सुप्रभातम्.*
जब सीमेंट खाद बीज मजदूर जब किसी को भी महगाई नहीं दिखती ।100ग्राम दाल को एक परिबार खाता हैआपके हिसाव से 10रु की 5आदमी के परिबार में एक आदमी के हिस्से में 2रु ।एक आदमी 10 रु का पानी एक बार में पिता है लेकिन उसकी कोई जिक्र तक नही करता क्योंकि बो शहरी उत्पाद है। खाने पीने की बस्तु गांब व् गरीब का उत्पाद हैं ।खाने पीने की ब्स्तुओ की कीमतें उसकी उत्पादन लागत से भी कम हैं जबकि इनको पैदा करने बाले 70% हैं लेकिन उन पर अपनी आवाज को सरकार व् शहरों में पहुचाने का कोई साधन नही है ।फिर भी में निवेदन करूंगा उन धरती पुत्रों से जो शहर में बस के अपनी जड़ों को भूल कर महगाई महगाई चिल्लाते हैं ।क्या आप खाने पीने जो की जरूरी है ।उस पर बिलकुल खर्च नहीं करना चाहते ।और जो शहरी गरीब हैं बो वेचारे अपनी खेती जो अलाभकारी है उसको छोड़ कर कीड़े मकोड़े का जीवन जीने को मजबूर हैं ।इस शहर में ।महगाई का राग अलापने बाले गांव व् किसानों के दुश्मन हैं ।होना तो ये चाहिए गांव के कच्चे मॉल को गांव मे ही पक्का करके शहरों में बेच जाय ।बो भी सोलर उर्जा से फेक्ट्री चलें ।तो महगाई बेरोजगारी गरीबी स्वत खत्म हो जाएगी ।
सोमवार, 22 अक्टूबर 2018
गरीब जनता
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