ति होती है।
वे अपनी संवेदनाओं को अपनी चीखों से प्रकट करते हैं।
किन्तु जन्तु जो कहलाता है “मानव” बड़ी चतुराई से करता है,
अपनी भंगिमाओं को प्रस्तुत जो होता है उनके भावों के ठीक विपरीत।

फिर भी कुछ दिनों के बाद हंस-राज को हंसों की ज़िद के आगे झुकना पड़ा और वह वर्षा ॠतु के बाद मानस के समस्त हंसों के साथ वाराणसी को प्रस्थान कर गया। जब मानस के हंसों का आगमन वाराणसी के सरोवर में हुआ और राजा को इसकी सूचना मिली तो उसने अपने एक निषाद को उन दो विशिष्ट हंसों को पकड़ने के लिए नियुक्त किया।

एक दिन युधिष्ठिर जब सरोवर की तट पर स्वच्छंद भ्रमण कर रहा था तभी उसके पैर निषाद द्वारा बिछाये गये जाल पर पड़े। अपने पकड़े जाने की चिंता छोड़ उसने अपनी तीव्र चीखों से अपने साथी-हंसों को तत्काल वहाँ से प्रस्थान करने को कहा जिससे मानस के सारे हंस वहाँ से क्षण मात्र में अंतर्धान हो गये। रह गया तो केवल उसका एकमात्र वफादार हमशक्ल सेनापति-सुमुख। हंसराज ने अपने सेनापति को भी उड़ जाने की आज्ञा दी मगर वह दृढ़ता के साथ अपने राजा के पास ही जीना मरना उचित समझा। निषाद जब उन हंसों के करीब पहुँचा तो वह आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि पकड़ा तो उसने एक ही हंस था फिर भी दूसरा उसके सामने निर्भीक खड़ा था। निषाद ने जब दूसरे हंस से इसका कारण पूछा तो वह और भी चकित हो गया, क्योंकि दूसरे हंस ने उसे यह बताया कि उसके जीवन से बढ़कर उसकी वफादारी और स्वामि-भक्ति है। एक पक्षी के मुख से ऐसी बात सुनकर निषाद का हृदय परिवर्तन हो गया। वह एक मानव था; किन्तु मानव-धर्म के लिए वफादार नहीं था। उसने हिंसा का मार्ग अपनाया था और प्राणातिपात से अपना जीवन निर्वाह करता था। शीघ्र ही उस निषाद ने अपनी जागृत मानवता के प्रभाव में आकर दोनों ही हंसों को मुक्त कर दिया।

दोनों हंस कोई साधारण हंस तो थे नहीं। उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से यह जान लिया था कि वह निषाद निस्सन्देह राजा के कोप का भागी बनेगा। अगर निषाद ने उनकी जान बख़शी थी तो उन्हें भी निषाद की जान बचानी थी। अत: तत्काल वे निषाद के कंधे पर सवार हो गये और उसे राजा के पास चलने को कहा। निषाद के कंधों पर सवार जब वे दोनों हंस राज-दरबार पहुँचे तो समस्त दरबारीगण चकित हो गये। जिन हंसों को पकड़ने के लिए राजा ने इतना प्रयत्न किया था वे स्वयं ही उसके पास आ गये थे। विस्मित राजा ने जब उनकी कहानी सुनी तो उसने तत्काल ही निषाद को राज-दण्ड से मुक्त कर पुरस्कृत किया। उसने फिर उन ज्ञानी हंसों को आतिथ्य प्रदान किया तथा उनकी देशनाओं को राजदरबार में सादर सुनता रहा।

इस प्रकार कुछ दिनों तक राजा का आतिथ्य स्वीकार कर दोनों ही हंस पुन: मानस को वापिस लौट गये।