मंगलवार, 5 जुलाई 2016

Hamara bachapan

छोटे-छोटे को स्कूल जाते हुए देखकर बचपन याद आ गया। आजकल के बच्चे तैयार होके स्कूल बस आने का इंतजार करने लग जाते हैं। हमारे वक्त तो पहले दो-तीन थप्पड़ लगा के तैयार किया जाता था और पाटी कलम देकर जबरदस्ती से स्कूल भेजा जाता था। 9 बजे रवाना होते थे और 10.30 तक स्कूल पहुँचते थे, स्कूल सिर्फ 1 किलोमीटर ही दूर थी। घर से तो बहुत ही साफ सुथरे निकलते थे मगर स्कूल पहुँचते-पहुँचतेभूत की तरह हो जाते थे। पाटी हर हप्ते नयी लानी पड़ती थी क्योंकि रास्ते में उड़ाते थे तब टूट जाती थी। कलम खा जाते थे और घरवाले को बोलते थे कि जेब फटी थी इसलिए कहीं गिर गई। दोपहर की छुट्टी के लिए एक छोटा सा टिफिन लेकर निकलते थे मगर प्रार्थना से पहले ही खाकर पूरा कर देते थे । जिस दिन लगता था आज रेसीस में भागना है तो पाटी को कमीज के अंदर छुपाकर स्कूल की दीवार कूदकर भाग जाते थे मगर पहुँचते 5 बजे तक क्योंकि पहले पहुँचते तो आपको तो सब पता ही हैं धुलाई होती थी। स्कूल में बैठने के लिए कमरे नहीं थे इसलिए बाहर खुले में पेड़ के नीचे ही बैठते थे, रस्ते से कोई गाड़ी गुजरती तो गेट के पास जाकर देखते थे और जब आसमान में कोई हवाईजहाज आवाज़ सुनाई देती तो शोर मचा देते थे वो जा रही, वो जा रही हैं भले खुद को दिखी भी ना हो । माड्साहब जब हजारी लेते थे तो दूसरे बच्चे बोलते तेरा नम्बर हैं फिर जोर से ऊछल कर बोलते थे येसोर। पाँचवीं तक स्कूल में सिर्फ एक ही माड्साहब थे अगर उनकों कहीं डाक के काम से जाना था तो उस दिन स्कूल में छुट्टी हो जाती थी इसलिए हम हमेशा भगवान से प्रार्थना करते थे बावजी आज मारसा रे डाक रो काम हो जाजो। खेलने के लिए किसी किट की आवश्यकता नहीं थी इसलिए मन हुआ जब तो लाइनें खींचकर कबड्डी का मैदान बनाकर खेल लेते। [इसे कहते है पढाई] ------------;----------------;------ समय देकर पढने के लिए धन्यवाद। इसमें आपका भी बचपन छुपा हैं। ********-******** आजकल स्कूलों में पढाई नहीं पकाई हो रही हैं। छात्रों के दिमाग भी जबरदस्ती से ठूसा जा रहा हैं। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° प्राईवेट स्कूलों में पढ़ने वालों बच्चों के साथ हम सहानुभूति प्रकट करते हैं।

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