सोमवार, 24 जून 2019

रंगीलो राजस्थान

।। राम राम सा ।।

धोळी-धोळी चांदनी, ठंडी -ठंडी रात।
सेजआ बैठी गोरड़ी,कर री मन री बात ।।

बाट जोवता -जोवता में कागा रोज उडाऊ ।
जे म्हारा पिया रो आव संदेशो सोने री चांच म ढा उ ।।

धोरा ऊपर झुपड़ी,गोरी उडिके बाट !
चांदनी और चकोर को, छुट गयो छ साथ।।

झड़ लागी बरखा की ,टिप -टिप बरसे मेह।
योवन पाणी भिजता, तापे सगळी देह ।।

झिर -मिर मेवो बरसता,बिजली कड़का खाय ।
साजन का सन्देश बिना,छाती धड़का खाय ।।

काली -पीली बादली,छाई घटा घनघोर ।
घर -जल्दी सु चाल री,बरसगो बरजोर ।।

सावन का झुला पड्या,गीतड़ला को शोर ।
नाडी-सरवर लोट रहया,टाबर ढाढ़ा -ढोर ।।

चित उचटावे बीजली,पपिहो बैरी दिन -रैण।
"पिहू-पिहू"बोले मसखरो, मनड़ो करे बैचैण ।।

आप बसों परदेस में, बिलखु थां बिन राज १
सुख गयी रागनी, सुना पड्या महारा साज।।

गरम जेठ रो बायरो,बरसाव है ताप !
ठंडी रात री चांदनी,देव घणो संताप !!

देस दिशावर जाय कर धन है खूब कमाया !
घर आँगन ने भूलगया ,वापिस घर ना आया।।

पापी पेट के कारन छुट्या घर और बार ।
कद आवोगा थे पिया,बिलख घर की नार ।।

बिलख घर की नार, जाव रतन सियालो ।
न चिठ्ठी- सन्देश मत म्हारो हियो बालो ।।

शुक्रवार, 21 जून 2019

विश्व योग दिवस 2019

।। राम राम सा ।।
विश्व अंतराष्ट्रीय योग दिवस पर सभी को         हार्दिक शुभकामनाये !
मित्रो योग के 5 वें अंतर्राष्ट्रीय दिवस के मौके पर देश के विद्यालयो मे व अन्य संस्थाओ मे पिछ्ले वर्षो की तरह इस वर्ष भी अच्छा उत्साह देखने को मिला है ।
हमारे देश के प्रधान-मंत्री द्वारा 2015 मे पुरे विश्व मे भी योग दिवस की मनाने की शुरुआत हुई थी  भारत में तो सदियों से योग को मानते आये है । पर अब विदेशो मे योग का महत्व समझने लगे है ।
योग हमारे शरीर, मन और आत्मा को नियंत्रित करने में मदद करता है। शरीर और मन को शांत करने के लिए यह शारीरिक और मानसिक अनुशासन का एक संतुलन बनाता है। यह तनाव और चिंता का प्रबंधन करने में भी सहायता करता है और आपको आराम से रहने में मदद करता है। योग आसन शक्ति, शरीर में लचीलेपन और आत्मविश्वास विकसित करने के लिए जाना जाता है।

गुरुवार, 20 जून 2019

मरूधर री माटी

धोळी-धोळी चांदनी, ठंडी -ठंडी रात।
सेजआ बैठी गोरड़ी,कर री मन री बात ।।

बाट जोवता -जोवता में कागा रोज उडाऊ ।
जे म्हारा पिया रो आव संदेशो सोने री चांच म ढा उ ।।

धोरा ऊपर झुपड़ी,गोरी उडिके बाट !
चांदनी और चकोर को, छुट गयो छ साथ।।

झड़ लागी बरखा की ,टिप -टिप बरसे मेह।
योवन पाणी भिजता, तापे सगळी देह ।।

झिर -मिर मेवो बरसता,बिजली कड़का खाय ।
साजन का सन्देश बिना,छाती धड़का खाय ।।

काली -पीली बादली,छाई घटा घनघोर ।
घर -जल्दी सु चाल री,बरसगो बरजोर ।।

सावन का झुला पड्या,गीतड़ला को शोर ।
नाडी-सरवर लोट रहया,टाबर ढाढ़ा -ढोर ।।

चित उचटावे बीजली,पपिहो बैरी दिन -रैण।
"पिहू-पिहू"बोले मसखरो, मनड़ो करे बैचैण ।।

आप बसों परदेस में, बिलखु थां बिन राज १
सुख गयी रागनी, सुना पड्या महारा साज।।

गरम जेठ रो बायरो,बरसाव है ताप !
ठंडी रात री चांदनी,देव घणो संताप !!

देस दिशावर जाय कर धन है खूब कमाया !
घर आँगन ने भूलगया ,वापिस घर ना आया।।

पापी पेट के कारन छुट्या घर और बार ।
कद आवोगा थे पिया,बिलख घर की नार ।।

बिलख घर की नार, जाव रतन सियालो ।
न चिठ्ठी- सन्देश मत म्हारो हियो बालो ।।

बुधवार, 19 जून 2019

बच्चो को लाईफ स्किल की जानकारी दे

राम राम सा

मित्रो कुछ दिन पहले सूरत में हुए हादसे के  बहाने तो जानिए ।जितने मुँह ऊतणी बाते।  ये कर दिया होता वो कर दिया तो जाने बस सकती थी । बाते करने से जान नही बसती है बच्चो को भी जान बचाना आना चाहिये । धेर्य नही था कला नही थी घबड़ाहट के मारे जान बचाने की कोशिश मे कूद गये थे । नीचे जाल नही था ।     जिसमे आग लगने के बाद लापरवाही से  21 बच्चे हमेशा के लिए सो गए फिर भी हम नहीं जागेंगे, हैं ना...

"कुछ हादसे ऐसे ही होते हैं जिन पर लिखना खुद को विचलित करने  जैसा है, सूरत की बिल्डिंग में आग...21 बच्चों की मौत...आग और घुटन से घबराए बच्चों को इससे भयावह वीडियो आज तक नहीं देखा....इससे ज्यादा छलनी मन और आत्मा आज तक नहीं हुई....फिर भी लिखूंगा....क्योंकि हम सब गलत हैं, सारे कुएं में भांग पड़ी हुई है। हमने किताबी ज्ञान में ठूंस दिया बच्चों को नहीं सिखा पाए लाइफ स्किल। नहीं सिखा पाए डर पर काबू रख शांत मन से काम करना।"

