बुधवार, 4 नवंबर 2015

" खुशबु के झोंके की तरह होती है बेटियाँ ! स्पर्श खुरदुरा हो तो रोती हैं बेटियाँ ! हीरा अगर हैं बेटा,तो मोती हैं बेटियाँ ! दो -दो कुलों को रोशन करती है बेटियाँ ! विधि का विधान है यही दुनिया की रस्म भी, मुठ्ठी भरे नीर -सी होती हैं बेटियाँ !

रविवार, 1 नवंबर 2015

Sanskar jaruri hai

आजकल तो घर घर में या फैल रही बीमारी । परणीज के आता ही बहु ,होवण लागी न्यारी ।। होवण लागी न्यारी,सासु सागे पटे कोनी । साल दो साल भी ,सासरे में खटे कोनी ।। नई पीढ़ी री बहुआ है,बे तो हर आजादी चावे । सास ससुर की टोका टाकी,बिलकुल नही सुहावे ।। बिलकुल नही सुहावे ,सुबह उठे है मोड़ी । लाज शरम री मर्यादा तो,कद की छोड़ी ।। साड़ी को पहनाओ छोड्यो, सूट चोखा लागे । जींस टॉप पहन कर घुमण ,जावे मिनख रे सागे ।। जावे मिनख रे सागे,सर ढ़कणो छूट गयो है । 'संस्कारा' सूं अब तो ,रिस्तो टूट गयो है ।। बहुआ की गलती कोनी,बेचारी वे तो है निर्दोष । बेटियां के उण माईता को ,यो है सगलो दोष।। यो है सगलो दोष,जका बेटियां ने सिर्फ पढ़ावे। घर गृहस्ती री बात्या बाने,बिलकुल नही सिखावे ।। पढ़ाई के साथ साथ, "संस्कार"भी है जरुरी । "संस्कारा"के बिना तो ,हर शिक्षा है अधूरी ।। हर शिक्षा है अधूरी,डिग्रीयांकोई काम नही आवे । बस्यो बसायो घर देखो,मीनटा में टूट जावे ।। बेटी की तो हर आदत ,माँ बाप ने लागे प्यारी । वे ही आदता बहू में होवे,जद लागण लागे खारी ।। लागण लागे खारी ,सासु भी ताना मारे । कहिं नहीं सिखायो,माईत पीहर में थारे ।। बेटी ही तो इक दिन ,कोई की बहू बण कर जावेली । मिलजुल कर रेवेली जद वा,घणो सुख पावेली ।। सास ससुर ने भी समय के सागे ढलनो पड़सी । "बेटी"-"बहू" के फर्क ने,दूर करणो पड़सी ।। समय आयग्यो सब ने ,सोच बदलनी पड़सी । वरना हर परिवार इयां ही ,टूटसि और बिखरसि । कहे कवि ",अगर बहु सुधी-स्याणी चाहो । बेटियाँ ने पढ़ाई के साथे,"संस्कार" भी सिखाओ ।। 🙈🙉🙊 🙈🙉🙊

Aaj ka fashion

जमाना ले बैठ्या.... ढोलां रा मकाना न,आरसीसी ले बैठी; रोहिड़ा र किवाड़ा न,शिशम ले बैठी; धोती हारा मोट्यारां न,जिन्स पेंट ले बैठी; चरभर हारा खेलां न,तीन-पत्ती ले बैठी; आटा हारा गुलगुलां न,बैसन हारी कचोरी ले बैठी; पढन हारा छोरां न,वाट्सएप हारी चैटिंग ले बैठी; ईस हारा मांचा न,डबल बेड ले बैठी; ऊँट गाडा री सवारी न,हीरो होंडा ले बैठी; काचरां र साग न,मिरच्यां ले बैठी; टाबरां री सेहत न,होर्लेक्स री बोतल ले बैठी; पटा हारा जांघियां न,रूपा बोक्सर ले बैठी; मुर्गा छाप पटाखां न,एक सौ बीस साउन्ड री डब्बी ले बैठी; प्याजिया हारी बुज्जी न,नेस्ले मैगी ले बैठी; गांव हारा घिन्दड़ न,बिकाऊ क्रिकेट ले बैठी; गांव हारा छोरां न,बाणीयां री छोरीयां ले बैठी; बीकानेर हारी मारवाड़ी न,वाट्सएप हारी अंग्रेजी ले बैठी, ज्यान हुं प्यारा भाया ने , लुगयां ले बैठी ||

शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

सुप्रभातम्.

जमाना ले बैठ्या.... ढोलां रा मकाना न,आरसीसी ले बैठी; रोहिड़ा र किवाड़ा न,शिशम ले बैठी; धोती हारा मोट्यारां न,जिन्स पेंट ले बैठी; चरभर हारा खेलां न,तीन-पत्ती ले बैठी; आटा हारा गुलगुलां न,बैसन हारी कचोरी ले बैठी; पढन हारा छोरां न,वाट्सएप हारी चैटिंग ले बैठी; ईस हारा मांचा न,डबल बेड ले बैठी; ऊँट गाडा री सवारी न,हीरो होंडा ले बैठी; काचरां र साग न,मिरच्यां ले बैठी; टाबरां री सेहत न,होर्लेक्स री बोतल ले बैठी; पटा हारा जांघियां न,रूपा बोक्सर ले बैठी; मुर्गा छाप पटाखां न,एक सौ बीस साउन्ड री डब्बी ले बैठी; प्याजिया हारी बुज्जी न,नेस्ले मैगी ले बैठी; गांव हारा घिन्दड़ न,बिकाऊ क्रिकेट ले बैठी; गांव हारा छोरां न,बाणीयां री छोरीयां ले बैठी; बीकानेर हारी मारवाड़ी न,वाट्सएप हारी अंग्रेजी ले बैठी, ज्यान हुं प्यारा भाया ने , लुगयां ले बैठी ||

नेता बनने का विधि

युवा नेता" बनने की विधि. आवश्यक सामग्री :- 1 SUV दस-बारह लाख की ।। सफ़ेद कलफ लगे कुर्ते-पजामे, सफ़ेद लिनेन के शर्ट पेंट ।। सोने की 2 चेन ।। सोने की अंगूठी-ब्रेसलेट।। 2 आई फोन ।। ब्रांडेड जूते-सेंडिल ।। ब्रांडेड कलाई घडी ।। 1 चश्मा Ray ban का ।। रजनीगंधा का डिब्बा ।। 4-6 जी हुजूरी करते चेले। कैसे बने - अपने SUV के नंबर प्लेट में नंबर की जगह अपनी पार्टी के झंडे का चिन्ह बनवाये और अपने 4-6 चेलो को अपनी SUV में सदैव बैठा कर रखे।। SUV में बैठ के मोबाइल कान में ही लगा के रखे।। अपनी देह को कुर्ते-पजामे और सोने के आभूषण से सुसज्जित करे।। और किसी भी एक नेता के इर्द गिर्द परिक्रमा प्रारम्भ करे। अपने नेता को प्रसन्न करने के लिए "मंच-माइक-माला"की यथासंभव ज्यादा से ज्यादा व्यवस्थाये करे । नेता जी के आगे पीछे घूमते हुए उनकी "सेवा-पूजा" करते रहे, अपने नेता जी के साथ और उनके भी नेता जी के साथ फोटो खिंचवा कर घर एवं अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान में लगावे । हर छोटे बड़े कार्यक्रम, त्यौहार, जन्मदिन पर पुरे शहर में फ्लेक्स लगवाये ।। मीडिया के लोगो से सेटिंग कर अपनी फ़ोटो अखबारो में छपाते रहे ।। समय समय पर अपने क्षेत्र में छोटे श्रेणी के सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों पर रौब झाड़ते रहे । लो जी अब तैयार हैं शहर का एक और युवा नेता।

Aapni Aapni jagah

चूलह कने जचे चिमपियो, चाकी जचे पोली में ! छपर खाट चोबारा जचे, तकियो जचे खोली में !! गाय भैंस गोर में जचे, भेड़ बकरिया टोली में ! रंग गुलाबी लागेे मुंडा पे, डोळ बिगड़ज्या होली में !! रोही में जचे कमेडी, जचे मोरियॊ बागा में ! सुई साग जचे भुणीय, रंग बिरंगे तागा में !! पान लिया पनवाडी जचे, हाथ लिवड़ा काथा में ! कांदा साथे जचे राबडी, मिसी रोटी हाथा में !! मार पलाथी जचे बाणयो, कलम चलातो खाता में ! ब्राह्मण गले जचे जनेउ, लंबी चोटी माथे में !! चंचल नार जचे झरोखेे, स्याणी नार चौके में ! बात केओ तो कणाई, पण जचे कयोड़ी मोके में !!!

"कुँवारा री पीड़"

दुनिया का सब 'कुँवारा'मिल कर, मीटिंग है बुलवाई । जा कर के 'भगवान' के आगे अर्जी एक लगाई ।। अर्जी एक लगाई, "प्रभु"म्हारी नैया पार लगावो। काई बिगाड्यो थाँ को, म्हाने क्यूँ नहीं परणावो ।। म्हे सुणी हां थारे पास, है सगळा की जोड़ी । म्हारी बारी कद आसी, म्हे कद चढ़ाला घोड़ी ।। कद चढाला घोड़ी, लुगाई म्हाने भी दिलवाओ । दुनिया ताना मारे वां को, मुण्डो बंद करावो ।। इस्यो कांई बुरो कियो जो, म्हे इतनो दुःख पाँवा । रोजीना थाँ के मिन्दर में, हाज़री लगावा ।। हाज़री लगावा , रोज चढ़ावां लाडू पेठा । धारली ढिठाई थे तो, निष्ठुर बन कर बेठा ।। पग पकड़ां 'भगवान्' थारां, अब थाँ को जिद छोड़ो । सगळा काम करा हाथां सु, रोट्यां को भी फोड़ो ।। रोट्यां को भी फोड़ो, पाँती आवे जिसी देदो । नहीं देणे री मन में है तो, साफ़ साफ़ कहदो ।। 'कुँवारा'की बात सुण कर , "भगवन" कर्यो विचार । आ सगळा की किस्मत में, कैयां कोनी 'नार' ।। कैयां कोनी 'नार', देखणा पड़ सी सगळा खाता । इत्ती बड़ी भूल कियां, कर दिनी 'बेमाता' ।। तकदीरा का पोथी पाना, सगळा सामा खोल्या । लेखा जोखा देख कर, "भगवान्"पाछा बोल्या ।। "भगवान्" पाछा बोल्या, दुःख नहीं लिखोड़ो थारे । सुख ही सुख लिखोड़ो , 'नारी' कियां लगाऊँ लारे ।। बडेरां री पुण्याई ही, थांरै आडी आई । चोखा करम करोड़ा थांकी, कोनी हुई सगाई ।। कोनी हुई सगाई , उम्र भर थे रेवोला सोरा । 'पराणोडा' ने जा कर पूछो, वे है कितना दोरा ।। पत्नी सुख ने छोड कर, सब सुख थाने मिलसो । खोटा करम करोड़ा, वा ने ही लुगायाँ मिलसी ।। वा ने ही लुगायाँ मिलसी, वे करमां रा फल भोगेला । लुगायाँ री सुणता सुणता, होजासी पूरा गेला ।। आखिर में "प्रभु"बोल्या, सुणो वचन ध्यान से म्हारा । सुख सूं जीवन जीणो है तो, रह जाया 'कुँवारा' । कहे कवि 'कुँवारा' अब राजी हो जावो । जब तक हो दुनिया में तब तक, खुल्ली मौज़ मनावो ।।

बुधवार, 7 अक्टूबर 2015

सीनली

किसी ने Google पर search किया.." सीनली " वालों को काबू मे कैसे करें." Google का जवाब आया... "औकात मे रहकर search करें.." सीनली वालो से पंगा मत लेना... क्योंकि, जिन तूफानों में लोगो के झोपड़े उड़ जाते है, उन तूफानों में तो सीनली वाले कपड़े सुखाते हैं | मेट्रो तो सीनली में भी आ जाती लेकिन... ... ... ... ... ... सीनली के लोगो ने मना कर दिया, ... ... ... ... कहते हैं ऐसी ट्रेन किस काम की जिसकी खिड़की खोल के मुंडा में गुटको रजनीगन्धा ना थूक सके । >>>

सीनली



“जहाँ बबूल वहाँ मारवाड और जहाँ आम वह मेवाड़”

“ऐसे हुआ था मेवाड़ और मारवाड में सीमा निर्धारण” मेवाड़ और मारवाड के बीच स्थायी सीमा निर्धारण महाराणा कुम्भा और जोधा के वक़्त हुआ. पर इसके पीछे की कहानी बहुत रोचक है. सीमा तय करने के लिए जोधा और कुम्भा के मध्य संधि हुई. “जहाँ बबूल वहाँ मारवाड और जहाँ आम-आंवला वह मेवाड़” की तर्ज पर सीमा निर्धारण था. क्या था बबूल और आम का अर्थ. इसे समझने के लिए संक्षिप्तता में रहते हुए इतिहास में चलते है. सन 1290 में दिल्ली में जलालुद्धीन ने खिलजी वंश की स्थापना की. उस वक्त मध्य भारत पर कब्ज़ा करने के लिए उसने अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी को मालवा पर आक्रमण के लिए भेजा. बाद में विंध्यांचल पार कर उसने देवगिरी (वर्तमान औरंगाबाद) के राजा रामचंद्र को हराया. तत्काल बाद उसने अपने श्वसुर जलालुद्दीन की हत्या कर खुद को दिल्ली का शासक घोषित कर दिया. 1310 में उसने चित्तोड़ पर आक्रमण किया. उस वक़्त चित्तोड़ पर रावल रतनसिंह (पहले मेवाड़ के शासक रावल उपाधि धारण करते थे) का शासन था. सुल्तान लड़कर नहीं किन्तु छल कर सफल हुआ. यहाँ पहले पद्मिनी की शीशे में शक्ल देखने और बाद में जौहर का वृतांत है. चित्तोड़ किले की तलहटी में स्थित एक मकबरे में 11 मई 1310 में चित्तोड़ फतह का जिक्र है. अलाउद्दीन ने चित्तोड़ अपने बेटे खिजर को दिया और चित्तोड़ को नया नाम मिला: खिजराबाद. यह वर्णन गौरीशंकर ओझा की “उदयपुर राज्य का इतिहास” में मिलता है. बाद में खिजर दिल्ली चला गया और पीछे रतनसिंह के भांजे मालदेव सोनगरा को करदाता के रूप में चित्तोड़ सौंप दिया. बाद में हम्मीर ने चित्तोड़ पर गुहिल वंश का राज पुनः कायम किया. हम्मीर सिसोद जागीर से था सो यह वंश सिसोदिया कहलाया. हम्मीर के समय से मेवाड़ के शासकों ने “राणा” उपाधि को धारण किया. हम्मीर ने मेवाड़ का पुनः उद्धार किया. इडर, बूंदी आदि को पुनः जीता. हम्मीर के बाद क्रमशः उसका पुत्र क्षैत्र सिंह और पौत्र लक्षसिंह राणा बना. लक्षसिंह राना लाखा के नाम से प्रसिद्द हुआ. लाखा के वक़्त जावर गांव में चांदी की खाने निकल आई और मेवाड़ समृद्ध राज्य बना. इसके बाद की घटना बहुत अद्वितीय घटी. मंडोर के राठोड़ चूंडा ने अपने छोटे बेटे कान्हा को युवराज बनाना चाहा, जो उस वक़्त की शासन परंपरा के खिलाफ था. चूंडा का ज्येष्ठ पुत्र रणमल नाराज होकर राना लाखा की शरण में मेवाड़ आ गया. रणमल के साथ उसकी बहन हंसाबाई भी मंडोर से मेवाड़ आ गयी. रणमल ने बहन हंसाबाई की शादी लाखा के बड़े बेटे “चूंडा” से करवाने की चाह में राणा के पास शकुन का नारियल भेजा. राणा उस वक्त दरबार में थे और उन्होंने ठिठोली में कह दिया कि उन्हें नहीं लगता कि उन जैसे बूढ़े के लिए ये नारियल आया है सो चूंडा आकर ये नारियल लेगा. मजाक में कही गयी बात से लाखा के बेटे को लगा कि राणा की अनुरक्ति हंसाबाई की ओर है. उन्होंने आजीवन कुंवारा रहने और हंसाबाई का विवाह अपने पिता से करवाने की भीष्म प्रतिज्ञा की. यह भी प्रण किया कि राणा और हंसाबाई की औलाद ही मेवाड़ की शासक बनेगी. राणा लाखा और हंसाबाई के पुत्र मोकल को मेवाड़ की गद्दी मिली. मरते वक़्त लाखा ने ये व्यवस्था की कि मेवाड़ के महाराणाओ की ओर से जो भी नियम पट्टे जारी किये जायेंगे उन पर भाले का राज्य-चिन्ह चूंडा और उसके वंशधर करेंगे, जो बाद में सलूम्बर के रावत कहलाये. चूंडा ने मोकल के साथ मिलकर मेवाड़ को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु मामा रणमल को यह डर था कि चूंडा मौका मिलने पर मोकल को मरवा देगा. उसने बहन हंसाबाई के कान भरे. हंसाबाई ने चूंडा को विश्वासघाती बताकर मेवाड़ से चले जाने का आदेश दे दिया. व्यथित चूंडा ने मेवाड़ छोड़ने का निश्चय किया किन्तु इतिहासकार लिखते है कि उसने राजमाता से कहा था कि अगर मेवाड़ में कुछ भी बर्बादी हुई तो वह पुनः लौटेगा. चूंडा अपने भाई राघवदेव को मोकल की रक्षार्थ मेवाड़ में छोड़ दिया.चूंडा के जाते ही रणमल अपने भांजे मोकल का संरक्षक बन गया. वह कई बार मोकल के साथ राजगद्दी पर बैठ जाता, जो मेवाड़ के सामंतो को बुरा लगता. रणमल स्वयं मेवाड़ का सामंत तो हो गया पर उसका पूरा ध्यान अपने मूल राज्य मंडोर की तरफ था. उसने मंडोर से राठोडों को बुलाकर मेवाड़ के मुख्य पद उन्हें दिए. राजा श्यामलदास “वीर विनोद” में लिखते है कि मेवाडी सामंतों को यह नागवार गुज़रा. उन्हें लगता था कि मेवाड़ अब मारवाड का हिस्सा हो जायेगा ! इसी दौरान जब मारवाड में उत्तराधिकार का संकट आया तो रणमल ने मेवाड़ की सेना के सहारे मंडोर पर कब्ज़ा कर लिया. एक बार मौका पाकर रणमल ने भरे दरबार में चूंडा के भाई राघवदेव की हत्या कर दी. इस दौरान गुजरात के सुल्तान अहमदशाह से युद्ध के दौरान मोकल के साथ स्व. राणा लाखा की पासबान (रखैल ) के दो बेटे चाचा और मेरा, भी मोकल के साथ हुए. युद्ध जीत लिया गया किन्तु चाचा और मेरा को यथोचित सम्मान नहीं मिला. कारण था रखैल के पुत्र होना. बाद में इन दोनों ने मोकल को धोखे से मार डाला. विविध घटनाक्रम के बाद मोकल का बेटा कुम्भकर्ण (कुम्भा) राणा बना. कुम्भा को भी रणमल का साथ मिला. किन्तु एक बार रणमल ने नशे में किसी पासबान दासी को कह दिया कि वह कुम्भा को मार कर मेवाड़ और मारवाड का शासक बनेगा. बात जब कुम्भा तक पहुंची तो उन्हें यह नागवार गुज़रा. रणमल स्थिति भांपकर चित्तोड़ दुर्ग छोडकर तलहटी में आकर रहने लगा. इसी दौरान रणमल की हत्या कर दी गई. उसका बेटा जोधा मेवाड़ से भाग निकला. बाद में मंडोर, लूनकरनसर, पाली, सोजत, मेड़ता आदि राज्य भी मेवाड़ के अंतर्गत हो गए. ऐसे में जोधा छिपते छिपाते बीकानेर के पास जाकर छिप गया. कालांतर में राजमाता हंसाबाई ने अपने पौत्र कुम्भा से भतीजे जोधा के लिए अभयदान माँगा. महाराणा कुम्भा ने वचन दिया. उसी से अभय होकर जोधा ने मडोर पुनः अपने कब्ज़े में किया. किन्तु अभयदान के चलते वह धीरे धीरे सोजत, पाली तक बढ़ आया. किन्तु जब वह मेवाड़ के परगनो पर आक्रमण करने लगा तो बात ज्यादा बढ़ गयी. कुम्भा वचन में बंधा था. यहाँ गौरीशंकर ओझा लिखते है कि एक बार जोश में आकर जोधा ने चित्तोड़ तक पर आक्रमण का फैसला लिया. वह अपने पिता की हत्या का बदला लेना चाहता था. जोधपुर के चारण साहित्य में तो यहाँ तक कहा गया है कि जोधा ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर उसके दरवाज़े जला दिए. किन्तु इतिहासकार इसे सच नहीं मानते. क्योंकि उस दौर में कुम्भा ने गुजरात, मंदसौर, सिरोही, बूंदी, डूंगरपुर आदि शासकों को हराया था. उस वक़्त मेवाड़ की सीमा सीहोर (म.प्र.) से हिसार (हरियाणा) तक थी. केवल हाडोती के रावल (हाडा) और मेरवाडा (अजयमेरू अथवा अजमेर) अपनी स्वतंत्रता अक्षुण बनाये हुए थे. जोधा द्वारा बार बार मेवाड़ के परगनो पर आक्रमण और कुम्भा द्वारा उसे कुछ नहीं कहे जाने को लेकर दोनों पक्षों के बीच संधि हुई. इतिहासकार लिखते है कि इस वक़्त जोधा ने अपनी बेटी “श्रृंगार देवी” का विवाह कुम्भा के बेटे रायमल से किया. अनुमान होता है कि जोधा ने मेवाड़ से अपना बैर बेटी देकर मिटाने की कोशिश की हो. किन्तु मारवाड के इतिहास में इस घटना का उल्लेख नहीं मिलता. मेवाड़ के इतिहास (वीर विनोद एवं कर्नल जेम्स टोड) में इस विवाह के बारे में लिखा गया है. बाद में इसी श्रृंगार देवी ने चित्तोड़ से बारह मील दूर गौसुंडी गांव में बावडी बनवाई,जिसके शिलालेख अब तक विद्यमान है. मेवाड़ और मारवाड में हुई संधि में सीमा निर्धारण की आवश्यकता हुई. तय किया गया कि जहाँ जहाँ तक बबूल के पेड है, वह इलाका मारवाड में और जहाँ जहाँ आम-आंवला के पेड हो, वह स्थान हमेशा के लिए मेवाड़ का रहेगा. यह सीमांकन प्रायः स्थायी हो गया. इस सीमांकन के बाद सोजत (मेरवाडा-अजमेर के ब्यावर की सीमा तक) से थार (वर्तमान पाकिस्तान के सिंध की सीमा तक) तक और बीकानेर राज्य से बाड़मेर तक का भाग मारवाड के पास तथा बूंदी से लेकर वागड़ (डूंगरपुर) तथा इडर से मंदसौर तक का भाग मेवाड़ कहलाया. यद्यपि मेवाड़ इस से भी बड़ा था किन्तु आम्बेर (जयपुर), झुंझुनू, मत्स्य नगर, भरतपुर आदि मेवाड़ के करदाता के रूप में जाने जाते थे. उस वक़्त मेवाड़ मुस्लिम त्रिकोण (नागौर- गुजरात-मालवा) के बीच फंसा राजपूती राज्य था. एक समय में जब कुम्भा ने मालवा की राजधानी मांडू और गुजरात की राजधानी “अहमद नगर’ पर हमला किया तो दोनों मुस्लिम शासकों ने कुम्भा को “हिंदू-सुरत्राण” की उपाधि से नवाजा. इसके शिला लेख कुम्भलगढ़ और राणकपुर के मंदिरों में मिलते है. बाद में कुम्भा के बेटे महाराणा सांगा ने जब खानवा में बाबर से युद्ध किया तो मारवाड ने मेवाड़ का बराबर साथ दिया. इस से पता चलता है कि बैर सदा नहीं रहता. जोधा ने भी मेवाड़ की ओर से आक्रमण के आशंकाएं खत्म होते ही जोधपुर नगर बसाया....!
संघ की शाखा मे जाने के लाभ - 1.सुबह जल्दी उठने की आदत पड़ती है । 2 . सुर्योदय देखने का अवसर मिलता है । 3 .शाखा मे शारीरिक और मानसिक व्यायाम करने का अवसर मिलता है । 4 . शाखा मे जाने पर तनाव और अवसाद दुर होता है । 5 .शाखा मे जाने पर नए लोगों से संपर्क होता है । 6 . शाखा मे हमारा बौधिक स्तर बढ़ता है । 7 . हमारा बोलने का ढंग और उच्चारण अच्छा होता है । 8 . हमारा आत्म विश्वास बढ़ता है । 9 . शाखा मे नियमित जाने वाले स्वयंसेवक के नैतिक ओर मानवीय मूल्यों का विकास होता है। 10 .इसमें जाने से भेदभाव और जातिवाद दुर होता है 11 . हम अनुशासन सीखते है । , @ मुझे गर्व है कि मे संघ का स्वयंसेवक हूँ ।

बुधवार, 30 सितंबर 2015

एक बुजुर्ग नाई था। एक बार एक माली उसके पास बाल बनवाने के लिये गया। बाल बनवाने के बाद जब उसने पैसे देने चाहे तो नाई ने जवाब दिया- माफ कीजिये मैं आपसे पैसे नहीं ले सकता। मैं समाज सेवा कर रहा हूँ। माली खुश होकर दुकान से चला गया। अगले दिन जब बुजुर्ग नाई अपनी दुकान पर पहुँचा तो दरवाजे पर उसने पाया- एक दर्जन खुशबूदार लाल गुलाब और साथ में एक 'धन्यवाद' कार्ड। दूसरे दिन एक हलवाई उसके पास कटिंग कराने पहुँचा। उसने भी जब कटिंग के बाद जब पैसे देने चाहे तो नाई ने पैसे लेने से इनकार कर दिया। हलवाई भी खुश होकर वहाँ से चला गया। अगले दिन जब नाई दुकान पर पहुँचा तो दरवाजे पर उसने पाया- एक दर्जन गुलाब जामुन और साथ में एक 'धन्यवाद' का कार्ड। इसी प्रकार एक दिन एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने कटिंग करवाई, पैसे देने पर नाई ने पैसे लेने से इनकार कर दिया, यह कह कर कि वह समाज सेवा कर रहा है। अगले दिन जब नाई दुकान पर पहुँचा तो जानते है, उसने दरवाजे पर क्या पाया ? ... एक दर्जन सॉफ्टवेयर इंजीनियर कटिंग का इंतजार करते हुए और सबके हाथ में फॉरवर्ड किये गए मेल के प्रिंट आऊट।

शनिवार, 26 सितंबर 2015


Rajasthani

मानसरोवर सूं उड़ हंसौ, मरुथळ मांही आयौ धोरां री धरती नै पंछी, देख-देख चकरायौ धूळ उड़ै अर लूंवा बाजै, आ धरती अणजाणी वन-विरछां री बात न पूछौ, ना पिवण नै पाणी दूर नीम री डाळी माथै, मोर निजर में आयौ, हंसौ उड़कर गयौ मोर नै, मन रौ भेद बतायौ अरे बावळा, अठै पड़्यौ क्यूं, बिरथा जलम गमावै मानसरोवर चाल�र भाया, क्यूं ना सुख सरसावै मोती-वरणौ निरमळ पाणी, अर विरछां री छाया रोम-रोम नै तिरपत करसी, वनदेवी री माया साची थारी बात सुरंगी, सुण सरसावै काया जलम-भोम सगळा नै सुगणी, प्यारी लागै भाया मरुधर रौ रस ना जाणै थूं, मानसरोवर वासी ऊंडै पाणी रौ गुण न्यारौ, भोळा वचन-विलासी दूजी डाळी बैठ्यौ विखधर, निजर हंस रै आयौ सांप-सांप करतौ उड़ चाल्यौ, अंबर में घबरायौ मोर उतावळ करी सांप पर, करड़ी चूंच चलाई विखधर री सगळी काया नै, टुकड़ा कर गटकाई अब हंस नै ठाह पड़ी आ, मोरां सूं मतवाळी मानसरोवर सूं हद ऊंची, धरती धोरां वाळी

घाघ और बदरी की कहावतें

सुकाल सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर। परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।। यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे। शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।। यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा। भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय। ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।। यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है। अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।। यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे। सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय। घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।। यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा। सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय। महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।। यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे। पूस मास दसमी अंधियारी। बदली घोर होय अधिकारी। सावन बदि दसमी के दिवसे। भरे मेघ चारो दिसि बरसे।। यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो। पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज। मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।। यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा। अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।। यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा। अकाल और सुकाल सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात। बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।। यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा। असुनी नलिया अन्त विनासै। गली रेवती जल को नासै।। भरनी नासै तृनौ सहूतो। कृतिका बरसै अन्त बहूतो।। यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी। आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत। नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।। आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा। वर्षा रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय। कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।। यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे। उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि। भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।। उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है। खनिके काटै घनै मोरावै। तव बरदा के दाम सुलावै।। ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है। हस्त बरस चित्रा मंडराय। घर बैठे किसान सुख पाए।। हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं। हथिया पोछि ढोलावै। घर बैठे गेहूं पावै।। यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है। जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावै खोय।। चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है। जो बरसे पुनर्वसु स्वाती। चरखा चलै न बोलै तांती। पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती। जो कहुं मग्घा बरसै जल। सब नाजों में होगा फल।। मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं। जब बरसेगा उत्तरा। नाज न खावै कुत्तरा।। यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे। दसै असाढ़ी कृष्ण की, मंगल रोहिनी होय। सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोय।। यदि असाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी को मंगलवार और रोहिणी पड़े तो धान इतना सस्ता बिकेगा कि कोई हाथ से भी न छुएगा। असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।। चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।। यदि असाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी। असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।। यदि आसाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा। पैदावार रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर। एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।। यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा। जोत गहिर न जोतै बोवै धान। सो घर कोठिला भरै किसान।। गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है। गेहूं भवा काहें। असाढ़ के दुइ बाहें।। गेहूं भवा काहें। सोलह बाहें नौ गाहें।। गेहूं भवा काहें। सोलह दायं बाहें।। गेहूं भवा काहें। कातिक के चौबाहें।। गेहूं पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से। गेहूं बाहें। धान बिदाहें।। गेहूं की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान होने के चार दिन बाद जोतवा देने) से अच्छी होती है। गेहूं मटर सरसी। औ जौ कुरसी।। गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है। गेहूं बाहा, धान गाहा। ऊख गोड़ाई से है आहा।। जौ-गेहूं कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है। गेहूं बाहें, चना दलाये। धान गाहें, मक्का निराये। ऊख कसाये। खूब बांह करने से गेहूं, खोंटने से चना, बार-बार पानी मिलने से धान, निराने से मक्का और पानी में छोड़कर बाद में बोने से उसकी फसल अच्छी होती है। पुरुवा रोपे पूर किसान। आधा खखड़ी आधा धान।। पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है। पुरुवा में जिनि रोपो भैया। एक धान में सोलह पैया।। पूर्वा नक्षत्र में धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा। बोवाई कन्या धान मीनै जौ। जहां चाहै तहंवै लौ।। कन्या की संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए। कुलिहर भदई बोओ यार। तब चिउरा की होय बहार।। कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है-अर्थात् वह धान उपजता है। आंक से कोदो, नीम जवा। गाड़र गेहूं बेर चना।। यदि मदार खूब फूलता है तो कोदो की फसल अच्छी है। नीम के पेड़ में अधिक फूल-फल लगते है तो जौ की फसल, यदि गाड़र (एक घास जिसे खस भी कहते हैं) की वृद्धि होती है तो गेहूं बेर और चने की फसल अच्छी होती है। आद्रा में जौ बोवै साठी। दु:खै मारि निकारै लाठी।। जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है। आद्रा बरसे पुनर्वसुजाय, दीन अन्न कोऊ न खाय।। यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा। आस-पास रबी बीच में खरीफ। नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।। खरीफ की फसल के बीच में रबी की फसल अच्छी नहीं होती।

माता पिता

संसार है सागर अगर तो माता पिता भी नाव है जिसने की माता पिता की सेवा बेडा उसका पार हैं। । जिसने दुखाइ माता पिता की आत्मा वह नर डूबता माँझ धार है।।

