मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

हिंदू महिलाओं में कलाइयों में चूड़ियां पहनना, पैरों में पायल पहनना, माथे पर बिंदी, नाक में कील, गले में मंगलसूत्र , सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियां, लौंग और पायल इन सबसे जुड़ा विज्ञान कम ही लोग जानते हैं। आइए जानें...

हिंदू महिलाओं में कलाइयों में चूड़ियां पहनना, पैरों में पायल पहनना, माथे पर बिंदी, नाक में कील, गले में मंगलसूत्र आदि पहनना कई लोगों को फैशन से ज्यादा कुछ नहीं लगता होगा। यहां तक कि इन्हें अपने बुजुर्गों के कहने पर धारण करने वाली महिलाएं भी इन्हें बोझ या फैशन समझकर पहन लेती हैं। लेकिन, सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियां, लौंग और पायल इन सबसे जुड़ा विज्ञान कम ही लोग जानते हैं। आइए जानें... 1⃣सिंदूर लगाने के पीछे क्या है विज्ञान : सदियों से विवाहित हिंदू महिलाएं मांग में सिंदूर लगाती रही हैं। सिर के बालों के दो हिस्से(parting)में सिंदूर लगाया जाता है। इस बिंदु को महत्वपूर्ण और संवेदनशील माना जाता है। इस जगह सिंदूर लगाने से दिमाग हमेशा सतर्क और सक्रिय रहता है। दरअसल, सिंदूर में मरकरी होता है जो अकेली ऐसी धातु है जो लिक्विड रूप में पाई जाती है। यही वजह है कि सिंदूर लगाने से शीतलता मिलती है और दिमाग तनावमुक्त रहता है। सिंदूर शादी के बाद लगाया जाता है क्योंकि माना जाता है शादी के बाद ही महिला की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और दिमाग को शांत और व्यवस्थित रखना जरूरी हो जाता है। 2⃣ कांच की चूड़ियां : शादीशुदा महिलाओं का कांच की चूड़ियां पहनना शुभ माना जाता है। नई दुल्हन की चूड़ियों की खनक से उसकी मौजूदगी और आहट का एहसास होता है। लेकिन इसके पीछे एक विज्ञान छुपा है। दरअसल, कांच में सात्विक और चैतैन्य अंश प्रधान होते हैं। इस वजह से चूड़ियों के आपस में टकराने से जो आवाज़ पैदा होती है वह नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाती है। 3⃣ मंगलसूत्र पहनने से जुड़ा विज्ञान : माना जाता है कि मंगलसूत्र धारण करने से रक्तचाप(ब्लड प्रेशर) नियमित रहता है। कहा जाता है कि भारतीय हिंदू महिलाएं काफी शारीरिक श्रम करती हैं इसलिए उनका ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहना जरूरी है। बड़े-बुजुर्ग सलाह देते हैं कि मंगलसूत्र छिपा होना चाहिए। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि मंगलसूत्र (उसमें लगा सोना) शरीर से टच होना चाहिए ताकि वह ज्यादा से ज्यादा असर कर सके। 4⃣ बिछुआ पहनने के पीछे का विज्ञान : शादीशुदा हिंदू महिलाओँ में पैरों में बिछुआ जरूर नजर आ जाता है। इसे पहनने के पीछे भी विज्ञान छिपा है। पैर की जिन उंगलियों में बिछिया पहना जाता है उसका कनेक्शन गर्भाशय और दिल से है। इन्हें पहनने से महिला को गर्भधारण करने में आसानी होती है और मासिक धर्म चक्र भी नियम से चलता है। वहीं, चांदी(आमतौर पर बिछुआ चांदी की होती है) होने की वजह से जमीन से यह ऊर्जा ग्रहण करती है और पूरे शरीर तक पहुंचाती है। 5⃣ नाक की लौंग से जुड़ा विज्ञान : नाक में लौंग पहने के पीछे का विज्ञान कहता है कि इससे श्वास को नियमित होती है। 6⃣ कुमकुम से जुड़ा विज्ञान : कुमकुम भौहों के बीच में लगाया जाता है। यह बिंदु अज्ना चक्र कहलाता है। सोचिए जब भी आपको गुस्सा आता है तो तनाव की लकीरें ङोहों के बीच सिंमटी हुई नजर आती हैं। इस बिंदु पर कुमकुम लगाने से शआंति मिलती है और दिमाग ठंडा रहता है। यह बिंदु भगवान शिव से जुड़ा होता है। कुमकुम, तिलक, विभूति, भस्म सब माथे पर ही लगाए जाते हैं। इनसे दिमाग को शांति मिलती है। 💫💫💫💫💫💫💫💫💫 7⃣ कान में बालियां, झुमके पहनने का विज्ञान : कानों में झुमके, बालियां आदि पहनना फैशन ही नहीं। इसका शरीर पर अक्युपंचर प्रभाव भी पड़ता है। कान में छेद कराकर उसमें कोई धातु धारण करना मासिक धर्म को नियमित करने में सहायक होता है। शरीर को ऊर्जावान बनाने के लिए सोने के ईयररिंग और ज्यादा ऊर्जा को कम करने के लिए चांदी के ईयररिंग्स पहनने की सलाह दी जाती है। इसी तरह अलग-अलग तरह की स्वास्थ्य समस्याओं के लिए अलग-अलग धातु के ईयररिंग्स पहनने की सलाह दी जाती रही है। 🌻🌻🌻 8⃣ पैरों में पायल पहनने से जुड़ा विज्ञान : चांदी की पायल पहनने से पीठ, एड़ी, घुटनों के दर्द और हिस्टीरिया रोगों से राहत मिलती है। साथ ही चांदी की पायल हमेशा पैरों से रगड़ाती रहती है जो स्त्रियों की हड्डियों के लिए काफी फ़ायदेमंद है। इससे उनके पैरों की हड्डी को मज़बूती मिलती है। 💐💐💐💐 अपनी धार्मिक संस्करो को हर एक माँ बाप अपने बचो को जरुरु दें।

महंत श्री श्री १००८ संतशिरोमणि श्री किशनाराम जी महाराज शिकारपुरा (लूनी)

महंत श्री श्री १००८ संतशिरोमणि श्री किशनाराम जी महाराज शिकारपुरा (लूनी) पीठाधीश महंत श्री किशनाराम जी महाराज का ननिहाल रोहिचा (कल्ला) में भाखररामजी कुरड के यंहा माता श्रीमती चुन्नीबाई की कोख से दिनांक 20 अक्टूम्बर, १९३० को जन्म हुआ | किशनारामजी के पिताजी का नाम वजारामजी ओड सुपुत्र श्री विरमारामजी हैं जो (लूनी) के रहने वाले हैं | सात वर्ष की अवस्था में किशानारामजी के स्वास्थ्य में दिनोदिन गिरावट आती गयी, इस कारण वजारामजी किशनारामजी को शिकारपुरा आश्रम लेकर जाते और समाधी की परिक्रमा देकर वापस घर लोट आते, इसी बिच वजारामजी की भेंट महंत श्री देवारामजी महाराज के साथ हुयी, जिन्होंने किशनारामजी को अपने सानिध्य में रखने की इच्छा जाहिर की, तब वजारामजी ने अपने परिवार वालो से सलाह-मशविरा करके देवारामजी महाराज के सानिध्य में शिकारपुरा आश्रम को सुदुर्प कर दिया| फिर देवारामजी महाराज के सानिध्य में किशनारामजी की प्राथमिक शिक्षा आरम्भ हुयी तथा साथ ही धर्म और समाज सम्बन्धी जानकारिया भी देते रहे| प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद जोधपुर से स्नातर की शिक्षा प्राप्त की तथा साथ ही आयुर्वेद शिक्षा (रजि. संख्या ६४६४ ए) का भी ज्ञान प्राप्त किया | शिक्षा ग्रहण करने के बाद महंत श्री देवारामजी ने शिकारपुरा आश्रम की जिम्मेदारी श्री किशनाराम जी को सॉप दी | तत्पक्षात अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए महंत श्री देवारामजी के देवलोक गमन के बाद आषाढ़ वद ४ बुधवार विक्रम संवत २०५३ को शिकारपुरा आश्रम के गादीपति बने | पीठाधीश बनने के बाद महंत श्री किशनाराम जी महाराज ने अपने गुरु के बतलाये हुए रास्ते पर चलते हुए समाज के चहुमुखी विकास के लिए दिन-रात एक कर दिया| किशनारामजी हँसमुख एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनि थे | वे गरीब जनता की निशुल्क तथा सेवा भाव करतेसे उपचार करते थे | किशनारामजी ने अपना पूरा जीवन जन सेवा और गौ सेवा में समर्पित कर दिया | आश्रम में आने वाले दर्शनार्थियों में छोटे से बड़े तक के लिए भोजन की निशुल्क वयवस्था वर्षो से चल रही हैं, महंत श्री का कहना था की मंदिर में बनाने वाली प्रसाद आने वाले हर श्रदालुओ को मिलनी चाहिए | इसलिए आश्रम का भोजनालय २४ घंटे खुला रहता हैं | यह व्यवस्था बिना किसी भेदभाव अनवरत चल रही हैं, इसलिए हर जाती धर्म के हजारो भक्त आपके अनुयायी हैं | किशनारामजी महाराज ने समाज के चहुमुखी विकास के लिए सर्वप्रथम बालिका शिक्षा एवं मृत्युभोज पर ज्यादा जोर दिया, शिक्षण संस्थानों एवं छात्रावासों का निर्माण करवाया | किशनारामजी के प्रयास से राजारामजी आश्रम, शिकारपुरा में श्री राधेकृष्ण मंदिर का निर्माण, जोधपुर के पाल रोड में संत श्री देवारामजी छात्रावास एवं कॉलेज का निर्माण, आहोर में श्री राजारामजी आंजना पटेल छात्रावास का निर्माण, जालोर में श्री राजारामजी आंजना पटेल छात्रावास का निर्माण, दिल्ली में शिक्षण संस्थान के लिए भूमि की खरीद, हरिद्वार एवं रामदेवरा में धर्मशाला का निर्माण, माउंट आबू में श्री राजारामजी छात्रावास एवं शिक्षण संस्थान का निर्माण इत्यादि अनेक कार्य संपन किये | तथा कल्याणपुर में श्री राजारामजी चिकित्सालय का शिलान्यास भी किशानारामजी के कर कमलो द्वारा हुआ | वर्तमान में राजस्थान में ६०, गुजरात में ४८, मद्यप्रदेश में ३५, कर्नाटका में १०, महारास्त्र में ६, तमिलनाडु में ४ छात्रावास का निर्माण हुआ जो एक रिकॉर्ड हैं | इसी दरमियान किशनारामजी ने कलबी आंजना समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए अखिल भारतीय आंजना (पटेल) समाज महासभा का गठन किया | जिसके जरिये महंत जी ने समूचे भारत में फैले हुए आंजना समाज को एक नयी दिशा प्रदान की, जिसके फलस्वरूप आज समाज की छवि रास्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं | महंत श्री किशनारामजी ने हमेशा समाज के लोगो को सावित्व एवं संस्कारपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दी तथा बाल-विवाह पर रोक एवं बालिका शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया | किशनारामजी समाज में समाज सुधारक के नाम से भी जाने जाते हैं | आंजना समाज के लिए किशनारामजी ने तन-मन-धन से प्रयास करके समाज को एक उन्नतिशील समाज की दौड़ में शामिल करके ७७ वर्ष की अवस्था में दिनांक ६.१.२००७ को परमात्मा में लीन हो गए |

महंत श्री श्री १००८ संतशिरोमणि श्री किशनाराम जी महाराज शिकारपुरा (लूनी)

कारोबारी मन्त्र एक किसान अपने खेत में भुट्टे पैदा करता था | उसका एक ही पुत्र था | पुत्र जब नौ साल का हुआ तो किसान उसे भी अपने साथ कभी - कभार खेतो में ले जाने लगा | ऐसे ही एक बार वह अपने बेटे को खेत पर लेकर गया | खेत में भुट्टे पक चुके थे और किसान उन्हें तोड़कर बाजार ले जाने की तैयारी कर रहा था | खेत में पहुचकर किसान के बेटे ने उससे - कहा पिताजी क्या मैं भी काम में आपकी कुछ मद्दद कर सकता हूँ ? इस पर किसान ने कहा -- हाँ - हाँ , जरूर कर सकते हो | हम ऐसा करते है कि मैं खेत में से भुट्टे तोड़ - तोड़ कर निकालता जाउंगा और तुम एक - एक दर्जन भुट्टो की अलग - अलग ढेरिया बनाते जाना | यह सुनकर बेटा खुश हो गया | इसके बाद वे दोनों काम पर जुट गये | किसान भुट्टे तोड़कर बेटे को देता और बेटा उन्हें ढेरियो में इकठ्ठा करता जाता | दोपहर होने पर दोनों ने वही साथ में बैठकर खाना खाया | इसके बाद किसान ने बेटे द्वारा बनाई ढेरियो पर नजर मारी | इन्हें देखने के बाद किसान खेत से कुछ और भुट्टे तोड़कर लाया और हरेक ढेरी में एक एक भुट्टा बढा दिया | यह देखकर किसान का बेटा बोला -- पिताजी , मुझे गिनती आती है | एक दर्जन का मतलब बारह होता है | मैंने हरेक ढेरी में गिनकर बारह भुट्टे ही रखे है | अब तो ये तेरह हो गये | उसकी बात सुनकर किसान ने मुस्कुराते हुए कहा - बेटा तुम ठीक कहते हो कि एक दर्जन का मतलब बारह होता है | लेकिन जब हम भुट्टे बेचने निकलते है तो एक दर्जन में तेरह भुट्टे होते है | बेटे ने पूछा -- ' ऐसा क्यों पिताजी ? तब किसान ने उसे समझाते हुए कहा - देखो , हम सिर्फ अच्छे भुट्टे बेचते है | भुट्टे के उपर छिलका होता है , तो हमारे ढेर में एक भुट्टा खराब भी निकल सकता है , जिसके बारे में हमे पता नही होता | इसीलिए हम अपने ग्राहकों को दर्जन पर एक अतिरिक्त भुट्टा देते है | हम चाहते है कि हमारे ग्राहक ये न समझे कि हमने उन्हें धोखा दिया | फिर हम यह भी चाहते है कि जो भी हमारा भुट्टा खरीदे , वह अपने पड़ोसियों को भी बताये कि ये कितने अच्छे है | इस तरह हमारे भुट्टे अधिक बिकेगे और हमारी आमदनी भी बढ़ेगी | यह बात सुनकर बेटा संतुष्ट हो गया | इस तरह किसान ने बातो - बातो में बेटे को कारोबार का यह अहम सबक भी सिखा दिया कि ग्राहक की संतुष्टि सर्वोपरी है | आप ग्राहक को कुछ अतिरिक्त देकर उसका विश्वास अर्जित करने के अलावा बहुत कुछ पा सकते है |

