राम राम सा
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मित्रो आज गुरु पूर्णिमा है
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आप सबको बहुत बहुत बधाई मित्रो वास्तविक गुरु वह हाेता है जाे अपने अनुयाइयाें काे परमात्मा मिलन का सच्चा मार्ग दिखाये, ना की स्वयं की पूजा-अर्चना करवायें। जाे गुरु स्वयं की पूजा-अर्चना करवाता हैं वह गुरु नहीं राक्षस(दैत्य) है, वह आपकाे परमात्मा से विमुख(दुर) कर रहा हैं। जबकी एक सच्चा गुरु ऐसा कभी नहीं करता।
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मित्रो आज गुरु पूर्णिमा है
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आप सबको बहुत बहुत बधाई मित्रो वास्तविक गुरु वह हाेता है जाे अपने अनुयाइयाें काे परमात्मा मिलन का सच्चा मार्ग दिखाये, ना की स्वयं की पूजा-अर्चना करवायें। जाे गुरु स्वयं की पूजा-अर्चना करवाता हैं वह गुरु नहीं राक्षस(दैत्य) है, वह आपकाे परमात्मा से विमुख(दुर) कर रहा हैं। जबकी एक सच्चा गुरु ऐसा कभी नहीं करता।
मनुष्य कभी किसी मनुष्य का उद्धार(निर्वाण या मोक्ष) नहीं कर सकता, यहा तक कि साधु-संताे का भी उद्धार करने के लिए स्वयं परमात्मा काे आना पड़ता हैं। अर्थात: मनुष्य कभी किसी मनुष्य का उद्धार नहीं कर सकता।
ईश्वर और मानवीय गुरु में सम्बन्ध को लेकर कबीर दास के दोहे को प्रसिद्द किया जा रहा हैं।
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
गुरुडम कि दुकान चलाने वाले कुछ अज्ञानी लोगों ने कबीर के इस दोहे का नाम लेकर यह कहना आरम्भ कर दिया हैं कि ईश्वर से बड़ा गुरु हैं क्यूंकि गुरु ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताता हैं। मै एक सरल से उदहारण को लेकर इस शंका को समझने का प्रयास करता हुँ । मान लीजिये कि मैं भारत के प्रधान-मंत्री मोदीजी से मिलने के लिये PMO ऑफिस गया। PMO का एक कर्मचारी मुझे उनके पास मिलवाने के लिए ले गया। अब यह बताओ कि प्रधान-मंत्री बड़ा या उनसे मिलवाने वाला कर्मचारी बड़ा हैं? आप कहेगे कि निश्चित रूप से प्रधान-मंत्री कर्मचारी से कही बड़ा हैं, प्रधान-मंत्री के समक्ष तो उस कर्मचारी कि कोई बिसात ही नहीं हैं। यही अंतर उस गुरुओं कि भी गुरु ईश्वर और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताने वाले गुरु में हैं। अपने समाज के विभिन्न मतों में गुरुडम कि दुकान को बढ़ावा देने के लिए गुरु कि महिमा को ईश्वर से अधिक बताना अज्ञानता का बोधक हैं। इससे अंध विश्वास और पाखंड को बढ़ावा मिलता हैं।
हमारे देश मेबीते पन्द्रह बीस वर्षो मे तो इतने गुरु पैदा हो गये है कि गिनती करना भी मुस्किल है अब चेले भी हाईटेक बैन गये है
जो ज्यादा रुपया देवे वो अच्छा चेला कोई बिसारा मेरी तरह कुछ नही देवे वो खराब चेला अरे भाईयो जो दान तो वो होता है जो दाएँ हाथ से दे और बाएँ को पता नही चलता है उसी को दान कहते हैं आजकल लम्बे लम्बे चन्दन के टिके लगाए हुए बहुत
गुरु बन कर घूम रहे हैं और हमारे भाईयो को ये कबीर दास जी दोहा सुना सुना कर लुट रहे हैं पहले के जमाने मे गुरु दस बीस रूपये मे भी खुश थे अब तो जैसे किसी चीज के अलग अलग वैरयटी होती है उसी तरह आजकल गुरुओ कि भी कई श्रेणियाँ हो गई है कम से कम सौ रुपये ओर ज्यादा की कोई सीमा नही है वैसे सौ रुपये वाले को टेढ़ी नजर से ही देखेंगे पाँच सौ वाले के सामने देखेंगे दो हजार पच्चिसो देने वाले लोगों के सामने थोड़ा मुस्कराएंगे एक दो सेल्फी भी निकलेन्गे।
मित्रो इन बाबाओँ के पास कुछ नही है सदा अपने माता पिता का कहामानकर चलो जीवन मे जो मर्गदर्शक का काम करते हैं असल गुरु तो वही है सन्त कहते है कि पहला गुरु तो
माँ ही होती है
हमारे देश मेबीते पन्द्रह बीस वर्षो मे तो इतने गुरु पैदा हो गये है कि गिनती करना भी मुस्किल है अब चेले भी हाईटेक बैन गये है
जो ज्यादा रुपया देवे वो अच्छा चेला कोई बिसारा मेरी तरह कुछ नही देवे वो खराब चेला अरे भाईयो जो दान तो वो होता है जो दाएँ हाथ से दे और बाएँ को पता नही चलता है उसी को दान कहते हैं आजकल लम्बे लम्बे चन्दन के टिके लगाए हुए बहुत
गुरु बन कर घूम रहे हैं और हमारे भाईयो को ये कबीर दास जी दोहा सुना सुना कर लुट रहे हैं पहले के जमाने मे गुरु दस बीस रूपये मे भी खुश थे अब तो जैसे किसी चीज के अलग अलग वैरयटी होती है उसी तरह आजकल गुरुओ कि भी कई श्रेणियाँ हो गई है कम से कम सौ रुपये ओर ज्यादा की कोई सीमा नही है वैसे सौ रुपये वाले को टेढ़ी नजर से ही देखेंगे पाँच सौ वाले के सामने देखेंगे दो हजार पच्चिसो देने वाले लोगों के सामने थोड़ा मुस्कराएंगे एक दो सेल्फी भी निकलेन्गे।
मित्रो इन बाबाओँ के पास कुछ नही है सदा अपने माता पिता का कहामानकर चलो जीवन मे जो मर्गदर्शक का काम करते हैं असल गुरु तो वही है सन्त कहते है कि पहला गुरु तो
माँ ही होती है
“पितुरप्यधिका माता
गर्भधारणपोषणात् ।
अतो हि त्रिषु लोकेषु
नास्ति मातृसमो गुरुः”॥
गर्भ को धारण करने और पालनपोषण करने के कारण माता का स्थान पिता से भी बढकर है। इसलिए तीनों लोकों में माता के समान कोई गुरु नहीं अर्थात् माता परमगुरु है।
“नास्ति गङ्गासमं तीर्थं
नास्ति विष्णुसमः प्रभुः।
नास्ति शम्भुसमः पूज्यो
नास्ति मातृसमो गुरुः”॥
गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं, विष्णु के समान प्रभु नहीं और शिव के समान कोई पूज्य नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं।
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