भगवान श्री रामचन्द्र जी के १४ वर्षों के वनवास यात्रा का
प्रमाणिक विवरण !!
अब हम श्री राम से जुडे कुछ अहम् सबुत पेश करने जा रहे हैं........
जिसे पढ़ के नास्तिक भी सोच में पड जायेंगे की रामायण सच्ची हैं या
काल्पनिक ||
भगवान रामचन्द्र जी के १४ वर्षों के वनवास यात्रा का विवरण >>>>
पुराने उपलब्ध प्रमाणों और राम अवतार जी के शोध और अनुशंधानों के
अनुसार कुल १९५ स्थानों पर राम और सीता जी के पुख्ता प्रमाण मिले हैं
जिन्हें ५ भागों में वर्णित कर रहा हूँ
१.>>>वनवास का प्रथम चरण गंगा का अंचल >>>
सबसे पहले राम जी अयोध्या से चलकर तमसा नदी (गौराघाट,फैजाबाद,
उत्तर प्रदेश) को पार किया जो अयोध्या से २० किमी की दूरी पर है |
आगे बढ़ते हुए राम जी ने गोमती नदी को पर किया और श्रिंगवेरपुर
(वर्त्तमान सिंगरोर,जिला इलाहाबाद )पहुंचे ...
आगे 2 किलोमीटर पर गंगा जी थीं और यहाँ से सुमंत को राम जी ने
वापस कर दिया |
बस यही जगह केवट प्रसंग के लिए प्रसिद्ध है |
इसके बाद यमुना नदी को संगम के निकट पार कर के राम जी चित्रकूट
में प्रवेश करते हैं|
वाल्मीकि आश्रम,मंडव्य आश्रम,भारत कूप आज भी इन प्रसंगों की गाथा
का गान कर रहे हैं |
भारत मिलाप के बाद राम जी का चित्रकूट से प्रस्थान ,भारत चरण पादुका
लेकर अयोध्या जी वापस |
अगला पड़ाव श्री अत्रि मुनि का आश्रम
२.बनवास का द्वितीय चरण दंडक वन(दंडकारन्य)>>>
घने जंगलों और बरसात वाले जीवन को जीते हुए राम जी सीता और लक्षमण
सहित सरभंग और सुतीक्षण मुनि के आश्रमों में पहुचते हैं |
नर्मदा और महानदी के अंचल में उन्होंने अपना ज्यादा जीवन बिताया,पन्ना,
रायपुर,बस्तर और जगदलपुर में|
तमाम जंगलों ,झीलों पहाड़ों और नदियों को पारकर राम जी अगस्त्य मुनि के
आश्रम नासिक पहुँचते हैं |
जहाँ उन्हें अगस्त्य मुनि, अग्निशाला में बनाये हुए अपने अशत्र शस्त्र प्रदान
करते हैं |
३.वनवास का तृतीय चरण गोदावरी अंचल >>>
अगस्त्य मुनि से मिलन के पश्चात राम जी पंचवटी
(पांच वट वृक्षों से घिरा क्षेत्र ) जो आज भी नाशिक में गोदावरी के तट पर है
यहाँ अपना निवास स्थान बनाये |यहीं आपने तड़का ,खर और दूषण का
वध किया |
यही वो "जनस्थान" है जो वाल्मीकि रामायण में कहा गया है ...
आज भी स्थित है नासिक में जहाँ मारीच का वध हुआ वह स्थान मृग
व्यघेश्वर और बानेश्वर नाम से आज भी मौजूद है नाशिक में |
इसके बाद ही सीता हरण हुआ ....
जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पार हुई जो इगतपुरी तालुका
नासिक के ताकीद गाँव में मौजूद है |दूरी ५६ किमी नासिक से |
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इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया क्यों की यहीं पर मरणसन्न
जटायु ने बताया था की सम्राट दशरथ की मृत्यु हो गई है ...
और राम जी ने यहाँ जटायु का अंतिम संस्कार कर के पिता और जटायु
का श्राद्ध तर्पण किया था |
यद्यपि भारत ने भी अयोध्या में किया था श्राद्ध ,मानस में प्रसंग है
"भरत किन्ही दस्गात्र विधाना "
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४.वनवास का चतुर्थ चरण तुंगभद्रा और कावेरी के अंचल में >>>>
सीता की तलाश में राम लक्षमण जटायु मिलन और कबंध बाहुछेद कर
के ऋष्य मूक पर्वत की ओर बढे ....|
रास्ते में पंपा सरोवर के पास शबरी से मुलाकात हुई और नवधा भक्ति
से शबरी को मुक्ति मिली |
जो आज कल बेलगाँव का सुरेवन का इलाका है और आज भी ये बेर के
कटीले वृक्षों के लिए ही प्रसिद्ध है |
चन्दन के जंगलों को पार कर राम जी ऋष्यमूक की ओर बढ़ते हुए हनुमान
और सुग्रीव से मिले ,सीता के आभूषण प्राप्त हुए और बाली का वध हुआ ....
ये स्थान आज भी कर्णाटक के बेल्लारी के हम्पी में स्थित है |
५.बनवास का पंचम चरण समुद्र का अंचल >>>>
कावेरी नदी के किनारे चलते ,चन्दन के वनों को पार करते कोड्डीकराई
पहुचे पर पुनः पुल के निर्माण हेतु रामेश्वर आये जिसके हर प्रमाण छेदुकराई
में उपलब्ध है |
सागर तट के तीन दिनों तक अन्वेषण और शोध के बाद राम जी ने
कोड्डीकराई और छेदुकराई को छोड़ सागर पर पुल निर्माण की सबसे
उत्तम स्थिति रामेश्वरम की पाई...
....और चौथे दिन इंजिनियर नल और नील ने पुल बंधन का कार्य प्रारम्भ किया |
साभार :- भारत माता की जय ||
रविवार, 5 जनवरी 2020
भगवान राम चन्द्र जी के 14 वर्षो के वनवास यात्रा वर्णन
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