।। राम राम सा ।।
धोळी-धोळी चांदनी, ठंडी -ठंडी रात।
सेजआ बैठी गोरड़ी,कर री मन री बात ।।
बाट जोवता -जोवता में कागा रोज उडाऊ ।
जे म्हारा पिया रो आव संदेशो सोने री चांच म ढा उ ।।
धोरा ऊपर झुपड़ी,गोरी उडिके बाट !
चांदनी और चकोर को, छुट गयो छ साथ।।
झड़ लागी बरखा की ,टिप -टिप बरसे मेह।
योवन पाणी भिजता, तापे सगळी देह ।।
झिर -मिर मेवो बरसता,बिजली कड़का खाय ।
साजन का सन्देश बिना,छाती धड़का खाय ।।
काली -पीली बादली,छाई घटा घनघोर ।
घर -जल्दी सु चाल री,बरसगो बरजोर ।।
सावन का झुला पड्या,गीतड़ला को शोर ।
नाडी-सरवर लोट रहया,टाबर ढाढ़ा -ढोर ।।
चित उचटावे बीजली,पपिहो बैरी दिन -रैण।
"पिहू-पिहू"बोले मसखरो, मनड़ो करे बैचैण ।।
आप बसों परदेस में, बिलखु थां बिन राज १
सुख गयी रागनी, सुना पड्या महारा साज।।
गरम जेठ रो बायरो,बरसाव है ताप !
ठंडी रात री चांदनी,देव घणो संताप !!
देस दिशावर जाय कर धन है खूब कमाया !
घर आँगन ने भूलगया ,वापिस घर ना आया।।
पापी पेट के कारन छुट्या घर और बार ।
कद आवोगा थे पिया,बिलख घर की नार ।।
बिलख घर की नार, जाव रतन सियालो ।
न चिठ्ठी- सन्देश मत म्हारो हियो बालो ।।