"शुभ रात्री" ~ ®

कारोबारी मन्त्र एक किसान अपने खेत में भुट्टे पैदा करता था | उसका एक ही पुत्र था | पुत्र जब नौ साल का हुआ तो किसान उसे भी अपने साथ कभी - कभार खेतो में ले जाने लगा | ऐसे ही एक बार वह अपने बेटे को खेत पर लेकर गया | खेत में भुट्टे पक चुके थे और किसान उन्हें तोड़कर बाजार ले जाने की तैयारी कर रहा था | खेत में पहुचकर किसान के बेटे ने उससे - कहा पिताजी क्या मैं भी काम में आपकी कुछ मद्दद कर सकता हूँ ? इस पर किसान ने कहा -- हाँ - हाँ , जरूर कर सकते हो | हम ऐसा करते है कि मैं खेत में से भुट्टे तोड़ - तोड़ कर निकालता जाउंगा और तुम एक - एक दर्जन भुट्टो की अलग - अलग ढेरिया बनाते जाना | यह सुनकर बेटा खुश हो गया | इसके बाद वे दोनों काम पर जुट गये | किसान भुट्टे तोड़कर बेटे को देता और बेटा उन्हें ढेरियो में इकठ्ठा करता जाता | दोपहर होने पर दोनों ने वही साथ में बैठकर खाना खाया | इसके बाद किसान ने बेटे द्वारा बनाई ढेरियो पर नजर मारी | इन्हें देखने के बाद किसान खेत से कुछ और भुट्टे तोड़कर लाया और हरेक ढेरी में एक एक भुट्टा बढा दिया | यह देखकर किसान का बेटा बोला -- पिताजी , मुझे गिनती आती है | एक दर्जन का मतलब बारह होता है | मैंने हरेक ढेरी में गिनकर बारह भुट्टे ही रखे है | अब तो ये तेरह हो गये | उसकी बात सुनकर किसान ने मुस्कुराते हुए कहा - बेटा तुम ठीक कहते हो कि एक दर्जन का मतलब बारह होता है | लेकिन जब हम भुट्टे बेचने निकलते है तो एक दर्जन में तेरह भुट्टे होते है | बेटे ने पूछा -- ' ऐसा क्यों पिताजी ? तब किसान ने उसे समझाते हुए कहा - देखो , हम सिर्फ अच्छे भुट्टे बेचते है | भुट्टे के उपर छिलका होता है , तो हमारे ढेर में एक भुट्टा खराब भी निकल सकता है , जिसके बारे में हमे पता नही होता | इसीलिए हम अपने ग्राहकों को दर्जन पर एक अतिरिक्त भुट्टा देते है | हम चाहते है कि हमारे ग्राहक ये न समझे कि हमने उन्हें धोखा दिया | फिर हम यह भी चाहते है कि जो भी हमारा भुट्टा खरीदे , वह अपने पड़ोसियों को भी बताये कि ये कितने अच्छे है | इस तरह हमारे भुट्टे अधिक बिकेगे और हमारी आमदनी भी बढ़ेगी | यह बात सुनकर बेटा संतुष्ट हो गया | इस तरह किसान ने बातो - बातो में बेटे को कारोबार का यह अहम सबक भी सिखा दिया कि ग्राहक की संतुष्टि सर्वोपरी है | आप ग्राहक को कुछ अतिरिक्त देकर उसका विश्वास अर्जित करने के अलावा बहुत कुछ पा सकते है |

"शुभ रात्री" ~ ®


शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

होळी

होळी मनावां / चंग बजावां रळमिल गावां, आओ आपां रंग लगावां। जात-पांत री भींतां तोड़ां, भाईपणै री रीत निभावां। भर पिचकारी रंगद्यां गाभा, डांडिया खेलां रास रचावां। गालां माथै इक दूजै रै सतरंगियो गुलाल लगावां। टाबरटोली रळमिल सगळा, रापटरोळी घणी मचावां। बैर-दुसमणी भूलां आपां, होळी रौ त्यूंहार मनावां।।

"रूपया" जिण रा अलग-अलग नोम हैं ::

"रूपया" जिण रा अलग-अलग नोम हैं :: मंदिर में देवौ तो -----------------Donation दान स्कूल में देवौ तो -----------------Fees फीस शादी में देवौ तो -----------------Dowry दहेज तलाक़ रे बाद देवौ तो ----------Alimony गुजारा भत्ता सरकार ने देवौ तो --------------Tax कर कोर्ट में देवौ तो ------------------Fine जुर्माना रिटायर होणेे रे बाद मिले तो ---Pension माली इमदाद बॉस कर्मचारी ने देवौे तो -------Salary वेतन टाबरौ रे वास्ते खर्चो तो --------Maintenance प्रतिपालन सेवा लेणे रे बाद देवौ तो -------Tip अभिनामन गैरकानूनी किणी ने देवौ तो ----Bribe रिश्वत लेकिन सबसु बड़ो सवाल -- जदे एक पति अापणी पत्नी ने रूपया देवै,,,,, तो उण रूपयो ने कांई कहयौ जावैगौ ? बतावौ जे कोई जवाब है आपरै पास तो ?

****साँची बात ****

****साँची बात **** काया- माया बादळ छाया, खोज मिटे ज्यूँ पाणी में, मिनखजमारै विष मत घोळी, थोड़ी सी जिंदगाणी में, अधबीच रामत छोड़ अधूरी, पलक झपे उठ जाणी में, मिनखजमारै विष मत घोळी, थोड़ी सी जिंदगाणी में, आंख्यां मीच अपुठो दोङै, लारै खाडा कावळ है, सावचेत हु पग धर करणी, कोनी ठीक ऊतावळ है, सोने रा डूंगर मत जाणी, अळगा जितरा सावळ है, चेत रेत में रळ जावेला, तिलक माथला चावळ है, हाथ मसळतो रह जावेला, कीं नीं आणी जाणी में, मिनखजमारै विष मत घोळी, थोड़ी सी जिंदगाणी में, ‪

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

सौन्दर्य प्रतियोगिताओं का असर !

सौन्दर्य प्रतियोगिताओं का असर --- _______________________________- मित्रो दस साल पहले भारत से कई विश्व सुंदरियां बनी इसके पीछे विदेशी कंपनियों की सोची समझी साजिश थी . - कई प्रसाधन बनाने वाली कम्पनियां भारत में अपना मार्केट खोज रही थी . पर यहाँ अधिकतर महिलाएं ज़्यादा प्रसाधन का इस्तेमाल नहीं करती थी . इसलिए उन्होंने भारत से सुंदरियों को जीता कर लड़कियों के मन में ग्लेमर की चाह उत्पन्न की. - मिसेज़ इंडिया जैसी प्रतियोगिताओं से बड़ी उम्र की महिलाओं को भी टारगेट किया गया . - इन सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के बाद लडकियां सपने देखने लगी की वे भी मिस इंडिया , फिर मिस वर्ल्ड, फिर हीरोइन, फिर बहुत धनी बन सकती है . - इसके लिए वे अपने आपको स्लिम करने के चक्कर में फिटनेस सेंटर में जाने लगी जहां क्रेश डाइटिंग , लाइपोसक्शन , गोलियां , प्लास्टिक सर्जरी जैसे महंगे और अनैसर्गिक तरीकेबताये जाते . - सौन्दर्य प्रसाधन इस्तेमाल करना आम हो गया .- ब्यूटी पार्लर जाना आम हो गया . - इस तरह हर महिला सौन्दर्य प्रसाधनों , ब्यूटी पार्लर , फिटनेस सेंटर आदि पर हर महीने हज़ारो रुपये खर्च करने लगी . - पर सबसे ज़्यादा बुरा असर उन महिलाओं पर पड़ा जोइन मोड़ेल्स की तरह दिखने के लिए अपनी भूख को मार कुपोषण का शिकार हो गई . - इसलिए आज देश में दो तरह के कुपोषण है - एक गरीबों का जो मुश्किल से एक वक्त की रोटी जुटा पाते है और दुसरा संपन्न वर्ग का जो जंक फ़ूड खाकर और डाइटिंग कर कुपोषण का शिकार हो रहाहै . - यहाँ तक की नई नई माँ बनी हुई बहनों को भी वजन कम करने की चिंता सताने लगती है . जब की यह वो समय है जब वजन की चिंता न कर पोषक खाना खाने पर , आराम पर ध्यान देना कर माँ का हक है . ये समय ज़िन्दगी में एक या दो बार आता है और इस समय स्वास्थ्य की देख भाल आगे की पूरी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है . यह समय मातृत्व का आनंद लेने का है ना की कोई नुमाइश की चीज़ बनाने का . - ताज़ा उदाहरण है ऐश्वर्या राय . वह माँ बनाने की गरिमा और आनंद कोजी ही नहीं पाई . मीडिया ने उनके बढ़ते वजन पर ऐसे ताने कसे की वो अपने बच्ची की देखभाल और नए मातृत्व का आनंद लेना छोड़ वजन कम करने में जुट गई होंगी . - अब जब इन कंपनियों का मार्केट भारत में स्थापित हो चुका है तो कोई विश्व सुंदरी भारत से नहीं बनेगी . अब इनकी दुसरे देशों पर नज़र है .! या कभी इनको लगे की मंदी आने लगी है तो दुबारा किसी को भारत मे से चुन ले !! क्यूंकि चीन के बाद भारत 121 करोड़ की आबादी वाला दुनिया का सबसे बढ़ा market है !! __________________________ तो मित्रो ये सब कार्य बहुत ही गहरी साजिश बना कर अंजाम दिया जाता है ! जिसमे हमारा मीडिया विदेशी कंपनियो के साथ मिलकर बहुत रोल अदा करता है ! मित्रो एक तरफ मीडिया देश मे बढ़ रहे बलात्कार पर छाती पीटता है ! और दूसरी तरफ खुद भी अश्लीलता को बढ़ावा देता है ! वो चाहे india today की मैगजीन के कवर हो ! या ये विदेशी times of india अखबार ! ये times of india आप उठा लीजिये ! रोज times of india मे आपको पहले पेज पर या दूसरे पेज पर किसी ना किसी लड़की की आधे नंगी या लगभग पूरी नंगी तस्वीर मिलेगी ! जब की उसका खबर से कोई लेना देना नहीं ! जानबूझ कर आधी नंगी लड़कियों की तस्वीर छापना ही इनकी पत्रकारिता रह गया है !! और ये ही times of india है जो भारत की संस्कृति का नाश करने पर तुला है !! इसी ने आज से 10 -15 वर्ष पूर्व miss india, miss femina आदि शुरू किए ! जो अब मिस वर्ड ,मिस यूनिवर्स पता नहीं ना जाने क्या क्या बन गया है !! आज हमने इनके खिलाफ आवाज नहीं उठाई ,इनका बहिष्कार नहीं ! तो कल ये हमारी बची कूची संस्कृति को भी निकग जाएगा !! MUST CLICK LINK - https:// www.youtube.com/ watch?v=wI7foiSe jO8 ________________ अधिक से अधिक शेयर करें

अपने भारत की संस्कृति को पहचानें ?

अपने भारत की संस्कृति को पहचानें *** * दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष ! * तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण ! * चार युग - सतयुग, त्रेता युग, द्वापरयुग एवं कलयुग ! * चार धाम - द्वारिका, बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम ! * चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ ! * चर वेद- ऋग्वेद, अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद ! * चार आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, बानप्रस्थ एवं संन्यास ! * चार अंतःकरण - मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार ! * पञ्च गव्य - गाय का घी, दूध, दही, गोमूत्र एवं गोबर , ! * पञ्च देव - गणेश, विष्णु, शिव, देवी और सूर्य ! * पंच तत्त्व - प्रथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश ! * छह दर्शन- वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा ! * सप्त ऋषि - विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप ! * सप्त पूरी - अयोध्या पूरी, मथुरा पूरी, माया पूरी ( हरिद्वार ), काशी, कांची (शिन कांची - विष्णु कांची), अवंतिका और द्वारिका पूरी ! * आठ योग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधी ! * आठ लक्ष्मी - आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग एवं योग लक्ष्मी ! * नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री ! * दस दिशाएं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, इशान, नेत्रत्य, वायव्य आग्नेय, आकाश एवं पाताल ! * मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य, कच्छप, बराह, नरसिंह, बामन, परशुराम, श्रीराम, कृष्ण, बलराम, बुद्ध एवं कल्कि ! * बारह मास - चेत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाड़, श्रावन, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फागुन ! * बारह राशी - मेष, ब्रषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, ब्रश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ एवं कन्या ! * बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ, मल्लिकर्जुना, महाकाल, ओमकालेश्वर, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ, त्रियम्वाकेश्वर, केदारनाथ, घुष्नेश्वर, भीमाशंकर एवं नागेश्वर ! * पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा, द्वतीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा , अमावश्या ! * स्म्रतियां - मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ ! जय जय माँ भारती, जय भारत !!

अपने भारत की संस्कृति को पहचानें ?