Ramdevji baba runusha

बाबा रामदेवजी बाबा रामदेव अेक लोकदेवता रै रूप में पुजीजै। लोक देवता अै अैड़ा, जिका कृष्ण रा अवतार मानीजै। राजस्थान रै अलावा गुजरात मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेशंजाब, इत्याद प्रदेशां मरांय ई इणां री मान्यता है। भादवै अर माघ महीणां रै चानणै पख री दसमी नै इणां रै समाधि-स्थल रामदेवरा मांय भरीजण वालै मेलां मांय न्यारै-न्यारै प्रदेशां रै जातरूवां री घणी भीड़ रैवै। बाबा रामदेव रै उपासकां में राजा-महाराजावां अर सेठ-साहूकारां सूं लेय'र साधारण सूं साधारण लोग ई सामल हुवै। हरेक गाम-नगर, बास-मुहल्ला मांय बाबा रामदेव रा उपासना-स्थल बणियोड़़ा है। इणरै अलावा लोग आप-आपरै घरां मरांय ई उणां रा 'पगलिया' थापन कर' र सुतंतर रूप सूं उपासना करै। बाबै रा भगत लोग आपरै गलां मांय चांदी या सोनै रा 'फूल' धारण करियोड़ा रैवै जिका सैज ई पिछाणिया जायै। उत्तरादै भारत मांय बाबा रामदेव ई अेकमात्र अैड़ा देवता है जिणां रै पूजा-स्थल में हिंदू-मुसलमान, सवर्ण, असवर्ण, अमीर-गरीब इत्याद रौ कोई भेद नीं है। सगलाई समान रूप सूं उणां री पूजा-अरचणा कर सकै अर अेक इज कुंडी सूं चरणाम्रत पान करै। जिण तरै हिंदू इणां नै 'बाबा रामदेव' कैय' र पुकारै, उणी तरै मुसलमाना इणां नै 'रामशाह पीर' नाम सूं संबोधित करै। पैला सूं इज प्रचलित सिद्ध संप्रदाय अर भगत कबीर रै बीच बाबा रामदेव इज अेक अैड़ा महापुरुष हुया है, जिका जात-पांत रौ भेद मिटाय'र मिनख मात्र नै समान मानण सारू जतन करिया अर वै उणमें सफल ई हुया। बाबा रामदेव रा बडेरा तुंवर अनंगपालजी दिल्ली रा छेहला तुंवर सम्राट हा। सांभर रा चौहाण उणां सूं दिल्ली रौ राज खोस लियौ हौ। सो राजा नीं रैया तुंवर अनंगपाल आपरै परिवार रै साथै दिल्ली छोड'र मौजूदा जयपुर जिलै रै त्हैत आयै 'नराणा' नाम रै गाम मांय रैवास करियौ हौ। जयपुर जलै रौ औ छेत्र आज ई पण 'तुंवर वाटी' रै नाम सूं ब तलाईजै। इणी परिवार मांय तुंवर रणसी हुया। अै आपरै बगत रै चावै संत रै रूप में ओलखीजता हा। इणां रै चमत्कारा सूं प्रबावित हुय'र अनेक लोग उणां रा अनुयायी बणग्या। कैयौ जावै के आ घटना उण बगत रै काजियां नै घणी पुरी लागी। वै इणां री शिकायत बादसा सूं करी। बादसा तुंवर रणसी नै दिल्ली बुलाया अर चमत्कार दिखावण रौ कैयौ। तुंवर रणसी अनेकूं चमत्कार बताया, जिणां सूं बादसा डरग्यौ अर आपरै आदमियां सूं इणां रौ सिर कटवाय दियौ। इण घटना रै बाद इणां रा पुत्र तुंवर अजैसी आपरै परिवार रै साथै 'नराणा' गाम छोड'र पिच्छम कानी चाल पड़िया। केई दिनां रै बाद वै मौजूदा बाड़मेर जिलै री शिव तैसील रै त्हैत आयै गाम ऊंडू-काश्मीर पूगिया। इण गाम सूं पिच्छम कानी कोई च्यार किलोमीटर री दूरी माथै अेक ब ौत बड़ौ थल है। उणनै सुरक्षा री दीठ सूं उचित समझता थकां अजैसी इणी थल रै बीच गाडियां छोडी। वरतमान में औ स्थान 'गडोथल' नाम सूं इज पुकारीजै। वांई दिनां कुंडल गाम रौ शासक बुध भाटी-पम्मौ घोरंघार शासन गमाय'र अठी-उठी लूट-खसोट कर रैयौ हो। उणरा आदमी जद इण तुंवर काफिलै नै नवौ आयोड़ौ देखियौ तौ वौ लूटण री योजना बणाई। पण जद खुद पम्मै धोरंधार रौ सामनौ तुंवर अजैसी सूं हूयौ, तौ उणरौ विचार बदलग्यौ अर वौ आपरी पुत्री 'मैणादे' या 'मेणादे' री सगाई तुंवर अजैसी रै साथै कर दी। बाबा रामदेव आं ई मैणादे री दूजोड़ी सन्तान रै रूप मांय अवतरिया। तुंवर अजैसी या अजमल नै पुत्र-लाभ घणौ बगत बीतियां हुयौ हौ। बडै पुत्र वीरमदेव रौ जनम सं. 1405 वि. नै हुयौ और छोटै पुत्र रामदेव रौ जनम वि. सं. 1409 मै चैत सुद पांचम सोवार रै दिन हुयो। रामदेव रै जनम रै बगत आखै देश री हालत कोई अच्छी नीं ही। केन्द्र मांय मुसलमानां रौ घणियाप हौ। ूजै प्रदेसां मांय छोटा-छोटा राज्य हा, जिका जरा-सीक बात सारू ई भड़क' र जुद्ध नै त्यार हुय जावता हा। राजगादी सूं हटियोड़ा-हटायोड़ा शासक लुटेरां रै रूप मांय जनता नै पीडित करता रैवता हा। धारमिक स्थिति ई अैड़ी ई ही। भांत-भांत रै अनेक पंथां सम्प्रदायां रौ बोलबालौ हौ। कीं रहसवादी मतां वाला लोगां नै घोखौ देय'र आपरै स्वारथ री सिद्धी करण में लाग्या रैवता हा। कींअेक भैरव बण'र जनता नै अणूंतौ इज दुख कष्ट दिया करता हा। वरतमान पोकरण मांय वां दिनां 'बालिनाथ' कै 'बालकनाथ' नाम रै अेक नाथ-योगी रौ आसण हौ। रामदेव इणां नै इज आपरा सतगुरु बणाया। धारमिक दीठ सूं नाथपंथ दूजै पंथां री बजाय बेसी उदार अर सन्मारग माथै चालण बालौ पंथ मान्यौ जावतौ हौ। आखै देश मांय इण पंथ री मान्यता ही। गुरु रै उपदेश मुजब रामदेव अछूतोद्धार में लागिया अर कोढी, खज, आंधा, पांगला रोगियां री सेवा करण रौ भार आपरै कंधा माथै उठायौ। तत्कालीन समाज मांय अछूतां री हालत ई बड़ी दयनीय ही। उणां नै आपरै आसरौ देवणियां री किरपा माथै निरभर रैवणौ पड़तौ हौ। रामदेव पैल परथम अेक मेघवाल जात री लड़की 'डालीबाई' नै तत्कालीन सिद्ध परम्परावां मुजब 'महामुद्रा' रै पूर में स्वीकार कर'र आपरी सहयोगिणी बणायौ। छुआछूत नै नीं मानियां वां नै आपरै सगै-संबंयिां रै कोप रो सिकार बणणौ पड्यौ। पण बाबा रामदेव इणरी परवा नीं करी अर मेघवालां नै लेय'र भजन-कीरतन करण लागिया। किणी कारणां सूं धरम-भिस्ट या समाज बारै करियोड़ै़ लोगां नै समाज मांय पाछौ सनमान दिरवावण सारू रामदेव अेक संत मत री थरपणा ई करी। इण मत मांय बिना भेद-भाव रै कोई ई सगस सामल हुय सकतौ हौ। इण धरम मांय दीक्षित सगस नै हाथ मांय 'कामड़ी' (बैंत) राखणी पड़ती ही, सो औ पंथ 'कामड़िया पंथ' रे नाम सूं चावौ हुयौ। आजकल औ पंथ अेक उपजाति रौ रूप (कामड़िया) धारण कर लियौ है। अै लोग आपरै सिर माथे भगवा रंग रौ फेंटौ-पगड़ी धारण करै अर बाबा रामदेव रौ जुम्मौ-जागरण देवै। इण पंंथ मांय धरम रे प्रचलित दस लक्षणां नै मान्यता मिलण सूं इणनै 'दसा धरम' ई कैयौ जावै। पोकरण सूं पूरब दिस कानी कोई तीनैक किलोमीटर री दूस्री माथै अेक ड़ी माथै भैरव री गुफा आई थकी है। औ भेरव (भैरव रौ उपासक) अणूंतौ ई करूर हौ। आपरै इष्ट नै प्रसन्न करण सारू औ मिनखां री बलि दिया करतौ हौ। नतीजन लोग डर परा'र पोकरण छोड दियौ। बालिनाथ रै अलावा दूजौ कोई सगस उण स्थान माथै रैवण री हिम्मत नीं कर सकै हौ। बालिनाथ खुद ई इण भैरव रै उत्पातां सूं दुखी हा। रामदेव नै जद पतौ चालियौ तौ वै इण समस्या सूं निपटण सारू कमर कसी। ऐ आपरै पराक्रम सूं भैरव नै परास्त कर्यौ। परास्त भैरव गिडगिडाय'र रामदेव सूं आपरै प्राणां री भीख मांगी। रामदवे पोकरण रै आखती-पाखती रौ आगोर उणरै विचरण सारू सुरक्षित कर दियौ अर जद तांई जीवतौ रैवै, तद तांई पोकरण रै शासन कानी सूं उणरै भरण-पोखण रौ वचन ई दियौ। इणरै बाद भैरव करूर करमां रौ परित्याक कर'र अेक साधु रौ जीवण बीतावण लागियौ। भैरव रौ आतंक खतम हुयां पुराणा लोग पाछा आय-आय'र बसण लागिया। सो पोकरण रौ उजाड़ इलाकौ भरी-पूरी बस्ती बणग्यौ अर लोग सुख सूं जीवण बितावण लाग्या। इण भांत बाबा रामदेव रै जन-हितकारी कामां अर भैरव जैैड़ै क्रूर करम वालै सगस नै सन्मारग माथै लेय आवण रै परिणामस्वरूप लोगां इणां नै अेक चमत्कारी पुरस (सिद्ध) रै रूप में मान्यता दीवी अर हजारूं लोग इणां रा भगत बणग्या। इत्तौ ई नीं, बाबा रामदेव रा उपासक इणां नै भगवान विष्णु रै दसवैं अवतार 'कल्कि' रै रूप मांय ई मानण लागिया। बाबा रामदेव नै 'निकलंक देव' रौ विरुद जीवण-काल मांय ई मिलग्यौ हौ। भाटी उगमसी, मेघवाल धारू, राठौ़ड शासक मल्लिनाथ अर उणां री जोड़ायत रूपांदे, जैसल ्‌र उणरी जोड़ायता तोलांदे, डाली बाई इत्याद उणां रै खास उपासकां मांय हा। सुचावा सांखला हड़बू बाबा रामदेव रै कैयां अस्तर-सस्तर त्याग'र अेक साधु रौ सो जीवण बितावण लागिया हा। अै ई बालिनाथ सूं दीक्षा लीवी ही। बाबा रामदेव रा अेक काका 'धनरिख' (धनरूप) नामर रा हा। जद अजमल री तुंवरावाटी रौ गाम नरेणा छोड़'र मारवाड कानी आयग्या हा, तद धनरिख जी उठै इज रैयग्या हा। अै ई अेक चमत्कारी महापुरुष रै रूप में चावा हा। अै आपरै बुढा़पै मांय बाबा रामदेव नै आपरै कनै बुलाय लिया हा। उठै गयां रै बाद बाबा रामदेव री प्रसिद्ध दिन दूणी रात चौगुणी फैलण लागी। चित्तौड़ रै महाराणा कुंभा माथेै जद गुजरातियां हमलौ करियौ, तद उपासकां जिणां रै गला मांय बाबा रामदेव रा फूल हा, महाराणा कुंभा रौ साथ दियौ। नतीजन गुजराती भागग्या। इण प्रसंग नै याद राखण सारू जीतियां रै बाद महाराणा कुंभा 'निकलंक देव मिंदर' रौ निरमाण करायौ हौ, जिण मांय घुड़सवार सगस (बाबा रामदेव) री मूरती थापना करी ही। औ मिंदर आज ई मौजूद है। पौराणिक कथानक मुजब सूरज (महाराणा कुंभा) नै जद कलिंग राक्षस (गुजराती) आपरै प्रभाव सूं आवृत्त कर लैवैला, त भगवान कल्कि (निकलंक) रूप धारण कर'र उणरौ उद्धारकरैला। ऊपरदिरीजी महाराणा कुंभा री घटना रौपाणिक कथानक सूं मेल खावै। सो बाबा रामदेव री पूरबी छेत्रां मांय ई प्रसिद्धि हुयगी अर वै निकलंक देव रै साथै-साथै 'पिछमाधिपति', 'पिछमाधीस', 'पिछम धरा रा पातसाह', 'पिछमी धणी' इत्याद विरूदां नै धारण करण लागिया। काकै धनरिख रै समाधि लियां रै बाद बाबा रामदेव पाछा आपरै इलाकै मांय आयग्या। पोकरण आयां रै बाद उमरकोट रै सोढ़ा दलैसिंघजी रू पुत्री नेतलदे रै साथै इणां रौ ब्याव हुयग्यौ। नेतलदे री कोख सूं इणां नै देवराज नाम रे पुत्र री प्राप्ति हुई। खेड़ रा राठौ़ड शासक रावल मल्लिनाथ नै बाबा रामदेव आपरा मूंडाबोला भाई मानता हा। पोकरण रौ इलाकौ मल्लिनाथ सूंआपरै रैवास सारू मांग लियौ हौ। तुंवर परिवार अठै आराम सूं रैय रैयौ हौ। पण बाबा रामदेव री गैरहाजरी में इणां रा बड़ा भाई वीरमदेव आपरी पुत्री रौ संबंध मल्लिनाथ रै पोतै (जगमाल रै बैटै) हम्मीर रै साथै कर दियौ। इणसूं चिड़'र बाबा रामदेव पोकरण छोड़'र रामदेवरा' रीनींव राखी। औ स्थान पोकरण सूं पूरबोत्तर मांय कोई 4 किलोमीटर री दूरी माथै है। पाणी री कमी मिटावण सारू अै गाम सूं पिच्छम कानी अेक तलाव रौ निरमाम करायौ, जिकौ आजकल 'राम सरोवर' रै नाम सूं जाणीजै। इणी तालाब री पाज माथै फगत तेतीस बरस री उमर में ई कीरत रा कमठाण बण'र रामसापीर वि. सं. 1442 री भादवा सुदी ग्यारस रै दिन जीवित समाधि लीवी ही। ख्यातां मांय उल्लेख मिलै के इणी स्थान माथै बाबा रामदेव रै समाधि लियां रै आठ दिन बाद सांखला हड़बू ई समाधि लीवी ही। ख्यातां मांय उल्लेख है के पैला राव जोधा रौ विचार मसूरिया नाम रै परबत माथै किलौ बणावण रौ हौ, पण अठै आखती-पाखती पाणी री कमी हुवण सूं औ विचार छोडणौ पड़ियौ। उणी बगत उण परबत माथै रैवण वालौ अेक साधु इणां नेै पचेटिया नाम रै परबत माथै किलौ बणावण री सलाह दीवी। आ बात राव जोधा नै दाय आयगी। कैवै के इणरी अेवज में वौ साधु राव जोधा सूं दो प्रार्थनावां करी। अेक तौ आ के रामदेवजी रै दरसण सारू रूणेचा जावण वाला जिका जातरू अठीनै सूं निकलै, पैला उणरै आसरम मसूरिया आवै अर दूजी आ के राज री कानी सूं साल में दो बार उणरै आसरम मसूरिया आवे अर दूजी आ के राज री कानी सूं साल में दो बार उणरै आसरम मांय भेंट भेजी जावै। राव जोधा उणां री दोनूं प्रार्थनावां स्वीकारली। इण उल्लेख सूं सिद्ध हुय जावै के राव जोधा रै किलै री नींव राखण (जेठ सुदी 11, शनिवार, वि. सं. 1515) सूंपैला बाबा रामदेव समाधि लेय चुकिया हा अर उणां री याद में जातरू दरसण नै आवण लागया हा। उल्लेखजोग है के मसूरिया परबत माथै बाबा रामदेव रा गुरु बालिनाथजी समाधि लीवी ही। औ साधु बाबा रामदेव रौ ई अनुयायी हुवैला अर आपरै गुरु री सेवा मांय रैवतौ हुवैला। भाटी हरजी बाबा रामदेव रा अनन्य भगत अर गायक हुया। भाटी हरजी री रच्योड़ी वांणियां रै संबंध में औ दूहौ लोक मांय चावौ है- हरजी गरजी नाम रा, पासे किया पंपाल। लाख सबद लेखै चढ्या, ग्रंथां भर्या भंडार।। रामदेवजी आपरै उपदेसां अर वैवार सूंं हिंदूवां अर मुसलमानां रै विचालै साम्प्रदायिक अेकता रा घणा लूंठा जतन किया। उणरौ दोनूंसंप्रदायां माथै असर पड़ियौ। वां में अेकता रौ वातावरण बण्यौ अर मुसलमन ई रामदेवजी नै 'पीर' मान'र पूजण लाग्या। आज दिन तांई दोन्यूं धर्मावलम्बी वां नै घणी सरा सूं पूजै। 'बाबौ रामदेव' अर 'रामसापीर' अै दोनूं नाम हिंदू मुस्लिम अेकता रा प्रतीक है। अल्ला आदम अलख तूं, राम रहीम करीम। गोसांई गोरक्ख तूं, नाम तेरा तसलीम।। बाबा रामदेव बाबत औ दूहौ अेक भगत कवि खैमौ वि. सं. 1729 मैं कैयौ। वां जगत में लोकदेवता, देवपीर अर परमेसर रै रूप में प्रतिष्ठा पाई। घर ऊजल घवली धजा, निरमल ऊजल नीर। राजा ऊजल रामदे, परचा ऊजल पीर।। राम कहूं क रामदे, हीरा कहूं क लाल। ज्यांनै मिलिया रामदे, वां नै किया निहाल।।

वीर तेजाजी

वीर तेजाजी बिरखा रूत सरू हुवतां ई राजस्थान रै गामां रौ वातावरण 'तैजे' री टेर सूं गूंजण लागै। हरेक करसौ आपरै खेत मांय 'तेजा टेर' रै साथै ई बुवाई सरू करै। जाट जाति में पेैदा हुया तेजाजी गोगाजी री दाई सांपां रै देवता रै रूप में राजस्थान में पूज्या जावै। इण रूप में वां रै पूजीजणा रै लारै अेक घटना रैयी है वां रै ई जीवण री। राजस्थान रै लोक-देवतावां में तेजाजी री ई ठावी ठौड़ है। इणां री जनम-तिथि रै संबंध में कोई समसामयिक साक्ष्य उपलब्ध नीं है, पण इणां रै वंश रै भाटां री बहियां देखण सूं पतौ चालै के इणां रौ जनम मारवाड़ रै नागौर परगनै रे खड़नाल नाम रै गाम में जाट जाति रै धोल्या गौत्र में वि. सं. 1130 री माघ सुदी 14 नै बिस्पतवार (1074) रे दिन हुयौ हौ। इणां रेै पिता रौ नाम ताहडजी अर माता रौ नाम रामकुंवरी हौ। कैयौ जावै के पेमल इणां री छेहली पत्नी ही अर इणसूं पैली इणां रा पांच व्याव हुय चुक्या हा। गोगाजी री दाई तेजाजी ई आपरौ जीवण गायां री रक्षा में लगाया दियौ हौ। लोकगीतां सू पतौ चालै के जद अै आपरी पत्नी पेमल नै लेवण सारू पनेर गयोड़ा हा, उणी बगत मेर लोग लाछा गूजरी री गायां चोरनै लेयग्या। गूजरां री प्रार्थना माथै तेजाजी मेरां रौ लारौ कर्यौ अर कठण संघर्षां रे बाद गायां नै छुडावण में सफलता प्राप्त करी। पण इण संघर्ष में अै अणूंता ई घायल हुयग्या, जिणसूं अै जमीन माथै हेठा पड़ग्या अर इणरै बाद सरप रै काटण री वजै सूं इणां रौ देहांत हुयग्यौ। इणां रौ देहांत किशनगढ रै त्हैत आयै सुरसरा गाम में हुयौ हौ। इणां रे लारै इणां री पत्नी सती हुई। तेजाजी रै बारै में भाट भैरू (डेगाणा) री बही मुजब तेजाजी रौ देहांत वि. सं. 1160 री माघ बदी 4 नै हुयौ हौ जद के जनसाधारण में इणां रौ ेहांत दिन भादवा सुदी 1 प्रचलित है। तेजाजी नै सरप रै काटण रे बाबत केई लोकगाथावां मिलै। अेक गाथा मुजब जद तेजाजी आपरै सासरै जाय रैया हा, तौ रस्तै मेें आं अेक सरप नै बलण सूं बचाय लियौ, पण इणां री इण कोसिस रै दरम्यान उणरी सरपणी बल चुकी ही। सो बचियोड़ौ सरप क्रोध में पागल हुयग्यौ अर तेजाजी नै डसण लाग्यौ। तद तेजाजी उणनै रोकता थकां वचन दियौ के - "सासरै जाय'र म्हैं पाछौ थारै कनै आवूं, तद थूं म्हनै डस लीजै।" सासरै गयां इणां नै अचाणचक गायां छुडावण सारू मेरां रै लारै जावणौ पड्यौ। मेरां रै साथे हुयै संघर्ष में अै अणूंता ई घायल हुयग्या हा, तौ ई आपरै वचन निभावण सारू अै उण सरप कनै पूग्या। तद इणांने देख'र सरप कैयौ के - " थांरौ तो सगलौ सरीर ई घावां सूं भर्यौ पड्यौ है, म्हैं डसूं ई तौ कठै डसूं?" इण बात माथै तेजाजी आपरी जीभ निकाली अर सरप इणां री जीभ नै डस लियौ। दूजै कानी लोकगाथा मुजब तेजाजी जद गायां चरावण नै जाया करता हा, तद अेक गाय अलग हुय'र अेक बिल रै कनै जावती परी ही, जठै अेक सरप निकल'र गाय रौ दूध पीय जावतौ हौ। आ बात ठा पड़ियां तेजाजी सरप नै नित दूध पावण रौ वादौ कर्यौ। पण, किणी वजै सूं अेक दिन अै उणने दूध पावणौ भूलग्या। इण बात माथै सरप रीस में झालौझाल हुय'र इणां नै डसणौ चायौ। तद तेजाजी सासरै जाय'र उठै सूं बावड़ियां खुदौखुद नै डसावण रौ वायदौ कर्यौ। जद तेजाजी सासरै सूं घायल हुयोड़ा आय'र उण जगै पूग्या, तौ सरप तेजाजी रौ सारौ सरीर घायल देख'र जीभ माथै डस लियौ। तीसरी लोकघाथा मुजबमेरां रै साथै हुयै संघर्ष में वै अणूंता ई घायल हुयग्या हा, सो वै उठै ई हेठा पड़ग्या। उण बगत उठै सरप बैठ्यौ हौ जिकौ अजेज तेजाजी री जीभ माथै काट खायौ। तेजाजी रे कर्यौडै शौर्यपूर्ण कृत्य, त्याग, वचन-पालणा अर गौ-रक्षा ई इणां नै देवत्व प्रदान कर्यौ। सरू में इणांरे मिरतु-स्थल सुरसरा में इणां रौ अेक मिंदर बणवाईज्यौ, जठै अेक पशु मैलौ लाग्या करतौ हौ। पण वि. सं. 1791 परवाणै सन् 1734 ई. में जोधपुर-महाराजा अभयसिंह रै बगत परबतसर रौ हाकिम उठै सूं तेजाजी री मूरती परबतसर लेय आयौ। तद सूं परबतसर तेजाजी रौ खास स्थान बणग्यौ है। परबतसर में भादवा सुदी 5 सूं 15 तांई अेक विसाल पशु-मैलौ लागै, जिणमें बौत ई बडी संख्या में दूर-दूर रै स्थानां रा सैकडूं वौपारी अर दरसणारथी अेकठ हुवै। तेजाजी रा दूजा खास-खास मेला इणां री जनमभूमि खड़नाल, सुरसरा अर ब्यावर में लागै, जठै इणां रा मिंदर बणियोड़ा है। किशनगढ़, बूंदी, अजमेर इत्याद भूतपूर्व रियासतां में ई केई स्थानां माथै तेजाजी रा मिंदर है। वियां राजस्थान रै अमूमन हर गाम में इणां रा देवरा बणियोड़ा है, जिणां सूं इणां री लोकप्रियता आंकी जाय सकै। आं देवरां रै त्हैत तेजाजी री मूरती गाम रै अेकाध चबूतरै माथै प्रतिष्ठित करीजै, जिकी हाथ में तलवार लियोड़ा घोडै़ माथै असवार रै रूप में हुवै जिणां री जीभ नै सांप डसतौ थकौ दिखायोड़ौ हुवै, कनै ई इणां री पत्नी ई ऊभी हुवै। राजस्थान में भादवा सुदी 10 नै तेजाजी रौ पूजन हुवै। इण दिन धणकारा लोग तेजाजी रौ ब्यावलौ बंचवावै तौ केई इणां री कथा-वाचन रौ आयोजन करवावै। कठै-कठै ई इणां री जीवण-लीला री व्याख्या में ख्याल ई खेल्या जावै, जिणनै देखण सारू ब डी भारी संख्या में गाम रा लोग भेला हुवै। जाटां में तेजाजी रा भगत बेसी है। अमूमन जाट गलै मांय चांदी रौ अेक ताबीज पैर्यां राखै, जिण माथै तेजाजी अश्वारोही (घुड़सवार) जोद्धा रै रूप में हाथ में नागी तरवार लियोड़ा अर अेक सरप उणां री जीभ नै डसतौ थकौ अंकित कर्योड़ौ हुवै। राजस्थान में अै ई गोगाजी री दाई सरपां रेै देवता रै रूप में पूज्या जावै। राजस्थान री गांवेड़ी जनता रौ अैड़ौ विसवास है के जे सरप रै डस्योड़ै मिनख रै जीवणै पग में तेजाजी री तांती (डोरी) बांध दी जावै, तौ उणने ज्हैर नीं चढ़ै। बाद में, उण मिनख नै तेाजी रै स्थान माथै ले जायौ जावै अर विधिपूर्वक पूजा रै उपरांयत वा तांती काट दी जावै। मिनखां रै अलावा सरपां रै काट्योडै़ पशुवां रै ई आ तांती बांधीजै। तेजाजी नै लेय'र राजस्थान में अणमाप लोक साहित्य रौ निरमाण हुयौ है। जन साधारण में अर कास करनै करसां में तेजाजी रै साहसिक, दृढप्रतिज्ञ अर सेवाभावी जीवण री गुणावली रै साथै-साथै इणां रै घरू जीवण संबंध घटनावां री गाथा ई हुवै जिकी ठीक करसां रै अनुरूप हुवै। सो असाढ़, सावण अर भादवै रै महीनै में गामां रौ वातावरण तेजाजी रै गीतां सूं गूंजतौ रैवै। हरेक करसौ 'तेजा टेर' रै साथै बुवाई सरू करै, क्यूं कै वौ अैड़ौ करणौ आपरी भावी फसल सारू शुभ समझै। इणरै अलावा उणां रौ जीवण ई तेजाजी रै जीवण रै समान ई है, क्यूं कै ऊणां ने ई वां ई परिस्थितियां सूं सामनौ करणौ पड़ै जिणां सूं तेजाजी ई कर्यौ हौ। सो आं गीतां सूं करसां नै आपरै लौकिक जीवण रे कार्यकलापां मैं बरौबर प्रेरणा मिलती रैवै। लुगायां रै गावण वालै तेजाजी रै गीतां में सूं अेक गीत में तेजाजी सूं कालै नाग रौ ज्हैर उतारण सारू अरज करीजी है। अेक दूजै गीत सूं ठा पड़ै के तेजाजी रै नाम सूं ई ज्हैर शांत हुय जावै। इण भांत आं न्यारै-न्यारै गीतां सूं तेजाजी रै प्रति राजस्थानी लोक हिरदै मांय व्याप्योड़ी श्रद्धा-भावना रौ पतौ पड़ै। तेजाजी रै चमत्कारां री इधकाई रौ वरणाव अनेकूं लोक गीतां मुजब उल्लेखजोग है। इण गीतां में तेजाजी अर नाग रै बतलावण री छिब देखणजोग- डोर तौ लागी छै रै, श्री भगवान सूं, झूठो सब संसार रै, बाबा बासग। झूठी तौ काया रै, साचौ रामजी, सत पै सांी खड़ौ छै रै, बाबा बासग।। तैजाजी रै इण भगती-उद्गारां रौ पडूत्तर देवता थका नागराज कैवै- सत पै ही मरेगौ रै, लड़कौ जाट को, धन-धन थारा सत नै रै, तेजल बेटा। घनयक तौ छै जी रै थारा ग्यान नै, घर-घर में पुजावा दूं रै, तेजल थनैं।। लोक जीवण में अर खास र' कृषक समाज में तेजाजी री अणूंती ई धावना रैयी है खेतां मांय हल चलावतै बगत किरसाण तेजा टेर सूं काम करणौ सरू करै- कलजुग में तौ दोय फूलड़ा बडा जी, अेक सूरज दूजौ चांद औ। वासग रा औ तेजाजी थे बडा जी, सूरज री करिणां तपै जी, चंदा री निरमल रात औ।। इंदर तौ बरसावै जी, धरती तौ निपजावै धान हौ। मायड़ जण जलम दीना, बाप लडाया छै लाड जी।।
।। सुप्रभातम ।। 1. माँ से बढकर कोई महान नही है। 2. पिता से बढकर कोई मार्गदर्शक नही है। 3. गुरु से बढकर कोई ग्यानी नही है। 4.भाई से बढकर कोई भरोसेमंद नही है। 5. बहन से बढकर कोई रिश्ता नही है। 6. पत्नि से बढकर कोई जीवन साथी नही है। 7. पुत्र से बढकर कोई सहारा नही है। 8. पुत्री से बढकर कोई सेवा करने वाला नही है। 9. मित्रता से बढकर कोई प्रेम नही है।

