बुधवार, 25 मार्च 2015

आँजणा समाज का गौरव इतीहास की एक जलक

आँजणा समाज का गौरव इतीहास की एक जलक सैकङो वर्ष पूर्व गांव किलवा जिला सांचौर में पुज्नीय श्री रूपाजी तरक के द्वारा किया हूआ ऐतिहासिक कार्य आज भी धरातल पर बोल रहा है ऐसे एतिहासिक कार्यो की पहचान आज आँजणा पटेल चौधरी के पुर्खो की राव द्वारा नामों की पोथी {राव नामो वाचे } पढते समय सबसे पहले रूपाजी तरक के नाम से समाज का इतिहास मालुम पङता है समाज में उस समय मारवाङ के रियासतों के सहयोग से अपनी ज्ञान रूपी गंगा को प्रवाहित कर समाज के हजारों कन्याओं का विवाह रचाया सोने रो टको देयने सारों रों सुख कर्यो ऐङा रूपाभाई तरक जीणै समाज रौ नोंम रौसन करीयो हजारों बच्चियों रो भविष्य उज्जवल किनो ने पिंडी पिंडी रो शुख कर्यो उस दिन से आँजणा समाज में दहेज प्रथा नहीं है तूराभाट सोने का टक्का लेने के बिना कन्या विवाह नहीं करते थे इस से उस समय केई बच्चीयों का विवाह नहीं होता था एसी प्रथा को खत्म कीया और समाज के उज्जवल भविष्य की एक नई सुरूआत की इतिहास लम्बा है माफी चाहता हूँ थोङ़ी झलकलिखी है किलवा में आज भी रूपाभाई के दर्शनीय स्थम्भ मौजूद है

आँजणा समाज का गौरव इतीहास की एक जलक


राजस्थान राज्य के 25 सांसदों के नाम संसदीय क्षेत्र का नाम व मोबाइल नम्बर

राजस्थान राज्य के 25 सांसदों के नाम संसदीय क्षेत्र का नाम व मोबाइल नम्बर 1.सुखबीर जी जौनपुरिया सवाई माधोपुर 9811026447 2.सुमेधानन्द जी सीकर 9928470131 3.निहाल चन्द जी मेघवाल गंगानगर 9414090050 4.राम चरण जी बोहरा जयपुर शहर 9829066531 5.राज्यवर्धन सिंह जी राठौड़ जयपुर ग्रामीण 9460996611 6.देव जी पटेल जालोर 9414158488 7.संतोष अहलावत झुन्झुनू 9549477777, 9929900000 8.गजेंद्र सिंह जी शेखावत जोधपुर 9672000555 9.मनोज जी राजोरिया धौलपुर-करौली 9414389585 10.ओम जी बिडला कोटा 9783977701,9829037200 11.सी.आर.चौधरी नागौर 9829122837,9166355505 12.पी.पी.चौधरी पाली 9414135735 13.हरिओम सिंह जी राजसमंद 9414172267 14.दुष्यंत सिंह जी झालावाड़ 9414027979,9414194009, 9810896886 15.सावँरलाल जी जाट अजमेर 9829612667 16.चाँद नाथ जी अलवर 9215312333 17.मानशंकर जी निनामा बांसवाडा डूंगरपुर 9928116783 18.कर्नल सोनाराम जी बाडमेर 9828999900,9868180900 19.बहादुर सिंह जी कोली भरतपुर 9414315320,9636325690 20.सुभाष जी बहेरिया भीलवाड़ा 9829046344 21.अर्जुन जी मेघवाल बीकानेर 9414075910 22.सी.पी.जोशी चित्तौड़गढ 9414111371 23.राहुल जी कस्वाँ चूरू 9560111599 24.हरीश चन्द्र जी मी दौसा 9929884441 25.अर्जुनलाल जी मीणा उदयपुर 9414161766 *****************************

