शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015
Kahani
उदयपुर के महलों में राणा जी ने आपात सभा बुला रखी थी| सभा में बैठे हर सरदार के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ नजर आ रही थी, आँखों में गहरे भाव नजर आ रहे थे सबके हाव भाव देखकर ही लग रहा था कि किसी तगड़े दुश्मन के साथ युद्ध की रणनीति पर गंभीर विचार विमर्श हो रहा है| सभा में प्रधान की और देखते हुए राणा जी ने गंभीर होते हुए कहा-
“इन मराठों ने तो आये दिन हमला कर सिर दर्द कर रखा है|”
“सिर दर्द क्या रखा है ? अन्नदाता ! इन मराठों ने तो पूरा मेवाड़ राज्य ही तबाह कर रखा है, गांवों को लूटना और उसके बाद आग लगा देने के अलावा तो ये मराठे कुछ जानते ही नहीं !” पास ही बैठे एक सरदार ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा|
“इन मराठों जैसी दुष्टता और धृष्टता तो बादशाही हमलों के समय मुसलमान भी नहीं करते थे| पर इन मराठों का उत्पात तो मानवता की सारी हदें ही पार कर रहा है| मुसलमान ढंग से लड़ते थे तो उनसे युद्ध करने में भी मजा आता था पर ये मराठे तो लूटपाट और आगजनी कर भाग खड़े होते है|” एक और सरदार ने पहले सरदार की बात को आगे बढाया|
सभा में इसी तरह की बातें सुन राणा जी और गंभीर हो गए, उनकी गंभीरता उनके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रही थी|
मराठों की सेना मेवाड़ पर हमला कर लूटपाट व आगजनी करते हुए आगे बढ़ रही थी मेवाड़ की जनता उनके उत्पात से बहुत आतंकित थी| उन्हीं से मुकाबला करने के लिए आज देर रात तक राणा जी मुकाबला करने के लिए रणनीति बना रहे थे और मराठों के खिलाफ युद्ध की तैयारी में जुटे थे| अपने ख़ास ख़ास सरदारों को बुलाकर उन्हें जिम्मेदारियां समझा रहे थे| तभी प्रधान जी ने पूरी परिस्थिति पर गौर करते हुए कहा-
“खजाना रुपयों से खाली है| मराठों के आतंक से प्रजा आतंकित है| मराठों की लूटपाट व आगजनी के चलते गांव के गांव खाली हो गए और प्रजा पलायन करने में लगी है| राजपूत भी अब पहले जैसे रहे नहीं जो इन उत्पातियों को पलक झपकते मार भगा दे और ऐसे दुष्टों के हमले झेल सके|”
प्रधान के मुंह से ऐसी बात सुन पास ही बैठे एक राजपूत सरदार ने आवेश में आकर बोला –“पहले जैसे राजपूत अब क्यों नहीं है ? कभी किसी संकट में पीछे हटे है तो बताएं ? आजतक हम तो गाजर मुली की तरह सिर कटवाते आये है और आप कह रहें है कि पहले जैसे राजपूत नहीं रहे ! पिछले दो सौ वर्षों से लगातार मेवाड़ पर हमले हो रहे है पहले मुसलमानों के और अब इन मराठों के| रात दिन सतत चलने वाले युद्धों में भाग लेते लेते राजपूतों के घरों की हालत क्या हो गयी है ? कभी देखा है आपने ! कभी राजपूतों के गांवों में जाकर देखो एक एक घर में दस दस शहीदों की विधवाएं बैठी मिलेंगी| फिर भी राजपूत तो अब भी सिर कटवाने के लिए तैयार है| बस एक हुक्म चाहिए राणा जी का! मराठा तो क्या खुद यमराज भी आ जायेंगे तब भी मेवाड़ के राजपूत पीठ नहीं दिखायेंगे|”
ये सुन राणा बोले- “राज पाने व बचाने के लिए गाजर मुली की तरह सिर कटवाने ही पड़ते है, इसीलिए तो कहा जाता है कि राज्य का स्वामी बनना आसान नहीं| स्वराज्य बलिदान मांगता है और हम राजपूतों ने अपने बलिदान के बूते ही यह राज हासिल किया है| धरती उसी की होती है जो इसे खून से सींचने के लिए तैयार रहे| हमारे पूर्वजों ने मेवाड़ भूमि को अपने खून से सींचा है| इसकी स्वतंत्रता के लिए जंगल जंगल ठोकरे खायी है| मातृभूमि की रक्षा के लिए घास की रोटियां खाई है, और अब ये लुटरे इसकी अस्मत लुटने आ गए तो क्या हम आसानी से इसे लुट जाने दे ? अपने पूर्वजों के बलिदान को यूँ ही जाया करें? इसलिए बैठकर बहस करना छोड़े और मराठों को माकूल जबाब देने की तैयारी करें|”
राणा की बात सुनकर सभा में चारों और चुप्पी छा गयी| सबकी नजरों के आगे सामने आई युद्ध की विपत्ति का दृश्य घूम रहा था| मराठों से मुकाबले के लिए इतनी तोपें कहाँ से आएगी? खजाना खाली है फिर सेना के लिए खर्च का बंदोबस्त कैसे होगा? सेना कैसे संगठित की जाय? सेना का सेनापति कौन होगा? साथ ही इन्हीं बिन्दुओं पर चर्चा भी होने लगी|
आखिर चर्चा पूरी होने के बाद राणा जी ने अपने सभी सरदारों व जागीरदारों के नाम एक पत्र लिख कर उसकी प्रतियाँ अलग-अलग घुड़सवारों को देकर तुरंत दौड़ाने का आदेश दिया|
पत्र में लिखा था-“मेवाड़ राज्य पर उत्पाती मराठों ने आक्रमण किया है उनका मुकाबला करने व उन्हें मार भगाने के लिए सभी सरदार व जागीरदार यह पत्र पहुँचते ही अपने सभी सैनिकों व अस्त्र-शस्त्रों के साथ मेवाड़ की फ़ौज में शामिल होने के लिए बिना कोई देरी किये जल्द से जल्द हाजिर हों|”
पत्र में राणा जी के दस्तखत के पास ही राणा द्वारा लिखा था- “जो जागीरदार इस संकट की घडी में हाजिर नहीं होगा उसकी जागीर जब्त कर ली जाएगी| इस मामले में किसी भी तरह की कोई रियायत नहीं दी जाएगी और इस हुक्म की तामिल ना करना देशद्रोह व हरामखोरी माना जायेगा|”
राणा का एक सवार राणा का पत्र लेकर मेवाड़ की एक जागीर कोसीथल पहुंचा और जागीर के प्रधान के हाथ में पत्र दिया| प्रधान ने पत्र पढ़ा तो उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गयी| कोसीथल चुंडावत राजपूतों के वंश की एक छोटीसी जागीर थी और उस वक्त सबसे बुरी बात यह थी कि उस वक्त उस जागीर का वारिस एक छोटा बच्चा था| कोई दो वर्ष पहले ही उस जागीर के जागीरदार ठाकुर एक युद्ध में शहीद हो गए थे और उनका छोटा सा इकलौता बेटा उस वक्त जागीर की गद्दी पर था| इसलिए जागीर के प्रधान की हवाइयां उड़ रही थी| राणा जी का बुलावा आया है और गद्दी पर एक बालक है वो कैसे युद्ध में जायेगा? प्रधान के आगे एक बहुत बड़ा संकट आ गया| सोचने लगा-“क्या इन मराठों को भी अभी हमला करना था| कहीं ईश्वर उनकी परीक्षा तो नहीं ले रहा?”
प्रधान राणा का सन्देश लेकर जनाना महल के द्वार पर पहुंचा और दासी की मार्फ़त माजी साहब (जागीरदार बच्चे की विधवा माँ) को आपात मुलाकात करने की अर्ज की|
दासी के मुंह से प्रधान द्वारा आपात मुलाकात की बात सुनते ही माजी साहब के दिल की धडकनें बढ़ गयी-“पता नहीं अचानक कोई मुसीबत तो नहीं आ गयी?”
खैर.. माजी साहब ने तुरंत प्रधान को बुलाया और परदे के पीछे खड़े होकर प्रधान का अभिवादन स्वीकार करते हुए पत्र प्राप्त किया| पत्र पढ़ते ही माजी साहब के मुंह से सिर्फ एक छोटा सा वाक्य ही निकला-“हे ईश्वर ! अब क्या होगा?” और वे प्रधान से बोली-“अब क्या करें ? आप ही कोई सलाह दे! जागीर के ठाकुर साहब तो आज सिर्फ दो ही वर्ष के बच्चे है उन्हें राणा जी की चाकरी में युद्ध के लिए कैसे ले जाया जाय ?
तभी माजी के बेटे ने आकर माजी साहब की अंगुली पकड़ी| माजी ने बेटे का मासूम चेहरा देखा तो उनके हृदय ममता से भर गया| मासूम बेटे की नजर से नजर मिलते ही माजी के हृदय में उसके लिए उसकी जागीर के लिए दुःख उमड़ पड़ा| राणा जी द्वारा पत्र में लिखे आखिरी वाक्य माजी साहब के नजरों के आगे घुमने लगे-“हुक्म की तामिल नहीं की गयी तो जागीर जब्त कर ली जाएगी| देशद्रोह व हरामखोरी समझा जायेगा आदि आदि|”
पत्र के आखिरी वाक्यों ने माजी सा के मन में ढेरों विचारों का सैलाब उठा दिया-“जागीर जब्त हो जाएगी ! देशद्रोह व हरामखोरी समझा जायेगा! मेरा बेटा अपने पूर्वजों के राज्य से बाहर बेदखल हो जायेगा और ऐसा हुआ तो उनकी समाज में कौन इज्जत करेगा? पर उसका आज बाप जिन्दा नहीं है तो क्या हुआ ? मैं माँ तो जिन्दा हूँ! यदि मेरे जीते जी मेरे बेटे का अधिकार छिना जाए तो मेरा जीना बेकार है ऐसे जीवन पर धिक्कार| और फिर मैं ऐसी तो नहीं जो अपने पूर्वजों के वंश पर कायरता का दाग लगने दूँ, उस वंश पर जिसनें कई पीढ़ियों से बलिदान देकर इस भूमि को पाया है मैं उनकी इस बलिदानी भूमि को ऐसे आसानी से कैसे जाने दूँ ?
ऐसे विचार करते हुए माजी सा की आँखों वे दृश्य घुमने लगे जो युद्ध में नहीं जाने के बाद हो सकते थे- “कि उनका जवान बेटा एक और खड़ा है और उसके सगे-संबंधी और गांव वाले बातें कर रहें है कि इन्हें देखिये ये युद्ध में नहीं गए थे तो राणा जी ने इनकी जागीर जब्त कर ली थी| वैसे इन चुंडावतों को अपनी बहादुरी और वीरता पर बड़ा नाज है हरावल में भी यही रहते है|” और ऐसे व्यंग्य शब्द सुन उनका बेटा नजरें झुकाये दांत पीस कर जाता है| ऐसे ही दृश्यों के बारे में सोचते सोचते माजी सा का सिर चकराने लगा वे सोचने लगे यदि ऐसा हुआ तो बेटा बड़ा होकर मुझ माँ को भी धिक्कारेगा|
ऐसे विचारों के बीच ही माजी सा को अपने पिता के मुंह से सुनी उन राजपूत वीरांगनाओं की कहानियां याद आ गयी जिन्होंने युद्ध में तलवार हाथ में ले घोड़े पर सवार हो दुश्मन सेना को गाजर मुली की तरह काटते हुए खलबली मचा अपनी वीरता का परिचय दिया था| दुसरे उदाहरण क्यों उनके ही खानदान में पत्ताजी चुंडावत की ठकुरानी उन्हें याद आ गयी जिसनें अकबर की सेना से युद्ध किया और अकबर की सेना पर गोलियों की बौछार कर दी थी| जब इसी खानदान की वह ठकुरानी युद्ध में जा सकती थी तो मैं क्यों नहीं ? क्या मैं वीर नहीं ? क्या मैंने भी एक राजपूतानी का दूध नहीं पिया ? बेटा नाबालिग है तो क्या हुआ ? मैं तो हूँ ! मैं खुद अपनी सैन्य टुकड़ी का युद्ध में नेतृत्व करुँगी और जब तक शरीर में जान है दुश्मन से टक्कर लुंगी| और ऐसे वीरता से भरे विचार आते ही माजी सा का मन स्थिर हो गया उनकी आँखों में चमक आ गयी, चेहरे पर तेज झलकने लगा और उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ प्रधान जी को हुक्म दिया कि-
“राणा जी हुक्म सिर माथे ! आप युद्ध की तैयारी के लिए अपनी सैन्य टुकड़ी को तैयार कीजिये हम अपने स्वामी के लिए युद्ध करेंगे और उसमें जान की बाजी लगा देंगे|”
प्रधान जी ने ये सुन कहा- “माजी सा ! वो तो सब ठीक है पर बिना स्वामी के केसी फ़ौज ?
माजी सा बोली- “हम है ना ! अपनी फ़ौज का हम खुद नेतृत्व करेंगे|”
प्रधान ने विस्मय पूर्वक माजी सा की और देखा| यह देख माजी सा बोली-
“क्या आजतक महिलाएं कभी युद्ध में नहीं गयी ? क्या आपने उन महिलाओं की कभी कोई कहानी नहीं सुनी जिन्होंने युद्धों में वीरता दिखाई थी ? क्या इसी खानदान में पत्ताजी की ठकुरानी सा ने अकबर के खिलाफ युद्ध में भाग ले वीरगति नहीं प्राप्त की थी ? मैं भी उसी खानदान की बहु हूँ तो मैं उनका अनुसरण करते हुए युद्ध में क्यों नहीं भाग ले सकती ?
बस फिर क्या था| प्रधान जी ने कोसीथल की सेना को तैयार कर सेना के कूच का नंगारा बजा दिया| माजी सा शरीर पर जिरह बख्तर पहने, सिर पर टोप, हाथ में तलवार और गोद में अपने बालक को बिठा घोड़े पर सवार हो युद्ध में कूच के लिए पड़े|
कोसीथल की फ़ौज के आगे आगे माजी सा जिरह वस्त्र पहने हाथ में भाला लिए कमर पर तलवार लटकाये उदयपुर पहुँच हाजिरी लगवाई कि-“कोसीथल की फ़ौज हाजिर है|
अगले दिन मेवाड़ की फ़ौज ने मराठा फ़ौज पर हमला किया| हरावल (अग्रिम पंक्ति) में चुंडावतों की फ़ौज थी जिसमें माजी सा की सैन्य टुकड़ी भी थी| चुंडावतों के पाटवी सलूम्बर के राव जी थे उन्होंने फ़ौज को हमला करने का आदेश के पहले संबोधित किया- “वीर मर्द राजपूतो ! मर जाना पर पीठ मत दिखाना| हमारी वीरता के बल पर ही हमारे चुंडावत वंश को हरावल में रहने का अधिकार मिला है जिसे हमारे पूर्वजों ने सिर कटवाकर कायम रखा है| हरावल में रहने की जिम्मेदारी हर किसी को नहीं मिल सकती इसलिए आपको पूरी जिम्मेदारी निभानी है मातृभूमि के लिए मरने वाले अमर हो जाते है अत: मरने से किसी को डरने की कोई जरुरत नहीं! अब खेंचो अपने घोड़ों की लगाम और चढ़ा दो मराठा सेना पर|”
माजी सा ने भी अन्य वीरों की तरह एक हाथ से तलवार उठाई और दुसरे हाथ से घोड़े की लगाम खेंच घोड़े को ऐड़ लगादी| युद्ध शुरू हुआ, तलवारें टकराने लगी, खच्च खच्च कर सैनिक कट कट कर गिरने लगे, तोपों, बंदूकों की आवाजें गूंजने लगी| हर हर महादेव केनारों से युद्ध भूमि गूंज उठी| माजी सा भी बड़ी फुर्ती से पूरी तन्मयता के साथ तलवार चला दुश्मन के सैनिकों को काटते हुए उनकी संख्या कम कर रही थी कि तभी किसी दुश्मन ने पीछे से उन पर भाले का एक वार किया जो उनकी पसलियाँ चीरता हुआ निकल गया और तभी माजी सा के हाथ से घोड़े की लगाम छुट गयी और वे नीचे धम्म से नीचे गिर गए| साँझ हुई तो युद्ध बंद हुआ और साथी सैनिकों ने उन्हें अन्य घायल सैनिकों के साथ उठाकर वैध जी के शिविर में इलाज के लिए पहुँचाया| वैध जी घायल माजी सा की मरहम पट्टी करने ही लगे थे कि उनके सिर पर पहने लोहे के टोपे से निकल रहे लंबे केश दिखाई दिए| वैध जी देखते ही समझ गए कि यह तो कोई औरत है| बात राणा जी तक पहुंची-
“घायलों में एक औरत ! पर कौन ? कोई नहीं जानता| पूछने पर अपना नाम व परिचय भी नहीं बता रही|”
सुनकर राणा जी खुद चिकित्सा शिविर में पहुंचे उन्होंने देखा एक औरत जिरह वस्त्र पहने खून से लथपथ पड़ी| पुछा –
“कृपया बिना कुछ छिपाये सच सच बतायें ! आप यदि दुश्मन खेमें से भी होगी तब भी मैं आपका अपनी बहन के समान आदर करूँगा| अत: बिना किसी डर और संकोच के सच सच बतायें|”
घायल माजी सा ने जबाब- “कोसीथल ठाकुर साहब की माँ हूँ अन्नदाता !”
सुनकर राणा जी आश्चर्यचकित हो गए| पुछा- “आप युद्ध में क्यों आ गई?”
“अन्नदाता का हुक्म था कि सभी जागीरदारों को युद्ध में शामिल होना है और जो नहीं होगा उसकी जागीर जब्त करली जाएगी| कोसीथल जागीर का ठाकुर मेरा बेटा अभी मात्र दो वर्ष का है अत: वह अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं सो अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने के लिए मैं युद्ध में शामिल हुई| यदि अपनी फ़ौज के साथ मैं हाजिर नहीं होती तो मेरे बेटे पर देशद्रोह व हरामखोरी का आरोप लगता और उसकी जागीर भी जब्त होती|”
माजी सा के वचन सुनकर राणा जी के मन में उठे करुणा व अपने ऐसे सामंतों पर गर्व के लिए आँखों में आंसू छलक आये| ख़ुशी से गद-गद हो राणा बोले-
“धन्य है आप जैसी मातृशक्ति ! मेवाड़ की आज वर्षों से जो आन बान बची हुई है वह आप जैसी देवियों के प्रताप से ही बची हुई है| आप जैसी देवियों ने ही मेवाड़ का सिर ऊँचा रखा हुआ है| जब तक आप जैसी देवी माताएं इस मेवाड़ भूमि पर रहेगी तब तक कोई माई का लाल मेवाड़ का सिर नहीं झुका सकता| मैं आपकी वीरता, साहस और देशभक्ति को नमन करते हुए इसे इज्जत देने के लिए अपनी और से कुछ पारितोषिक देना चाहता हूँ यदि आपकी इजाजत हो तो, सो अपनी इच्छा बतायें कि आपको ऐसा क्या दिया जाय ? जो आपकी इस वीरता के लायक हो|”
माजी सा सोच में पड़ गयी आखिर मांगे तो भी क्या मांगे|
आखिर वे बोली- “अन्नदाता ! यदि कुछ देना ही है तो कुछ ऐसा दें जिससे मेरे बेटे कहीं बैठे तो सिर ऊँचा कर बैठे|”
राणा जी बोले- “आपको हुंकार की कलंगी बख्सी जाती है जिसे आपका बेटा ही नहीं उसकी पीढियां भी उस कलंगी को पहन अपना सिर ऊँचा कर आपकी वीरता को याद रखेंगे|”
२ रूपये कहाँ गए
बहुतपहलेकभीकिसीनेमुझसेयेसवालपूछाथा.शायदमैंनेउसेउत्तरभीबतायाथापरअबउत्तरयादनहींआरहाशायदआपइसकाउत्तरबतासके.