सीनली

देवझूलनी एकादशी पर सीनली में ठाकुरजी को सरोवर में ले जाकर स्नान कराया गया। देर शाम तक श्रद्धालु पूरे रास्ते ‘हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की..’ के जयकारे लगा रहे थे वहीं झालर, घंटियां व शंख ध्वनि ,श्रद्धालुओं ने खूब गुलाल अबीर उड़ाया। सीनली को सरोवर में gaav valo ने ठाकुरजी को नए जल में स्नान कराया।

मंगलवार, 22 सितंबर 2015


एक बार की बात है एक जंगल में सेब का एक बड़ा पेड़ था| एक बच्चा रोज उस पेड़ पर खेलने आया करता था| वह कभी पेड़ की डाली से लटकता कभी फल तोड़ता कभी उछल कूद करता था, सेब का पेड़ भी उस बच्चे से काफ़ी खुश रहता था| कई साल इस तरह बीत गये| अचानक एक दिन बच्चा कहीं चला गया और फिर लौट के नहीं आया, पेड़ ने उसका काफ़ी इंतज़ार किया पर वह नहीं आया| अब तो पेड़ उदास हो गया| काफ़ी साल बाद वह बच्चा फिर से पेड़ के पास आया पर वह अब कुछ बड़ा हो गया था| पेड़ उसे देखकर काफ़ी खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा| पर बच्चा उदास होते हुए बोला कि अब वह बड़ा हो गया है अब वह उसके साथ नहीं खेल सकता| बच्चा बोला की अब मुझे खिलोने से खेलना अच्छा लगता है पर मेरे पास खिलोने खरीदने के लिए पैसे नहीं है| पेड़ बोला उदास ना हो तुम मेरे फल तोड़ लो और उन्हें बेच कर खिलोने खरीद लो| बच्चा खुशी खुशी फल तोड़ के ले गया लेकिन वह फिर बहुत दिनों तक वापस नहीं आया| पेड़ बहुत दुखी हुआ| अचानक बहुत दिनों बाद बच्चा जो अब जवान हो गया था वापस आया, पेड़ बहुत खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा पर लड़के ने कहा कि वह पेड़ के साथ नहीं खेल सकता अब मुझे कुछ पैसे चाहिए क्यूंकी मुझे अपने बच्चों के लिए घर बनाना है| पेड़ बोला मेरी शाखाएँ बहुत मजबूत हैं तुम इन्हें काट कर ले जाओ और अपना घर बना लो| अब लड़के ने खुशी खुशी सारी शाखाएँ काट डालीं और लेकर चला गया| वह फिर कभी वापस नहीं आया| बहुत दिनों बात जब वह वापिस आया तो बूढ़ा हो चुका था पेड़ बोला मेरे साथ खेलो पर वह बोला की अब में बूढ़ा हो गया हूँ अब नहीं खेल सकता| पेड़ उदास होते हुए बोला की अब मेरे पास ना फल हैं और ना ही लकड़ी अब में तुम्हारी मदद भी नहीं कर सकता| बूढ़ा बोला की अब उसे कोई सहायता नहीं चाहिए बस एक जगह चाहिए जहाँ वह बाकी जिंदगी आराम से गुजर सके| पेड़ ने उसे अपने जड़ मे पनाह दी और बूढ़ा हमेशा वहीं रहने लगा| मित्रों इसी पेड़ की तरह हमारे माता पिता भी होते हैं, जब हम छोटे होते हैं तो उनके साथ खेलकर बड़े होते हैं और बड़े होकर उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं और तभी वापस आते हैं जब हमें कोई ज़रूरत होती है| धीरे धीरे ऐसे ही जीवन बीत जाता है| हमें पेड़ रूपी माता पिता की सेवा करनी चाहिए नाकी सिर्फ़ उनसे फ़ायदा लेना चाहिए

गोगाजी

गोगाजी चौहान राजस्थान रै पांच पीरां में सूं अेक गोगा पीर। गोगा पीर राजस्थान रा अेकला अैड़ा लोक देवता जिणां री मानता आखै राजस्थान रै अलावा गुजरात, हरियाणा, पंजाब, हिमाचलप्रदेस, मध्यप्रदेस, उत्तरप्रदेस इत्याद दूजै राज्यां में ई करीजै। गोगा पीर रौ अेक नाम 'जाहर पीर' ई है अर उत्तरप्रदेस में इणी नाम सूं पुजीजै।हिन्दुवां में तौ अै पूज्या जावै ई, मुसलमान ई इणां री पूजा करै। गोगा रौ इतियासिक वृत्त कांई रैयौ?- इण बाबत लोक-मानस कैई परवा नीं करी, वै तौ उणां नै सांपां रा देवता मान'र पूजता रैया। गोगा रौ सांपां रै साथै कांई रिस्तौ हौ अर वौ रिस्तौ कीकर हुयौ?- इण बाबत कोई प्रमाण उपलब्ध नीं है। पण गोगा रै संबंध में जित्तौ ई साहित्य मिलै, उणमें उणां रौ रिस्तौ किणी-न-किणी रूप में सांपां सूं बतायौ गयौ है अर लोक में औ विसवास घणौ प्रबल है के गोगाजी रै हुकम बिना सांप किणी नै ई नीं काट सकै। आ ई वजै के आपणै अठै 'गाम-गाम गोगौ नै गाम-गाम खेजड़ी', मतलब 'गाम-गाम खेजड़ी रै रूंख हेठै गोगाजी रौ थान हुवै'। गोगा रै सांपां सूं संबंध बाबत 'अेनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' सूं फ्लूटार्क रौ औ हवालौ देवणौ ई अठै काफी हुवैला के- " पुराणै जमानै रा लोग वीरां रौ संबंध सांपां सूं ई खास तौर सूं दिखाया करता हा, किणी दूजै सूं इत्तौ नींं।" गोगा अेक इतियासिक पुरुष हा। आपरै देस अर धरम री रक्षा करता थका वीरता रै साथै आपरा प्राण निछावर करण वाला गोगा 11 वीं सदी में हुया हा अर वै महमूद गजवनी रें समसामयिक हा। 'क्यामखां रासौ' रै मुजब गोगा घांघू बसावण वालै घंघराणा री 5 वीं पीढ़ी में हुया हा। माघ सुदी 14 वि.सं. 1273 रौ अेक अभिलेख राणा जैतसी रै जमानै रौ ददरेवा में मिल्यौ। राणा जैतसीरी 7वीं पीढ़ी में करमचंद हुयौ हौ जिणनै बादसा फिरोजशाह तुगलक (वि.सं. 1408-45) मुसलमान बणायौ हौ। आं करमचंद अर जैतसी रै तै बगत सूं गणना करियां गोगा रौ बगत 11 वीं सदी ई आवै। इण बात री पुष्टि ददरेवा रै बराबर चालण बाली छापर द्रोणपुर री मोहिल शाखा रै वंशक्रम, जिकौ के नैणसी दियौ है, अर उणरै राणावां रै मिल्यै अभिलेखां सूं ई हुवै। अठै याद राखणजोग बात आ है के आ शखा घांघू बसावण वालै घंघराणा रै बेटै इंद सूं ई अलग हुई। सन् 1409 रै लगै-टगै रच्योडै 'श्रावकव्रतादि-अतिचार' नाम ुजराती ग्रंथ रै अलावा 'मंत्री यशोवीर प्रबंध' सूं साफ ठा पडै़ के वां जमानां में गोगा री मानता चौफेर फैल चूकी ही अर पूजा ठोस रूप धारण कर चूकी ही। गोगा रै चरित में अरजन-सरजन री भूमिका अेक खास मैतव राखै। अरजन-सरजन सूं गोगाजी रै घरा अर घन रै कारण कलै रैवती ही। इण मुजब अरजन-सरजन इणां रै खिलाफ मुसलमांनां री फौज लाय'र गोगाजी री गायां घेर लीी. तद उणां रौ गोगाजी सूं जु्‌दध हुयौ। इणमें अरजन-सरजन रै साथै ई कैयौ जावै गोगाजी ई वीरगति पायी अर इणां री जोड़ायत मेनल सती हुयी। लोक साहित्य अर किंवदंतियां मुजब जोड़ भाई अरजन अर सरजन गोगा रा मासियात भाई हा। वै खुद नै पद में बड़ा मानता थका गोका रै पाट बैठण रौ विरोध करियो हौ अर जुद्ध में गोगा रै हाथां मारया गया हा। कथानक इण भांत है- ददरेवा रै राणा उमर (अमरा) रै बेटै जेवर रौ ब्याव बाझल रै साथै हुयौ हौ, अर बाछल री अेक बैन आछल ई इणी परिवार मांय परणाईजी ही। पण लंबै बगत तांई जेवर रै कोई औलाद नीं हुया वौ घणौ दुखी रैवतौ हौ। किणी महातमा रै कैयां सूं जेवर ददरेवा मांय नौलखौ बाग लगवायौ अक अेक कूवौ खुदवायौ। पण जेवर रै बाग मांय बड़तां ई बाग सूखग्यौ अर कूवै रौ पाणी खारौ हुयग्यौ। किणी जोतसी रै कैयां राणी बाछ गुरु गोरखनाथ री आराधना मन लगाय'र करण लागी। गोरखनाथ नै जद योग-बल सूं बाछल री सेवा री जाणकारी हुई तौ वै आपरै चवदै सौ चेलां रै साथै दरदेवा आया। उणां रै आवतां ई नोलखौ बाग हरियौ हुयग्यौ अर कूवै रौ पाणी मीठौ। बाछल गुरु गोरखनाथ री घणी सेवा करी। पण जद वरदान देवण रौ समौ आयौ, तौ आछल आपरी बैन बाछ रा कपड़ा पैर'र गोरखनाथ री सेवा मांय हाजर हुयगी। गोरखनाथ उणनै इज दो पुत्र हुवण स्वरूप दो जउ प्रसाद-स्वरूप देय'र आसीरवाद देय दियौ अर पछै आपरौ धूणौ कलेस हुयौ अर वा गोरखनाथ रै लारै-लारै सिद्धमुख गई। उठै वा पाछी उणां री आराधना करी तौ वै उणनै गूगल रूपी हव्य प्रसाद-स्वरूप दियौ अर कैयौ के इमसूं थारै जिकौ बेटौ हुवैला, वौ उण दोनां सूं बलशाली हुवैला। राणी घरै आय'र गूगल रौ कीं हिस्सौ आपरी बांझ पुरोहिताणी नै यिौ, जिणसूं महावीर 'नरसिंघ पांडे' रौ जनम हुयौ। कीं हिस्सौ दासी नै दियौ, जिणसूं भज्जु कोतवाल रौ जनम हुयौ। कीं हिस्सौ घोड़ी नै दियौ, जिणसूं 'लीलौ बछेरौ' जनमियौ अर बाकी खुद बाछल लेय लियौ, जिण सूं गोगा रौ जनम हुयौ। मोट्यार हुयां गोगै रौ ब्याव राजा सिंझा री पुत्री सिरियलदे रै साथै हुयौ। पण गोगौ जद ददरेवा री राजगादी माथै बैठियौ तौ आछल रा दोनूं पुत्र अरजन-सरजन गोगाजी सूं झगडौ करियौ, पण जुद्ध मांय मार्या गया। चूरू जिलै रौ गाम जोड़ी जोड़ भाइयां रौ ठिकाणौ। गोगाजी संबंधी लोक-प्रचलित, कथानक मुजब गोगा रौ जनम गुरु गोरखनाथ रै प्रसाद अर आसीरवाद रै फलस्वरूप हुयौ हौ अर लोक साहित्य मांय तौ गोगा अर गोरखनाथ रै मिलण री बात घणी चावी है ई, इतियासिक दीठ सूं ई गोगा अर गोरखनाथ समसामयिक लागै। गोरखनाथ रौ बगत विक्रम रौ 11 वौं सईकौ है अर औ ई बगत चौहाण राणा गोगा रौ ई। सो दोनां रै मिलण री संभावना तौ अणूंती ई है। नोहर रै कनै ई गाम गोगामैड़ी मांय गोगाजी री समाधि है। समाधि सूं थोड़ी ई दूरी माथै गोगाणौ तलाव अर गोरखाणौ टीलौ है जिकौ गोरखनाथ रै घूणै रै रूप में पुजीजै। अैड़ी बात चावीहै के गोरखनाथ अठै तपस्या करी ही। महमूद गजनवी भारत माथै केई बार हमला कर्या हा। उणरै बार-बार रै हमलां सूं भारत नै अणमाप नुकसाण उठावणौ पड्‌यौ हौ। गोगा जद देख्यौ के अठै रै लोगां रै धरम अर सम्मान माथै आंच आय रैयी है तौ वै मर-मिटण री तेवड़'र उण खूंखार हमलावर रै खिलाफ आतम-अभियान रै साथै जुद्ध रै मैदान मांय उतर पड्या अर पराक्रम सूं जूझता थकां आपरै पेटां, सगा-संबंधियां अर सैनिकां समेत वीरगति नै प्राप्त हुया। आखै राजस्थान मांय तौ गोगाजी री पूजा हुवै ई है, इणरै अलावा हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश अर गुजरात इत्याद प्रांतां ई गोगाजी री मान्यता है। मुसलमानां तकात में गोगाजी री मान्यता रैयी है। राजस्थान रै गाम-गाम मांय गोगाजी रा थान खेजड़ी रै रूंख हेठै मिलै। गोगाजी री मैड़ियां ई केई मिलै, पण उणां में दो खास मानीजै- अेक तौ चूरु जिलै री राजगढ तैसील रै गाम ददरेवा मांय जठै गोगा राणा री राजधानी ही। इण मैड़ी नै 'शीश मैड़ी' कैयौ जावै। दूजी मैड़ी 'गोगामैड़ी' नाम रै गाम मांय है, जिणनै 'धुर मैड़ी' कैवै। औ गाम श्री गंगानगर जिलै री नोहर तैसील मांय आयौ थकौ है। मैड़ी रै मांय गोगाजी री समाधि है। दरेवा अर गोगामैड़ी रै अलावा ई अनेक स्थानां माथे मेला लागै। कठैई भादवै वदी 9 नेै, तौ कठैई भादवै सुदी 9 नेै। गोगा नाम रे दिन धरां मांय खीर, चूरमौ अर धूधरैदार पूवा बणाया जावै। इण दिन बिलवणौ नीं करीजै। भगत लोक पूरै भादवै रै महीनै मांय व्रत-उपवास करै। गोगाजी रेै नाम सूं मनौतियां मनाईजै अर गोगाजी रा रातीजोगा दिरीजै। गोगाजी नै नालेर घणा चढाईजै। भगत लोग गलै मांय नाल पैरै। कीं जातियां में गोगा नम नै बिना बूझिया सावा हुवै। कठैई-कठैई कुम्हार लोग घुड़सावर गोगाजी री मूरती बणाय'र घरां मांय लावै अर घर वाला उणरी पूजा करै।

