राम राम सा
बचपन में जब हम रेल की सवारी करते थे, माँ घर से खाना बनाकर साथ मे भेजती थी l पर रेल में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखते तो हमारा भी मन करता हम भी खरीद कर खाए l लेकिन वो हमारे बस का नहीँ था l अमीर लोग इस तरह पैसे खर्च कर सकते हैं, हम नहीँ l बड़े होकर हमने देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, तो वो लोग घर का भोजन ले जा रहे हैंl "स्वास्थ सचेतन के लिए"।
बचपन में जब हम सूती कपड़ा पहनते थे, तब वो लोग टेरीलीन पहनते थे l बड़ा मन करता था हमारा भी पर हमारे दादाजी कहते थे हम इतना खर्च नहीँ कर सकते ये तो अमीरो के लिये है l जब हम टेरीलीन पहने लगे तब वो लोग सूती के कपड़े पहनने लगे l सूती कपड़े महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च नहीँ कर सकते l
बचपन में जब खेलते खेलते हमारी पेन्ट घुटनों के पास से फट जाता, हाफ पेन्ट पिछे से फट जाती तो माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनों के पास का वो रफू हिस्सा ढक लेते लम्बा कमीज पहनकर पिछे से ढक देते l आज हम देख ही रहे है वो लोग घुटनों के पास फटे पतलून महंगे दामों में बड़े दुकानों से खरीदकर पहन रहे हैं l
बचपन में हम साईकिल भी बड़ी मुश्किल से पाते, तब वे
स्कूटर पर जाते l जब हम स्कूटर खरीदे, तो वो कार की सवारी करने लगे और अब वो साईकिलिंग करते नज़र आते है स्वास्थ्य के लिए।
हर हाल में हर समय दो लोगो में अंतर रह ही जाता है , अंतर सतत है सनातन है सदा सर्वदा रहेगा , कभी भी दो व्यक्ति और दो परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती। इसलिए जिस हाल में हो जैसे हो प्रसन्न रहे , कहीं ऐसा न हो कल की सोचते सोचते आज को ही खो दें और फिर कल इस आज को याद करें।
रविवार, 20 जनवरी 2019
हमारा बचपन
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