एकबारतीनआदमीएकदुकानपरछाताखरीदनेगए.दुकानपरमालिकनहींथा,नौकरनेउन्हेंछातादिखायाऔरछातेकादाम६०रूपयेबताया.तीनोआदमीनेअपनीजेबसे२०-२०रूपयेनिकालकेनौकरकोदेदिएऔरछातालेकेचलेगए.थोडीदेरबाददुकानकामालिकआयातोनौकरनेबताया"मालिक,अभीमैंनेवोवालाछाता६०रूपयेमेंबेचदिया".दुकानदारबोला"वोछातातो५०रूपयेकाथा.तुमउन्हेंजाकर१०रूपयेलौटादो".
नौकर१०रूपयेलेकरउन्हेंलौटनेजाताहै ,तोसोचनेलगताहैकी१०रूपये३आदमीमेंकैसेबांटेगा.वोहरएकको२-२रुपयेलौटादेताहैऔर४रुपयेअपनेपासरखलेताहै.
अबनौकरलौटतेसमयहिसाबलगताहैकीसबने२०-२०रूपयेदिएथे,मैंनेउन्हें२-२रूपयेलौटादिएतोएकआदमीकोछातेकादामपड़ा१८रूपये.मतलब१८x३=५४और४रूपयेमेरेपास,५४+४=५८परछातातोमैंने६०रुपयेकाबेचाथाफिर२रुपयेकहागए.
बेचारानौकरयेसोचकरबड़ापरेशानहै,आपबताइए२रूपयेकहाँगए.
Rajasthani
रंग बदळ किरकांटया होग्या,
नीत बदल मन मेला होग्या
,
मिनखीचारो मरतो दीखे, पईसां लारे गेला होग्या।
घर सुं भाग गुरुजी बणग्या, चोर उचक्का चेला होग्या,
चंदो खार कार में घुमे, भगत मोकळा भेळा होग्या।
कम्प्यूटर को आयो जमानो, पढ़ लिख ढ़ोलीघोड़ा होग्या,
पढ़ी-लिखी लुगायां ल्याया काम करण रा फोड़ा होग्या।
जवानी में बूढ़ा होग्या सांस फूलगी घायल होग्या,
घर-घर गाड़ी-घोड़ा होग्या, जेब-जेब मोबाईल होग्या।
छोरयां तो हूंती आई पण आज पराया छोरा होग्या,
राल्यां तो उघड़बा लागी, न्यारा-न्यारा डोरा होग्या।
इतिहासां में गयो घूंघटो, पोडर पुतिया मूंडा होग्या,
झरोखां री जाल्यां टूटी, म्हेल पुराणां टूंढ़ा होग्या।
भारी-भारी बस्ता होग्या, टाबर टींगर हळका होग्या,
मोठ बाजरी ने कुछ पूछे, पतळा-पतळा फलका होग्या।
रूंख भाडकर ठूंठ लेयग्या जंगळ सब मैदान होयग्या,
नाडी नदियां री छाती पर बंगला आलीशान होयग्या।
मायड़भाषा ने भूल गया, अंगरेजी का दास होयग्या,
टांग कका की आवे कोनी ऐमे बी.ए. पास होयग्या।
सत संगत व्यापार होयग्यो, बिकाऊ भगवान होयग्या,
भगवा भेष ब्याज रो धंधो, धरम बेच धनवान होयग्या।
ओल्ड बोल्ड मां बाप होयग्या, सासु सुसरा चौखा होग्या,
सेवा रा सपनां देख्या पण आंख खुली तो धोखा होग्या।
बिना मूँछ रा मरद होयग्या, लुगायां रा राज होयग्या,
दूध बेचकर दारू ल्यावे, बरबादी रा साज होयग्या।
तीजे दिन तलाक होयग्यों, लाडो लाडी न्यारा होग्या,
कांकण डोरां खुलियां पेली परण्या बींद कंवारा होग्या।
बिना रूत रा बेंगण होग्या, सियाळा में आम्बा होग्या,
इंजेक्शन सूं गोळ टमाटर फूल-फूल कर लाम्बा होग्या।
कविता म्हारी फिरे कंवारी तुकबंदी का फेरा होग्या,
दिवलो करे उजास जगत में खुद रे तळे अंधेरा होग्या।
मन मरजी रा भाव होयग्या, पंसेरी रा पाव होयग्या,
महंगाई री मार सोनी, जीणां दोरा आज होयग्या।@@
देश में बच्चे कम और बाबा ज्यादा
देश में बच्चे कम और बाबा ज्यादा पैदा हो रहे है, आश्चर्य की बात जितने बाबा उससे ज्यादा भक्त है । भक्त तो ऐसे पागल है की पूछिये मत, बाबा नहींभगवानहै बाबा ।बाबा अनंत , बाबा की लीला अनंता ।
एक बार एक बाबा जी का ३ दिवसीय प्रवचन एक बड़े शहर के छोटे कस्बे में था ।क़स्बाशहरसे ४०-५० किलोमीटर दूर था । प्रवचन के पहले दिन बाबा का एक भक्त प्रवचन शुरू होने से पहले आया औरबाबा जी के चरणों में १००००१ रूपये की भेंट चढाईऔरबाबाजी से आशीर्वाद ग्रहण किया । बाबा जी ने भक्त से पूछा की वो कहाँ से आया है तो भक्त ने बताया की वो दिल्ली में व्यवसाई है और इस शहर में उसका पैतृक निवास है । उसने बाबा जी को अपने निवास पर भी आमंत्रित किया पर बाबा जी ने मना कर दिया, बोले इस बार संभव नहीं है, वो अगली बार जब आयेगे तो जरुर जायेंगे ।
भक्त ने बाबा जी का प्रवचन प्रथम पंक्ति में बैठ कर सुनने के लिए , आयोजक से२५००० प्रतिदिन के हिसाब से 75000 रुपये देकर , बाबा जी के कागजी ट्रस्ट के नाम रसीद कटवा ली। प्रथम दिन भक्त ने बड़े श्रद्धा -भाव के साथ बाबा जी का प्रवचन सुना, जाते समय भी बाबा जी के चरण छूकर गया और आयोजक से बोला की अगली बारबाबाजी के आने , रहने और पंडाल की वयवस्था उसके तरफ से होगी ।
भक्त एक महंगी गाड़ी से आया हुआ था, साथ में एक अंगरक्षक भी था , अच्छा चढावा भी चढाया था , इन बातों से बाबा जी को लग गया की भक्त एक मोटा असामी है। अगले दिन प्रवचन में भक्त प्रवचन शुरू होने के बाद आया । प्रवचनखत्महोने पर भक्त, बाबा जी से मिला और बताया की महाराज बिजनेस की वजह से दिल्ली जाना पड़ा था लेकिन वहां से काम खत्म कर के वापस आ गया हूँ , अब कल शाम को आपका प्रवचन सुन कर ही वापस जाऊंगा , आपको गुरु बनाते ही मेरे कष्ट दूर होने लगे है , एक डूबा हुआ धन वापस आ गया है , आयोजक लोगों से कह दीजिये कीजितना खर्च हो रहा है , उसका आधा पैसा मैं दूंगा।बाबा खुश थे ऐसा भक्त पाकर.
अंतिम दिन प्रवचन में बहुत भीड़ हुई , लोगो नेबहुत नकद चढावा चढाया। लाखों रुपये तीन दिन के भीतर बाबा जी के पास नकद आ गए थे । बाबा जी को रात को शहर से राजधानी पकड़ कर अपने आश्रम वापस जाना था । बाबा जी ने अपने भक्त को बुलया और कहा की यदि उन्हें दिक्कत न हो तो वे उनकेसाथस्टेशनचले,नकद ज्यादा है शहर ५० किलोमीटर दूर है और रास्ता भी ठीक नहीं है ,अगर २ -३ गाड़ी एक साथ चलेगी तो कोई दिक्कत नहीं होगी ।
भक्त ने आग्रह किया कीबाबा जी आप मेरे साथ मेरी गाड़ी में बैठ कर चलिए, रास्ते में मैं आप से बोध -ज्ञान लेता चलूँगा । बाबा मान गए ।बाबा ,भक्त ,अंगरक्षक और ड्राइवर एक गाड़ी मेंऔर बाकि बाबा के चेले अन्य गाड़ियों में बैठ के रवाना हुए । भक्त का ड्राईवर बहुत तेज गाड़ी चला रहा था , जब पीछे लोग दिखाई देना बंद हो गए तो ड्राईवर नेगाड़ी सड़क से निचे उतार कर सुनसान जगह में लगा दी। बाबा को पता भी नहीं चला , वो तोभक्त को ज्ञान दे रहे थे, भक्त ने बाबा जी के रिवाल्वर लगा दी, बोलाबाबा चुप -चाप उतरोगे या गोली चलानी पड़ेगी। बाबा अवाक् , सारा पैसा बाबा जी ने भक्त की गाड़ी में रखवाया था और भात उन्हें गाड़ी से उतार रहा है मतलब ये भक्त नहीं ये तो लुटेरा है ।बाबाजी चुप -चाप गाड़ी से उतर गएऔर उनका भक्त पैसे लेकर गायब हो गया ।थोडीदेर में जब बाबा जी के चेले अपनी गाड़ी से रास्ते से गुजरे तो देखाबाबाजीपागलो की तरह सड़क पर टहल रहे है, उन्होंने गाड़ी रोकी और जबबाबाजी से पता चला की वो भक्त नहीं एक ठग था , तो सबके होश उड़ गए । बहुत खोजने पर भी वो भक्त (ठग), बाबा जी को नहीं मिला।पुलिसके पास जा नहीं सकते थे , किसी से बता नहीं सकते थे , क्योकि जो धन मिला था उसका हिसाब सरकार को नहीं पता चलना चाहिए था (टैक्स जो नहीं देते )।
भक्त उर्फ़ नटवरलाल बाबा को कई लाख का चूना लगा गया था ।न माया मिली न राम , बाबा गए खाली हाथ।
अक्षय तृतीया
। पौराणिक कथा और ग्रंथों की मानें तो इस दिन आप जो भी शुभ कार्य करते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। नया चांद आने के तीसरे दिन यह दिन आता है, इसलिए इसे तृतीया कहते हैं। इसी कारण इस खास दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो अक्षय तृतीया नि:स्वार्थ भाव से जरूरतमंदों को दान करने का महापर्व है। हिंदू कैलेंडर में अक्षय तृतीया को एक शुभ दिन के तौर पर गिना जाता है। इस दिन सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एकजुट होकर चलते हैं, जो हर तरह के काम के लिए शुभ मुहूर्त माना जाता है। यही वजह है कि लोग इस दिन को किसी नए सामान की खरीदारी और इन्वेस्टमेंट के लिए अच्छा मानते हैं। खरीदने के साथ ही कोई चीज दान करना भी इस दिन पुण्य बटोरने व समृद्धि लाने का प्रतीक माना जाता है। इसे आखा तीज भी कहते हैं। इस दिन घर में हवन पूजा और पितरों को श्राद्ध देना भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
कहते हैं इस दिन त्रेता युग की शुरुआत हुई थी। अमूमन परशुराम का जन्मदिन भी इसी दिन आता है। इस दिन सभी विवाहित और अविवाहित लड़कियां पूजा में भाग लेती हैं। इस दिन लोग भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। कई लोग इस दिन महालक्ष्मी मंदिर जाकर सभी दिशाओं में सिक्के उछालते हैं। सभी दिशाओं में सिक्के उछालने का कारण यह माना जाता है कि इससे सभी दिशाओं से धन की प्राप्ति होती है।
कहा जाता है कि इस खास दिन पर आप जितना दान-पुण्य करते हैं, आपको उससे कई गुना ज्यादा आपको रिटर्न मिलता है। परंपरा के अनुसार, अपने धन को बढ़ाने का यह एक शुभ दिन है और इसी बात में यकीन करते हुए सोना खरीदने का प्रचलन शुरू हो गया, वरना शास्त्रों में इस दिन सोना खरीदने का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
एक पुरातन कथा तो यह भी है कि आज के ही दिन भगवान शिव से कुबेर को धन मिला था और इसी खास दिन भगवान शिव ने माता लक्ष्मी का धन की देवी का आशीर्वाद भी दिया था। आइए जानें, इस खास अवसर पर हमें किस तरह के शुभ कार्यों को अंजाम देना चाहिए, जो हमारे लिए शुभ फलदायक साबित होगा।
इस खास दिन पर गरीब और भूखे को खाना जरूर खिलाना चाहिए और उन्हें उनकी जरूरत के हिसाब से दान भी देना चाहिए। इस दिन दान-पुण्य करने से क्या-क्या फायदे हैं जानिए यहां-
1.इस दिन दान करना आपको मृत्यु के भय से काफी दूर रखता है।
2.कहते हैं इस दिन गरीब बच्चों को दूध, दही, मक्खन, छेना, पनीर आदि का दान करते हैं तो मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
3.अक्षय तृतीया के दिन विशेषकर जौ, तिल और का चावल का दान महत्वपूर्ण माना जाता है।
4.गंगा स्नान के बाद सत्तू खाने तथा जौ और सत्तू दान करने से आप अपने बुरे कर्मों के पाप से मुक्त होते हैं।
5.गरीबों को चावल, आटा, नमक, घी, मिष्ठान्न आदि देना आप पर आने वाले संकट को दूर करता है।
➖ बेटी v/s बहू ➖ ➖➖➖➖➖➖ ✅
➖ बेटी v/s बहू ➖
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✅ बेटी ससुराल में खुश
होती है तो खुशी होती हैऔर
☑बहू ससुराल में खुश है....तो खराब लगता है
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✅ दामाद बेटी की मदद करे...तो अच्छा लगता हैऔर
☑बेटा बहू की मदद करे
तो जोरू का गुलाम कहा
जाए
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✅बेटी जींस पहने तो खुश होते है कि मार्डन फेमिली है
और
☑बहू जींस पहने तो
...उसे बेशर्म कहते है
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✅बेटी को ससुराल में
अकेले काम करना पड़े तो खराब लगता है कि मेरी बेटी थक जायेगी
और
☑बहू सारा दिन अकेले
काम करे....फिर भी बहू
काम-चोर कहलाये
➖➖➖➖➖➖
✅ बेटी की सास और
ननद काम...ना करे तो
गुस्सा आता है
♦और
☑ जब अपने घर में वो
बहू की मदद ना करे तो
वो सही लगता है
➖➖➖➖➖➖
✅बेटी की ससुराल
वाले ताना...मारे तो
गुस्सा आता है
♦और
☑खुद बहू के मायके वालों को....ताना मारे
तो सही लगता है
➖➖➖➖➖➖
✅ बेटी.....को रानी
बनाकर रखने वाली
ससुराल चाहिए
♦और
☑ खुद को...बहू
कामवाली चाहिए
➖➖➖➖➖➖
👉 लोग यह क्यूं भूल
जाते है कि बहू भी किसी
की बेटी है
👉 वो भी तो अपने
माता-पिता भाई-बहन
शहर-सहेली आदि को
छोड़कर..आपके साथ
नये जीवन की
शुरूवात करने आई है
◆जो भी सास-ससुर◆
यह..msg...पढ़ रहे है
वे कोशिश करें कि बहू
और बेटी में कभी फर्क
⭕ ना माने ⭕
तभी यह दुनिया बदलेगी समाज बदलेगा.......और
....आपकी बेटियां भी....
ससुराल में आनंद से
रहेगीं
🙏 इस मेसेज को 🙏 🙏अपनो को भी भेजे🙏
अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया (अखातीज) को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है। जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं। कहते हैं कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भी विशेष अनुष्ठान होता है जिससे अक्षय पुण्य मिलता है।
इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इस दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। समस्त शुभ कार्यों के अलावा प्रमुख रूप से शादी, स्वर्ण खरीदने, नया सामान, गृह प्रवेश, पदभार ग्रहण, वाहन क्रय, भूमि पूजन तथा नया व्यापार प्रारंभ कर सकते हैं।
* भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था।
* भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए।
* तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं।
* वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं।
* वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान अक्षय तृतीया का है। य
अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीयाया आखा तीज वैशाखमास में शुक्ल पक्षकी तृतीयातिथि को कहते हैं। पौराणिकग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। [1]इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। [2]वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीयाशुभ होती है, किंतु वैशाखमाह की तिथिस्वयंसिद्ध मुहूर्तोमें मानी गई है। भविष्य पुराणके अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुगऔर त्रेता युगका प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। [3]भगवान विष्णुने नर-नारायण, हयग्रीवऔर परशुरामजी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। [4] [5] ब्रह्माजीके पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। [2]इस दिन श्री बद्रीनाथजी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायणके दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावनस्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिरमें भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। [5] [6]जी.एम. हिंगे के अनुसार तृतीया ४१ घटी २१ पल होती है तथा धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया ६ घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराणके अनुसा इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए। [1]इसी दिन महाभारतका युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युगका समापन भी इसी दिन हुआ था। [2]ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार:
“अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥„
[5]
महत्व
अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांगदेखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। [6]नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणोंमें लिखा है कि इस दिन [पितृ पक्ष|[पितरों]] को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगास्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवारतथा रोहिणी नक्षत्रके दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। [4]इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीयामध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोषकाल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।
मंगलवार, 14 अप्रैल 2015
मनुष्य जितना पाता है, उतना ही दरिद्र होता जाता है।
एक राजमहल के द्वार पर बड़ी भीड़ लगी थी। किसी फकीर ने सम्राट से भिक्षा मांगी थी। सम्राट ने उससे कहा, जो भी चाहते हो, मांग लो। दिवस के प्रथम याचक की कोई भी इच्छा पूरी करने का उसका नियम था। उस फकीर ने अपने छोटे से भिक्षापात्र को आगे बढ़ाया और कहा, बस इसे स्वर्ण मुद्राओं से भर दें।
सम्राट ने सोचा इससे सरल बात और क्या हो सकती है! लेकिन जब उस भिक्षा पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली गई, तो ज्ञात हुआ कि उसे भरना असंभव था। वह तो जादुई था।
जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई, वह उतना ही अधिक खाली होता गया! सम्राट को दुखी देख वह फकीर बोला, न भर सकें तो वैसा कह दें। मैं खाली पात्र को ही लेकर चला जाऊंगा! ज्यादा से ज्यादा इतना ही होगा कि लोग कहेंगे कि सम्राट अपना वचन पूरा नहीं कर सके !
