मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

बिटिया मेरे देश की

बिटिया मेरे देश की जैसे फूल गुलाब काँटो पर हँसती रहे खोय न अपनी आब बगिया ज्यों बिन फूल के बिना नीर ज्यों ताल बिटिया तेरे बिन हुआ ऐसा घर का हाल नैन भरे हैं नीर से उमगी गहरी पीर बिटिया तेरी याद ने दिया कलेजा चीर वह गुड़िया वह पालना वह भोली मुस्कान मन की गठरी में बँधी तेरी हर पहचान सूर्य किरण सा हो गया हर बिटिया का हाल पीहर में प्रातः खिली, साँझ ढली ससुराल चूल्हे चौके तक नहीं सीमित यह संसार बंधन अपने तोड़ कर उड़जा पंख पसार डोरी उसकी बाँध के देदी जिसके हाथ बिटिया भोली गाय-सी चल दी उसके साथ गणित दुई की एक-सी पीहर या ससुराल बिटिया हल करती रही दोनों जगह सवाल बिटिया ऐसी गंध हैं महके सालों-साल पीहर महकी आज तो कल महकी ससुराल सारे जग का सुख मिले खुशी मिले भरपूर बिटिया तेरे द्वार से गम हो कोसों दूर सारे दिन की वेदना, हर दुःख क्लेश थकान हर लेती है साँझ को, बिटिया की मुस्कान

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