।। शुभ मँगल बसंत पंचमी/सरस्वती पूजा ।।

बसंत पंचमी प्रसिद्ध भारतीय त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा सम्पूर्ण भारत में बड़े उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं। बसंत पंचमी के पर्व से ही 'बसंत ऋतु' का आगमन होता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। पत्रपटल तथा पुष्प खिल उठते हैं। स्त्रियाँ पीले-वस्त्र पहन, बसंत पंचमी के इस दिन के सौन्दर्य को और भी अधिक बढ़ा देती हैं। लोकप्रिय खेल पतंगबाज़ी, बसंत पंचमी से ही जुड़ा है। यह विद्यार्थियों का भी दिन है, इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की पूजा आराधना भी की जाती है। बसंत का अर्थ बसंत ऋतु तथा पंचमी का अर्थ है- शुक्ल पक्ष का पाँचवां दिन अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फ़रवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है। सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। ऐतिहासिक महत्व वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया। चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥ पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।

संत श्री किशनारामजी विश्रान्ति गृह का उदघाटन समारोह

संत श्री किशनारामजी विश्रान्ति गृह का उदघाटन समारोह @ Address @ संत श्री किशनारामजी विश्रान्ति गृह 849,रानी सती नगर,गोपालपुरा बाई पास,होटल के.महावीर के पास,जयपुर (राज.) @@ संत श्री किशनारामजी विश्रान्ति गृह का उदघाटन समारोह सोमवार , दि. 23 फरवरी 2015, तिथि फाल्गुन सुद पंचमी को पूज्य महन्त श्री दयारामजी महाराज आंजना पटेल समाज शिकारपुरा आश्रम के करकमलों द्वारा किया जाएगा। मुख्य अतिथि:- श्री हरि भाई चौधरी (केंद्रीय गृह राज्यमंत्री-भारत सरकार) विशिष्ट अथिति:- श्री अमराराम चौधरी, राजस्व मंत्री राज. सरकार श्री शंकरभाई चौधरी, जल संसाधन व चिकित्सा मंत्री गुजरात सरकार श्री देवजी भाई पटेल, सांसद जालोर-सिरोही (राज.) श्री गजेन्द्रसिंह शेखावत,सांसद जोधपुर (राज.) श्री कर्नल सोनाराम चौधरी, सांसद बाङमेर (राज.) श्री जोगाराम पटेल, पूर्व संसदीय सचिव व विधायक लूणी (राज.) श्री पूराराम चौधरी, विधायक भीनमाल जालोर राज. श्री परबत भाई, पूर्व मंत्री व विधायक थराद (गुज.) श्री जोइता भाई विधायक धानेरा (गुज.) श्री अमित भाई, विधायक माणसा (गुज.) श्री भगराज चौधरी, पूर्व मंत्री व पूर्व विधायक आहोर (राज.) श्री उदयलाल आँजणा, पूर्व सांसद व पूर्व विधायक निम्बाहेङा (राज.) श्री हरजीवन भाई, पूर्व मंत्री व पूर्व विधायक धानेरा (गुज.) श्री विपुल भाई, पूर्व मंत्री व पूर्व विधायक मेहसाणा (गुज.) श्री जीवाराम चौधरी, पूर्व विधायक सांचोर (राज.) श्री मावजी भाई, पूर्व विधायक थराड (गुज.) श्रीमती रमिला बेन, पूर्व विधायक खेरालू (गुज.) श्री बसंत भटोल,पूर्व विधायक दाता (गुज.) श्री रणछोङलाल आँजणा, पूर्व विधायक खाचरोद (मध्यप्रदेश) श्री रघुनाथसिंह,पूर्व विधायक नीमच आंजना पटेल समाज शिकारपुरा आश्रम

संत श्री किशनारामजी विश्रान्ति गृह का उदघाटन समारोह


: छत्रपति शिवाजी महाराज.