शनिवार, 19 सितंबर 2015

Baba ramdevji runicha

Baba Ramdevji ke Parche पांच पीरों से मिलन व परचा चमत्कार होने से लोग गांव गांव से रूणिचा आने लगे। यह बात मौलवियों और पीरों को नहीं भाई। जब उन्होंने देखा कि इस्लाम खतरे में पड़ गया और मुसलमान बने हिन्दू फिर से हिन्दू बन रहे हैं और सोचने लगे कि किस प्रकार रामदेव जी को नीचा दिखाया जाय और उनकी अपकीर्ति हो। उधर भगवान श्री रामदेव जी घर घर जाते और लोगों को उपदेश देते कि उँच-नीच,जात-पात कुछ नहीं है,हर जाति को बराबर अधिकार मिलना चाहिये। पीरों ने श्री रामदेव जी को नीचा दिखाने के कई प्रयास किये पर वे सफल नहीं हुए। अन्त में सब पीरों ने विचार किया कि अपने जो सबसे बड़े पीर जो मक्का में रहते हैं उनको बुलाओ वरना इस्लाम नष्ट हो जाएगा। तब सब पीर व मौल्वियों ने मिलकर मक्का मदीना में खबर दी कि हिन्दुओं में एक महान पीर पैदा हो गया है,मरे हुए प्राणी को जिन्दा करना,अन्धे को आँखे देना,अतिथियों की सेवा करना ही अपना धर्म समझता है,उसे रोका नहीं गया तो इस्लाम संकट में पड़ जाएगा। यह खबर जब मक्का पहुँची तो पाँचों पीर मक्का से रवाना होने की तैयारी करने लगे। कुछ दिनों में वे पीर रूणिचा की ओर पहुँचे। पांचों पीरों ने भगवान रामदेव जी से पूछा कि हे भाई रूणिचा यहां से कितनी दूर है,तब भगवान रामदेवजी ने कहा कि यह जो गांव सामने दिखाई दे रहा है वही रूणिचा है,क्या मैं आपके रूणिचा आने का कारण पूछ सकता हूँ?तब उन पाँचों में एक पीर बोला हमें यहां रामदेव जी से मिलना है और उसकी पीराई देखनी है। जब प्रभु बोले हे पीरजी मैं ही रामदेव हूँ आपके समाने खड़ा हूँ कहिये मेरे योग्य क्या सेवा है। श्री रामदेव जी के वचन सुनकर कुछ देर पाँचों पीर प्रभु की ओर देखते रहे और मन ही मन हँसने लगे। रामदेवजी ने पाँचों पीरों का बहुत सेवा सत्कार किया। प्रभू पांचों पीरों को लेकर महल पधारे,वहां पर गद्दी,तकिया और जाजम बिछाई गई और पीरजी गद्दी तकियों पर विराजे मगर श्री रामदेव जी जाजम पर बैठ गए और बोले हे पीरजी आप हमारे मेहमान हैं,हमारे घर पधारे हैं आप हमारे यहां भोजन करके ही पधारना। इतना सुनकर पीरों ने कहा कि हे रामदेव भोजन करने वाले कटोरे हम मक्का में ही भूलकर आ गए हैं। हम उसी कटोरे में ही भोजन करते हैं दूसरा बर्तन वर्जित है। हमारे इस्लाम में लिखा हुआ है और पीर बोले हम अपना इस्लाम नहीं छोड़ सकते आपको भोजन कराना है तो वो ही कटोरा जो हम मक्का में भूलकर आये हैं मंगवा दीजिये तो हम भोजन कर सकते हैं वरना हम भोजन नहीं करेंगे। तब रामदेव जी ने कहा कि हे पीर जी राम और रहीम एक ही है,इसमें कोई भेद नहीं है,अगर ऐसा है तो मैं आपके कटोरे मंगा देता हूँ। ऐसा कहकर भगवान रामदेव जी ने अपना हाथ लम्बा किया और एक ही पल में पाँचों कटोरे पीरों के सामने रख दिये और कहा पीर जी अब आप इस कटोरे को पहचान लो और भोजन करो। जब पीरों ने पाँचों कटोरे मक्का वाले देखे तो पाँचों पीरों को अचम्भा हुआ और मन में सोचने लगे कि मक्का कितना दूर है। यह कटोरे हम मक्का में छोड़कर आये थे। यह कटोरे यहां कैसे आये तब पाँचों पीर श्री रामदेव जी के चरणों में गिर पड़े और क्षमा माँगने लगे और कहने लगे हम पीर हैं मगर आप महान् पीर हैं। आज से आपको दुनिया रामापीर के नाम से पूजेगी। इस तरह से पीरों ने भोजन किया और श्री रामदेवजी को पीर की पदवी मिली और रामसापीर,रामापीर कहलाए। बोहिता को परचा व परचा बावड़ी एक समय रामदेव जी ने दरबार बैठाया और निजीया धर्म का झण्डा गाड़कर उँच नीच,छुआ छूत को जड़ से उखाड़कर फैंकने का संकल्प किया तब उसी दरबार में एक सेठ बोहिताराज वहां बैठा दरबार में प्रभू के गुणगान गाता तब भगवान रामदेव जी अपने पास बुलाया और हे सेठ तुम प्रदेश जाओ और माया लेकर आओ। प्रभू के वचन सुनकर बोहिताराज घबराने लगा तो भगवान रामदेव जी बोले हे भक्त जब भी तेरे पर संकट आवे तब मैं तेरे हर संकट में मदद करूंगा। तब सेठ रूणिचा से रवाना हुए और प्रदेश पहुँचे और प्रभू की कृपा से बहुत धन कमाया। एक वर्ष में सेठ हीरो का बहुत बड़ा जौहरी बन गया। कुछ समय बाद सेठ को अपने बच्चों की याद आयी और वह अपने गांव रूणिचा आने की तैयारी करने लगा। सेठजी ने सोचा रूणिचा जाउंगा तो रामदेवजी पूछेंगे कि मेरे लिये प्रदेश से क्या लाये तब सेठ जी ने प्रभू के लिये हीरों का हार खरीदा और नौकरों को आदेश दिया कि सारे हीरा पन्ना जेवरात सब कुछ नाव में भर दो,मैं अपने देश जाउंगा और सेठ सारा सामान लेकर रवाना हुआ। सेठ जी ने सोचा कि यह हार बड़ा कीमती है भगवान रामदेव जी इस हार का क्या करेंगे,उसके मन में लालच आया और विचार करने लगा कि रूणिचा एक छोटा गांव है वहां रहकर क्या करूंगा,किसी बड़े शहर में रहुँगा और एक बड़ा सा महल बनाउंगा। इतने में ही समुद्र में जोर का तुफान आने लगा,नाव चलाने वाला बोला सेठ जी तुफान बहुत भयंकर है नाव का परदा भी फट गया है। अब नाव चल नहीं सकती नाव तो डूबेगी ही। यह माया आपके किस काम की हम दोनों मरेंगे। सेठ बोहिताराज भी धीरज खो बैठा। अनेक देवी देवताओं को याद करने लगा लेकिन सब बेकार,किसी भी देवता ने उसकी मदद नहीं की तब सेठजी को श्री रामदेव जी का वचन का ध्यान आया और सेठ प्रभू को करूणा भरी आवाज से पुकारने लगा। हे भगवान मुझसे कोई गलती हुयी हो जो मुझे माफ कर दीजिये। इस प्रकार सेठजी दरिया में भगवान श्री रामदेव जी को पुकार रहे थे। उधर भगवान श्री रामदेव जी रूणिचा में अपने भाई विरमदेव जी के साथ बैठे थे और उन्होंने बोहिताराज की पुकार सुनी। भगवान रामदेव जी ने अपनी भुजा पसारी और बोहिताराज सेठ की जो नाव डूब रही थी उसको किनारे ले लिया। यह काम इतनी शीघ्रता से हुआ कि पास में बैठे भई वीरमदेव को भी पता तक नहीं पड़ने दिया। रामदेव जी के हाथ समुद्र के पानी से भीग गए थे।बोहिताराज सेठ ने सोचा कि नाव अचानक किनारे कैसे लग गई। इतने भयंकर तुफान सेठ से बचकर सेठ के खुशी की सीमा नहीं रही। मल्लाह भी सोच में पड़ गया कि नाव इतनी जल्दी तुफान से कैसे निकल गई,ये सब किसी देवता की कृपा से हुआ है। सेठ बोहिताराज ने कहा कि जिसकी रक्षा करने वाले भगवान श्री रामदेव जी है उसका कोई बाल बांका नहीं कर सकता। तब मल्लाहों ने भी श्री रामदेव जी को अपना इष्ट देव माना। गांव पहुंचकर सेठ ने सारी बात गांव वालांे को बतायी। सेठ दरबार में जाकर श्री रामदेव जी से मिला और कहने लगा कि मैं माया देखकर आपको भूल गया था मेरे मन में लालच आ गया था। मुझे क्षमा करें और आदेश करें कि मैं इस माया को कहाँ खर्च करूँ। तब श्री रामदेव जी ने कहा कि तुम रूणिचा में एक बावड़ी खुदवा दो और उस बावड़ी का पानी मीठा होगा तथा लोग इसे परचा बावड़ी के नाम से पुकारेंगे व इसका जल गंगा के समान पवित्र होगा। इस प्रकार रामदेवरा (रूणिचा) मे आज भी यह परचा बावड़ी बनी हुयी है। श्री बाबा रामदेव जी के हाथों भैरव राक्षस का वध एक दिन भगवान रामदेव जी खेलते खेलते जंगल में बढ़ते ही जा रहे थे। आगे चलने पर बाबा रामदेव जी को एक पहाड़ नजर आया। उस पहाड़ पर चढ़े तो वहां से थोड़ी दूरी पर एक कुटिया नजर आयी तब भगवान उस कुटिया के पास पहुंचे तो देखते हैं वहां पर एक बाबा जी घ्यान मग्न बैठे थे। भगवान रामदेव जी ने गुरू जी के चरणों में सिर झुकाकर नमस्कार किया। तब गुरू जी ने पूछा बालक कहां से आये हो तुम्हें मालूम नहीं यहां पर एक भैरव नाम का राक्षस रहता है जो जीवों को मारकर खा जाता है। तुम जल्दी से यहां से चले जाओ उसके आने का वक्त हो गया है। वह तुम्हें भी मारकर खा जाएगा और मेरे को बाल हत्या लग जाएगी,इसलिये तुम इस कुटिया से कहीं दूर चले जाओ। भगवान बाबा रामदेव जी मीठे शब्दों में कहते हैं - मैं क्षत्रीय कुल का सेवक हूँ स्वामी ! भाग जाउंगा तो कुल पर कलंक का टीका लग जायेगा। मैं रात्री भर यहाँ रहूँगा प्रभात होते ही चला जाउंगा और वहीं पर भैरव राक्षस के आने पर रामदेवजी ने उसका वध कर प्रजा का कल्याण किया। बाल लीला में कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना एक दिन रामदेव जी महल में बैठे हुए थे उस समय रामदेव जी ५ वर्ष के थे। एक घुड़सवार को देखकर रामदेव जी ने बाल हठ किया कि मैं भी घोड़े पर बैठुंगा। रामदेव जी को मनाने के लिये माता ने खूब जत्न किये पीने के लिये दूध,खेलने कि लिये हाथी-घोड़े उँट आदि के खिलौने सामने रखे किन्तु अपने बाल हठ को नहीं छोड़ा। माता ने दासी को भेजकर राजघराने के दर्जी को बुलाया और समझाया कि कुंवर रामदेव के लिये कपड़ों का सुन्दर घोड़ा बनाकर लाओ उस पर लीला याने हरे कपड़े का झूल लगाकर लाना। माता जी ने दर्जी को सुन्दर कपड़े दिये और कहा कि जाओ इन कपड़ों का घोड़ा तैयार करके लाओ। दर्जी के मन में लालच आया और उसने पुराने कपड़े का घोड़ा बनाकर उपर हरे रंग की झूल लगा दी और घोड़ा लेकर राजदरबार पहुँचा तथा रामदेव जी के सामने रखा तभी रामदेव जी ने अपना हठ तोड़ा। श्री रामेदव जी कपड़े के बने घोड़े को देखकर बहुत खुश हुए और घोड़े पर सवारी करने लगे। ज्यूंहि भगवान श्री रामदेव जी घोड़े पर सवार हुए कपड़े का घोड़ा हिन हिनाता और आगे के दोनों पैर खड़ा होकर दरबार में ही नाचने लगा,कपड़े के घोड़े को नाचता देखकर सारा दरबार हिनले लगा। नाचते नाचते बालक को लेकर आकाश मार्ग की ओर घोड़ा उड़ चला। इसको देखकर सब घबराने लगे। माता मैणादे,राजा अजमल जी व भाई वीरमदेव सब ही अचम्भे में पड़ गए। राजा अजमल जी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने दर्जी के घर एक सेवक को भेजा और उस दर्जी को बुलाया। जब राज दर्जी दरबार में पहुँचा,दरबार खचाखच भरा हुआ था। तब अजमल जी ने कहा कि हे राज दर्जी सच सच बताना कि तुमने उस कपड़े के घोड़े पर क्या जादू किया है?सो मेरे कुंवर को लेकर आकाश में उड़ा। राज दर्जी कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ता देखकर दंग रह गया और डर के मारे थर थर कांपने लगा और कहने लगा मैने काई जादू नहीं किया। दर्जी की बात का राजदरबार में कोई असर नहीं हुआ। क्योंकि दूसरा कारण था। जो घोड़ा दर्जी ने बनाया था। उसमें पुराने कपड़े लगाकर भगवान के साथ छल किया था। अजमल जी ने कहा यह सब तेरी करामात है इसलिये हुक्म है कि इस दर्जी को पकड़कर कारागृह में डाल दो और सिपाहियों को आदेश दिया कि जब तक रामा कंवर घोड़े से नीचे ना आये तब तक इस दर्जी को अंधेरी कोठरी से बाहर मत निकालना। तब दर्जी कोठरी में पड़ा रोने लगा और भगवान को सुमरन करने लगा। इस प्रकार दर्जी ने भगवान को पुकारा तब भगवान श्री रामदेव जी ने दर्जी पर कृपा करी। क्योंकि भगवान हमेशा भक्तों के वश में हुआ करते हैं। जब दर्जी ने विनती की तब भगवान रामदेवजी घोड़े सहित काल कोठरी में गए। रामा राज कंवर के कोठरी में आते ही चान्दनी खिल गई और रामदेव जी ने दर्जी से कहा तुमने पुराने कपड़ों का घोड़ा बनाया इसलिये तुम्हे इतना कष्ट उठाना पड़ा। जा मैनें तेरे सारे पाप खत्म किये। तुमने घोड़ा बहुत सुन्दर बनाया और हरे रंग की रेशमी झूल ने मेरा मन मोह लिया। हे दर्जी आज से यह कपड़े का घोड़ा लीले घोड़े के नाम से प्रसिद्ध होगा। जहां पर मेरी पूजा होगी,वहीं पर मेरे साथ इस घोड़े की भी पूजा होगी। बाल लीला में माता को परचा भगवान नें जन्म लेकर अपनी बाल लीला शुरू की। एक दिन भगवान रामदेव व विरमदेव अपनी माता की गोद में खेल रहे थे,माता मैणादे उन दोनों बालकों का रूप निहार रहीं थीं। प्रात:काल का मनोहरी दृश्य और भी सुन्दरता बढ़ा रहा था। उधर दासी गाय का दूध निकाल कर लायी तथा माता मैणादे के हाथों में बर्तन देते हुए इन्हीं बालकों के क्रीड़ा क्रिया में रम गई। माता बालकों को दूध पिलाने के लिये दूध को चूल्हे पर चढ़ाने के लिये जाती है। माता ज्योंही दूध को बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाती है। उधर रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये विरमदेव जी के गाल पर चुमटी भरते हैं इससे विरमदेव को क्रोध आ जाता है तथा विरमदेव बदले की भावना से रामदेव जी को धक्का मार देते हैं। जिससे रामदेव जी गिर जाते हैं और रोने लगते हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर आती है और रामदेव जी को गोद में लेकर बैठ जाती है। उधर दूध गर्म होन के कारण गिरने लगता है,माता मैणादे ज्यांही दूध गिरता देखती है वह रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाहती है उतने में ही रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे धर देते हैं। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे व वहीं बैठे अजमल जी व दासी सभी द्वारकानाथ की जय जयकार करते हैं। श्री अजमल जी को द्वारकानाथ के दर्शन राजा अजमल जी द्वारकानाथ के परमभक्त होते हुए भी उनको दु:ख था कि इस तंवर कुल की रोशनी के लिये कोई पुत्र नहीं था और वे एक बांझपन थे। दूसरा दु:ख था कि उनके ही राजरू में पड़ने वाले पोकरण से ३ मील उत्तर दिशा में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था। इस कारण राजा रानी हमेशा उदास हीरहते थे। सन्तान ही माता-पिता के जीवन का सुख है। राजा अजमल जी पुत्र प्राप्ति के लिये दान पुण्य करते,साधू सन्तों को भोजन कराते,यज्ञ कराते,नित्य ही द्वारकानाथ की पूजा करते थे। इस प्रकार राजा अजमल जी भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए द्वारका जी पहुंचे। जहां अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए,राजा के आखों में आंसू देखकर भगवान में अपने पिताम्बर से आंसू पोछकर कहा,हे भक्तराज रो मत मैं तुम्हारा सारा दु:ख जानता हूँ। मैं तेरी भक्ती देखकर बहुत प्रसन्न हूँ,माँगो क्या चाहिये तुम्हें मैं तेरी हर इच्छायें पूर्ण करूँगा। भगवान की असीम कृपा से प्रसन्न होकर बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ती से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिये याने आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और राक्षस को मारकर धर्म की स्थापना करनी पड़ेगी। तब भगवान द्वारकानाथ ने कहा- हे भक्त! जाओ मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि पहले तेरे पुत्र विरमदेव होगा तब अजमल जी बोले हे भगवान एक पुत्र का क्या छोटा और क्या बड़ा तो भगवान ने कहा- दूसरा मैं स्वयं आपके घर आउंगा। अजमल जी बोले हे प्रभू आप मेरे घर आओगे तो हमें क्या मालूम पड़ेगा कि भगवान मेरे धर पधारे हैं,तो द्वारकानाथ ने कहा कि जिस रात मैं घर पर आउंगा उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें अपने आप घंटियां बजने लग जायेगी,महल में जो भी पानी होगा (रसोईघर में) वह दूध बन जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वह मेरी आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में अवतार के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा।

