गुरुवार, 31 मार्च 2016
"आपणी संस्कृति"
"आपणी संस्कृति"
मारवाड़ी बोली
ब्याँव में ढोली
लुगायां रो घुंघट
कुवे रो पणघट
ढूँढता रह जावोला.....
फोफळीया रो साग
चूल्हे मायली आग
गुवार री फळी
मिसरी री डळी
ढूँढता रह जावोला.....
चाडीये मे बिलोवणो
बाखळ में सोवणों
गाय भेंस रो धीणो
बूक सु पाणी पिणो
ढूंढता रह जावोला.....
खेजड़ी रा खोखा
भींत्यां मे झरोखा
ऊँचा ऊँचा धोरा
घर घराणे रा छोरा
ढूंढता रह जावोला.....
बडेरा री हेली
देसी गुड़ री भेली
काकडिया मतीरा
असली घी रा सीरा
ढूंढता रह जावोला.....
गाँव मे दाई
बिरत रो नाई
तलाब मे न्हावणो
बैठ कर जिमावणों
ढूँढता रह जावोला.....
आँख्यां री शरम
आपाणों धरम
माँ जायो भाई
पतिव्रता लुगाई
ढूँढता रह जावोला.....
टाबरां री सगाई
गुवाड़ मे हथाई
बेटे री बरात
माहेश्वरियां री जात
ढूँढता रह जावोला.....
आपणो खुद को गाँव
माइतां को नांव
परिवार को साथ
संस्कारां की बात
ढूंढता रह जावोला.....
सबक:- आपणी संस्कृति बचावो।
🐄🐃
बुधवार, 30 मार्च 2016
पापा बेटा,
एक बेटा अपने बूढ़े पिता को वृद्धाश्रम एवं अनाथालय में छोड़कर वापस लौट रहा था;
उसकी पत्नी ने उसे यह सुनिश्चत करने के लिए फोन किया कि पिता त्योहार वगैरह की छुट्टी में भी वहीं रहें
घर ना चले आया करें !
बेटा पलट के गया तो पाया कि उसके पिता वृद्धाश्रम के प्रमुख के साथ ऐसे घलमिल कर बात कर रहे हैं जैसे बहुत पुराने और प्रगाढ़ सम्बंध हों...
तभी उसके पिता अपने कमरे की व्यवस्था देखने के लिए वहाँ से चले गए..
अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए बेटे ने अनाथालय प्रमुख से पूँछ ही लिया...
"आप मेरे पिता को कब से
जानते हैं ? "
मुस्कुराते हुए वृद्ध ने जवाब दिया...
"पिछले तीस साल से...जब वो हमारे पास एक अनाथ बच्चे को गोद लेने आए थे! "
Maaa...
धयान से पढ़ना आँखों में पानी आ जाएगा.
 बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया ..
इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया
मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...
जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है .....
आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था .... जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे ...
मुझे पता है इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब की डायरी होगी ....
पता तो चले कितना माल छुपाया है .....
माँ से भी ...
इसीलिए हाथ नहीं लगाने देते किसी को..
जैसे ही मैं कच्चे रास्ते से सड़क पर आया, मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है ....
मैंने जूता निकाल कर देखा .....
मेरी एडी से थोडा सा खून रिस आया था ...
जूते की कोई कील निकली हुयी थी, दर्द तो हुआ पर गुस्सा बहुत था ..
और मुझे जाना ही था घर छोड़कर ...
जैसे ही कुछ दूर चला ....
मुझे पांवो में गिला गिला लगा, सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था ....
पाँव उठा के देखा तो जूते का तला टुटा था .....
जैसे तेसे लंगडाकर बस स्टॉप पहुंचा, पता चला एक घंटे तक कोई बस नहीं थी .....
मैंने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी ली जाये ....
मैंने पर्स खोला, एक पर्ची दिखाई दी, लिखा था..
लैपटॉप के लिए 40 हजार उधार लिए
पर लैपटॉप तो घर मैं मेरे पास है ?
दूसरा एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा, उसमे उनके ऑफिस की किसी हॉबी डे का लिखा था
उन्होंने हॉबी लिखी अच्छे जूते पहनना ......
ओह....अच्छे जुते पहनना ???
पर उनके जुते तो ...........!!!!
माँ पिछले चार महीने से हर पहली को कहती है नए जुते ले लो ...
और वे हर बार कहते "अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे .."
मैं अब समझा कितने चलेंगे
......तीसरी पर्ची ..........
पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में नयी मोटर साइकिल ले जाइये ...
पढ़ते ही दिमाग घूम गया.....
पापा का स्कूटर .............
ओह्ह्ह्ह
मैं घर की और भागा........
अब पांवो में वो कील नही चुभ रही थी ....
मैं घर पहुंचा .....
न पापा थे न स्कूटर ..............
ओह्ह्ह नही
मैं समझ गया कहाँ गए ....
मैं दौड़ा .....
और
एजेंसी पर पहुंचा......
पापा वहीँ थे ...............
मैंने उनको गले से लगा लिया, और आंसुओ से उनका कन्धा भिगो दिया ..
.....नहीं...पापा नहीं........ मुझे नहीं चाहिए मोटर साइकिल...
बस आप नए जुते ले लो और मुझे अब बड़ा आदमी बनना है..
वो भी आपके तरीके से ...।।

"माँ" एक ऐसी बैंक है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है...
और
"पापा" एक ऐसा क्रेडिट कार्ड है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है........Always Love Your Parents💕
अगर दिल के किसी कोने को छू जाये तो फोरवर्ड जरूर करना . 
थोडा हंस लो
: एक राजस्थान के लड़के को जॉब नही मिली
तो उसने क्लिनिक खोला और बाहर लिखा
तीन सौ रूपये मे ईलाज करवाये
ईलाज नही हुआ तो एक हजार रूपये वापिस....
एक पंडित ने सोचा कि एक हजार रूपये कमाने का अच्छा मौका है
वो क्लिनिक पर गया
और बोला
मुझे किसी भी चीज का स्वाद नही आता ।
राजस्थान का लड़का ;
बॉक्स नं.२२ से दवा निकालो
और ३ बूँद पिलाओ
नर्स ने पिला दी
पंडित : ये तो पेट्रोल है ।
राजस्थान का लड़का :
मुबारक हो आपको टेस्ट महसूस हो गया
लाओ तीन सौ रूपये
पंडित को गुस्सा आ गया
कुछ दिन बाद फिर वापिस गया
पुराने पैसे वसूलने
पंडित। :साहब मेरी याददास्त
कमजोर हो गई है ।
राजस्थान का लड़का :
: बॉक्स नं. २२ से दवा निकालो
और ३ बूँद पिलाओ
पंडित : लेकिन वो दवा तो जुबान
की टेस्ट के लिए है
राजस्थान का लड़का :
ये लो तुम्हारी याददास्त भी वापस
आ गई
लाओ तीन सौ रुपए।
इस बार पंडित गुस्से में गया
-मेरी नजर कम हो गई है
राजस्थान का लड़का :
इसकी दवाई मेरे पास नहीं है।
लो एक हजार रुपये।
पंडित -यह तो पांच सौ का नोट है।
राजस्थान का लड़का :
आ गई नजर।
ला तीन सौ रुपये।
........ East aur West.. Rajasthan waale is the Best..
हम राजस्थान के है..
😎😎😎😎😎😎😎😎😎
थोडा हंस लो
एक – मारवाड़ी अपनी बकरी को बस में ले जाने लगा
कंडेक्टर ने मना कर दिया..
तब
मारवाड़ी बकरी को बुरका पहना के बस में ले गया…
Conducter को बोला -‘ये मेरी नानी हे, बुढापे की वजह से कमर झुक गई हे..
कुछ देर बाद बकरी ने potty कर दी.
पास में बैठे पंजाबी ने बोला
‘
😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛
0ye .
तेरी नानी की रुद्राक्ष की माला टूट गई।
होते है किस्मत बाले जिनकी माँ होती है
एक बेटा पढ़-लिख कर बहुत
बड़ा आदमी बन गया .
पिता के स्वर्गवास के बाद
माँ ने हर तरह का काम
करके उसे इस काबिल
बना दिया था.
शादी के बाद
पत्नी को माँ से शिकायत
रहने लगी के वो उन के
स्टेटस मे फिट नहीं है.
लोगों को बताने मे उन्हें
संकोच होता है कि
ये अनपढ़ उनकी सास-
माँ है…!
बात बढ़ने पर बेटे ने…
एक दिन माँ से कहा..
” माँ ”_ मै चाहता हूँ कि मै
अब इस काबिल हो गया हूँ
कि कोई भी क़र्ज़ अदा कर
सकता हूँ मै और तुम
दोनों सुखी रहें इसलिए आज
तुम मुझ पर किये गए अब तक
के सारे खर्च सूद और व्याज
के साथ मिला कर बता दो .
मै वो अदा कर दूंगा…!
फिर हम अलग-अलग
सुखी रहेंगे.
माँ ने सोच कर उत्तर
दिया…
“बेटा”_ हिसाब
ज़रा लम्बा है….
सोच कर बताना पडेगा मुझे.
थोडा वक्त चाहिए.
बेटे ने कहा माँ कोई
ज़ल्दी नहीं है. दो-चार
दिनों मे बता देना.
रात हुई, सब सो गए,
माँ ने एक लोटे मे
पानी लिया और बेटे के कमरे
मे आई.
बेटा जहाँ सो रहा था उसके
एक ओर पानी डाल दिया.
बेटे ने करवट ले ली.
माँ ने दूसरी ओर
भी पानी डाल दिया.
बेटे ने जिस ओर भी करवट
ली माँ उसी ओर
पानी डालती रही.
तब परेशान होकर बेटा उठ
कर खीज कर.
बोला कि माँ ये क्या है ?
मेरे पूरे बिस्तर को पानी-
पानी क्यूँ कर डाला..?
माँ बोली….
बेटा…. तुने मुझसे
पूरी ज़िन्दगी का हिसाब
बनानें को कहा था.
मै अभी ये हिसाब
लगा रही थी कि मैंने
कितनी रातें तेरे बचपन मे
तेरे बिस्तर गीला कर देने से
जागते हुए काटीं हैं.
ये तो पहली रात है ओर तू
अभी से घबरा गया ..?
मैंने अभी हिसाब तो शुरू
भी नहीं किया है जिसे तू
अदा कर पाए…!
माँ कि इस बात ने बेटे के
ह्रदय को झगझोड़ के रख
दिया.
फिर वो रात उसने सोचने मे
ही गुज़ार दी. उसे ये
अहसास
हो गया था कि माँ का
क़र्ज़ आजीवन
नहीं उतरा जा सकता.
माँ अगर शीतल छाया है.
पिता बरगद है जिसके नीचे
बेटा उन्मुक्त भाव से जीवन
बिताता है.
माता अगर अपनी संतान के
लिए हर दुःख उठाने
को तैयार रहती है.
तो पिता सारे जीवन उन्हें
पीता ही रहता है.
हम तो बस उनके किये गए
कार्यों को आगे बढ़ाकर
अपने हित मे काम कर रहे हैं.
आखिर हमें भी तो अपने
बच्चों से वही चाहिए
ना ……..!
थोडा हंस लो
एक बस में काफी भीड़ थी तो कंडेक्टर ने कुछ यात्रियों के पीपे और डिब्बे बस की छत पर रख दिए..
थोड़ी देर में भीड़ बढ़ी तो बस की छत भी भर गई.
किसी सरारती युवक ने निचे बेठे यात्रियों के
पिपे और डिब्बे खोल दिए जिनमे मिठाइयां और
दूसरा खाने का सामान था और ऊपर बेठे यात्रियों
ने जमकर मिठाइयो का मजा लिया..
जब नवलगढ़ में बस रुकी और जिनके पीपे और
डिब्बे थे उपर से उतारे
तो हंगामा खड़ा हो गया वो चिल्लाने लगे :-
"साले हरामजादो़ं
हम भिखमंगो को भी नहीं छोड़ा,
बड़ी मुश्किल से 3 घंटे शादी के खाने में जूठी प्लेटो से बीन बीन कर
खाना लाये और साले ऊपर बेठ कर सब चट कर गये"
Betiya
बेटियाँ शादी के मंडप या ससुराल जाने से पराई नही लगती,
*
जब वो मायके आ कर हाथ मूह धोने के बाद बेसिन के पास टंगे नैपकिन की बजाय अपने बैग के छोटे से रूमाल से मूँह पोछती हैं। तब पराई लगती है,
*
जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी ठिठक जाती है। तब पराई सी लगती है बेटियाँ,
*
जब पानी के गिलास के लिए इधर उधर नजरें घुमाती हैं, तब पराई लगती है ये बेटियाँ,
*
जब वह पूछती हैं, वोशिंग मशीन चलाऊँ क्या?? तब पराई हो जाती हैं ये बेटियाँ,
*
जब टेबल पे खाना लग जाने पर भी खोल के नही देखती कि क्या बनाया है माँ ने तब पराई लगती हैं बेटियाँ,
*
जब पैसे गिनते समय नजरें चुराती है तब पराई लगती हैं बेटियाँ,
*
जब बात. बात पर ठहाके लगा कर खुश होने का नाटक करती है तब पराई लगती है बेटियाँ,
*
लौटते समय फिर कब आओगी के जवाब मे 'देखो कब आना होता है, बोलती है तब हमेशा के लिए पराई हो जाती है ये बेटियाँ,
*
लेकिन जाते हुए चुपके से आँख की कोर सुखाने की कोशिश करती है तो सारा परायापन एक झटके में बह जाता है, फिर पराई कहाँ होती है बेटियाँ,...
jeera
हर शाम को एक चम्मच जीरा साफ़ पीने के पानी में भिगो कर रख दीजिये। सुबह खाली पेट ये जीरा चबा चबा कर खा लीजिये और इस बचे हुए पानी को चाय की तरह गर्म करें और इसमें आधा निम्बू निचोड़ कर इसमें एक चम्मच शहद मिला कर इस पेय के घूँट घूँट कर चाय की तरह पियें।
जीरा शरीर में हमारे द्वारा ग्रहण की गयी वसा को शरीर में अवशोषित नहीं होने देता। और गर्म पानी में निम्बू शरीर में जमी हुयी चर्बी को काटता है। इस कारण से प्रयोग मोटापे के लिए चमत्कार है।
और ध्यान रखें, इस प्रयोग के करते समय आप नाश्ता ना करें। नहीं तो मनचाहा रिजल्ट नहीं मिलेगा। सुबह ये पीने के बाद सीधे दोपहर का खाना खाएं। और खाने के पहले एक प्लेट सलाड खाएं। और भोजन में हरी सब्जियों का प्रयोग करें। और रात को भी सोने से 2-3 घंटे पहले भोजन कर लें।
दोपहर और रात के भोजन के तुरंत बाद एक गिलास गर्म पानी चाय की तरह आधा नीम्बू निचोड़ कर पीयें। भोजन के साथ ठंडा पानी बिलकुल नहीं पीना।
मैदे से बानी हुयी वस्तुओ से परहेज करें। मीठा और चीनी मोटापे में ज़हर के समान हैं। अनाज भी चोकर वाला (आटे को छानने से जो कचरा निकालते हैं वो चोकर होता है उसको मत निकाले) इस्तेमाल करें। फलों का जूस पीने की बजाय फल खाने चाहिए, इससे फाइबर भी मिल जाता है और जल्दी भूख नहीं लगती।
शीघ्र रिजल्ट पाने वाले व्यक्तियों को इसके साथ साथ में कुछ व्यायाम ज़रूर करना चाहिये। विशेषकर पश्चिमोत्तनासन, कपाल भाति और हो सके तो रनिंग या जॉगिंग ज़रूर करें।
आपको एक महीने में ही रिजल्ट मिल जायेगा।
Admin Aarti
“ऐडमिन आरती”
*.
*.जय एडमिन देवा जय एडमिन देवा ।
*.थारी दया स्यु नेट प मजा घणा लेवा ।।
*.
*.चोखी चोखी ज्ञान की बात्या खूब घणी बांचा
*.धर्म करम की गंगा पाप का ना खांचा ।।
*.
*.डांट डपट फटकार स थारो नहीं नातों ।
*.जो कोई एकर आग्यो तो पाछो नहीं जातो।।
*.
*.बिना काम की चौधर थान सुहाव नहीं ।
*.थे क स्यो बिया होव साची थारी बही ।।
*.
*.या आरती एडमिन जी जो सदस्य गाता ।
*.उर आनद अति उमड़े मोज करत जाता ।।
*.
*.जय एडमिन देवा जय एडमिन देवा ।
*.थारी दया स्यु नेट प मजा घणा लेवा ।
*.
*.
*.
*.====================================
एडमिन की एक और सनसनीख़ेज़ खबर ।
दारु के ठेके के आसपास बियर की खाली बॉटलें गिनता हुआ पकड़ा गया ।
बहुत ही सख्ती से पूछने पर बोला की नेट का रिचार्ज करवाने के लिए करता था
ये काम ।
.*** सात बचन फेरां का ***
*.*** सात बचन फेरां का ***
*.
*.पेहलो बचन दिनूगै जाग आवै
*.जद उठूँ बेगा ना जगाइयो
*.उठतां पाण ही एक कप चाा
*.गुदडा माहि झलाइयो
*.लुल्गै भुआरी म्हारे सुं कडे कोनि
*.ना पानी भरण न जाऊं
*.औह बचन म्हारो मंजूर होवै
*.तो थारै डावै अंग माहिं आऊं
*.—
*.
*.दुसरो बचन जाँता ही न्यारी होस्यु
*.न्यारो घर बनास्या
*.डांगर पशु राखा कोनि डेयरी पर सुं
*.थेली आळो दूध ल्यासा
*.थारै बुढ़िये बुढ़लि गी सेवा मे रे सुं
*.कोनि होवै मैं पेल्हा ही बताऊं
*.औह बचन म्हारो मंजूर होवै
*.तो थारै डावै अंग माहिं आऊं
*.—
*.
*.तीसरो बचन धुवै सुं आँख बलै
*.ले देइयो गैस कनेक्सन
*.जेन्टल घाल मशीन सुं गाबा धोंस्या
*.हाथा क होवै ईफेक्सन
*.इत्ता गाबा घरां ताबै कोनि आवै
*.धोबी सुं प्रेस कराऊँ
*.औह बचन म्हारो मंजूर होवै
*.तो थारै डावै अंग माहिं आऊं
*.—
*.
*.चौथो बचन गाडो सो दिन क्यां
*.कटै मनोरंजन क़ बिना
*.घर म्ही रंगीन टीवी होवै अर
*.घर की होवै डिश एंटीना
*.अपो आपणी पसंद गा नाटक देखां
*.काई बात सर्मिंदगी की
*.मैं देखूँ कहानी घर घर की
*.थे देखियो कसोटी ज़िंदगी की
*.कोई बटाऊ आजै तो मैं बीच म्ही
*.उठगै चाा कोनि बनाऊं
*.औह बचन म्हारो मंजूर होवै
*.तो थारै डावै अंग माहिं आऊं
*.—
*.
*.पांचवों बचन बात करण नै मोबाईल होवै
*.त्तो जद ही मैं पीयर जाऊं
*.टायला लागेड़ो न्हाणघर होवै
*.फुआरो चलागे न्हाऊं
*.घरा ही सामान ल्यादेइयो पण
*.सातवें दिन ब्यूटीपार्लर जाऊं
*.औह बचन म्हारो मंजूर होवै
*.तो थारै डावै अंग माहिं आऊं
*.—
*.
*.छटो बचन थे मेरे अलावा
*.कीह कानि न झांकियो
*.कठै एडै मौके जाओ तो मनै
*.आगलै पासै राखियो
*.मेरी पसंद सुं टूम छलौ पहरुं
*.जिता मर्जी सूट सिमाऊं
*.औह बचन म्हारो मंजूर होवै
*.तो थारै डावै अंग माहिं आऊं
*.—
*.
*.सातवों अर आखरी बचन है
*.ध्यान सुं सुण लेइयो
*.नित आयेड़ी नन्दा चोखी कोनि लागै
*.फेर ना कइयो या काई बात
*.जेठुता जेठुति नान्दया नान्दि सागै
*.मैं ना नेह लगाऊं याद राखिज्यो
*.औह बचन म्हारो मंजूर होवै
*.तो थारै डावै अंग माहिं आऊं
*.
*.
*.
*
नाभि टलना (धरण) Navel SideStep. नाभि टलने के कु प्रभाव।
नाभि टलना (धरण) Navel SideStep.
नाभि टलने के कु प्रभाव।
नाभि अर्थात हमारे शरीर की धुरी अर्थात केंद्र। यदि ये खिसक जाए या टल जाए तो सारे शरीर की किर्याएँ अपने मार्ग से विचलित हो जाती हैं। आइये जाने कैसे करे नाभि टलने का इलाज।
नाभि टलने को परखिये।
आमतौर पर पुरुषों की नाभि बाईं ओर तथा स्त्रियों की नाभि दाईं ओर टला करती है।
ऊपर की तरफ
यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो यकृत प्लीहा आमाशय अग्नाशय की क्रिया हीनता होने लगती है ! इससे फेफड़ों-ह्रदय पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा,ब्रोंकाइटिस -थायराइड मोटापा -वायु विकार घबराहट जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं।
नीचे की तरफ
यही नाभि मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे अधो अंगों की तरफ चली जाए तो मलाशय-मूत्राशय -गर्भाशय आदि अंगों की क्रिया विकृत हो अतिसार-प्रमेह प्रदर -दुबलापन जैसे कई कष्ट साध्य रोग हो जाते है। फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। स्त्रियों के उपचार में नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया जाये। इससे कई वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो जाती है ।
बाईं ओर
बाईं ओर खिसकने से सर्दी-जुकाम, खाँसी,कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं।
दाहिनी ओर
दाहिनी तरफ हटने पर अग्नाशय -यकृत -प्लीहा क्रिया हीनता -पैत्तिक विकार श्लेष्म कला प्रदाह -क्षोभ -जलन छाले एसिडिटी (अम्लपित्त) अपच अफारा हो सकती है।
नाभि टलने पर क्या करे।
नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को हल्का सुपाच्य पथ्य देना चाहिए । नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को मूँगदाल की खिचड़ी के सिवाय कुछ न दें। दिन में एक-दो बार अदरक का 2 से 5 मिलिलीटर रस बराबर शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
नाभि कैसे स्थान पर लाये।
1.ज़मीन पर दरी या कम्बल बिछा ले। अभी बच्चो के खेलने वाली प्लास्टिक की गेंद ले लीजिये। अब उल्टा लेट जाए और इस गेंद को नाभि के मध्य रख लीजिये। पांच मिनट तक ऐसे ही लेटे रहे। खिसकी हुई नाभि (धरण) सही होगी। फिर धीरे से करवट ले कर उठ जाए, और ओकडू बैठ जाए और एक आंवला का मुरब्बा खा लीजिये या फिर 2 आटे के बिस्कुट खा लीजिये। फिर धीरे धीरे खड़े हो जाए।
2.कमर के बल लेट जाएं और पादांगुष्ठनासास्पर्शासन कर लें। इसके लिए लेटकर बाएं पैर को घुटने से मोड़कर हाथों से पैर को पकड़ लें व पैर को खींचकर मुंह तक लाएं। सिर उठा लें व पैर का अंगूठा नाक से लगाने का प्रयास करें। जैसे छोटा बच्चा अपना पैर का अंगूठा मुंह में डालता है। कुछ देर इस आसन में रुकें फिर दूसरे पैर से भी यही करें। फिर दोनों पैरों से एक साथ यही अभ्यास कर लें। 3-3 बार करने के बाद नाभि सेट हो जाएगी।
3.सीधा (चित्त) सुलाकर उसकी नाभि के चारों ओर सूखे आँवले का आटा बनाकर उसमें अदरक का रस मिलाकर बाँध दें एवं उसे दो घण्टे चित्त ही सुलाकर रखें। दिन में दो बार यह प्रयोग करने से नाभि अपने स्थान पर आ जाती है हैं।
नाभि सेट करके पाँव के अंगूठों में चांदी की कड़ी भी पहनाई जाती हैं, जिस से भविष्य में नाभि टलने का खतरा कम हो जाता हैं। अक्सर पुराने बुजुर्ग लोग धागा भी बाँध देते हैं।
नाभि के टलने पर और दर्द होने पर 20 ग्राम सोंफ, गुड समभाग के साथ मिलाकर प्रात: खाली पेट खायें। अपने स्थान से हटी हुई नाभि ठीक होगी। और भविष्य में नाभि टलने की समस्या नहीं होगी।
सोमवार, 28 मार्च 2016
Anmol vashan
अनमोल वचन:-
मुसीबत में अगर मदद मांगो तो सोच कर मागना क्योकि मुसीबत थोड़ी देर की होती है और एहसान जिंदगी भर का.....
मशवरा तो खूब देते हो
"खुश रहा करो" कभी कभी वजह भी दे दिया करो...
कल एक इन्सान रोटी मांगकर ले गया और करोड़ों कि दुआयें दे गया, पता ही नहीँ चला की, गरीब वो था की मैं....
गठरी बाँध बैठा है अनाड़ी
साथ जो ले जाना था वो कमाया ही नहीं
मैं उस किस्मत का सबसे पसंदीदा खिलौना हूँ, वो रोज़ जोड़ती है मुझे फिर से तोड़ने के लिए....
जिस घाव से खून नहीं निकलता, समझ लेना वो शायद किसी अपने ही ने दिया है...
बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर, आँख बिस्तर पर ही खुलती थी...
खोए हुए हम खुद हैं, और ढूंढते भगवान को हैं...
अहंकार दिखा के किसी रिश्ते को तोड़ने से अच्छा है की,माफ़ी मांगकर वो रिश्ता निभाया जाये....
जिन्दगी तेरी भी, अजब परिभाषा है..सँवर गई तो जन्नत, नहीं तो सिर्फ तमाशा है...
खुशीयाँ तकदीर में होनी चाहिये, तस्वीर मे तो हर कोई मुस्कुराता है...
जिंदगी भी विडियो गेम सी हो गयी है एक लैवल क्रॉस करो तो अगला लैवल और मुश्किल आ जाता हैं.....
इतनी चाहत तो लाखो
रु पाने की भी नही होती, जितनी बचपन की तस्वीर देखकर बचपन में जाने की होती है.......
हमेशा छोटी छोटी गलतियों से बचने की कोशिश किया करो , क्योंकि इन्सान पहाड़ो से नहीं पत्थरों से ठोकर खाता है ..
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बेटियाँ शादी के मंडप या ससुराल जाने से पराई नही लगती,
*
जब वो मायके आ कर हाथ मूह धोने के बाद बेसिन के पास टंगे नैपकिन की बजाय अपने बैग के छोटे से रूमाल से मूँह पोछती हैं। तब पराई लगती है,
*
जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी ठिठक जाती है। तब पराई सी लगती है बेटियाँ,
*
जब पानी के गिलास के लिए इधर उधर नजरें घुमाती हैं, तब पराई लगती है ये बेटियाँ,
*
जब वह पूछती हैं, वोशिंग मशीन चलाऊँ क्या?? तब पराई हो जाती हैं ये बेटियाँ,
*
जब टेबल पे खाना लग जाने पर भी खोल के नही देखती कि क्या बनाया है माँ ने तब पराई लगती हैं बेटियाँ,
*
जब पैसे गिनते समय नजरें चुराती है तब पराई लगती हैं बेटियाँ,
*
जब बात. बात पर ठहाके लगा कर खुश होने का नाटक करती है तब पराई लगती है बेटियाँ,
*
लौटते समय फिर कब आओगी के जवाब मे 'देखो कब आना होता है, बोलती है तब हमेशा के लिए पराई हो जाती है ये बेटियाँ,
*
लेकिन जाते हुए चुपके से आँख की कोर सुखाने की कोशिश करती है तो सारा परायापन एक झटके में बह जाता है, फिर पराई कहाँ होती है बेटियाँ,...
थोडा हंस लो
एक – मारवाड़ी अपनी बकरी को बस में ले जाने लगा
कंडेक्टर ने मना कर दिया..
तब
मारवाड़ी बकरी को बुरका पहना के बस में ले गया…
Conducter को बोला -‘ये मेरी नानी हे, बुढापे की वजह से कमर झुक गई हे..
कुछ देर बाद बकरी ने potty कर दी.
पास में बैठे पंजाबी ने बोला
‘
😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛😛
0ye .
तेरी नानी की रुद्राक्ष की माला टूट गई।
सोमवार, 21 मार्च 2016
थोडा हंस लो
दुनिया में पहली बार दारू बनाने की भट्ठी एक बरगद के पेड़ के नीचे लगी थी |
पेड़ पर एक कोयल और एक तोता रहते थे |
पेड़ के नीचे एक शेर और एक सूअर अक्सर आराम करने आते थे |
पहले ही दिन दारू बनाते समय भट्ठी से आग लग गयी |
आग में कोयल, तोता, शेर और सूअर जल कर मर गए और चारों की आत्मा सदा के लिए दारू में प्रवेश कर गयी |
अब नतीजा ये हुआ कि ---------------------
दो पैग के बाद कोयल की आत्मा का असर और मीठे बोल चालू |
तीसरे पैग के बाद तोते की तरह एक ही बात की टें टें टें |
चौथे पैग के बाद शेर की आत्मा का असर और फिर मुहल्ले का दादा बन गए |
और अगले पैग के बाद सूअर की आत्मा जग जाती है और फिर तो आप जानते ही होंगे
नाली मे ..............��
राम राम सा
1. अगर जींदगी मे कुछ पाना हो तो,,, तरीके बदलो....., ईरादे नही..