राजकाल १६७४– १६८० राज्याभिषेक१६७४ जन्म १९ फरवरी, १६३० शिवनेरी दुर्ग मृत्यु ३ अप्रैल, १६८० रायगढ़ पूर्वाधिकारी शाहजी उत्तराधिकारी सम्भाजी पिताशाहजी माता जीजाबाई छत्रपतिशिवाजी राजे भोसले(१६३०-१६८०) ने १६७४में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्यकी नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेबके मुगलसाम्राज्य से संघर्ष किया। शिवाजी का जन्म १९ फ़रवरी १६३० में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था । [1] आरंभिक जीवन शाहजी भोंसलेकी पत्नी जीजाबाई(राजमाता जिजाऊ) की कोख से शिवाजी महाराज का जन्म १९ फ़रवरी १६३० को शिवनेरीदुर्ग में हुआ था। शिवनेरी का दुर्ग पूना(पुणे) से उत्तर की तरफ़ जुन्नार नगर के पास था। उनका बचपन उनकी माता जिजाऊ के मार्गदर्शन में बीता। वह सभी कलाओ मे माहिर थे, उन्होंने बचपन में राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। ये भोंसले उपजाति के थे जोकि मूलत: कुर्मी जाति से संबद्धित हे | कुर्मी जाति कृषि संबद्धित कार्य करती हे [2]| उनके पिता अप्रतिम शूरवीर थे और उनकी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थीं। उनकी माता जी जीजाबाईजाधव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली थी और उनके पिता एक शक्तिशाली सामन्त थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओँ को भली प्रकार समझने लगे थे। शासक वर्ग की करतूतों पर वे झल्लाते थे और बेचैन हो जाते थे। उनके बाल-हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया। अवस्था बढ़ने के साथ विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ फेंकने का उनका संकल्प प्रबलतर होता गया। छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् १४ मइ १६४० में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पुनामें हुआ था। सैनिक वर्चस्व का आरंभ शिवाजी महाराज ने अपने संरक्षक कोणदेव की सलाह पर बीजापुरके सुल्तान की सेवा करना अस्वीकार कर दिया। उस समय बीजापुर का राज्य आपसी संघर्ष तथा विदेशी आक्रमणकाल के दौर से गुजर रहा था। ऐसे साम्राज्य के सुल्तान की सेवा करने के बदले उन्होंने मावलोंको बीजापुर के ख़िलाफ संगठित करने लगे। मावल प्रदेश पश्चिम घाटसे जुड़ा है और कोई १५० किलोमीटर लम्बा और ३0 किमी चौड़ा है। वे संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण कुशल योद्धा माने जाते हैं। इस प्रदेश में मराठा और सभि जाति के लोग रहते हैं। शिवाजी महाराज इन सभि जाति के लोगो को लेकर मावलों (मावळा) नाम देकर सभि को सन्घटित किया और उनसे सम्पर्क कर उनके प्रदेश से परिचित हो गए थे। मावल युवकों को लाकर उन्होंने दुर्ग निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया था। मावलों का सहयोग शिवाजी महाराज के लिए बाद में उतना ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जितना शेरशाह सूरीके लिए अफ़गानोंका साथ। उस समय बीजापुर आपसी संघर्ष तथा मुगलों के आक्रमण से परेशान था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाहने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों या सामन्तों के हाथ सौंप दिया था। जब आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई और शिवाजी महाराज ने अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश का निर्णय लिया। शिवाजी महाराज ने इसके बाद के दिनों में बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करने की नीति अपनाई। सबसे पहला दुर्ग था तोरण का दुर्ग। दुर्गों पर नियंत्रण तोरण का दुर्ग पूना के दक्षिण पश्चिम में ३0 किलोमीटर की दूरी पर था। उन्होंने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना दूत भेजकर खबर भिजवाई कि वे पहले किलेदार की तुलना में बेहतर रकम देने को तैयार हैं और यह क्षेत्र उन्हें सौप दिया जाय। उन्होने आदिलशाहके दरबारियों को पहले ही रिश्वत देकर अपने पक्ष में कर लिया था और अपने दरबारियों की सलाह के मुताबिक आदिलशाह ने शिवाजी महाराज को उस दुर्ग का अधिपति बना दिया। उस दुर्ग में मिली सम्पत्ति से शिवाजी महाराज ने दुर्ग की सुरक्षात्मक कमियों की मरम्मत का काम करवाया। इससे कोई १0 किलोमीटर दूर राजगढ़ का दुर्ग था और शिवाजी महाराज ने इस दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया। शिवाजी महाराज की इस साम्राज्य विस्तार की नीति की भनक जब आदिलशाहको मिली तो वह क्षुब्ध हुआ। उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने को कहा। शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया और नियमित लगान बन्द कर दिया। राजगढ़ के बाद उन्होने चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया और उसके बाद कोंडना के दुर्ग पर। कोंडना (कोन्ढाणा) पर अधिकार करते समय उन्हें घूस देनी पड़ी। कोंडना पर अधिकार करने के बाद उसका नाम सिंहगढ़ रखा गया। शाहजी राजे को पूना और सूपा की जागीरदारी दी गई थी और सूपा का दुर्ग उनके सम्बंधी बाजी मोहिते के हाथ में थी। शिवाजी महाराज ने रात के समय सूपा के दुर्ग पर आक्रमण करके दुर्ग पर अधिकार कर लिया और बाजी मोहिते को शाहजी राजे के पास कर्नाटक भेज दिया। उसकी सेना का कुछ भाग भी शिवाजी महाराज की सेवा में आ गया। इसी समय पुरन्दर के किलेदार की मृत्यु हो गई और किले के उत्तराधिकार के लिए उसके तीनों बेटों में लड़ाई छिड़ गई। दो भाइयों के निमंत्रण पर शिवाजी महाराज पुरन्दर पहुँचे और कूटनीति का सहारा लेते हुए उन्होंने सभी भाइय़ों को बन्दी बना लिया। इस तरह पुरन्दर के किले पर भी उनका अधिकार स्थापित हो गया। अब तक की घटना में शिवाजी महाराज को कोई युद्ध या खूनखराबा नहीं करना पड़ा था। १६४७ ईस्वी तक वे चाकन से लेकर नीरा तक के भूभाग के भी अधिपति बन चुके थे। अपनी बढ़ी सैनिक शक्ति के साथ शिवाजी महाराज ने मैदानी इलाकों में प्रवेश करने की योजना बनाई। एक अश्वारोही सेना का गठन कर शिवाजी महाराज ने आबाजी सोन्देर के नेतृत्व में कोंकणके विरूद्ध एक सेना भेजी। आबाजी ने कोंकण सहित नौ अन्य दुर्गों पर अधिकार कर लिया। इसके अलावा ताला, मोस्माला और रायटी के दुर्ग भी शिवाजी महाराज के अधीन आ गए थे। लूट की सारी सम्पत्ति रायगढ़ में सुरक्षित रखी गई। कल्याण के गवर्नर को मुक्त कर शिवाजी महाराज ने कोलाबा की ओर रुख किया और यहाँ के प्रमुखों को विदेशियों के खिलाफ़ युद्ध के लिए उकसाया। शाहजी की बन्दी और युद्धविराम बीजापुर का सुल्तान शिवाजी महाराज की हरकतों से पहले ही आक्रोश में था। उसने शिवाजी महाराज के पिता को बन्दी बनाने का आदेश दे दिया। शाहजी राजे उस समय कर्नाटक में थे और एक विश्वासघाती सहायक बाजी घोरपड़े द्वारा बन्दी बनाकर बीजापुर लाए गए। उन पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने कुतुबशाहकी सेवा प्राप्त करने की कोशिश की थी जो गोलकोंडाका शासक था और इस कारण आदिलशाह का शत्रु। बीजापुर के दो सरदारों की मध्यस्थता के बाद शाहाजी महाराज को इस शर्त पर मुक्त किया गया कि वे शिवाजी महाराज पर लगाम कसेंगे। अगले चार वर्षों तक शिवाजी महाराज ने बीजीपुर के ख़िलाफ कोई आक्रमण नहीं किया। इस दौरान उन्होंने अपनी सेना संगठित की। प्रभुता का विस्तार बिरला मंदिर, दिल्लीमेंशिवाजी की मूर्ति शाहजी की मुक्ति की शर्तों के मुताबिक शिवाजी ने बीजापुर के क्षेत्रों पर आक्रमण तो नहीं किया पर उन्होंने दक्षिण-पश्चिम में अपनी शक्ति बढ़ाने की चेष्टा की। पर इस क्रम में जावलीका राज्य बाधा का काम कर रहा था। यह राज्य साताराके सुदूर उत्तर पश्चिम में वामाऔर कृष्णानदी के बीच में स्थित था। यहाँ का राजा चन्द्रराव मोरेथा जिसने ये जागीर शिवाजी से प्राप्त की थी। शिवाजी ने मोरे शासक चन्द्रराव को स्वराज मे शमिल होने को कहा पर चन्द्रराव बीजापुर के सुल्तान के साथ मिल गया। सन् १६५६ में शिवाजी ने अपनी सेना लेकर जावली पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रराव मोरे और उसके दोनों पुत्रों ने शिवाजी के साथ लड़ाई की पर अन्त में वे बन्दी बना लिए गए पर चन्द्रराव भाग गया। स्थानीय लोगों ने शिवाजी के इस कृत्य का विरोध किया पर वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे। इससे शिवाजी को उस दुर्ग में संग्र्हीत आठ वंशों की सम्पत्ति मिल गई। इसके अलावा कई मावल सैनिक[मुरारबाजी देशपाडे] भी शिवाजी की सेना में सम्मिलित हो गए। मुगलों से पहली मुठभेड़ शिवाजी के बीजापुर तथा मुगल दोनों शत्रु थे। उस समय शहज़ादा औरंगजेब दक्कनका सूबेदार था। इसी समय १ नवम्बर १६५६ को बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु हो गई जिसके बाद बीजापुर में अराजकता का माहौल पैदा हो गया। इस स्थिति का लाभ उठाकर औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया और शिवाजी ने औरंगजेब का साथ देने की बजाय उसपर धावा बोल दिया। उनकी सेना ने जुन्नार नगर पर आक्रमण कर ढेर सारी सम्पत्ति के साथ २00 घोड़े लूट लिये। अहमदनगरसे ७00 घोड़े, चार हाथी के अलावा उन्होंने गुण्डा तथा रेसिन के दुर्ग पर भी लूटपाट मचाई। इसके परिणामस्वरूप औरंगजेव शिवाजी से खफ़ा हो गया और मैत्री वार्ता समाप्त हो गई। शाहजहाँ के आदेश पर औरंगजेब ने बीजापुर के साथ संधि कर ली और इसी समय शाहजहाँ बीमार पड़ गया। उसके व्याधिग्रस्त होते ही औरंगजेब उत्तर भारत चला गया और वहाँ शाहजहाँ को कैद करने के बाद मुगल साम्राज्य का शाह बन गया। कोंकण पर अधिकार दक्षिण भारत में औरंगजेब की अनुपस्थिति और बीजापुर की डवाँडोल राजनैतिक स्थित को जानकर शिवाजी ने समरजी को जंजीरा पर आक्रमण करने को कहा। पर जंजीरा के सिद्दियोंके साथ उनकी लडाई कई दिनो तक चली। इसके बाद शिवाजी ने खुद जंजीरा पर आक्रमण किया और दक्षिण कोंकण पर अधिकार कर लिया और दमन के पुर्तगालियों से वार्षिक कर एकत्र किया। कल्य़ाण तथा भिवण्डी पर अधिकार करने के बाद वहाँ नौसैनिक अड्डा बना लिया। इस समय तक शिवाजी 40 दुर्गों के मालिक बन चुके थे। बीजापुर से संघर्ष इधर औरंगजेब के आगरा(उत्तर की ओर) लौट जाने के बाद बीजापुर के सुल्तान ने भी राहत की सांस ली। अब शिवाजी ही बीजापुर के सबसे प्रबल शत्रु रह गए थे। शाहजी को पहले ही अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने को कहा गया था पर शाहजी ने इसमे अपनी असमर्थता जाहिर की। शिवाजी से निपटने के लिए बीजापुर के सुल्तान ने अब्दुल्लाह भटारी ( अफ़ज़ल खाँ) को शिवाजी के विरूद्ध भेजा। अफ़जल ने 120000 सैनिकों के साथ 1659 में कूच किया। तुलजापुर के मन्दिरों को नष्ट करता हुआ वह सतारा के 30 किलोमीटर उत्तर वाई, शिरवल के नजदीक नामक स्थान तक आ गया। पर शिवाजी प्रतापगढ़ के दुर्ग पर हि रहे। अफजल खाँ ने अपने दूत कृष्णजी भास्कर को सन्धि-वार्ता के लिए भेजा। उसने उसके मार्फत ये संदेश भिजवाया कि अगर शिवाजी बीजापुर की अधीनता स्वीकार कर ले तों सुल्तान उसे उन सभी क्षेत्रों का अधिकार दे देंगे जो शिवाजी के नियंत्रण में हैं। साथ ही शिवाजी को बीजापुर के दरबार में एक सम्मानित पद प्राप्त होगा। हँलांकि शिवाजी के मंत्री और सलाहकार अस संधि के पक्ष मे थे पर शिवाजी को ये वार्ता रास नहीं आई। उन्होंने कृष्णजी भास्कर को उचित सम्मान देकर अपने दरबार में रख लिया और अपने दूत गोपीनीथ को वस्तुस्थिति का जायजा लेने अफजल खाँ के पास भेजा। गोपीनाथ और कृष्णजी भास्कर से शिवाजी को ऐसा लगा कि सन्धि का षडयंत्र रचकर अफजल खाँ शिवाजी को बन्दी बनाना चाहता है। अतः उन्होंने युद्ध के बदले अफजल खाँ को एक बहुमूल्य उपहार भेजा और इस तरह अफजल खाँ को सन्धि वार्ता के लिए राजी किया। सन्धि स्थल पर दोनों ने अपने सैनिक घात लगाकर रखे थे मिलने के स्थान पर जब दोनो मिले तब अफजल खाँ ने अपने कट्यार से शिवाजी पे वार किया बचाव मे शिवाजी ने अफजल खाँ को अपने वस्त्रो वाघनखो से मार दिया [१० नवमबर १६५९]| अफजल खाँ की मृत्यु के बाद शिवाजी ने पन्हाला के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इसके बाद पवनगढ़ और वसंतगढ़ के दुर्गों पर अधिकार करने के साथ ही साथ उन्होंने रूस्तम खाँ के आक्रमण को विफल भी किया। इससे राजापुर तथा दावुल पर भी उनका कब्जा हो गया। अब बीजापुरमें आतंक का माहौल पैदा हो गया और वहाँ के सामन्तों ने आपसी मतभेद भुलाकर शिवाजी पर आक्रमण करने का निश्चय किया। 2 अक्टूबर 1665 को बीजापुरी सेना ने पन्हाला दुर्ग पर अधिकार कर लिया। शिवाजी संकट में फंस चुके थे पर रात्रि के अंधकार का लाभ उठाकर वे भागने में सफल रहे। बीजापुर के सुल्तान ने स्वयं कमान सम्हालकर पन्हाला, पवनगढ़ पर अपना अधिकार वापस ले लिया, राजापुर को लूट लिया और श्रृंगारगढ़ के प्रधान को मार डाला। इसी समय कर्नाटकमें सिद्दीजौहर के विद्रोह के कारण बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के साथ समझौता कर लिया। इस संधि में शिवाजी के पिता शाहजी ने मध्यस्थता का काम किया। सन् 1662 में हुई इस सन्धि के अनुसार शिवाजी को बीजापुर के सुल्तान द्वारा स्वतंत्र शासक की मान्यता मिली। इसी संधि के अनुसार उत्तर में कल्याण से लेकर दक्षिण में पोण्डा तक (250 किलोमीटर) का और पूर्व में इन्दापुर से लेकर पश्चिम में दावुल तक (150 किलोमीटर) का भूभाग शिवाजी के नियंत्रण में आ गया। शिवाजी की सेना में इस समय तक 30000 पैदल और 1000 घुड़सवार हो गए थे। मुगलों के साथ संघर्ष उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खतम होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियंत्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने १,५०,००० फोज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने ३ साल तक मावल मे लुटमार कि। एक रात शिवाजी ने अपने ३५० मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बचनिकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र, तथा चालीस रक्षकों और अन्गिनत फोज का कत्ल कर दिया गया। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया। सूरत में लूट इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में इजाफ़ा हुआ। 6 साल शास्ताखान ने अपनी १५०००० फोउज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। ईस् लिए उस् का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरंभ किया। सूरतउस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हजपर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ छः दिनों तक सूरत को के धनड्य व्यापारि को लूटा आम आदमि को नहि लुटा और फिर लौट गए। इस घटना का जिक्र डचतथा अंग्रेजोंने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अऩ्य एशियाई देशों में बस गये थे। नादिर शाहके भारत पर आक्रमण करने तक (1739) किसी भी य़ूरोपीय शक्ति ने भारतीय मुगल साम्राज्य पर आक्रमण करने की नहीं सोची थी। सूरत में शिवाजी की लूट से खिन्न होकर औरंगजेब ने इनायत खाँ के स्थान पर गयासुद्दीन खां को सूरत का फौजदार नियुक्त किया। और शहजादा मुअज्जम तथा उपसेनापति राजा जसवंत सिंह की जगह दिलेर खाँ और राजा जयसिंह की नियुक्ति की गई। राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान, यूरोपीय शक्तियाँ तथा छोटे सामन्तों का सहयोग लेकर शिवाजी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार कीसम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुगलों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएंगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के खिलाफ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे। आगरा में आमंत्रण और पलायन शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके खिलाफ उन्होने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नज़रकैद कर दिया और उनपर ५००० सेनिको के पहरे लगा दीय॥ कुछ ही दिनो बाद[१८ अगस्त १६६६ को] राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा ओंरन्ग्जेब का था। लेकिन अपने अजोड साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[१७ अगस्त १६६६]। सम्भाजी को मथुरामें एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी बनारस, गया, पुरीहोते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [२ सप्टेम्बर १६६६]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार संधि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। पर, सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुगलों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा। नगर से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त उन्होंने मुगल सेना को सूरत के पास फिर से हराया। राज्याभिषेक रायगढ़ में शिवाजी की प्रतिमा सन् १६७४ तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे। पश्चिमी महारष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राहमणों ने उनका घोर विरोध किया। शिवाजी के निजी सचीव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने ने काशी में गंगाभ नमक ब्राहमण के पास तीन दूतो को भेजा, किन्तु गंगा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे उसने कहा की क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा | बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवार के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया | किन्तु यहाँ आने के बाद जब उसने पुन जाँच पड़ताल की तो उसने प्रमाणों को गलत पाया और राज्याभिषेक से मना कर दिया। अंतत: मजबूर होकर उसे एक लाख रुपये के प्रलोभन दिया गया तब उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राहमणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया विवश होकर शिवाजी को अष्टप्रधान मंडल की स्थापना करनी पड़ी [3]। विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। काशी के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लघभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगरके पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नामका सिक्का चलवाया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को शिवाजी के विरूद्ध भेजा पर वे असफल रहे। दक्षिण में दिग्विजय सन् 1677-78 में शिवाजी का ध्यान कर्नाटक की ओर गया। बम्बईके दक्षिण मे कोंकण, तुङभद्रा नदीके पश्चिम में बेलगाँवतथा धारवाड़का क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूरतथा जिंजीपर अधिकार करने के बाद 4 अप्रैल, 1680को शिवाजी का देहांत हो गया। मृत्यु और उत्तराधिकार तीन सप्ताह की बीमारी के बाद शिवाजी की मृत्यु अप्रैल 1680 में हुई। उस समय शिवाजी के उत्तराधिकार शम्भाजी को मिले। शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र शम्भाजीथे और दूसी पत्नी से राजाराम नाम एक दूसरा पुत्र था। उस समय राजारामकी उम्र मात्र 10 वर्ष थी अतः मराठों ने शम्भाजी को राजा मान लिया। उस समय औरंगजेब राजा शिवाजि का देहान्त देखकर अपनी पुरे भारत पर राज्य करने कि अभिलाशा से अपनी ५,००,००० सेना सागर लेकर दक्षिण भारत जीतने निकला। औरंगजेबने दक्षिण मे आतेही अदिल्शाहि २ दिनो मे ओर कुतुबशहि १ हि दिनो मे खतम कर दी। पर राजा सम्भाजी के नेतृत्व मे मराठाओने ९ साल युद्ध करते हुये अपनी स्वतन्त्रता बरकरार रखी। औरंगजेब के पुत्र शहजादा अकबर ने औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया। शम्भाजी ने उसको अपने यहाँ शरण दी। औरंगजेब ने अब फिर जोरदार तरिकेसे शम्भाजी के खिलाफ आक्रमण करना शुरु किया। उसने अंततः 1689 में संभाजी के बिवी के सगे भाई ने याने गणोजी शिर्के की मुखबरी से शम्बाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया। औरंगजेब ने राजा सम्भाजी को बदसुलुकि ओउर बुरी हाल कर के मार दिया। अपनी राजा को औरंगजेब ने बदसुलुकि ओउर बुरी हाल मारा हुआ देखकर सबी मराठा स्वराज्य क्रोधीत हुआ। उन्होने अपनी पुरी ताकद से तीसरा राजा राम के नेत्रुत्व मे मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700 इस्वी में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई ने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीयकी संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार २५ साल मराठा स्वराज्य के यूदध लडके थके हुये औरंगजेब की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य मे दफन हुये। शासन और व्यक्तित्व शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाने जाते है हँलांकि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी। पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से वाकिफ़ थे। उनने शुक्राचार्य तथा कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार उचित समझा था। अपने समकालीन मुगलों की तरह वह् भी निरंकुश शासक थ, अर्थात शासन की समूची बागडोर राजा के हाथ में ही थी। पर उस्के प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी जिन्हें अष्टप्रधानकहा जाता था। इसमें मंत्रियों के प्रधान को पेशवाकहते थे जो राजा के बाद सबसे प्रमुख हस्ती था। अमात्यवित्त और राजस्व के कार्यों को देखता था तो मंत्रीराजा की व्यक्तिगत दैनन्दिनी का खयाल रखाता था। सचिवदफ़ातरी काम करते थे जिसमे शाही मुहर लगाना और सन्धि पत्रों का आलेख तैयार करना शामिल होते थे। सुमन्तविदेश मंत्री था। सेना के प्रधान को सेनापतिकहते थे। दान और धार्मिक मामलों के प्रमुख को पण्डितरावकहते थे। न्यायाधीशन्यायिक मामलों का प्रधान था। छत्रपति शिवाजी द्वारा चलाया गया सिक्का मराठा साम्राज्य तीन या चार विभागों में विभक्त था। प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। हरेक सूबेदार के पास भी एक अष्टप्रधान समिति होती थी। कुछ प्रान्त केवल करदाता थे और प्रसासन के मामले में स्वतंत्र। न्यायव्यवस्था प्राचीन पद्धति पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्म शास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गाँव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जाँच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमिकर था पर चौथ और सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। चौथ पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिया वसूलेजाने वाला कर था। शिवाजी अपने को मराठों कासरदेशमुखकहता थ और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था। धार्मिक नीति शिवाजी एक समर्पित कत्तर हिन्दु थे पर वह् धार्मिक सहिष्णुता के पक्षपाती भी थे। उस्के साम्राज्य में मुसलमानोंको धार्मिक स्वतंत्रता थी और मुसलमानों को धर्मपरिवर्तन के लिेए विवश नहीं किया जाता था। कई मस्जिदोंके निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितोंकी तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी सम्मान प्राप्त था। उस्कि सेना में मुसलमानों की संख्या अधिक थी। पर वह् हिन्दू धर्म का संरक्षक थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। वह् अपने अभियानों का आरंभ भी अक्सर दशहराके मौके पर करते थे चरित्र शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज कि शिक्शा ही मिली जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी राजे को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र ती तरह उस्ने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी राजे को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव ऩजर आता है। उसेक बाद उन्होने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसाकि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी राजे के मरने के बाद ही उन्होने अपना राज्याभिषेक करवाया हँलांकि वो उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी। वह् एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अछा कूटनीतिज्ञ भी था। कई जगहों पर उन्होने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय भग लिया था। लेकिन येही उनकी कुट निती थी, जो हर बार बडेसे बडे शत्रुको मात देनेमे उनका साथ देती रही। शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कुट निती, जिसमे शत्रुपर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियतासे और आदरसहित याद किया जाता है। शिवाजी महाराज के गौरव मे ये पन्क्तियान लिख गई है :- "शिवरायांचे आठवावे स्वरुप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप। शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥"

: छत्रपति शिवाजी महाराज.


मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

महा शिवरात्रि और महाकाल की महिमा

अनेकानेक प्राचीन वांग्मय महाकाल की व्यापक महिमा से आपूरित हैं क्योंकि वे कालखंड, काल सीमा, काल-विभाजन आदि के प्रथम उपदेशक व अधिष्ठाता हैं। स्कन्दपुराण के अवंती खंड में, शिव पुराण (ज्ञान संहिता अध्याय 38), वराह पुराण, रुद्रयामल तंत्र, शिव महापुराण की विद्येश्वर संहिता के तेइसवें अध्याय तथा रुद्रसंहिता के चौदहवें अध्याय में भगवान महाकाल की अर्चना, महिमा व विधान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। मृत्युंजय महाकाल की आराधना का मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति को बचाने में विशेष महत्व है। खासकर तब जब व्यक्ति अकाल मृत्यु का शिकार होने वाला हो। इस हेतु एक विशेष जाप से भगवान महाकाल का लक्षार्चन अभिषेक किया जाता है- 'ॐ ह्रीं जूं सः भूर्भुवः स्वः, ॐ त्र्यम्बकं स्यजा महे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌। उर्व्वारूकमिव बंधनान्नमृत्योर्म्मुक्षीयमामृतात्‌ ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ' इसी तरह सर्वव्याधि निवारण हेतु इस मंत्र का जाप किया जाता है। ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितं कर्म बंधनः शिवरात्रि में शिवोत्सव समूचे उज्जैन में मनाया जाता है। इन दिनों भक्तवत्सल्य भगवान आशुतोष महाकालेश्वर का विशेष श्रृंगार किया जाता है, उन्हें विविध प्रकार के फूलों से सजाया जाता है। यहाँ तक कि भक्तजन अपनी श्रद्धा का अर्पण इतने विविध रूपों में करते है कि देखकर आश्चर्य होता है। NDकोई बिल्वपत्र की लंबी घनी माला चढ़ाता है। कोई बेर,संतरा, केले, और दूसरे फलों की माला लेकर आता है। कोई आँकड़ों के पत्तों पर चंदन से ॐ बना कर अर्पित करता है। औढरदानी, प्रलयंकारी, दिगम्बर भगवान शिव का यह सुहाना सुसज्जित सुंदर स्वरूप देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इसे 'सेहरा' के दर्शन कहा जाता है। अंत में श्री महाकालेश्वर से परम पुनीत प्रार्थना है कि इस शिवरात्रि में इस अखिल सृष्टि पर वे प्रसन्न होकर प्राणी मात्र का कल्याण करें - 'कर-चरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम, विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व, जय-जय करुणाब्धे, श्री महादेव शम्भो॥' अर्थात हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी हमने जो अपराध किए हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको है करुणासागर महादेव शम्भो! क्षमा कीजिए, ए

महा शिवरात्रि और महाकाल की महिमा


सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

महाशिवरात्रि त्योहारकी व्रत-कथा

पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठमें बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुईहूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, 'हे शिकारी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो। शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे। उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके।, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।शिकारी की कथानुसार महादेव तो अनजाने में किए गए व्रत का भी फल दे देते हैं। पर वास्तव में महादेव शिकारी की दया भाव से प्रसन्न हुए। अपने परिवार के कष्ट का ध्यान होते हुए भी शिकारी ने मृग परिवार को जाने दिया। यह करुणा ही वस्तुत: उस शिकारी को उन पण्डित एवं पूजारियों से उत्कृष्ट बना देती है जो कि सिर्फ रात्रि जागरण, उपवास एव दूध, दही, एवं बेल-पत्र आदि द्वारा शिव को प्रसन्न कर लेना चाहते हैं। इस कथा में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कथा में 'अनजाने में हुए पूजन' पर विशेष बल दिया गया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव किसी भी प्रकार से किए गए पूजन को स्वीकार कर लेते हैं अथवा भोलेनाथ जाने या अनजाने में हुए पूजन में भेद नहीं कर सकते हैं। वास्तव में वह शिकारी शिव पूजन नहीं कर रहा था। इसका अर्थ यह भी हुआ कि वह किसी तरह के किसी फल की कामना भी नहीं कर रहा था। उसने मृग परिवार को समय एवं जीवन दान दिया जो कि शिव पूजन के समान है। शिव का अर्थ ही कल्याण होता है। उन निरीह प्राणियों का कल्याण करने के कारण ही वह शिव तत्व को जान पाया तथा उसका शिव से साक्षात्कार हुआ। परोपकार करने के लिए महाशिवरात्रि का दिवस होना भी आवश्यक नहीं है। पुराण में चार प्रकार के शिवरात्रि पूजन का वर्णन है। मासिक शिवरात्रि, प्रथम आदि शिवरात्रि, तथा महाशिवरात्रि। पुराण वर्णित अंतिम शिवरात्रि है-नित्य शिवरात्रि। वस्तुत: प्रत्येक रात्रि ही 'शिवरात्रि' है अगर हम उन परम कल्याणकारी आशुतोष भगवान में स्वयं को लीन कर दें तथा कल्याण मार्ग का अनुसरण करें, वही शिवरात्रि का सच्चा व्रत है।

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

"वेलेंटाइन डे " !

रोम में तीसरी शताब्दी में सम्राट क्लॉडियस का शासन था। उसके अनुसार विवाह करने से पुरूषों की शक्ति और बुद्धि कम होती है। उसने आज्ञा जारी की कि उसका कोई सैनिक या अधिकारी विवाह नहीं करेगा। संत वेलेंटाइन ने इस क्रूर आदेश का विरोध किया। उन्हीं के आह्वान पर अनेक सैनिकों और अधिकारियों ने विवाह किए। आखिर क्लॉडियस ने 14 फरवरी सन् 269 को संत वेलेंटाइन को फाँसी पर चढ़वा दिया। तब से उनकी स्मृति में प्रेम दिवसयानीवेलेंटाइन डे मनाया जाता है।

"वेलेंटाइन डे " !


बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

पढ्योङी बीनणी गाँव में :

एक बार शहर की मोकळी पढ़ेड़ी बीनणी पैली चोट सासरे आई... तो बीकि सासु दिन उगे ई बोली - 'ये बीनणी जा भैंस न फूस घाल्या'.... बीनणी गयी.. बा देख्यो की भैंस तो उगाळी करबा क लूम री ही अर मुंडा म "झाग" सा आ रिया हा ! जको बा तो, बा पगां ही पाछी आयगी... सासु पुछ्यो की घाल आई के ? बीनणी बोली - "सासु जी भैंस अभी खाना नहीं खाएगी, .... अभी तो वो मंजन कर रही है"

पढ्योङी बीनणी गाँव में :


सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

राजस्थानी बातां ... पुराणां समै री बात है ,

पुराणां समै री बात है , राजस्थान री धोरा धरती में ऊनाळै रै दिनां में दो सहेलियां कांकङ (वनक्षेत्र) में लकङियां लावण ने गई । रस्ते में व्है देखियौ के दो हीरण मरियोङा पङिया हा अर उणां रै बीच में एक खाडा में थोङो सो"क पाणी भरीयौ हौ । जद एक सहैली कह्यौ ---- खङ्यौ नी दीखै पारधी , लग्यौ नी दीखै बाण । म्है थने पूछूं ऐ सखी , किण विध तजिया प्राण ।। ( है सखी , अटे कोई शिकारी नजर नी आय रियौ है अर इणां रै बाण भी नी लागोङो है तो ऐ हीरण किकर मरिया ? ) तो दुजोङी सहैली उण ने उत्तर दियौ -- जळ थोङो नेह घणो , लग्या प्रीत रा बाण । तूं -पी तूं-पी कैवतां , दोनूं तजिया प्राण ।। ( इण सुनसान रोही में दोनूं हीरण तिरस्या हा , पाणी इतरौ ही हौ के एक हीरण री तिरस(प्यास ) मिट सके , पण दोयां में सनेह इतरो हौ के उणां मांय सूं कोई एक पीवणीं नी चावतो । इण खातर दोइ एक -दूजा री मनवार करता करता प्राण तज दिया ।) राजस्थान री धोरां धरती रै जानवरां में इतरो नेह अर हेत है , तो अटा रै मिनखां रै नेह रो उनमान नी लगां सकां सा ।। "आपरो प्यारो भायलो"

राजस्थानी बातां ... पुराणां समै री बात है ,

पुराणां समै री बात है , राजस्थान री धोरा धरती में ऊनाळै रै दिनां में दो सहेलियां कांकङ (वनक्षेत्र) में लकङियां लावण ने गई । रस्ते में व्है देखियौ के दो हीरण मरियोङा पङिया हा अर उणां रै बीच में एक खाडा में थोङो सो"क पाणी भरीयौ हौ । जद एक सहैली कह्यौ ---- खङ्यौ नी दीखै पारधी , लग्यौ नी दीखै बाण । म्है थने पूछूं ऐ सखी , किण विध तजिया प्राण ।। ( है सखी , अटे कोई शिकारी नजर नी आय रियौ है अर इणां रै बाण भी नी लागोङो है तो ऐ हीरण किकर मरिया ? ) तो दुजोङी सहैली उण ने उत्तर दियौ -- जळ थोङो नेह घणो , लग्या प्रीत रा बाण । तूं -पी तूं-पी कैवतां , दोनूं तजिया प्राण ।। ( इण सुनसान रोही में दोनूं हीरण तिरस्या हा , पाणी इतरौ ही हौ के एक हीरण री तिरस(प्यास ) मिट सके , पण दोयां में सनेह इतरो हौ के उणां मांय सूं कोई एक पीवणीं नी चावतो । इण खातर दोइ एक -दूजा री मनवार करता करता प्राण तज दिया ।) राजस्थान री धोरां धरती रै जानवरां में इतरो नेह अर हेत है , तो अटा रै मिनखां रै नेह रो उनमान नी लगां सकां सा ।। "आपरो प्यारो भायलो"

राजस्थानी बातां ... पुराणां समै री बात है ,


राजस्थानी खाट...

राजस्थानी खाट... राजस्थान में खाट बणने की कला बहुत पुराणी है, यहाँ लोग-बाग़ कुर्सियों व तख्तों पर बैठने के बजाए खाट और मूड॒ढों का मजा लेते हैं... नरम और मुलायम गद्दे से कहीं ज्यादा मजा खाट पर सोने में आता है ! खाट बणने में भी तरह तरह की कलाकारियाँ की जाती हैं.. पहले बुजुर्ग एक खाट बनाने के लिए सूत कातते थे, फेर खाती से झाड़ी/रोहिडे अथवा शीशम की लकड़ी से इसका सांचा (ईश, शेरू व पागे) बनवाते थे फिर महीनों लगाकर एक खाट बनाते थे ! आजकल खाट बणने के कलाकारों की खासी कमी आ गयी है ... पहले शादियों में ऐसी खाट देने का चलन था...

राजस्थानी खाट...

राजस्थानी खाट... राजस्थान में खाट बणने की कला बहुत पुराणी है, यहाँ लोग-बाग़ कुर्सियों व तख्तों पर बैठने के बजाए खाट और मूड॒ढों का मजा लेते हैं... नरम और मुलायम गद्दे से कहीं ज्यादा मजा खाट पर सोने में आता है ! खाट बणने में भी तरह तरह की कलाकारियाँ की जाती हैं.. पहले बुजुर्ग एक खाट बनाने के लिए सूत कातते थे, फेर खाती से झाड़ी/रोहिडे अथवा शीशम की लकड़ी से इसका सांचा (ईश, शेरू व पागे) बनवाते थे फिर महीनों लगाकर एक खाट बनाते थे ! आजकल खाट बणने के कलाकारों की खासी कमी आ गयी है ... पहले शादियों में ऐसी खाट देने का चलन था...

राजस्थानी खाट...


अपनी बेटी के नाम ..!

एक औरत माँ बनने वाली थी पति को जब पता लगा की कोख में बेटी हैं तो वो उसका गर्भपात करवाना चाहते हैं दुःखी होकर पत्नी अपने पति से क्या कहती हैं :- सुनो, ना मारो इस नन्ही कलि को, वो खूब सारा प्यार हम पर लुटायेगी, जितने भी टूटे हैं सपने, फिर से वो सब सजाएगी.. सुनो, ना मारो इस नन्ही कलि को, जब जब घर आओगे तुम्हे खूब हंसाएगी, तुम प्यार ना करना बेशक उसको, वो अपना प्यार लुटाएगी.. सुनो ना मारो इस नन्ही कलि को, हर काम की चिंता एक पल में भगाएगी, किस्मत को दोष ना दो, वो अपना घर आंगन महकाएगी.. 😑ये सब सुन पति अपनी पत्नी को कहता हैं :- सुनो में भी नही चाहता मारना इसनन्ही कलि को, तुम क्या जानो, प्यार नहीं हैं क्या मुझको अपनी परी से, पर डरता हूँ समाज में हो रही रोज रोज की दरिंदगी से.. क्या फिर खुद वो इन सबसे अपनी लाज बचा पाएगी, क्यूँ ना मारू में इस कलि को, वो बहार नोची जाएगी.. में प्यार इसे खूब दूंगा, पर बहार किस किस से बचाऊंगा, जब उठेगी हर तरफ से नजरें, तो रोक खुद को ना पाउँगा.. क्या तू अपनी नन्ही परी को, इस दौर में लाना चाहोगी, जब तड़फेगी वो नजरो के आगे, क्या वो सब सह पाओगी, क्यों ना मारू में अपनी नन्ही परी को, क्या बीती होगी उनपे, जिन्हें मिला हैं ऐसा नजराना, क्या तू भी अपनी परी को ऐसी मौत दिलाना चाहोगी.. ये सुनकर गर्भ से आवाज आती है.....ं सुनो माँ पापा- मैं आपकी बेटी हूँ मेरी भी सुनो :- 🙆पापा सुनो ना, साथ देना आप मेरा, मजबूत बनाना मेरे हौसले को, घर लक्ष्मी है आपकी बेटी, वक्त पड़ने पर मैं काली भी बन जाऊँगी 💁पापा सुनो, ना मारो अपनी नन्ही कलि को, तुम उड़ान देना मेरे हर वजूद को, में भी कल्पना चावला की तरह, ऊँची उड़ान भर जाऊँगी.. 🙅पापा सुनो, ना मारो अपनी नन्ही कलि को, आप बन जाना मेरी छत्र छाया, में झाँसी की रानी की तरह खुद की गैरो से लाज बचाऊँगी... 😗पति (पिता) ये सुन कर मौन हो गया और उसने अपने फैसले पर शर्मिंदगी महसूस करने लगा और कहता हैं अपनी बेटी से :- मैं अब कैसे तुझसे नजरे मिलाऊंगा, चल पड़ा था तेरा गला दबाने, अब कैसे खुद को तेरेे सामने लाऊंगा, मुझे माफ़ करना ऐ मेरी बेटी, तुझे इस दुनियां में सम्मान से लाऊंगा.. वहशी हैं ये दुनिया तो क्या हुआ, तुझे मैं दुनिया की सबसे बहादुर बिटिया बनाऊंगा. मेरी इस गलती की मुझे है शर्म, घर घर जा के सबका भ्रम मिटाऊंगा बेटियां बोझ नहीं होती.. अब सारे समाज में अलख जगाऊंगा!!!

अपनी बेटी के नाम ..!