सम्राट ने अपना सारा खजाना खाली कर दिया, उसके पास जो कुछ भी था, सभी उस पात्र में डाल दिया गया, लेकिन अद्भुत पात्र न भरा, सो न भरा। तब उस सम्राट ने पूछा, भिक्षु, तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। उसे भरना मेरी सामर्थ्य से बाहर है।
क्या मैं पूछ सकता हूं कि इस अद्भुत पात्र का रहस्य क्या है? वह फकीर हंसने लगा और बोला, कोई विशेष रहस्य नहीं। यह पात्र मनुष्य के हृदय से बनाया गया है।
क्या आपको ज्ञात नहीं है कि 【मनुष्य का हृदय कभी भी भरा नहीं जा सकता? धन से, पद से, ज्ञान से- किसी से भी भरो, वह खाली ही रहेगा, क्योंकि इन चीजों से भरने के लिए वह बना ही नहीं है। इस सत्य को न जानने के कारण ही मनुष्य जितना पाता है, उतना ही दरिद्र होता जाता है। हृदय की इच्छाएं कुछ भी पाकर शांत नहीं होती हैं। क्यों? क्योंकि, हृदय तो परमात्मा को पाने के लिए बना है
सिनली मे
एक बार एक चौधरी अपने लड़के के लिये लड़की देखने गया
लड़की कुछ ज्यादा ही काली थी जैसे की उल्टा तवा, चौधरी को बिलकुल पसंद नहीं आई
लड़की का बाप बोला- चौधरी साहब लड़की पसंद कर जाओ, कार दे देंगे दहेज़ में
चौधरी बोला - भाई तू तो कार दे देगा, अगर ये काला जामुन हमारे घर आ गया तो अगली पीढ़ी में हमें हमारी लड़की ब्याहने के लिए हेलीकॉप्टर देना पड़ेगा
बिटिया मेरे देश की
बिटिया मेरे देश की जैसे फूल गुलाब
काँटो पर हँसती रहे खोय न अपनी आब
बगिया ज्यों बिन फूल के बिना नीर ज्यों ताल
बिटिया तेरे बिन हुआ ऐसा घर का हाल
नैन भरे हैं नीर से उमगी गहरी पीर
बिटिया तेरी याद ने दिया कलेजा चीर
वह गुड़िया वह पालना वह भोली मुस्कान
मन की गठरी में बँधी तेरी हर पहचान
सूर्य किरण सा हो गया हर बिटिया का हाल
पीहर में प्रातः खिली, साँझ ढली ससुराल
चूल्हे चौके तक नहीं सीमित यह संसार
बंधन अपने तोड़ कर उड़जा पंख पसार
डोरी उसकी बाँध के देदी जिसके हाथ
बिटिया भोली गाय-सी चल दी उसके साथ
गणित दुई की एक-सी पीहर या ससुराल
बिटिया हल करती रही दोनों जगह सवाल
बिटिया ऐसी गंध हैं महके सालों-साल
पीहर महकी आज तो कल महकी ससुराल
सारे जग का सुख मिले खुशी मिले भरपूर
बिटिया तेरे द्वार से गम हो कोसों दूर
सारे दिन की वेदना, हर दुःख क्लेश थकान
हर लेती है साँझ को, बिटिया की मुस्कान
नीत बदल मन मेला होग्या
रंग बदळ किरकांटया होग्या,
नीत बदल मन मेला होग्या
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मिनखीचारो मरतो दीखे, पईसां लारे गेला होग्या।
घर सुं भाग गुरुजी बणग्या, चोर उचक्का चेला होग्या,
चंदो खार कार में घुमे, भगत मोकळा भेळा होग्या।
कम्प्यूटर को आयो जमानो, पढ़ लिख ढ़ोलीघोड़ा होग्या,
पढ़ी-लिखी लुगायां ल्याया काम करण रा फोड़ा होग्या।
जवानी में बूढ़ा होग्या सांस फूलगी घायल होग्या,
घर-घर गाड़ी-घोड़ा होग्या, जेब-जेब मोबाईल होग्या।
छोरयां तो हूंती आई पण आज पराया छोरा होग्या,
राल्यां तो उघड़बा लागी, न्यारा-न्यारा डोरा होग्या।
इतिहासां में गयो घूंघटो, पोडर पुतिया मूंडा होग्या,
झरोखां री जाल्यां टूटी, म्हेल पुराणां टूंढ़ा होग्या।
भारी-भारी बस्ता होग्या, टाबर टींगर हळका होग्या,
मोठ बाजरी ने कुछ पूछे, पतळा-पतळा फलका होग्या।
रूंख भाडकर ठूंठ लेयग्या जंगळ सब मैदान होयग्या,
नाडी नदियां री छाती पर बंगला आलीशान होयग्या।
मायड़भाषा ने भूल गया, अंगरेजी का दास होयग्या,
टांग कका की आवे कोनी ऐमे बी.ए. पास होयग्या।
सत संगत व्यापार होयग्यो, बिकाऊ भगवान होयग्या,
भगवा भेष ब्याज रो धंधो, धरम बेच धनवान होयग्या।
ओल्ड बोल्ड मां बाप होयग्या, सासु सुसरा चौखा होग्या,
सेवा रा सपनां देख्या पण आंख खुली तो धोखा होग्या।
बिना मूँछ रा मरद होयग्या, लुगायां रा राज होयग्या,
दूध बेचकर दारू ल्यावे, बरबादी रा साज होयग्या।
तीजे दिन तलाक होयग्यों, लाडो लाडी न्यारा होग्या,
कांकण डोरां खुलियां पेली परण्या बींद कंवारा होग्या।
बिना रूत रा बेंगण होग्या, सियाळा में आम्बा होग्या,
इंजेक्शन सूं गोळ टमाटर फूल-फूल कर लाम्बा होग्या।
कविता म्हारी फिरे कंवारी तुकबंदी का फेरा होग्या,
दिवलो करे उजास जगत में खुद रे तळे अंधेरा होग्या।
मन मरजी रा भाव होयग्या, पंसेरी रा पाव होयग्या,
महंगाई री मार सोनी, जीणां दोरा आज होयग्या।@@
स्वयं को बदलो
स्वयं को बदलो
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संसार बदलता है, फिर भी बदलता नहीं। संसार की मुसीबतें तो बनी ही रहती हैं। वहां तो तूफान और आंधी चलते ही रहेंगे। अगर किसी ने ऐसा सोचा कि जब संसार बदल जाएगा तब मैं बदलूंगा, तो समझो कि उसने न बदलने की कसम खा ली। तो समझो कि उसकी बदलाहट कभी हो न सकेगी। उसने फिर तय ही कर लिया कि बदलना नहीं है, और बहाना खोज लिया।
संसार के बदलने की प्रतीक्षा मत करना। अन्यथा तुम बैठे रहोगे प्रतीक्षा करते, अंधेरे में ही जीयोगे, अंधेरे में ही मरोगे। और संसार तो सदा है। तुम अभी हो, कल विदा हो जाओगे।
इसलिए एक बात खयाल में रख लेनी है, बदलना है स्वयं को। और कितने ही तूफान हों, कितनी ही आंधियां हों, भीतर एक ऐसा दीया है कि उसकी शमा जलाई जा सकती है। और कितना ही अंधकार हो बाहर, भीतर एक मंदिर है जो रोशन हो सकता है।
बन्द मुठी लाक री खुली मुठी राख री
उदयपुर के महलों में राणा जी ने आपात सभा बुला रखी थी| सभा में बैठे हर सरदार के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ नजर आ रही थी, आँखों में गहरे भाव नजर आ रहे थे सबके हाव भाव देखकर ही लग रहा था कि किसी तगड़े दुश्मन के साथ युद्ध की रणनीति पर गंभीर विचार विमर्श हो रहा है| सभा में प्रधान की और देखते हुए राणा जी ने गंभीर होते हुए कहा-
“इन मराठों ने तो आये दिन हमला कर सिर दर्द कर रखा है|”
“सिर दर्द क्या रखा है ? अन्नदाता ! इन मराठों ने तो पूरा मेवाड़ राज्य ही तबाह कर रखा है, गांवों को लूटना और उसके बाद आग लगा देने के अलावा तो ये मराठे कुछ जानते ही नहीं !” पास ही बैठे एक सरदार ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा|
“इन मराठों जैसी दुष्टता और धृष्टता तो बादशाही हमलों के समय मुसलमान भी नहीं करते थे| पर इन मराठों का उत्पात तो मानवता की सारी हदें ही पार कर रहा है| मुसलमान ढंग से लड़ते थे तो उनसे युद्ध करने में भी मजा आता था पर ये मराठे तो लूटपाट और आगजनी कर भाग खड़े होते है|” एक और सरदार ने पहले सरदार की बात को आगे बढाया|
सभा में इसी तरह की बातें सुन राणा जी और गंभीर हो गए, उनकी गंभीरता उनके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रही थी|
मराठों की सेना मेवाड़ पर हमला कर लूटपाट व आगजनी करते हुए आगे बढ़ रही थी मेवाड़ की जनता उनके उत्पात से बहुत आतंकित थी| उन्हीं से मुकाबला करने के लिए आज देर रात तक राणा जी मुकाबला करने के लिए रणनीति बना रहे थे और मराठों के खिलाफ युद्ध की तैयारी में जुटे थे| अपने ख़ास ख़ास सरदारों को बुलाकर उन्हें जिम्मेदारियां समझा रहे थे| तभी प्रधान जी ने पूरी परिस्थिति पर गौर करते हुए कहा-
“खजाना रुपयों से खाली है| मराठों के आतंक से प्रजा आतंकित है| मराठों की लूटपाट व आगजनी के चलते गांव के गांव खाली हो गए और प्रजा पलायन करने में लगी है| राजपूत भी अब पहले जैसे रहे नहीं जो इन उत्पातियों को पलक झपकते मार भगा दे और ऐसे दुष्टों के हमले झेल सके|”
प्रधान के मुंह से ऐसी बात सुन पास ही बैठे एक राजपूत सरदार ने आवेश में आकर बोला –“पहले जैसे राजपूत अब क्यों नहीं है ? कभी किसी संकट में पीछे हटे है तो बताएं ? आजतक हम तो गाजर मुली की तरह सिर कटवाते आये है और आप कह रहें है कि पहले जैसे राजपूत नहीं रहे ! पिछले दो सौ वर्षों से लगातार मेवाड़ पर हमले हो रहे है पहले मुसलमानों के और अब इन मराठों के| रात दिन सतत चलने वाले युद्धों में भाग लेते लेते राजपूतों के घरों की हालत क्या हो गयी है ? कभी देखा है आपने ! कभी राजपूतों के गांवों में जाकर देखो एक एक घर में दस दस शहीदों की विधवाएं बैठी मिलेंगी| फिर भी राजपूत तो अब भी सिर कटवाने के लिए तैयार है| बस एक हुक्म चाहिए राणा जी का! मराठा तो क्या खुद यमराज भी आ जायेंगे तब भी मेवाड़ के राजपूत पीठ नहीं दिखायेंगे|”
ये सुन राणा बोले- “राज पाने व बचाने के लिए गाजर मुली की तरह सिर कटवाने ही पड़ते है, इसीलिए तो कहा जाता है कि राज्य का स्वामी बनना आसान नहीं| स्वराज्य बलिदान मांगता है और हम राजपूतों ने अपने बलिदान के बूते ही यह राज हासिल किया है| धरती उसी की होती है जो इसे खून से सींचने के लिए तैयार रहे| हमारे पूर्वजों ने मेवाड़ भूमि को अपने खून से सींचा है| इसकी स्वतंत्रता के लिए जंगल जंगल ठोकरे खायी है| मातृभूमि की रक्षा के लिए घास की रोटियां खाई है, और अब ये लुटरे इसकी अस्मत लुटने आ गए तो क्या हम आसानी से इसे लुट जाने दे ? अपने पूर्वजों के बलिदान को यूँ ही जाया करें? इसलिए बैठकर बहस करना छोड़े और मराठों को माकूल जबाब देने की तैयारी करें|”
राणा की बात सुनकर सभा में चारों और चुप्पी छा गयी| सबकी नजरों के आगे सामने आई युद्ध की विपत्ति का दृश्य घूम रहा था| मराठों से मुकाबले के लिए इतनी तोपें कहाँ से आएगी? खजाना खाली है फिर सेना के लिए खर्च का बंदोबस्त कैसे होगा? सेना कैसे संगठित की जाय? सेना का सेनापति कौन होगा? साथ ही इन्हीं बिन्दुओं पर चर्चा भी होने लगी|
आखिर चर्चा पूरी होने के बाद राणा जी ने अपने सभी सरदारों व जागीरदारों के नाम एक पत्र लिख कर उसकी प्रतियाँ अलग-अलग घुड़सवारों को देकर तुरंत दौड़ाने का आदेश दिया|
पत्र में लिखा था-“मेवाड़ राज्य पर उत्पाती मराठों ने आक्रमण किया है उनका मुकाबला करने व उन्हें मार भगाने के लिए सभी सरदार व जागीरदार यह पत्र पहुँचते ही अपने सभी सैनिकों व अस्त्र-शस्त्रों के साथ मेवाड़ की फ़ौज में शामिल होने के लिए बिना कोई देरी किये जल्द से जल्द हाजिर हों|”
पत्र में राणा जी के दस्तखत के पास ही राणा द्वारा लिखा था- “जो जागीरदार इस संकट की घडी में हाजिर नहीं होगा उसकी जागीर जब्त कर ली जाएगी| इस मामले में किसी भी तरह की कोई रियायत नहीं दी जाएगी और इस हुक्म की तामिल ना करना देशद्रोह व हरामखोरी माना जायेगा|”
राणा का एक सवार राणा का पत्र लेकर मेवाड़ की एक जागीर कोसीथल पहुंचा और जागीर के प्रधान के हाथ में पत्र दिया| प्रधान ने पत्र पढ़ा तो उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गयी| कोसीथल चुंडावत राजपूतों के वंश की एक छोटीसी जागीर थी और उस वक्त सबसे बुरी बात यह थी कि उस वक्त उस जागीर का वारिस एक छोटा बच्चा था| कोई दो वर्ष पहले ही उस जागीर के जागीरदार ठाकुर एक युद्ध में शहीद हो गए थे और उनका छोटा सा इकलौता बेटा उस वक्त जागीर की गद्दी पर था| इसलिए जागीर के प्रधान की हवाइयां उड़ रही थी| राणा जी का बुलावा आया है और गद्दी पर एक बालक है वो कैसे युद्ध में जायेगा? प्रधान के आगे एक बहुत बड़ा संकट आ गया| सोचने लगा-“क्या इन मराठों को भी अभी हमला करना था| कहीं ईश्वर उनकी परीक्षा तो नहीं ले रहा?”
प्रधान राणा का सन्देश लेकर जनाना महल के द्वार पर पहुंचा और दासी की मार्फ़त माजी साहब (जागीरदार बच्चे की विधवा माँ) को आपात मुलाकात करने की अर्ज की|
दासी के मुंह से प्रधान द्वारा आपात मुलाकात की बात सुनते ही माजी साहब के दिल की धडकनें बढ़ गयी-“पता नहीं अचानक कोई मुसीबत तो नहीं आ गयी?”
खैर.. माजी साहब ने तुरंत प्रधान को बुलाया और परदे के पीछे खड़े होकर प्रधान का अभिवादन स्वीकार करते हुए पत्र प्राप्त किया| पत्र पढ़ते ही माजी साहब के मुंह से सिर्फ एक छोटा सा वाक्य ही निकला-“हे ईश्वर ! अब क्या होगा?” और वे प्रधान से बोली-“अब क्या करें ? आप ही कोई सलाह दे! जागीर के ठाकुर साहब तो आज सिर्फ दो ही वर्ष के बच्चे है उन्हें राणा जी की चाकरी में युद्ध के लिए कैसे ले जाया जाय ?
तभी माजी के बेटे ने आकर माजी साहब की अंगुली पकड़ी| माजी ने बेटे का मासूम चेहरा देखा तो उनके हृदय ममता से भर गया| मासूम बेटे की नजर से नजर मिलते ही माजी के हृदय में उसके लिए उसकी जागीर के लिए दुःख उमड़ पड़ा| राणा जी द्वारा पत्र में लिखे आखिरी वाक्य माजी साहब के नजरों के आगे घुमने लगे-“हुक्म की तामिल नहीं की गयी तो जागीर जब्त कर ली जाएगी| देशद्रोह व हरामखोरी समझा जायेगा आदि आदि|”
पत्र के आखिरी वाक्यों ने माजी सा के मन में ढेरों विचारों का सैलाब उठा दिया-“जागीर जब्त हो जाएगी ! देशद्रोह व हरामखोरी समझा जायेगा! मेरा बेटा अपने पूर्वजों के राज्य से बाहर बेदखल हो जायेगा और ऐसा हुआ तो उनकी समाज में कौन इज्जत करेगा? पर उसका आज बाप जिन्दा नहीं है तो क्या हुआ ? मैं माँ तो जिन्दा हूँ! यदि मेरे जीते जी मेरे बेटे का अधिकार छिना जाए तो मेरा जीना बेकार है ऐसे जीवन पर धिक्कार| और फिर मैं ऐसी तो नहीं जो अपने पूर्वजों के वंश पर कायरता का दाग लगने दूँ, उस वंश पर जिसनें कई पीढ़ियों से बलिदान देकर इस भूमि को पाया है मैं उनकी इस बलिदानी भूमि को ऐसे आसानी से कैसे जाने दूँ ?