2. जब सड़क पर बारात नाच रही हो तो हॉर्न मार-मार के परेशान ना हो...... गाडी से उतरकर थोड़ा नाच लें..., मन शान्त होगा।
टाइम तो उतना लगना ही है..!
3. इस कलयुग में रूपया चाहे कितना भी गिर जाए, इतना कभी नहीं गिर पायेगा, जितना रूपये के लिए इंसान गिर चूका है...
सत्य वचन....
4. रास्ते में अगर मंदिर देखो तो,,, प्रार्थना नहीं करो तो चलेगा . . पर रास्ते में एम्बुलेंस मिले तब प्रार्थना जरूर करना,,, शायद कोई
जिन्दगी बच जाये
5. जिसके पास उम्मीद हैं, वो लाख बार हार के भी, नही हार सकता..!
6. बादाम खाने से उतनी अक्ल नहीं आती...
जितनी धोखा खाने से आती है.....!
7. एक बहुत अच्छी बात जो जिन्दगी भर याद रखिये,,, आप का खुश रहना ही आप का बुरा चाहने वालों के लिए सबसे बड़ी सजा है....!
8. खुबसूरत लोग हमेशा अच्छे नहीं होते, अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत नहीं होते...!
9. रिश्ते और रास्ते एक ही सिक्के के दो पहलु हैं... कभी रिश्ते निभाते निभाते रास्ते खो जाते हैं,,, और कभी रास्तो पर चलते चलते रिश्ते बन जाते हैं...!
10. बेहतरीन इंसान अपनी मीठी जुबान से ही जाना जाता है,,,, वरना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती है...!
11. दुनिया में कोई काम "impossible" नहीं,,, बस होसला और मेहनत की जरूरत है...l
Jindagi ke 5 sach
""
ज़िन्दगी के पाँच सच ~
सच नं. 1 -:
माँ के सिवा कोई वफादार नही हो सकता…!!!
────────────────────────
सच नं. 2 -:
गरीब का कोई दोस्त नही हो सकता…!!
────────────────────────
सच नं. 3 -:
आज भी लोग अच्छी सोच को नही,
अच्छी सूरत को तरजीह देते हैं…!!!
────────────────────────
सच नं. 4 -:
इज्जत सिर्फ पैसे की है, इंसान की नही…!!!
────────────────────────
सच न. 5 -:
जिस शख्स को अपना खास समझो….
अधिकतर वही शख्स दुख दर्द देता है…!!!
गीता में लिखा है कि.......
अगर कोई इन्सान
बहुत हंसता है , तो अंदर से वो बहुत अकेला है
अगर कोई इन्सान बहुत सोता है , तो अंदर से
वो बहुत उदास है
अगर कोई इन्सान खुद को बहुत मजबूत दिखाता है और रोता नही , तो वो
अंदर से बहुत कमजोर है
अगर कोई जरा जरा सी
बात पर रो देता है तो वो बहुत मासूम और नाजुक दिल का है
अगर कोई हर बात पर
नाराज़ हो जाता है तो वो अंदर से बहुत अकेला
और जिन्दगी में प्यार की कमी महसूस करता है
लोगों को समझने की कोशिश कीजिये ,जिन्दगी किसी का इंतज़ार नही करती , लोगों को एहसास कराइए की वो आप के लिए कितने खास है!!!
राजस्थानी
दादी ल्याई उँखळी , पाड़ोसीयाँ री जाय !
मोठ बाजरी गौ रांध्यों खिचड़ो , टाबर कूद कूद गे खाय !!गंडकड़ो गोदी में चढ़ग्यो, भैंसी करै जुगाळ ।
माणसियो माणस रो बैरी, काढ़ै भूँडी गाळ ।।
.............................................
होते है किस्मत बाले जिनकी माँ होती है
एक बेटा पढ़-लिख कर बहुत
बड़ा आदमी बन गया .
पिता के स्वर्गवास के बाद
माँ ने हर तरह का काम
करके उसे इस काबिल
बना दिया था.
शादी के बाद
पत्नी को माँ से शिकायत
रहने लगी के वो उन के
स्टेटस मे फिट नहीं है.
लोगों को बताने मे उन्हें
संकोच होता है कि
ये अनपढ़ उनकी सास-
माँ है…!
बात बढ़ने पर बेटे ने…
एक दिन माँ से कहा..
” माँ ”_ मै चाहता हूँ कि मै
अब इस काबिल हो गया हूँ
कि कोई भी क़र्ज़ अदा कर
सकता हूँ मै और तुम
दोनों सुखी रहें इसलिए आज
तुम मुझ पर किये गए अब तक
के सारे खर्च सूद और व्याज
के साथ मिला कर बता दो .
मै वो अदा कर दूंगा…!
फिर हम अलग-अलग
सुखी रहेंगे.
माँ ने सोच कर उत्तर
दिया…
“बेटा”_ हिसाब
ज़रा लम्बा है….
सोच कर बताना पडेगा मुझे.
थोडा वक्त चाहिए.
बेटे ने कहा माँ कोई
ज़ल्दी नहीं है. दो-चार
दिनों मे बता देना.
रात हुई, सब सो गए,
माँ ने एक लोटे मे
पानी लिया और बेटे के कमरे
मे आई.
बेटा जहाँ सो रहा था उसके
एक ओर पानी डाल दिया.
बेटे ने करवट ले ली.
माँ ने दूसरी ओर
भी पानी डाल दिया.
बेटे ने जिस ओर भी करवट
ली माँ उसी ओर
पानी डालती रही.
तब परेशान होकर बेटा उठ
कर खीज कर.
बोला कि माँ ये क्या है ?
मेरे पूरे बिस्तर को पानी-
पानी क्यूँ कर डाला..?
माँ बोली….
बेटा…. तुने मुझसे
पूरी ज़िन्दगी का हिसाब
बनानें को कहा था.
मै अभी ये हिसाब
लगा रही थी कि मैंने
कितनी रातें तेरे बचपन मे
तेरे बिस्तर गीला कर देने से
जागते हुए काटीं हैं.
ये तो पहली रात है ओर तू
अभी से घबरा गया ..?
मैंने अभी हिसाब तो शुरू
भी नहीं किया है जिसे तू
अदा कर पाए…!
माँ कि इस बात ने बेटे के
ह्रदय को झगझोड़ के रख
दिया.
फिर वो रात उसने सोचने मे
ही गुज़ार दी. उसे ये
अहसास
हो गया था कि माँ का
क़र्ज़ आजीवन
नहीं उतरा जा सकता.
माँ अगर शीतल छाया है.
पिता बरगद है जिसके नीचे
बेटा उन्मुक्त भाव से जीवन
बिताता है.
माता अगर अपनी संतान के
लिए हर दुःख उठाने
को तैयार रहती है.
तो पिता सारे जीवन उन्हें
पीता ही रहता है.
हम तो बस उनके किये गए
कार्यों को आगे बढ़ाकर
अपने हित मे काम कर रहे हैं.
आखिर हमें भी तो अपने
बच्चों से वही चाहिए
ना ……..!
बुधवार, 16 मार्च 2016
थोडा हंस लो 1
आई एम खेजङी कटारा !
मजदूरी :- 750* रीपीया रोकड़ी l
* - अगर कोई न लागै है की मैं 750 रिप्या म टेम पास करूँ हूँ तो खेजड़ी का हिसाब सूं पिसा लगा लेस्यां ( एक खेजड़ी काटबो - 100 रिपिया, काटबो + गेरबो - 150 रिपिया)
अन्य इच्छित सुविधा :- चोपड़ेडि रोटी, मिराज पुड़िया,गणेश खैनी, बीड़ी बण्डल ,4 चाय भरेङो गिलास विद एक्स्ट्रा चीणी टेमूटेम और शाम को एक पायो देशी को
गंडासी मेरी, निसरणी खेत आले की
खेजङी काटने का समय :- 09बजे से 05* बजे तक l
* - खेजड़ी का हिसाब सूं पिस्सा लेवांला जद दिन उगे काम चालु करांला और अंधेरो हूबा ताणी लाग्या रेवांला.. थारो पेट बळेलो की 10 खेजड़ी काट नाखी.. पण बात खेजड़ी पर पिस्सा की हॉवे जद म्हे काम फटाफट करां.. दिन की दिहाड़ी पर तो होळे होळे ही करणु पड़ै
मोबाइल नम्बर :- भुगाना काका कन सूं लेल्यो ।
खेजङी काटनी होवै तो 5 दिन पैली बतावै l
विशेष सूचना :- खेजङी पैली कटगी तो रोहिड़ा,झाड़ी कोनी काटूंला l
# खेजड़ी काटना - वार्षिक रूप से उसकी डालियाँ काटना (छांगना) होता है, ना की जड़ से काट देना
अगर हर साल खेजड़ी की डालियाँ नहीं काटी जाएँ तो खेजड़ी का पेड़ एक-दो साल में चल बसता है ।
इसकी डालियाँ ईंधन के काम आती हैं और सूखी पत्तियां बकरियों का फेवरेट आहार होती हैं ।
डाली कट जाने के बाद वहां से चिकना दृव्य निकलता है जो फिर सूख कर कड़क हो जाता है और इसे गूंद कहा जाता है ।
आटे, चीनी, देशी घी के साथ इस गूंद को मिश्रित किया जाकर लड्डू बनाये जाते हैं जो अत्यंत ऊर्जा देते हैं और इन्हें गोंद के लड्डू कहा जाता है
पुराने ज़माने में हर साल सर्दियों में ऐसे लड्डू बनाये जाते थे और इनका सेवन किया जाता था परंतु आजकल के टाबरों में इन लड्डुओं को पचाने की क्षमता नहीं रही है जो की दुःखद है ।।
राजस्थानी !1
एक राजमहल में कामवाली और उसका बेटा काम करते थे.
एक दिन राजमहल में कामवाली के बेटे को हीरा मिलता है. वो माँ को बताता है.
कामवाली होशियारी से वो हीरा बाहर फेककर कहती है ये कांच है हीरा नहीं.
कामवाली घर जाते वक्त चुपके से वो हीरा उठाके ले जाती है.
वह सुनार के पास जाती है...
सुनार समझ जाता है इसको कही मिला होगा,
ये असली या नकली पता नही इसलिए पुछने आ गई.
सुनार भी होशियारीसें वो हीरा बाहर फेंक कर कहता है
ये कांच है हीरा नहीं.
कामवाली लौट जाती है.
सुनार वो हीरा चुपके सेे उठाकर जौहरी के पास ले जाता है,
जौहरी हीरा पहचान लेता है.
अनमोल हीरा देखकर उसकी नियत बदल जाती है.
वो भी हीरा बाहर फेंक कर कहता है ये कांच है हीरा नहीं.
जैसे ही जौहरी हीरा बाहर फेंकता है...
उसके टुकडे टुकडे हो जाते है.
यह सब एक राहगीर निहार रहा था...
वह हीरे के पास जाकर पूछता है...
कामवाली और सुनार ने दो बार तुम्हे फेंका...
तब तो तूम नही टूटे... फिर अब कैसे टूटे?
हीरा बोला....
कामवाली और सुनार ने दो बार मुझे फेंका
क्योंकि...
वो मेरी असलियत से अनजान थे.
लेकिन....
जौहरी तो मेरी असलियत जानता था...
तब भी उसने मुझे बाहर फेंक दिया...
यह दुःख मै सहन न कर सका...
इसलिए मै टूट गया .....
ऐसा ही...
हम मनुष्यों के साथ भी होता है !!!
जो लोग आपको जानते है,
उसके बावजुद भी आपका दिल दुःखाते है
तब यह बात आप सहन नही कर पाते....!
इसलिए....
कभी भी अपने स्वार्थ के लिए करीबियों का
दिल ना तोड़ें...!!!
हमारे आसपास भी...
बहुत से लोग... हीरे जैसे होते है !
उनकी दिल और भावनाओं को ..
कभी भी मत दुखाएं...
और ना ही...
उनके अच्छे गूणों के टुकड़े करिये...!!!
थोडा हंस लो
: एक राजस्थान के लड़के को जॉब नही मिली
तो उसने क्लिनिक खोला और बाहर लिखा
तीन सौ रूपये मे ईलाज करवाये
ईलाज नही हुआ तो एक हजार रूपये वापिस....
एक पंडित ने सोचा कि एक हजार रूपये कमाने का अच्छा मौका है
वो क्लिनिक पर गया
और बोला
मुझे किसी भी चीज का स्वाद नही आता ।
राजस्थान का लड़का ;
बॉक्स नं.२२ से दवा निकालो
और ३ बूँद पिलाओ
नर्स ने पिला दी
पंडित : ये तो पेट्रोल है ।
राजस्थान का लड़का :
मुबारक हो आपको टेस्ट महसूस हो गया
लाओ तीन सौ रूपये
पंडित को गुस्सा आ गया
कुछ दिन बाद फिर वापिस गया
पुराने पैसे वसूलने
पंडित। :साहब मेरी याददास्त
कमजोर हो गई है ।
राजस्थान का लड़का :
: बॉक्स नं. २२ से दवा निकालो
और ३ बूँद पिलाओ
पंडित : लेकिन वो दवा तो जुबान
की टेस्ट के लिए है
राजस्थान का लड़का :
ये लो तुम्हारी याददास्त भी वापस
आ गई
लाओ तीन सौ रुपए।
इस बार पंडित गुस्से में गया
-मेरी नजर कम हो गई है
राजस्थान का लड़का :
इसकी दवाई मेरे पास नहीं है।
लो एक हजार रुपये।
पंडित -यह तो पांच सौ का नोट है।
राजस्थान का लड़का :
आ गई नजर।
ला तीन सौ रुपये।
........ East aur West.. Rajasthan waale is the Best..
हम राजस्थान के है..
😎😎😎😎😎😎😎😎😎
एक फ्लैट में घंटी बजती है और महिला जो घर में अकेली है दरवाज़ा खोलती है ...
भिक्षुक:
"माई, भिक्षा दे।"
महिला:
"ले लो, महाराज .."
भिक्षुक:
"माई ... ज़रा यह द्वार पार करके बाहर तो आना।"
वह द्वार पार करके बाहर आती है।
भिक्षुक (उसे पकड़ते हुए ):
"हा .. हा ... हा ... मैं भिक्षुक नहीं, रावण हूं !"
महिला:
"हा .. हा .. हा ... मैं कहा सीता हूं ! कामवाली बाई हूँ।"
रावण :
"हा..हा..हा.. सीता का अपहरण करके आज तक पछता रहा हूं, तुम्हें ले जाऊंगा तो मंदोदरी खुश हो जायेगी। उसे भी कामवाली बाई की ही ज़रूरत है ..."
