गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

इस्कुल रो बखत

।।  राम राम सा ।।
मित्रो म्हें ईस्कुल मे पढतौ जद म्हारे गांव  सिणली मे पांचवी तक पढाई ही अर  लगटगे एक सौ बीस तक टाबर पढता हा दो मास्टर जी हा एक रो नाम श्रीमान कानसिन्ह जी सिसोदिया व दुसरा श्रीमान रामेस्वर लाल जी (दरजी) राकेशा हो । श्रीमान कानसिंह जी शादीशुदा हा श्रीमान रामेस्वर लाल जी कुँवारा हा । सिनली गाँव मे दौनु मास्टर्जी साथे परका बा मालवी रे घरे रेवता ।  छुट्टी हुवण रे बाद  खानो बणावण मे म्हें  आठ-नौ टाबरिया बारी-बारी सूँ  मास्टर जी रो पुरो सहयोग करता अर मास्टरजी कदैई कदैई तंज कसता हा के खानो बनावनो सीख लो आगे बहुत काम आवेला अर म्हें मास्टर जी रे सामी बोल तो नी सकता पण  मन ही मन मुलकता अर सोसता कि मास्टर जी कुँवारा तो थे हो म्हांनै तो चार साल रा हा जद ही परणाय दिया ... । खानौ तो बीनणी बणासी......। म्हें तो मौज करसा .... पर मास्टर जी री कयोडी एक एक बाता आज भी काम आवे है.... । बै आपारे खातिर कित्ती कौशिश करता हा । उणा री बाता रा  बखाण कराजीतता ही कम है ।  आज कैवनिया नी रिया है ....।   थोड़े समय रे वास्ते म्हाने  श्रीमान सुखदेव जी चारण , श्रीमान  कानसिन्ह जी बडलिया और श्रीमान भंवर सिंह जी राजपुरोहित सुभदन्ड भी पढ़ाई कारवाई ही ।  आजकल रा मास्टरजी ने एक कक्षा रा टाबरा रो नाम याद नी रैवे है। पण म्हारा गुरुजी ने तो पूरी स्कुल रे टाबरा रो नाम व बाप रो भी नाम याद हो और पूरी पहचाण भी ही अगर कोई टाबर किणी तरह सूँ गलती कर देवतो तो घर ताईं शिकायत करण ने गुरुजी खुद जावता हा । लेकिन आज बो जमानो बीत गयौ ।ईस्कुल मे तो डरता ही हा पण छुट्टी रे बाद भी ध्यान राखनौ पडतो हो के कही  मास्टर  जी गलती करता  देख ना ले ।
म्हें स्कुल जावतो जद ईस्कुल की आधी छुट्टी मे कोई भी रे घर जायने दोपारो कर लेवतो हो गांव मे कुण भी ना नही कैवतो और आज किणी रे घर मे एक गिलास पाणी पिवणौ भी दौरो हुगो । 
एक बार री बात है म्हें तीसरी मे पढतौ हो जद री बात है। एक दिन सुबह रो कलेवो करियौड़ौ  नी हो इस्कुल मे भूख लागगी  उन्हाले रा दिन हा। इस्कूल में आधी छुट्टी होंवतांईं म्हूं रोटी खावण ने ढाणी  गयौ ढाणी इस्कुल सूँ थोड़ी दूर ही इण खातिर दौड़यो दौड़यो गयौ हो। दोड़ण रै कारण ऊमस सूँ  डील माथै पसीनौ आ ग्यौ। म्हें म्हारौ कमिजीयौ उतार'र ओटिये  माथै नाख दियौ अर उतावळै-उतावळै  मे  रोटी खावण लागग्यौ  कै कठैई मोड़ौ ना हु ज्यावे । ढाणी म्हारी काकी व दादी ही। काका रौ नूंवौ- नूंवौ ब्याव होयोड़ौ हो। काकी गाभा धोंवती-धोंवती म्हारलौ कमिजीयौ काइंठा  कद
ओटिये ऊपर सूँ  लेयगी। म्हूं रोटी  खांवतांईं कमिजीयौ ढूंड्यौ। अठी बठी  देख्यो-दादी ने भी पुछूंयो  म्हारौ कमिजियो  कठै है ।  कठैई वितौले रे साथे उड़ तो नी ग्यो सगले जगा  देख्यो पण नजर नी आयो   । मन्नै घबराहट  सी होवण लाग्गी......म्हूं झुंझळांवतौ थको बोल्यौ.....अरै मेरौ कमिजीयौ कठीणे  गयौ रे  थोड़ी  देर पैली  खोल'र ओटिये माथै नाख्यौ हो
मन्नै इस्कूल नै मोड़ौ होवण लागर्यौ है.......।
जदी म्हारली दादी बोली के, 'तेरी काकी नै पूछ दैखाणी .....।'
म्हूं भाग्यौ-भाग्यौ काकी कन्नै जा'र पूछ्यौ, 'काकी मेरौ कमिजीयौ देख्यौ के?'
बौ है के?.....तणी कानी हात करतां थकां काकी बोली।
म्हूं देख्यौ कै कमिजीयौ तो तणी माथै सूकण लागरैयो है.....।
मन्नै बड़ी रीस भी आई .....पण नंूवीं-नंूवीं आयोड़ी काकी नै काई कैवंू!
मेरौ चे'रौ पढ'र काकी मुळकती सी बोली, कोई और पै'र ज्यावौ। इत्तौ कै'र बा तो आपरै काम लागगी।
