।। राम राम सा ।।
मित्रो आजकल डे त्योहारों का प्रचलन बहुत है जैसे फादर्स डे हो, मदर्स डे हो, डॉटर डे हो वेलेंटाईन डे हो सिस्टर डे हो या फिर कोई सा भी डे हो जरूरी तो नहीं कि किसी एक दिन ही इनको मनाया जाए। जब हम पूरा समय इन खास रिश्तो के बीच में बिताते हैं तो यह हमारी जिम्मेदारी भी बनती है कि हम उन रिश्तो को हमेशा संजोकर रखे और मौका दें कि वह हमेशा अपने आप को खास महसूस करें।
मित्रो सिर्फ एक दिन साल में किसी को सेलीब्रेट कर देने से या फूलों का गुलदस्ता देने से सिर्फ इतना करने पर वह व्यक्ति हमारे लिए खास हो जाता है, नहीं मित्रो । खास उसे हमारे रिश्ते बनाते हैं वह रिश्ता जो बच्चों का पिता के साथ होता है, वह रिश्ता जो बच्चों का मां के साथ होता है, वह रिश्ता जो भाई बहनों का होता है। ऐसे रिश्ते किसी एक दिन के मोहताज नहीं होते बल्कि वह स्वयं ही एक अनमोल होते हैं जिनका कोई मोल नहीं होता।
मित्रो फिर यह दिन क्यों मनाए जाते हैं?
इनके उदहारण तो बहुत है फिर भी जो खास है वह है समय का अभाव अपनो से बढती जा रही दुरिया। विदेशी सभ्यता , हर दिन जो किसी खास के साथ पूरा समय बिता नहीं सकते है , हर समय हम किसी को यह अहसास नहीं दिला सकते कि वह कितना अनमोल है हमारे लिए। शायद यही सोच कर एक-एक दिन को चुन लिया गया और उनको नाम दे दिया। अगर दिन भर में थोड़ा भी समय हम अपने खास रिश्तो के लिए निकालें तो किसी एक दिन की हमें जरूरत नहीं होगी। हमारे पिता हमेशा से हमारे लिए हीरो रहे हैं और हमेशा रहेंगे भी। वह घर की नीव है जिसने परिवार को जोड़ कर रखा है। मां का योगदान अतुल्य होता है पर पिता के द्वारा किए समझौतों का कोई मोल नहीं होता है तो फिर इन फादर डे या मदर डे मनाने के लिए आवश्यकता नहीं है।
माँ और पिता ये दोनों ही रिश्ते समाज में सर्वोपरि हैं। इन रिश्तों का कोई मोल नहीं है। ये सिर्फ एक शब्द भर नहीं हैं, बल्कि ऐसे रिश्ते हैं जिनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। दुनिया के तमाम देशों में इन रिश्तों के लिए अलग-अलग शब्द हो सकते है, पर भाव-पक्ष में साम्यता है। भारतीय संस्कृति में माता-पिता को देवता कहा गया है-
मातृदेवो भव, पितृदेवो भव।
मित्रो माता-पिता की सेवा के तमाम् दृष्टान्त हैं जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता। जो बच्चे अपने माता-पिता का आदर-सम्मान नहीं करते, वे जीवन में अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर सकते।
फिलहाल यहाँ बात पिता की। भले ही पिता एक माँ की तरह अपने कोख से बच्चे को जन्म न दे पाए, अपना दूध न पिला पाए, लेकिन सच तो यह है कि एक बच्चे के जीवन में पिता का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। हम सभी को बचपन में अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता क्रूर नजर आते हैं। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है और हम जीवन की कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने लगते हैं, हमें अनुभव होता है कि पिता की वो डाँट और सख्ती हमारे भले के लिए ही थी। पापा बाहर से जितने सख्त दिखाई पड़ते हैं, अंदर से उतने ही कोमल हैं।
जिस घर में बच्चों की देखरेख करने के लिए अगर पिता नहीं है तो उन मासूम बच्चों के सारे लाड़-प्यार, दुलार, पिता की छाँव सबकुछ अधूरा रह जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी के घर में माँ नहीं है तो बच्चों की देखरेख ठीक से नहीं हो पाती। ठीक उसी तरह पिता के न होने पर भी बच्चों का वही हाल होता है। इसलिये इस फादर डे को तो पूरी उम्र भर मनाओ तो भी कम है ।
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