गुरुवार, 12 जुलाई 2018

दादा जी के साथ 1

 राम राम सा
मेरे दादाजी बुधाराम जी मालवी

दोस्तो कदैई कदैई  कुछ पुराणी यादे आ जाती है जो आज एक अचंभित लगती है  हमने बचपन ंंमे  बहुत कुछ सिखा  है और उसमे हम बहुत ही कीमती बातो को टाल देते थे और वो आज हमे बड़ी भुल लगती है।
मेरे दादाजी बुधाराम जी की कई स्मृतियाँ मेरे मन में यदा कदा अपना मुखड़ा उठाती है | हम सभी परिवार के भाई बहिन उन्हें बापु कहते थे यु कहे  तो उनकी बहुत सारी बाते है पर कुछ बाते उनकी खास है पहले ंंनशे के सम्बन्ध में है |  वो चिलम ंंनियमित पीते थे कभी कभी हुक्का भी पी लेते थे बीड़ी भी पिते थे वैसे चिलम बीड़ी मेरे पिताजी भी पिते थे उनको देखकर ंंमैने भी एक दिन बीड़ी का छोटा टुकड़ा लिया और  पीने लगा जब ंंमै तीसरी कक्षा ंंमे पढता था उम्र लगभग 8 वर्ष । कभी कभी चिलम भी पीने लगा तो एक बार जब ंंमै बीड़ी पीकर दादाजी के पास आया तो ंंमुझे कहा बेटा बीड़ी पिया है क्या ?  ंंमै तो एकदम डर गया था फिर ंंमेने सफै देते हुये कहा ंंनही तो ंंमेने तो ंंनही पी  और वो बोले की बीडी पीना खराब है तो ंंमै भी बोल पड़ा फिर आप क्यो पिते हो तब वह बोले कि ंंमुझे तो लत पड़  गई है उस रात ंंमैने सोचा की ंंमैने इतनी चुपके से बीड़ी पी थी फिर ंंमालुम कैसे पड़ा किसी ंंने देखा भी ंंनही और ंंमालुम कैसे पड़ा  तो दोस्तो उस बात का  तब पता चला  जब कोई बीड़ी या चिगरेट पीकर ंंमेरे पास आता है और  ंंमुहँ से ंंमहक आती है  उसका चिलम से बड़ा मोह था पर सभी को ंंमना बोलते रहते थे कि चिलम बीड़ी ंंमत पीयो ंंमेरे घर ंंमे एक फिलिप्स का ंंमर्फी रेडियो था तो उसमे समचार और गाने बजते थे तो ंंमैने एक बार दादाजी से पुछा कि इतने छोटे रेडियो ंंमे गाने  कौन गा रहे है  तो उन्होने बोल दिया  कि छोटे छोटे आदमी है और आखिर  ंंमैने एक दिन जब घर पर कोई ंंनही थे तो उन  छोटे छोटे आदमियो  का गला घोट दिया  और रेडियो को रिपेयरिंग करवाना पड़ा और  ंंमुझे अपना सिर खुजाना पड़ा ।
उनका तर्क सुनकर मैं अवाक उनका मुंह ताकता रह जाता था | लोग उनके बारे में बड़ी नकारात्मक राय रखते थे कि बापू किसी की पंचायती ंंमे जाते नहीं थे , बस अपनी धूंई और चिलम को ही जानते थे | पर आज मुझे लगता उन्होंने दुनिया को पढ़ रखा था हमे वो जब बोलते थे कि पढाई किया करो तो हम ंंनजर अंदाज कर दिया करते थे
 जब गर्मियो ंंमे स्कूलों की छुट्टियाँ होती जीना  सुरानाडा ंंमे पांणी री  प्याऊ ही उठे  ंंमामा जी  थान हो वहाँ पर दो ंंमहिने हमारी  बारी आती थी कभी कभी दादा जी साथ ंंमे चलते थे सुवह से शाम पाणी री ंंमटकिया    भरते और लोगो को पाणी पिलाते थे पहले आना जाना  पैदल ही होता था कोई बीड़ी पिवण वालो आवतो तो उण ने कहता कि ंंमोमोजी     थारे   घणौ भलौ करेला दो तीन बीड़ी ंंमोमोजी रे थानं आगे रखा दो | कोई कोई  तो ंंम्होरी बात ंंने समझ जावता वे बापू सु शिकायत करता हा बापू  ंंम्हांनै गालियो काडता कदैई ंंमारने रे चक्कर ंंमे लारे दौडता  हा  जब पकड़  ंंमे आवता तो दो  तीन झपिड़ा लगाय देता और कह देता  कि आज रे बाद बीड़ी ंंमत पिया कर ंंमै भी कहा देता  की  क्यू  तो वो बोलते थे की बाद ंंमे  बताऊंगा  और  एक दिन ंंमुझे  उन्होँने बता ही दिया और  ंंमै समझ भी गया , पर मुझे उनके गुणी और ज्ञानी होने का प्रमाण मिल गया था| बातें तो उनकी बहुत सारी है कभी और बताऊंगा



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