अबै बींनै म्हूं के केऊं......दूजौ कोई साइज रौ कमिजीयौ कोइनी हो... जिकौ इस्कूल पै'र चल्यौ जाऊं। अेक कानी कमीजीये आळी परेस्यानी अर दूजै पासै गुरूजी री मार रौ डर। कोई टाबर बिना मतलब इस्कूल स्यूं घरे रैज्यांवतौ तो मास्टर जी डण्डा सूँ हतालिया सुजा  देंता...कूट-कूट'र मूंज बणा देंता..।
म्हूं उणरी मार स्यूं डरतौ उघाड़ौई चाल पड़्यौ इस्कूल कानी। इस्कूल में बड़तांईं गुरजी री निजर मेरै माथै पड़ी। बै' मन्नै देखतांईं थोड़ा रीसां में बोल्या, अरै कुण  गुमाना..।
'हां सा।'
'हां सां  रा बच्चा  औ काइँ  सांग कर राख्यौ है रै ?'
गुरुजी, कमिजीयौ तो मेरी काकी धो दियौ जी । म्हूं सोच्यौ कै इस्कूल नीं गयौ तो गुरुजी मारैगा  इण कारण म्हूं उघाड़ौई आ ग्यौ जी।
गुरुजी' रीसां बलता धमकांतां बोल्या, जा  गीलौई पैरिया । सरम कोनी आवै  इस्कूल में र्इंयांईं आ ग्यौ  ।
म्हूं मन ई मन बोल्यौ, ईंयांईं कठै आ ग्यौ, चड्डी तो पै'र राखी है... पण गुरूजी ने बोल'र कैणै री हिम्मत नीं होई।
खड़्यौ-खड़्यौ के सोचै  जा गीलौई पैरिया जा । बां' रीसां में कैयौ।
अर म्हूं कमिजीयौ लेण नै घर कानी पासौ भाग्यो ।
रस्तै में जावता जावता कदी गुरजी माथै रीस आवैई तो कदी काकी पर         घरां आयौ तणी स्यूं कमिजीयौ उतार'र पै'रण लाग्यौ तो काकी बोली, गमना जी  ईंयां काइँ  करो..! कमिजियौ तो  गील्लौ है नीं  ,,,,!
गील्लौ तो मन्नैई दीखै  ••म्हूं कमिजीयौ पैरतौ - पैरतौ बोल्यौ, और के करूं तो...!
काकी मेरै कन्नै आ'र बोली, ल्यावौ मन्नै द्यौ.......चूल्है री आंच में थोड़ौ सुकाय दु ।
रैवणदे काकी मन्नै मोड़ौ होवै..। म्हूं कमिजीयौ आखरी बटण बंद करतौ बोल्यौ।
ईंयां के करौ••••गील्लौई पै'र लियौ...! गुरुजी मारैगा कौनी काइँ ...? म्हूं चूल्है री आंच में फटाक सूं  सुका देस्यूं । इत्तौ कै'र काकी मेरौ कमिजीयौ खोलण लागगी••••। म्हूं पत्थर री मूर्ति दांईं खड़्यौ रैयौ •••चुपचाप••। काकी  कमिजीयौ खोल'र चूल्है कानी लेयगी। म्हूं भी बींरै साथै-साथै चूल्हे रे कन्ने बैठ ग्यौ •••।
चटकौ कर काकी मोड़ौ होवै नीं ••••!
बस दो मिण्ट•••। कै'र काकी कमिजीयै नै चूल्है री आंच में सुकाण लागगी।
अर म्हूं उतावळै - मोड़ै रै चक्कर में फंूकणी ले'र चूल्है में फंूक मारण लागग्यौ। म्हूं सोच्यौ कै चूल्हौ ढंग स्यूं जग ज्यै तो कमिजीयौ चटकै सूक ज्यै। चाणचकौई चूल्हौ हबड़ दणी सी जग्यौ.......। अर कमिजीयै री अेक बाजू रबड़ दांईं भेळी होयगी.....। आ' देख'र काकी धोळी होयगी.......अर म्हूं भी देखतोई रै'ग्यौ।
काकी कदी मुळकै.......अर कदी अफसोस करै.....। बा'बोली, चूल्है में फंूक नीं मारता तो औ कमिजीयौ ईंयां कोनी होंवतौ......।
तो अबै .....के पै'र जाऊं मैं?
कमिजीयै नै चोखी तरियां खोल'र देखतां थकां काकी बोली, अेक इलाज हो सकै.....। देखंू दिखाण..। इत्तौ कै'र काकी आयरै कानी चाल पड़ी।
म्हूं चुपचाप बींरै लारै-लारै.....। मन्नै घबराहट  सी आण लागगी। म्हूं बोल्यौ, काकी, मन्नै मोड़ौ होण लागरयौ है नीं...!
अेक मिण्ट रुकौ.....।
अर बण कतरणी ले'र कमिजीयै री दोनूं बाजुआं नै आधी-आधी काट'र बराबर-बराबर कर दी। पछै मन्नै कमिजीयौ पकड़ांवती बोली, अबै ठीक है नी......?
म्हूं के कैवै हो.....। फटाईफट गळ में कमिजीयौ घाल'र दौड़  पड़्यौ इस्कूल कानी गयौ । कै कठैई मोड़ौ होग्यौ •••तो गुरुजी  डण्डा सूँ मार ल्यैगा   । पण इस्कुल जाता ही साथी टाबरीया भी खूब हँसिया हा । इस्कुल छुट्टी रो टैम भी हुगो और पासौ ढाणी रवाना हुगो उणरे बाद ढाणी रोटी जिमण ने कम ही जावतो हो। एक बाटौ अर गुड़  इस्कुल रे थैला मे घाल अर साथै ही ले  जावतौ हो और वो भी ईस्कुल री आधी छुट्टी सूँ पैली ही पुरो कर देवतौ हो•••••• ।
