रविवार, 16 जून 2019

बचपन की यादे ।

।। राम राम सा ।।
  मित्रो आजकल हम तीन तीन साल के बच्चो  को इंटेरनेट सर्च करते हुए पबजि खेलते हुये देख रहे है । और बचपन के  समय हम जब  पाँच छह साल रहे होन्गे तब  उड़ती हुई धूल मे खेलते थे और हमारी  नाक के दोनों नथुनों से जमना गंगा की उच्छल जलधि तरंग बहने का आभास होता था और जब ये निचे होठो तक आ जाता तो एक ही सरटाड़े  मे ऊपर खिंच देते थे । कभी कभी इस सच्चाई को भी उजागर कर दिया करते थे कि यदि प्रयास किया जाये तो बहती हुई धारा को भी उसके उदगम स्थल तक वापस मोड़ा जा सकता है क्योंकि हमारे पास रूमाल रखने का चलन नहीं था  अतः उसका काम तो हम लोग किसी के मकान की दीवार से या अपने शरीर के पिछवाडे  भाग के उपयोग से चला लिया करते थे। अच्छा था कि उस समय मोबाइल व केमरा नही था । नही तो कोई भी हमारा विडियो बनाकर यु टयूब मे डाल दे देता  ।
 बचपन मे  ड्राइंग का हमे  बहुत शौक था।  तो मैने एक बार एक सीनेरी बनाई । उसमे  दो पहाड़ थे जिनके बीच में से सूर्य उदय हो रहा था ।  क्योंकि आज की पीढ़ी को तो पता ही नहीं कि सूर्योदय कैसा होता है । सूर्यास्त  क्या होता है ।
और आजकल के बच्चे को कोई  अगर कोई पुछता बेटा बडे होकर क्या बनोगे तो तुरन्त जवाब मिलता है डॉक्टर इन्जीनियर  आई पी एस  आदि । और  हम तो एक ही उत्तर देते थे  खेत में  काम करो सा ।
और हमको तो एक बार  मास्तर जी ने पूछ लिया  गांव में जब कोई बीमार हो जाता है तब गांव वाले उसे कहां ले जाते हैं।
हमने तो सच्च कह दिया ‘मोमाजी   के मन्दिर में भोपा जी के पास’।
मास्टर जी भी हमारा उत्तर सुनकर हस्ँ दिया करते थे ।

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