राम राम दोस्तों
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भाईयो पुराने जमाने की कहानी है जो मेरे दादा जी ने मुझे 1987 मे सुनाई थी जो आज याद आ गई आप भी पढने का आनन्द ले और आगे शेयर करें
"नीम न मीठा होय , सींचों गुण घीव सों।
ज्यारां पड्या स्वभाव जासी जीव सों।
" एक समय की बात है एक जोगी री कोई महात्मा सु मुलाक़ात हुई महात्मा जी रा सु विचार सुणं ने मन विचार किया के मे भी पाप सु मुक्त हो जाउँ तो वो महात्मा जी सु पुछियो महाराज मुझे भी दीक्षा देरावो महात्मा जी ने कहा ठीक है एसा करों एक बार गंगाजी जा कर पवित्र होकर आ जाओ और आज से कोइ जिव हत्या का पाप मत करना ।
जोगी महात्मा जी रो कहनो मान के गंगाजी जाकर पवित्र होकर वापस आ रेया हा तो आपरे डेरे सु थोड़ा सा दूर हा तो एक गोह दिखाई दी तो गोह ने देखता ही लारे दोड़ीया इतने मे महात्मा जी री बात याद आई मै तो गंगाजी जा कर आयो हु पाप नी करनो है इतने मे गोह बील मे घुसगी तो जोगी के पास मे एक डोंग (लकड़ी ) ही उणसु लकीर खिन्सतौ खिन्सतौ देर तक पुगो और आपरे छोरो हो जिन्णरो नामं लालियो हो
लालिया रे लोह
बिल मे वली गोह
मै तो गियौ गंग
उजलों किदो अन्ग
मैं तो देउ ना
थूँ लिन्गटि लिन्गटि जाँ
कहने का तात्पर्य यह है कि में तो गंगाजी जाकर पवित्र होकर आ गया हुँ तुम लकीर लकीर गोह के बिल तक जा कर गोह को मारकर लेकर आजा
'पाणी में पाखणा, भीजे पण छीजे नहीं।मूरख आगे ज्ञान, रीझै पण बूझै नहीं।।
गुमनाराम पटेल सिनली
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