जद कदैई मेहमान आवता जद मास्टर जी रे चाय भी म्हें  बणावता हा दुध दही रो खर्चो मास्टर जी ने करण जरुरत नी ही टाबरिया बारी बारी  लौटो भर नै दुध लै आवता हा  एकर काई हुयौ के मेहमान दो बार आयगा  चाय बणावण रो नम्बर म्हारौ हो म्हे दो जणा  ईस्कुल  रे लारे कमरो हो जठै चाय बणावण गया एक म्हे एक मगजी हिराजी काग रे मगजी चाय चौखी घणी बनावतौ म्हारौ कोम  चूल्हो चिल्गावणो हो चाय बाणावता म्हारी नजर लहसुन व रातौडी मिर्चो री बनायोड़ी चटनी माथे पड़ी भूख तो लाग्योड़ी ही....   चटनी  देख अर मुण्डा मे पोन्णी आय ग्यो  म्हें सोसियो चाय बणे जित्ते  एक रोटी अर चटनी खाय लूं ........एक कव्वौ लेय अर दुजौ कव्वौ मुण्डा मे घालण सूँ पैली मास्टर जी हाकौ कर दियो  ......अरे  .....हाल ताईं काई कर रैया हो . .. मास्टर जी रो हाकौ सुणता ही जल्दी रे चक्कर मे घबराहट सूँ दुजुड़ो कव्वौ  वाट्की छोड़ अर सिधो  दुध रे  लौटा रे माय घाल दियो  । अबे दुध मे मिर्चो हुयगी । मास्टर जी रो डर भी हो म्हाने घबराहट सूँ पसिनौ पसिनौ हुयगो। अर मगजी  ने उपाय निजर आ ग्यो अर म्हने कैयौ के जलदी सूँ लौटो वाड़ ढौल दो केय र जोर सूँ हाकौ करियो  मास्टर जी.................. दुध... फाटगो  अर  फाट्यौड़ौ दुध तो वाड मे ढोलिजै....मास्टर जी विचार मे पड़ ग्या 12 ब्ज्या पैली दुध कीकर फाटगो .........तो मगजी बड़ा ही उस्ताद हा मगजी कयो के मास्टर जी जण आज दुध लायो उणरी गाय तुरत री ब्याहयोड़ी है । तो दुध तो फट ज्यावे। अबे मास्टर जी भी म्हारा गुरु हा तो चैलो रा लखण  जाणता हा अर गाँव रा आवता जावता बुजुर्गो ने पुछयो के तुरत ब्यायोहोड़ी गाय रो दुध किता दीनो ताईं फाटे तो किणी दस दिन तो कीणी पन्द्रह दिना री बात कही । शाम रा छुट्टी रे बाद म्हे भी मास्टर जी साथे घर ग्या हा ।  जितेक ने सामने प्रभुराम जी मालवी आवता दिख ग्या  अर प्रभु राम जी मास्टर जी ने रामा-श्यामा करीया अर बोल्या मास्टर जी रोहिसा खुर्द गांव  एक दरजीयो रे टाबरीयो है  आप कैवो तो ....... इत्ती बात कैवता ही मास्टर जी कैयौ के प्रभू जी घरे चालो चाय बणावा ......!! चाय री बात कैवता ही प्रभु जी व म्हे सब जणा घरे आय ग्या । मास्टर जी कैयौ के प्रभु जी  इस्कुल मे चाय नी बणाई आज टाबरीया सुवाडी गाय रो दुध लायो हो बो फाटगो........ इत्तो  कैवता ही प्रभुजी बोल्या के पुरा सिणली गाँव रे मायने तो दो महिना हुयगा कोई चौधरियों रे गाय भेंस नी व्याही तो सुवाड़ौ दुध कीकर हुयगो.....! प्रभु जी बोल्या .... मास्टर जी  इस्कुल मे दुध फाटो नी होवेला बागड़ बिल्ला गटक दियो वैला और म्हारी तरफ इसारो कर ने  कैयौ के ओ रोजीना किनैई न किनैई घर सूँ  आतणी सूँ दही खाय नै जावतो रे ...... तो आपरे एक लौटो दुध तो पियगो होवैला। मास्टर जी म्हारे सामी देख र आन्खया दिखावता थका बोल्या..... काइँ रे ऐ प्रभुजी काई कैवे है ...... गाँव मे इण दिना कोई गाय भेंस नी व्याही तो दुध सुवाड़ो कीकर हुयगौ। म्हे डरतौ डरतौ बोल्यो..... मास्टर जी दुध गर्मी सूँ  भी फाट सके कोई छाछ छान्टे सूँ भी फाटगो वैला । ईणमे म्हारौ कोई दोस नी है । मास्टर जी झट सूँ बोल्या...... दोस थारौ कौनी म्हारौ है जो थाने चाय बणावण सारू भेज्या हा । इण बात ने मास्टर जी तीन चार दिना ताईं  एक दुजा पूछ अर सच उगलवा दियो । आखिर मै सच बतावणौ पड़ीयौ.....।   मित्रो आज तो इस्कुल री दौ बाता याद आई ऐड़ी तो घणी बाता है । पण समय रो ध्यान राखनौ पड़े  ।
 
गुमना राम पटेल सिनली

ठगी बाबा व नेता

आज हमारे  देश में  करोड़ों लोग बेरोजगार हो रहे हैं, अन्न की प्रचुरता के बावजूद राजनीतिक और प्रशासनिक कुव्यवस्था से एक चौथाई आबादी रात में भूखी सो जा रही है, दवा और पर्याप्त चिकित्सा के अभाव की वजह से हजारों बच्चे मर जा रहे हैं, वहीं असामाजिक और बेईमाना बाबा और आध्यात्मिक संत जैसे समाज के परजीवी कुछ ही सालों में अरबों-खरबों के स्वामी कैसे बन जा रहे हैं? दरअसल, इस देश के समाज में व्याप्त अधिकतर जनता में फैली अशिक्षा, धर्मांधता और कूपमंडूकता आदि की वजह से लोग धूर्त बाबाओं और कपटी संतों की छल भरी बातों में फंस जाते हैं। ऐसा लगता है कि सरकार की भी यही मंशा है कि जहां तक संभव हो, इस देश के लोगों को अशिक्षित, अंधधर्मवादी और अंधभक्त बनाए रखा जाए। यही इन कथित संतों और राजनीति के आधुनिक कर्णधारों की सफलता का राज भी है।

मै थाने कैवू सायबा कोई सियाले भल आय

राम राम सा

मैं थानै कैवूं सायबा, कोई सियाळै भल आय
सियाळो फिर आवसी,जोबन फेर ना आय
थारै आयां सायबा, आ सरदी जासी भाग
रातां होसी रंगीन, कोई मनड़ौ करसी राग
घर आया थांरे सायबा,आंगण ढूकसी चाव
घिरती फ़िरती नाचसु ,मन में उठसी उमाव

राजस्थानी भाषा में

राम राम सा
भाषा छोडी, बेस छोड्या
रीत-रिवाज जात-समाज रा. .
नूवा बेस धारया
नूवे जमाने री चाल रा.
मदमाती चाल धारी
जोबनियो गरमाती चाली.
चूनगरा री हेली सामी
झाला सू बुलाती छेली
भर जोबन मे आंटी
आखड़ी उदाळ खेमली
लाज-सरम खूंटी टाँगी.
जोबनियो लूंटाती चाली.
चूनगरा रे छोरे साथे.
भाजगी उदाळ खेमली.
माइत्डा रोवे माही-माही.
कर-कर ख्यात जूने
जमाने री!
काई इस्सी हवा
चाली?
एक चूनगर एक बाम्णी
ने टोळी मे सू टाळली
जीव्त्डा हाँ,
मरये सरीखा
इस्सी उदाळ घर मे आई
हुवी घर हाण जग हँसाई
कोइ पुन्याई
आडी नी आई
जद आपे कीधा
कामडा!
किण ने देवा दोस?

राजस्थानी-भाषा दोहा

।। राजस्थानी दोहा ।।
--------------------------
आडै पौठै ढाणकी,
                                 रिन रौही रै मांय।।
खेती खातिर खेत में,
                              करसा बसता जाय।।(१)
गोल़ जावता  गाँव रा,
                              धण रै खातर सीम।।
ढांणी रैता ढंग सू,
                                दूध दही  नै जीम।।(२)
गोबर माटी गार री,
                               चंवरां भींत चुणाय।।
छजिया झूंपा खींप सूं,
                                 बाढ़ै खेत जमाय।।(३)
टूल़ै पाखी ओटियो,
                             मन सूं लियौ बणाय।।
ठाढ़ी छांया ठावकी,
                              ठरको  राख्यौ ठाय।।(४)
बकरै पाल्यै बैठकर,
                                   चरै खेत में चार।।
बैलौ लाई बैलियां,
                               बकरौ बकरी त्यार।।(५)
खेतां मतीर खावता,
                                 गुर गुलाबियौ रंग।।
चिमनी रौ कर चांदणो,
                                     ढांणी रैता ढंग।।(६)
पखाल पाणी लावता,
                                    टांकै देता ढाल़।।
एवड़ कुंडी पावता,
                               सगल़ी सार सँभाल।।(७)
टाल़ै  लाता टोगड़ा,
                              गउओं  जाता ग्वाल़।।
चउड़ा भर भर दूधरा,
                                 दुहता नैंजण टाल़।।(८)
दूध ठारता रात रौ,
                              जमांण  खातिर जोर।।
  गोरल दही बिलोवती,
                                   मकड़ी बांधै डोर।।(९)
माछर नांही होवता,
                                  सोता माँचौ ढाल़।।
गैरी आती ऊँगड़ी,
                                   ढांणी रा ए हाल।।(१०)
धवल़ रैत रा धोरिया,
                                    ढांणी ठाई खेत।।
ठसको राखै ठावकौ
                              मिनखां मिलणो हेत।।(११)
रसतै वैता रोकता,
                                जबरी जान जपान।।
गूगठ उठता गौठ रा,
                                  जानी करै बखान।।(१२)
मनवारां डोढी करै,
                                 रुकवाता पण रात।।
वंतल़ करता रात री,
                                    ढांणी रैणों भात।।(१३)
ढांणी रा ठरका घणा,
                                  ठाट बाट हर रोज।।
मारग वैता जातरू,
                                 जीमै  करता मौज।।(१४)
मनवारां डोढी करै,
                                 रुकवाता पण रात।।
वंतल़ करता रात री,
                                     ढांणी रैणों भात।।(१५)

     
2.🌹हकीकत रा दोहा🌹
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घटत घणी धर वापरी,
                             राकस धरणी खौफ।।
अबल़ा निबलां आफतां,
                          मिनखां  मिटग्यौ रौफ।।(१)
सत छोड़्यां पत जावसै,
                              अवनी पसर्यो पाप।।
करणी आपो आपरी
                            फल़ भोगो धर धाप।।(२)
ना मिनख रौ मिनखपणो,
                            नहीं मिनख मरजाद।।
मिनख'ज बिगड़ै बांदरौ,
                             आज फिरै आजाद।।(३)
आदू रीतां छोड़दी,
                             रल़पट बणिया रौल़।।
संसकार जन भूलगो,
                           मिनखां घटियौ मौल।।(४)
मिनखां सूं दिवलौ भलौ,
                               पालै उजल़ी प्रीत।।
तम भागै झट दीपतै,
                                  चालै थैटू नीत ।।(५)
लिछमी लेखा लैवती,
                           धरम करम परियांण।।
देवै धरणी धापनै,
                             खरी करै  पहचाण।।(६)
लिछमी बरगत नीत सूं,
                             करतो जग पंपाल़।।
रेवै  फिरती  रातदिन,
                            खपग्या नर भूपाल।।(७)
धनबल भुजबल धाइणै,
                              धरा बणावै धाम।।
चोरी जारी चोंचला,
                          कर कर ऊंधा काम।।(८)
दिवलौ हर घर दीपसै
                              पूजा रै परियांण।।
सगती भगती सांतरी,
                       अवनी शुभ अवसाण।।(९)
दीप जल़ै दीपावली,
                          तम रौ झटकै नास।।
सगल़ां रै सुख संपदा,
                         लिछमी रौ घर वास।।(१०)
धरणी  पर दीपावली,
                       सकल नहीं उछवास।।
अवल घणी व्है आफतां,
                         कठैक होत प्रकास।।
   
           

सोमवार, 21 अक्टूबर 2019

कपड़ा रो व्यापार 2019


। राम राम सा ।।
धीरे धीरे खतम हो रह्यो,कपड़े रो व्पापार। नगदी में लेवाल नहीं है,देता रहो उधार।
देता रहो उधार पेमेंट रो मत ना कहीज्यो,
वरना माल रिटर्न लेवण ने त्यार रहिज्यो।
वेकेसन मे व्याव आ गयौ ईद रो व्यापार मंदो चौथी मे बरखा गणी हुई दो दिन चाल्यो धन्धो ।
नवरात्रा तो सरासरी मे, अब थी दिवाली री आशा ।
बरखा बैरण रिमझिम बरसे अब तो हुवण लागी निराशा ।।
एक महीना सूं पेमेंट भेजे, टक्का काटे चार,
तीन महीना" सू भेजे वो, वेपारी साहूकार। वेपारी साहूकार,क्लेम तो देणो पड़ेला,
पेमेंट तो उण री कंडीसन सू,लेणो पड़ेला।पेमेन्ट रो फोन करो जद सामा धौंस दिखावे,
म्हे हां जद सलटायो नहीं तो,सगलो पाछो
जावे।
सगलो पाछो जावे क्वालिटी और सुधारो,
वरना आइन्दा सू बिल,मत बनाज्यो म्हारो। इतने पर भी बेचण वाला,ऊणा रे तेल लगावे, दलाला री दलाली रा,टका और भी बढ़ावे।
कहे कवि पटेल अब व्यापार कैसे चलेगा,
दिवाली रे बाद कई व्यापारीओ को बोरिया-बिस्तर,भेला करना"पड़ेला।
गुमनाराम पटेल

जोधपुर शहर की खासियत

जोधपुर स्पेसल

1-दो ब्रेड के बीच में मिर्ची बड़ा दबा के खाना यहाँ का खास ब्रेक फास्ट माना जाता है.

2-मिठाई की दूकान पर खड़े-खड़े आधा किलो गुलाब जामुन खाते हुए जोधपुर में सहज ही किसी को देखा जा सकता है.
...
3-गर्मी से बचाव के लिए चूने में नील मिला कर घर को पोतने का रिवाज़ सिर्फ और सिर्फ जोधपुर में ही है.

4-बैंत मार गणगौर जैसा त्योंहार सिर्फ जोधपुर में मनाया जाता है,जिसमे पूरी रात सड़कों पर महिलाओं का राज़ चलता है.

5-दाल-बाटी-चूरमा के लिए जोधपुर में कहा जाता है....दाल हँसती हुई,चूरमा रोता हुआ ओर्बती खिल-खिल होनी चाहिए.मतलब-दाल चटपटी-मसालेदार,चूरमा ढेर सारे घी वाला और बाटी सिक के तिडकी हुई होनी चाहिए.

6-पानी की सप्लाई शुरू होते ही घर का आँगन धोने का रिवाज़ जोधपुर में ही है.

7-हरेक गली के नुक्कड़ पर पात्र की खुली कुण्डी जोधपुर में लगभग हर जगह मिल जायेगी,जहाँ घर का बचा-खुचा भोजन गायों को डाला जाता है.

8-किसी भी काम को सीधे मना करने की आदत किसी भी "जोधपुरी" की नहीं होती.बहाने बना के टाल देंगे,मगर सीधे मना नहीं करेंगे.इस शैली के लिए यहाँ एक खास शब्द है..."गोली देना"...

9-यहाँ फास्ट फ़ूड के नाम पर पिज्जा-बर्गर से ज्यादा मिर्ची बड़ा और प्याज की कचौरी ज्यादा पसंद की जाता है.यहाँ कहा जाता है कि जोधपुर में अखबारों से भी ज्यादा मिर्ची बड़े के बिक्री होती है.

10-सड़क पर लगे जाम में फँसने के बजाय जोधपुरी लोग पतली गालियों से निकल जाना पसंद करते हैं.

11-"घंटाघर"...जोधपुर में एक ऐसी जगह है जहाँ ,जन्म लेने वाले बच्चे के सामान से ले कर अंतिम संस्कार तक का सामान मिल जाता है.

12-जोधपुर के ऑटो रिक्शा अपनी विशेष साज-सज्जा के लिए दुनिया भर में मशहूर है.

13-"के.पी."...यानि खांचा पोलिटिक्स की ट्रिक खास जोधपुरी अंदाज़ है,जिसमे भीड़ से किसी भी आदमी को सबके सामने चुप चाप अलग कोने में ले जा कर सिर्फ इतना पुछा जाता है..कैसे हो आप?
इससे उस आदमी का महत्व उस भीड़ में बढ़ा दिया जाता है..

14-जोधपुरीयंस का खास जुमला है-"कांई सा" और "किकर"..इसका अर्थ है-कैसे हैं आप और इन दिनों क्या चल रहा है.

15 -"चैपी राखो"..इस शब्द कजोध्पुर में मतलब है-जो काम कर रहे हो,उसमे जुटे रहो.

16 - मिर्ची बड़ा,मावे की कचौरी और मेहरानगढ़ पर हर जोधपुर वासी को गर्व है.

17-जोधपुर में मिठाइयों की क्वालिटी उसमे डाली जाने वाली चीजों से नहीं आंकी जाती बल्कि इस से आंकी जाती है कि उनमे देसी घी कितना डाला गया है.

18-यहाँ की परंपरा में गालियों को घी की नालियाँ कहा जाता है.तभी तो यहाँ का बशीन्दा गाली देने पर भी नाराज़ नहीं होता,क्यों कि गाली भी इतने मीठे तरीके से दी जाती है,उसका असर ना के बराबर हो जाता है.

19-जोधपुर में रोजाना ६ हज़ार किलो बेसन सिर्फ मिर्ची बड़े बनाने में खर्च होता है.

20-"संध्या काल में शुभ - शुभ बोलना चाहिए " इसीलिए यहाँ शाम होते ही लोग बड़े से बड़ा पान मुहँ में दबा लेतें है , जिससे केवल ॐ की ध्वनि ही उच्चारित हो सके...

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

राम राम सा

जैड़ी दीख वैड़ी सीख,
जैड़ी खांण वैड़ी बांण
जैडौ वास वैड़ौ अभ्यास,
जैड़ौ दीजै वैड़ौ लीजै
जैड़ी रात वैड़ा परभात,
जैड़ी करणी वैड़ी भरणी'
इण सबदों रे साथे  सभी मित्रो ने म्हाराँ  घणा -घणा रामा-सामा

राजस्थानी-भाषा के दोहे

पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार।
ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।

यदि घर में स्त्री कुनार (स्वार्थी, लोभी व मतलबी) है तो फिर बेचारा पुरूष कुछ नहीं कर सकता है। कारण, वह दो अंगुलियों जितना कपड़ा सियेगा तो कुनार चार गज कपड़ा फाड देती है। मतलब कि वह काम करने से ज्यादा बिगाड़ करती है। बचत कम और खर्चा ज्यादा करती है।

एक गांव में एक जाट रहता था। उसके कोई औलाद नहीं थी। घर में केवलवह और उसकी पत्नी दो ही जने थे। जाट स्वभाव का भोला और मेहनती था।दिन उगते ही वह अपने खेत में पहुंच जाता और दिन भर काम करता रहता था।जाटनी स्वभाव की तेज, खाने की शौकीन और बड़ी बातूनी थी। वह जाट के लिए रोटी साग बनाकर ले जाती और खुद खीर व हलुवा बनाकर खाती। एक दिन जाट सुबह जल्दी ही हल लेकर खेत जोतने गया और सूरज सिर पर आया तब तक खेत जोतता रहा। लेकिन जाटनी उसके लिए खाने का भाता लेकर नहीं पहुंची।इतने में संयोग ऐसा बना कि उसका हल टूट गया। इस कारण दूसरा हल लेने के लिए जाट को गांव में आना पड़ा। नया हल लेकर वह अपने घर गया, ताकि घर पर ही पेट भराई भी कर ले। उस सम जाटनी खीर और हलुवा बना कर तालाब पर पानी लाने के लिए गई थी। जाट भूखों मरता रसोईघर में पहुंचा तो उसे हलुवे की सुगंध आई। उसने इधर-उधर देखा तो एक बर्तन में हलुवा और एक बर्तन में खीर नजर आई। अब तो उसकी भूख दुगुनी हो गई। वह तो रसोईघर में ही जम गया और खीर व हलुवा दोनों चट कर गया। फिर नया हल लेकर खेत को वापस चलागया। पीछे जब जाटनी पानी लेकर घर आई तो उसने देखा कि रसोईघर में जूठे बर्तन पड़े हैं। वह चौंकी और उसने खीर व हलुवे के बर्तन देखे तो वे खाली थे।वह सारी बात समझ गई कि उसे यह चिंता हो गई कि उसकी पोल खुल गई, अब शाम को जाट घर आएगा तो न जाने क्या करेगा। भूखी मरती उसने जैसे तैसे जाट के लिए बनाई रोटियां खाई और फिर गांव में निकल गई। गांव का ठाकुर पिछले कई महीनों से बीमार था। वैद्य-हकीम इलाज कर कर के थक गए, लेकिन ठाकुर ठीक नहीं हुआ। आज ठाकुर कुछ ज्यादा ही बीमार था और लोग जगह-जगह ठाकुर की बीमारी की बातें कर रहे थे। जब जाटनी ने ठाकुर की बीमारी के बारे में सुना तो अचानक उसके मन में विचार आया कि जाट के गुस्से और नाराजगी से बचने का अब यही उपाय है। और उसने वहां खड़े लोगों से कह दिया कि मेरा जाट ठाकुर साब का इलाज कर सकता है। लोगों ने जाकर रावले में बात कही तो कामदार ने तुरंत अपने आदमियों को हुकम दिया कि जाकर खेत में जाट को लेकर आओ। जब ठाकुर के आदमी खेत में पहुंचे तो जाट घबरा गया और कोई बहाना बना कर वहां से भाग छूटा। ठाकुर के आदमी पीछे दौड़े और उसे पकड़ लिया। फिर ले जाकर ठाकुर के पास हाजिर किया। ठाकुर की तबियत आज बहुत खराब थी, इसलिए वह अचेत-सा पड़ा था। जाट को कामदार ने कहाकि अब ठाकुर साहब की जिंदगी तुम्हारे  हाथ में है, तुम्हारी स्त्री ने कहा है कि तुम इन्हें ठीक कर सकते हो। जाट मन में सोचने लगा कि आज तो बुरे फंसे। फिर धीरे से बोला कि झाड़ा-झपटा तो मैं जानता हूं सो कर दूंगा, लेकिन आगे तो राम रखवाला है। इतना कहकर जाट ने एक नई बुहारी मंगवाई और हाथ-मुंह धोकर झाड़ा डालने लगा। इतने में जाटनी भी वहां आ गई। जाट ने उसकी ओर कठोर नजर से देखा और फिर बुहारी ठाकुर के शरीर पर फटकारता हुआ मन में गुनगुनाने लगा कि - क्यों हल टूटे यों घर आऊं, क्यों इस रांड की खीर खाऊं, क्यों ठाकुर को वैद कहाऊं, क्यों इस रगड़े में फंस जाऊं, सहायता करो मेरे गोगा पीर, कभी न खाऊं इस रांड की खीर। जाट को झाड़ा डालते आधा घंटा हुआ कि ठाकुर ने आंखें खोली। जाट के मन में थोड़ी हिम्मत आई और वह जोर-जोर से झाड़ा डालने लगा।कुछ देर बाद ठाकुर ने पानी मांगा तो सभी बहुत प्रसन्न हुए और जाट से कहने लगे कि महाराज, आप तो साक्षात् भगवान के अवतार हो। आप ठाकुर साहब को अवश्य ठीक कर देंगे। जाट तो अब झाड़ लेकर शुरू हुआ, सो झाड़ा डालता हीगया, डालता ही गया। धीरे-धीरे ठाकुर को पूरा होश आ गया। उन्होंने जाट की ओर देखते धीरे-धीरे कहा कि महाराज, अब मेरे जीव को थोड़ा आराम है। मेरे लिए तो आप भगवान हो। उम्र के ये दिन आपके दिए ही हैं। ठाकुर को होश आनेका समाचार अब रावली ड््योढी में पहुंचे तो ठकुरानी की खुशी का पार नहीं रहा।उसने रावले में घी के दीप जलाए। एक प्रहर रात बीती तब तक तो ठाकुर ने पलंगही छोड़ दिया और उठने-बैठने योग्य हो गए। सुबह जब ठाकुर नहा-धोकरदरीखाने पहुंचा तो गांव के सारे लोग इकट्ठे हो गए। हरेक की जुबान पर जाट का नाम था। ठाकुर ने जाट-जाटनी को बुलाया। दोनों का बड़ा समान किया और अच्छी भेंट देकर रवाना किया। घर जाने पर जाटनी बोली कि देखा मेरी खीर का कमाल? जाट ने कहा कि यह तो गोगा पीर ने मेरी लाज रखली, अन्यथा तूने तो मुझे पिटवाने में कोई कसर नहीं रखी थी।

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

रुपाजी तरक (आन्जणा) किलवा

।। राम राम सा ।।
राजस्थान के जालोर जिले की सांचौर तहसील से लगभग दस किलोमिटर दुर एक ऐसा ऐतिहासिक गांव जो ऑजणा चौधरी समाज के पूर्वजो के ऐतिहासिक समाज सुधारक कार्यो से प्रसिद्द है।
उसे आन्जणा समाज मे हर कोई जानता ही है जिसका नाम  किलवा गाँव है

कलबी समाज के सर्वप्रथम समाज सुधारक रूपाजी तरक ने समाज सुधार मे ऐसे ऐतिहासिक कार्य किये जिससे कलबी समाज बहुत ही अच्छी सभ्यता वाले समाजो मे प्रसिद्ध हुआ।

ऐतिहासिक कार्य आज भी धरातल पर बोल रहा है ऐसे ऐतिहासिक कार्यो की पहचान आज आँजणा पटेल चौधरी के पुरखो की राव द्वारा नामों की पोथी (राव नामो वाचे ) पढते समय सबसे पहले रूपाजी तरक के नाम से समाज का इतिहास मालुम पङता है समाज में उस समय मारवाङ के रियासतों के सहयोग से अपनी ज्ञान रूपी गंगा को प्रवाहित कर समाज के हजारों कन्याओं का विवाह रचाया सोने रो टको देकर सारों रों सुख कियो हो  ऐसे रूपाभाई तरक जिन्होंने  समाज का नाम रौसन किया हजारों बच्चियों रो भविष्य उज्जवल किया ।  आने वाली पिंडी पिंडी का सुख कर दिया।  उस दिन से आँजणा समाज में दहेज प्रथा नहीं है तूराभाट सोने का टक्का लेने के बिना कन्या विवाह नहीं करते थे इस से उस समय केई बच्चीयों का विवाह नहीं होता था ऐसी प्रथा को खत्म किया और समाज के उज्जवल भविष्य की एक नई शुरूआत की थी। तुरियो को इकट्ठा कर एक बाड़े मे बिठाकर आग लगा दी थी । किलवा में आज भी रूपाजी तरक के स्तम्भ है ।

श्री रूपाजी  तरक ने  तुरियो का नाश कर एक साथ सोलह हजार कन्याओं का विवाह रचाकर इतिहास रचा  था  राव वरजांगजी के शासन काल में किलवा  सांचौर मैं ऐतिहासिक दर्शनीय स्तम्भ मौजूद हैं ।l आज हमारे आॅजणा पटेल समाज के लिए बहुत बड़ा योगदान रहा है

आज की नई पीढ़ी व पुराणी पीढी मे बढता हुआ गैप

।। राम राम सा ।।

मित्रो अब समय के साथ आज की नई पीढ़ी और  पुरानी पीढी के बीच देखा जाये तो बहुत ही गैप बढ़ता ही जा रहा है। समय के अनुसार अगर समझा जाये तो यह बड़ी समस्या ही  है। न्यू जनरेशन की आड़  मे कोई भी आजकल बड़ों की रोक-टोक पसन्द ही नही करता।कोई बड़ों को साथ रखना ही नही चाहता। बड़े चाहकर भी अपनों को सलाह देने  का अधिकार नही रखते। और इसका परिणाम यह होता जा रहा है कि परिवार एकल होते जा रहे हैं। नयी बहु आते ही न्यारा हो जाना।  जिसका असर नई पीढ़ी (बच्चों)पर साफ दिख रहा है ।मां-बाप के नौकरी खेती व्यवसाय  करने से बच्चों कों अकेला  पडोसियो या नौकरानियों के भरोसे छोड़ा जा रहा है।
बूढे मा-बाप को पोता-पोती के सुख से वंचित हो रहें है।बहुत सी बातें बच्चे बुजुर्गों से सीखते थे उन सब से बच्चे को वंचित रखा जा रहा है।जिसका परिणाम ये हो रहा है कि बच्चों में सहनशीलता की कमी दिखाई देने लगी है।  छोटी-छोटी बातो मे गुच्छा और अपराध कर देते है ।जवान  मां-बाप को लगता है कि उन्हें घर के बड़े लोगों की जरूरत ही नही है।ये मालुम् नही  है की वो भी कल बूढ़े हो जायेंगे आज तो  उनके पास पैसे हैं तो बच्चे यूं ही पल जाएंगे।
पर एक बात  जरा सोचिए ,? उन्हे  दादा-दादी,नाना-नानी वाला प्यार  कौन देगा?
दूसरी  महत्वपूर्ण बात यह कि एकल परिवार से बड़े-बूढ़ों का अकेलापन और तनाव बढ़ता जा रहा है।
हमारे पास भी उनके लिए समय नही होता है ।हम बड़ों की नही सुनना चाहते और बच्चे हमारी नही सुनना चाहते।
हमारे पास न बड़ों के लिए समय है और न ही बच्चों के लिए।हम अपने आप में व्यस्त हैं हमें किसी के भी अपने के दुख-दर्द की नही पड़ी।आजकल आज हम नई पीढ़ी ऐसी तैयार कर रहें हैं।जो सफल तो होगी पर न उनमें संवेदनाऐ होंगी और न ही मानवीय जीवन मूल्य होंगे।आजकल सब ऑनलाईन रिलेशन बनाने में लगें हैं।जिसका परिणाम तनाव में वृध्दि और अपनों से दूरी बढ़ रही है।