ऐसे विचार करते हुए माजी सा की आँखों वे दृश्य घुमने लगे जो युद्ध में नहीं जाने के बाद हो सकते थे- “कि उनका जवान बेटा एक और खड़ा है और उसके सगे-संबंधी और गांव वाले बातें कर रहें है कि इन्हें देखिये ये युद्ध में नहीं गए थे तो राणा जी ने इनकी जागीर जब्त कर ली थी| वैसे इन चुंडावतों को अपनी बहादुरी और वीरता पर बड़ा नाज है हरावल में भी यही रहते है|” और ऐसे व्यंग्य शब्द सुन उनका बेटा नजरें झुकाये दांत पीस कर जाता है| ऐसे ही दृश्यों के बारे में सोचते सोचते माजी सा का सिर चकराने लगा वे सोचने लगे यदि ऐसा हुआ तो बेटा बड़ा होकर मुझ माँ को भी धिक्कारेगा|
ऐसे विचारों के बीच ही माजी सा को अपने पिता के मुंह से सुनी उन राजपूत वीरांगनाओं की कहानियां याद आ गयी जिन्होंने युद्ध में तलवार हाथ में ले घोड़े पर सवार हो दुश्मन सेना को गाजर मुली की तरह काटते हुए खलबली मचा अपनी वीरता का परिचय दिया था| दुसरे उदाहरण क्यों उनके ही खानदान में पत्ताजी चुंडावत की ठकुरानी उन्हें याद आ गयी जिसनें अकबर की सेना से युद्ध किया और अकबर की सेना पर गोलियों की बौछार कर दी थी| जब इसी खानदान की वह ठकुरानी युद्ध में जा सकती थी तो मैं क्यों नहीं ? क्या मैं वीर नहीं ? क्या मैंने भी एक राजपूतानी का दूध नहीं पिया ? बेटा नाबालिग है तो क्या हुआ ? मैं तो हूँ ! मैं खुद अपनी सैन्य टुकड़ी का युद्ध में नेतृत्व करुँगी और जब तक शरीर में जान है दुश्मन से टक्कर लुंगी| और ऐसे वीरता से भरे विचार आते ही माजी सा का मन स्थिर हो गया उनकी आँखों में चमक आ गयी, चेहरे पर तेज झलकने लगा और उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ प्रधान जी को हुक्म दिया कि-
“राणा जी हुक्म सिर माथे ! आप युद्ध की तैयारी के लिए अपनी सैन्य टुकड़ी को तैयार कीजिये हम अपने स्वामी के लिए युद्ध करेंगे और उसमें जान की बाजी लगा देंगे|”
प्रधान जी ने ये सुन कहा- “माजी सा ! वो तो सब ठीक है पर बिना स्वामी के केसी फ़ौज ?
माजी सा बोली- “हम है ना ! अपनी फ़ौज का हम खुद नेतृत्व करेंगे|”
प्रधान ने विस्मय पूर्वक माजी सा की और देखा| यह देख माजी सा बोली-
“क्या आजतक महिलाएं कभी युद्ध में नहीं गयी ? क्या आपने उन महिलाओं की कभी कोई कहानी नहीं सुनी जिन्होंने युद्धों में वीरता दिखाई थी ? क्या इसी खानदान में पत्ताजी की ठकुरानी सा ने अकबर के खिलाफ युद्ध में भाग ले वीरगति नहीं प्राप्त की थी ? मैं भी उसी खानदान की बहु हूँ तो मैं उनका अनुसरण करते हुए युद्ध में क्यों नहीं भाग ले सकती ?
बस फिर क्या था| प्रधान जी ने कोसीथल की सेना को तैयार कर सेना के कूच का नंगारा बजा दिया| माजी सा शरीर पर जिरह बख्तर पहने, सिर पर टोप, हाथ में तलवार और गोद में अपने बालक को बिठा घोड़े पर सवार हो युद्ध में कूच के लिए पड़े|
कोसीथल की फ़ौज के आगे आगे माजी सा जिरह वस्त्र पहने हाथ में भाला लिए कमर पर तलवार लटकाये उदयपुर पहुँच हाजिरी लगवाई कि-“कोसीथल की फ़ौज हाजिर है|
अगले दिन मेवाड़ की फ़ौज ने मराठा फ़ौज पर हमला किया| हरावल (अग्रिम पंक्ति) में चुंडावतों की फ़ौज थी जिसमें माजी सा की सैन्य टुकड़ी भी थी| चुंडावतों के पाटवी सलूम्बर के राव जी थे उन्होंने फ़ौज को हमला करने का आदेश के पहले संबोधित किया- “वीर मर्द राजपूतो ! मर जाना पर पीठ मत दिखाना| हमारी वीरता के बल पर ही हमारे चुंडावत वंश को हरावल में रहने का अधिकार मिला है जिसे हमारे पूर्वजों ने सिर कटवाकर कायम रखा है| हरावल में रहने की जिम्मेदारी हर किसी को नहीं मिल सकती इसलिए आपको पूरी जिम्मेदारी निभानी है मातृभूमि के लिए मरने वाले अमर हो जाते है अत: मरने से किसी को डरने की कोई जरुरत नहीं! अब खेंचो अपने घोड़ों की लगाम और चढ़ा दो मराठा सेना पर|”
माजी सा ने भी अन्य वीरों की तरह एक हाथ से तलवार उठाई और दुसरे हाथ से घोड़े की लगाम खेंच घोड़े को ऐड़ लगादी| युद्ध शुरू हुआ, तलवारें टकराने लगी, खच्च खच्च कर सैनिक कट कट कर गिरने लगे, तोपों, बंदूकों की आवाजें गूंजने लगी| हर हर महादेव केनारों से युद्ध भूमि गूंज उठी| माजी सा भी बड़ी फुर्ती से पूरी तन्मयता के साथ तलवार चला दुश्मन के सैनिकों को काटते हुए उनकी संख्या कम कर रही थी कि तभी किसी दुश्मन ने पीछे से उन पर भाले का एक वार किया जो उनकी पसलियाँ चीरता हुआ निकल गया और तभी माजी सा के हाथ से घोड़े की लगाम छुट गयी और वे नीचे धम्म से नीचे गिर गए| साँझ हुई तो युद्ध बंद हुआ और साथी सैनिकों ने उन्हें अन्य घायल सैनिकों के साथ उठाकर वैध जी के शिविर में इलाज के लिए पहुँचाया| वैध जी घायल माजी सा की मरहम पट्टी करने ही लगे थे कि उनके सिर पर पहने लोहे के टोपे से निकल रहे लंबे केश दिखाई दिए| वैध जी देखते ही समझ गए कि यह तो कोई औरत है| बात राणा जी तक पहुंची-
“घायलों में एक औरत ! पर कौन ? कोई नहीं जानता| पूछने पर अपना नाम व परिचय भी नहीं बता रही|”
सुनकर राणा जी खुद चिकित्सा शिविर में पहुंचे उन्होंने देखा एक औरत जिरह वस्त्र पहने खून से लथपथ पड़ी| पुछा –
“कृपया बिना कुछ छिपाये सच सच बतायें ! आप यदि दुश्मन खेमें से भी होगी तब भी मैं आपका अपनी बहन के समान आदर करूँगा| अत: बिना किसी डर और संकोच के सच सच बतायें|”
घायल माजी सा ने जबाब- “कोसीथल ठाकुर साहब की माँ हूँ अन्नदाता !”
सुनकर राणा जी आश्चर्यचकित हो गए| पुछा- “आप युद्ध में क्यों आ गई?”
“अन्नदाता का हुक्म था कि सभी जागीरदारों को युद्ध में शामिल होना है और जो नहीं होगा उसकी जागीर जब्त करली जाएगी| कोसीथल जागीर का ठाकुर मेरा बेटा अभी मात्र दो वर्ष का है अत: वह अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं सो अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने के लिए मैं युद्ध में शामिल हुई| यदि अपनी फ़ौज के साथ मैं हाजिर नहीं होती तो मेरे बेटे पर देशद्रोह व हरामखोरी का आरोप लगता और उसकी जागीर भी जब्त होती|”
माजी सा के वचन सुनकर राणा जी के मन में उठे करुणा व अपने ऐसे सामंतों पर गर्व के लिए आँखों में आंसू छलक आये| ख़ुशी से गद-गद हो राणा बोले-
“धन्य है आप जैसी मातृशक्ति ! मेवाड़ की आज वर्षों से जो आन बान बची हुई है वह आप जैसी देवियों के प्रताप से ही बची हुई है| आप जैसी देवियों ने ही मेवाड़ का सिर ऊँचा रखा हुआ है| जब तक आप जैसी देवी माताएं इस मेवाड़ भूमि पर रहेगी तब तक कोई माई का लाल मेवाड़ का सिर नहीं झुका सकता| मैं आपकी वीरता, साहस और देशभक्ति को नमन करते हुए इसे इज्जत देने के लिए अपनी और से कुछ पारितोषिक देना चाहता हूँ यदि आपकी इजाजत हो तो, सो अपनी इच्छा बतायें कि आपको ऐसा क्या दिया जाय ? जो आपकी इस वीरता के लायक हो|”
माजी सा सोच में पड़ गयी आखिर मांगे तो भी क्या मांगे|
आखिर वे बोली- “अन्नदाता ! यदि कुछ देना ही है तो कुछ ऐसा दें जिससे मेरे बेटे कहीं बैठे तो सिर ऊँचा कर बैठे|”
राणा जी बोले- “आपको हुंकार की कलंगी बख्सी जाती है जिसे आपका बेटा ही नहीं उसकी पीढियां भी उस कलंगी को पहन अपना सिर ऊँचा कर आपकी वीरता को याद रखेंगे|”
बन्द मुठी लाक री खुली मुठी राख री
उदयपुर के महलों में राणा जी ने आपात सभा बुला रखी थी| सभा में बैठे हर सरदार के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ नजर आ रही थी, आँखों में गहरे भाव नजर आ रहे थे सबके हाव भाव देखकर ही लग रहा था कि किसी तगड़े दुश्मन के साथ युद्ध की रणनीति पर गंभीर विचार विमर्श हो रहा है| सभा में प्रधान की और देखते हुए राणा जी ने गंभीर होते हुए कहा-
“इन मराठों ने तो आये दिन हमला कर सिर दर्द कर रखा है|”
“सिर दर्द क्या रखा है ? अन्नदाता ! इन मराठों ने तो पूरा मेवाड़ राज्य ही तबाह कर रखा है, गांवों को लूटना और उसके बाद आग लगा देने के अलावा तो ये मराठे कुछ जानते ही नहीं !” पास ही बैठे एक सरदार ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा|
“इन मराठों जैसी दुष्टता और धृष्टता तो बादशाही हमलों के समय मुसलमान भी नहीं करते थे| पर इन मराठों का उत्पात तो मानवता की सारी हदें ही पार कर रहा है| मुसलमान ढंग से लड़ते थे तो उनसे युद्ध करने में भी मजा आता था पर ये मराठे तो लूटपाट और आगजनी कर भाग खड़े होते है|” एक और सरदार ने पहले सरदार की बात को आगे बढाया|
सभा में इसी तरह की बातें सुन राणा जी और गंभीर हो गए, उनकी गंभीरता उनके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रही थी|
मराठों की सेना मेवाड़ पर हमला कर लूटपाट व आगजनी करते हुए आगे बढ़ रही थी मेवाड़ की जनता उनके उत्पात से बहुत आतंकित थी| उन्हीं से मुकाबला करने के लिए आज देर रात तक राणा जी मुकाबला करने के लिए रणनीति बना रहे थे और मराठों के खिलाफ युद्ध की तैयारी में जुटे थे| अपने ख़ास ख़ास सरदारों को बुलाकर उन्हें जिम्मेदारियां समझा रहे थे| तभी प्रधान जी ने पूरी परिस्थिति पर गौर करते हुए कहा-
“खजाना रुपयों से खाली है| मराठों के आतंक से प्रजा आतंकित है| मराठों की लूटपाट व आगजनी के चलते गांव के गांव खाली हो गए और प्रजा पलायन करने में लगी है| राजपूत भी अब पहले जैसे रहे नहीं जो इन उत्पातियों को पलक झपकते मार भगा दे और ऐसे दुष्टों के हमले झेल सके|”
प्रधान के मुंह से ऐसी बात सुन पास ही बैठे एक राजपूत सरदार ने आवेश में आकर बोला –“पहले जैसे राजपूत अब क्यों नहीं है ? कभी किसी संकट में पीछे हटे है तो बताएं ? आजतक हम तो गाजर मुली की तरह सिर कटवाते आये है और आप कह रहें है कि पहले जैसे राजपूत नहीं रहे ! पिछले दो सौ वर्षों से लगातार मेवाड़ पर हमले हो रहे है पहले मुसलमानों के और अब इन मराठों के| रात दिन सतत चलने वाले युद्धों में भाग लेते लेते राजपूतों के घरों की हालत क्या हो गयी है ? कभी देखा है आपने ! कभी राजपूतों के गांवों में जाकर देखो एक एक घर में दस दस शहीदों की विधवाएं बैठी मिलेंगी| फिर भी राजपूत तो अब भी सिर कटवाने के लिए तैयार है| बस एक हुक्म चाहिए राणा जी का! मराठा तो क्या खुद यमराज भी आ जायेंगे तब भी मेवाड़ के राजपूत पीठ नहीं दिखायेंगे|”
ये सुन राणा बोले- “राज पाने व बचाने के लिए गाजर मुली की तरह सिर कटवाने ही पड़ते है, इसीलिए तो कहा जाता है कि राज्य का स्वामी बनना आसान नहीं| स्वराज्य बलिदान मांगता है और हम राजपूतों ने अपने बलिदान के बूते ही यह राज हासिल किया है| धरती उसी की होती है जो इसे खून से सींचने के लिए तैयार रहे| हमारे पूर्वजों ने मेवाड़ भूमि को अपने खून से सींचा है| इसकी स्वतंत्रता के लिए जंगल जंगल ठोकरे खायी है| मातृभूमि की रक्षा के लिए घास की रोटियां खाई है, और अब ये लुटरे इसकी अस्मत लुटने आ गए तो क्या हम आसानी से इसे लुट जाने दे ? अपने पूर्वजों के बलिदान को यूँ ही जाया करें? इसलिए बैठकर बहस करना छोड़े और मराठों को माकूल जबाब देने की तैयारी करें|”
राणा की बात सुनकर सभा में चारों और चुप्पी छा गयी| सबकी नजरों के आगे सामने आई युद्ध की विपत्ति का दृश्य घूम रहा था| मराठों से मुकाबले के लिए इतनी तोपें कहाँ से आएगी? खजाना खाली है फिर सेना के लिए खर्च का बंदोबस्त कैसे होगा? सेना कैसे संगठित की जाय? सेना का सेनापति कौन होगा? साथ ही इन्हीं बिन्दुओं पर चर्चा भी होने लगी|
आखिर चर्चा पूरी होने के बाद राणा जी ने अपने सभी सरदारों व जागीरदारों के नाम एक पत्र लिख कर उसकी प्रतियाँ अलग-अलग घुड़सवारों को देकर तुरंत दौड़ाने का आदेश दिया|
पत्र में लिखा था-“मेवाड़ राज्य पर उत्पाती मराठों ने आक्रमण किया है उनका मुकाबला करने व उन्हें मार भगाने के लिए सभी सरदार व जागीरदार यह पत्र पहुँचते ही अपने सभी सैनिकों व अस्त्र-शस्त्रों के साथ मेवाड़ की फ़ौज में शामिल होने के लिए बिना कोई देरी किये जल्द से जल्द हाजिर हों|”
पत्र में राणा जी के दस्तखत के पास ही राणा द्वारा लिखा था- “जो जागीरदार इस संकट की घडी में हाजिर नहीं होगा उसकी जागीर जब्त कर ली जाएगी| इस मामले में किसी भी तरह की कोई रियायत नहीं दी जाएगी और इस हुक्म की तामिल ना करना देशद्रोह व हरामखोरी माना जायेगा|”
राणा का एक सवार राणा का पत्र लेकर मेवाड़ की एक जागीर कोसीथल पहुंचा और जागीर के प्रधान के हाथ में पत्र दिया| प्रधान ने पत्र पढ़ा तो उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गयी| कोसीथल चुंडावत राजपूतों के वंश की एक छोटीसी जागीर थी और उस वक्त सबसे बुरी बात यह थी कि उस वक्त उस जागीर का वारिस एक छोटा बच्चा था| कोई दो वर्ष पहले ही उस जागीर के जागीरदार ठाकुर एक युद्ध में शहीद हो गए थे और उनका छोटा सा इकलौता बेटा उस वक्त जागीर की गद्दी पर था| इसलिए जागीर के प्रधान की हवाइयां उड़ रही थी| राणा जी का बुलावा आया है और गद्दी पर एक बालक है वो कैसे युद्ध में जायेगा? प्रधान के आगे एक बहुत बड़ा संकट आ गया| सोचने लगा-“क्या इन मराठों को भी अभी हमला करना था| कहीं ईश्वर उनकी परीक्षा तो नहीं ले रहा?”
प्रधान राणा का सन्देश लेकर जनाना महल के द्वार पर पहुंचा और दासी की मार्फ़त माजी साहब (जागीरदार बच्चे की विधवा माँ) को आपात मुलाकात करने की अर्ज की|
दासी के मुंह से प्रधान द्वारा आपात मुलाकात की बात सुनते ही माजी साहब के दिल की धडकनें बढ़ गयी-“पता नहीं अचानक कोई मुसीबत तो नहीं आ गयी?”
खैर.. माजी साहब ने तुरंत प्रधान को बुलाया और परदे के पीछे खड़े होकर प्रधान का अभिवादन स्वीकार करते हुए पत्र प्राप्त किया| पत्र पढ़ते ही माजी साहब के मुंह से सिर्फ एक छोटा सा वाक्य ही निकला-“हे ईश्वर ! अब क्या होगा?” और वे प्रधान से बोली-“अब क्या करें ? आप ही कोई सलाह दे! जागीर के ठाकुर साहब तो आज सिर्फ दो ही वर्ष के बच्चे है उन्हें राणा जी की चाकरी में युद्ध के लिए कैसे ले जाया जाय ?
तभी माजी के बेटे ने आकर माजी साहब की अंगुली पकड़ी| माजी ने बेटे का मासूम चेहरा देखा तो उनके हृदय ममता से भर गया| मासूम बेटे की नजर से नजर मिलते ही माजी के हृदय में उसके लिए उसकी जागीर के लिए दुःख उमड़ पड़ा| राणा जी द्वारा पत्र में लिखे आखिरी वाक्य माजी साहब के नजरों के आगे घुमने लगे-“हुक्म की तामिल नहीं की गयी तो जागीर जब्त कर ली जाएगी| देशद्रोह व हरामखोरी समझा जायेगा आदि आदि|”
पत्र के आखिरी वाक्यों ने माजी सा के मन में ढेरों विचारों का सैलाब उठा दिया-“जागीर जब्त हो जाएगी ! देशद्रोह व हरामखोरी समझा जायेगा! मेरा बेटा अपने पूर्वजों के राज्य से बाहर बेदखल हो जायेगा और ऐसा हुआ तो उनकी समाज में कौन इज्जत करेगा? पर उसका आज बाप जिन्दा नहीं है तो क्या हुआ ? मैं माँ तो जिन्दा हूँ! यदि मेरे जीते जी मेरे बेटे का अधिकार छिना जाए तो मेरा जीना बेकार है ऐसे जीवन पर धिक्कार| और फिर मैं ऐसी तो नहीं जो अपने पूर्वजों के वंश पर कायरता का दाग लगने दूँ, उस वंश पर जिसनें कई पीढ़ियों से बलिदान देकर इस भूमि को पाया है मैं उनकी इस बलिदानी भूमि को ऐसे आसानी से कैसे जाने दूँ ?
