मित्रो म्हें ईस्कुल मे पढतौ जद म्हारे गांव सिणली मे पांचवी तक पढाई ही अर लगटगे एक सौ बीस तक टाबर पढता हा दो मास्टर जी हा एक रो नाम श्रीमान कानसिन्ह जी सिसोदिया व दुसरा श्रीमान रामेस्वर लाल जी (दरजी) राकेशा हो । श्रीमान कानसिंह जी शादीशुदा हा श्रीमान रामेस्वर लाल जी कुँवारा हा । सिनली गाँव मे दौनु मास्टर्जी साथे परका बा मालवी रे घरे रेवता । छुट्टी हुवण रे बाद खानो बणावण मे म्हें आठ-नौ टाबरिया बारी-बारी सूँ मास्टर जी रो पुरो सहयोग करता अर मास्टरजी कदैई कदैई तंज कसता हा के खानो बनावनो सीख लो आगे बहुत काम आवेला अर म्हें मास्टर जी रे सामी बोल तो नी सकता पण मन ही मन मुलकता अर सोसता कि मास्टर जी कुँवारा तो थे हो म्हांनै तो चार साल रा हा जद ही परणाय दिया ... । खानौ तो बीनणी बणासी......। म्हें तो मौज करसा .... पर मास्टर जी री कयोडी एक एक बाता आज भी काम आवे है.... । बै आपारे खातिर कित्ती कौशिश करता हा । उणा री बाता रा बखाण कराजीतता ही कम है । आज कैवनिया नी रिया है ....। थोड़े समय रे वास्ते म्हाने श्रीमान सुखदेव जी चारण , श्रीमान कानसिन्ह जी बडलिया और श्रीमान भंवर सिंह जी राजपुरोहित सुभदन्ड भी पढ़ाई कारवाई ही । आजकल रा मास्टरजी ने एक कक्षा रा टाबरा रो नाम याद नी रैवे है। पण म्हारा गुरुजी ने तो पूरी स्कुल रे टाबरा रो नाम व बाप रो भी नाम याद हो और पूरी पहचाण भी ही अगर कोई टाबर किणी तरह सूँ गलती कर देवतो तो घर ताईं शिकायत करण ने गुरुजी खुद जावता हा । लेकिन आज बो जमानो बीत गयौ ।ईस्कुल मे तो डरता ही हा पण छुट्टी रे बाद भी ध्यान राखनौ पडतो हो के कही मास्टर जी गलती करता देख ना ले ।
म्हें स्कुल जावतो जद ईस्कुल की आधी छुट्टी मे कोई भी रे घर जायने दोपारो कर लेवतो हो गांव मे कुण भी ना नही कैवतो और आज किणी रे घर मे एक गिलास पाणी पिवणौ भी दौरो हुगो ।
एक बार री बात है म्हें तीसरी मे पढतौ हो जद री बात है। एक दिन सुबह रो कलेवो करियौड़ौ नी हो इस्कुल मे भूख लागगी उन्हाले रा दिन हा। इस्कूल में आधी छुट्टी होंवतांईं म्हूं रोटी खावण ने ढाणी गयौ ढाणी इस्कुल सूँ थोड़ी दूर ही इण खातिर दौड़यो दौड़यो गयौ हो। दोड़ण रै कारण ऊमस सूँ डील माथै पसीनौ आ ग्यौ। म्हें म्हारौ कमिजीयौ उतार'र ओटिये माथै नाख दियौ अर उतावळै-उतावळै मे रोटी खावण लागग्यौ कै कठैई मोड़ौ ना हु ज्यावे । ढाणी म्हारी काकी व दादी ही। काका रौ नूंवौ- नूंवौ ब्याव होयोड़ौ हो। काकी गाभा धोंवती-धोंवती म्हारलौ कमिजीयौ काइंठा कद
ओटिये ऊपर सूँ लेयगी। म्हूं रोटी खांवतांईं कमिजीयौ ढूंड्यौ। अठी बठी देख्यो-दादी ने भी पुछूंयो म्हारौ कमिजियो कठै है । कठैई वितौले रे साथे उड़ तो नी ग्यो सगले जगा देख्यो पण नजर नी आयो । मन्नै घबराहट सी होवण लाग्गी......म्हूं झुंझळांवतौ थको बोल्यौ.....अरै मेरौ कमिजीयौ कठीणे गयौ रे थोड़ी देर पैली खोल'र ओटिये माथै नाख्यौ हो
मन्नै इस्कूल नै मोड़ौ होवण लागर्यौ है.......।
जदी म्हारली दादी बोली के, 'तेरी काकी नै पूछ दैखाणी .....।'
म्हूं भाग्यौ-भाग्यौ काकी कन्नै जा'र पूछ्यौ, 'काकी मेरौ कमिजीयौ देख्यौ के?'
बौ है के?.....तणी कानी हात करतां थकां काकी बोली।
म्हूं देख्यौ कै कमिजीयौ तो तणी माथै सूकण लागरैयो है.....।
मन्नै बड़ी रीस भी आई .....पण नंूवीं-नंूवीं आयोड़ी काकी नै काई कैवंू!
मेरौ चे'रौ पढ'र काकी मुळकती सी बोली, कोई और पै'र ज्यावौ। इत्तौ कै'र बा तो आपरै काम लागगी।
अबै बींनै म्हूं के केऊं......दूजौ कोई साइज रौ कमिजीयौ कोइनी हो... जिकौ इस्कूल पै'र चल्यौ जाऊं। अेक कानी कमीजीये आळी परेस्यानी अर दूजै पासै गुरूजी री मार रौ डर। कोई टाबर बिना मतलब इस्कूल स्यूं घरे रैज्यांवतौ तो मास्टर जी डण्डा सूँ हतालिया सुजा देंता...कूट-कूट'र मूंज बणा देंता..।
म्हूं उणरी मार स्यूं डरतौ उघाड़ौई चाल पड़्यौ इस्कूल कानी। इस्कूल में बड़तांईं गुरजी री निजर मेरै माथै पड़ी। बै' मन्नै देखतांईं थोड़ा रीसां में बोल्या, अरै कुण गुमाना..।
'हां सा।'
'हां सां रा बच्चा औ काइँ सांग कर राख्यौ है रै ?'
गुरुजी, कमिजीयौ तो मेरी काकी धो दियौ जी । म्हूं सोच्यौ कै इस्कूल नीं गयौ तो गुरुजी मारैगा इण कारण म्हूं उघाड़ौई आ ग्यौ जी।
गुरुजी' रीसां बलता धमकांतां बोल्या, जा गीलौई पैरिया । सरम कोनी आवै इस्कूल में र्इंयांईं आ ग्यौ ।
म्हूं मन ई मन बोल्यौ, ईंयांईं कठै आ ग्यौ, चड्डी तो पै'र राखी है... पण गुरूजी ने बोल'र कैणै री हिम्मत नीं होई।
खड़्यौ-खड़्यौ के सोचै जा गीलौई पैरिया जा । बां' रीसां में कैयौ।
अर म्हूं कमिजीयौ लेण नै घर कानी पासौ भाग्यो ।
रस्तै में जावता जावता कदी गुरजी माथै रीस आवैई तो कदी काकी पर घरां आयौ तणी स्यूं कमिजीयौ उतार'र पै'रण लाग्यौ तो काकी बोली, गमना जी ईंयां काइँ करो..! कमिजियौ तो गील्लौ है नीं ,,,,!
गील्लौ तो मन्नैई दीखै ••म्हूं कमिजीयौ पैरतौ - पैरतौ बोल्यौ, और के करूं तो...!
काकी मेरै कन्नै आ'र बोली, ल्यावौ मन्नै द्यौ.......चूल्है री आंच में थोड़ौ सुकाय दु ।
रैवणदे काकी मन्नै मोड़ौ होवै..। म्हूं कमिजीयौ आखरी बटण बंद करतौ बोल्यौ।
ईंयां के करौ••••गील्लौई पै'र लियौ...! गुरुजी मारैगा कौनी काइँ ...? म्हूं चूल्है री आंच में फटाक सूं सुका देस्यूं । इत्तौ कै'र काकी मेरौ कमिजीयौ खोलण लागगी••••। म्हूं पत्थर री मूर्ति दांईं खड़्यौ रैयौ •••चुपचाप••। काकी कमिजीयौ खोल'र चूल्है कानी लेयगी। म्हूं भी बींरै साथै-साथै चूल्हे रे कन्ने बैठ ग्यौ •••।
चटकौ कर काकी मोड़ौ होवै नीं ••••!