मम्मी डर लग रहा है...एग्जाम के लिए सब याद किया था लेकिन एग्जाम हॉल में जाकर भूल गया...कुछ याद ही नहीं आ रहा था। पांव नम थे...हाथों में पसीना था...आप दो मिनिट उसे दुलारते हैं...बहलाने की नाकाम कोशिश करते हैं फिर पढ़ लो- पढ़ लो- पढ़ लो की रट लगाते हैं। सुबह 8 घंटे स्कूल में पढ़कर आए बच्चे को फिर 4-5 घंटे की कोचिंग भेज देते हैं। जिंदगी की दौड़ का घोड़ा बनाने के लिए, असलियत में हम उन्हें चूहादौड़ का एक चूहा बना रहे हैं। नहीं सिखा पा रहे जीने का तरीका- खुश रहने का मंत्र...साथ ही नहीं सिखा पा रहे लाइफ स्किल। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और शांतचित्त होकर जीवन जीने की कला नहीं सिखा पा रहे हैं ना और इसके लिए सिर्फ उसे नर्सरी क्लास से फस्टटेड से लेकर आग लगने पर कैसे खुद का बचाव करें.., पानी में डूब रहे हो तो कैसे खुद को ज्यादा से ज्यादा देर तक जीवित और डूबने से बचाया जा सके.... जैसे विषय हर साल पढ़ाए जाते थे। पहले फायरफाइटिंग से जुड़े कर्मचारी और अधिकारी हर माह स्कूल आते थे। बच्चों को सिखाया जाता था विपरीत परिस्थितियों में डर पर काबू रखते हुए कैसे एक्ट किया जाए। ह्यूमन चेन बनाकर कैसे एक-दूसरे की मदद  करे ।
हम नहीं सिखा पा रहे यह सब....नहीं दे पा रहे बच्चों को लाइफ स्किल...विपरीत परिस्थितियों से बचना....कल की ही घटना देखिए...हमारे बच्चे नहीं जानते थे कि भीषण आग लगने पर वे कैसे अपनी और अपने दोस्तों की जान बचाएं....नहीं सीखा हमारे बच्चों ने थ्री-G का रूल ( गेट डाउन, गेट क्राउल, गेट आऊट ) जो 3 साल की उम्र में बच्चों को सिखाया जाता है, आग लगे तो सबसे पहले झुक जाएं...आग हमेशा ऊपर की ओर फैलती है। गेट क्राउल...घुटनों के बल चले...गेट आऊट...वो विंडों या दरवाजा दिमाग में खोजे जिससे बाहर जा सकते हैं, उसी तरफ आगे बढ़े, जैसा कुछ बच्चों ने किया, खिड़की देख कर कूद लगा दी... भले ही वे अभी हास्पिटल में हो  लेकिन जिंदा जलने से बच गए। लेकिन यहां भी वे नहीं समझ पा रहे थे कि वे जो जींस पहने हैं...वह दुनिया के सबसे मजबूत कपड़ों में गिनी जाती है...कुछ जींस को आपस में जोड़कर रस्सी बनाई जा सकती है। नहीं सिखा पाए हम उन्हें कि उनके हाथ में स्कूटर-बाइक की जो चाबी है उसके रिंग की मदद से वे दो जींस को एक रस्सी में बदल सकते हैं...काफी सारी नॉट्स हैं जिन्हें बांधकर पर्वतारोही हिमालय पार कर जाते हैं फिर चोटी से उतरते भी हैं...वही कुछ नाट्स तो हमें स्कूलों में घरों में अपने बच्चों को सिखानी चाहिए। सूरत हादसे में बच्चे घबराकर कूद रहे थे...शायद थोड़े शांत मन से कूदते तो इंज्युरी कम होती। एक-एक कर वे बारी-बारी जंप कर सकते थे। उससे नीचे की भीड़ को भी बच्चों को कैच करने में आसानी होती। मल्टीपल इंज्युरी कम होती, हमारे अपने बच्चों को। आज आपको मेरी बातों से लगेगा...ज्ञान बांट रहा हूं...लेकिन सुरत के हादसे के वीडियो को बार-बार देखेंगे तो समझ में आएगा एक शांतचित्त व्यक्ति ने बच्चों को बचाने की कोशिश की। वो दो बच्चों को बचा पाया लेकिन घबराई हुई लड़की खुद को संयत ना रख पाई और .... अच्छे से याद है, पापाजी कहते थे बेटा कभी आग में फंस जाओ तो सबसे पहले अपने ऊपर के कपड़े उतार कर फेंक देना, मत सोचना कोई क्या कहेगा। क्योंकि ऊपर के कपड़ों में आग जल्दी पकड़ती है। जलने के बाद वह जिस्म से चिपक कर भीषण तकलीफ देते हैं...वैसे ही यदि पानी में डूब रहे हो तो खुद को संयत करना...सांस रोकना...फिर कमर से नीचे के कपड़े उतार देना क्योंकि ये पानी के साथ मिलकर भारी हो जाते हैं, तुम्हें सिंक (डुबाना) करेंगे। जब जान पर बन आए तो लोग क्या कहेंगे कि चिंता मत करना...तुम क्या कर सकते हो सिर्फ यह सोचना।
एक ऐसा ही हादसा मेरी आंखो के सामने ही हुआ था जब मे 18   साल का था तो मेरे मासोजी के पास सिदापुर कर्नाटक  मे रहता था ।  तो एक बार  तीसरी मंजिल के गोदाम मे साफ सफाई करने के बाद बल्ब बंद करना भुल गये और  बल्ब के नजदीक मे कागज के कार्टून होने के कारण ज्यादा गर्म होने पर आग पकड़ ली और थोडी ही देर मे आग ने भयंकर रूप धारण कर लिया। माल तो बहुत जला था । जान किसी की नही गई थी ।  स्थानिय लोगो की मदद से आग तो बुझा दी गयी थी । पर मुझे कुछ स्थानीय  बुजुर्ग लोगो की बाते अच्छी तरह याद है कि जब हम पानी लेकर आग बुझाने कि कोशिश कर रहे थे ।तब मुझे उन लोगो ने मुझे भी कहा और खुद भी यही कोशिश मे लगे कि मकान के नीचे कमरो के सामान को हटवाया जाये और हटा भी दिया । थोडी देर मे आग भी बुझ दी गई । पर उनकी बातो से मुझे भी बहुत सिख तो मिली पर पचतावा  भी हुआ की ये काम अगर आग लगते ही कर दिया होता तो दुसरी मंजिल का माल भी जलने  से बच जाता था ।और आग भी जल्दी बुझ जाती थी ।     
जो बच्चे बच ना पाए, उनके माँ बाप का हाल क्या होगा  ये सोच कर मेरा भी  दिल बैठा जाता है ।
एक कहानी है जो हमे इस बात से प्रेरित करती है
जिसमें एक पंडित पोथियां लेकर नाव में चढ़ा था...वह नाविक को समझा रहा था 'अक्षर ज्ञान- ब्रह्म ज्ञान' ना होने के कारण वह भवसागर से तेर नहीं सकता...उसके बाद जब बीच मझधार में उनकी नाव डूबने लगती है तो पंडित की पोथियां उन्हें बचा नहीं पाती। गरीब नाविक उन्हें डूबने से बचाता है, किनारे लगाता है। हम भी अपने बच्चों को सिर्फ पंडित बनाने में लगे हैं....उन्हें पंडित के साथ नाविक भी बनाइए जो अपनी नाव और खुद  का बचाव स्वयं कर सकें। सरकार से उम्मीद लगाना छोड़िए   जो सरकार 40.फिट कि सिढी फायर ब्रिगेड के साथ नहीं रख सकती , आपके बच्चों के सुरक्षा की क्या गारंटी देगी। भाषण होंगे.. चार जांच बैठाकर, कुछ मुआवजे बांटकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। कुकुरमुत्ते की तरह उग आए कोचिंग संस्थान ना बदलेंगे। इस तरह के हादसे होते रहे हैं...आगे भी हो सकते हैं....बचाव एक ही है हमें अपने बच्चों को जो लाइफ स्किल सिखानी है। आज रात ही बैठिए अपने बच्चों के साथ...उनके कैरियर को गूगल करते हैं ना...लाइफ स्किल को गूगल कीजिए। उनके साथ खुद भी समझिए विपरीत परिस्थितियों में धैर्य के साथ क्या-क्या किया जाए याद रखिए जान है तो जहान है।
अगर  कोई डूब रहा हो तो उसे खुद पर लदने ना दो...उसके बाल पकड़ों और घसीटकर बाहर लाने की कोशिश करो....यही तो छोटी-छोटी लाइफ स्किल हैं
काश के हम वीडियो बनाने और देखने के बजाय ये सब सीखें और बच्चों को सिखाएं
पर हम भेड़चाल वाले हैं अफसोस जताकर अगले हादसे का इंतज़ार करते हैं कि इसे भूल सकें.....अब तो अफसोस भी होता है हमें कि लापरवाही के कारण से इतनी जाने चली गई है।जिसका सबको अफसोस रहेगा।
गुमनाराम पटेल

सोमवार, 17 जून 2019

चौमासा रा वडेरौ रा सुगन

सुप्रभातम्.
@@
>>सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी। बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे। भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी।
कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।

रविवार, 16 जून 2019

बचपन की यादे ।

।। राम राम सा ।।
  मित्रो आजकल हम तीन तीन साल के बच्चो  को इंटेरनेट सर्च करते हुए पबजि खेलते हुये देख रहे है । और बचपन के  समय हम जब  पाँच छह साल रहे होन्गे तब  उड़ती हुई धूल मे खेलते थे और हमारी  नाक के दोनों नथुनों से जमना गंगा की उच्छल जलधि तरंग बहने का आभास होता था और जब ये निचे होठो तक आ जाता तो एक ही सरटाड़े  मे ऊपर खिंच देते थे । कभी कभी इस सच्चाई को भी उजागर कर दिया करते थे कि यदि प्रयास किया जाये तो बहती हुई धारा को भी उसके उदगम स्थल तक वापस मोड़ा जा सकता है क्योंकि हमारे पास रूमाल रखने का चलन नहीं था  अतः उसका काम तो हम लोग किसी के मकान की दीवार से या अपने शरीर के पिछवाडे  भाग के उपयोग से चला लिया करते थे। अच्छा था कि उस समय मोबाइल व केमरा नही था । नही तो कोई भी हमारा विडियो बनाकर यु टयूब मे डाल दे देता  ।
 बचपन मे  ड्राइंग का हमे  बहुत शौक था।  तो मैने एक बार एक सीनेरी बनाई । उसमे  दो पहाड़ थे जिनके बीच में से सूर्य उदय हो रहा था ।  क्योंकि आज की पीढ़ी को तो पता ही नहीं कि सूर्योदय कैसा होता है । सूर्यास्त  क्या होता है ।
और आजकल के बच्चे को कोई  अगर कोई पुछता बेटा बडे होकर क्या बनोगे तो तुरन्त जवाब मिलता है डॉक्टर इन्जीनियर  आई पी एस  आदि । और  हम तो एक ही उत्तर देते थे  खेत में  काम करो सा ।
और हमको तो एक बार  मास्तर जी ने पूछ लिया  गांव में जब कोई बीमार हो जाता है तब गांव वाले उसे कहां ले जाते हैं।
हमने तो सच्च कह दिया ‘मोमाजी   के मन्दिर में भोपा जी के पास’।
मास्टर जी भी हमारा उत्तर सुनकर हस्ँ दिया करते थे ।

