।। राम राम सा ।।
मर्त्युभोज के बारे मे सभी के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं। आज इसे हम सामाजिक बुराई कह सकते है।पहले के जमाने के हिसाब से आजकल इसमे बहुत विकृतिया आ गयी है । आजकल के हालातों पर नजर डालें तो आज वाकई में यह बहुत खर्चीला बन चुका है। लोग होड़ाहोड मृत्यु भोज के नाम पर आज लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं । जिसका कोई मतलब नहीं है। पुराने जमाने की बात बिलकुल अलग थी मेरे देखने मे 40 वर्ष पहले व आज मे बहुत अन्तर हुआ है बुजुर्गो की माने तो पहले ये प्रथा एकदम अलग थी सिर्फ राजा-महाराजाओं और सक्षम लोगों के द्वारा ही खर्च किया जाता था। और अब हर आदमी स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगा है। मेरे पास भी धन है मै उनसे कम नही हुँ । यह दिखाने के लिए ही खर्च किया जाता है। भोजन के साथ नशीली वस्तुएँ व दिखावा बहुत हो गया है । पहले दिखावा नही था एक दुसरे के सहयोग से काम होता था मृत्यु के बाद आने वाले मेहमानों रिस्तेदारो दामाद, समधी, बेटी व अन्य आत्मीय जनों व समाज के लोगो को भोजन कराया जाता था। किसी रिस्तेदार के दुनिया से चले जाने के बाद भी उसके संबंधियों का घर से नाता बना रहे। परिवार व रिश्तेदार एकजुट रहें।रिश्तेदारों और समाज के लोगों को सामूहिक रूप से भोजन कराया जाता है। वो ही लोग खाना बनाते और वोही खाते थे । सादे भोजन के अलावा कुछ खर्च नही होता था ।लोगो के एक दुसरे से मिलने का एक यही एक मौका होता था । इसी को ही आजकल मृत्युभोज कहा जाने लगा है।आज यह इतना खर्चीला हो गया है कि कई दुखी परिवारों की कमर टूट जाती है वे कर्ज में डूब जाते हैं । समय के साथ इसमें जो आजकल जो विकृतियां आई हैं, बस इन्हें दूर करके इसे पहले जैसा पुन: स्थापित किया जा सकता है। लेकिन यह सम्भव नहीं है। आज कोई भी कार्य जन सहयोग से नही होता है । आप सिर्फ मर्त्युभोज को ही ना देखे शादी समारोह पर भी नजर डाले ।आज चाहे कोई कितना ही गरीब क्यौ ना हो शादी मे बारात के लिए गाड़ी जरुरी d.j. जरुरी सूट-बूट जरुरी ,खाने मे तरह तरह के व्यंजन जरुरी और भी कई अनगिनत खर्चे जो सभी होड़ा होड़ हो रहे है । सिर्फ मर्त्युभोज ही कुरुती नही है । और भी कई कुरीतियां हैं जो हमे खोखला कर रही है।
गुमनाराम चौधरी सिनली
Bahut sae baat boli aap ji👌👌👏
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