एक औरत माँ बनने वाली थी पति को जब पता लगा की कोख में बेटी हैं तो वो उसका गर्भपात करवाना चाहते हैं दुःखी होकर पत्नी अपने पति से क्या कहती हैं :- सुनो, ना मारो इस नन्ही कलि को, वो खूब सारा प्यार हम पर लुटायेगी, जितने भी टूटे हैं सपने, फिर से वो सब सजाएगी.. सुनो, ना मारो इस नन्ही कलि को, जब जब घर आओगे तुम्हे खूब हंसाएगी, तुम प्यार ना करना बेशक उसको, वो अपना प्यार लुटाएगी.. सुनो ना मारो इस नन्ही कलि को, हर काम की चिंता एक पल में भगाएगी, किस्मत को दोष ना दो, वो अपना घर आंगन महकाएगी.. 😑ये सब सुन पति अपनी पत्नी को कहता हैं :- सुनो में भी नही चाहता मारना इसनन्ही कलि को, तुम क्या जानो, प्यार नहीं हैं क्या मुझको अपनी परी से, पर डरता हूँ समाज में हो रही रोज रोज की दरिंदगी से.. क्या फिर खुद वो इन सबसे अपनी लाज बचा पाएगी, क्यूँ ना मारू में इस कलि को, वो बहार नोची जाएगी.. में प्यार इसे खूब दूंगा, पर बहार किस किस से बचाऊंगा, जब उठेगी हर तरफ से नजरें, तो रोक खुद को ना पाउँगा.. क्या तू अपनी नन्ही परी को, इस दौर में लाना चाहोगी, जब तड़फेगी वो नजरो के आगे, क्या वो सब सह पाओगी, क्यों ना मारू में अपनी नन्ही परी को, क्या बीती होगी उनपे, जिन्हें मिला हैं ऐसा नजराना, क्या तू भी अपनी परी को ऐसी मौत दिलाना चाहोगी.. ये सुनकर गर्भ से आवाज आती है.....ं सुनो माँ पापा- मैं आपकी बेटी हूँ मेरी भी सुनो :- 🙆पापा सुनो ना, साथ देना आप मेरा, मजबूत बनाना मेरे हौसले को, घर लक्ष्मी है आपकी बेटी, वक्त पड़ने पर मैं काली भी बन जाऊँगी 💁पापा सुनो, ना मारो अपनी नन्ही कलि को, तुम उड़ान देना मेरे हर वजूद को, में भी कल्पना चावला की तरह, ऊँची उड़ान भर जाऊँगी.. 🙅पापा सुनो, ना मारो अपनी नन्ही कलि को, आप बन जाना मेरी छत्र छाया, में झाँसी की रानी की तरह खुद की गैरो से लाज बचाऊँगी... 😗पति (पिता) ये सुन कर मौन हो गया और उसने अपने फैसले पर शर्मिंदगी महसूस करने लगा और कहता हैं अपनी बेटी से :- मैं अब कैसे तुझसे नजरे मिलाऊंगा, चल पड़ा था तेरा गला दबाने, अब कैसे खुद को तेरेे सामने लाऊंगा, मुझे माफ़ करना ऐ मेरी बेटी, तुझे इस दुनियां में सम्मान से लाऊंगा.. वहशी हैं ये दुनिया तो क्या हुआ, तुझे मैं दुनिया की सबसे बहादुर बिटिया बनाऊंगा. मेरी इस गलती की मुझे है शर्म, घर घर जा के सबका भ्रम मिटाऊंगा बेटियां बोझ नहीं होती.. अब सारे समाज में अलख जगाऊंगा!!!

अपनी बेटी के नाम ..!


रविवार, 8 फ़रवरी 2015

राजस्थान की शान.. पगड़ी/पाग/साफा/रुमाल/पोतियो/फिंटो ...

राजस्थान की शान.. पगड़ी/पाग/साफा/रुमाल/पोतियो/फिंटो ... आपके यहाँ क्या बोलते हैं इसे ?????? जय जय राजस्थान... थोड़ो सो और ग्यान : - बेशक राजस्थान में समाज की नई पीढ़ी कार्पोरेट व वेस्टर्न कल्चर में डूब अपना परम्परागत साफा बांधना भूल गयी हो पर जोधपुर साफा हाउस के मालिक शेर सिंह का 19 वर्षीय पुत्र अजीतपाल एक घंटे में बिना थके 100 से ज्यादा साफे बांध सकता है | एक साफा बाँधने में उसे मुस्किल से 30 से 40 सैकिंड लगते है और उसे विभिन शैलियों के 15 तरीकों के साफे बाँधने में महारत हासिल है | अजीतपाल देश के बड़े-बड़े शादी समारोहों में साफा बाँधने के के लिए शामिल होने के साथ ही साफा बाँधने के लिए मारीशस,मलेशिया व सिंगापूर की यात्राएं भी कर चूका है | सिंगापूर के शादी समारोह में बारातियों के लिए उसने मात्र डेढ़ घंटे में 125 साफे बाँध कर वहां उपस्थित सभी मेहमानों को आश्चर्यचकित कर दिया था |

राजस्थान की शान.. पगड़ी/पाग/साफा/रुमाल/पोतियो/फिंटो ...

राजस्थान की शान.. पगड़ी/पाग/साफा/रुमाल/पोतियो/फिंटो ... आपके यहाँ क्या बोलते हैं इसे ?????? जय जय राजस्थान... थोड़ो सो और ग्यान : - बेशक राजस्थान में समाज की नई पीढ़ी कार्पोरेट व वेस्टर्न कल्चर में डूब अपना परम्परागत साफा बांधना भूल गयी हो पर जोधपुर साफा हाउस के मालिक शेर सिंह का 19 वर्षीय पुत्र अजीतपाल एक घंटे में बिना थके 100 से ज्यादा साफे बांध सकता है | एक साफा बाँधने में उसे मुस्किल से 30 से 40 सैकिंड लगते है और उसे विभिन शैलियों के 15 तरीकों के साफे बाँधने में महारत हासिल है | अजीतपाल देश के बड़े-बड़े शादी समारोहों में साफा बाँधने के के लिए शामिल होने के साथ ही साफा बाँधने के लिए मारीशस,मलेशिया व सिंगापूर की यात्राएं भी कर चूका है | सिंगापूर के शादी समारोह में बारातियों के लिए उसने मात्र डेढ़ घंटे में 125 साफे बाँध कर वहां उपस्थित सभी मेहमानों को आश्चर्यचकित कर दिया था |

राजस्थान की शान.. पगड़ी/पाग/साफा/रुमाल/पोतियो/फिंटो ...


राजस्थान की शान.. पगड़ी/पाग/साफा/रुमाल/पोतियो/फिंटो ...


मतीरा / तरबूज के बारे में सवाल जवाब

1. कैयां बेरो पड़ै की मतीरो पाच्गो/पाक्गो ? जद मतीरा रो रंग पिंदा सूं पीलो सो पड़ ज्याय अर् बीको सूत(नाळ/तांतो) सूख ज्याय अर् ठोलो मारां जद ठन ठन री उवाज करबा लाग जावे जन मानल्यो की इको लम्बर आयगो ! आजकाल तो बेचबा आळा चाकू सूं च्यार कूंट को कूक्लो काड अर् भी चखावे हैं.. 2. मतीरा न कैयांवणु काटणु चाहीजै ? मतीरा न आडो काटणु चहिजे, काटबा को जुगाड़ न होवे जद कुहनी की देयर फोड़ नाखो ! 3. मतीरा कतरा भांत का हूवैं हैं ? भांत भी कई भांत की होवे है : आकृति – गोळ, लांप आकार – ढबल॒डी, बिल्डो सतह – हरी धारी, छीमकाळो, धोळो मांय सूं – लाल गिरी को, धोळी गिरी को, भुरभुरा, भरवां स्वाद – मीठो, फीको, काचो बीज – काळा बीज को, धोळा बीज को, भूरा बीज को 4. मतीरा का कुण कुणसा भाग हूवैं हैं ? फोड़े जद बण ज्याय - खपरीया काटता ही दो – ढबरीया.. बाने काट्यां सिपळिया आंके अलावा मांय हुवे है गिरी अर् बीज 5. मतीरो और काई काई काम म् आवै ? मतीरै रै काचै फळ नै लोइयो कैवै अर ईं री सबजी घणी सवाद बणै। ढांढां न घाल देओ, बीज आगली साल बाबा म अर् बीजा न भून क भी खाया जावे. जद दीवाळी रो त्यूंहार आवै जद लिछमी पूजा करे अर् इण मतीरै री गिरी निकाळ'र इण में बेजका कर देवै अर रात रै टेम टाबर इण में दीवो मेलै जद ओ सरूप घणू लागे. होळी मंगळावै जद ईं नै होळी री झळ मांखर काढै तो आगली साल नाज जोरको होवे. मतीरा में प्रति आक्सीकारक, एंथोसाइनिन, काक्सी-2 प्रतिरोधी, केरोटीन, ग्लूकोसाइडस, एल्कोलोइडस रसायन मिलते हैं। 6. मतीरा क ठोल्या मारबा को चक्कर काई है ? अनुभवी ताऊ तो ठोल्या मार अर् मतीरा की ठन ठन उवाज सूं ही बेरो पाड़ लवें की कसोक निकल्सी मांय ! 7. मतीरे की लड़ाई कठे हुई ? बीकानेर और नागौर रियासतों के बीच एक अजब लडाई लड़ी गयी थी. एक मतीरे की बेल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी किन्तु नागौर की सीमा में फ़ैल गयी. उस पर एक मतीरा यानि तरबूज लग गया. एक पक्ष का दावा था कि बेल हमारे इधर लगी है, दूसरे का दावा था कि फ़ल तो हमारी ज़मीन पर पड़ा है. उस मतीरे के हक़ को लेकर युद्ध हुआ. इतिहास में इसे "मतीरे की राड़" के नाम से जाना जाता है. देवलियों पर उत्कीर्ण इबारत के मुताबिक यह लड़ाई विक्रम संवत् 1600 आसोज सुदी चौदस को हुई थी।

मतीरा / तरबूज के बारे में सवाल जवाब

1. कैयां बेरो पड़ै की मतीरो पाच्गो/पाक्गो ? जद मतीरा रो रंग पिंदा सूं पीलो सो पड़ ज्याय अर् बीको सूत(नाळ/तांतो) सूख ज्याय अर् ठोलो मारां जद ठन ठन री उवाज करबा लाग जावे जन मानल्यो की इको लम्बर आयगो ! आजकाल तो बेचबा आळा चाकू सूं च्यार कूंट को कूक्लो काड अर् भी चखावे हैं.. 2. मतीरा न कैयांवणु काटणु चाहीजै ? मतीरा न आडो काटणु चहिजे, काटबा को जुगाड़ न होवे जद कुहनी की देयर फोड़ नाखो ! 3. मतीरा कतरा भांत का हूवैं हैं ? भांत भी कई भांत की होवे है : आकृति – गोळ, लांप आकार – ढबल॒डी, बिल्डो सतह – हरी धारी, छीमकाळो, धोळो मांय सूं – लाल गिरी को, धोळी गिरी को, भुरभुरा, भरवां स्वाद – मीठो, फीको, काचो बीज – काळा बीज को, धोळा बीज को, भूरा बीज को 4. मतीरा का कुण कुणसा भाग हूवैं हैं ? फोड़े जद बण ज्याय - खपरीया काटता ही दो – ढबरीया.. बाने काट्यां सिपळिया आंके अलावा मांय हुवे है गिरी अर् बीज 5. मतीरो और काई काई काम म् आवै ? मतीरै रै काचै फळ नै लोइयो कैवै अर ईं री सबजी घणी सवाद बणै। ढांढां न घाल देओ, बीज आगली साल बाबा म अर् बीजा न भून क भी खाया जावे. जद दीवाळी रो त्यूंहार आवै जद लिछमी पूजा करे अर् इण मतीरै री गिरी निकाळ'र इण में बेजका कर देवै अर रात रै टेम टाबर इण में दीवो मेलै जद ओ सरूप घणू लागे. होळी मंगळावै जद ईं नै होळी री झळ मांखर काढै तो आगली साल नाज जोरको होवे. मतीरा में प्रति आक्सीकारक, एंथोसाइनिन, काक्सी-2 प्रतिरोधी, केरोटीन, ग्लूकोसाइडस, एल्कोलोइडस रसायन मिलते हैं। 6. मतीरा क ठोल्या मारबा को चक्कर काई है ? अनुभवी ताऊ तो ठोल्या मार अर् मतीरा की ठन ठन उवाज सूं ही बेरो पाड़ लवें की कसोक निकल्सी मांय ! 7. मतीरे की लड़ाई कठे हुई ? बीकानेर और नागौर रियासतों के बीच एक अजब लडाई लड़ी गयी थी. एक मतीरे की बेल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी किन्तु नागौर की सीमा में फ़ैल गयी. उस पर एक मतीरा यानि तरबूज लग गया. एक पक्ष का दावा था कि बेल हमारे इधर लगी है, दूसरे का दावा था कि फ़ल तो हमारी ज़मीन पर पड़ा है. उस मतीरे के हक़ को लेकर युद्ध हुआ. इतिहास में इसे "मतीरे की राड़" के नाम से जाना जाता है. देवलियों पर उत्कीर्ण इबारत के मुताबिक यह लड़ाई विक्रम संवत् 1600 आसोज सुदी चौदस को हुई थी।

मतीरा / तरबूज के बारे में सवाल जवाब


जोधपुर कौन कहां बना प्रधान

कौन कहां बना प्रधान पंस प्रधान पार्टी फलौदीअभिषेक भादू भाजपा बाप खुशवंत कंवर भाजपा बालेसर बाबूसिंह भाजपा सेखाला दुष्यंत मेघवाल भाजपा तिंवरी रेणू कंवर भाटी भाजपा देचू हेमाराम भाजपा लोहावट भागीरथ बेनीवाल भाजपा मंडोर अनुश्री भाजपा ओसियां ज्योति जाट भाजपा भोपालगढ़ चिमनसिंह भाजपा बावड़ी अलाराम मेघवाल कांग्रेस बापिणी कम्मू कंवर भाजपा शेरगढ़ तगाराम भील भाजपा लूणी नीरज कंवर भाजपा बिलाड़ा सुमित्रा विश्नोई भाजपा पीपाड़ शहर इंद्रा मेघवाल भाजपा

जोधपुर कौन कहां बना प्रधान

कौन कहां बना प्रधान पंस प्रधान पार्टी फलौदीअभिषेक भादू भाजपा बाप खुशवंत कंवर भाजपा बालेसर बाबूसिंह भाजपा सेखाला दुष्यंत मेघवाल भाजपा तिंवरी रेणू कंवर भाटी भाजपा देचू हेमाराम भाजपा लोहावट भागीरथ बेनीवाल भाजपा मंडोर अनुश्री भाजपा ओसियां ज्योति जाट भाजपा भोपालगढ़ चिमनसिंह भाजपा बावड़ी अलाराम मेघवाल कांग्रेस बापिणी कम्मू कंवर भाजपा शेरगढ़ तगाराम भील भाजपा लूणी नीरज कंवर भाजपा बिलाड़ा सुमित्रा विश्नोई भाजपा पीपाड़ शहर इंद्रा मेघवाल भाजपा