फादर डे एक दिन नही रोज मनाये


।। राम राम सा ।।

मित्रो आजकल डे त्योहारों का प्रचलन बहुत है जैसे  फादर्स डे हो, मदर्स डे हो, डॉटर डे हो वेलेंटाईन डे हो सिस्टर डे हो  या फिर कोई सा भी डे हो जरूरी तो नहीं कि किसी एक दिन ही इनको मनाया जाए। जब हम पूरा समय इन खास रिश्तो के बीच में बिताते हैं तो यह हमारी जिम्मेदारी भी बनती है कि हम उन रिश्तो को हमेशा संजोकर रखे और मौका दें कि वह हमेशा अपने आप को खास महसूस करें।
मित्रो सिर्फ एक दिन साल में किसी को सेलीब्रेट कर  देने से या फूलों का गुलदस्ता देने से  सिर्फ इतना करने पर  वह व्यक्ति हमारे लिए खास हो जाता है, नहीं मित्रो । खास उसे हमारे रिश्ते बनाते हैं वह रिश्ता जो बच्चों का पिता के साथ होता है, वह रिश्ता जो बच्चों का मां के साथ होता है, वह रिश्ता जो भाई बहनों का होता है। ऐसे रिश्ते किसी एक दिन  के मोहताज नहीं होते बल्कि वह स्वयं ही एक अनमोल  होते हैं जिनका कोई मोल नहीं होता।
मित्रो फिर यह दिन क्यों मनाए जाते हैं?
इनके उदहारण तो बहुत  है फिर भी जो खास है वह है समय का अभाव अपनो से बढती जा रही दुरिया।  विदेशी सभ्यता  , हर दिन जो किसी खास के साथ पूरा समय बिता नहीं सकते है , हर समय हम किसी को यह अहसास नहीं दिला सकते कि वह कितना अनमोल है हमारे लिए। शायद यही सोच कर एक-एक दिन को चुन लिया गया और उनको नाम दे दिया। अगर दिन भर में थोड़ा भी समय हम अपने खास रिश्तो के लिए निकालें तो किसी एक दिन की हमें जरूरत नहीं होगी। हमारे पिता हमेशा से हमारे लिए हीरो रहे हैं और हमेशा रहेंगे भी। वह घर की नीव है जिसने परिवार को जोड़ कर रखा है। मां का योगदान अतुल्य होता है पर पिता के द्वारा किए समझौतों का कोई मोल नहीं होता है तो फिर इन फादर डे या मदर डे मनाने के लिए आवश्यकता नहीं है।
माँ और पिता ये दोनों ही रिश्ते समाज में सर्वोपरि हैं। इन रिश्तों का कोई मोल नहीं है। ये सिर्फ एक शब्द भर नहीं हैं, बल्कि ऐसे रिश्ते हैं जिनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। दुनिया के तमाम देशों में इन रिश्तों के लिए अलग-अलग शब्द हो सकते है, पर भाव-पक्ष में साम्यता है। भारतीय संस्कृति में माता-पिता को देवता कहा गया है-
मातृदेवो भव, पितृदेवो भव।
मित्रो  माता-पिता की सेवा के तमाम् दृष्टान्त हैं जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता। जो बच्चे अपने माता-पिता का आदर-सम्मान नहीं करते, वे जीवन में अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर सकते।
फिलहाल यहाँ बात पिता की। भले ही पिता एक माँ की तरह अपने कोख से बच्चे को जन्म न दे पाए, अपना दूध न पिला पाए, लेकिन सच तो यह है कि एक बच्चे के जीवन में पिता का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। हम सभी को बचपन में अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता क्रूर नजर आते हैं। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है और हम जीवन की कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने लगते हैं, हमें अनुभव होता है कि पिता की वो डाँट और सख्ती हमारे भले के लिए ही थी। पापा बाहर से जितने सख्त दिखाई पड़ते हैं, अंदर से उतने ही कोमल हैं।
जिस घर में बच्चों की देखरेख करने के लिए अगर पिता नहीं है तो उन मासूम बच्चों के सारे लाड़-प्यार, दुलार, पिता की छाँव सबकुछ अधूरा रह जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी के घर में माँ नहीं है तो बच्चों की देखरेख ठीक से नहीं हो पाती। ठीक उसी तरह पिता के न होने पर भी बच्चों का वही हाल होता है। इसलिये इस फादर डे को तो पूरी उम्र भर मनाओ तो भी कम है ।

इंटेरनेट ने दुनिया को छोटा कर दिया है ।

मित्रो आजकल इंटरनेट ने दुनिया को बहुत छोटा कर
दिया। एक डिब्बे में समेट दिया। सब कुछ
कितना पास है हमारे। जिस से चाहो बात करो।
जो चाहे प्रश्न पूछो। आपके प्रश्न समाप्त
हो जाएंगे, यहा बताना बंद नहीं करेगा। बेशक
दुनिया के नजदीक आए हैं हम सब। लेकिन
पड़ौसी से कितने दूर हो गए यह किसी ने
नहीं सोचा होगा । जिसका रिश्तों में सबसे अधिक महत्व
था। जो सबसे निकट था। वह पडौसी आज बहुत दूर
हो गया है  और हमें पता भी नहीं चला। दुनिया के
बड़े से बड़े व्यक्ति के फोन नंबर हमारे मोबाइल
फोन में होंगे।परंतु पड़ौसी के शायद ही होंगें।
वो भी जमाना था जब पड़ौसी से एक कटोरी चीनी
,एक चम्मच चाय पत्ती मांगना सामान्य बात थी।
सब्जी का आदान प्रदान तो बड़ी आत्मीयता से
होता था। “ जा धापुडी  राबौडी  का साग
सुमित्रा की माँ को दे आ उसे बड़ा शौक है राबौडी  के
साग का।“ उधर से भी ऐसे ही भाव थे। कोई तड़के
वाली दाल दे जाता तो कोई बाजरे की रोटी ले
जाता। पड़ौसी भी रिश्ते की अनदेखी डोर से बंधे
होते। चाची , मामी, ताई, दादी, नानी, भाभी, बुआ
कौनसा रिश्ता था जो नहीं होता। अपने आप बन
जाते ये रिश्ते। सात्विक प्रेम ,अपनेपन से निभाए
भी जाते थे ये रिश्ते। घर की बहिन,बेटी ,बहू छत
पर कपड़े सुखाने के समय ही पड़ौस की बहिन,बेटी
,बहू खूब बात करतीं। बड़ी ,पापड़, खींचीया बनाने के
लिए बुला लेते एक दूसरे को। छत से ही एक दूसरे
के आना जाना हो जाता। अब तो दो घरों के बीच
दीवारें इतनी ऊंची हो गई कि दूसरे की छत पर
क्या हो रहा है पता ही नहीं लगता।
ऊंची एड़ी करके कोई देखने की कोशिश भी करे
तो हँगामा पक्का  तय है। ये कोई अधिक पुरानी बात
नहीं जब घरों के बाहर चार दीवारी का रिवाज
नहीं था। किसी भी स्थान पर एक खाट
बिछी होती और फुरसत में मोहल्ले की औरतें
की महफिल शुरू हो जाती। सर्दी में एक घर की धूप
सबकी धूप थी। सूरज के छिपने तक जमघट। अब
तो सबकी अपनी अपनी धूप छांव हो चुकी है।
ना तो कोई किसी के यहाँ  जाता है  ना कोई पसंद करे
कि कोई आकर प्राइवेसी भंग करे। अब तो घर घर
में सबके अलग अलग कमरे हैं। काम किया,चल
कमरे में। सभी के अपने नाटक टीवी पर फोन पर ही आ जाते है  सब के सब सिमट गये है  अपने आप में ।किसी के पास  समय ही नहीं है एक साथ बैठकर बात करने का हो या चर्चा करने का   मुखड़ा बताता है कई झंझट है दिमाग में। तनाव है दिल में। परंतु रिश्ते तो रह गए केवल नाम के इसलिए दिल की बात कहें किस से और किस जुबान से। मित्रो सच में नए जमाने ने दुनिया छोटी कर दी लेकिन उस दुनिया में इंसान
दिनों दिन अकेला होता जा रहा है। इस दुनिया में
खुद के अलावा किसी और के लिए ना तो कोई
स्थान है और ना अपनापन।  हम
अपने आप से  कितने दूर हो गए हैं  ये तो हमे भी पता नही है
लेकिन यह सब हकीकत में हो रहा है जो एक निराशाजनक है । 

पहली नमस्ते

।। राम राम सा।।
       ■■■■■■■

"पहली नमस्ते परमात्मा को,
जिन्होंने हमें बनाया है".
"दूसरी नमस्ते माता पिता को,
जिन्होंने हमें
अपनी गोद में खिलाया है".
"तीसरी नमस्ते गुरुओं को,
जिन्होंने हमको
वेद और ज्ञान सिखाया है".
"चौथी और सबसे महत्वपूर्ण नमस्ते
"आप को",
"जिन्होंने हमें अपने साथ
जुड़े रहने का मौका दिया है"

क्या खुल्ला रखना और क्या ढकना है ?

।।राम राम सा ।।
*************

दोस्तो आजकल एक बड़ी विकट स्थिति है कि हमें यह नहीं पता कि क्या ढ़कना है और क्या खुला रखना है ?

वैसे हम भारत वासियों को कवर चढ़ाने का बहुत शौक है |
.
बाज़ार से बहुत सुंदर सोफा खरीदेंगे लेकिन फिर उसे भद्दे  सफेद जाली के कवर से ढक देंगे
.
बढ़िया रंग का सुंदर सूटकेस खरीदेंगे, फिर उस पर मिलिट्री रंग का कपड़ा चढ़ा देंगे

मखमल की रजाई पर फूल वाले फर्द का कवर!!
फ्रिज पर कवर!
माइक्रोवेव पर कवर!
वाशिंग मशीन पर कवर!
मिक्सी पर कवर!
थर्मस वाली बोतल पर कवर!
TV पर कवर!
कार पर कवर!
कार की कवर्ड सीट पर एक और कवर!
स्टेयरिंग पर कवर!
गियर पर कवर!
फुट मैट पर एक ओर कवर!
सुंदर शीशे वाली डाइनिंग टेबल पर प्लास्टिक का कवर!
स्टूल कवर!
चेयर कवर!
मोबाइल कवर!
बेडशीट के ऊपर बेड कवर!
गैस के सिलिंडर पर कवर!
RO पर कवर!
किताबों पर कवर!
.
काली कमाई पर कवर!!!
गलत हरकतों पर कवर!!!
बुरी नियत पर कवर!!!

लेकिन.....
.
कचरे के डिब्बे पर ढक्कन नदारद!!
खुली नालियों के कवर नदारद!!
कमोड पर ढक्कन नदारद!!
मैनहोल के ढक्कन नदारद!!
सर से हेलमेट नदारद!!
खुले खाने पर से कवर नदारद!!
आधुनिकता में तन से कपडे नदारद!!
इन्सानों के दिल से इंसानियत नदारद!!
खुली ट्यूबवेलो पर ढक्कन नदारद!!
.
क्या ढकना है और क्या खुला रखना है,
हम लोग आज तक ये नहीं समझ पाये।

रविवार, 9 जून 2019

आदमियों के अलग अलग रहन-सहन


।। राम राम सा ।।
मित्रो आजकल अधिकतर लोग दिखावापसन्द होते है। आजकल समाज में लोग एक दूसरे को सिर्फ यह दिखाना चाहते है कि किस प्रकार वह एक दूसरे से बेहतर है चाहे वह सोच की बात हो या आपकी आर्थिक स्थिति की या आपकी समाज में दर्जे की। लोग ऐसा इसलिए करते है ताकि लोग उनकी इस सब चीजों को देख कर ज़्यादा इज़्ज़त करे। माना अधिकतर लोग ऐसे होते है किन्तु ऐसा नहीं है कि सभी लोग ऐसे होते है कुछ लोग सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए कुछ काम करते है
मित्रो बीते हुए कुछ वर्षो मे लोगो के रहन सहन मे बहुत बदलाव हुआ है जो आप हम देख ही रहे है लोग अब अलग अलग कटेगरी मे रहने लगे है । कई लोगो ने  चन्द रुपये क्या कमा लिया है । पैर जमीन पर नही टिकाते है ओर कुछ लोग तो दूसरो के रुपयो पर भी ऐस कर लेते है ।
मित्रो हम भारतीय लोगों में आर्थिक व्यवहार दो तरिके  पर आधारित हो गये  है। पहला तो ये कि ‘‘जब तक जियो मौज से जियो, चाहे कर्जा लेकर घी पियो’’ और दूसरा ये कि ‘‘जैसे  पांव पसारिए वैसे लंबी सौड़ ।

पहला तरीके के लोग उन सोसायटी से  फिट बैठते है। ये वो लोग होते है जिस मे पांच दिन कमाते है और छठे-सातवें दिन पूरी कमाई को उड़ा देने में विश्वास रखते  है। उनकी शान और रहन-सहन में कभी कोई बदलाव नहीं आता। वो कच्छा जाॅकी वी आई पी  का ही पहनेंगे, चाहे लोन लेना पड़े। उनकी सलामी तोप से ही होनी चाहिए, छोटी-मोटी बंदूकें उनको रास नहीं आतीं। उनके मन में बड़ा बनने से ज्यादा बड़ा दिखने की चाह होती है। वे मानते हैं कि आप भले ही बड़े आदमी न हो, लेकिन हमेशा बड़े दिखो। वे मानते हैं कि ‘बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की’। और इस सबको मेनटेन करने के लिए उनके पास होता है केवल एक हथियार- ‘इसकी टोपी उसके सिर और उसकी टोपी इसके सिर’। आम आदमी भले ही इस हथियार का इस्तेमाल करना न जानता हो, लेकिन ऐसी  सोसायटी इस हथियार का सबसे खूबसूरती के साथ इस्तेमाल करती है। बड़े कर्ज के मामले में तो ये लोग तमाम बैंकों के कर्ज में डूबे ही होते हैं, लेकिन छोटे-मोटे कर्जे के लिए ये लोग अपने आसपास के लोगों पर निर्भर रहते हैं। अपने परिचितों से इस अंदाज में कर्जा मांगते हैं कि सामने वाले से न कहते बनता ही नहीं है। हाई प्रोफाइल लाइफ स्टाइल प्रदर्शित करने की इतनी मजबूरी होती है कि उसके लिए वे कर्ज की हर सीमा लांघ जाते हैं। आज के दौर में हाई प्रोफाइल दिखने के कुछ सबूत  इस प्रकार हैं- एक 4 व्हीलर गाड़ीः भले ही उसमें तेल डलवाने के पैसे जेब में न हों, एक महंगा मोबाइलः भले ही सेकेंड हैंड खरीदा हो, महंगी घड़ीः इम्पोर्टेड हो तो और बढि़या, एक लैपटाॅप या आइपेड  भले ही उसकी जरूरत न हो, बदन पर ब्रांडेड और डिजाइनर महँगे  कपड़े, एक जोड़ी कपडे़ एक ही दिन पहने जाएं, सप्ताह के सात दिनों के लिए सात जोड़ी जूते आदि आदि हाई प्रोफाइल दिखने की बहुत ही बेसिक रिक्वायरमेंट हैं। कम से कम इतना तो होना जरूरी है। ये लोग जो  मानते है कि मौज-मस्ती में कोई कमी नहीं आनी चाहिए, चाहे कितना भी कर्ज क्यों न लेना पड़े। फिर जब आप के पास पैसा आ जाए तब भी सबसे पहले उसे मौज मस्ती पर खर्च करना है उसके बाद कर्जा उतारने की सोचनी है।

