गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

चाय-चिंतन

।। राम राम सा ।।

पर देशों से चलकर आई।
चाय हमारे मन को भाई।।
कैसे जुड़ा चाय से नाता,
मैं इसका इतिहास बताता,
शुरू-शुरू में इसकी प्याली,
गोरों ने थी मुफ्त पिलाई।
चाय हमारे मन को भाई।।
जीवन का अंग ये बनी अब,
बड़े चाव से पीते हैं सब,
बिना चाय के फीकी लगती,
बिस्कुट-बर्फी और मलाई।
चाय हमारे मन को भाई।।
बच्चों को नहीं दूध सुहाता,
चाय देख मन खुश हो जाता,
गर्म चाय की चुस्की लेकर,
बीच-बीच में मठरी खाई।
चाय हमारे मन को भाई।।
इसके बिना अधूरा स्वागत,
नाखुश हो कर जाता आगत.
वशीभूत हम हुए चाय के,
आदत में वो चाय समायी।
चाय हमारे मन को भाई।।

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