बुधवार, 2 मार्च 2016

Maa ,

माँ बहुत झूठ बोलती है. ...........सुबहजल्दी जगाने को, सात बजे को आठ कहती है। नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है। मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है। छोटी छोटी परेशानियों पर बड़ा बवंडर करती है। ..........माँ बहुत झूठ बोलती है।। थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है। जो मैं न रहूँ घर पे तो, मेरी पसंद की कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है। मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूजन बोलती है। .........माँ बहुत झूठ बोलती है।। दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर, मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है। कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में, छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है। .........माँ बहुत झूठ बोलती है।। टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,समझदार हो, अब न कुछ बोलूँगी मैं, ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है। अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती हो जाती है। .........माँ बहुत झूठ बोलती है।। तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी, सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं, बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है, बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है। .........माँ बहुत झूठ बोलती है।। मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है। सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है। उसके व्रत, नारियल, धागे,फेरे, सब मेरे नाम, तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है। ..........माँ बहुत झूठ बोलती है।। भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ, उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है। मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे, मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है। ..........माँ बहुत झूठ बोलती है।। उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ खुश होती जैसे, खुद पर उपकार समझती है। मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर, सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है। ..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।" हर माँ को समर्पित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें