सोमवार, 28 मार्च 2016
बेटियाँ शादी के मंडप या ससुराल जाने से पराई नही लगती,
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जब वो मायके आ कर हाथ मूह धोने के बाद बेसिन के पास टंगे नैपकिन की बजाय अपने बैग के छोटे से रूमाल से मूँह पोछती हैं। तब पराई लगती है,
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जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी ठिठक जाती है। तब पराई सी लगती है बेटियाँ,
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जब पानी के गिलास के लिए इधर उधर नजरें घुमाती हैं, तब पराई लगती है ये बेटियाँ,
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जब वह पूछती हैं, वोशिंग मशीन चलाऊँ क्या?? तब पराई हो जाती हैं ये बेटियाँ,
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जब टेबल पे खाना लग जाने पर भी खोल के नही देखती कि क्या बनाया है माँ ने तब पराई लगती हैं बेटियाँ,
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जब पैसे गिनते समय नजरें चुराती है तब पराई लगती हैं बेटियाँ,
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जब बात. बात पर ठहाके लगा कर खुश होने का नाटक करती है तब पराई लगती है बेटियाँ,
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लौटते समय फिर कब आओगी के जवाब मे 'देखो कब आना होता है, बोलती है तब हमेशा के लिए पराई हो जाती है ये बेटियाँ,
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लेकिन जाते हुए चुपके से आँख की कोर सुखाने की कोशिश करती है तो सारा परायापन एक झटके में बह जाता है, फिर पराई कहाँ होती है बेटियाँ,...
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