महिला :
"हा, हा, हा ..पगले सीता को ढूंढने सिर्फ राम आऐ थे ...
मुझे ले जाओगे तो सारी सोसायटी ढूंढने आएगी।"
बुधवार, 9 मार्च 2016
,महिला दिवस >
कन्यादान हुआ जब पूरा,आया समय विदाई का ।।
हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था,सारी रस्म अदाई का ।
बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया।।
पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में छोड़ दिया।।
अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा कहा तुमने।।
मेरे रोने को पल भर भी,बिल्कुल नहीं सहा तुमने।।
क्या इस आँगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नहीं।।
अब मेरे रोने का पापा,तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं।।
देखो अन्तिम बार देहरी,लोग मुझे पुजवाते हैं।।
आकर के पापा क्यों इनको,आप नहीं धमकाते हैं।।
नहीं रोकते चाचा ताऊ,भैया से भी आस नहीं।।
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है,कोई आता पास नहीं।।
बेटी की बातों को सुन के,पिता नहीं रह सका खड़ा।।
उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा दौड़ पड़ा।।
कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी।।
जैसे यादों के अक्षर वह,अश्रु बिंदु से धोती थी।।
माँ को लगा गोद से कोई,मानो सब कुछ छीन चला।।
फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला।।
छोटा भाई भी कोने में,बैठा बैठा सुबक रहा।।
उसको कौन करेगा चुप अब,वह कोने में दुबक रहा।।
बेटी के जाने पर घर ने,जाने क्या क्या खोया है।।
कभी न रोने वाला बाप,फूट फूट कर रोया है.............
,महिला दिवस >
कन्यादान हुआ जब पूरा,आया समय विदाई का ।।
हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था,सारी रस्म अदाई का ।
बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया।।
पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में छोड़ दिया।।
अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा कहा तुमने।।
मेरे रोने को पल भर भी,बिल्कुल नहीं सहा तुमने।।
क्या इस आँगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नहीं।।
अब मेरे रोने का पापा,तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं।।
देखो अन्तिम बार देहरी,लोग मुझे पुजवाते हैं।।
आकर के पापा क्यों इनको,आप नहीं धमकाते हैं।।
नहीं रोकते चाचा ताऊ,भैया से भी आस नहीं।।
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है,कोई आता पास नहीं।।
बेटी की बातों को सुन के,पिता नहीं रह सका खड़ा।।
उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा दौड़ पड़ा।।
कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी।।
जैसे यादों के अक्षर वह,अश्रु बिंदु से धोती थी।।
माँ को लगा गोद से कोई,मानो सब कुछ छीन चला।।
फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला।।
छोटा भाई भी कोने में,बैठा बैठा सुबक रहा।।
उसको कौन करेगा चुप अब,वह कोने में दुबक रहा।।
बेटी के जाने पर घर ने,जाने क्या क्या खोया है।।
कभी न रोने वाला बाप,फूट फूट कर रोया है.............
पूंछ आळा दूहा 69
छबीस दूहा पूंछ आळा
1
चरका मरका चाबतां,
चंचल होगी चांच ।
फीका लागै फलकिया,
अकरा सेकै आंच ।
करमां रो कीट लागै ।
2
नेता नाटक मांडिया,
ले नेता री ओट ।
नेता नै नेता चुणै,
जनता घालै बोट ।।
लोक सिधारो परलोक ।।
3
लोक घालै बोटड़ा,
नेता भोगै राज ।
लोकराज रै आंगणै,
देखो कैड़ा काज ।।
जोग संजोग री बात।।
4
हाकम रै हाकम नहीँ,
चोर न जामै चोर ।
नेता तो नेता जणै,
नीँ दाता रो जोर ।।
नेता जस अमीबा ।।
5
चोरी जारी स्मगलिँग,
है नेता रै नाम ।
आं कामां नै टालगै,
दूजो केड़ो काम।।
आप बिकै नी बापड़ा ।।
6
जनता हाथां हार गै,
हाट करावै बंद।
फेर ऐ खुल्ला सांडिया,
खूब खिंडावै गंद ।।
जिताओ बाळो आगड़ा।।
7
चोळा बदळै रोजगा,
चालां रो नीँ अंत ।
भाषण देवै जोरगा,
वादां में नीँ तंत।।
कियां घड्या रामजी ।।
8
नेता मरियां कामणी,
माता मरियां पूत।
बो इज होवै पाटवी,
जो मोटो है ऊत ।।
मारो साळां रै जूत ।।
9
बोट घलावै बापजी,
दे कंठां मेँ हाथ ।
जीत बजावै ढोलड़ा,
अणनाथ्या हे नाथ ।।
पोल मेँ बजावै ढोल ।।
10
बाजो बाजै जीत गो,
नेता घर मेँ रोज ।
हारै जनता बापड़ी,
भूखी टाबर फोज ।।
घालो ओज्यूं बोट।।
11
नेता खावै धापगै,
जनता भूखी भेड़ ।
पांच साल मेँ कतरगै,
पाछी चाढै गेड़ ।।
राम ई राखसी टेक ।।
12
नेता मुख है मोवणां,
धोळा धारै भेस ।
जीत्यां जावै आंतरा,
हार्यां करै कळेस ।।
दे बोट काटो कळेस ।।
13
पाटै बैठ्या धाड़वी,
नितगा खोसै कान ।
नेता भाखै आपनै,
चोखो पावै मान ।।
नमो कळजुगी औतार ।।
14
सेडो चालै नाक मेँ,
मुंडै काढै गाळ ।
नेता मांगै बोटड़ा,
कूकर गळसी दाळ ।।
रामजी ई रुखाळसी ।।
15
लोकराज रै गोरवैं,
खूब पळै है सांड ।
चरणो बांरो धरम है,
बांध्यां राखो पांड ।।
करणी तो भरणी पड़ै।।
16
काळू ल्यायो टिगटड़ी,
बणग्यो काळूराम ।
जनता टेक्या बोटड़ा,
जैपर बण्यो मुकाम ।।
इयां ई तिरै ठीकरी ।।
17
धापी आई परणगै,
नेता जी रै लार ।
नेता राखै चोकसी,
बा टोरै सरकार ।।
पतिबरता है बापड़ी।।
18
नेता पूग्यो सुरग मेँ,
धापी रैगी लार।
ओ'दो मांग्यो लारलां,
धापी देगी धार।।
धणी री तो ही कुरसी।।
19
नेता चाबी झालगै,
कूए मेँ दी न्हाख ।
लोकराज रै बारणै,
अब तूं बैठ्यो झांख ।।
फसा ली कुतड़ी कादै।।
20
लोगां पूछी पारटी,
नेता होग्यो मौन ।
नेता पूछी पारटी,
कर नेता नै फोन ।।
बदळी तो कोनीँ आज।।
21
बेल्यां मांगी पारटी,
नेता मारी डांट।।
पारटी म्हारी खुद गी,
है देवणगी आंट ।।
पारटी बदळै क देवै ।।
22
बोट घालो धपटवां,
नीँ तो करस्यूं झोड़।
नीँ छोडूंला गांव मेँ,
भाज्या फिरस्यो खोड़।।
बोट सूं कटसी पापो ।।
23
नेतावंश विशेष है,
औ’दै रो हकदार ।
नेतण जाम्यौ सेडलौ,
बणसी बो सरदार ॥
ऊंदर जामसी ऊंदर ॥
24
नेता फ़ळ तलवार रो,
बधै बुढापै धार ।
आडौ पटकै राज नै,
खा जावै खार ॥
और के खाडा खोदै ॥
25
नेता भासण ठोकियो,
ढीली करगै राफ़ ।
म्हानै टेको बोटडा़,
पाणी देस्यां साफ़ ॥
जा पछै नै’र बंद है ॥
26
नेता टोरी बातडी़,
दे वादां री पांड ।
अबकै आपां जीतगै,
करस्यां खेत कमांड ॥
छावनी खोली छेकड़ ॥
बीस दूहा पूंछ आळा
[१]
साग बणायो सोहनी,मिरचां दी बुरकाय ।
जीमण बैठ्यौ सायबो, मुंडै लागी लाय ॥
बोलण री टाळ होगी ॥
[२]
काचर छौलै कामणी,माळा पौवै बीन ।
डोरै चाढै ऐक-दो, कोठै ठौकै तीन ॥
जा रे काचर रा बीज ॥
[३]
घरां बणाई लापसी ,मिंदर लागी धौक ।
मीट-मसाला नीं पकै।,दारू पर भी रोक ॥
देव ता सोफ़ी होणां ॥
[४]
कार ल्याया काको सा,काकी मांग्या हिंडा ।
काको जाबक नाटग्या,काकी दिंधी खिंडा ॥
अब ले लै लाडी पींडा ॥
[५]
देख जलेबी हाट पर,घरां ढूक्या बणाण ।
जेवडा़ सा गूंथ लिया, रस घाली रामाण ॥
ल्यो, और लेल्यौ पंगा ॥
[६]
छोरै नै उडीकतां, टाबर होग्या पांच ।
चूण चाटियौ सफ़ाचट,भूखी सोवै चांच ॥
रोयल्यौ जामणियां नैं ॥
[७]
जेबां राखै कांगसी, सिर में कोनीं बाळ ।
गंजो भाख्यां बाप जी,साम्हीं काढै गाळ ॥
ले ओ मोडां सूं पंगा ॥
[८]
रूंख लगाया बापजी,बेटां दिया उपाड़ ।
कीकर फ़ळसी खेतडा़,खावण ढूकी बाड़ ॥
दो लगाओ कान तळै ॥
[९]
रोटी दोरी खावणी, मैं’गाई में आज ।
आंख्यां मींची बापजी,बोटां थरप्यै राज ॥
बोट ई खोलसी आंख ॥
[१०]
बोटां आळै राज में,है नोटां रा खेल ।
बिन नोटां रै भायला,सांचा जावै ज़ेल ॥
बोट में मिलग्यौ खोट ॥
[११]
घणौ कमायो सायबा, घरां पधारो आय ।
रासण खूट्यो आसरै,बिज़ळी झपका खाय ॥
बो देस्सी तन्नै न्योळी ॥
[१२]
चावळ खावै धपटवां, रोटी खावै सात ।
ऐडी़ म्हारै कामणी,क्या कै’णी है बात ॥
हाथै कीन्या कामणां
[१३]
पगां न चालै कामणीं,चढवां मांगै कार ।
टायरडा़ तौबा करै, देख मैम रो भार ॥
तो टरकडो़ बपराओ ॥
[१४]
मामा ल्याया मायरौ,गाभां री भरमार ।
भाणूं गाभा छौडगै, मांगण ढूक्यौ कार ॥
के बाप परणायौ है ॥
शनिवार, 5 मार्च 2016
पूंछ आळा दूहा 69
छबीस दूहा पूंछ आळा
1
चरका मरका चाबतां,
चंचल होगी चांच ।
फीका लागै फलकिया,
अकरा सेकै आंच ।
करमां रो कीट लागै ।
2
नेता नाटक मांडिया,
ले नेता री ओट ।
नेता नै नेता चुणै,
जनता घालै बोट ।।
लोक सिधारो परलोक ।।
3
लोक घालै बोटड़ा,
नेता भोगै राज ।
लोकराज रै आंगणै,
देखो कैड़ा काज ।।
जोग संजोग री बात।।
4
हाकम रै हाकम नहीँ,
चोर न जामै चोर ।
नेता तो नेता जणै,
नीँ दाता रो जोर ।।
नेता जस अमीबा ।।
5
चोरी जारी स्मगलिँग,
है नेता रै नाम ।
आं कामां नै टालगै,
दूजो केड़ो काम।।
आप बिकै नी बापड़ा ।।
6
जनता हाथां हार गै,
हाट करावै बंद।
फेर ऐ खुल्ला सांडिया,
खूब खिंडावै गंद ।।
जिताओ बाळो आगड़ा।।
7
चोळा बदळै रोजगा,
चालां रो नीँ अंत ।
भाषण देवै जोरगा,
वादां में नीँ तंत।।
कियां घड्या रामजी ।।
8
नेता मरियां कामणी,
माता मरियां पूत।
बो इज होवै पाटवी,
जो मोटो है ऊत ।।
मारो साळां रै जूत ।।
9
बोट घलावै बापजी,
दे कंठां मेँ हाथ ।
जीत बजावै ढोलड़ा,
अणनाथ्या हे नाथ ।।
पोल मेँ बजावै ढोल ।।
10
बाजो बाजै जीत गो,
नेता घर मेँ रोज ।
हारै जनता बापड़ी,
भूखी टाबर फोज ।।
घालो ओज्यूं बोट।।
11
नेता खावै धापगै,
जनता भूखी भेड़ ।
पांच साल मेँ कतरगै,
पाछी चाढै गेड़ ।।
राम ई राखसी टेक ।।
12
नेता मुख है मोवणां,
धोळा धारै भेस ।
जीत्यां जावै आंतरा,
हार्यां करै कळेस ।।
दे बोट काटो कळेस ।।
13
पाटै बैठ्या धाड़वी,
नितगा खोसै कान ।
नेता भाखै आपनै,
चोखो पावै मान ।।
नमो कळजुगी औतार ।।
14
सेडो चालै नाक मेँ,
मुंडै काढै गाळ ।
नेता मांगै बोटड़ा,
कूकर गळसी दाळ ।।
रामजी ई रुखाळसी ।।
15
लोकराज रै गोरवैं,
खूब पळै है सांड ।
चरणो बांरो धरम है,
बांध्यां राखो पांड ।।
करणी तो भरणी पड़ै।।
16
काळू ल्यायो टिगटड़ी,
बणग्यो काळूराम ।
जनता टेक्या बोटड़ा,
जैपर बण्यो मुकाम ।।
इयां ई तिरै ठीकरी ।।
17
धापी आई परणगै,
नेता जी रै लार ।
नेता राखै चोकसी,
बा टोरै सरकार ।।
पतिबरता है बापड़ी।।
18
नेता पूग्यो सुरग मेँ,
धापी रैगी लार।
ओ'दो मांग्यो लारलां,
धापी देगी धार।।
धणी री तो ही कुरसी।।
19
नेता चाबी झालगै,
कूए मेँ दी न्हाख ।
लोकराज रै बारणै,
अब तूं बैठ्यो झांख ।।
फसा ली कुतड़ी कादै।।
20
लोगां पूछी पारटी,
नेता होग्यो मौन ।