जोधपुर कौन कहां बना प्रधान


राजस्थान में जिला प्रमुख चुनाव 2015

जिला प्रमुख चुनाव 2015 चित्तौड़गढ़- लीला देवी जाट- बीजेपी टोंक- सत्यनारायण चौधरी- बीजेपी कोटा -सुरेंद्र गोचर- कांग्रेस दौसा- गीता खटाना- कांग्रेस पाली- पेमाराम- बीजेपी अजमेर- वंदना नोगिया- बीजेपी जोधपुर- पूनाराम चौधरी- बीजेपी राजसमंद- परेश सालवी- बीजेपी झालावाड़-टीना कुमारी- बीजेपी जैसलमेर- अंजना मेघवाल- कांग्रेस जालोर- डॉ. बन्ने सिंह- बीजेपी डूंगरपुर - माधवलाल वरहात बीजेपी बूंदी- सोनिया गुर्जर- कांग्रेस सिरोही- पायल परसरामपुरिया- बीजेपी सवाई माधोपुर- विनिता मीणा- कांग्रेस भीलवाड़ा- पीरंचद सिंघवी- बीजेपी जयपुर-मूलचंद मीणा- बीजेपी नागौर- सुनिता चौधरी- कांग्रेस बीकानेर- सुशीला सिंवर- कांग्रेस झुंझुनूं- सुमन राहिला- कांग्रेस करौली- अभय कुमार मीणा- कांग्रेस प्रतापगढ़- सारिका मीणा-बीजेपी अलवर- रेखा यादव- कांग्रेस बाड़मेर- प्रियंका - कांग्रेस चूरू- हरलाल सिंह सारण- बीजेपी भरतपुर- बीना सिंह- बीजेपी धौलपुर- धर्मपाल सिंह- बीजेपी बारां- नंद लाल सुमन- बीेजेपी हनुमानगढ़- कृष्ण चोटिया- बीजेपी श्रीगंगानगर- प्रियंका श्योराण- बीजेपी उदयपुर- शांतिलाल मेघवाल- बीजेपी सीकर- अर्पणा रोलण- बीजेपी बांसवाड़ा- रेशम मालवीया- कांग्रेस

राजस्थान में जिला प्रमुख चुनाव 2015

जिला प्रमुख चुनाव 2015 चित्तौड़गढ़- लीला देवी जाट- बीजेपी टोंक- सत्यनारायण चौधरी- बीजेपी कोटा -सुरेंद्र गोचर- कांग्रेस दौसा- गीता खटाना- कांग्रेस पाली- पेमाराम- बीजेपी अजमेर- वंदना नोगिया- बीजेपी जोधपुर- पूनाराम चौधरी- बीजेपी राजसमंद- परेश सालवी- बीजेपी झालावाड़-टीना कुमारी- बीजेपी जैसलमेर- अंजना मेघवाल- कांग्रेस जालोर- डॉ. बन्ने सिंह- बीजेपी डूंगरपुर - माधवलाल वरहात बीजेपी बूंदी- सोनिया गुर्जर- कांग्रेस सिरोही- पायल परसरामपुरिया- बीजेपी सवाई माधोपुर- विनिता मीणा- कांग्रेस भीलवाड़ा- पीरंचद सिंघवी- बीजेपी जयपुर-मूलचंद मीणा- बीजेपी नागौर- सुनिता चौधरी- कांग्रेस बीकानेर- सुशीला सिंवर- कांग्रेस झुंझुनूं- सुमन राहिला- कांग्रेस करौली- अभय कुमार मीणा- कांग्रेस प्रतापगढ़- सारिका मीणा-बीजेपी अलवर- रेखा यादव- कांग्रेस बाड़मेर- प्रियंका - कांग्रेस चूरू- हरलाल सिंह सारण- बीजेपी भरतपुर- बीना सिंह- बीजेपी धौलपुर- धर्मपाल सिंह- बीजेपी बारां- नंद लाल सुमन- बीेजेपी हनुमानगढ़- कृष्ण चोटिया- बीजेपी श्रीगंगानगर- प्रियंका श्योराण- बीजेपी उदयपुर- शांतिलाल मेघवाल- बीजेपी सीकर- अर्पणा रोलण- बीजेपी बांसवाड़ा- रेशम मालवीया- कांग्रेस

राजस्थान में जिला प्रमुख चुनाव 2015



राणा हम्मीर

राणा हम्मीर के वारे में एक दोहे की यह पंक्ति प्रसिद्ध है- ‘सिंहगवन सज्जन वचन कदलि फरै इक बार। तिरिया तेल हम्मीर हठ चढ़ै न दूजी बार।।’ अलाउद्दीन खिलजी ने एक बार अपने एक मंगोल सरदार कि सामान्य अपराध पर कुपित होकर उसे प्राणदंड देने की घोषणा कर दी थी। वह सरदार दिल्ली छोड़कर तुरंत भाग खड़ा हुआ। अपनी प्राण रक्षा के लिए वह अनेक स्थानों पर गया, किंतु बादशाह के डर से किसी ने उसे शरण देने का साहस नहीं किया। उन दिनों अलाउद्दीन खिलजी से शत्रुता मोल लेने का साहस कोई भी राजा नहीं कर सकता था। इस तरह प्राण रक्षा की उम्मीद में वह सरदार भटकता हुआ रणथम्भौर पहुंचा। राणा हम्मीर ने उसका स्वागत किया और कहा- ‘आप मेरे यहां सुख पूर्वक रहें, राजपूत अपना सिर देकर भी अपने शरणागत की रक्षा करना बखूबी जानता है। यहां आपको किसी भी प्रकार का संकट नहीं है इस बात से आप निश्चिंत रहें।’ बादशाह अलाउद्दीन को जब यह समाचार मिला तो उसने राणा हम्मीर के पास अपने दूत के माध्यम से संदेश भेजा- शाही अपराधी को शरण देना दिल्ली के तख्त की तौहीन करना है। उसको लौटा दो। ऐसा नहीं करने के हालत में हम रणथम्भौर के ईंट से ईंट बजा देंगे। इस पर राणा हम्मीर का उत्तर था- ‘राज्य और प्राणभय से हम धर्म को नहीं छोड़ेंगे। शरणागत की रक्षा करना हमारा धर्म है और हम अनादिकाल से ही अपने धर्म का पालन करते आए हैं तो आज कैसे इसे त्याग दूं? हम किसी भी हाल में अपने शरणागत को नहीं त्याग सकते, ऐसा करना हमारे धर्म के प्रतिकूल है।’ यद्यपि कुछ राजपूत सरदारों ने भी सुझाव दिया कि बादशाह से शत्रुता लेना ठीक नहीं है। परन्तु राणा हम्मीर अपने निश्चय पर अडिग रहे। अलाउद्दीन ने राणा का उत्तर पाकर युद्ध के लिए भारी सेना भेज दिया। किंतु रणथम्भौर का दुर्ग उसकी सेना के लिए लोहे का चना सिद्ध हुआ। राजपूतों ने शाही सेना के छक्के छुड़ा दिए। अंत में शाही सेना ने दुर्ग पर घेरा डाल दिया। यह घेरा लगातार पांच साल तक रहा। रणथम्भौर के दुर्ग में भोजन समाप्त हो गया। मंगोल सरदार ने कई बार राणा से कहा कि उसे बादशाह के पास जाने दिया जाय, उसके कारण राणा अपना विनाश न कराएं, किंतु राणा ने उसे हर बार यह कह कर रोक दिया कि आपको एक राजपूत ने शरण दी है। प्राण रहते आपको वहां नहीं जाने दूंगा। दुर्ग में उपवास चल रहा था। एक बड़ी चिता बनाई गई दुर्ग के प्रसंग में। दुर्ग के भीतर सब नारियां उस प्रज्ज्वलित चिता में प्रसन्नतापूर्वककूदकर सती हो गईं। पुरुषों ने केशरिया वस्त्र पहने और दुर्ग का द्वार खोलकर शत्रु पर एकदम से टूट पड़े। दोनों ओर से भारी मार काट मच गई। लेकिन राजपूतों में से कोई भी जीवित नहीं बचा उस युद्ध में, सिवा उस मंगोल सरदार के। अंत में वह सरदार पकड़ा गया। जब उसे अलाउद्दीन के सामने पेश किया गया तो उसने सरदार से पूछा- यदि तुम्हे छोड़ दूं तो तुम क्या करोगे? सरदार बोला- ‘हम्मीर के संतानों को दिल्ली का तख्त देने के लिए तुमसे जिंदगी भर लड़ूंगा।’ उसके इस संकल्प युक्त बात को सुनकर अलाउद्दीन ने उसे भी मार डाला। इतना नर-संहार स्वीकार कर लिया राणा हम्मीर ने पर अपने शरणागत पर जिंदा रहते किसी भी प्रकार का आंच नहीं आने दिया और न ही शरणागत धर्म को छोड़ा।

राणा हम्मीर


राजस्थान में कौन कहां बना प्रधान


शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

gumanji patel: सरपंचा रा चुनाव-प्रचार

gumanji patel: सरपंचा रा चुनाव-प्रचार: सेवा रे माय श्रीमान साब, प्रधाना मारसाब रा..प्रा.वि.पटेलो की ढाणी: सीनली जिलो(जोधपर) विषय-सरपंचा रा चुनाव-प्रचार महोदय, आज मने ढानीया ढपानी...

gumanji patel: दिन और रात

gumanji patel: दिन और रात: बहुत समय पहले की बात है जब सृष्टि की शुरुआत ही हुई थी। दिन और रात नाम के दो प्रेमी थे। दोनों में खूब गहरी पटती पर दोनों का स्वभाव बिल्कुल ह...

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

gumanji patel: दिन और रात

gumanji patel: दिन और रात: बहुत समय पहले की बात है जब सृष्टि की शुरुआत ही हुई थी। दिन और रात नाम के दो प्रेमी थे। दोनों में खूब गहरी पटती पर दोनों का स्वभाव बिल्कुल ह...

दिन और रात

बहुत समय पहले की बात है जब सृष्टि की शुरुआत ही हुई थी। दिन और रात नाम के दो प्रेमी थे। दोनों में खूब गहरी पटती पर दोनों का स्वभाव बिल्कुल ही अलग-अलग था। रात सौंदर्य-प्रिय और आराम-पसंद थी तो दिन कर्मठ और व्यावहारिक, रात को ज़्यादा काम करने से सख़्त नफ़रत थी और दिन काम करते न थकता था। रात आराम करना, सजना-सँवरना पसंद करती थी तो दिन हरदम दौड़ते भागते रहना। रात आराम से धीरे-धीरे बादलों की लटों को कभी मुँह पर से हटाती तो कभी वापस उन्हें फिर से अपने चेहरे पर डाल लेती। कभी आसमान के सारे तारों को पिरोकर अपनी पायल बना लेती तो कभी उन्हें वापस अपनी चूनर पर टाँक लेती। लेटी-लेटी घंटों बहती नदी में चुपचाप अपनी परछाई देखती रहती। कभी चंदा-सी पूरी खिल जाती तो कभी सिकुड़कर आधी हो जाती। दूसरी तरफ़ बौखलाया दिन लाल चेहरा लिए हाँफता पसीना बहाता, हर काम जल्दी-जल्दी निपटाने की फिक्र में लगा रहता। आमने-सामने पड़ते ही दिन और रात में हमेशा बहस शुरू हो जाती। दिन कहता काम ज़्यादा जरूरी है और रात कहती आराम। दोनों अपनी-अपनी दलीलें रखते, समझने और समझाने की कोशिश करते पर किसी भी नतीजे पर न पहुँच पाते। जान नहीं पाते कि उन दोनों में आखिर कौन बड़ा है, गुणी है. . .सही है या ज़्यादा महत्वपूर्ण है। हारकर दोनों अपने रचयिता के पास पहुँचे। भगवान ने दोनों की बातें बड़े ध्यान से सुनीं और कहा कि मुझे तो तुम दोनों का महत्व बिल्कुल बराबर का लगता है तभी तो मैंने तुम दोनों को ही बनाया और अपनी सृष्टि में बराबर का आधा-आधा समय दिया। गुण-अवगुण कुछ नहीं, एक ही पहलू के दो दृष्टिकोण हैं। हर अवगुण में गुण बनने की क्षमता होती है। पर रात और दिन को उनकी बात समझ में न आई और वहीं पर फिर से उनमें वही तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई। हारकर भगवान ने समझाने की बजाय, थोड़े समय के लिए रात को दिन के उजाले वाली चादर दे दी और दिन को रात की अँधेरे वाली, ताकि दोनों रात और दिन बनकर खुद ही फ़ैसला कर सकें। एक दूसरे के मन में जाकर दूसरे का स्वभाव और ज़रूरतें समझ सकें। तकलीफ़ और खुशियाँ महसूस कर पाएँ। और उस दिन से आजतक सुबह बनी रात जल्दी-जल्दी अपने सारे काम निपटाती है और रात बने दिन को आराम का महत्व समझ में आने लगा है। अब वह रात को निठल्ली और आलसी नहीं कहता बल्कि थकने पर खुद भी आराम करता है। सुनते हैं अब तो दोनों में कोई बहस भी नहीं होती। दोनों ही जान जो गए हैं कि अपनों में छोटा या बड़ा कुछ नहीं होता। इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति कम या ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं। सबके अपने-अपने काम हैं, अपनी-अपनी योग्यता और ज़रूरतें हैं। जीवन सुचारु और शांतिमय हो इसके लिए काम और आराम, दोनों का ही होना ज़रूरी है। आराम के बिना काम थक जाएगा और काम के बिना आराम परेशान हो जाएगा। अब दिन खुश-खुश सूरज के संग आराम से कर्मठता का संदेश देता है। जीवन पथ को उजागर करता है और रात चंदा की चाँदनी लेकर घर-घर जाती है, थकी-हारी दुनिया को सुख-शांति की नींद सुलाती है। हर शाम-सुबह वे दोनों आज भी अपनी-अपनी चादर बदल लेते हैं. . .प्यार से गले मिलते हैं इसीलिए तो शायद दिन और रात के वह संधि-पल जिन्हें हम सुबह और शाम के नाम से जानते हैं आज भी सबसे ज़्यादा सुखद और सुहाने लगते हैं। कौन जाने यह विवेक का जादू है या संधि और सद्भाव का. . .या फिर उस संयम का जिसे हम प्यार से परिवार कहते हें। शायद सच में अच्छा बुरा कुछ नहीं होता प्यार और नफ़रत बस हमारी निजी ज़रूरतों का ही नाम है. . .बस हमारी अपनी परछाइयाँ हैं। पर अगर कोण बदल लो तो परछाइयाँ भी तो घट और बढ़ जाती हैं। तभी तो हम आप उनके बच्चे, जो यह मर्म समझ पाए, अपने पूर्वजों की बनाई राह पर आजतक खुश-खुश चलते हैं।

