मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

राजस्थानी कहावते

1...आडू कै तो खाय मरै, कै उठा मरै। 2..ऊंखली में सिर दे जिको धमकां सैं के डरै। 3..कपूत जायो भलो न आयो। 4...करमहीन खेती कैर, के काल पडै के बलद मरै। 5..कागलां कै सराप सूं ऊंट कोनी मरै। 6..कातिक की छांट बुरी, बाणियां की नांट बुरी, भायां की आंट बुरी, राज की डांट बुरी। 7..गरीब की लुगाई, जगत की भोजाई। 8..घर में सालो, दीवाल में आलो, आज नहीं तो काल दिवालो। 9..घी खाणूं तो पगड़ी राख कर खाणूं। 10..चौमासे को गोबर लीपण को, न थापण को। 11..जल को डूब्यो तिर कर निकलै, तिरिया डूब्यो बह ज्याय। 12..जाट कहै सुम जाटणी इणी गांव में रैणो, ऊंट बिलाई लेगई हांजी हांजी कहणों। 13..तिरिया चरित न जाणे कोय, खसम मार के सत्ती होय। 14..दुनिया में दो गरीब है, कै बेटी, कै बैल। 15..दूर जंवाई फूल बरोबर, गांव जंवाई आदो घर जांवई गधै बरोबर, चाये जितणो लादो। 16..फूड़ को मैल फागण में उतरै। 17..बाबाजी धूणी तपो हो ? कहो, भाया काय जाणै है। 18..बाबाजी बछड़ा घेरो। कह, बछड़ा घेरता तो स्यामी क्यूं होता ? 19..मतलब की मनुहार जगत जिमावै चूरमा। 20..मा कै सरायां पूत कोन्यां सरायो जाय, जगत कै सरायां सरायो जाय। 21..मूरख न टक्को दे देणूं, पण अक्कल नहीं देणी। —

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