मोबाइल और समाज-

आजकल लोगों का ध्यान भगवान पर कम मोबाइल पर ज्यादा होता है। भगवान ही क्या लोगों के अपने परिवार,मित्रों तथा रिश्तेदारों के बारे में भी स्मरण तभी आता है जब उनके पास मोबाइल पर कॉल या मिस कॉल आता है।स्थिति यह है कि कहीं दो लोगों की आपसी बातचीत कभी एक दौर में पूरी नहीं हो पाती और अगर कहीं बैठक चल रही हो तो वहां वक्ता और श्रोतापूरी बात कह और सुन नहीं पाते।बीच बीच में मोबाइल की घंटी विराम लगाती है। मंदिरों में मूर्तिपूजा करने गये लोग अपने हाथ में पूजा का सामान थाली में लिये रहते हैं। एक मूर्ति पर फूल डालते हैं दूसरी पर डालने से पहले ही घंटी बज उठती है। भक्त का ध्यान हवा होता है।कुछ शालीन भक्त घंटी बजते ही सामने वाले को अपने मंदिर में होने की बात बताकर प्रसन्न होते हैं कि चलो अपने धर्मभीरु होने का प्रचार तो हुआ।कुछ लोग थोड़ी बात के बाद फोन बंद करते हैं कुछ लोग लंबी बात करने के बाद कहते हैं कि‘यार,अब बाकी बात पूजा के बाद करूंगा।’ हमारा मानना है कि इससे मूर्तिपूजा से होने वाला ध्यान का लाभ खंडित होता है।माना जाता है कि जिसका मन निरंकार में ध्यान नहीं लगता वह मूर्ति की एकाग्रता से पूजा कर उसका लाभ उठा सकता है। इस तरह मोबाइल से होने वाली बाधा ध्यान की प्रक्रिया को समाप्त कर देती है। अनेक बार तो ऐसा लगता है कि लोग मोबाइल के भक्त हैं पर मन को दिखाने के लिये मंदिर चले आते हैं कि हम भी धर्मभीरु है और भगवान को याद दिलायें कि उसे हम भूले नहीं है। मोबाइल ने आपसी रिश्तों का कचड़ा किया है।अनेक बार ऐसे लोग मिल कॉलकरते हैं जिनका अपना कोई काम नहीं होता।वह एक तरह से संदेश देते हैं कि अटकी हो तो बात करो,नहीं तो भाड़ में जाओं।इतना ही नहीं मिस कॉल करने के बाद उन्हें जब कॉल दो तो वह बिना झिझक बताते हैं कि उनके पास खरीदा हुआ वार्तालाप का समय नहीं है। इन लोगों की पोल तब खुलती है जब अपना काम होने पर यह तत्काल फोन कर देते हैं। कम से कम मोबाइल के उपयोग से यह तो पता चला है कि किसके लिये हम महत्वपूर्ण है और कौन इसका दिखावा भर करता है। सच बात तो यह है कि मोबाइल ने गांव गांव तक अपनी पहुंच बना ली है। जहां बिजली नहीं पहुंची वहां भी मोबाइल पहुंच गया है।जिन गांवों में बिजली नहीं है या कम आती है वह उन गांवों से संपर्क बनाये रखते हैं जहां उनको मोबाइल की बैटरी चार्ज करने का अवसर मिलता है।आधुनिक मॉल हो या सब्जी मंडी सभी जगह आसपास मोबाइल की घंटी बजती सुनाई देती है। कुछ लोग शिकायत करते हैं कि बैंक आदि में जाने पर बाबू अपने काम के दौरान ही मोबाइल पर बात कर ग्राहक कीा समय नष्ट करते हैं पर हमने देखा है कि जिनी व्यवसायों में भी यही हो रहा है। मोबाइल के उपयोग को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ अत्यंत चिंतित हैं पर उनकी सुनता कौन है?वह दैहिक विकार पैदा होने की बात करते हैं। वह मस्तिष्क पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के तर्क देते हैं पर उससे मन और बुद्धि पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का उनके पास कोई प्रमाणिक आंकलन नहीं है।हम अपने अनुभव से कह रहे हैं कि मोबाइल मनुष्य को देह,मन तथा बुद्धि को अस्थिर कर रहा है।विचार शक्ति को नष्ट करने में मोबाइल इतना बड़ा योगदान दे रहा है जिसका आंकलन किया जाये तो अनेक डरावने सत्य सामने आयेंगे।यह आंकलनहोना अभी बाकी है। हमारे सामने बैठा व्यक्ति बातचीत इस तरह बातकर रहा हो जैसे कि बहुत आत्मीय हो पर जैसे ही उसके पास मोबाइल आता है वह हमारा अस्तित्व ही भूल जाता है।हम जैसे चिंत्तक लोगों कोउस समय अपनीकम दूसरे की चिंताअधिक होती है क्योंकि उसकी मानसिक अस्थिरता उसके लिये ही संकट होती है।दूसरे का फोन हो तो लोग लंबी बातचीत करने के लिये तत्पर रहते हैं और अपना हो तो दोहरे तनाव से उनका रक्तचाप बढ़ता है- एक तो अपनी बात पूरी करनी है दूसरी यह कि बिल अधिक न आये। हमारे एक सहृदय मित्र सेउस दिन फोन पर हमारी बातचीत हो रही थी।हमने उससे कहा कि‘‘तुम फोन रखो हम तुम्हें कॉल करते हैं।दरअसल हमें मोबाइल करने वाले बहुत कम लोग हैं। तुमने कॉल की तो ऐसा लगा जैसे कि लाटरी खुल गयी हैं। हम चाहते हैं कि हमारी बकवास पर हमारा ही खर्चा आये।’ वह मित्र भी कोई ऐसा नहीं था जो हमें चाहता न हो। वह बोला-‘‘मेरे मोबाईल के खाते में पांच सौ रुपये जमा है तुम चाहे जितनी बातचीत कर लो।कोई दूसरा होता तो हम मान लेतेपर तुम जैसा व्यंग्यकार हमें पटकनी दे यह हमें मंजूर नहंीं। भले तुम्हारे मन में न हो पर हमारे मस्तिष्क में तो है कि तुम व्यंग्यकार हो।’ सभी मित्र आत्मीय नहीं होते पर जो आत्मीय होते हैं वह व्यवहार में सतर्क रहते हैं। उस मित्र ने बात पूरी करने पर ही फोन बंद किया यह इस बात का प्रमाण था कि वह हमें चाहता है पर सभी लोग ऐसा नहीं करते।कुछ लोग तो खुश होते हैं कि अपना पैसा बचा।उस दिन हमारे एक मित्र अपने ही एक रिश्तेदार की शिकायत कर रहे थे कि वह अपना काम होने पर हाल फोन करता है और हम करते हैं तो उठाते ही नहीं है कहते हैं कि फोन चार्ज नहीं था।कभी कहते हैं कि मैं आफिस में भूल आया। कभी कहते हैं कि मैं अपना फोन बैग में रखता हूं।वह सरासर झूठ बोलते हैं। इस तरह रिश्तों में संशय के बीज भी यह मोबाइल बो रहा है। सबसे ज्यादा खतरनाक बात यह कि यह आदमी की बुद्धि का हरण कर रहा है। कभी कभी तो यह लगता है कि रिश्तों से ज्यादा मोबाइल का महत्व हो गया है।वैसे लोग जितनी फोन पर बात करते हैं उससे तो यह लगता है कि भारी कामकाज वाले हैं पर देश की गिरती विकास दर इस बात की पुष्टि नहीं करती कि इस देश के लोग अधिक कमा रहे हैं। न ही इससे यह पता चलता है कि सारे लोगों का धंधापानी जोरदार है। इसका मतलब यह कि मोबाइल फालतू बातचीत का ही साधन बन रहा है। सबसे बड़ी बात यह कि मोबाइल से लोगों का आत्मविश्वास कम हो रहा है।हर मिनट घर का हालचाल जानने की उत्कंठा इस बात का प्रमाण है कि लोग आशंकाओं के बीच जी रहे हैं। इससे मनुष्य का मनोबलगिरता है।

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

जीवन में विकल्प जरुरी है

एक बार एक राजा ने अपने दो सैनिको को मृतुदंड की सजा सुनाई. तो पहले सैनिक ने राजा से बहुत विनती की कि "उसे मृतुदंड न दिया जाए" पर राजा ने उसकी बात नही सुनी। तब दुसरे सैनिक ने राजा से कहा "महाराज मैं एक ऐसी विद्या जानता हूँ ,जिससे आप का घोड़ा उड़ने लगेगा"(उसे पता था की राजा को अपने घोडे से बहुत प्रेम है). राजा ने कहा कि "मैं कैसे मानु की तुम सही बोल रहे हो". सैनिक बोला "महाराज आपने ने मुझे मृतुदंड दिया है अगर मैं मर गया तो ये विद्या मेरे साथ खत्म हो जायेगी और वैसे भी एक मरने वाला आदमी कभी झूठ नही बोलेगा".राजा बोला "ठीक है मैं तुम्हे एक वर्ष का समय देता हूँ अगर तुमने मेरे घोडे को उड़ना सिखा दिया तो तुम्हे जीवन दान मिल जाएगा अन्यथा तुम्हे मौत मिलेगी". सैनिक इस बात पे तैयार हो गया . राजा के जाने के बाद पहले सैनिक ने दुसरे से पूछा "क्या तुम्हे वाकई में ऐसी विद्या आती है ". दुसरे ने बोला "नही! मुझे ऐसी कोई विद्या नही आती ". पहले ने फिर पूछा "फ़िर तुमने राजा से झूठ क्यों बोला की तुम उनके घोडे को उड़ना सिखा दोगे". दूसरा सैनिक बोला "अगर मैं ऐसा नही बोलता तो मैं आज ही मार दिया जाता पर अब मेरे पास एक वर्ष का समय है ". पहले ने फिर पूछा "लेकिन एक वर्ष बाद जब तुम घोडे को उड़ना नही सिखा पायोगे तो तुम्हे मार दिया जाएगा". दूसरा सैनिक बोला " मेरे पास अब चार विकल्प है " १ . एक वर्ष के अन्दर राजा मर सकता है . २. एक वर्ष के अन्दर घोड़ा मर सकता है . ३. मैं भी मर सकता हूँ . ४. शायद मैं घोडे को उड़ना सिखा ही दूँ ? पर तुम्हारे पास केवल एक ही विकल्प है कि "आज तुम्हे मार दिया जाएगा". इस प्रसंग से मैं ये कहना चाहता हूँ कि आप जब भी कोई काम करे तो कम से कम एक से ज्यादा विकल्प आप के पास होने चाहिए अन्यथा आप मुसीबत में पड़ सकते हैं .

नासिक-त्रयंबकेश्वर सिंहस्थ कुंभ मेला

कुम्भ मेला की पौराणिक कहानी : वेदों में दिए विवरण के अनुसार जब अमृत की खोज में समुद्र मंथन किया गया था | तब उस कार्य को सिद्ध करने के लिए मंडरा पर्वत को मथाई के तौर पर समुद्र के बीच रखा गया | उसमे चारों तरफ शेष नाग को लपेटा गया जिसको दोनों तरफ से खींच कर समुद्र मंथन करना था | इस कार्य के लिए देवताओं और दानवो दोनों को लिया गया एक तरफ देवता दूसरी तरफ दानव खड़े हुए और वर्षो तक मंथन चला जिसमे हलाहल विष निकला | इससे सभी को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस हलाहल विष का पान कर लिया | तभी से उनका नाम नीलकंठेश्वर पड़ा | इसके बाद कई हजार वर्षो तक मंथन करने के बाद उसमे से कुबेर देवता अमृत का घड़ा लेकर निकलने | उस अमृत के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध हो गया | अगर दानवों को अमृत मिल जाता तो अनर्थ हो जाता इसलिये यह अमृत का घड़ा मोहिनी नामक अप्सरा ले जाती हैं | भगवान विष्णु मोहिनी का रूप धर कर आते हैं | जब वे इस घड़े को ले जाते हैं | तब इसकी चार बुँदे पृथ्वी पर गिरती हैं | तब ही इन चार शहरों में महा कुम्भ का आयोजन होता हैं | देवता और दानव की लड़ाई को रोकने के लिए मोहिनी फैसला करती हैं कि वो बारी- बारी से सभी को अमृत पान करायेगी | और इस तरह मोहिनी छल से देवताओं को अमृत और दानवों को जल का पान कराती हैं | जिसे एक दानव समझ लेता हैं और देवताओं का भेस धर देवताओं की तरफ बैठ जाता हैं | मोहिनी उसे अमृत पान करा देती हैं वो इस छल को समझ जाती हैं और तुरंत विष्णु रूप में आकर उस दानव का सर सुदर्शन से धड़ से अलग कर देती हैं | चूँकि दानव ने अमृत पान किया ही था इसलिये उसका धड़ मर जाता हैं और मस्तक अमर हो जाता हैं | इस प्रकार देवता अमृत पान कर अमर हो जाते हैं | तभी से इन चार शहरों नासिक, उज्जैन, प्रयाग एवम हरिद्वार में कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता हैं | यह महा कुम्भ इन शहरों में प्रति बारह वर्षों में आता हैं | जब भी कुम्भ होता हैं उस माह को सिंहस्थ का पवित्र महिना माना जाता हैं | इस वर्ष इस महा कुम्भ का आयोजन महाराष्ट्र के नाशिक त्रयम्बकेश्वर गोदावरी नदी के तट पर आयोजित हुआ हैं |नागा साधू : कुम्भ मेले में बड़ी मात्रा में नागा साधू भाग लेते हैं | ये साधू वर्षो तक हिमालय की गुफाओं में कठिन साधना, तपस्या में लीन रहते हैं | ये केवल सिंहस्त कुम्भ के समय ही बाहर आते हैं | मान्यता यह कि सिंहस्त कुम्भ में अमृत बरसता हैं | ये साधू उस पवित्र अमृत की चाह में ही सामान्य जनता के बीच आते हैं और स्नान कर वापस उन्ही हिमालय की पहाड़ियों में चले जाते हैं | इस साधुओं को दुनियाँ के किसी आडम्बर से कोई मतलब नहीं होता | इनकी उम्र कितनी हैं | यह भी नहीं कहा जा सकता | तपस्या में लीन इन साधुओं की जटाएं बड़ी- बड़ी हो जाती हैं | हिमालय की ठण्ड में ये साधू बिना कोई गरम कपड़े पहने तपस्या में लीन रहते हैं | और वहाँ सूखे कंद मूल फल खाकर अपना जीवन बिताते हैं | यह केवल इस अमृत की चाह में उन डरावनी गुफाओं में तपस्या करते रहते हैं |नासिक महाकुंभ : पहला शाही स्नान

शनिवार, 22 अगस्त 2015

- मारवाड़ी समझाइश

म्हारो गांव म्हारो ठाव है एक गांव जठै न बंगळा न हैलियां न ढिगला थैलियां ।

बुधवार, 12 अगस्त 2015

Kaali Chint

छींटयानी एक विशेष प्रकार का सूती कपड़ा जो कभी लोकसंस्कृति व लोकजीवन का पर्याय रहा था. सदियों सदियों तक भारत की छींट दुनिया भर में प्रसिद्ध रही. थार के लोकजीवन से तो इसका नाता कुछ अधिक ही गहरा था. पर बदलते वक्त के साथ यह सूती कपड़ा आम जन का पहनावा नहीं कुछ लोगों का शगल बनकर रह गया है. ढोल मंजीरों की गूंज के साथ छींट के नजारे भी गायब से हो रहे हैं. किसीजमाने में छींट का प्रचलन लगभग पूरे भारत में था. यह सांस्कृतिक विविधिताओं वाले समाज में ‘सर्वग्राह्यता’ की मिसाल थी और कई कारणों से राजस्थान की मरूभूमि के लोकजीवन में इसे ज्यादा ही महत्व मिला. प्रेम, सौंदर्य व वीरता के साथ धोरों की यह धरा अपनी छींट व बंधेज के काम के कारण भी चर्चित रही है. तपते रेगिस्तानी वातावरण में लोगों को तन ढकने के लिए छींट जैसे ठंडी तासीर वाले कपड़े की दरकार थी. तीखी धूप व दूसरे वातावरणीय दुष्प्रभावों से बचाव में उपयोगी होने के कारण छींट का प्रचलन बढना स्वाभाविक था. कपड़ा खुसता नहीं और धोने के लिए साबुन या पाऊडर की जरूरत नहीं. गृहिणियां छींट को राख या रीठे से आसानी से धो लेतीं. सस्ती भी इतनी कि नये कपड़े की खरीद किसी को भारी न लगे. सबसे बड़ी बात कि यह मानव स्वास्थ्य के अनुकूल थी. धूप से त्वचा का बचाव करती तथा भीषण गर्मी तपन में रोमकूपों तक हवा की आवाजाही को सुगम बनाती. इन्हींतमाम विशेषताओं के कारण छींट का कपड़ा लोकप्रिय होता गया. इसकी रंगाई शुरू में गांवों में छींपा लोग ही कर लेते थे. मशीनी युग में इसकी लोकप्रियता चरम पर पहुंची. बुजुर्गवार आज भी राधिका प्रिंट वाली छींट को याद करते हैं. अहमदाबाद में तैयार यह कपड़ा जनमानस में इस तरह से रचा बसा कि कुछ ही दिनों में छींट व राधिका प्रिंट एक दूसरे के पर्यायवाची हो गए. थाली व बूंदी की छींट भी कम लोकप्रिय नहीं रही. मुलतानी व सांगानेरी छींट के घाघरे वर्षों तक महिलाओं के व्यक्तित्व को नया आयाम देते रहे. हल्के रंग वाली बारीक बूंटियां बगरू/ सांगानेरी छींट की विशेषता रही; हाड़ौती अंचल तो आज भी छींट की छपाई के लिए ही जाना जाता है. हररंग व डिजाइन तथा न्यूनतम दाम में मिलने वाली छींट प्रत्येक तबके के लोगों के लिए पहली पसंद रही. अस्सी कळी (लगभग 22 मीटर) के घाघरे हों या दस गज की चीणदार अंगरखी, एक समय छींट रोटी में नूण की तरह जनजीवन में रच बस गई. अब जमाना डेनिम, नॉन डेनिम, रोये, लिजीविजी, पॉपलीन, काटनफील, जार्जेट, सेंचुरी, स्पन तथा ट्विल प्रिंट का है. चल निकले हैं और छींट इस दौड़ में कहीं पीछे छूट गई है. कई मायनों में छींट के विकल्प के रूप में सामने आया कॉटनप्रिंट भी महंगा होने के कारण चल नहीं पाया. वक्त के साथ वे लचकदार कमर भी नहीं रहीं जो जो अस्सी कळी के ‘भारी’ घाघरों लहरियों के साथ नजाकत से चल सकें. थार में छींट को केंद्र में रखते हुए अनेक लोकगीत हैं जिनमें से ‘ढोला ढोल मजीरा बाजै रे काली छींट गो घाघरो निजारा बाजै रे’ तो आज भी खूब बजता है. वस्त्रों को लेकर ‘ म्हारो अस्सी कळी को घाघरो .. ’ तथा ‘छैल भंवर जी थानै मंगास्यू छापो सांगानेर गो..’ जैसे गीत भी अनूठे हैं. कहां से आई छींट :भारत में बनने वाले सूती कपड़ों में छींट ही सबसे प्रसिद्ध मानी गई है. यूरोप में इसे चिंट्स कहा जाता है. मसूलीपत्तनम की छींट सबसे प्रसिद्ध थी. कहते हैं कि यह कला ईरान से भारत में आई और ईरान की चिंट भारत में छींट हो गई. यूरोप को भी इसे इसी नाम से जानते हैं. छींट (Chhintz), गत (Blotch), बँधनी (Tie Dyeing) और बातिक (Batik) आदि शब्द वस्तुत: छपाई की प्रक्रिया के सूचक हैं. छींट और गत की छपाई यंत्रों से की जाती है. छींट में रंगीन भूमि कम ओर गत में लगभग सभी वस्त्र रंगचित्रों से ढका होता है. छींट की छपाई में ही अधिकाधिक उत्पादन कम खर्च में लिया जा सकता है. इसके भारत में लोकप्रिय होने का एक बड़ा कारण इसे भी माना जा सकता है. छींट शब्द की उत्पत्ति को लेकर अलग अलग बात की जाती है. किसी का कहना है कि छींट संस्कृत के क्षिप्त से बना है. वैसे लोकजीवन में छींटा देना, छींटे यानी छोटी बूंदें, छींटे मारना यानी बिखरा देना जैसे शब्द खूब प्रचलित है. ऐसे में लगता तो यही है कि छींट शब्द भारत से बाहर फैला
काचर राजस्थान में खाने में ही काम नहीं आता, साल भर बतरस की तरह भी बरता जाता है. काचर,एक ऐसा शब्द जो थार में बात को नया रस देता है. काचर, एक ऐसा फल (या सब्जी) जो छठ बारह महीने थार में थाली को चटपटा बनाए रखता है. दो मुहावरे हैं- काचर गा बीज और अठे कै काचर ल्ये (काचर का बीज/ यहां क्या काचर ले रहा है.) काचर अपने तीखी खटास या अम्ल के लिए भी जाना जाता है. काचर के एक छोटे से बीज को अगर एक मण (40 किलो लगभग) दूध में डाल दें तो वह पूरे दूध को फाड़ देगा. खराब कर देगा. यहीं से ‘काचर का बीज’ मुआवरा निकलता है यानी कुचमादी, गुड़ गोबर करने वाला, अच्छे भले काम को बिगाड़ने वाला. इसी तरह ‘यहां क्या काचर ले रहा है’ मतलब यहां क्या भाड़ झोंक रहा है, जाकर अपना काम क्यों नहीं करते? किसी विशेषकर छोटे या बच्चे की खिंचाई करने के लिए काचर का बीज, काचर सा न हो तो, काचर बिखरने जैसे वाक्य मुआवरे हर किसी की जुबान पर रहते हैं. अधिक शरारती को मटकाचर (बड़ा काचर) कह दिया जाता है. दियाळी रा दीया दीठा, काचर बोर मतीरा मीठा (दिवाली के दिये दिखाई दिये और काचर, बेर और मतीरे मीठे हुए क्योंकि दिवाली बीतने पर काचर बेर और मतीरे मीठे हो जाते है). खाने में काचर की बात की जाए. काचर यानी ककड़ी का छोटे से छोटा रूप. काचर, काकड़ी, मतीरा, खरबूजा ये लगभग एक ही वंशकुल के तथा थार की बालुई मिट्टी में कम पानी में होने वाले फल सब्जियां हैं. वैसे ये सभी फल हैं लेकिन इनका काम सब्जियों में ज्यादा होता है. काचर तो काचर ही है. काचर हरा होता है तो बहुत खट्टा मीठा होता है और उसे कच्चा खाने का सोचते ही मुहं में कुछ होने लगता है. कच्चे काचर को लाल मिर्च और थोड़े से लहसुन के साथ कुंडी में रगड़कर, चुंटिए, दही या छा के साथ खाने को जो मजा है, मानिए गूंगे का गुड़ है! वैसे काचरी को आयुर्वेद में मृगाक्षी कहा जाता है और काचरी बिगड़े हुए जुकाम, पित्त, कफ, कब्ज, परमेह सहित कई रोगों में बेहतरीन दवा मानी गई है. काचर थोक में होता है. उसके छिलके को उतारकर टुकड़ों में काट जाता है और धूप में सुखा लिया जाता है. सूखकर काचर, काचरी हो जाता है और काचरी की चटनी तो .. कहते हैं कि आजकल पांच सितारा होटलों में विशेष रूप से परोसी जाती है. काचरी की चटनी तो बनती ही है इसे कढ़ी में डाल दिया जाता है, सांगरी के साथ बना लिया जाता है या किसी और रूप में भी. कचरी की चटनी का सही स्वाद उसे साबुत लाल मिर्च के साथ कुंडी में या सिलबट्टे पर रखड़कर बनाने व खाने में ही है. काचर काचरी थार में घरों में छठ बारह महीने उपलब्ध रहते हैं. भोजन में स्वाद और बातों में रस घोलते रहते हैं.