ऐसे विचार करते हुए माजी सा की आँखों वे दृश्य घुमने लगे जो युद्ध में नहीं जाने के बाद हो सकते थे- “कि उनका जवान बेटा एक और खड़ा है और उसके सगे-संबंधी और गांव वाले बातें कर रहें है कि इन्हें देखिये ये युद्ध में नहीं गए थे तो राणा जी ने इनकी जागीर जब्त कर ली थी| वैसे इन चुंडावतों को अपनी बहादुरी और वीरता पर बड़ा नाज है हरावल में भी यही रहते है|” और ऐसे व्यंग्य शब्द सुन उनका बेटा नजरें झुकाये दांत पीस कर जाता है| ऐसे ही दृश्यों के बारे में सोचते सोचते माजी सा का सिर चकराने लगा वे सोचने लगे यदि ऐसा हुआ तो बेटा बड़ा होकर मुझ माँ को भी धिक्कारेगा|
ऐसे विचारों के बीच ही माजी सा को अपने पिता के मुंह से सुनी उन राजपूत वीरांगनाओं की कहानियां याद आ गयी जिन्होंने युद्ध में तलवार हाथ में ले घोड़े पर सवार हो दुश्मन सेना को गाजर मुली की तरह काटते हुए खलबली मचा अपनी वीरता का परिचय दिया था| दुसरे उदाहरण क्यों उनके ही खानदान में पत्ताजी चुंडावत की ठकुरानी उन्हें याद आ गयी जिसनें अकबर की सेना से युद्ध किया और अकबर की सेना पर गोलियों की बौछार कर दी थी| जब इसी खानदान की वह ठकुरानी युद्ध में जा सकती थी तो मैं क्यों नहीं ? क्या मैं वीर नहीं ? क्या मैंने भी एक राजपूतानी का दूध नहीं पिया ? बेटा नाबालिग है तो क्या हुआ ? मैं तो हूँ ! मैं खुद अपनी सैन्य टुकड़ी का युद्ध में नेतृत्व करुँगी और जब तक शरीर में जान है दुश्मन से टक्कर लुंगी| और ऐसे वीरता से भरे विचार आते ही माजी सा का मन स्थिर हो गया उनकी आँखों में चमक आ गयी, चेहरे पर तेज झलकने लगा और उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ प्रधान जी को हुक्म दिया कि-
“राणा जी हुक्म सिर माथे ! आप युद्ध की तैयारी के लिए अपनी सैन्य टुकड़ी को तैयार कीजिये हम अपने स्वामी के लिए युद्ध करेंगे और उसमें जान की बाजी लगा देंगे|”
प्रधान जी ने ये सुन कहा- “माजी सा ! वो तो सब ठीक है पर बिना स्वामी के केसी फ़ौज ?
माजी सा बोली- “हम है ना ! अपनी फ़ौज का हम खुद नेतृत्व करेंगे|”
प्रधान ने विस्मय पूर्वक माजी सा की और देखा| यह देख माजी सा बोली-
“क्या आजतक महिलाएं कभी युद्ध में नहीं गयी ? क्या आपने उन महिलाओं की कभी कोई कहानी नहीं सुनी जिन्होंने युद्धों में वीरता दिखाई थी ? क्या इसी खानदान में पत्ताजी की ठकुरानी सा ने अकबर के खिलाफ युद्ध में भाग ले वीरगति नहीं प्राप्त की थी ? मैं भी उसी खानदान की बहु हूँ तो मैं उनका अनुसरण करते हुए युद्ध में क्यों नहीं भाग ले सकती ?
बस फिर क्या था| प्रधान जी ने कोसीथल की सेना को तैयार कर सेना के कूच का नंगारा बजा दिया| माजी सा शरीर पर जिरह बख्तर पहने, सिर पर टोप, हाथ में तलवार और गोद में अपने बालक को बिठा घोड़े पर सवार हो युद्ध में कूच के लिए पड़े|
कोसीथल की फ़ौज के आगे आगे माजी सा जिरह वस्त्र पहने हाथ में भाला लिए कमर पर तलवार लटकाये उदयपुर पहुँच हाजिरी लगवाई कि-“कोसीथल की फ़ौज हाजिर है|
अगले दिन मेवाड़ की फ़ौज ने मराठा फ़ौज पर हमला किया| हरावल (अग्रिम पंक्ति) में चुंडावतों की फ़ौज थी जिसमें माजी सा की सैन्य टुकड़ी भी थी| चुंडावतों के पाटवी सलूम्बर के राव जी थे उन्होंने फ़ौज को हमला करने का आदेश के पहले संबोधित किया- “वीर मर्द राजपूतो ! मर जाना पर पीठ मत दिखाना| हमारी वीरता के बल पर ही हमारे चुंडावत वंश को हरावल में रहने का अधिकार मिला है जिसे हमारे पूर्वजों ने सिर कटवाकर कायम रखा है| हरावल में रहने की जिम्मेदारी हर किसी को नहीं मिल सकती इसलिए आपको पूरी जिम्मेदारी निभानी है मातृभूमि के लिए मरने वाले अमर हो जाते है अत: मरने से किसी को डरने की कोई जरुरत नहीं! अब खेंचो अपने घोड़ों की लगाम और चढ़ा दो मराठा सेना पर|”
माजी सा ने भी अन्य वीरों की तरह एक हाथ से तलवार उठाई और दुसरे हाथ से घोड़े की लगाम खेंच घोड़े को ऐड़ लगादी| युद्ध शुरू हुआ, तलवारें टकराने लगी, खच्च खच्च कर सैनिक कट कट कर गिरने लगे, तोपों, बंदूकों की आवाजें गूंजने लगी| हर हर महादेव केनारों से युद्ध भूमि गूंज उठी| माजी सा भी बड़ी फुर्ती से पूरी तन्मयता के साथ तलवार चला दुश्मन के सैनिकों को काटते हुए उनकी संख्या कम कर रही थी कि तभी किसी दुश्मन ने पीछे से उन पर भाले का एक वार किया जो उनकी पसलियाँ चीरता हुआ निकल गया और तभी माजी सा के हाथ से घोड़े की लगाम छुट गयी और वे नीचे धम्म से नीचे गिर गए| साँझ हुई तो युद्ध बंद हुआ और साथी सैनिकों ने उन्हें अन्य घायल सैनिकों के साथ उठाकर वैध जी के शिविर में इलाज के लिए पहुँचाया| वैध जी घायल माजी सा की मरहम पट्टी करने ही लगे थे कि उनके सिर पर पहने लोहे के टोपे से निकल रहे लंबे केश दिखाई दिए| वैध जी देखते ही समझ गए कि यह तो कोई औरत है| बात राणा जी तक पहुंची-
“घायलों में एक औरत ! पर कौन ? कोई नहीं जानता| पूछने पर अपना नाम व परिचय भी नहीं बता रही|”
सुनकर राणा जी खुद चिकित्सा शिविर में पहुंचे उन्होंने देखा एक औरत जिरह वस्त्र पहने खून से लथपथ पड़ी| पुछा –
“कृपया बिना कुछ छिपाये सच सच बतायें ! आप यदि दुश्मन खेमें से भी होगी तब भी मैं आपका अपनी बहन के समान आदर करूँगा| अत: बिना किसी डर और संकोच के सच सच बतायें|”
घायल माजी सा ने जबाब- “कोसीथल ठाकुर साहब की माँ हूँ अन्नदाता !”
सुनकर राणा जी आश्चर्यचकित हो गए| पुछा- “आप युद्ध में क्यों आ गई?”
“अन्नदाता का हुक्म था कि सभी जागीरदारों को युद्ध में शामिल होना है और जो नहीं होगा उसकी जागीर जब्त करली जाएगी| कोसीथल जागीर का ठाकुर मेरा बेटा अभी मात्र दो वर्ष का है अत: वह अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं सो अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने के लिए मैं युद्ध में शामिल हुई| यदि अपनी फ़ौज के साथ मैं हाजिर नहीं होती तो मेरे बेटे पर देशद्रोह व हरामखोरी का आरोप लगता और उसकी जागीर भी जब्त होती|”
माजी सा के वचन सुनकर राणा जी के मन में उठे करुणा व अपने ऐसे सामंतों पर गर्व के लिए आँखों में आंसू छलक आये| ख़ुशी से गद-गद हो राणा बोले-
“धन्य है आप जैसी मातृशक्ति ! मेवाड़ की आज वर्षों से जो आन बान बची हुई है वह आप जैसी देवियों के प्रताप से ही बची हुई है| आप जैसी देवियों ने ही मेवाड़ का सिर ऊँचा रखा हुआ है| जब तक आप जैसी देवी माताएं इस मेवाड़ भूमि पर रहेगी तब तक कोई माई का लाल मेवाड़ का सिर नहीं झुका सकता| मैं आपकी वीरता, साहस और देशभक्ति को नमन करते हुए इसे इज्जत देने के लिए अपनी और से कुछ पारितोषिक देना चाहता हूँ यदि आपकी इजाजत हो तो, सो अपनी इच्छा बतायें कि आपको ऐसा क्या दिया जाय ? जो आपकी इस वीरता के लायक हो|”
माजी सा सोच में पड़ गयी आखिर मांगे तो भी क्या मांगे|
आखिर वे बोली- “अन्नदाता ! यदि कुछ देना ही है तो कुछ ऐसा दें जिससे मेरे बेटे कहीं बैठे तो सिर ऊँचा कर बैठे|”
राणा जी बोले- “आपको हुंकार की कलंगी बख्सी जाती है जिसे आपका बेटा ही नहीं उसकी पीढियां भी उस कलंगी को पहन अपना सिर ऊँचा कर आपकी वीरता को याद रखेंगे|”
एक से बढ़कर एक |
एक नगर में चार भाई रहते थे| चारों ही अक्ल से अक्लमंद थे| चारों ही भाई अक्ल के मामले में एक से बढ़कर एक | उनकी अक्ल के चर्चे आस-पास के गांवों व नगरों में फैले थे लोग उनकी अक्ल की तारीफ़ करते करते उन्हें अक्ल बहादुर कहने लगे|एक भाई का नाम सौबुद्धि, दूजे का नाम हजार बुद्धि, तीसरे का नाम लाख बुद्धि, तो चौथे भाई का नाम करोड़ बुद्धि था|
एक दिन चारों ने आपस में सलाह की कि -किसी बड़े राज्य की राजधानी में कमाने चलते है| दूसरे बड़े नगर में जाकर अपनी बुद्धि से कमायेंगे तो अपनी बुद्धि की भी परीक्षा होगी और हमें भी पता चलेगा कि हम कितने अक्लमंद है ? फिर वैसे भी घर बैठना तो निठल्लों का काम है चतुर व्यक्ति तो अपनी चतुराई व अक्ल से ही बड़े बड़े शहरों में जाकर धन कमाते है|और इस तरह चारों ने आपस में विचार विमर्श कर किसी बड़े शहर को जाने के लिए घोड़े तैयार कर चल पड़े| काफी रास्ता तय करने के बाद वे चले जा रहे थे कि अचानक उनकी नजर रास्ते में उनसे पहले गए किसी ऊंट के पैरों के निशानों पर पड़ी|
"ये जो पैरों के निशान दिख रहे है वे ऊंट के नहीं ऊँटनी के है |" सौ बुद्धि निशान देख अपने भाइयों से बोला|
"तुमने बिल्कुल सही कहा| ये ऊँटनी के ही पैरों के निशान है और ये ऊँटनी बायीं आँख से कानी भी है |" हजार बुद्धि ने आगे कहा|
लाख बुद्धि बोला- "तुम दोनों सही हो| पर एक बात मैं बताऊँ? इस ऊँटनी पर जो दो लोग सवार है उनमे एक मर्द व दूसरी औरत है|
करोड़ बुद्धि कहने लगा- "तुम तीनों का अंदाजा सही है| और ऊँटनी पर जो औरत सवार है वह गर्भवती है|"
अब चारों भाइयों ने ऊंट के उन पैरों के निशानों व आस-पास की जगह का निरिक्षण कर व देखकर अपनी बुद्धि लगा अंदाजा तो लगा लिया पर यह अंदाजा सही लगा या नहीं इसे जांचने के लिए आपस में चर्चा कर ऊंट के पैरों के पीछे-पीछे अपने घोड़ों को ऐड लगा दौड़ा दिए| ताकि ऊंट सवार का पीछा कर उस तक पहुँच अपनी बुद्धि से लगाये अंदाजे की जाँच कर सके|
थोड़ी ही देर में वे ऊंट सवार के आस-पास पहुँच गए| ऊंट सवार अपना पीछा करते चार घुड़सवार देख घबरा गया कहीं डाकू या बदमाश नहीं हो, सो उसने भी अपने ऊंट को दौड़ा दिया| और ऊंट को दौड़ाता हुआ आगे एक नगर में प्रवेश कर गया| चारों भाई भी उसके पीछे पीछे ही थे| नगर में जाते ही ऊंट सवार ने नगर कोतवाल से शिकायत की - " मेरे पीछे चार घुड़सवार पड़े है कृपया मेरी व मेरी पत्नी की उनसे रक्षा करें|"
पीछे आते चारों भाइयों को नगर कोतवाल ने रोक पूछताछ शुरू कर दी कि कही कोई दस्यु तो नहीं| पूछताछ में चारों भाइयों ने बताया कि वे तो नौकरी तलाशने घर से निकले है यदि इस नगर में कही कोई रोजगार मिल जाए तो यही कर लेंगे| कोतवाल ने चारों के हावभाव व उनका व्यक्तित्व देख सोचा ऐसे व्यक्ति तो अपने राज्य के राजा के काम के हो सकते है सो वह उन चारों भाइयों को राजा के पास ले आया, साथ उनके बारे में जानकारी देते हुए कोतवाल ने उनके द्वारा ऊंट सवार का पीछा करने वाली बात बताई|
राजा ने अपने राज्य में कर्मचारियों की कमी के चलते अच्छे लोगों की भर्ती की जरुरत भी बताई पर साथ ही उनसे उस ऊंट सवार का पीछा करने का कारण भी पुछा|
सबसे पहले सौ बुद्ध बोला-"महाराज ! जैसे हम चारों भाइयों ने उस ऊंट के पैरों के निशान देखे अपनी अपनी अक्ल लगाकर अंदाजा लगाया कि- ये पैर के निशान ऊँटनी के होने चाहिए, ऊँटनी बायीं आँख से कानी होनी चाहिए, ऊँटनी पर दो व्यक्ति सवार जिनमे एक मर्द दूसरी औरत होनी चाहिए और वो सवार स्त्री गर्भवती होनी चाहिए|"
इतना सुनने के बाद तो राजा भी आगे सुनने को बड़ा उत्सुक हुआ| और उसने तुरंत ऊंट सवार को बुलाकर पुछा- "तूं कहाँ से आ रहा था और किसके साथ ?"
ऊंट सवार कहने लगा-" हे अन्नदाता ! मैं तो अपनी गर्भवती घरवाली को लेने अपनी ससुराल गया था वही से उसे लेकर आ रहा था|"
राजा- " अच्छा बता क्या तेरी ऊँटनी बायीं आँख से काणी है?"
ऊंट सवार- "हां ! अन्नदाता| मेरी ऊँटनी बायीं आँख से काणी है|
राजा ने अचंभित होते हुए चारों भाइयों से पुछा- "आपने कैसे अंदाजा लगाया ? विस्तार से सही सही बताएं|" सौ बोद्धि बोला-"उस पैरों के निशान के साथ मूत्र देख उसे व उसकी गंध पहचान मैंने अंदाजा लगाया कि ये ऊंट मादा है|"
हजार बुद्धि बोला-" रास्ते में दाहिनी और जो पेड़ पौधे थे ये ऊँटनी उन्हें खाते हुई चली थी पर बायीं और उसने किसी भी पेड़-पौधे की पत्तियों पर मुंह तक नहीं मारा| इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि जरुर यह बायीं आँख से काणी है इसलिए उसने बायीं और के पेड़-पौधे देखे ही नहीं तो खाती कैसे ?"
लाख बुद्धि बोला- " ये ऊँटनी सवार एक जगह उतरे थे अत: इनके पैरों के निशानों से पता चला कि ये दो जने है और पैरों के निशान भी बता रहे थे कि एक मर्द के है व दूसरे स्त्री के |"
आखिर में करोड़ बुद्धि बोला-" औरत के जो पैरों के निशान थे उनमे एक भारी पड़ा दिखाई दिया तो मैंने सहज ही अनुमान लगा लिया कि हो न हो ये औरत गर्भवती है|"
राजा ने उनकी अक्ल पहचान उन्हें अच्छे वेतन पर अपने दरबार में नौकरी देते हुए फिर पुछा -
"आप लोगों में और क्या क्या गुण व प्रतिभा है ?"
सौ बुद्धि बोला-" मैं जिस जगह को चुनकर तय कर बैठ जाऊं तो किसी द्वारा कैसे भी उठाने की कोशिश करने पर नहीं उठूँ|"
हजार बुद्धि-" मुझमे भोज्य सामग्री को पहचानने की बहुत बढ़िया प्रतिभा है|"
लाख बुद्धि- "मुझे बिस्तरों की बहुत बढ़िया पहचान है|"
करोड़ बुद्धि -"मैं किसी भी रूठे व्यक्ति को चुटकियों में मनाकर ला सकता हूँ|"
राजा ने मन ही मन एक दिन उनकी परीक्षा लेने की सोची|
एक दिन सभी लोग महल में एक जगह एक बहुत बड़ी दरी पर बैठे थे, साथ में चारों अक्ल बहादुर भाई भी| राजा ने हुक्म दिया कि -इस दरी को एक बार उठाकर झाड़ा जाय| दरी उठने लगी तो सभी लोग उठकर दरी से दूर हो गए पर सौ बुद्धि दरी पर ऐसी जगह बैठा था कि वह अपने नीचे से दरी खिसकाकर बिना उठे ही दरी को अलग कर सकता था सो उसने दरी का पल्ला अपने नीचे से खिसकाया और बैठा रहा|राजा समझ गया कि ये उठने वाला नहीं|
शाम को राजा ने भोजन पर चारों भाइयों को आमंत्रित किया| और भोजन करने के बाद चारों भाइयों से भोजन की क्वालिटी के बारे में पुछा|
तीन भाइयों ने भोजन के स्वाद उसकी गुणवत्ता की बहुत सरहना की पर हजार बुद्धि बोला- " माफ़ करें हुजूर ! खाने में चावल में गाय के मूत्र की बदबू थी|"
राजा ने रसोईघर के मुखिया से पुछा -"सच सच बता कि चावल में गौमूत्र की बदबू कैसे ?
रसोई घर का हेड कहने लगा-"गांवों से चावल लाते समय रास्ते में वर्षा आ गयी थी सो भीगने से बचाने को एक पशुपालक के बाड़े में गाडियां खड़ी करवाई थी, वहीँ चावल पर एक गाय ने मूत्र कर दिया था| हुजूर मैंने चावल को बहुत धुलवाया भी पर कहीं से थोड़ी बदबू रह ही गयी |"
हजार बुद्धि की भोजन पारखी प्रतिभा से राजा बहुत खुश हुआ और रात्री को सोते समय चारों भाइयों के लिए गद्दे राजमहल से भिजवा दिए| जिन पर चारों भाइयों ने रात्री विश्राम किया|
सुबह राजा के आते ही लाख बुद्धि ने कहा - "बिस्तर में खरगोस की पुंछ है जो रातभर मेरे शरीर में चुभती रही|"
राजा ने बिस्तर फड़वाकर जांच करवाई तो उसने वाकई खरगोश की पुंछ निकली|राजा लाख बुद्धि के कौशल से भी बड़ा प्रभावित हुआ|
पर अभी करोड़ बुद्धि की परीक्षा बाक़ी थी| सो राजा ने रानी को बुलाकर कहा- "करोड़ बुद्धि की परीक्षा लेनी है आप रूठकर शहर से बाहर बगीचे में जाकर बैठ जाएं करोड़ बुद्धि आपको मनाने आयेगा पर किसीभी सूरत में मानियेगा मत|"
और रानी रूठकर बाग में जा बैठी| राजा ने करोड़ बुद्धि को बुला रानी को मनाने के लिए कहा|
करोड़ बुद्धि बाजार गया वहां से पडले का सामान (शादी में वर पक्ष की ओर से वधु के लिए ले जाने वाला सामान) व दुल्हे के लिए लगायी जाने वाली हल्दी व अन्य शादी का सामान ख़रीदा और बाग के पास से गुजरा वहां रानी को देखकर उससे मिलने गया|
रानी ने पुछा-"ये शादी का सामान कहाँ ले जा रहे है|"
करोड़ बुद्धि बोला-" आज राजा जी दूसरा ब्याह रचा रहे है यह सामान उसी के लिए है| राजमहल ले कर जा रहा हूँ|
रानी ने पुछा-" क्या सच में राजा दूसरी शादी कर रहे है ?"
करोड़ बुद्धि- " सही में ऐसा ही हो रहा है तभी तो आपको राजमहल से दूर बाग में भेज दिया गया है|"
इतना सुन राणी घबरा गयी कि कहीं वास्तव में ऐसा ही ना हो रहा हो| और वह तुरंत अपना रथ तैयार करवा करोड़ बुद्धि के आगे आगे महल की ओर चल दी|
महल में पहुँच करोड़ बुद्धि ने राजा कोप अभिवादन कर कहा-" महाराज ! राणी को मना लाया हूँ|"
राजा ने देखा रानी सीधे रथ से उतर गुस्से में भरी उसकी और ही आ रही थी| और आते ही राजा से लड़ने लगी कि- "आप तो मुझे धोखा दे रहे थे| पर मेरे जीते जी आप दूसरा ब्याह नहीं कर सकते|
"
राजा भी राणी को अपनी सफाई देने में लग गया|
और इस तरह चारों अक्ल बहादुर भाई राजा की परीक्षा में सफल रहे |
नोट : यह कहानी मैंने राजस्थानी भाषा की मूर्धन्य साहित्यकार लक्ष्मीकुमारी चूंडावत की पुस्तक "कैरे चकवा बात" में पढ़ी थी जो राजस्थानी भाषा में लिखी गयी है|
शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015
किया ! पर करना नहीं जाना !!
एक राजा को एक रात सपना आया कि- उसके सोने के थाल में सोने के कटोरे में परोसी खीर में कौवे ने चौंच मार दी| दूसरे दिन सुबह ही राजा ने अपने मंत्रियों आदि सभी को बुलाकर रात को आया अपना सपना सुना सपने का अर्थ पुछा| पर राजा के दरबार में कोई भी व्यक्ति इस सपने का अर्थ नहीं बता सका| इस बात से राजा बहुत दुखी होकर बोला कि-
"क्या मेरी राजसभा में कोई भी व्यक्ति इतना सबल नहीं है कि एक साधारण से सपने का अर्थ बता सके? क्या यहाँ सभी मुर्ख है ?
तभी एक बूढ़े व्यक्ति ने राजा से हाथ जोड़कर कहा -"महाराज सपने का अर्थ तो मैं समझ चुका हूँ पर आपको बता नहीं सकता| यदि मैंने आपको बताया तो आप मेरी जीभ काट देंगे या मुझे मृत्यु दंड दे देंगे|"
राजा ने कहा -" हे वृद्ध सज्जन आप मुझे मेरे सपने का अर्थ बताये आपको मैं कुछ नहीं कहूँगा चाहे आप इसका कैसा भी अर्थ क्यों नहीं बताएं|" वृद्ध ने राजा को अकेले में अर्थ बताने का अनुरोध किया जिसे राजा ने मान लिया और वृद्ध को एकांत में ले गया ताकि वह उसे सपने का सही अर्थ बता सके|
बूढ़े व्यक्ति ने राजा को अकेले में बताया कि- "सोने के कटोरे में परोसी खीर में कौवे द्वारा चौंच मारने का मतलब आपकी कोई रानी आपके किसी नौकर के साथ कोई चूक कर रही है पर आपकी कौनसी रानी ये गडबड कर रही है इसका मै नहीं बता सकता इसके लिए आपको पहरा लगवाना पड़ेगा और देर रात में जिस रानी के महल में दिया जल उठे समझ लीजिए वही चूक कर रही है|"
राजा ने उसी रात रानियों के महल में गस्त लगवा दी और खूद भी चुपके से गस्त लगाने लगा| अचानक आधी रात को राजा ने देखा कि एक रानी के कक्ष में दिया जल उठा और राजा ने आगे देखा कि रानी एक पहरेदार से बात करते करते उसे अपने कक्ष में ले गयी बस फिर क्या था राजा को यकीन हो गया कि यही रानी उसके साथ बेवफाई कर रही थी यही सपने का राज था|
सुबह होते ही राजा ने दरबार लगाया और उस रानी को दरबार में बुला लिया और सबके सामने रात्री घटना का जिक्र करते हुए रानी से कहा कि- " आज से तू मेरी रानी नहीं है| तुम्हें जो व्यक्ति अच्छा लगे उसका हाथ थाम ले मेरी तरफ से तुझे पूरी इजाजत है|"
रानी ये हुक्म सुनकर एकदम सकपका गयी| राजा गुस्से में तना बैठा था सो ऐसी परिस्थितियों में रानी कुछ भी कह नहीं पा रही थी| और वहां उपस्थित लोगों में से वह किसी जानती भी नहीं थी सो पास ही खड़े एक पहरेदार के साथ जाकर खड़ी हो गयी|
राजा ने हुक्म दिया कि-"इन्हें ले जाओ और इनका काला मुंह कर, इनके बाल काटकर इन्हें चौराहे पर बाँध दो, आने जाने वाले इन पर थूकेंगे यही इनकी सजा है|"
दोनों को चौराहे पर बांधते ही बहुत भीड़ इकट्ठी हो गयी| जितने मुंह उतनी उनके बारे में बातें होने लगी| राजा ने चौराहे पर लिपिक बैठा दिया कि "लोग इनके बारे में जो बाते करें वे उनके नाम सहित लिख लें| सो लोगों ने जितनी बातें की लिपिक लिखते गए|
राज्य के प्रधान के तीन बेटियां थी उन्होंने भी जब इस प्रकरण के बारे सुना तो वे भी देखने आई| उन्होंने देखा दोनों पर लोग थूक रहे थे,मक्खियाँ उनके ऊपर भिनभिना रही थी, खून से लथपथ दोनों बंधे पड़े थे|
प्रधान की बड़ी बेटी बोली-" करमों का फल है|"
मझली बेटी बोली-" जैसी करी वैसी भरी|"
सबसे छोटी बोली-"इसने किया पर इसको करना नहीं आया, जब किया ही तो पूरा करके बताना चाहिए था|"
लिपिकों ने ये बाते भी लिख ली| शाम को राजा जब ये सब पढ़ रहा था तो प्रधान की सबसे छोटी बेटी की टिप्पणी पढते ही राजा की नजर उस पर अटक गयी| उसने लिपिकों से पुछा कि- "ये किसने कहा ?"
लिपिकों ने डरते डरते बताया कि- "महाराज ये आपके प्रधान जी की सबसे छोटी बेटी ने कहा था|"
राजा ने तुरंत प्रधान को बुलाकर कहा कि- " कल ही आप अपनी छोटी बेटी का विवाह मेरे साथ करो ताकि वह वह करके बता सके जैसी उसने टिप्पणी की थी|"
प्रधान बहुत परेशान हुआ पर कर भी क्या सकता था? उसने घर जाकर अपनी बेटियों से सारी बात बताई|
छोटी बेटी बोली-" पिताजी आप चिंता ना करें| आप कल ही मेरी शादी राजा से करवा दें| यदि राजा को कुछ करके ना बताया तो मैं भी आपकी बेटी नहीं!"
दूसरे ही दिन राजा व प्रधान की छोटी बेटी का विवाह संपन्न हो गया| राजा ने विवाह होते ही उसे जेल की एक कोठरी में बंद कर उसका दरवाजा भी ईंटों से चुनवा दिया और ऊपर एक छोटी सी जगह छुड़वा दी ताकि डंडे पर बांधकर खाना पानी कोठरी के अंदर दिया जा सके| और जेल की अँधेरी कोठरी में डालते वक्त राजा ने कह दिया - अब करके बताना तूं क्या कर सकती है?'
शादी से पहले ही तीनों बहनों ने आपस में सलाह कर ली थी सो उसी अनुसार दोनों बहनों ने प्रधान को बताकर उनसे जेल की उस कोठरी के अंदर तक एक सुरंग खुदवा डाली| सुरंग खुदते ही प्रधान की बेटी तो अपने घर आ गयी और वहां एक दासी को बिठा दिया जो पहरेदारों द्वारा डंडे पर बांधकर पहुँचाया जाने वाला खाना ले ले और खा कर वहां सोती रहे|
प्रधान की बेटी ने एक तपस्वी का रूप बनाया गांव के बाहर जंगल के पास अपनी धुनी रमाई| उसे देखते ही लोग उमड़ पड़े| बाबाजी किसी को भभूत दे और कह दे कि- जा घोल के पी जा रोग मुक्त हो जायेगा| तो किसी पर निर्मल बाबा की तरह कृपा बरसा दे|
लोग ने भभूत ले जाकर पीने के लिए जैसे ही पानी में घोली तो पानी में सोने के दाने तैरने लगे| इस चमत्कार की चर्चा आनन फानन में पुरे राज्य में फ़ैल गयी और बात राजा की कानों में भी पहुँच गयी|
राजा ने इस बारे में प्रधान को पुछा तो उसने भी इस बात को सच बताया सो राजा शाम होते ही भेष बदलकर उस तपस्वी के पास जा पहुंचा| जैसे राजा तपस्वी के आगे पहुंचा और प्रणाम किया, तपस्वी आँखें बंद किये धुना रमाये बैठा था और बिना आँखें खोले बोला -"आयुष्मान रहो राजन!" इतना सुनते ही राजा को भरोसा हो गया कि बाबा जी वाकई करामाती है बिना आँख खोले ही मुझे पहचान गए|
राजा को जाते समय बाबा ने भभूत दी बोला घोलकर पी लेना और कल फिर आना| राजा ने भभूत घोला तो पानी पर सोने के दाने तैरने लगे| राजा को तो ये देखकर बाबा पर पूरा भरोसा हो गया कि बाबा चमत्कारी है|
दूसरे दिन तपस्वी बाबा ने अपने भक्तों से कह दिया कि अब आज से यहाँ कोई ना आये यदि कोई आया तो बहुत अनिष्ट हो जायेगा| इसलिए उस दिन के बाद कोई भक्त नहीं आया|
पर शाम होते ही राजा तो पहुँच ही गया| तपस्वी बाबा ने राजा को एक जड़ी देते हुए बोला- " ये जड़ी खा लेना, कभी बूढा नहीं होगा, हमेशा जवान रहेगा|"
राजा ने बहुत खुशी से जड़ी खा ली व चलने लगा तो बाबा ने अपना धुनें में किया गर्म चिमटा उठाया और राजा के पिछवाड़े चार पांच ठोकदी|
बोला-" कहाँ जा रहा है इसे खाना इतना आसान नहीं, यहीं बैठ और धुनें में लकड़ियाँ देता रह मैं दूसरी जड़ी लेने जंगल में जा रहा हूँ तीन दिन लगेंगे| वह जड़ी खायेगा तभी ये काम करेगी वरना इस एक जड़ी से तो तेरे कलेजे में जलन हो जायेगी|"
यह कहकर तपस्वी बाबा तो चला गया| राजा बैठा बैठा धुनें में लकड़ियाँ देता रहा तभी एक रमझम करती, सोलह श्रृंगार किये हुए, हाथ में खाने का एक थाल लिए सुन्दर स्त्री आई जिसका रूप देख राजा उसे देखते ही रह गया|
वह बोली-" मैं तपस्वी बाबा की शिष्या हूँ बाबा जंगल में जड़ी लेने गए है और मुझे आपकी सेवा करने हेतु कह गए है|" राजा को खाना खिला वह रूपवती स्त्री भी रात राजा के पास रुक गयी| दूसरे दिन भी वह राजा के लिए खाना लायी और रात राजा के साथ ही रुक गयी| राजा तो उसके रूप लावण्य पर पहले ही मर मिटा था|
तीसरे दिन वह स्त्री फिर आई और बोली- 'राजा जी आज तपस्वी बाबा आयेंगे| फिर अब हमारा मिलना हो या नहीं हो आप अपनी कोई निशानी तो दे दीजिए|"
राजा में उस रूपवती को अपनी अंगूठी, कटार व अपना दुसाला दे दिया| स्त्री चली गयी थोड़ी देर में बाबा जड़ी लेकर आये और राजा को देते हुए जाने की इजाजत दे दी|
इस घटना को नौ महीने बीत गए एक दिन अचानक उस काल कोठरी पर तैनात पहरेदारों ने कोठरी से रोते हुए बच्चे की आवाज सुनी| उन्होंने डरते डरते यह खबर जाकर राजा को सुनाई| राजा सुनते ही हाथ में नंगी तलवार ले दौड़ा दौड़ा आया,कोठरी के दरवाजे पर लगी ईंटे हटवाई और कोठरी में घुसा|
आगे प्रधान की बेटी ने अपना बेटे को राजा का दिया दुसाला ओढा, पास में कटार रख और हाथ में राजा की अंगूठी पहनाकर सुला रखा था| राजा ने देखते ही अपनी पत्नी के ऊपर तलवार तानी और बोला-
"बता, ये पुत्र कहाँ से व कैसे आया ?
" बेटे के पास जाकर पूछ लीजिए, बेटा खूद ही आपको जबाब दे देगा|"
राजा ने बेटे की तरफ देखा पर उसे अपनी निशानियां याद ही नहीं और बेटा बोलता कैसे ? सो राजा ने फिर तलवार तानते हुए कहा- "बता नहीं खोपड़ी काट दूँगा|"
रानी बोली- " आपका हिया फूट गया या आँखे फूटी गयी है ? दीखता नहीं बच्चे ने अपना बाप का दुसाला ओढ़ रखा है पास में अपनी बाप की कटार रखी है और हाथ में बाप की अंगूठी पहनी है| जरा ध्यान से देखिये|
राजा ने ध्यान से देखा- "ये सब तो मेरे है|"
पर क्रोध में बोला- " ले आई होगी कहीं से उठाकर|'
रानी बोली-" ये तो हो सकता है मैं ले आई होवुं कहीं से पर पिछवाड़े पर जो गर्म गर्म चिमटे की चार पांच मारी थी वो याद है या नहीं! करनी ऐसे कहते है! जो कर के बताई है आपको !!
इतना सुनते ही राजा बहुत शर्मिंदा हुआ| साथ ही उसे अपनी रानी पर भी बहुत गर्व हुआ| आखिर राजा उसे अपने बेटे सहित महलों में ले आया और खुशी खुशी उसके साथ राज्य करते हुए बाकी जिंदगी गुजारी|
कहानी एक राजपूतानी की....
गर्मियों का मौसम था बाड़मेर संभाग में रेत के टीले गर्मी से गर्म होकर अंगारों की तरह दहक रहे थे| लूएँ ऐसे चल रही थी कि बाहर बैठे जीव को झुलसा दे| इस तरह नीचे धरती गर्मी से तप रही थी तो ऊपर आसमान झुलस रहा था| वहीँ खेजडे के एक पेड़ की छाया में बैठा एक सोढा राजपूत जवान बाहर की गर्मी की साथ भीतर से उठ रहे विचारों के दावानल से दहक रहा था| पेड़ की छाया में बैठ विचारों में खोये उस सोढा राजपूत जवान को पता ही नहीं चला कि कब छाया ढल गयी और उसके चेहरे पर कब तपते सूरज की किरणे पड़ने लग गयी| वह तो विचारों के भंवर में ऐसा खोया था कि उसके लिए तो आज चारों दिशाएँ व सभी मौसम एक जैसे ही थे| आज ही उसके होने वाले ससुर का सन्देश आया था कि –
“यदि उसकी बेटी के साथ शादी करनी है तो दो हजार रूपये भेजवा दें नहीं तो तुम्हारा रिश्ता तोड़कर तुम्हारी मंगेतर की शादी कहीं और करवा दी जाएगी|”
ये सन्देश सुनने के बाद उस जवान सोढा राजपूत का गुस्सा सातवें आसमान था, गुस्से में उसके दांत कटकटा रहे थे चेहरा लाल था आखों में भी लाल डोरे साफ़ नजर आ रहे थे| सन्देश पढ़ते ही अपने आप उसका हाथ कमर पर बंधी तलवार की मूंठ पर जा ठहरा| आखिर उसकी मंगेतर जिसकी उसके माँ बाप ने आज से दस वर्ष पहले गोद भराई की रस्म पुरी कर उसके साथ रिश्ता किया था और बेचारे पुत्र की शादी करने के मंसूबे मन में बांधे ही इस दुनियां से चल बसे| माता पिता की मृत्यु के बाद बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको संभाला पर फिर भी जी तो गरीबी में ही रहा है इसलिए अब ससुर को देने के लिए दो हजार रूपये कहाँ से लाये| बचपन से ही खेत खलिहान भी सेठ धनराज के यहाँ गिरवी पड़े है| अब क्या गिरवी रखे कि उसे दो हजार जैसी बड़ी रकम मिल जाए ?
यही सब सोचते हुए उस जवान सोढा राजपूत की आँखों में खून उतर आया था| उसने मन में सोच लिया था उसके जिन्दा रहते उसकी मंगेतर जिससे शादी करने के सपने वह पिछले दस वर्षों से देख रहा था किसी और की हो ही नहीं सकती| यही सोचकर वह सेठ धनराज के पास दो हजार रूपये के कर्ज के लिए पहुंचा|
सेठ को सारी बात बताते हुए उसने कहा- “सेठ काका ! अब मेरी इज्जत बचाना आपके हाथ में है|
सेठ बोला- “इज्जत तो मैंने बहुतों की बचाई है तेरी भी बचा दूंगा पर यह बता दो हजार जितनी बड़ी रकम के लिए तेरे पास गिरवी रखने को क्या है ?”
सेठ काका- “जमीन तो जितनी थी पहले ही आपके पास गिरवी रखी है अब मेरे पास तो सिर्फ यह तलवार बची है और आपको पता है ना कि एक राजपूत के लिए तलवार की क्या कीमत होती है ? आप इसे ही गिरवी रखलें|
सेठ बोला- “इस तलवार का मैं क्या करूँ ? तूं किसी और सेठ के जा कर कर्ज ले ले|
सोढा जवान सेठ की बात सुनकर अन्दर तक तड़फते हुए कहने लगा- “सेठ काका ! मेरे पुरखों की वो जमीन जिसे पाने के लिए उन्होंने सिर कटवाए थे उसको आपने झूंठ लिख लिखकर अपने पास गिरवी रख लिया मेरे घर का एक एक बर्तन तक आपने अपनी कलम की झूंठ के बल से ठग लिए| फिर भी मैंने आपको सब कुछ दिया और अब भी आप जो मांगे वो देने के लिए तैयार हूँ| यह मेरे घराने की साख का सवाल है| आपको पता है मेरे जीते जी मेरी मंगेतर का विवाह किसी और से हो जायेगा तो मेरे लिए तो यह जीवन बेकार है| मैं तो जीवित ही मरे समान हो जाऊंगा| आपको जितना ब्याज लेना है ले लो पर अभी आज मुझे दो हजार रूपये का कर्ज दे दो| आपका कर्ज में ईमानदारी से चूका दूंगा यह एक राजपूत का वादा है|”
सेठ-“ठीक है ! यदि तूं राजपूतानी का जाया है तो एक वचन दे| मैं जो लिखूंगा उस पर दस्तखत कर देगा ?
सोढा जवान ने हाँ कह वचन देने की हामी भर ली| सेठ ने एक पत्र पर एक शर्त लिखी और सोढा राजपूत के हाथ में यह कहते हुए थमा दी कि- “असल राजपूत है और हिम्मत है तो ये पत्र ले शर्त पढ़कर दस्तखत करदे| उस पत्र में शर्त लिखी थी- “जब तक सेठ धनराज का कर्ज ब्याज सहित ना चूका दूंगा तब तक अपनी पत्नी को बहन के समान समझूंगा|”
पत्र में लिखी शर्त पढ़ते ही सोढा की आँखों में अंगारे बरसने लगे उसकी आँखें लाल हो गयी पर उसने अपने गुस्से को दबाते हुए पिसते दांतों को होठों के पीछे छुपाकर दस्तखत कर दिए|
सेठ से मिले कर्ज के दो हजार रूपये ससुर के पास समय से पहले भिजवाकर सोढा ने अपनी मंगेतर से शादी कर अपना घर बसा लिया| आज कई वर्षों बाद उसका दीमक लगा टुटा फूटा घर लिपाई पुताई कर सजा संवरा था| ससुराल से दहेज़ में आया सामान भी घर में तरतीब से सजा था| आँगन में आज छम छम पायल की आवाज सुनाई दे रही थी तो शाम को बाजरे की रोटियों को थपथपाने के साथ चूड़ियों की आवाज भी साफ़ सुनाई दे रही थी| सोढा खाने के लिए बैठा था और उसकी सजी संवरी पत्नी अपने हाथों से उसे खाना परोस रही थी| सोढा खाना खाते हुए भी बड़ा गंभीर नजर आ रहा था तो दूसरी और उसकी पत्नी की आँखों में उसके लिए जो प्यार उमड़ रहा था उसे सोढा साफ़ देख रहा था| पत्नी खाने में ये परोसूं या ये कह कह कर बात करने की कोशिश कर रही थी| सोढा भी बोलना तो चाह रहा था पर बोल नहीं पा रहा था| सोढा खाना खाकर उठा राजपूतानी ने झट से खड़े होकर पानी का लौटा ले सोढा के हाथ धुलवाये| हाथ धोते समय घूंघट के पीछे उसका दमकता चेहरा देख सोढा के हाथ कांप गए| रात पड़ी, सोने का समय हुआ, दोनों ढोलिया पर सो गए पर यह क्या ? सोढा ने म्यान से तलवार निकाली और दोनों के बीच रख मुंह फिरा सो गया|
राजपूतानी सोचने लगी- “शायद मेरे से किसी बात पर नाराज है या मेरे पिता द्वारा शादी से पहले दो हजार रूपये लेने के कारण नाराज है|
एक, दो, तीन इस तरह कोई बीस दिन बीत गए हर रोज सोते समय दोनों के बीच तलवार होती| राजपूतानी को सोढा का यह व्यवहार समझ ही नहीं आ रहा था दिन में तो बात करते सोढा के मुंह से फूल बरसते है आखों से बरसता नेह भी साफ़ झलकता है पर रात होते ही वह नजर नहीं मिलाता, उसका चेहरा मुरझाया होता है, बोल होठों से बाहर आते ही नहीं| राजपूतानी ने रोज सोढा का व्यवहार का बारीकी से देखा समझा और एक दिन बोली-
“यदि आप मेरे पिता द्वारा रूपये मांगे जाने से नाराज है तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं पर यदि मेरे द्वारा कोई अनजाने में गलती हुयी हो तो उसके लिए बताएं मैं आपसे माफ़ी मांग लुंगी पर आप नाराज ना रहे|”
सोढा ने कहा-“ऐसी कोई बात नहीं है यह कोई और ही बात है जो मैं आपको चाहते हुए भी बता नहीं सकता| बताने की कोशिश भी करता हूँ तो शब्द होठों तक नहीं आते|” और कहते कहते सोढा ने वह सेठ द्वारा लिखा पत्र राजपूतानी को पकड़ा दिया|
दिये की बाती ऊँची कर उसके टिम टिम करते प्रकाश में राजपूतानी ने वह पत्र पढना शुरू किया उसने जैसे जैसे वह पत्र पढ़ा उसके चेहरे पर तेज बढ़ता गया उसके बेसब्र मन ने राहत की साँस ली| पत्र पढने के बाद उसे अपने पति पर गर्व हुआ कि वह राजपूती धर्म निभाने वाले एक सच्चे राजपूत की पत्नी है और एक राजपूतानी के लिए इससे बड़ी गर्व की क्या बात हो सकती है|
पूरा पत्र पढ़ राजपूतानी बेफिक्र हो बोली –“बस यही छोटी सी बात थी| मुझे तो दूसरी ही चिंता थी| वचन निभाना तो एक राजपूत और राजपूतानी के लिए बहुत ही आसान काम है|” और कहते हुए राजपूतानी ने अपने सारे गहने आदि लाकर पति के आगे रख दिए| और बोली-
“इनको बेचकर घोड़ा खरीद लाईये| कर्ज उतरना सबसे पहला धर्म है और वो घर बैठे नहीं चुकेगा| घर तो कृषक बैठते है राजपूत को घर बैठना वैसे भी शोभा नहीं देता| राजपूत की शोभा तो किसी राजा की सेना में ही होती है|
सोढा बोला-“ठीक है फिर घोड़ा ले मैं किसी की राजा की नौकरी में चला जाता हूँ और तुझे अपने मायके छोड़ देता हूँ|”
राजपूतानी बोली-“मैंने भी एक राजपूत के घर जन्म लिया है, एक राजपूतानी का दूध पिया है, मुझे भी कमर पर तलवार बंधना व चलाना और घुड़सवारी करना आता है| बचपन में पिता के घर खूब घोड़े दौड़ाये है इसलिए मायके क्यों जाऊं आपके साथ चलूंगी| दोनों कमाएंगे तो कर्ज जल्दी चुकेगा|”
ऐसे शब्द बोलती हुयी राजपूतानी के चेहरे को तेज को देख सोढा तो देखता रह गया|
सुबह का निकला सूरज अब आकाश में काफी ऊँचा चढ़ चूका था| चितौड़ किले की तलहटी से दो एक किलोमीटर दूर दो बांके जवान घोड़े दौड़ाते हुए किले की तरफ आते नजर आ रहे थे| उनके हाथों में पकड़े भाले सूरज की किरणों से पल पल कर चमक रहे थे| दोनों की कमर में बंधी तलवारें दोड़ते घोड़ों की पीठ से रगड़ खा रही थी| उन्हें देखकर कौन कह सकता था कि- इनमें से एक मर्द की पौशाक में नारी है| राजपूतानी इस वक्त मर्दाना भेष में जोश से भरा एक जवान लग रही थी| हाथों में भाला पकड़े उसने अपनी कोयल सी मधुर आवाज को भी मर्दों की तरह भारी कर लिया था| घूंघट में रहने वाला चेहरा आज सूरज की रौशनी में दमक रहा था| बड़ी बड़ी आँखों ने लाल लाल डोरे ऐसे नजर आ रहे थे जैसे देश प्रेम का मतवाला कोई बांका जवान दुश्मन की सेना पर आक्रमण के लिए चढ़ा हो| घोड़ो को दौड़ाते हुए थोड़ी ही देर में वे किले की तलहटी में जा पहुंचे| उधर उनका किले के मुख्य दरवाजे की और जाना हुआ उधर से किले से राणा का अपने दल बल सहित शिकार के लिए निकलना हुआ| दो बाकें जवानों को देखते ही राणा की नजरें दोनों पर एकटक अटक गयी| पास बुलाकर पूछा-
कौन हो ? कहाँ से आये हो ? क्यों आये हो ?
राणा को जबाब मिला- “राजपूत है|”
कौन से ?
सोढा ! और आपकी सेवा में चाकरी करने आयें है|
ठीक है शिकार में ही साथ हो जाओ| राणा ने उनकी सेवा स्वीकारते हुए कहा|
दोनों राणा के साथ हो गए| जंगल में शिकार शुरू हुआ, एक सूअर पर शिकारी दल ने तीरों भालों से हमला किया पर सूअर भाग खड़ा हुआ और राणा के सरदारों ने उसके पीछे घोड़े दौड़ा दिए| चारों और से हाका करने वालों ने हाका करना शुरू कर दिया उधर गया है, घोड़ा पीछे दौड़ाओ, सूअर भाग ना पाये|
राणा ने देखा सभी सरदारों व शिकारी दल के घोड़े सूअर के पीछे लग गए उनमें से एक घोड़ा अचानक बिजली की गति से आगे निकला और घोड़े के सवार ने सूअर का पीछा कर उस पर भाला फैंका जो सूअर की आंते बाहर निकालता हुआ सूअर के शरीर से पार हो गया| राणा के मुंह से अचानक निकल पड़ा –शाबास ! आजतक ऐसा नजारा नहीं देखा कि किसी का भाला सूअर की आंते निकालकर पार निकल गया हो|
घोड़े से उतर पसीना पोंछते सवार ने राणा को झुककर मुजरा किया और वापस घोड़े की पीठ पर जा सवार हुआ| कोई नहीं पहचान सका कि एक हाथ से भाले का वार कर सूअर को धुल चटाने वाला जवान मर्द नहीं एक औरत है|
राणा उनकी वीरता से खुश व प्रभावित होते हुए और उन्हें अपनी सेवा में नियुक्त करते हुए हुक्म दिया कि –“वे दोनों उनके महल में उनके शयन कक्ष की सुरक्षा में तैनात रहेंगे|”
“खम्मा अन्न दाता” कह दोनों ने राणा की चाकरी स्वीकारी|
सावन का महिना, रिमझिम रिमझिम फुहारों से बारिश बरस रही, नदी नाले भी खल खल कर बह रहे, चारों और हरियाली ही हरियाली छा रही, तालाब पानी से भरे हुए और रात भर मेंडकों की टर्र टर्र आवाजें आ रही, अंधरी रात्री और ऊपर से काले काले बादल छाये हुए, बिजली चमके तो आँखें बंद हो जाए, बादल ऐसे गरज रहे जैसे इंद्र गरज कर कह रहा हो कि धरती को इसी तरह पीस दूंगा, ऐसे अंधरी व भयानक पर मनोहारी रात, ऐसी रात जिसमें हाथ को हाथ ना दिखे जिसमें दोनों राणा के शयन कक्ष के बाहर पहरा दे रहे और राणा जी अपने शयन कक्ष में निश्चिन्त हो रानी के साथ सो रहे थे|
दोनों हाथों में नंगी तलवारे लिए पहरा दे रहे थे जैसे ही बिजली चमकती तो टकराने वाले प्रकाश से तलवारें भी अँधेरी काली रात में चमक उठती| आधी रात का वक्त हो चूका था राणा जी गहरी नींद में सो रहे थे पर आज पता नहीं क्यों रानी को नींद नहीं आ रही थी| सो वह पलंग पर लेटी लेटी महल की खिड़की से प्रकृति के अद्भुत नज़ारे देख रही थी| महल के द्वार पर दो राजपूत हाथों में तलवारें लिए पहरा देते हुए चौकस हो खड़े थे|
इतनी ही देर में उतर दिशा से बिजली चमकी जिसे देख राजपूतानी को याद आई कि यह तो मेरे देश की तरफ से चमकी है और वह इस याद के साथ ही विचारों में खो गयी उसके नारी हृदय में विचारों की उथल पुथल मच गयी कि आज ऐसे मौसम में सभी स्त्रियाँ अपने पति के साथ घर में सो रही है और वह खाने कमाने के लिए मर्दाना भेष में तलवार हाथ में पकड़े यहाँ पहरे पर खड़ी है| तभी पपीहे की मधुर आवाज उसे सुनाई दी और सुनते ही उसका नारी हृदय कराह उठा और मन में फिर विचार आने लगा कि वह तो सुहागन होते हुए वियोगन हो गयी, पति के पास होते हुए भी ऐसा लग रहा है जैसे वह पति से कोसों दूर है| पति के साथ रहते हुए भी वह वियोगी है उससे तो पति से दूर रहने वाली वियोगी नारी ही अच्छी और सोचते सोचते उसकी सब्र का बाँध टूट गया और सोढा के पास जाकर धीरे से उसके कंधे पर हाथ रख दिया| हाथ रखते ही दोनों ऐसे कांप गए जैसे उन पर बिजली टूट पड़ी हो| सोढा ने चेताते हुए कहा-“राजपूतानी संभल ! राजपूतानी सोढा द्वारा चेताने पर अपने आपको एक गहरी निस्वाश: छोड़ते हुए सँभालते हुए बोली-
देस बिया घर पारका, पिय बांधव रे भेस | जिण जास्यां देस में, बांधव पीव करेस ||
अपना देश छुट गया और अब परदेश में है| पति पास है पर वह भाई रूप में है | जब कभी अपने वतन जायेंगे तो पति को पति बनायेंगे|
चमकती बिजली की रौशनी में रानी सोये सोये दोनों की पुरी लीला देख रही थी| सुबह होते ही रानी ने राणा जी से कहा कि –
“इन दोनों सोढा राजपूत भाइयों में कोई भेद है क्योंकि इनमें से एक औरत है|”
नहीं रानी ! ऐसा नहीं हो सकता और ऐसा है तो धोखा करने के जुर्म में मैं इनका सिर तोड़ दूंगा| राणा ने कहा| “राणा जी ! तोड़ने की जरुरत नहीं जोड़ने की जरुरत है क्योंकि इनमें एक औरत है|” रानी ने राणा को जबाब दिया| राणा बोले-“रानी भोली बात मत किया करो ! इनकी रोबदार सूरत, इनकी आँखों के तेवर व इनके चेहरे के तेज को देखो ऐसा तेज किसी मर्द में ही हो सकता है फिर मैंने तो एक खतरनाक सूअर को एक ही वार में मारते हुए इनकी वीरता भी देखी है|”
राणा और रानी में इस बात को लेकर विवाद हुआ और फिर इनकी परीक्षा लेनी की बात तय हुई| रानी ने दोनों की परीक्षा लेने की जिम्मेदारी खुद ली और दोनों को रानी ने दोनों को अपने में बुला लिया, साथ ही राणा जी को जाली से छुपकर देखने को कहा|
रानी ने चूल्हे पर दूध चढ़ा अपनी दासी को चुपचाप बाहर जाने का ईशारा कर दिया दासी रसोई से चली गयी, थोड़ी देर में दूध उफनने ही वाला था | जिसे पर नजर पड़ते ही राजपूतानी तुरंत चिल्ला पड़ी- “दूध उफनने वाला है दूध उफनने वाला है !
सुनते ही पास के कक्ष से निकल रानी बोल पड़ी- “बेटी सच बता तूं कौन है ? और इस भेष में क्यों ? मुझसे कुछ भी मत छुपा सच सच बता|”
राजपूतानी आँखों पर हाथ दे रानी की गोद में चिपट गयी और सोढा बे रानी को पुरी बात बताई| राणा जी भी कक्ष के बाहर जाली के पीछे खड़े सब सुन रहे थे| पुरी बात सुनकर राणा जी बड़े खुश हुए बोले-
“मैं एक सवार को रूपये देकर तुम्हारे गांव आज ही भेज देता हूँ वह सेठ धनराज से तुम्हारे कर्ज का पूरा हिसाब कर ब्याज सहित रकम चुका आयेगा| और तुम यहीं रहो और अपनी गृहस्थी बसावो|”
राणा जी के आगे हाथ जोड़ते हुए सोढा बोला- “अन्न दाता का हुक्म सिर माथे ! पर अन्न दाता जब तक मैं अपने हाथ से सेठ का कर्ज नहीं चूका देता तब तक शर्तनामा लिखा पत्र नहीं फाड़ सकता| इसलिए मुझे कर्ज चुकाने के लिए स्वयं जाने की इजाजत बख्सें|”
राणा जी ने सोढा को ब्याज सहित पूरा कर्ज चुकाने व गृहस्थी बसाने लायक धन देकर विदा किया|
गुरुवार, 9 अप्रैल 2015
"मूंछ मुंडा मत मानवा, मूंछों रो है मान ।
मरद तो मुछाळ बंका, नैण बंकी गोरियां ।
चँवरां बंकी गावड़ी, कान बंकी घोड़ियाँ।।
"मूंछ मुंडा मत मानवा, मूंछों रो है मान ।
मूंछाळौ मरदां तणी, रंग धर राजस्थान ।।
मुंछा गहणो मरदरौ,मिनख पणै रौ मान।
जै इब चावो जौवणो,(तौ)रैवो ज राज स्थान।।
मरद तो मूंछाळ बंका, पौड़ बंकी घोड़ियां ।
बिचमे पांतरग्यो, पीव बंकी गोरियां।।
रुड़ा राजस्थान माँहि, मूंछ वाळो मरोड़।
संत सती और शूरमा, ठावा ईण ज ठोड़।।
मूंछ मरोड़े मांनखो, राजस्थानी रोज।
मूंछां निरखे मांनवी, इण सूं उपजै औज।।
खरी कमाई खावणी , हक री लिया हमेश ।
बेहक सूॅ बरबादगी , (म्हे) फुरता दीठा फेस ।।
राजस्थान री कला ! (Art of Rajasthan)
राजस्थान री कला !
(Art of Rajasthan)
अतुल्य राजस्थान की कला का एक अद्भुत नमूना यहाँ देखिये ..
कलाकार ने किस तरह से रेगिस्तान के जहाज पे मांडणे उकेरे हैं ..
नाचता ऊंट, बाघ का शिकार करता शिकारी, पनघट पर पाणी भरती पणिहारी और उसके मटके पर बैठा पंछी, पीहू पीहू करता मोर और बछड़े को दूध पिलाती गाय माता
लिखा है 'म्हारो रंगीलो राजस्थान' !
देखिये कितने मोती पिरोये हैं एक ही माला में ...