बस दो मिण्ट•••। कै'र काकी कमिजीयै नै चूल्है री आंच में सुकाण लागगी।
अर म्हूं उतावळै - मोड़ै रै चक्कर में फंूकणी ले'र चूल्है में फंूक मारण लागग्यौ। म्हूं सोच्यौ कै चूल्हौ ढंग स्यूं जग ज्यै तो कमिजीयौ चटकै सूक ज्यै। चाणचकौई चूल्हौ हबड़ दणी सी जग्यौ.......। अर कमिजीयै री अेक बाजू रबड़ दांईं भेळी होयगी.....। आ' देख'र काकी धोळी होयगी.......अर म्हूं भी देखतोई रै'ग्यौ।
काकी कदी मुळकै.......अर कदी अफसोस करै.....। बा'बोली, चूल्है में फंूक नीं मारता तो औ कमिजीयौ ईंयां कोनी होंवतौ......।
तो अबै .....के पै'र जाऊं मैं?
कमिजीयै नै चोखी तरियां खोल'र देखतां थकां काकी बोली, अेक इलाज हो सकै.....। देखंू दिखाण..। इत्तौ कै'र काकी आयरै कानी चाल पड़ी।
म्हूं चुपचाप बींरै लारै-लारै.....। मन्नै घबराहट सी आण लागगी। म्हूं बोल्यौ, काकी, मन्नै मोड़ौ होण लागरयौ है नीं...!
अेक मिण्ट रुकौ.....।
अर बण कतरणी ले'र कमिजीयै री दोनूं बाजुआं नै आधी-आधी काट'र बराबर-बराबर कर दी। पछै मन्नै कमिजीयौ पकड़ांवती बोली, अबै ठीक है नी......?
म्हूं के कैवै हो.....। फटाईफट गळ में कमिजीयौ घाल'र दौड़ पड़्यौ इस्कूल कानी गयौ । कै कठैई मोड़ौ होग्यौ •••तो गुरुजी डण्डा सूँ मार ल्यैगा । पण इस्कुल जाता ही साथी टाबरीया भी खूब हँसिया हा । इस्कुल छुट्टी रो टैम भी हुगो और पासौ ढाणी रवाना हुगो उणरे बाद ढाणी रोटी जिमण ने कम ही जावतो हो। एक बाटौ अर गुड़ इस्कुल रे थैला मे घाल अर साथै ही ले जावतौ हो और वो भी ईस्कुल री आधी छुट्टी सूँ पैली ही पुरो कर देवतौ हो•••••• ।
जद कदैई मेहमान आवता जद मास्टर जी रे चाय भी म्हें बणावता हा दुध दही रो खर्चो मास्टर जी ने करण जरुरत नी ही टाबरिया बारी बारी लौटो भर नै दुध लै आवता हा एकर काई हुयौ के मेहमान दो बार आयगा चाय बणावण रो नम्बर म्हारौ हो म्हे दो जणा ईस्कुल रे लारे कमरो हो जठै चाय बणावण गया एक म्हे एक मगजी हिराजी काग रे मगजी चाय चौखी घणी बनावतौ म्हारौ कोम चूल्हो चिल्गावणो हो चाय बाणावता म्हारी नजर लहसुन व रातौडी मिर्चो री बनायोड़ी चटनी माथे पड़ी भूख तो लाग्योड़ी ही.... चटनी देख अर मुण्डा मे पोन्णी आय ग्यो म्हें सोसियो चाय बणे जित्ते एक रोटी अर चटनी खाय लूं ........एक कव्वौ लेय अर दुजौ कव्वौ मुण्डा मे घालण सूँ पैली मास्टर जी हाकौ कर दियो ......अरे .....