सूखी हुई लूणी»

थारमें हम नमक को लूण/नूण कहते हैं. इसी से लूणी यानी नमकीन शब्द बना है जिस नाम की एक नदी कभी अजमेर, बाड़मेर, जालोर, जोधपुर नागौर, पाली व सिरोही जिलों को सरसब्ज करते हुए बहती थी. दरअसलअजमेर के निकट अरावली पर्वतमाला के बर-ब्यावर के पहाड़ों से निकल यह नदी बिलाड़ा, लूणी, सिवाणा, कोटड़ी-करमावास व सिणधरी होते हुए पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित राड़धरा तक बहती जाती. और कच्छ के रण में मिलने से पहले मारवाड़ के कई गांवों कस्बों को छूते हुए निकलती. इसका एक किनारा बाड़मेर के बालोतरा कस्बे को छूते हुए निकलता है. अगर हम मोकळसर, गढ सीवाणा व आसोतरा से होते हुए बालोतरा आएं तो एक पुराना सा पुल है. इसके किनारे पर मंदिर है. मंदिर के किनारे हाथियों की दो उंची प्रतिमाएं हैं. कहते हैं कि लूणी के स्वर्णकाल में ये हाथी पूरे के पूरे डूब जाते थे और उसका पानी कस्बे के बाजार तक अपने लूणी निशान छोड़ जाता था. लेकिनयह ‘वे दिन वे बातें’ जैसा है. अब तो लूणी में पानी ही आए बरसों बरस हो गए हैं. मारवाड़ के एक बड़े इलाकों की प्यास बुझाने वाली लूणी नदी दशकों से प्यासी है. मारवाड़ की यह मरूगंगा अब सूख चुकी है और इसके तल में जम गए नमक को जेठ आषाढ की दुपहरियों में दूर से ही चमकते हुए देखा जा सकता है. लूणीनदी की गहराई भले ही न हो लेकिन इसका बहाव क्षेत्र बहुत व्यापक रहा है. सवा पांच सौ किलोमीटर से ज्यादा दूरी नापने वाला लूणी नदी का पानी आंकड़ों के लिहाज से 37,300 किलोमीटर से अधिक (प्रवाह) क्षेत्र को सींचता था. जोधपुर से पाली जाने वाली सड़क पर निकलें तो रोहेत से दायीं ओर वाली सड़क जालोर जाती है. यह जैतपुर, बस्सी, भाद्राजून, नींबला, आहोर व लेटा होकर जालोर पहुंचती है. लेकिन जालोर से बाहर से ही बागरा, बाकरा रोड़ स्टेशन, बिशनगढ, रमणिया, मोकळसर, गढ सीवाण, आसोतरा, बालोतरा व पचपदरा होते हुए वापस जोधपुर आएं तो एक साथ चार जिलों में घूमा जा सकता है. लगभग साढे चार सौ किलोमीटर की इस यात्रा में लूणी नदी, उसकी सहायक नदियां बार बार मिलती हैं. लेकिन सब की सब सूखीं. कहतेहैं कि लूणी मूल रूप से खारी नदी नहीं है. इसका पानी बालोतरा या इसके आसपास आकर ही खारा होता है. जब यह नदी बहती थी तो इसके दोनों ओर कई मीलों तक कुएं भर भर आते थे. लेकिन उन कुंओं में लूण की मोटी परतें जम चुकी हैं. लूणी का स्वर्णकाल अतिक्रमणों व औद्योगिक कचरे के नीचे दब गया है और लूणी बेसिन योजना मानों इतिहास के किसी डस्टबिन में फेंक दी गई है.
धरम री बाड़ रूखाळ करै माण-मरजादा री काण-कायदा री रीत- रिवाजां री तीज- तिंवारा री धरम री बाड़ रूखाळ करै रिस्ता-नातां री गांव-गवाड़ी री खेत-खळां री देस-दिसावर री धरम री बाड़ रूखाळ करै राज-समाज री लाज-सरम री बिणज-बौपार री जलम-मरण री धरम री बाड़ रूखाळ करै भूल्या-भटक्यां री पापी-दुस्मियां री जीव-जिनावरां री भूखा-तिरसा री धरम री बाड़ रूखाळ करै भाईचारै-मिनखाचारै री बोल-बतळावण री नाप-तोल री जस-अपजस री धरम री बाड़ रूखाळ करै भूंड-भलाई री ब्यांव-सगाई री मोट-मिजाज री मान-गुमान री धरम री बाड़ रूखाळ करै पढाई-लिखाई री गुण-औगण री पाप-पुन री सरग-नरग री धरम री बाड़ रूखाळ करै गढ-कोटां री हाट-बजारां री घर-गळी री हरख-बधावै री धरम री बाड़ रूखाळ करै सील-सुभाव री सत-पत री आस-औलाद री जात-पांत री धरम री बाड़ रूखाळ करै सूरां-वीरां री साधु-संता री हठ-हठीलां री प्रण-पक्कां री धरम री बाड़ रूखाळ करै हेत-हेताळूवां री प्रीत-प्रीतम री राग-सौरठ री कवि-कलमा री धरम री बाड़ रूखाळ करै दसूं-दिसावां री न्याव-अन्याव री जोग-संजोग री भाग-दुरभाग री

बुधवार, 15 जुलाई 2015

Betiya

मुझे इतनी "फुर्सत" कहाँ कि मैँ तकदीर का लिखा देखुँ., बस अपनी बेटी की "मुस्कुराहट" देखकर समझ जाता हुँ की "मेरी तकदीर" बुलँद है।

Joke 1

लुगायां रो ब्रत पति पत्नी से:-- कई बात है, आज नाश्तों कोणी बणायो पत्नी;-- आज तो व्रत है नी पति ;--आज थारो व्रत है कई ?? पत्नी :-- हाँ जी पति :--- कईं खायो ? पत्नी :-- कोई खास नही जी पति :-- फेर भी कई तो खा लेवती ? पत्नी :-- में तो थोडा सो..... केला, सेव, अनार , मूंगफली, फ्रूट क्रीम, आलू की टिक्की, साबूदाने की खीर, साबूदाने रा पापड़, कुट्टू री पूरी, सावंख, सिंघाड़े रे आटे रो हलवो, साबूदाने री खिचडी , सुबह-सुबह थोड़ी सी चाय पी, और अबे जूस पी रही हूँ। आज व्रत है नी, इ वास्ते बाकी तो कई खावणो कोणी........ पति ;-' थोड़ो आमरस या पपितो खा लेवती पत्नी:-- बे सब तो शाम ने खावुला पति:- तू तो बोत ही सख्त व्रत राखे है, ओ हर कोई रे बस री बात कोइनि । और कुछ खाने रि इच्छा है ? देखलिए कठैई कमज़ोरी नइ आय जावे। पत्त्नी ; नहीं जी कमजोरी नी आवे इरे वास्ते तो सुबह उठते ही बादाम काजू खा लिया हा पति ;-- फेर भी धयान राखजो

क्या आप जानते हैं?

* खड़े खड़े पानी पीने वाले का घुटना दुनिया का कोई डॉक्टर ठीक नहीँ कर सकता। * तेज पंखे के नीचे या A. C. में सोने से मोटापा बढ़ता है। * 70% दर्द में एक ग्लास गर्म पानी किसी भी पेन किलर से भी तेज काम करता है। * कुकर में दाल गलती है, पकती नहीँ। इसीलिए गैस और एसिडिटी करती है। * अल्युमिनम के बर्तनों के प्रयोग से अंग्रेजों नें देशभक्त भारतीय क़ैदियों को रोगी बनाया था। * शर्बत और नारियल पानी सुबह ग्यारह के पहले अमृत है। * लकवा होते ही मरीज के नाक में देशी गाय का घी डालने से लकवा पन्द्रह मिनट मेँ ठीक हो जाता है। * देशी गाय के शरीर पर हाथ फेरने से 10 दिन में ब्लड प्रेसर नॉर्मल हो जाता है। * देशी गाय का दूध रोग नाशक है। * विदेशी गाय का दूध रोग कारक है। * रोज पन्द्रह से बीस मिनट माता पिता के पैर दबाने वाले को हॉस्पिटल के चक्कर नहीँ काटने पड़ते।

सोमवार, 6 जुलाई 2015

" एक ऐसा भी बचपन था "

" एक ऐसा भी बचपन था " . . . . . . हम, जो 1965 -1980 के बीच जन्में है, हमें एक विशेष आशीर्वाद प्राप्त हैँ ... और ऐसा भी नही कि हमें किसी भी आधुनिक संसाधनों से परहेज है......!!! लेकिन..... * हमें कभी भी जानवरों की तरह किताबों को बोझ की तरह ढो कर स्कूल नही ले जाना पड़ा । * हमारें माता- पिता को हमारी पढाई को लेकर कभी अपने प्रोग्राम आगे पीछे नही करने पड़ते थे ! * स्कूल के बाद हम देर सूरज डूबने तक गली की सड़क पर गली मोहल्ले में खेलते थे। * हम अपने सभी सच्चे और पक्के दोस्तों के साथ खेलते थे, न की आज की तरह नेट दोस्तों के साथ । * जब भी हम प्यासे होते थे तो सीधे नल से पानी पी लिया करते थे और वो पानी भी साफ़ शुद्ध होता था और हमने कभी बॉटल का पानी नही ढूँढा । * हम कभी भी चार लोग गन्ने का जूस आपस में बाँट कर के भी बीमार नही पड़े । * हम एक प्लेट मिठाई और रोज़ चावल खाकर भी कभी मोटे नही हुए । * नंगे पैर घूमने के बाद भी हमारे पैरों को कुछ नही होता था। * हमें स्वस्थ रहने के लिए कुछ भी अलग ( प्रोटीन - विटामिन) नही लेना पड़ता था । * हम कभी कभी अपने खिलोने खुद बना कर भी खेलते थे । अपने दोस्तों के साथ खिलोने आपस में बॉट लेते थे । * हम ज्यादातर अपने माता पिता के साथ या उनके पास ही रहे । या कभी भी किसी रिश्तेदार के यहाँ भी बिना किसी झिझक के रह लेते थे । * हम अक्सर 2-4 भाई बहन एक जैसे या एक दूसरे के कपड़े पहनना शान समझते थे, तब हममे एक सामान वाली कोई बात नही थी और उसमे भी मजे करते थे । * हम बहुत कम ही डॉक्टर के पास जाते थे, और कभी जरुरत पड़ती थी तब डॉक्टर साहब हमारे पास आ जाया करते थे । * हमारे पास तब न तो मोबाइल, dvd , Xboxes, PC, Internet, chatting, क्योंकि हमारे पास सच्चे दोस्त थे । * हम दोस्तों के घर बिना बताये जाकर मजे करते थे और खेलने के साथ साथ खाने -पीने के मजे लेते थे। हमे कभी उन्हें कॉल करके उनके यहाँ जाना नहीं पड़ा । * शायद हम एक अदभुद और सबसे समझदार पीढ़ी है क्योंकि हम वो अंतिम पीढ़ी हैं जो की अपने माता- पिता की सुनते हैं...और साथ ही साथ पहले जो की अपने बच्चों की भी सुनते हैं । अब वो ज़माना शायद कभी लोट कर नहीं आ सकता ।

मंगलवार, 23 जून 2015

" बेटी

शादी में बेटे की कीमत मांगते भारी, यह पिता नहीं हैं, ये हैं व्यापारी ! ऐसे मंगतो के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !औरत की कोख से ही पैदा हुए हैं आप,फिर भी भ्रूण हत्या का करते जघन्य अपराध, ऐसे अपराधियों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !संसद में बैठ नंगा विडियो चलाते, घोटालों के सिर पर अपनी तोंद बढाते, ऐसे बदमाशों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !बलात्कारी हैं निर्लज्जता की हद ये तोडें, बस चले इनका तो माँ-बहन को न छोडें, ऐसे बलात्कारियों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !नशे में डूब करते जिन्दगी बरबाद, न अपनो की शर्म न दूजों का लिहाज्, ऐसे नशेडियों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !संत महात्मा बने फिरते, बडा तिलक लगाते, गला उनका ही काटें जिन्हें गले लगाते, ऐसे पापियों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !

बिच्छू का जहर उतारने के घरेलू उपचार

बिच्छू का जहर उतारने के घरेलू उपचार 1- बिच्छू एवं अन्य जहरीले कीड़े के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों और जड़ का ताजा रस लगाने से जलन और दर्द में तुरंत आराम मिलता है | इनके विष का प्रभाव कम करने के लिए 2 चम्मच की मात्रा में अपामार्ग के पत्तों का रस 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है | 2- एक पत्थर पर दो-चार बूँद पानी की डालकर निर्मली या इमली के बीज को घिसें। उस घिसे हुए पदार्थ को दर्द वाले स्थान पर लगायें | डंक वाले स्थान पर घिसा हुआ इमली या निर्मली का बीज चिपका दें। 3- पोटेशियम परमैंगनेट एवं साइट्रिक एसिड के पाउडर को अलग-अलग बोतल में भरकर हमेशा घर में रखें । बिच्छू के डंक पर मूँग के दाने जितने साइट्रिक एसिड के पाउडर एवं पोटेशियम परमैंगनेट का मूँग के दाने जितना पाउडर रखें। ऊपर से एक बूँद पानी भी डालें। थोड़ी देर में विष उतर जायेगा। यह एक अदभुत दवा है। 4- माचिस की 8-10 तीलियों का मसाला पानी में घिसकर बिच्छु के डंक वाले स्थान पर लगाऐं। इससे बिच्छु का जहर तुरंत उतर जाता है। 5- एक पत्थर पर फिटकरी को घिस लें, बिच्छु काटे के स्थान पर इस लेप को लगाकर आग से थोड़ी देर तक सेकें । इस प्रयोग से बिच्छू का जहर शीघ्रता से उतर जाता है | 6- प्याज को पीसकर पेस्ट बना लें एवं इसमें थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर बिच्छु के काटे हुए स्थान पर लगा दें | इस प्रयोग से बिच्छू का जहर उतर जाता है।

" बेटी ,,

कही पढा था, की हर व्यक्ति के १०० भाग्य होते है । पर उन १०० भाग्यों में से जब १ भाग्य अच्छा होता है तब उन के घर पर 'लड़के' का जन्म होता है और जब १०० के १०० भाग्य अच्छे होते तब उन के घर पर 'लड़की' का जन्म होता है । इसीलिए ऐसा कहा जाता है की, लड़का तो 'भाग्य' से होता है... लेकिन लड़की 'सौभाग्य' से होती है । बेटी है तो कल है पराया धन होकर भी कभी पराई नही होती। शायद इसीलिए....किसी बाप से... हंसकर बेटी की, विदाई नही होती।।"

" अभिमान " rukamani ka

एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया।दूध ज्यदा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला हे राधे ! सुनते ही रुक्मणी बोली प्रभु! ऐसा क्या है राधा जी में ,जो आपकी हर साँस पर उनका ही नाम होता है।मैं भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूँ; फिर भी आप हमें नहीं पुकारते। श्री कृष्ण ने कहा -देवी!आप।कभी राधा से मिली हैं ?और मंद मंद मुस्काने लगे। अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंची ।राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा और उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि ये ही राधाजी है और उनके चरण छुने लगी; तभी वो बोली -आप कौन हैं ? तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया ;तब वो बोली मैं तो राधा जी की दासी हूँ।राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी । रुक्मणी ने सातो द्वार पार किये और हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी क़ि अगर उनकी दासियाँ इतनी रूपवान हैं तो राधारानी स्वयं कैसी होंगी ?सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंची।कक्ष में राधा जी को देखा ,अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिसका मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था। रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ी पर ये क्या राधा जी के पुरे शरीर पर तो छाले पड़े हुए है।रुक्मणी ने पूछा देवी आपके शरीर पे ये छाले कैसे ? तब राधा जी ने कहा देवी कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया, वो ज्यदा गरम था; जिससे उनके ह्रदय पर छाले पड गए और उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है... ..इसलिए कहा जाता है बसना हो तो ह्रदय में बसो किसी के दिमाग में तो लोग खुद ही बसा लेते है..।।।।

" इंडिया "bharat

यह नदियों का मुल्क है, पानी भी भरपूर है । बोतल में बिकता है, बीस रू. शुल्क है । . यह शिक्षकों का मुल्क है, स्कूल भी खुब है । बच्चे पढने जाते नहीं, पाठशालाएं नि : शुल्क है । . यह गरीबों का मुल्क है, जनसंख्या भी भरपूर है । परिवार नियोजन मानते नहीं, नसबन्दी नि : शुल्क है । . यह अजीब मुल्क है, निर्बलों पर हर शुल्क है । अगर आप हो बाहुबली, हर सुविधा नि : शुल्क है । . यह अपना ही मुल्क है, कर कुछ सकते नहीं, कह कुछ सकते नहीं, बोलना नि : शुल्क है । . यह शादियों का मुल्क है, दान दहेज भी खुब है । शादी करने को पैसा नहीं, कोर्ट मेरिज नि : शुल्क है । . यह पर्यटन मुल्क है, रेले भी खुब है । बिना टिकट पकङे गये, रोटी कपङा नि : शुल्क है ।

Joke of the day

एक Marwadi को जॉब नही मिली तो उसने क्लिनिक खोला और बाहर लिखातीन सौ रूपये मे ईलाज करवाये ईलाज नही हुआ तो एक हजार रूपये वापिस.... एक डॉक्टर ने सोचा कि एक हजार रूपये कमाने का अच्छा मौका है वो क्लिनिक पर गया और बोला मुझे किसी भी चीज का स्वाद नही आता है Marwadi : बॉक्स नं.२२ से दवा निकालो और ३ बूँद पिलाओ नर्स ने पिला दी मरीज(डॉक्टर) : ये तो पेट्रोल है Marwadi : मुबारक हो आपको टेस्ट महसूस हो गया लाओ तीन सौ रूपये डॉक्टर को गुस्सा आ गया कुछ दिन बाद फिर वापिस गया पुराने पैसे वसूलने मरीज(डॉक्टर) :साहब मेरी याददास्त कमजोर हो गई है Marwadi : बॉक्स नं. २२ से दवा निकालो और ३ बूँद पिलाओ मरीज (डॉक्टर) : लेकिन वो दवा तो जुबान की टेस्ट के लिए है Marwadi : ये लो तुम्हारी याददास्त भी वापस आ गई लाओ तीन सौ रुपए। इस बार डॉक्टर गुस्से में गया डॉक्टर-मेरी नजर कम हो गई है Marwadi- इसकी दवाई मेरे पास नहीं है। लो एक हजार रुपये। डॉक्टर-यह तो पांच सौ का नोट है। Marwadi- आ गई नजर। ला तीन सौ रुपये। ........ East aur West.. Marwadi is the Best