दुसरे तरीके के वो लोग होते है उनका व्यवहार अलग ही होता है ये खासकर उन  भारतीय लोगो का, जो मौज-मस्ती के लिए कर्जा लेना बहुत बुरा समझते हैं। उनका मानना है कि उतने पांव फैलाए जाएं जितनी लंबी चादर है। जीवन का क्या है इसको कितना भी भोगों से भर लो, इसकी इच्छाएं पूरी नहीं हो सकतीं। फिर अगर कर्जा लेना भी हो तो बहुत ही आपातकाल में लिया जाए जैसे किसी बडी -बीमारी में, बेटी की शादी में या फिर मकान को पूरा करने में। फिर उस कर्जे को हल्के में न लिया जाए। जैसे ही पैसा आए तो सबसे पहले उससे कर्जा उतारा जाए, बाकी सब काम बाद में। घर की आवश्यक जरूरतों को भी रोककर पहले कर्जा उतारने पर ध्यान दिया। अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखा जाए और बचत हर हाल में की जाए। कर्जा लेकर कोई शौक पूरा करने से बेहतर बचत करके पैसा इकट्ठा करके उस शौक को पूरा करें। ऐसे परिवार के लोगो  को ‘डाउन टू अर्थ सोसायटी’ (मिट्टी से जुड़े लोग) कहकर पुकारा जाता है। गांधी जी और डाॅ. कलाम को भी इसी श्रेणी में रखा जाता है। ये लोग वे होते हैं जो अपने बच्चों को भी कम खर्च करने की सलाह देते हैं। अपनी जरूरतें न्यूनतम रखते हैं। फिजूलखर्ची उनके पास से होकर नहीं फटकती। ये लोग मानते हैं कि रईस बनो तो ठोस रईस बनो, खोखले रईस बनने से कोई फायदा नहीं। ठोस रईसों को ही खानदानी रईस कहा जाता है। अधजल गगरी छलकत जाए वाला हिसाब नहीं होना चाहिए। ऐसे ही लोगों में एक सब कैटेगरी होती है दानियों, जो अपने बचे हुए धन को अपने ऊपर खर्च न करके दान करना बेहतर समझते हैं। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के बाद वे अपने धन को परोपकार में लगाना बेहतर समझते हैं। इन्हीं लोगों में एक और सब कैटेगरी होती है कंजूसों की, जो पैसे को इस तरह जोड़ते हैं कि उनकी बीवी, बच्चे सभी दुःखी रहते हैं। बच्चे छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी तरसते रह जाते हैं। लेकिन इस कैटेगरी का जो मध्यम मार्ग है वह काफी हद तक श्रेष्ठ बताया जाता है यानि- ईमानदारी व मेहनत से कमाओ और उदारता के साथ खर्च करो।

मजेदार बात ये है कि दोनों ही कैटेगरी के लोग एक-दूसरे को गलत बताते हैं। मौज-मस्ती वाली सोसायटी  के लोग मानते है कि वो भी कोई जिंदगी है जिसमें कोई रंग न हो, मस्ती न हो! मौज-मस्ती ना हो ! जब तक जियो ऐश करो । दूसरी  सोसायटी के लोग मानते हैं कि मौज-मस्ती के दिन ज्यादा दिन नहीं चलते, आखिरकार जिंदगी ऐसी जगह लाकर खड़ा कर देती है कि कोई पूछने वाला भी नहीं होता। बाद मे ऐसी स्थिति हो जाती है कि जो लोग ब्रांड का दारु पिते थे वो पव्वा पीते हैं  रजनीगन्धा खाने वाले जर्दा भी माँगकर खाते है महंगे होटलो मे जाने वाले रेहड़ी पर घूमते नजर आते है । कारो मे घुमने वाले साईकिल चलाते नजर आते है । फिर भी इन दोनों ही क्लास के लोगों में इतना बैर है कि जब बेटे-बेटियों के रिश्ते की बात आती है तब भी अपने से मिलते हुए समान  व्यवहार वालों के यहां रिश्ता जोड़ते हैं। हाई प्रोफाइल  सोसायटी नहीं चाहती कि उसका दामाद या बहू बोरिंग और पुराने ख्यालों की हो। और दूसरी और सादगी से रहने वाले  लोग भी नहीं चाहते कि उनका दामाद या बहू को मौज-मस्ती पसंद हो।
अपने देश  में पूरा का पूरा मिडिल और हायर क्लास इन्हीं दो खर्च व्यवहार के आधार पर बंटा हुआ है। वैसे तो भारतीय लोगो  के व्यवहार में फिजूलखर्ची, बचत न करना और कर्जा लेना हमेशा ही गलत माना जाता रहा है। लेकिन नई अर्थव्यवस्था लोगों को अधिक से अधिक खर्च करने को प्रेरित करती है। लोगों की जेब में खर्च करने के दो हथियार ठूंस दिए गए हैं। पहला डेबिट कार्डः इससे अपना पैसा खर्च करो और दूसरा क्रेडिट कार्डः जब अपना खत्म हो जाए तो कर्ज लेकर खर्च करो । इन्ही के कारण आज समाज दो भागो मे बँट गया है ।