शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीयाया आखा तीज वैशाखमास में शुक्ल पक्षकी तृतीयातिथि को कहते हैं। पौराणिकग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। [1]इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। [2]वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीयाशुभ होती है, किंतु वैशाखमाह की तिथिस्वयंसिद्ध मुहूर्तोमें मानी गई है। भविष्य पुराणके अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुगऔर त्रेता युगका प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। [3]भगवान विष्णुने नर-नारायण, हयग्रीवऔर परशुरामजी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। [4] [5] ब्रह्माजीके पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। [2]इस दिन श्री बद्रीनाथजी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायणके दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावनस्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिरमें भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। [5] [6]जी.एम. हिंगे के अनुसार तृतीया ४१ घटी २१ पल होती है तथा धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया ६ घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराणके अनुसा इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए। [1]इसी दिन महाभारतका युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युगका समापन भी इसी दिन हुआ था। [2]ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार: “अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥ उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥„ [5] महत्व अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांगदेखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। [6]नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणोंमें लिखा है कि इस दिन [पितृ पक्ष|[पितरों]] को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगास्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवारतथा रोहिणी नक्षत्रके दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। [4]इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीयामध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोषकाल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।

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