।। राम राम सा ।।
मित्रो आज से पच्चीस तीस साल पहले फाल्गुन का महीना शुरू होते ही हमारे गाँवों मे चंग की आवाज सुनने मिलती थी । आजकल पहले जैसी बात तो नही रही लेकिन गाँवों मे आज भी होली से सात आठ दिन पहले युवा चंग बजाना शुरु कर देते हैं। आजकल चंग बजाने वाले लोग भी कम ही है । पहले के जमाने मे वजनदार चंग को लोग रात भर बजाते थे और आज ज्यादतर खाल की बजाय प्लास्टिक के चंग आने लगे है जिनका वजन भी कम ही होता है । सबसे अच्छी आवाज के लिये आम की लकड़ी और भेड़ की खाल से बना चंग ही बढीया रहता है लेकिन लोग आजकल आम की लकड़ी की जगह प्लायवुड की लकड़ी ही काम मे लेते हैं। पहले तो गाँवों मे कुछ लोग अपने घर पर ही भेड़ की खाल से चंग मंढ़कर उस पर चित्रकारी कर देते थे । आजकल बनने वाले चंग की साइज़ 27 से 32 इंच होती हैं। लेकिन हमारे गाँठ मे पुराने चंग जो33 से 36 इंस के हुआ करते थे । जो आजकल के युवाओ के बजाने के बस की बात नहीं है।
पहले तो चंग तैयार करने के लिए सबसे पहले सुथारो से लकड़ी का घेरा तैयार करवाया जाता था। चंग को मंढने के लिए भेड़ की खाल मंगवाई जाती थी। आक के दूध से खाल को साफ करके गुड़, मेथी, गोंद का घोल बनाकर उससे खाल को घेरा पर चिपकाया जाता था फिर उसे छाँव में सुखाया जाता था लेकिन शहरो मे आजकल चंग भी कपड़ों की तरह रेडीमेड तैयार मिलने लग गये है ।
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020
राजस्थानी चंग (ढफ)
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As stated by Stanford Medical, It's in fact the SINGLE reason women in this country live 10 years more and weigh on average 19 KG less than we do.
जवाब देंहटाएं(And really, it has absolutely NOTHING to do with genetics or some secret-exercise and EVERYTHING related to "how" they eat.)
P.S, What I said is "HOW", not "what"...
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