नेता पूछी पारटी,
कर नेता नै फोन ।।
बदळी तो कोनीँ आज।।
21
बेल्यां मांगी पारटी,
नेता मारी डांट।।
पारटी म्हारी खुद गी,
है देवणगी आंट ।।
पारटी बदळै क देवै ।।
22
बोट घालो धपटवां,
नीँ तो करस्यूं झोड़।
नीँ छोडूंला गांव मेँ,
भाज्या फिरस्यो खोड़।।
बोट सूं कटसी पापो ।।
23
नेतावंश विशेष है,
औ’दै रो हकदार ।
नेतण जाम्यौ सेडलौ,
बणसी बो सरदार ॥
ऊंदर जामसी ऊंदर ॥
24
नेता फ़ळ तलवार रो,
बधै बुढापै धार ।
आडौ पटकै राज नै,
खा जावै खार ॥
और के खाडा खोदै ॥
25
नेता भासण ठोकियो,
ढीली करगै राफ़ ।
म्हानै टेको बोटडा़,
पाणी देस्यां साफ़ ॥
जा पछै नै’र बंद है ॥
26
नेता टोरी बातडी़,
दे वादां री पांड ।
अबकै आपां जीतगै,
करस्यां खेत कमांड ॥
छावनी खोली छेकड़ ॥
बीस दूहा पूंछ आळा
[१]
साग बणायो सोहनी,मिरचां दी बुरकाय ।
जीमण बैठ्यौ सायबो, मुंडै लागी लाय ॥
बोलण री टाळ होगी ॥
[२]
काचर छौलै कामणी,माळा पौवै बीन ।
डोरै चाढै ऐक-दो, कोठै ठौकै तीन ॥
जा रे काचर रा बीज ॥
[३]
घरां बणाई लापसी ,मिंदर लागी धौक ।
मीट-मसाला नीं पकै।,दारू पर भी रोक ॥
देव ता सोफ़ी होणां ॥
[४]
कार ल्याया काको सा,काकी मांग्या हिंडा ।
काको जाबक नाटग्या,काकी दिंधी खिंडा ॥
अब ले लै लाडी पींडा ॥
[५]
देख जलेबी हाट पर,घरां ढूक्या बणाण ।
जेवडा़ सा गूंथ लिया, रस घाली रामाण ॥
ल्यो, और लेल्यौ पंगा ॥
[६]
छोरै नै उडीकतां, टाबर होग्या पांच ।
चूण चाटियौ सफ़ाचट,भूखी सोवै चांच ॥
रोयल्यौ जामणियां नैं ॥
[७]
जेबां राखै कांगसी, सिर में कोनीं बाळ ।
गंजो भाख्यां बाप जी,साम्हीं काढै गाळ ॥
ले ओ मोडां सूं पंगा ॥
[८]
रूंख लगाया बापजी,बेटां दिया उपाड़ ।
कीकर फ़ळसी खेतडा़,खावण ढूकी बाड़ ॥
दो लगाओ कान तळै ॥
[९]
रोटी दोरी खावणी, मैं’गाई में आज ।
आंख्यां मींची बापजी,बोटां थरप्यै राज ॥
बोट ई खोलसी आंख ॥
[१०]
बोटां आळै राज में,है नोटां रा खेल ।
बिन नोटां रै भायला,सांचा जावै ज़ेल ॥
बोट में मिलग्यौ खोट ॥
[११]
घणौ कमायो सायबा, घरां पधारो आय ।
रासण खूट्यो आसरै,बिज़ळी झपका खाय ॥
बो देस्सी तन्नै न्योळी ॥
[१२]
चावळ खावै धपटवां, रोटी खावै सात ।
ऐडी़ म्हारै कामणी,क्या कै’णी है बात ॥
हाथै कीन्या कामणां
[१३]
पगां न चालै कामणीं,चढवां मांगै कार ।
टायरडा़ तौबा करै, देख मैम रो भार ॥
तो टरकडो़ बपराओ ॥
[१४]
मामा ल्याया मायरौ,गाभां री भरमार ।
भाणूं गाभा छौडगै, मांगण ढूक्यौ कार ॥
के बाप परणायौ है ॥
Rana hammir
राणा हम्मीर के वारे में एक दोहे की यह पंक्ति प्रसिद्ध है- ‘सिंहगवन सज्जन वचन कदलि फरै इक बार। तिरिया तेल हम्मीर हठ चढ़ै न दूजी बार।।’ अलाउद्दीन खिलजी ने एक बार अपने एक मंगोल सरदार कि सामान्य अपराध पर कुपित होकर उसे प्राणदंड देने की घोषणा कर दी थी। वह सरदार दिल्ली छोड़कर तुरंत भाग खड़ा हुआ। अपनी प्राण रक्षा के लिए वह अनेक स्थानों पर गया, किंतु बादशाह के डर से किसी ने उसे शरण देने का साहस नहीं किया। उन दिनों अलाउद्दीन खिलजी से शत्रुता मोल लेने का साहस कोई भी राजा नहीं कर सकता था। इस तरह प्राण रक्षा की उम्मीद में वह सरदार भटकता हुआ रणथम्भौर पहुंचा। राणा हम्मीर ने उसका स्वागत किया और कहा- ‘आप मेरे यहां सुख पूर्वक रहें, राजपूत अपना सिर देकर भी अपने शरणागत की रक्षा करना बखूबी जानता है। यहां आपको किसी भी प्रकार का संकट नहीं है इस बात से आप निश्चिंत रहें।’ बादशाह अलाउद्दीन को जब यह समाचार मिला तो उसने राणा हम्मीर के पास अपने दूत के माध्यम से संदेश भेजा- शाही अपराधी को शरण देना दिल्ली के तख्त की तौहीन करना है। उसको लौटा दो। ऐसा नहीं करने के हालत में हम रणथम्भौर के ईंट से ईंट बजा देंगे। इस पर राणा हम्मीर का उत्तर था- ‘राज्य और प्राणभय से हम धर्म को नहीं छोड़ेंगे। शरणागत की रक्षा करना हमारा धर्म है और हम अनादिकाल से ही अपने धर्म का पालन करते आए हैं तो आज कैसे इसे त्याग दूं? हम किसी भी हाल में अपने शरणागत को नहीं त्याग सकते, ऐसा करना हमारे धर्म के प्रतिकूल है।’
यद्यपि कुछ राजपूत सरदारों ने भी सुझाव दिया कि बादशाह से शत्रुता लेना ठीक नहीं है। परन्तु राणा हम्मीर अपने निश्चय पर अडिग रहे। अलाउद्दीन ने राणा का उत्तर पाकर युद्ध के लिए भारी सेना भेज दिया। किंतु रणथम्भौर का दुर्ग उसकी सेना के लिए लोहे का चना सिद्ध हुआ। राजपूतों ने शाही सेना के छक्के छुड़ा दिए। अंत में शाही सेना ने दुर्ग पर घेरा डाल दिया। यह घेरा लगातार पांच साल तक रहा। रणथम्भौर के दुर्ग में भोजन समाप्त हो गया। मंगोल सरदार ने कई बार राणा से कहा कि उसे बादशाह के पास जाने दिया जाय, उसके कारण राणा अपना विनाश न कराएं, किंतु राणा ने उसे हर बार यह कह कर रोक दिया कि आपको एक राजपूत ने शरण दी है। प्राण रहते आपको वहां नहीं जाने दूंगा। दुर्ग में उपवास चल रहा था। एक बड़ी चिता बनाई गई दुर्ग के प्रसंग में। दुर्ग के भीतर सब नारियां उस प्रज्ज्वलित चिता में प्रसन्नतापूर्वककूदकर सती हो गईं। पुरुषों ने केशरिया वस्त्र पहने और दुर्ग का द्वार खोलकर शत्रु पर एकदम से टूट पड़े। दोनों ओर से भारी मार काट मच गई। लेकिन राजपूतों में से कोई भी जीवित नहीं बचा उस युद्ध में, सिवा उस मंगोल सरदार के। अंत में वह सरदार पकड़ा गया। जब उसे अलाउद्दीन के सामने पेश किया गया तो उसने सरदार से पूछा- यदि तुम्हे छोड़ दूं तो तुम क्या करोगे? सरदार बोला- ‘हम्मीर के संतानों को दिल्ली का तख्त देने के लिए तुमसे जिंदगी भर लड़ूंगा।’ उसके इस संकल्प युक्त बात को सुनकर अलाउद्दीन ने उसे भी मार डाला। इतना नर-संहार स्वीकार कर लिया राणा हम्मीर ने पर अपने शरणागत पर जिंदा रहते किसी भी प्रकार का आंच नहीं आने दिया और न ही शरणागत धर्म को छोड़ा।
''कुचमादी टाबर''
मुक्की दे' र पापड फोडूं, लात की दे'र पतासो रे ,
मींगणी नै हदर उठा ल्यूँ, देखो यार तमासो रे |
पाटा पर सूँ कूद ज्याऊं, नीम्बू निचोड़ दयूं झटका सूँ,
फूसका नै फर उड़ा दयूं मैं नाड का लटका सूँ |
फूंक देकर चिमनी बुता दयूं तकियों उठा ल्यूँ हाथां सूँ ,
काम धंधो होवै कोनी घर चालरयो बाताँ सूँ |
आधी रोटी सूँ पेट भरल्यां दो घूँट चाय की ,
दूध दही भावे कोन्या उबाक आवै छाय की |
कीड़ी दाब कांख मै भागूँ कोई पकड़ ना पावे,
थर थर धूजे काया सारी म्हासूँ कुण टकरावे |
चालीस सेर को छैलो मै तो तुल्यां ताखड़ी टूटे रे,
पग पकड़'र झट मनाल्यूं जे घर हाली रूठे रे |
होली दीवाली न्हावाँ धोवाँ करके तातो पाणी जी ,
खुडका सूँ डर के भागां या ही म्हारी पिछाणी जी |
माखी मार दयूं चूसो पकड़ क्यूं पण थाने भी तो क्यूं करणों है ,
थे भी मेरी तरियां हिम्मत करल्यो मरने सूँ के डरणो है |
कबड्डी का कोई पाला मांडे तो म्हारी कच्ची डाँई जी ,
थाला बैठ्या क्यूं तो कराँ जणा थाने या बात बतायी जी | -
रणबंका भिड़ आरांण रचै,तिड़ पेखै भांण तमासा है ।
उण बखत हुवै ललकार उठै,वा राजस्थानी भासा है
गुरुवार, 3 मार्च 2016
हंसी का खजाना
एक दिन सरपंच साहब को जाने क्या सूझी
कि चल पड़े स्कूल की ओर।
स्कूल पहुंचे तो एक भी अध्यापक कक्षा में नहीं।
घंटी के पास उनींदे से बैठे चपरासी से जब पूछा
सारे मास्टर कहां गए तो
पता चला कि
पशुगणना में ड्यूटी लगाने के विरोध में कलेक्टरजी को
ज्ञापन देने शहर गए हैं।
सरपंचजी ने सातवीं कक्षा के एक बच्चे से पूछा
"बताओ शिव का धनुष किसने तोड़ा।"
जवाब आया
" सरपंचसा!
कक्षा में सबसे सीधा छात्र
मैं हूं,
मैंने तो नहीं तोड़ा।
हां चिंटू सबसे बदमाश है,
उसी ने तोड़ा होगा।
वह आज छुट्टी पर भी है।
शायद धनुष टूट जाने के डर से नहीं आया हो।"
सरपंचजी ने माथा पीट लिया और वापस लौट गए।
शिक्षक लौटे तो चपरासी बोला
"सरपंचजी आए थे
और बच्चों को कुछ पूछ रहे थे और गए भी
भनभनाते हुए हैं।"
प्रधानाध्यापक महोदय का पानी पतला हुआ।
कक्षा में आए और पूछा
"सरपंचजी क्या कह रहे थे।"
बच्चों ने सारी बात बता दी।
अब प्रधानाध्यापकजीने बच्चों से पूछा
"बच्चों किसी से गलती से धनुष टूट गया
तो कोई बात नहीं।
केवल यह बता दो धनुष तोड़ा किसने।"
बच्चों ने तोड़ा हो तो बोलें।
खामोशी देखकर तुरन्त अध्यापकों की बैठक बुलाई और कहा
"देखो!
शिवजी का धनुष किसी ने तोड़ दिया है
और
शिवजी कौन है
यह भी हमें नहीं मालूम।
उनकी शायद ऊपर तक पहुंच हो।
पीटीआईजी आप इस मामले की जांच कर कल तक रिपोर्ट दीजिए।"
शारीरिक शिक्षक महोदय ने साम,
दाम,
दंड,
भेद आजमाए
पर पता नहीं लगा पाए।
प्रधानाध्यापकजीको चिंतातुर देख
विद्यालय के बाबू बोले
"साहब
मैं तो कहता हूं कि
जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर
मामले से अवगत
तो करवा ही दिया जाना चाहिए।
नहीं तो बाद में परेशानी
खड़ी हो जाएगी।
शायद
शिवजी
आलाकमान तक बात ले जाएं और
अपन को ऐसे गांव में नौकरी करनी पड़े
जहां
बिजली और बस भी मर्जी से आती हो।"
प्रधानाध्यापकजीने डीईओ को पत्र लिखा
"महोदय
किसी ने
शिवजी का धनुष
तोड़ दिया है।
हम अपने स्तर पर पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं
और
आपके कानों तक बात डलवा रहे हैं।"
तीन दिन बाद जवाब मिला।
"प्रधानाध्यापकजी!
इस बात से हमें कोई लेना देना नहीं कि
धनुष किसने तोड़ा।
हां
याद रहे
यदि सरपंच की ऊपर तक पहुंच है
और
कोई लफडा हुआ
तो
धनुष के पैसे
आपकी पगार में से लिए जाएंगे।"
और
बनाओ
''आरक्षण"
से शिक्षक😀😀😀😀😀😀
हमेशा याद रखना
पायल हज़ारो रूपये में आती है पर पैरो में पहनी जाती है
और.....
बिंदी 1 रूपये में आती है मगर माथे पर सजाई जाती है
इसलिए कीमत मायने नहीं रखती उसका कृत्य मायने रखता हैं
एक किताबघर में पड़ी गीता और कुरान आपस में कभी नहीं लड़ते,
और जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते....
नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है,
मिठी बात करने वाले तो चापुलुस भी होते है।
इतिहास गवाह है की आज तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े।
और मिठाई में तो अक़्सर कीड़े पड़ जाया करते है...
अच्छे मार्ग पर कोई व्यक्ति नही जाता पर बुरे मार्ग पर सभी जाते है......
.इसीलिये दारू बेचने वाला कही नही जाता ,
पर दूध बेचने वाले को घर ,
गली -गली , कोने- कोने जाना पड़ता है ।और दूघ वाले से बार -बार पूछा जाता है कि पानी तो नही डाला ?
पर दारू मे खुद हाथो से पानी मिला-मिला पीते है ।वाह रे दुनियाँ और दुनियाँ की रीत ।
mere dadaji ki kahi पाँच baate
मैं इस अंतिम समय पर तुम्हें कुछ उपदेश कर रहा हूँ जिन्हें तुम हमेशा याद रखना। पहली बात तो यह कि किसी से बहुत घनिष्ठ मित्रता न करना न अपने भेद किसी से कहना। दूसरी यह कि किसी व्यक्ति पर अत्याचार न करना क्योंकि अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि यह दुनिया लेन-देन की जगह है, जैसी भलाई-बुराई तुम करोगे वैसा ही तुम्हें बदला मिलेगा। तीसरी बात यह है कि कभी ऐसी बात मुँह से न निकालना जिससे तुम्हें बाद में लज्जित होना पड़े, और यह भी याद रखो कि बहुत बोलनेवाला आदमी हमेशा लज्जित होता है और जो कम बोलता है और सोच-समझ कर बोलता है उसे लज्जा नहीं उठानी पड़ती क्योंकि गंभीरता से आदमी का मान बढ़ता है और उसके प्राणों को भी खतरा नहीं होता और बकवासी आदमी ऊटपटाँग बातें करके मुसीबत उठाता है। चौथी बात यह है कि मद्यपान कभी न करना क्योंकि मदिरा बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है। पाँचवीं बात यह है कि हाथ रोक कर खर्च करना और मितव्ययिता को हमेशा अपना सिद्धांत बनाए रखना। मतलब यह नहीं कि इतना कम खर्च करो कि लोग तुम्हें कंजूस कहने लगें लेकिन इतना खर्च न करना कि निर्धन हो जाओ। जो धनवान होता है उसे हजार दोस्त घेरे रहते हैं मगर जब पैसा नहीं रहता तो कोई बात भी नहीं पूछता।'
हंसी का खजाना
शराब फेक्टरी में शराब टेस्ट
करने
वाला छुट्टी पर चला गया और
😎 फेक्टरी के मालिक को एक नए
आदमी की तलाश
थी.
जो शराब टेस्ट करने का काम
बखूबी कर सके..
एक दिन उसका एक
कर्मचारी किसी पियक्कड
को पकड़ लाया और बोला
" सर इसके टेस्टिंग स्किल
की सभी बहुत तारीफ़ करते हैं....
इसे रख लीजिए..
😎" शराब फेक्टरी के मालिक ने
देखा कि वो आदमी बहुत
ही गंदा और बदबूदार था.
और वो उसे
रखना नहीं चाहता था...
फिर भी उसने एक
वाइन उसे चखने के लिए दी..
चखतेही पियक्कड बोला " ये रेड वाइन है...,
नोर्थ अमेरिका में बनी है,
तीन साल पुरानी है.
और इसे लकड़ी के बॉक्स में मेच्योर
किया गया है..."
फेक्टरी के मालिक की आंखें
खुली की खुली रह गयी....
क्योंकि पियक्कड
ने एकदम सही पहचान की थी उस
शराब की....
उसने एक एक करके बीस तरह
की शराब उसे पिलाई....
और उसने एक दम
सही जवाब दिया....
😎पर फेक्टरी के मालिक
को उसके शरीर से आ
रही बदबू बहुत परेशान कर
रही थी.
और उसने अपनी सेक्रेटरी को बुलाया और कहा " मैं इसे फेल करके
नौकरी नहीं देना चाहता कोई
उपाय बताओ.
" सेक्रेटरी ने कहा " सर मैं
अपना Urine एक गिलास में लेकर आती हूँ और इसे पीने के लिए
देती हूँ....
और आपको इसे न रखने
का बहाना मिल जाएगा..."
पियक्कड उसे पीते ही बोला "
उम्र छब्बीस साल,
प्रेग्नेंट है, तीन महीने
हो चुकेहैं....
और
अगर नौकरी नहीं दी तो ये
भी बता दूंगा कि बच्चे का बाप
कौन है...??
यह सुनते ही फैक्ट्री के मालिक और
उसकी सेकेरेट्री behosh हो गए. Group कीसी का भी हो !!
पर घमाका हमारा ही होगा !!! हम आज भी अपने हुनर मे दम र
खते है,
होश उड़ जाते है लोगो के, जब .. GROUP में कदम रखते ह
आपको एक बात बतानी है ,
अभी होलीऔर आखातीज का समय चल रहा है समाज के कई मित्रों के घर शादी-विवाह का कार्यक्रम होगा। शादी होगी तो नाच गाने का प्रोग्राम भी होगा । इस तरह के कार्यक्रम में कई लोग अपने मोबाईल से विडीयो व फोटो लेते है और रिलेटिव्ज को वाट्सअप के जरीये शेयर करते है और इस तरह विडियोज आगे वायरल होते रहते है और कोई व्यक्ति उस विडियों में फागण और बाॅलीवुड , हालीवुड गीत का आॅडीयों एड कर देते है जिससे उस विडियों में दिख रहे होते उनका मजाक बनता है और हमारी बहन-बेटीयों की छवि खराब होती है। जिसके कारण समाज की संस्कृति पर गलत असर पङता है।
अत: आप सभी समाज के बंधुओं से निवेदन है कि आप किसी विवाह समारोह में मोबाईल से विडियों या फोटोज नही ले और जिस किसी को भी ऐसा करते पायें तो उसे भी रोके जिससे समाज की सही संस्कृति बनी रहे।
इस मैसेज को आखातीज से पहले सभी समाज को मित्रों तक पहुचायें।~
बुधवार, 2 मार्च 2016
Holi rajasthan ri
होली आवे धूम मचाती
गूंजै फाग धमाल रे,
चँग बजावे, घीनड़ घाले
उड़े रंग गुलाल रे ।
रे देखो होली में नाच रही है फागणियाँ ।।
हंसी का खजाना
मेरा रूम पार्टनर था | वह रात को रजाई ओढ़ कर लड्डू खाया करता | सुबह जब वह स्नानं करने जाता , हम अलमारी खोल कर उसके लड्डू खा लिया करते | वो जब देखता कि लड्डू गिनती में कम हो रहे है, तो हमसे पूछता | हम कह देते रात में रजाई में तुमने कितने लड्डू खाए कोई गिनती है क्या ? और वो निरुतर हो जाता |
महाशिवरात्रि
हमारे देश में जितने भी प्रकार के व्रत, उपवास, पूजा, पर्व प्रचलित हैं उनमें शिवरात्रि-व्रत के समान प्रचार अन्य किसी का भी नहीं है। सर्वधर्म समभाव वाले इस महान देश में प्राय: सभी हिंदू भगवान शिव की आराधना करते हैं। अधिकतर लोग यथाविधि पूजादि न करते हुए भी उपवास करते हैं। जिनकी उपवास में रुचि नहीं होती, वे रात्रि-जागरण कर इस व्रत के पुण्य का लाभ कमा लेते हैं।
हमारे पुराणों, वेदों से लेकर मध्यकालीन निबंधों में शिवरात्रि-व्रत का उल्लेख बखूबी हुआ है पर इस व्रत का पालन करने के लिए कुछ नियम हैं - यथा अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा का पालन। शांतमन, तपस्वी तथा क्रोधहीन होना भी बहुत आवश्यक है। शिवरात्रि-पर्व की ऐसी महिमा है कि संप्रदाय-भेद-भाव को त्यागकर सभी मनुष्य इसका एक समान पालन करते हैं।
वेदों व हमारे पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव की पूजा-अर्चना विभिन्न रूपों में वर्णित है। भगवान शिव सगुण-साकार मूर्ति-रूप तथा निर्गुण निराकार अमूर्त रूप में भी वंदनीय हैं। महादेव, नटराज, पशुपति, नीलकंठ, योगीश्वर, महेश्वर आदि कई नामों व रूपों में भगवान शिव की आराधना की जाती है। ये सब एक ही ईश्वर के कई रूप-नाम हैं और सभी रूपों में पूजा-अर्चना का अर्थ एक ही है। शर्व, रूद्र, भीम, उग्र, ईशान, पशुपति, भव तथा महादेव ये क्रमश: पृथ्वी, तेज, आकाश, सूर्य, क्षेत्रज्ञ, जल, वायु तथा चंद्रमा के रूपों को मूर्तियों के रूप में परिलक्षित करते हैं।
शिवरात्रि-पर्व के अवसर पर शिवलिंग की पूजा की विशेष महिमा है। पूजा से पूर्व सर्वप्रथम शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की जानी चाहिए। नर्मदेश्वर तथा वाणलिंग को स्व-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं है। इसी तरह स्वयंभु लिंग और ज्योतिर्लिंग आदि की पूजा में भी आवाहन, विसर्जन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। केवल पार्थिव लिंग-पूजन में प्रतिष्ठा तथा आवाहन-विसर्जन आवश्यक होता है।
शिवपूजा और शिवरात्रि व्रत में थोड़ा अंतर है, 'व्रत' शब्द को हम आसान शब्दों में कुछ इस तरह समझ सकते हैं कि जीवन में जो भी वरणीय है और अनुष्ठान द्वारा मन, वचन, कर्म से प्राप्त करने योग्य है, वही व्रत है। इसी कारण प्रत्येक व्रत के साथ कोई न कोई कथा जुड़ी है। इन कथाओं से यह प्रमाणित होता है कि व्रत मानव-जीवन की धर्म-पिपासा की तृप्ति तथा उसकी आशाओं को पूर्ण करने के लिए बीच-बीच में करने वाला अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के व्यावहारिक जीवन का एक प्रधान अंग बन गया है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के व्रत का फल अनंत है। जिसकी संपूर्ण इंद्रियाँ भगवान शिव के ध्यान में लगी रहती हैं वह मोक्ष को प्राप्त करता है। जिसके हृदय में भगवान शिव की लेशमात्र भी भक्ति है, वह समस्त देहधारियों के लिए वंदनीय हैं।
माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी को 'शिवरात्रि' कहा जाता है। ईसान-संहिता के अनुसार इस दिन आदिदेव महादेव कोटि सूर्य के समान दीप्तिसंपन्न हो शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। अतएव शिवरात्रि-व्रत में उसी महानिशा-त्यापिनी चतुर्दशी की पूजा की जाती है। शिवरात्रि को 'शिवतेरस' भी कहते हैं। आशुतोष शंकर की यह प्रिय तिथि है और शिव के भक्तों के लिए इस तिथि की विशेष महिमा है।
यहाँ पर 'महानिशा' शब्द व्यापक अर्थ लिए हुए है। चतुर्दशी तिथियुक्त चार प्रहर रात्रि के मध्यवर्ती दो प्रहरों में पहले की अंतिम व दूसरे की आदि घड़ियों को ही महानिशा की संज्ञा दी गई है। इस दिन उपवास कर जो रात्रि-जागरण कर सच्चे मन से शिव की स्तुति करता है वह निं:सदेह स्वर्ग-लोक में स्थान पाता है। व्रत-कथा में यह भी उल्लेख है कि रात्रि के चार प्रहरों में चार बार शिवजी की पूजा की जाती है। प्रथम में दूध द्वारा शिव की ईशान मूर्ति को, दूसरे प्रहर में दही द्वारा अघोर मूर्ति को, तृतीय में घृत द्वारा वामदेव मूर्ति को तथा चतुर्थ प्रहर में मधु द्वारा सद्योजात मूर्ति को स्नान करा कर उनकी आराधना करनी चाहिए।
शास्त्रों व पुराणों में शिव-व्रत तथा उससे जुड़े प्रसंगों का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। शास्त्रों का कार्य यह भी है कि जो ज्ञान नहीं है उसे ज्ञात कराया जाए। शिवरात्रि के व्रत में कौन-सा गूढ़ अर्थ छिपा है, इसे जानने से पूर्व, इसके पीछे जो कथाएँ - प्रसंग-जुड़े हैं, उन्हें जान लेना ज़रूरी है।
स्कंदपुराण में वर्णित कथा के अनुसार वाराणसी में एक दुष्ट व्याघ्र रहता था। उसका काम जंगली जीव व पक्षियों का शिकार करना था। एक बार जंगली सूअर के शिकार के मोह में उसने रात्रि-जागरण करने का सोचा, एक पात्र में जल लेकर वह बेल के वृक्ष पर चढ़ गया जिसकी जड़ में एक अति प्राचीन शिवलिंग स्थापित था। उस दिन शिवरात्रि थी तथा सवेरे ही शिकार की तलाश में निकल पड़ने के कारण उसने कुछ खाया भी नहीं था। इस प्रकार उसका व्रत भी हो गया। रात्रि-जागरण की इच्छा से रात्रि-भर बेल की पत्तियाँ नीचे फेंकता रहा और जल से मुँह भी धोता रहा। परिणाम-स्वरूप आजीवन दुष्कर्म करने पर भी मृत्यु-पश्चात व्याघ्र को शिवलोक की प्राप्ति हुई।
गरूड़पुराण की एक कथा के अनुसार निषादों के राजा सुंदरसेन ने भी एक दिन अनजाने में शिवलिंग को नहलाया, पूजा की और रात्रि-जागरण किया। आगे चलकर जब वह मरा और यमदूतों ने उसे पकड़ा, तब शिव के सेवकों ने उसे छुड़ाया। इस तरह पापरहित होकर उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसी तरह अग्निपुराण में सुंदरसेन नाम के बहेलिए की कथा का उल्लेख है तो पदमपुराण व लिंगपुरान में निषाद की कथा का वर्णन है। इन सभी कथाओं का सार एवं संदेश एक ही है कि जो व्यक्ति रात-भर जागरण कर बेल-पत्रों से शिव की आराधना करता है वह अंत में आनंद व मोक्ष को प्राप्त कर स्वर्गलोक में स्थान पाता है।
शिवरात्रि-पर्व में उपवास एक प्रधान अंग है। 'उपवास' शब्द का अर्थ है 'किसी के समीप रहना' सो यहाँ पर इसका अर्थ है 'शिव के समीप रहना', शिव का अर्थ भी 'कल्याण' है। 'नम: शिवाय' का भाव यही है कि हम उस उच्च कल्याणकारी- परोपकारी सत्ता को नमन करते हैं जो सृष्टि के प्रत्येक अंग को संचालित करती है। यह शिव ही है जो जगत की रक्षा के लिए विषपान का कष्ट उठाते हैं। शिव का यह रूप नीलकंठ कहलाता है। वे संपूर्ण विधाओं के प्रणेता, समस्त भूतों के अधीश्वर, वेदों के अधिपति, ब्रह्म-बल के प्रतिपालक तथा सृष्टि-रचयिता हैं। इसलिए शिवरात्रि-पर्व हमें आनंद की असीम संभावनाओं के समीप ले जाता है। आवश्यकता है तो केवल उस अंत:करण की जो हमें इस आनंद का पूर्ण अनुभव करा सके।
महाशिवरात्रि
हमारे देश में जितने भी प्रकार के व्रत, उपवास, पूजा, पर्व प्रचलित हैं उनमें शिवरात्रि-व्रत के समान प्रचार अन्य किसी का भी नहीं है। सर्वधर्म समभाव वाले इस महान देश में प्राय: सभी हिंदू भगवान शिव की आराधना करते हैं। अधिकतर लोग यथाविधि पूजादि न करते हुए भी उपवास करते हैं। जिनकी उपवास में रुचि नहीं होती, वे रात्रि-जागरण कर इस व्रत के पुण्य का लाभ कमा लेते हैं।
हमारे पुराणों, वेदों से लेकर मध्यकालीन निबंधों में शिवरात्रि-व्रत का उल्लेख बखूबी हुआ है पर इस व्रत का पालन करने के लिए कुछ नियम हैं - यथा अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा का पालन। शांतमन, तपस्वी तथा क्रोधहीन होना भी बहुत आवश्यक है। शिवरात्रि-पर्व की ऐसी महिमा है कि संप्रदाय-भेद-भाव को त्यागकर सभी मनुष्य इसका एक समान पालन करते हैं।
वेदों व हमारे पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव की पूजा-अर्चना विभिन्न रूपों में वर्णित है। भगवान शिव सगुण-साकार मूर्ति-रूप तथा निर्गुण निराकार अमूर्त रूप में भी वंदनीय हैं। महादेव, नटराज, पशुपति, नीलकंठ, योगीश्वर, महेश्वर आदि कई नामों व रूपों में भगवान शिव की आराधना की जाती है। ये सब एक ही ईश्वर के कई रूप-नाम हैं और सभी रूपों में पूजा-अर्चना का अर्थ एक ही है। शर्व, रूद्र, भीम, उग्र, ईशान, पशुपति, भव तथा महादेव ये क्रमश: पृथ्वी, तेज, आकाश, सूर्य, क्षेत्रज्ञ, जल, वायु तथा चंद्रमा के रूपों को मूर्तियों के रूप में परिलक्षित करते हैं।
शिवरात्रि-पर्व के अवसर पर शिवलिंग की पूजा की विशेष महिमा है। पूजा से पूर्व सर्वप्रथम शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की जानी चाहिए। नर्मदेश्वर तथा वाणलिंग को स्व-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं है। इसी तरह स्वयंभु लिंग और ज्योतिर्लिंग आदि की पूजा में भी आवाहन, विसर्जन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। केवल पार्थिव लिंग-पूजन में प्रतिष्ठा तथा आवाहन-विसर्जन आवश्यक होता है।