दिन और रात

बहुत समय पहले की बात है जब सृष्टि की शुरुआत ही हुई थी। दिन और रात नाम के दो प्रेमी थे। दोनों में खूब गहरी पटती पर दोनों का स्वभाव बिल्कुल ही अलग-अलग था। रात सौंदर्य-प्रिय और आराम-पसंद थी तो दिन कर्मठ और व्यावहारिक, रात को ज़्यादा काम करने से सख़्त नफ़रत थी और दिन काम करते न थकता था। रात आराम करना, सजना-सँवरना पसंद करती थी तो दिन हरदम दौड़ते भागते रहना। रात आराम से धीरे-धीरे बादलों की लटों को कभी मुँह पर से हटाती तो कभी वापस उन्हें फिर से अपने चेहरे पर डाल लेती। कभी आसमान के सारे तारों को पिरोकर अपनी पायल बना लेती तो कभी उन्हें वापस अपनी चूनर पर टाँक लेती। लेटी-लेटी घंटों बहती नदी में चुपचाप अपनी परछाई देखती रहती। कभी चंदा-सी पूरी खिल जाती तो कभी सिकुड़कर आधी हो जाती। दूसरी तरफ़ बौखलाया दिन लाल चेहरा लिए हाँफता पसीना बहाता, हर काम जल्दी-जल्दी निपटाने की फिक्र में लगा रहता। आमने-सामने पड़ते ही दिन और रात में हमेशा बहस शुरू हो जाती। दिन कहता काम ज़्यादा जरूरी है और रात कहती आराम। दोनों अपनी-अपनी दलीलें रखते, समझने और समझाने की कोशिश करते पर किसी भी नतीजे पर न पहुँच पाते। जान नहीं पाते कि उन दोनों में आखिर कौन बड़ा है, गुणी है. . .सही है या ज़्यादा महत्वपूर्ण है। हारकर दोनों अपने रचयिता के पास पहुँचे। भगवान ने दोनों की बातें बड़े ध्यान से सुनीं और कहा कि मुझे तो तुम दोनों का महत्व बिल्कुल बराबर का लगता है तभी तो मैंने तुम दोनों को ही बनाया और अपनी सृष्टि में बराबर का आधा-आधा समय दिया। गुण-अवगुण कुछ नहीं, एक ही पहलू के दो दृष्टिकोण हैं। हर अवगुण में गुण बनने की क्षमता होती है। पर रात और दिन को उनकी बात समझ में न आई और वहीं पर फिर से उनमें वही तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई। हारकर भगवान ने समझाने की बजाय, थोड़े समय के लिए रात को दिन के उजाले वाली चादर दे दी और दिन को रात की अँधेरे वाली, ताकि दोनों रात और दिन बनकर खुद ही फ़ैसला कर सकें। एक दूसरे के मन में जाकर दूसरे का स्वभाव और ज़रूरतें समझ सकें। तकलीफ़ और खुशियाँ महसूस कर पाएँ। और उस दिन से आजतक सुबह बनी रात जल्दी-जल्दी अपने सारे काम निपटाती है और रात बने दिन को आराम का महत्व समझ में आने लगा है। अब वह रात को निठल्ली और आलसी नहीं कहता बल्कि थकने पर खुद भी आराम करता है। सुनते हैं अब तो दोनों में कोई बहस भी नहीं होती। दोनों ही जान जो गए हैं कि अपनों में छोटा या बड़ा कुछ नहीं होता। इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति कम या ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं। सबके अपने-अपने काम हैं, अपनी-अपनी योग्यता और ज़रूरतें हैं। जीवन सुचारु और शांतिमय हो इसके लिए काम और आराम, दोनों का ही होना ज़रूरी है। आराम के बिना काम थक जाएगा और काम के बिना आराम परेशान हो जाएगा। अब दिन खुश-खुश सूरज के संग आराम से कर्मठता का संदेश देता है। जीवन पथ को उजागर करता है और रात चंदा की चाँदनी लेकर घर-घर जाती है, थकी-हारी दुनिया को सुख-शांति की नींद सुलाती है। हर शाम-सुबह वे दोनों आज भी अपनी-अपनी चादर बदल लेते हैं. . .प्यार से गले मिलते हैं इसीलिए तो शायद दिन और रात के वह संधि-पल जिन्हें हम सुबह और शाम के नाम से जानते हैं आज भी सबसे ज़्यादा सुखद और सुहाने लगते हैं। कौन जाने यह विवेक का जादू है या संधि और सद्भाव का. . .या फिर उस संयम का जिसे हम प्यार से परिवार कहते हें। शायद सच में अच्छा बुरा कुछ नहीं होता प्यार और नफ़रत बस हमारी निजी ज़रूरतों का ही नाम है. . .बस हमारी अपनी परछाइयाँ हैं। पर अगर कोण बदल लो तो परछाइयाँ भी तो घट और बढ़ जाती हैं। तभी तो हम आप उनके बच्चे, जो यह मर्म समझ पाए, अपने पूर्वजों की बनाई राह पर आजतक खुश-खुश चलते हैं।

दिन और रात


gumanji patel: हमारा गांव

gumanji patel: हमारा गांव: मेरे गाँव में घर की छत पे आज भी मोर आते है मेरे शहर में मुझे चिडिया भी देखने नही मिलती ॥ . . मेरे गाँव में लोगो के बीच आज भी वो ही भाईचारा ...

हमारा गांव

मेरे गाँव में घर की छत पे आज भी मोर आते है मेरे शहर में मुझे चिडिया भी देखने नही मिलती ॥ . . मेरे गाँव में लोगो के बीच आज भी वो ही भाईचारा है मेरे शहर में भाई की भाई से ही नही बनती ॥ . . मेरे गाँव में सुख दुःख में सब साथ है मेरे शहर में परछाई भी साथ नही दिखती ॥ . . मेरे गाँव में आज भी पक्की सड़क नही है मेरे शहर में सड़के है पर मंजिल नही मिलती ॥ . . मेरे गाँव में आज भी सब नीम के पेड़ तले बतियाते है मेरे शहर में लोगो को फ़ोन से फुर्सत नही मिलती ॥ . . मेरे गाँव में बच्चे आज भी माँ के आँचल में पलते है मेरे शहर में अब माँ का आँचल ही देखने को नही मिलते है ॥ . . मेरे गाँव में सावन में आज भी झूले पड़ते है मेरे शाहर में पार्क में भी झूले देखने को नही मिलते ॥ . . मेरे गाँव में आज भी हर तीज त्यौहार के लिए अपने गीत है मेरे शहर में बद से बदतर होता कान फोडू संगीत है ॥ . . मेरे गाँव में कुछ नही है फिर भी लोग खुश है मेरे शहर में सब कुछ है ..फिर भी चेहरे पे वो खुशी नही दिखती ॥ . . मेरे गाँव में अमन है सुख है चैन है मेरे शहर में हर मुस्कराहट के पीछे भीगे हुए नैन है ॥

हमारा गांव


ये भी तो पत्थर के बने हैं

एक बच्चा अपनी माँ के साथ मंदिर गया । मन्दिर के मुख्य-द्वार पर पत्थर के बने दो शेर को देख बच्चा रोने लगा और कहा कि वह काट लेगा । मां ने समझाया कि ये पत्थर के बने हैं, यह काट नहीं सकता । आगे बढ़ने पर वह पत्थर के बने दो मुस्टंडे द्वारपाल हाथ में भला लिए खड़ा था को देखा । बच्चा फिर रोने लगा और कहा कि यह मुझे मार देगा । माँ ने फिर समझाया कि ये पत्थर के बने है यह तम्हें नहीं मार सकता । अब बच्चा मन्दिर के अंदर पहुंच गया । माँ ने फूल आरती मूर्ति पर चढ़ाने लगा । बच्चा - मां ये क्या कर रही हो ? " देख नहीं रहे हो पूजा कर भगवान से कुछ मांग रही हूं "- माँ ने कहा । बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा की ये भी तो पत्थर के बने हैं यह कैसे कुछ दे सकता है ।

ये भी तो पत्थर के बने हैं

एक बच्चा अपनी माँ के साथ मंदिर गया । मन्दिर के मुख्य-द्वार पर पत्थर के बने दो शेर को देख बच्चा रोने लगा और कहा कि वह काट लेगा । मां ने समझाया कि ये पत्थर के बने हैं, यह काट नहीं सकता । आगे बढ़ने पर वह पत्थर के बने दो मुस्टंडे द्वारपाल हाथ में भला लिए खड़ा था को देखा । बच्चा फिर रोने लगा और कहा कि यह मुझे मार देगा । माँ ने फिर समझाया कि ये पत्थर के बने है यह तम्हें नहीं मार सकता । अब बच्चा मन्दिर के अंदर पहुंच गया । माँ ने फूल आरती मूर्ति पर चढ़ाने लगा । बच्चा - मां ये क्या कर रही हो ? " देख नहीं रहे हो पूजा कर भगवान से कुछ मांग रही हूं "- माँ ने कहा । बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा की ये भी तो पत्थर के बने हैं यह कैसे कुछ दे सकता है ।

ये भी तो पत्थर के बने हैं


मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

राजस्थानी कहावते

1...आडू कै तो खाय मरै, कै उठा मरै। 2..ऊंखली में सिर दे जिको धमकां सैं के डरै। 3..कपूत जायो भलो न आयो। 4...करमहीन खेती कैर, के काल पडै के बलद मरै। 5..कागलां कै सराप सूं ऊंट कोनी मरै। 6..कातिक की छांट बुरी, बाणियां की नांट बुरी, भायां की आंट बुरी, राज की डांट बुरी। 7..गरीब की लुगाई, जगत की भोजाई। 8..घर में सालो, दीवाल में आलो, आज नहीं तो काल दिवालो। 9..घी खाणूं तो पगड़ी राख कर खाणूं। 10..चौमासे को गोबर लीपण को, न थापण को। 11..जल को डूब्यो तिर कर निकलै, तिरिया डूब्यो बह ज्याय। 12..जाट कहै सुम जाटणी इणी गांव में रैणो, ऊंट बिलाई लेगई हांजी हांजी कहणों। 13..तिरिया चरित न जाणे कोय, खसम मार के सत्ती होय। 14..दुनिया में दो गरीब है, कै बेटी, कै बैल। 15..दूर जंवाई फूल बरोबर, गांव जंवाई आदो घर जांवई गधै बरोबर, चाये जितणो लादो। 16..फूड़ को मैल फागण में उतरै। 17..बाबाजी धूणी तपो हो ? कहो, भाया काय जाणै है। 18..बाबाजी बछड़ा घेरो। कह, बछड़ा घेरता तो स्यामी क्यूं होता ? 19..मतलब की मनुहार जगत जिमावै चूरमा। 20..मा कै सरायां पूत कोन्यां सरायो जाय, जगत कै सरायां सरायो जाय। 21..मूरख न टक्को दे देणूं, पण अक्कल नहीं देणी। —

राजस्थानी कहावते


"बिलखती नार"

आप बसों परदेस में, बिलखु थां बिन राज सूख गयी रागनी, सुना पड्या म्हारा साज।। देस दिशावर जाय कर धन है खूब कमाया ! घर आँगन ने भूलगया ,वापिस घर ना आया।। पापी पेट रै कारन छुट्या घर और बार । कद आवोगा थे पिया,बिलख रही घर री नार ।। बिलख रही घर री नार, जाव रतन चौमासौ। न चिठ्ठी- न सन्देश मत करो म्हासु तमासौ।।

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

पंचायत समिति लूणी के ग्राम पंचायत शुभदण्ड सरपंचा रा चुनाव-

पंचायत समिति लूणी के ग्राम पंचायत शुभदण्ड saहित आस-पास के क्षेत्रों में पंच-सरपंच के हुए मतदान में रविवार सुबह से मतदाताओं की लम्बी कतारें लगी रही। गांवों में सरकार बनाने के लिए लोगों में जबरदस्त उत्साह देखा गया। छिटपुट घटनाओं को छोड़कर शांतिपूर्ण मतदान होने पर प्रशासन ने राहत की सांस ली। तेज सर्दी के बाद भी सुबह से मतदाता मतदान केन्द्रों पर आने शुरू हो गए। सुबह से शाम तक मतदान केन्द्रों पर मतदाताओं की लंबी कतारे लगी रही, ग्राम शुभदण्ड कस्बे के पोलिंग बूथ पर बुजुर्गों, विकलांगों तथा महिला मतदाताओं को परेशानियों का सामना करना पड़ा। विद्यालय परिसर में मतदान के दौरान कई अजीब नजारे देखने को मिले। पंच-सरपंच के उम्मीदवार एवं मतदाता अपने परिवार के बुजुर्गों विकलांगों को वोट डलवाने के लिए अपने कंधों उठाकर ले जाते नजर आए तो कई उम्मीदवार पोलिंग बूथ के बाहर मतदाताओं के पैर छूकर अपने पक्ष मे मतदान करने का आग्रह कर रहे थे। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मय पुलिस बल के पोलिंग बूथों का निरीक्षण करते रहे। पुलिस अधीक्षक लूणी के पुलिस चौकी में अधिकारियों से स्थिति का जायजा लेते रहे। लूणी के तहसीलकी पंचायतों के पंच-सरपंच के चुनाव रविवार को सम्पन्न हुए। इन चुनावों में मतदाताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। सुबह से ही मतदाताओं का मतदान केन्द्रों पर आना शुरू हो गया। मतदान शुरू होने के कुछ ही देर बाद मतदान केन्द्र के आसपास मतदाताओं की भीड़ से मेला जैसा दृश्य नजर आने लगा। कोई पैदल तो कोई बाइक पर तो कोई अन्य चौपहिया साधनों से मतदान करने के लिए गया। प्रत्याशियों के समर्थक अपने अपने प्रत्याशी का चुनाव चिह्न बताकर उसके पक्ष मे मतदान करने का आग्रह करते नजर आए। पंच-सरपंच के चुनावों में दो दिन पूर्व हुए चुनावों की अपेक्षा जोश एवं प्रतिशत अधिक था। बीमार वृद्ध एवं निशक्तजन परिजनों के सहारे मतदान करने बूथ पर पहुंचे। सुबह 11 बजे ग्राम पंचायत शुभदण्ड में 20 ग्राम पंचायत धवाँ में 12 बजे 35.35, ग्राम पंचायत दुदाँडा में 35.38 प्रतिशत मतदान हो चुका था। धन्यवाद सा gumanjipajel21@ gmail.com