शनिवार, 5 मार्च 2016

''कुचमादी टाबर''

मुक्की दे' र पापड फोडूं, लात की दे'र पतासो रे , मींगणी नै हदर उठा ल्यूँ, देखो यार तमासो रे | पाटा पर सूँ कूद ज्याऊं, नीम्बू निचोड़ दयूं झटका सूँ, फूसका नै फर उड़ा दयूं मैं नाड का लटका सूँ | फूंक देकर चिमनी बुता दयूं तकियों उठा ल्यूँ हाथां सूँ , काम धंधो होवै कोनी घर चालरयो बाताँ सूँ | आधी रोटी सूँ पेट भरल्यां दो घूँट चाय की , दूध दही भावे कोन्या उबाक आवै छाय की | कीड़ी दाब कांख मै भागूँ कोई पकड़ ना पावे, थर थर धूजे काया सारी म्हासूँ कुण टकरावे | चालीस सेर को छैलो मै तो तुल्यां ताखड़ी टूटे रे, पग पकड़'र झट मनाल्यूं जे घर हाली रूठे रे | होली दीवाली न्हावाँ धोवाँ करके तातो पाणी जी , खुडका सूँ डर के भागां या ही म्हारी पिछाणी जी | माखी मार दयूं चूसो पकड़ क्यूं पण थाने भी तो क्यूं करणों है , थे भी मेरी तरियां हिम्मत करल्यो मरने सूँ के डरणो है | कबड्डी का कोई पाला मांडे तो म्हारी कच्ची डाँई जी , थाला बैठ्या क्यूं तो कराँ जणा थाने या बात बतायी जी | -

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें