।। राम राम सा ।।
मित्रो अब समय के साथ आज की नई पीढ़ी और पुरानी पीढी के बीच देखा जाये तो बहुत ही गैप बढ़ता ही जा रहा है। समय के अनुसार अगर समझा जाये तो यह बड़ी समस्या ही है। न्यू जनरेशन की आड़ मे कोई भी आजकल बड़ों की रोक-टोक पसन्द ही नही करता।कोई बड़ों को साथ रखना ही नही चाहता। बड़े चाहकर भी अपनों को सलाह देने का अधिकार नही रखते। और इसका परिणाम यह होता जा रहा है कि परिवार एकल होते जा रहे हैं। नयी बहु आते ही न्यारा हो जाना। जिसका असर नई पीढ़ी (बच्चों)पर साफ दिख रहा है ।मां-बाप के नौकरी खेती व्यवसाय करने से बच्चों कों अकेला पडोसियो या नौकरानियों के भरोसे छोड़ा जा रहा है।
बूढे मा-बाप को पोता-पोती के सुख से वंचित हो रहें है।बहुत सी बातें बच्चे बुजुर्गों से सीखते थे उन सब से बच्चे को वंचित रखा जा रहा है।जिसका परिणाम ये हो रहा है कि बच्चों में सहनशीलता की कमी दिखाई देने लगी है। छोटी-छोटी बातो मे गुच्छा और अपराध कर देते है ।जवान मां-बाप को लगता है कि उन्हें घर के बड़े लोगों की जरूरत ही नही है।ये मालुम् नही है की वो भी कल बूढ़े हो जायेंगे आज तो उनके पास पैसे हैं तो बच्चे यूं ही पल जाएंगे।
पर एक बात जरा सोचिए ,? उन्हे दादा-दादी,नाना-नानी वाला प्यार कौन देगा?
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि एकल परिवार से बड़े-बूढ़ों का अकेलापन और तनाव बढ़ता जा रहा है।
हमारे पास भी उनके लिए समय नही होता है ।हम बड़ों की नही सुनना चाहते और बच्चे हमारी नही सुनना चाहते।
हमारे पास न बड़ों के लिए समय है और न ही बच्चों के लिए।हम अपने आप में व्यस्त हैं हमें किसी के भी अपने के दुख-दर्द की नही पड़ी।आजकल आज हम नई पीढ़ी ऐसी तैयार कर रहें हैं।जो सफल तो होगी पर न उनमें संवेदनाऐ होंगी और न ही मानवीय जीवन मूल्य होंगे।आजकल सब ऑनलाईन रिलेशन बनाने में लगें हैं।जिसका परिणाम तनाव में वृध्दि और अपनों से दूरी बढ़ रही है।
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