शिवपूजा और शिवरात्रि व्रत में थोड़ा अंतर है, 'व्रत' शब्द को हम आसान शब्दों में कुछ इस तरह समझ सकते हैं कि जीवन में जो भी वरणीय है और अनुष्ठान द्वारा मन, वचन, कर्म से प्राप्त करने योग्य है, वही व्रत है। इसी कारण प्रत्येक व्रत के साथ कोई न कोई कथा जुड़ी है। इन कथाओं से यह प्रमाणित होता है कि व्रत मानव-जीवन की धर्म-पिपासा की तृप्ति तथा उसकी आशाओं को पूर्ण करने के लिए बीच-बीच में करने वाला अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के व्यावहारिक जीवन का एक प्रधान अंग बन गया है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के व्रत का फल अनंत है। जिसकी संपूर्ण इंद्रियाँ भगवान शिव के ध्यान में लगी रहती हैं वह मोक्ष को प्राप्त करता है। जिसके हृदय में भगवान शिव की लेशमात्र भी भक्ति है, वह समस्त देहधारियों के लिए वंदनीय हैं।
माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी को 'शिवरात्रि' कहा जाता है। ईसान-संहिता के अनुसार इस दिन आदिदेव महादेव कोटि सूर्य के समान दीप्तिसंपन्न हो शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। अतएव शिवरात्रि-व्रत में उसी महानिशा-त्यापिनी चतुर्दशी की पूजा की जाती है। शिवरात्रि को 'शिवतेरस' भी कहते हैं। आशुतोष शंकर की यह प्रिय तिथि है और शिव के भक्तों के लिए इस तिथि की विशेष महिमा है।
यहाँ पर 'महानिशा' शब्द व्यापक अर्थ लिए हुए है। चतुर्दशी तिथियुक्त चार प्रहर रात्रि के मध्यवर्ती दो प्रहरों में पहले की अंतिम व दूसरे की आदि घड़ियों को ही महानिशा की संज्ञा दी गई है। इस दिन उपवास कर जो रात्रि-जागरण कर सच्चे मन से शिव की स्तुति करता है वह निं:सदेह स्वर्ग-लोक में स्थान पाता है। व्रत-कथा में यह भी उल्लेख है कि रात्रि के चार प्रहरों में चार बार शिवजी की पूजा की जाती है। प्रथम में दूध द्वारा शिव की ईशान मूर्ति को, दूसरे प्रहर में दही द्वारा अघोर मूर्ति को, तृतीय में घृत द्वारा वामदेव मूर्ति को तथा चतुर्थ प्रहर में मधु द्वारा सद्योजात मूर्ति को स्नान करा कर उनकी आराधना करनी चाहिए।
शास्त्रों व पुराणों में शिव-व्रत तथा उससे जुड़े प्रसंगों का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। शास्त्रों का कार्य यह भी है कि जो ज्ञान नहीं है उसे ज्ञात कराया जाए। शिवरात्रि के व्रत में कौन-सा गूढ़ अर्थ छिपा है, इसे जानने से पूर्व, इसके पीछे जो कथाएँ - प्रसंग-जुड़े हैं, उन्हें जान लेना ज़रूरी है।
स्कंदपुराण में वर्णित कथा के अनुसार वाराणसी में एक दुष्ट व्याघ्र रहता था। उसका काम जंगली जीव व पक्षियों का शिकार करना था। एक बार जंगली सूअर के शिकार के मोह में उसने रात्रि-जागरण करने का सोचा, एक पात्र में जल लेकर वह बेल के वृक्ष पर चढ़ गया जिसकी जड़ में एक अति प्राचीन शिवलिंग स्थापित था। उस दिन शिवरात्रि थी तथा सवेरे ही शिकार की तलाश में निकल पड़ने के कारण उसने कुछ खाया भी नहीं था। इस प्रकार उसका व्रत भी हो गया। रात्रि-जागरण की इच्छा से रात्रि-भर बेल की पत्तियाँ नीचे फेंकता रहा और जल से मुँह भी धोता रहा। परिणाम-स्वरूप आजीवन दुष्कर्म करने पर भी मृत्यु-पश्चात व्याघ्र को शिवलोक की प्राप्ति हुई।
गरूड़पुराण की एक कथा के अनुसार निषादों के राजा सुंदरसेन ने भी एक दिन अनजाने में शिवलिंग को नहलाया, पूजा की और रात्रि-जागरण किया। आगे चलकर जब वह मरा और यमदूतों ने उसे पकड़ा, तब शिव के सेवकों ने उसे छुड़ाया। इस तरह पापरहित होकर उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसी तरह अग्निपुराण में सुंदरसेन नाम के बहेलिए की कथा का उल्लेख है तो पदमपुराण व लिंगपुरान में निषाद की कथा का वर्णन है। इन सभी कथाओं का सार एवं संदेश एक ही है कि जो व्यक्ति रात-भर जागरण कर बेल-पत्रों से शिव की आराधना करता है वह अंत में आनंद व मोक्ष को प्राप्त कर स्वर्गलोक में स्थान पाता है।
शिवरात्रि-पर्व में उपवास एक प्रधान अंग है। 'उपवास' शब्द का अर्थ है 'किसी के समीप रहना' सो यहाँ पर इसका अर्थ है 'शिव के समीप रहना', शिव का अर्थ भी 'कल्याण' है। 'नम: शिवाय' का भाव यही है कि हम उस उच्च कल्याणकारी- परोपकारी सत्ता को नमन करते हैं जो सृष्टि के प्रत्येक अंग को संचालित करती है। यह शिव ही है जो जगत की रक्षा के लिए विषपान का कष्ट उठाते हैं। शिव का यह रूप नीलकंठ कहलाता है। वे संपूर्ण विधाओं के प्रणेता, समस्त भूतों के अधीश्वर, वेदों के अधिपति, ब्रह्म-बल के प्रतिपालक तथा सृष्टि-रचयिता हैं। इसलिए शिवरात्रि-पर्व हमें आनंद की असीम संभावनाओं के समीप ले जाता है। आवश्यकता है तो केवल उस अंत:करण की जो हमें इस आनंद का पूर्ण अनुभव करा सके।
Maha Shivratri
अपने भीतर स्थित शिव को जानने का महापर्व है महाशिवरात्रि। वैसे तो प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है पर फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि का विशेष महत्व होने के कारण ही उसे महाशिवरात्रि कहा गया है। यह भगवान शिव की विराट दिव्यता का महापर्व है। भारतीय शास्त्र के अनुसार शिव अनंत हैं। शिव की अनंतता भी अनंत है। मानव जब सभी प्रकार के बंधनों और सम्मोहनों से मुक्त हो जाता है तो स्वयं शिव के समान हो जाता है। समस्त भौतिक बंधनों से मुक्ति होने पर ही मनुष्य को शिवत्व प्राप्त होता है। शिव और शिवत्व की दिव्यता को जान लेने का महापर्व है महाशिवरात्रि।
इस पवित्र दिन शिव भक्त पूजा एवं उपवास करते हैं। शिव मंदिरों को भव्यता के साथ सजाया जाता है। महादेव जी की बहु विधि पूजा अर्चना की जाती है। पूरा दिन लोग निराहार रहकर उपवास करते हैं। इस दिन काले तिल पानी में डाल कर स्नान करने के पश्चात भगवान शंकर की पूजा का विधान बताया गया है। शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, कनेर और मौल श्री के पत्ते अर्पित करके पूजा की जाती है। लोग रात्रि जागरण करके शिव का भजन पूजन करते हैं और अगले दिन शिव जी को जल का अर्घ्य प्रदान कर उपवास खोला जाता है। इस दिन विष्णु पुराण का पाठ भी किया जाता हैं। शिव भक्तों की मान्यता है कि जो व्यक्ति निरंतर चौदह वर्ष तक अन्न जल रहित इस व्रत का पालन करता है तो उसकी अनेक पीढ़ियों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है। शिव अर्चना को मोक्ष प्राप्त करने वाला सबसे सरल मार्ग माना गया है।
शिवरात्रि को शिव पार्वती के विवाह की रात्रि भी माना जाता है। दार्शनिक इसे पुरुष एवं प्रकृति के मिलन की रात्रि मान कर इस दिवस को सृष्टि का प्रारंभ मानते हैं। इसे आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए शिव एवं शक्ति का योग भी कहा गया है। शिव की पूजा के संबंध में एक प्रचलित धारणा यह है कि एक बार ब्रह्मा जी एवं विष्णु जी में यह विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालन कर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। जब वह विवाद अपने चरम पर पहुँचा तो अचानक एक विराट ज्योतिर्मय लिंग अपनी संपूर्ण भव्यता के साथ वहाँ प्रकट हुआ। उसका कोई और छोर दिखाई नहीं दे रहा था। सर्वानुमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस महान ज्योतिर्मय लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की जानकारी प्राप्त करने के लिए निकल पड़े। बहुत लंबे समय तक विष्णु जी कुछ भी खोज पाने में असमर्थ रहे और लौट आए। ब्रह्मा जी भी इस कार्य में सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने कहा कि वह छोर तक पहुँच गए थे। मार्ग से उन्होंने केतकी के फूल को साक्षी के रूप में साथ ले लिया था। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी की इसके लिए आलोचना की। दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की तब शिव जी बोले कि मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूँ। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है अत: तुम दोनों भी मुझ से भिन्न नहीं हो। शिव ने केतकी पुष्प को झूठी साक्षी देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह पुष्प मेरी पूजा में प्रयुक्त नहीं किया जा सकेगा। उसी काल से शिवलिंग की पूजा एवं महाशिवरात्रि का पर्व प्रारंभ हुआ माना जाता है।
शिवलिंग की पूजा का अर्थ है कि समस्त विकारों और वासनाओं से रहित रह कर मन को निर्मल बनाना। वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। शिव पुराण में भगवान स्वयं कहते हैं, 'प्रलय काल आने पर जब चराचर जगत नष्ट हो जाता है और समस्त प्रपंच प्रकृति में विलीन हो जाता है, तब मैं अकेला ही स्थित रहता हूँ। दूसरा कोई नहीं रहता। सभी देवता और शास्त्र पंचाक्षर मंत्र में स्थित होते हैं। अत: मेरे से पालित होने के कारण वे नष्ट नहीं होते। तदनंतर मुझसे प्रकृति और पुरुष के भेद से युक्त सृष्टि होती है, वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदुनाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। इस तरह यह विश्व शक्ति स्वरूप ही है। नाद बिंदु का और बिंदु इस जगत का आधार है। यह शक्ति और शिव संपूर्ण जगत के आधार रूप में स्थित हो। बिंदु और नाद से युक्त सब कुछ शिव है, वही सबका आधार है। आधार में ही आधेय का समावेश या लय होता है। यही वह समष्टि है जिससे सृजन काल में सृष्टि का प्रारंभ होता है। बिंदु एवं नाद अर्थात शक्ति और शिव का संयुक्त रूप ही तो शिवलिंग में अवस्थित है। इसी कारण शिवलिंग की उपासना से ही परमानंद की प्राप्ति संभव है।
भारत ही नहीं विश्व के अन्य अनेक देशों में भी प्राचीन काल से शिव की पूजा होती रही है इसके अनेक प्रमाण समय समय पर प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी ऐसे अवशेष प्राप्त हुए हैं जो शिव पूजा के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। हमारे समस्त प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में भी शिव जी की पूजा की विधियाँ विस्तार से उल्लिखित हैं। शास्त्रों में शिव की शक्ति को रात्रि ही कहा गया है। रात्रि शब्द का अर्थ है जन-मन को अवकाश या उत्सव प्रदान करने वाली। शिव की शक्ति रात्रि ही है जो विश्व के समस्त प्राणियों को अपनी गोद में आराम प्रदान करती है।
ईशान संहिता के अनुसार महाशिवरात्रि को ही ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ। शिव पुराण में ब्रह्मा जी ने कहा है कि संपूर्ण जगत के स्वामी सर्वज्ञ महेश्वर के कान से गुण श्रवण, वाणी से कीर्तन, मन से मनन करना महान साधना माना गया है। इसी लिए महाशिवरात्रि के दिन उपवास, ध्यान, जप, स्नान, दान, कथा श्रवण, प्रसाद एवं अन्य धार्मिक कृत्य करना महाफलदायक होता है। वास्तव में शिव की महिमा अपरंपार है। जिनके कोष में भभूत के अतिरिक्त कुछ नहीं है परंतु वह निरंतर तीनों लोकों का भरण पोषण करने वाले हैं। परम दरिद्र शमशानवासी होकर भी वह समस्त संपदाओं के उद्गम हैं और त्रिलोकी के नाथ हैं। अगाध महासागर की भांति शिव सर्वत्र व्याप्त हैं। वह सर्वेश्वर हैं। अत्यंत भयानक रूप के स्वामी होकर भी स्वयं शिव हैं।
जब भीष्म शरशैरया पर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे तो पांडवों ने उनसे शिव महिमा के विषय में जानने की जिज्ञासा की तो उन्होंने उत्तर दिया कि कोई भी देहधारी मानव शिव महिमा बताने में सर्वथा असमर्थ है। भारतीय मनीषियों के अनुसार शिव अव्यक्त हैं और जो कुछ व्यक्त है, वह उसी की शक्ति है, वही उसका व्यक्त रूप है। शिव ही निराकार ब्रह्म हैं। मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, पाँचों ज्ञानेंद्रियों और पाँचों कर्मेंद्रियों पर विजय प्राप्त कर शिव शक्ति की साधना करना ही शिवरात्रि व्रत करना है। शिवरात्रि के जागरण के संदर्भ में वही भावना है जो गीता में जागरण के विषय में व्यक्त की गई है। सामान्य प्राणियों की रात्रि में जोगी जागता है और उनके दिन में जोगी सोता है। इस प्रकार जो पाशबद्ध है उसे मनीषियों ने पशु कहा है अपने परम स्वरूप शिव के अधिक से अधिक निकट पहुँचना ही ''पशुपति`` शिव की उपासना का लक्ष्य है और यही जागरण का महत्व है। रात्रि में जागृत जीवन का कोलाहल नहीं रहता। प्रकृति शांत रहती है। यह अवस्था साधना, मनन और चिंतन के लिए अधिक अनुकूल होती है। उपवास का भी एक अर्थ है 'किसी के समीप रहना। वराह उपनिषद के अनुसार उपवास का अर्थ है जीवात्मा का परमात्मा के समीप रहना। महाशिवरात्रि पर जागरण और उपवास का यही लक्ष्य है।
शिव तनिक-सी सेवा से ही प्रसन्न होकर बड़े से बड़े पापियों का उद्धार करने वाले महादेव हैं। कभी केवल जल चढ़ा देने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं तो कभी बेल पत्र से ही। भले ही पूजा अनजाने में ही हो गई हो वह व्यर्थ नहीं जाती। किसी भी जाति अथवा वर्ण का व्यक्ति उनका भक्त हो सकता है। देव, गंधर्व, राक्षस, किन्नर, नाग, मानव सभी तो उनके आराधक है। हिंदू-अहिंदू में महादेव कोई भेद भाव नहीं करते। शिवलिंग पर तीन पत्ती वाले बेलपत्र और बूंद-बूंद जल का चढ़ाया जाना भी प्रतीकात्मक है। सत, रज और तम तीनों गुणों के रूप में शिव को अर्पित करना उनकी अर्चना है। बूंद-बूंद जल जीवन के एक-एक कण का प्रतीक है। इसका अभिप्राय है कि जीवन का क्षण-क्षण शिव की उपासना को समर्पित होना चाहिए।
शिव तो सर्वस्व देने वाले हैं। विश्व की रक्षार्थ स्वयं विष पान करते हैं। अत्यंत कठिन यात्रा कर गंगा को सिर पर धारण करके मोक्षदायिनी गंगा को धरा पर अवतरित करते हैं। श्रद्धा, आस्था और प्रेम के बदले सब कुछ प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि शिव और पार्वती के वैवाहिक जीवन में प्रवेश का दिन होने के कारण प्रेम का दिन है। यह प्रेम त्याग और आनंद का पर्व है। शिव स्वयं आनंदमय हैं। शिव के समीप ले जा कर सच्चिदानंद का साक्षात्कार करवाने का पर्व ही तो है महाशिवरात्रि।
हंसी का खजाना
हंसी का खजाना एक फंक्शन चल रहा था ।
.
आयोजक ने देखा कि इन्विटेशन से ज़्यादा
लोग आये हैं ।
.
वो स्टेज पे गया और बोला:-😐
.
"जो जो लड़की वालों की तरफ से वो
इधर एक साइड में आ जायें"
20-30 आ गए एक तरफ .....
.
फिर उसने बोला :- जो लड़के वालों की
तरफ से है वो भी उधर आ जायें..."
30-35 लोग फिर आ गए.....
.
.
अब उसने एक डंडा ले के उन
सबको (लड़की वाले एवम् लड़के वाले को )
पीटना शुरू कर दिया ।
वो चिल्लाए :- "मार क्यों रहे हो ?"
आयोजक बोला :- "कमीनों ये गुप्ताजी की
रिटायरमेंट पार्टी है...हंसी का खजाना शराब फेक्टरी में शराब टेस्ट
करने
वाला छुट्टी पर चला गया और
😎 फेक्टरी के मालिक को एक नए
आदमी की तलाश
थी.
जो शराब टेस्ट करने का काम
बखूबी कर सके..
एक दिन उसका एक
कर्मचारी किसी पियक्कड
को पकड़ लाया और बोला
" सर इसके टेस्टिंग स्किल
की सभी बहुत तारीफ़ करते हैं....
इसे रख लीजिए..
😎" शराब फेक्टरी के मालिक ने
देखा कि वो आदमी बहुत
ही गंदा और बदबूदार था.
और वो उसे
रखना नहीं चाहता था...
फिर भी उसने एक
वाइन उसे चखने के लिए दी..
चखतेही पियक्कड बोला " ये रेड वाइन है...,
नोर्थ अमेरिका में बनी है,
तीन साल पुरानी है.
और इसे लकड़ी के बॉक्स में मेच्योर
किया गया है..."
फेक्टरी के मालिक की आंखें
खुली की खुली रह गयी....
क्योंकि पियक्कड
ने एकदम सही पहचान की थी उस
शराब की....
उसने एक एक करके बीस तरह
की शराब उसे पिलाई....
और उसने एक दम
सही जवाब दिया....
😎पर फेक्टरी के मालिक
को उसके शरीर से आ
रही बदबू बहुत परेशान कर
रही थी.
और उसने अपनी सेक्रेटरी को बुलाया और कहा " मैं इसे फेल करके
नौकरी नहीं देना चाहता कोई
उपाय बताओ.
" सेक्रेटरी ने कहा " सर मैं
अपना Urine एक गिलास में लेकर आती हूँ और इसे पीने के लिए
देती हूँ....
और आपको इसे न रखने
का बहाना मिल जाएगा..."
पियक्कड उसे पीते ही बोला "
उम्र छब्बीस साल,
प्रेग्नेंट है, तीन महीने
हो चुकेहैं....
और
अगर नौकरी नहीं दी तो ये
भी बता दूंगा कि बच्चे का बाप
कौन है...??
यह सुनते ही फैक्ट्री के मालिक और
उसकी सेकेरेट्री behosh हो गए. Group कीसी का भी हो !!
पर घमाका हमारा ही होगा !!! हम आज भी अपने हुनर मे दम र
खते है,
होश उड़ जाते है लोगो के, जब .. GROUP में कदम रखते ह
हंसी का खजाना एक महिला तीन बच्चों के साथ बस में यात्रा कर रही थी।
कंडक्टर:- मैडम इन बच्चों का टिकिट लगेगा, उम्र बताओ?
महिला:- पहले वाले की दो साल, दूसरे वाले की ढाई साल और तीसरे की तीन साल।
कंडक्टर:- मैडम टिकिट चाहे मत लो, पर गैप तो 9 महीने का रखो।
.
.
.
महिला:- कर्मफूटे,
बीच वाला जेठानी का है,
तू टिकिट काट, ज्ञान मत बाँट।हंसी का खजाना हिंदी की महिमा :
एक अप्रवासी भारतीय"लाला"
ने राजस्थानी देशीकन्या से
विवाह का मन बनाया।
पकड़ा पहला जहाज
और हिन्दुस्तान 🇮🇳
चला आया।
कम हिंदी ज्ञान 📘 के कारण
उसने 📚 ट्यूशन लगवाया,
फिरमास्टर को
अपना नवाबीपन दिखाया...
💶आप ₹ पैसों की चिंता
बिल्कुल ना करना,
⏰⌚जितनी जल्दी हो सके
बस 📚📘 हिंदी सीखा देना।
मास्टर भी निकला
पक्का 👺 सरकारी।
साईड बिजनेस में करता था
ठेकेदारी।
उसने भी एक जबरदस्त
🚷🚸शार्टकट निकाला,
1⃣ ही दिन में पूरा कोर्स
निपटा डाला।
बोला शिष्य जी
एक काम कीजिए,
मन में अच्छी तरह एक
➰गाँठ बाँध लीजिए।
किसी भी शब्द से पहले
यदि "कु" लगा हो तो
🌼अर्थ खराब होता है
उसी शब्द में यदि
"सु" लग जाय तो
अर्थ बदल कर अच्छा
हो जाता है
लाला बोला एक कष्ट कीजिए ,
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
मास्टर बोला अभी लीजिये...
जैसे कुप्रबंध - सुप्रबंध
कुयोग्य - सुयोग्य
कुशासन - सुशासन
कुमति - सुमति
...इत्यादि इत्यादि........
👳 लाला बोला थैंक्यू श्रीमान,
हो गया है हमे 📖📕📚हिन्दी
का सम्पूर्ण ज्ञान ।
लाला ने झटपट 💑 विवाह रचाया
और पहली बार ससुराल आया।
👵 सासु माँ ने
धूमधाम से की अगुवाई,
जैसे 🌳🌲🌵वनवास से
लौटे हों रघुराई।
🌸🍃🌺🌿माहौल था
पूरे घर में 🎆🎇🎆 दिवाली सा,
सासु माँ 👵
बोली पधारो म्हारो देश
👳👳"कुंवर सा" 👳👳
👳 लाला इससे थोड़ा परेशान हो गया।
ससुर जी 👴आये, बोले विराजो
"कुवंर सा" 👳
साले ने भी नमस्ते
"कुवंर सा" 👳
कह ढोक लगाई।
गुस्से से लाला कुछ 😡😡
लाल लाल हो गया।
अब तो लाला 👳 के
बर्दाश्त बहार हुई थी बात,
लाला 👳 लगा कहने-
हमें भी हिन्दी आती है और
आपकी बातें हमे बड़ा
कष्ट पहुँचाती हैं।
👊👊 खबरदार आप हमें
फिर कभी 👳
"कुंवर सा" ना कहें,
कहना ही अगर जरूरी है
तो आगे से हमें
"सुअर सा" 🐗 🐷 ही कहें।
😄😄😄😝😍😄
Maa ,
माँ बहुत झूठ बोलती है.
...........सुबहजल्दी जगाने को, सात बजे को आठ कहती है।
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है।
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है।
छोटी छोटी परेशानियों पर बड़ा बवंडर करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है।
जो मैं न रहूँ घर पे तो,
मेरी पसंद की कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है।
मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूजन बोलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर,
मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है।
कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में,
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,समझदार हो,
अब न कुछ बोलूँगी मैं,
ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है।
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती हो जाती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी,
सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है,
बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है।
सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है।
उसके व्रत, नारियल, धागे,फेरे, सब मेरे नाम,
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ,
उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है।
मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे,
मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ खुश होती जैसे,
खुद पर उपकार समझती है।
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर,
सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।"
हर माँ को समर्पित
Joke öf the day
एक फंक्शन चल रहा था ।
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आयोजक ने देखा कि इन्विटेशन से ज़्यादा
लोग आये हैं ।
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वो स्टेज पे गया और बोला:-😐
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"जो जो लड़की वालों की तरफ से वो
इधर एक साइड में आ जायें"
20-30 आ गए एक तरफ .....
.
फिर उसने बोला :- जो लड़के वालों की
तरफ से है वो भी उधर आ जायें..."
30-35 लोग फिर आ गए.....
.
.
अब उसने एक डंडा ले के उन
सबको (लड़की वाले एवम् लड़के वाले को )
पीटना शुरू कर दिया ।
वो चिल्लाए :- "मार क्यों रहे हो ?"
आयोजक बोला :- "कमीनों ये गुप्ताजी की
रिटायरमेंट पार्टी है...
Jai rajasthan
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।
माथे बोर, नाक में नथनी, नोसर हार गलै में जी,
झाला, झुमरी, टीडी भलको, हाथा में हथफूल जी।
टूसी, बिंदी, बोर, सांकली, कर्ण फूल काना में जी,
कंदोरो, बाजूबंद सोवे, रुण-झुण बाजे पायल जी।
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।
रसमलाई, राजभोग औ कलाकंद, खुरमाणी जी,
कतली, चमचम, चंद्रकला औ मीठी बालूशाही जी।
रसगुल्ला, गुलाब जामुन औ प्यारी खीर-जलेबी जी,
दाल चूरमो , घी और बाटी सगला रे मन भावे जी।
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।
कांजी बड़ा दाल को सीरो, केर-सांगरी साग जी,
मोगर, पापड़, दही बड़ा औ नमकीन गट्टा भात जी।
तली ग्वारफली और पापड़, केरिया रो अचार जी,
घणे चाव से बणे रसोई, कर मनवार जिमावे जी।
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।
काली ऊमटे जद, बोलण लागे मौर जी,
बिरखा के आवण री बेला, चिड़ी नहावे रेत जी।
खड़ी खेत के बीच मिजाजण , कजरी गावे जी,
बादीलो घर आसी कामण, मेडी उड़ावे काग जी।
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।
एक चुटकी ज़हर रोजाना
“एक चुटकी ज़हर रोजाना”
सीमा नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद सीमा को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली। सीमा और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा। दिन बीते, महीने बीते, साल भी बीत गया, न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न सीमा जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। सीमा को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी। सीमा के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी।
एक दिन जब सीमा का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई। सीमा के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे। उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली –“आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…”
बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने सीमा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा –“बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा।”
लेकिन सीमा जिद पर अड़ गई –“आपको मुझे ज़हर देना ही होगा। अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती।”
कुछ सोचकर पिता बोले –“ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा। मंजूर हो तो बोलो ?”
“क्या करना होगा ?”, सीमा ने पूछा.
पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर सीमा के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोजाना अपनी सास के भोजन में मिलाना है। कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी। लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई।”
पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा। इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी। यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी। बोलो कर पाओगी ये सब ?”
सीमा ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा। उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई। ससुराल आते ही अगले ही दिन से सीमा ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया। साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया। अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती। रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती। सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।
कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया। बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी। धीरे-धीरे चार महीने बीत गए। सीमा नियमित रूप से सास को एक चुटकी ज़हर रोजाना देती आ रही थी। किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था। सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी। पहले जो सास सीमा को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे सीमा की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी। बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी।
छठा महीना आते आते सीमा को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी। जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी। इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती। वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ।”
पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले –“ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा !!!”
“बेटी को सही रास्ता दिखाये, माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे”
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