शनिवार, 2 अप्रैल 2016

"आपणी संस्कृति"

"आपणी संस्कृति" मारवाड़ी बोली ब्याँव में ढोली लुगायां रो घुंघट कुवे रो पणघट ढूँढता रह जावोला..... फोफळीया रो साग चूल्हे मायली आग गुवार री फळी मिसरी री डळी ढूँढता रह जावोला..... चाडीये मे बिलोवणो बाखळ में सोवणों गाय भेंस रो धीणो बूक सु पाणी पिणो ढूंढता रह जावोला..... खेजड़ी रा खोखा भींत्यां मे झरोखा ऊँचा ऊँचा धोरा घर घराणे रा छोरा ढूंढता रह जावोला..... बडेरा री हेली देसी गुड़ री भेली काकडिया मतीरा असली घी रा सीरा ढूंढता रह जावोला..... गाँव मे दाई बिरत रो नाई तलाब मे न्हावणो बैठ कर जिमावणों ढूँढता रह जावोला..... आँख्यां री शरम आपाणों धरम माँ जायो भाई पतिव्रता लुगाई ढूँढता रह जावोला..... टाबरां री सगाई गुवाड़ मे हथाई बेटे री बरात माहेश्वरियां री जात ढूँढता रह जावोला..... आपणो खुद को गाँव माइतां को नांव परिवार को साथ संस्कारां की बात ढूंढता रह जावोला..... सबक:- आपणी संस्कृति बचावो। 🐄🐃

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