मंगलवार, 10 जुलाई 2018

गाँवो ंमे विलुप्त होता हुआ माटी का चूल्हा


राम राम सा
¤¤¤¤¤¤¤

भाईयो अपने भारतवर्ष में ऐसा कोई इन्सान नही है जिसने मिट्टी का चूल्हा नही देखा है अथवा सुना नही होगा। हालांकि उन्होंने चूल्हे का उपयोग करने का नसीब न मिला होगा वो अलग बात है।
दोस्तों एक कहावत है “घर-घर में माटी का चूल्हा” ।सैंकडों शताब्दियाँ बीत गयी चूल्हे को जलते, अब चूल्हा नहीं रहा। उसके अवशेष
ही बाकी हैं, इस मुहावरे को बदलने की जरुरत है। ये
वही चूल्हा है जिसने मानव के प्राण बचाए, संस्कृतियों एव
सभ्यता को बचाया, चूल्हा जलाकर मानव सभ्य कहलाया।
वर्तमान-भूत-
भविष्य सभी में चूल्हे का स्थान माननीय है। कैसी विडम्बना है। क्या इस मिट्टी के चूल्हे को हम
भूल सकते हैं?
रात को ही माँ चूल्हे को लीप-पोत कर सोती थी और भोर में
ही चूल्हा जल जाता था। पानी गर्म करने से लेकर भोजन
तैयार होने तक चूल्हा जलता ही रहता था। गांव में
किसी बदनसीब का ही घर होता था जिसके घरों या छप्पर से धूंआ नहीं निकलता था। मनुष्य से अधिक
चूल्हे को भूख असहनीय हो जाती थी। वह अपने प्राण होम
कर घर मालिक की जान बचाता था।
आज भी माँ सुबह उठती है और चूल्हा जला देती है। चूल्हे पर
खाना तैयार भले ही न हो लेकिन गर्म पानी तो हो जाता है।
इसमें सेंके हुए आलू,
शकरकंद, के स्वाद के तो क्या कहने। अब
तो गुजरे जमाने की याद हो गयी है। चूल्हे पर मिट्टी के तवे पर
बनी हुई रोटियों की मस्त खुश्बू रह-रह कर याद आती है।
चूल्हे का निर्माण कोई जानकार महिला ही करती है।
उसे सुंदर मांडने से सजाया भी जाता है। घर में चूल्हे स्थान
महत्वपूर्ण है और इससे महत्वपूर्ण है “पूरा घर एक ही चूल्हे
पे भोजन करता है”। चूल्हे ने परिवार का विघटन नहीं होने
दिया। नया चूल्हा रखना बहुत कठिन होता है परिवार को तोड़
कर। घर में दूसरा चूल्हा रखने से पहले लाख बार
सोचना पड़ता है क्योंकि उसके साथ बहुत कुछ बंट जाता है।
विश्वास के साथ आत्मा, कुल देवता, पीतर और भगवान भी।
इसलिए बड़े बूढे कहते थे-अपना-अपना धंधा बांट लो लेकिन
चूल्हे को एक रहने दो। संयुक्त परिवार में दो कमाने वालों के
सहारे एक निखट्टू के परिवार का निर्वहन भी यही चूल्हा कर
देता ।
 शहरों में लोग
लाखों करोड़ों रुपए कमाते हैं, उनके यहाँ चूल्हा नहीं जलता।
गाँव में 100 रुपए रोज कमाने वाले के यहाँ भी चूल्हा जलता है।
इसका मतलब यह नहीं है कि शहरों में खाना नहीं बनता। गैस
या बिजली हीटर चलता है खाना बनाने के लिए। अब एक चूल्हे
के 10 गैस सिलेंडर हो गए हैं।गैस ने माटी के चूल्हों को अपनों से दूर कर दिया। चूल्हा बंटने के साथ लोगों के मन
भी बंट गए। दूर की राम-राम भी खत्म हो गयी है। चूल्हे ने
जिस परिवार को बांध रखा था वह अब खंड-खंड हो गया। कोने
में पड़ा हुआ चूल्हा अपनी बेबसी पर सिसक रहा है।


1 टिप्पणी: