शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

धन सफलता प्रेम

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामनेदेखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन ...करिये।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदरसहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” – फिर दूसरे संतों की ओर इशारा कर केकहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आसकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रितकरना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्नहो गया और बोला – “यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घरखुशियों से भर जाएगा।” लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रितकरना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझेलगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं है।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वेकृपया घर में प्रवेश कर भोजन ग्रहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे।औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था।आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रितकिया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेमकभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।

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