हाल ताईं काई कर रैया हो . .. मास्टर जी रो हाकौ सुणता ही जल्दी रे चक्कर मे घबराहट सूँ दुजुड़ो कव्वौ वाट्की छोड़ अर सिधो दुध रे लौटा रे माय घाल दियो । अबे दुध मे मिर्चो हुयगी । मास्टर जी रो डर भी हो म्हाने घबराहट सूँ पसिनौ पसिनौ हुयगो। अर मगजी ने उपाय निजर आ ग्यो अर म्हने कैयौ के जलदी सूँ लौटो वाड़ ढौल दो केय र जोर सूँ हाकौ करियो मास्टर जी.................. दुध... फाटगो अर फाट्यौड़ौ दुध तो वाड मे ढोलिजै....मास्टर जी विचार मे पड़ ग्या 12 ब्ज्या पैली दुध कीकर फाटगो .........तो मगजी बड़ा ही उस्ताद हा मगजी कयो के मास्टर जी जण आज दुध लायो उणरी गाय तुरत री ब्याहयोड़ी है । तो दुध तो फट ज्यावे। अबे मास्टर जी भी म्हारा गुरु हा तो चैलो रा लखण जाणता हा अर गाँव रा आवता जावता बुजुर्गो ने पुछयो के तुरत ब्यायोहोड़ी गाय रो दुध किता दीनो ताईं फाटे तो किणी दस दिन तो कीणी पन्द्रह दिना री बात कही । शाम रा छुट्टी रे बाद म्हे भी मास्टर जी साथे घर ग्या हा । जितेक ने सामने प्रभुराम जी मालवी आवता दिख ग्या अर प्रभु राम जी मास्टर जी ने रामा-श्यामा करीया अर बोल्या मास्टर जी रोहिसा खुर्द गांव एक दरजीयो रे टाबरीयो है आप कैवो तो ....... इत्ती बात कैवता ही मास्टर जी कैयौ के प्रभू जी घरे चालो चाय बणावा ......!! चाय री बात कैवता ही प्रभु जी व म्हे सब जणा घरे आय ग्या । मास्टर जी कैयौ के प्रभु जी इस्कुल मे चाय नी बणाई आज टाबरीया सुवाडी गाय रो दुध लायो हो बो फाटगो........ इत्तो कैवता ही प्रभुजी बोल्या के पुरा सिणली गाँव रे मायने तो दो महिना हुयगा कोई चौधरियों रे गाय भेंस नी व्याही तो सुवाड़ौ दुध कीकर हुयगो.....! प्रभु जी बोल्या .... मास्टर जी इस्कुल मे दुध फाटो नी होवेला बागड़ बिल्ला गटक दियो वैला और म्हारी तरफ इसारो कर ने कैयौ के ओ रोजीना किनैई न किनैई घर सूँ आतणी सूँ दही खाय नै जावतो रे ...... तो आपरे एक लौटो दुध तो पियगो होवैला। मास्टर जी म्हारे सामी देख र आन्खया दिखावता थका बोल्या..... काइँ रे ऐ प्रभुजी काई कैवे है ...... गाँव मे इण दिना कोई गाय भेंस नी व्याही तो दुध सुवाड़ो कीकर हुयगौ। म्हे डरतौ डरतौ बोल्यो..... मास्टर जी दुध गर्मी सूँ भी फाट सके कोई छाछ छान्टे सूँ भी फाटगो वैला । ईणमे म्हारौ कोई दोस नी है । मास्टर जी झट सूँ बोल्या...... दोस थारौ कौनी म्हारौ है जो थाने चाय बणावण सारू भेज्या हा । इण बात ने मास्टर जी तीन चार दिना ताईं एक दुजा पूछ अर सच उगलवा दियो । आखिर मै सच बतावणौ पड़ीयौ.....। मित्रो आज तो इस्कुल री दौ बाता याद आई ऐड़ी तो घणी बाता है । पण समय रो ध्यान राखनौ पड़े ।
गुमना राम पटेल सिनली