सभी जंवाइयों के हित में जारी सासरै कदे कदे ही जाया करो नहीं तो........
Khet me naala ka hona kharab hai, or ghar me saala ka jyada aana Kharab
beeht me aala ghar me sala khota tala dukhee kare.
एक आधुनिक शादी
एक आधुनिक शादी के बुफ़े जीमण में फंसे ताऊ की व्यथा -
मै रपट लिखास्यु थाणा मे
मै फंस ग्यो बुफे खाणा मे
मने बात समज मी नी आवे
गाजर टमाटर गोभी काचा खावे
हाथ मे प्लेट लेने लैण लगावे
काऊन्टर सु काऊन्टर पर जावे
ज्यु मगतो फिरे दाणा ने
मै फस ग्यो बुफे खाणा मे ।
बाजोट पोतीया जिमण थाल
ईण सगलो रो पड ग्यो काल
ऊबा ऊबा ही खाई रिया माल
देश री गधेडी पुरब री चाल
पेला जेडो मिठास कटे भाणा मे
मै फस ग्यो बुफे खाणा मे ।
एक हाथ मे प्लेट लिरावो
साग मिठाई भैलाई खावौ
भीड मे लोगो रा धक्का खावो
घुमता फिरता भोजन पावो
ज्यु बलद फिरे घोणा मे
मै फस ग्यो बुफे खाणा मे ।
सगला व्यंजन लावना दोरा
ले भी आवो तो संभालना दोरा
भीड भाड ती बचावणा दोरा
ढुल जावेला रुखालना दोरा
मै डाफाचुक हो गयो जोधाणा मे
मै फंस ग्यो बुफे खाणा मे ।
आर्केस्टा वाला नाचे गावे
बिन्द बिन्दणी हँसता जावे
घर वाला लिफावा लिरावे
सगलो रो ध्यान है गाणा मे
मै फस ग्यो बुफे खाणा मे
बुढा बढेरा किकर खावे
सामे बिन्द बिन्दनी सगला रे सामे हाथ मिलावे
विकलांगो ने कुण जिमावे
टाबर टिबर भुखा ही जावे
कोई बेठा ने कोई ऊबा ही खावे
ईण लोगो ने कुण समजावे
देखा देखी होड लगावे
सब लागा है आणा जाणा मे
मै फस ग्यो बुफे खाणा मे ।
गौर करने की बात है:-
राजस्थानी कहावते.
1. कांणीबाई रा व्यांव में विघ्न ई विघ्न।
2. कांख में छाणो अर ठाली ठकराई।
3. छाछ ई गालनी अर पगे ई लागनो।
4. चोर ने तो केवे चोरी करजे अर साहूकार ने केवेजागतो रेजे।
5. नागां री नव पांती अर साहूकार री एक।
6. नाम सू चोर मारयो जावे अर नाम सू साहूकारकमावे खावे।
7. संका री मॉ सौ घर करे।
8. हांती थोडी ने हलडाटो घणो।
9. नाई री जान में सैंग ठाकर।
10. कंचन रे काट नी लागे।
11. केर रो धनुष टूटे पण वले नी।
12. सती सरांप देवे नी अर शंखनी रो सरांप लागे नी।
13. डाकन दीकरां देवे के लेवे।
14. खटीक रोवे खाल ने अर छाली रोवे जीव ने।
15. दरजी रे तो जीवे जतरे सीवनो।
16. सूतां छीपा सात कोस चाले।
17. हलड फलड ने सायला री घाणी।
18. भैंस रे आगे भागवत बांचनी।
19. वारी आया डोकरी ने ई नाचनो पडे।
20. गरज व्है जरे गधेडा ने ई बाप केवे।
21. उॅट छोडे आकडो ने छाली छोडे कांकरो।
22. ऑवल जठे मेवाड ने बावल जठे मारवाड।
23. हाथी रे लांरे कूतरा भसता रेवे।
24. धके धराल ने पूठे उलाल।
25. आगे कुओं ने लारे खाई।
26. सौ सोनार री ने एक लुहार री।
27. चुंटिया सू वैर नी वले।
28. डूर कूॅटनो।
29. डोकां चरावनां।
30. चोर रा पग काचा व्है।
31. धनी विना धन सूना।
32. जेठजी रे मॅूग दले तो ओपणे कांकरा ई दलां।
33. जीमन में अगाडी अर फौज में पिछाडी।
34. गंूगा री गत गंूगो ई जाने।
35. दूजती गाय री लात ई चोखी लागे।
36. गाय मारने चॅवर करावनो।
37. सांप रा खादोडा ने सोमवार कदै आवनो।
38. पारको वाद व्यांव बराबर।
39. पारकी थाली में घी घणो लागे।
40. उगतो सूरज नी तपे तो आथमता कीकर तपैला।
41. रावण रे घर में रोवनार ई नी रियो।
42. पाडा पाडी सू मतलब के बली सू।
43. लापी खावन सू मतलब के लपरायां सू।
44. धाम्योडी चीज धूड बराबर।
45. गुड ने धूड रो एक ईज भांव।
46. हियां में कांगसी फेरनी।
47. गोला किनरां गोठियां ने वेश्या किनरी नार।
48. थोथा चनां बाजे घणा।
49. वाडकी आडो कपासियो।
50. बाड ई चिभडां खावे।
51. काचो कजावो।
52. सौ भखियां ने एक लिखियां।
53. जोगी जगाडया जोगीवाडो जागे।
54. कानीया वेलीया री जोडी।
55. कानो रो काचो।
56. तीन लोक सू मथुरा न्यारी।
57. जागता री भैंस पाडी लावे अर सूतां रे पाडां।
58. जागता सो ताकता।
59. जोगीयो रो कूतरो।
60. मिनी कठे गई हती।
61. एक तो एकवीस बराबर।
62. सूरज सुवेलो व्हे तो तारा झक मारे।
63. भूत जगाडया भूतावल जागे।
64. जोगी जगाडया जोगीवाडो जागे।
65. वातां रा व्यालू।
66. मिनी रे तो रोल व्हे अर उंदरा रो घर भांगे।
67. मार रे आगे पाडा ई परावे।
68. वेम री दवां वैद कने ई नी व्हे।
69. आंधा ने उबलकी आवे जरे छीपोवाले काचो गाले।
70. काम करया सू हाथा री मेंहदी नी उतरे।
71. सगपन में साढू अर जीमन में लाडू।
72. सीरो जीमता ई दांत घीसे तो घीसन दे।
बुधवार, 8 अप्रैल 2015
ज़िन्दगी के पाँच सच
ज़िन्दगी के पाँच सच ~
सच नं. 1 -:
माँ के सिवा कोई वफादार नही हो सकता…!!!
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सच नं. 2 -:
गरीब का कोई दोस्त नही हो सकता…!!
────────────────────────
सच नं. 3 -:
आज भी लोग अच्छी सोच को नही,
अच्छी सूरत को तरजीह देते हैं…!!!
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सच नं. 4 -:
इज्जत सिर्फ पैसे की है, इंसान की नही…!!!
────────────────────────
सच न. 5 -:
जिस शख्स को अपना खास समझो….
अधिकतर वही शख्स दुख दर्द देता है…!!!
गुरुवार, 2 अप्रैल 2015
एक जौहरी
एक जौहरी के निधन के बाद
उसका परिवार संकट में पड़ गया।
खाने के भी लाले पड़ गए।
एक दिन उसकी पत्नी ने अपने
बेटे को नीलम का एक हार देकर
कहा- 'बेटा, इसे अपने चाचा की
दुकान पर ले जाओ। कहना इसे
बेचकर कुछ रुपये दे दो।
बेटा वह हार लेकर चाचा जी के
पास गया।
चाचा ने हार को अच्छी तरह से
देख परखकर कहा- बेटा, मां से
कहना कि अभी बाजार बहुत
मंदा है। थोड़ा रुककर बेचना,
अच्छे दाम मिलेंगे। उसे थोड़े से
रुपये देकर कहा कि तुम कल से
दुकान पर आकर बैठना।
अगले दिन से वह लड़का रोज
दुकान पर जाने लगा और वहां
हीरों की परख का काम सीखने
लगा। एक दिन वह बड़ा पारखी
बन गया। लोग दूर-दूर से अपने
हीरे की परख कराने आने लगे।
एक दिन उसके चाचा ने कहा,
बेटा अपनी मां से वह हार लेकर
आना और कहना कि अब
बाजार बहुत तेज है,
उसके अच्छे दाम मिल जाएंगे।
मां से हार लेकर उसने परखा तो
पाया कि वह तो नकली है।
वह उसे घर पर ही छोड़ कर
दुकान लौट आया।
चाचा ने पूछा, हार नहीं लाए?
उसने कहा, वह तो नकली था।
तब चाचा ने कहा, जब तुम
पहली बार हार लेकर थे, तब मैं
उसे नकली बता देता तो तुम
सोचते कि आज हम पर बुरा
वक्त आया तो चाचा हमारी चीज
को भी नकली बताने लगे।
आज जब तुम्हें खुद ज्ञान हो
गया तो पता चल गया कि हार
सचमुच नकली है।
सच यह है कि ज्ञान के बिना इस
संसार में हम जो भी सोचते,
देखते और जानते हैं, सब गलत है.
मज़ार पर एक फकीर
किसी मज़ार पर एक फकीर रहते थे। सैकड़ों भक्त उस मज़ार पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे। उन भक्तों में एक बंजारा भी था। वह बहुत गरीब था, फिर भी, नियमानुसार आकर माथा टेकता, फकीर की सेवा करता, और फिर अपने काम पर जाता, उसका कपड़े का व्यवसाय था, कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता, कपड़े बेचता।
एक दिन उस फकीर को उस पर दया आ गई, उसने अपना गधा उसे भेंट कर दिया। अब तो बंजारे की आधी समस्याएं हल हो गईं। वह सारे कपड़े गधे पर लादता और जब थक जाता तो खुद भी गधे पर बैठ जाता।
यूं ही कुछ महीने बीत गए,, एक दिन गधे की मृत्यु हो गई। बंजारा बहुत दुखी हुआ, उसने उसे उचित स्थान पर दफनाया, उसकी कब्र बनाई और फूट-फूट कर रोने लगा।
समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने जब यह दृश्य देखा, तो सोचा जरूर किसी संत की मज़ार होगी। तभी यह बंजारा यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है। यह सोचकर उस व्यक्ति ने कब्र पर माथा टेका और अपनी मन्नत हेतु वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया।
कुछ दिनों के उपरांत ही उस व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई। उसने खुशी के मारे सारे गांव में डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक पूर्ण फकीर की मज़ार है। वहां जाकर जो अरदास करो वह पूर्ण होती है। मनचाही मुरादे बख्शी जाती हैं वहां। उस दिन से उस कब्र पर भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया। दूर-दराज से भक्त अपनी मुरादे बख्शाने वहां आने लगे। बंजारे की तो चांदी हो गई, बैठे-बैठे उसे कमाई का साधन मिल गया था।
एक दिन वही फकीर जिन्होंने बंजारे को अपना गधा भेंट स्वरूप दिया था वहां से गुजर रहे थे। उन्हें देखते ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और बोला- "आपके गधे ने तो मेरी जिंदगी बना दी। जब तक जीवित था तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था और मरने के बाद मेरी जीविका का साधन बन गया है।
"फकीर हंसते हुए बोले,
"बच्चा ! जिस मज़ार पर तू नित्य माथा टेकने आता था, वह मज़ार इस गधे की मां की थी।"
बस यूही चल रहा है मेरा India महान..
क्या आपको पता है?
क्या आपको पता है?
क्रोध का पूरा खांनदान है……
:-क्रोध की एक लाडली बहन है
II जिद ॥
:-क्रोध की पत्नी है…..
॥ हिंसा ॥
:-क्रोध का बडा भाई है
॥ अंहकार ॥
:-क्रोध का बाप जिससे वह डरता है…..
॥ भय ॥
:-क्रोध की बेटिया हैं
॥ निंदा और चुगली ॥
:-क्रोध का बेटा है……
॥ बैर ॥
:-इस खानदान की नकचडी बहू है…..
॥ ईर्ष्या॥
:-क्रोध की पोती है……
॥ घृणा ॥
:-क्रोध की मां है ……
॥ उपेक्षा ॥
और क्रोध का दादा है
।। द्वेष ।।
तो इस खानदान से हमेशा
दूर रहें और हमेशा खुश रहो।
इस मेसज को आगे भेजकर सबको इस खानदान के बारे
जानकारी दे।
क्या आपको पता है?
क्या आपको पता है?
क्रोध का पूरा खांनदान है……
:-क्रोध की एक लाडली बहन है
II जिद ॥
:-क्रोध की पत्नी है…..
॥ हिंसा ॥
:-क्रोध का बडा भाई है
॥ अंहकार ॥
:-क्रोध का बाप जिससे वह डरता है…..
॥ भय ॥
:-क्रोध की बेटिया हैं
॥ निंदा और चुगली ॥
:-क्रोध का बेटा है……
॥ बैर ॥
:-इस खानदान की नकचडी बहू है…..
॥ ईर्ष्या॥
:-क्रोध की पोती है……
॥ घृणा ॥
:-क्रोध की मां है ……
॥ उपेक्षा ॥
और क्रोध का दादा है
।। द्वेष ।।
तो इस खानदान से हमेशा
दूर रहें और हमेशा खुश रहो।
इस मेसज को आगे भेजकर सबको इस खानदान के बारे
जानकारी दे।
क्या आप जानते हैं? *.टमाटर एक सब्ज़ी नहीं बल्कि फल है।
क्या आप जानते हैं?
*.टमाटर एक सब्ज़ी नहीं बल्कि फल है।
*.पीले और नारंगी टमाटर लाल टमाटरों की अपेक्षा मीठे होते है।
*.टमाटर में पाया जाने वाला 'लायकोपीन' नामक पदार्थ कैंसर के खतरे को कम करता है।
*.कच्चे टमाटरों को पकाने के लिए अगर उन्हें एक सेब के साथ काग़ज़ के लिफ़ाफ़े में रख दिया जाए तो वे जल्दी पकते हैं।
*.अगर टमाटरों को उबलते पानी में ३० सेकेंड तक रख कर तुरंत बर्फ़ के पानी में डाल दिया जाए और ठंडा होने पर छीला जाए तो छिलका आसानी से उतार जाता है।
*.साबुत चेरी टमाटर नारियल, हरे धनिये और टमाटर की चटनी के साथ सलाद के रूप में पौष्टिक, आकर्षक और स्वादिष्ट लगते हैं।
टमाटर जितना रंगीन है उतना ही गुणकारी भी। शायद इसीलिए न केवल सूप और चटनियाँ बल्कि अनेकों खट्टे, मीठे और नमकीन व्यंजनों में भी इसका प्रयोग होता है।
टमाटर भोजन के सर्वाधिक लाभदायक पदार्थों में से एक है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक सूचना के अनुसार टमाटर अनेक प्रकार के कैंसरों से हमारी सुरक्षा करता है, जिसमें छाती और गले के कैंसर प्रमुख हैं। केवल १०० ग्राम टमाटर से ०.९ ग्राम प्रोटीन, ०.२ ग्राम वसा और ३.६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट प्राप्त हो जाते हैं। इसमें रेशों की मात्रा ब्राउन ब्रेड के एक स्लाइस के बराबर होती है और आयरन की मात्रा एक अण्डे की तुलना में पाँच गुनी होती है। साथ ही इससे हमें पोटेशियम और फासफोरस भी प्राप्त होते हैं।
आयुर्वेद में टमाटर को अत्यंत लाभकारी बताया गया है। इसमें अंगूर और संतरे की अपेक्षा अधिक विटामिन होते हैं और वे गर्म होने पर भी नष्ट नहीं होते। टमाटरों में स्थित कैलशियम दाँतों व हड्डियों को मज़बूत बनाता है। यह खून की कमी दूर करता है, पेट साफ़ करने में मदद करता है तथा वज़न कम करने में सहायता पहुँचाता है। पथरी, खांसी, आर्थराइटिस, सूजन या मांसपेशियों के दर्द में टमाटर के सेवन का निषेध किया गया है।
कमाल के केले
कमाल के केले
केला दुनिया के सबसे पुराने और लोकप्रिय फलों में से एक है। हर मौसम में मिलने वाला यह फल स्वादिष्ट और बीजरहित है।
क्या आप जानते हैं?
*.
छिलके के कारण केला नैसर्गिक रूप में हमेशा शुद्ध और संक्रमण मुक्त रहता है।
*.
केले की ३०० से भी अधिक किस्में होती हैं और इसकी खेती बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है।
*.
केला ९५६वीं शताब्दी में भूमध्यसागरीय देशों मे पाया गया था और अब समस्त विश्व में आसानी से उपलब्ध है।
*.
केले का फूल और तना भी स्वादिष्ट व्यंजन की तरह पकाया जाता है।
*.
केले कीलंबाई चार इंच से लेकर १५ इंच तक हो सकती है।
*.
केले की जाति के आधार पर इसके स्वाद में अंतर हो सकता है।
*.
केले के साथ इलायची खाने से केला आसानी से पचता है।
केले पर हलके भूरे रंग के दाग इस बात की निशानी हैं कि केले का स्टार्च के पूरी तरह नैसर्गिक शक्कर में परिवर्तित हो चुका है। ऐसा केला आसानी से हजम होता है। केला सुबह के समय खाना अच्छा होता है। केले का छिलका उतारने के तुरन्त बाद खा लेना चाहिए और खाने के तुरन्त बाद पानी का परिहार करना चाहिए।
केला शक्तिवर्धक तत्वों, प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थों का अनोखा मिश्रण है। इसमें पानी की मात्रा कम होती है। यह उष्मांक (केलोरी) वर्धक भी है। केला और दूध का मिश्रण शरीर और स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम है।
केला अन्न को पचाने में सहायक होने के साथ-साथ उत्साह भी देता है। केले में होनेवाली नैसर्गिक शक्कर पौष्टिक तत्वों से होने वाली रासायनिक प्रक्रिया और सेहत बनाने में मदद करती है।
यह अम्लता (ऐसिडिटी) को कम करता है और पेट में हल्की परत बना कर अल्सर का दर्द कम करता है। यह अतिसार और कब्ज़, दोनों में लाभकारी है। यह आंत की सारी प्रक्रिया को सामान्य कर सकता है। केले के गूदे में नमक डाल कर खाना अतिसार के लिए अच्छा होता है।
अच्छे पके केले का गूदा शरीर के जले हुए हिस्से पर लगाकर कपड़ा बाँध दिया जाय तो तुरंत आराम मिलता है। छाले, फफोले या थोड़ी बहुत जलन होने पर केले का नया निकला छोटा पत्ता ठण्डक पहुँचाता है।
केला यदि अच्छा पका हुआ नहीं है तो पचने में कठिन पड़ सकता है। केला फ्रिज में कभी नहीं रखा जाता क्यों कि वह इतने कम तापमान नहीं पक सकता। गुर्दे की बीमारी में केला लाभदायक नहीं हैं क्यों कि केले में पोटॅशियम की मात्रा अधिक होती है।
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