" इंडिया "

" इंडिया " . . . . . आज विद्यालय में बहुत चहल पहल है । . सब कुछ साफ - सुथरा , एक दम सलीके से । . सुना है निरीक्षण को कोई साहब आने वाले हैं । . पूरा विद्यालय चकाचक । . नियत समय पर साहब विद्यालय पहुंचे । . ठिगना कद , रौबदार चेहरा , और आँखें तो जैसे जीते जी पोस्टमार्टम कर दें । . पूरे परिसर के निरीक्षण के बाद उनहोंने कक्षाओं का रुख किया । . कक्षा पांच के एक विद्यार्थी को उठा कर पूछा , बताओ देश का प्रधान मंत्री कौन है ? . बच्चा बोला -जी राम लाल । . साहब बोले -बेटा प्रधान मंत्री ? . बच्चा - रामलाल । . अब साहब गुस्साए - अबे तुझे पांच में किसने पहुंचाया ? पता है मैं तेरा नाम काट सकता हूँ । . बच्चा - कैसे काटोगे ? मेरा तो नाम ही नहीं लिखा है । मैं तो बाहर बकरी चरा रहा था । इस मास्टर ने कहा कक्षा में बैठ जा दस रूपये मिलेंगे । . तू तो ये बता रूपये तू देगा या मास्टर ? . . साहब भुनभुनाते हुवे मास्टर जी के पास गए , कडक आवाज में पूछा - क्या मजाक बना रखा है । फर्जी बच्चे बैठा रखे हैं । पता है मैं तुम्हे नौकरी से बर्खास्त कर सकता हूँ । . . गुरूजी - कर दे भाई । मैं कौन सा यहाँ का मास्टर हूँ । मास्टर तो मेरा पड़ोसी दुकानदार है । वो दुकान का सामान लेने शहर गया है। कह रहा था एक खूसट साहब आएगा , झेल लेना । . अब तो साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर । पैर पटकते हुए प्रधानाध्यापक के सामने जा पहुंचे । चिल्लाकर बोले , " क्या अंधेरगर्दी है , शरम नहीं आती । क्या इसी के लिए तुम्हारे स्कूल को सरकारी इमदाद मिलती है । . पता है, मैं तुम्हारे स्कूल की मान्यता समाप्त कर सकता हूँ जवाब दो प्रिंसिपल साहब । . प्रिंसिपल ने दराज से एक सौ की गड्डी निकाल कर मेज पर रखी और बोला - मैं कौन सा प्रिंसिपल हूँ, प्रिंसिपल तो मेरे चाचा हैं । प्रॉपर्टी डीलिंग भी करते हैं, आज एक सौदे का बयाना लेने शहर गए हैं । कह रहे थे, एक कमबख्त निरीक्षण को आएगा , उसके मुंह पे ये गड्डी मारना और दफा करना । . . . . . . . . . साहब ने मुस्कराते हुए गड्डी जेब के हवाले की और बोले - आज बच गये तुम सब । अगर आज मामाजी को सड़क के ठेके के चक्कर में शहर ना जाना होता, और अपनी जगह वो मुझे ना भेजते तो तुम में से एक की भी नौकरी ना बचती । ऐसा सब हमारे यहाँ ही संभव हे !!!!!

" नशा मुक्ति " . . . " घरेलु नुस्का "

" नशा मुक्ति " . . . " घरेलु नुस्का " . . नशा छोड़ने के लिए चाहे वह कोई भी नशा हो शराब, गुटखा, तम्बाकू या और कोई भी। अदरक के छोटे छोटे टुकड़े काट ले इन पर सेंधा नमक बुरक ले, अब इन टुकड़ो पर अच्छे से निम्बू निचोड़ ले और इन टुकड़ो को धुप में सूखने के लिए रख दे। जब सूख जाए तो बस हो गयी दवा तैयार । अब जब भी किसी नशे की लत लगे तो ये टुकड़ा मुँह में ले और चूसते रहो। ये अदरक मुह में घुलती नहीं इसको आप सुबह से शाम तक मुह में रख सकते हैं। अब आप सोचोगे के ऐसा अदरक में क्या हैं तो सुनिए जब किसी आदमी को नशे की लत लगती हैं तो उसका शरीर सल्फर की डिमांड करता हैं, और अगर हम सल्फर की कमी शरीर में पूरी कर दे तो फिर हमको ये नशे की उठने वाली तलब नहीं लगेगी। अगर आप ये प्रयोग आप ३ से ४ दिन करोगे तो ही आप नशा मुक्त हो जाओगे। अगर कोई बहुत बड़ा नशेबाज हैं या रेगुलर ड्रिंक या कोई भी नशा करते हैं तो उनको ये 7 से 8 दिन लग सकते हैं। परंतु इस साधारण से प्रयोग कर आप नशे से मुक्ति पा सकते हे ।

" एक ऐसा भी बचपन था "

" एक ऐसा भी बचपन था " . . . . . . हम, जो 1965 -1980 के बीच जन्में है, हमें एक विशेष आशीर्वाद प्राप्त हैँ ... और ऐसा भी नही कि हमें किसी भी आधुनिक संसाधनों से परहेज है......!!! लेकिन..... * हमें कभी भी जानवरों की तरह किताबों को बोझ की तरह ढो कर स्कूल नही ले जाना पड़ा । * हमारें माता- पिता को हमारी पढाई को लेकर कभी अपने प्रोग्राम आगे पीछे नही करने पड़ते थे ! * स्कूल के बाद हम देर सूरज डूबने तक गली की सड़क पर गली मोहल्ले में खेलते थे। * हम अपने सभी सच्चे और पक्के दोस्तों के साथ खेलते थे, न की आज की तरह नेट दोस्तों के साथ । * जब भी हम प्यासे होते थे तो सीधे नल से पानी पी लिया करते थे और वो पानी भी साफ़ शुद्ध होता था और हमने कभी बॉटल का पानी नही ढूँढा । * हम कभी भी चार लोग गन्ने का जूस आपस में बाँट कर के भी बीमार नही पड़े । * हम एक प्लेट मिठाई और रोज़ चावल खाकर भी कभी मोटे नही हुए । * नंगे पैर घूमने के बाद भी हमारे पैरों को कुछ नही होता था। * हमें स्वस्थ रहने के लिए कुछ भी अलग ( प्रोटीन - विटामिन) नही लेना पड़ता था । * हम कभी कभी अपने खिलोने खुद बना कर भी खेलते थे । अपने दोस्तों के साथ खिलोने आपस में बॉट लेते थे । * हम ज्यादातर अपने माता पिता के साथ या उनके पास ही रहे । या कभी भी किसी रिश्तेदार के यहाँ भी बिना किसी झिझक के रह लेते थे । * हम अक्सर 2-4 भाई बहन एक जैसे या एक दूसरे के कपड़े पहनना शान समझते थे, तब हममे एक सामान वाली कोई बात नही थी और उसमे भी मजे करते थे । * हम बहुत कम ही डॉक्टर के पास जाते थे, और कभी जरुरत पड़ती थी तब डॉक्टर साहब हमारे पास आ जाया करते थे । * हमारे पास तब न तो मोबाइल, dvd , Xboxes, PC, Internet, chatting, क्योंकि हमारे पास सच्चे दोस्त थे । * हम दोस्तों के घर बिना बताये जाकर मजे करते थे और खेलने के साथ साथ खाने -पीने के मजे लेते थे। हमे कभी उन्हें कॉल करके उनके यहाँ जाना नहीं पड़ा । * शायद हम एक अदभुद और सबसे समझदार पीढ़ी है क्योंकि हम वो अंतिम पीढ़ी हैं जो की अपने माता- पिता की सुनते हैं...और साथ ही साथ पहले जो की अपने बच्चों की भी सुनते हैं । अब वो ज़माना शायद कभी लोट कर नहीं आ सकता ।

" अभिमान " .

" अभिमान " . . . . . एक घर के मुखिया को यह अभिमान हो गया कि उसके बिना उसके परिवार का काम नहीं चल सकता। उसकी छोटी सी दुकान थी। उससे जो आय होती थी, उसी से उसके परिवार का गुजारा चलता था। चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता।वह लोगों के सामने डींग हांका करता था। एक दिन वह एक संत के सत्संग में पहुंचा। संत कह रहे थे, “दुनिया में किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता।यह अभिमान व्यर्थ है कि मेरे बिना परिवार या समाज ठहर जाएगा। सभी को अपने भाग्य के अनुसार प्राप्त होता है।” सत्संग समाप्त होने के बाद मुखिया ने संत से कहा, “मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है। मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे।” संत बोले, “यह तुम्हारा भ्रम है। हर कोई अपने भाग्य का खाता है।” इस पर मुखिया ने कहा, “आप इसे प्रमाणित करके दिखाइए।” संत ने कहा, “ठीक है। तुम बिना किसी को बताए घर से एक महीने के लिए गायब हो जाओ। ”उसने ऐसा ही किया। संत ने यह बात फैला दी कि उसे बाघ ने अपना भोजन बना लिया है। मुखिया के परिवार वाले कई दिनों तक शोक संतप्त रहे। गांव वाले आखिरकार उनकी मदद के लिए सामने आए। एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहां नौकरी दे दी। गांव वालों ने मिलकर लड़की की शादी कर दी। एक व्यक्ति छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्च देने को तैयार हो गया। एक महीने बाद मुखिया छिपता-छिपाता रात के वक्त अपने घर आया। घर वालों ने भूत समझ कर दरवाजा नहीं खोला। जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने सारी बातें बताईं तो उसकी पत्नी ने दरवाजे के भीतर से ही उत्तर दिया, ‘हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है। अब हम पहले से ज्यादा सुखी हैं।’ उस व्यक्ति का सारा अभिमान चूर-चूर हो गया। संसार किसी के लिए भी नही रुकता!! यहाँ सभी के बिना काम चल सकता है संसार सदा से चला आ रहा है और चलता रहेगा। जगत को चलाने की हाम भरने वाले बडे बडे सम्राट, मिट्टी हो गए, जगत उनके बिना भी चला है। इसलिए अपने बल का, अपने धन का, अपने कार्यों का, अपने ज्ञान का गर्व व्यर्थ है ।

" दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ सवाल " .

" दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ सवाल " . . . . . राजा भोज ने कवि कालीदास से दस सर्वश्रेष्ठ सवाल किए --- 1- दुनिया में भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना क्या है ? ''मां'' 2- सर्वश्रेष्ठ फूल कौन सा है ? "कपास का फूल" 3- सर्वश्र॓ष्ठ सुगंध कौनसी है ? "वर्षा से भीगी मिट्टी की सुगंध" 4-सर्वश्र॓ष्ठ मिठास कौनसी ? "वाणी की" 5- सर्वश्रेष्ठ दूध ? "मां का" 6- सबसे से काला क्या है ? "कलंक" 7- सबसे भारी क्या है ? "पाप" 8- सबसे सस्ता क्या है ? "सलाह" 9- सबसे महंगा क्या है ? "सहयोग" 10-सबसे कडवा क्या है ? "सत्य"

जंग अगर अपनोंं से हो, तो हार जाना चाहिए..

. एक पत्नी ने अपने पति से आग्रह किया कि वह उसकी छह कमियाँ बताए जिन्हें सुधारने से वह बेहतर पत्नी बन जाए. पति यह सुनकर हैरान रह गया और असमंजस की स्थिति में पड़ गया. उसने सोचा कि मैं बड़ी आसानी से उसे ६ ऐसी बातों की सूची थमा सकता हूँ , जिनमें सुधार की जरूरत थी और ईश्वर जानता है कि वह ऐसी ६० बातों की सूची थमा सकती थी, जिसमें मुझे सुधार की जरूरत थी. परंतु पति ने ऐसा नहीं किया और कहा - 'मुझे इस बारे में सोचने का समय दो , मैं तुम्हें सुबह इसका जबाब दे दूँगा.' पति अगली सुबह जल्दी ऑफिस गया और फूल वाले को फोन करके उसने अपनी पत्नी के लिए छह गुलाबों का तोहफा भिजवाने के लिए कहा जिसके साथ यह चिट्ठी लगी हो, "मुझे तुम्हारी छह कमियाँ नहीं मालूम, जिनमें सुधार की जरूरत है. तुम जैसी भी हो मुझे बहुत अच्छी लगती हो." उस शाम पति जब आफिस से लौटा तो देखा कि उसकी पत्नी दरवाज़े पर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी, उसकी आंखौं में आँसू भरे हुए थे,यह कहने की जरूरत नहीं कि उनके जीवन की मिठास कुछ और बढ़ गयी थी। पति इस बात पर बहुत खुश था कि पत्नी के आग्रह के बावजूद उसने उसकी छह कमियों की सूची नहीं दी थी. इसलिए यथासंभव जीवन में सराहना करने में कंजूसी न करें और आलोचना से बचकर रहने में ही समझदारी है। ज़िन्दगी का ये हुनर भी, आज़माना चाहिए, जंग अगर अपनोंं से हो, तो हार जाना चाहिए..

" समय से पहले " भाग्य से ज्यादा "

" समय से पहले " . . " भाग्य से ज्यादा " . . . एक सेठ जी थे - जिनके पास काफी दौलत थी. सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी. : परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया. जिससे सब धन समाप्त हो गया. बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो, मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो? सेठ जी कहते कि "जब उनका भाग्योदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..." : एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि तभी उनका दामाद घर आ गया. सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये... यही सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी दिये... : दामाद लड्डू लेकर घर से चला, दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुओँ का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया. : उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे... मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया. सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. : सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखा, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया. सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली... सेठ जी बोले कि "भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा..." देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में... इसलिये कहते हैं कि भाग्य से ज्यादा और... समय से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मिलेगा । ।

" मेरा भारत महान " .

" मेरा भारत महान " . . . . . थोड़ा ध्यान से पढ़ कर मर्म समझिएगा ............ आप चाहते है कि आपकी तानाशाही चले और कोई भी आपका विरोध न करे.... तो आप भारत में "न्यायाधीश" बन जाओ.. आप चाहते है की आप लोगो को बेवजह पीटे लेकिन कोई आपको कुछ न बोले....तो आप "पुलिस" वाला बन जाओ.. आप चाहते है की आप एक से बढ़कर एक झूठ बोले अदालत में लेकिन कोई आपको सजा न दे.... तो आप "वकील" बन जाइए.. महिलाये चाहती है की वो खूब मटक मटक करे इधर उधर घुमाँ करे लेकिन कोई उनको कुछ न बोले.... तो वो महिलाये बॉलीवुड में "हेरोइन" बन जाये.. आप चाहते है की आप खूब लूट मार करे लेकिन कोई आपको डाकू न बोले.... तो आप भारत में "राजनेता" बन जाओ.. आप चाहते है की आप दुनिया के हर सुख मांस,मदिरा,स्त्री इत्यादि का आनंद ले लेकिन कोई आपको भोगी या कुछ और न कहे.... तो किसी भी धर्म का "धर्मगुरु" बन जाओ.. आप चाहते है की आप किसी को भी बदनाम कर दे लेकिन आप पर कोई मुकदमा न हो.... तो मीडिया में "रिपोर्टर" बन जाओ.. यकीन मानिये... आपका कोई बाल भी बांका नहीं कर पाएगा.... भारत में हर "गंदे" काम के लिए एक "संवैधानिक पद" और उसके साथ साथ भरपूर धन उपलब्ध है.... ये किसी धर्म विशेष या व्यक्ति विशेष पर नहीं कहा गया है और न ही किसी की भावना को ठेस पहुँचाना हमारा उद्देश्य हे बल्कि लएक आम इंसान की मुलभुत समस्याओं को ध्यान में रखकर आज के माहोल को बया किया गया कटु सत्य हैँ इसीलिए मेरा भारत महान है.......

" बेटी की विदाई " .

" बेटी की विदाई " . . . . . . . कन्यादान हुआ जब पूरा,आया समय विदाई का । हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था,सारी रस्म अदाई का । बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया । पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में छोड़ दिया । अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा कहा तुमने । मेरे रोने को पल भर भी ,बिल्कुल नहीं सहा तुमने । क्या इस आँगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नहीं । अब मेरे रोने का पापा,तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं । देखो अन्तिम बार देहरी,लोग मुझे पुजवाते हैं । आकर के पापा क्यों इनको,आप नहीं धमकाते हैं । नहीं रोकते चाचा ताऊ,भैया से भी आस नहीं । ऐसी भी क्या निष्ठुरता है,कोई आता पास नहीं । बेटी की बातों को सुन के ,पिता नहीं रह सका खड़ा । उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा दौड़ पड़ा । कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी । जैसे यादों के अक्षर वह,अश्रु बिंदु से धोती थी । माँ को लगा गोद से कोई,मानो सब कुछ छीन चला । फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला । छोटा भाई भी कोने में,बैठा बैठा सुबक रहा । उसको कौन करेगा चुप अब,वह कोने में दुबक रहा । बेटी के जाने पर घर ने,जाने क्या क्या खोया है । कभी न रोने वाला बापू,फूट फूट कर रोया है ।

गुरुवार, 18 जून 2015

Kahani

प्रेरणादायक कहानी :: ---------------------पिज्जा------------------------ पत्नी ने कहा - आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना… पति- क्यों?? उसने कहा..- अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी… पति- क्यों?? पत्नी- नवरात्रि के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी… पति- ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता… पत्नी- और हाँ!!! नवरात्रि के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ उसे? त्यौहार का बोनस.. पति- क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे… पत्नी- अरे नहीं बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा… और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!! पति- तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो… पत्नी- अरे नहीं… चिंता मत करो… मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ… खामख्वा पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे… पति- वा, वा… क्या कहने!! हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में?? तीन दिन बाद… पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से... पति ने पूछा... पति- क्या बाई?, कैसी रही छुट्टी? बाई- बहुत बढ़िया हुई साहब… दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना.. त्यौहार का बोनस.. पति- तो जा आई बेटी के यहाँ…मिल ली अपने नाती से…? बाई- हाँ साब… मजा आया, दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए… पति- अच्छा!! मतलब क्या किया 500 रूपए का?? बाई- नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट, 40 रूपए की गुड़िया, बेटी को 50 रूपए के पेढे लिए, 50 रूपए के पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए.. 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए 50 रूपए का बेल्ट लिया अच्छा सा… बचे हुए 75 रूपए नाती को दे दिए कॉपी-पेन्सिल खरीदने के लिए… झाड़ू-पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान पर रटा हुआ था… पति- 500 रूपए में इतना कुछ??? वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा... उसकी आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज्ज़ा घूमने लगा, एक-एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथौड़ा मारने लगा… अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा… पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेढे का, तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का, पाँचवाँ गुड़िया का, छठवां टुकड़ा चूडियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी-पेन्सिल का.. आज तक उसने हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी, कभी पलटाकर नहीं देखा था कि पिज्जा पीछे से कैसा दिखता है… लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज्जा की दूसरी बाजू दिखा दी थी… पिज्जा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे… “जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिएV जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ आ गया…। अच्छा लगे तो शेयर करे। नही तो पड़ने के लिए ध्यन्यबाद।