राजस्थान राज्य के 25 सांसदों के नाम संसदीय क्षेत्र का नाम व मोबाइल नम्बर


😎 असफलता के 20 मंत्र

😎 असफलता के 20 मंत्र 1.कमाओ पावली ओर खर्चो रूपियो 😎 2. रोज मनको री भुडी करो 😎 3.डोड हुशयारी करो 😎 4. कॊई गरीब आदमी वे तो वणरी मजाक उडाओ 😎 5. हर आदमी री टोंग खोसो 😎 6. रॊज सुबे 9-10 वजे उठो राते 1-2 वजे सुओ 😎 7. रॊज उधार लो ओर घी पीओ 😎 8. अपनी मर्जी हो वो करो 😎 9. रॊज दुशमनी पैदा करो 😎 10. नास्तिक बनो 😎 11. कदी पार्थना मत करो वेणु वेई जको परो वेई 😎 12. चलते तीर को पकडो़ 😎 13. पुरो दाडो वोट्स अप फेस बुक पे online रेणो 😎 14. बीजो रो सुख ने देकी देकी नॆ पतलो वेणो 😎 15. खुब निन्दा करो - खुब मनको री पंचायती करो 😎 16. रॊज नेगेटिव सोचो 😎 17. ओपणी हुशियारी मनको ने वतावणी 😎 18. छोटा मोटा कोम मे हाथ नी गालणो करोड़ो रिस वात करणी 😎 19. आराम करो सुता रो। TV दॆखो गाणा सुणो 😎 🙏 20. महापुरुषा रो खुब अनादर करो 😎 😜 जो कोई अण मंतरो रो पालन करी वो उडा कुडा़ मे पडी ओर घणो वेगो फेल वेई जाइ। 😜😜😂

😎 असफलता के 20 मंत्र


Desi gharelu नुस्खे

नुस्खे धातु पुष्ट करने के लिए गिलोय का दो चम्मच रस शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम चाटें| दो चम्मच आंवले का रस सुबह बिना कुछ खाए-पिए शहद के साथ सेवन करें| 3 ग्राम तुलसी के बीज में मिश्री मिलाकर प्रतिदिन दोपहर के भोजन के बाद खाएं| 10 ग्राम सफेद मूसली के चूर्ण में मिश्री मिलाकर खाएं| ऊपर से आधा किलो गाय का दूध पिएं| उरद की दाल का चूर्ण घी में भूनकर उसमें खांड़ मिलाकर खाएं| नियमित रूप से रोज 100 ग्राम पपीते का रस पीने से वीर्य पुष्ट होता है| दो चम्मच गोमूत्र में एक चम्मच त्रिफला का चूर्ण मिलाकर सेवन करें| इलायची के दाने, बादाम की गिरी, जावित्री तथा मक्खन - सबको शक्कर के साथ खाने से धातु पुष्ट होती है| प्रतिदिन निहार मुंह लहसुन की दो कलियों का सेवन दूध के साथ करें| 5 ग्राम आंवले का चूर्ण सुबह और 5 ग्राम शाम को दूध के साथ ले

Desi gharelu नुस्खे


अलसी को अपनाए हो सकता है शायद आप जो चाह रहे है वो आपको यहाँ से मिल जाए..

अलसी को अपनाए हो सकता है शायद आप जो चाह रहे है वो आपको यहाँ से मिल जाए.. * सेक्स संबन्धी समस्याओं के उपचारों में सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है ‪#‎ अलसी‬...! * आपका हर्बल चिकित्सक आपकी सारी सेक्स सम्बंधी समस्याएं अलसी खिला कर ही दुरुस्त कर देगा क्योंकि अलसी आधुनिक युग में स्तंभनदोष के साथ साथ शीघ्रस्खलन, दुर्बल कामेच्छा, बांझपन, गर्भपात, दुग्धअल्पता की भी महान औषधि है। * सेक्स संबन्धी समस्याओं के अन्य सभी उपचारों से सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है अलसी। बस 30 ग्राम रोज लेनी है। * सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे। * अलसी आपकी देह को ऊर्जावान, बलवान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा। * अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट, जिंक और मेगनीशियम आपके शरीर में पर्याप्त टेस्टोस्टिरोन हार्मोन और उत्कृष्ट श्रेणी के फेरोमोन ( आकर्षण के हार्मोन) स्रावित होंगे। टेस्टोस्टिरोन से आपकी कामेच्छा चरम स्तर पर होगी। आपके साथी से आपका प्रेम, अनुराग और परस्पर आकर्षण बढ़ेगा। आपका मनभावन व्यक्तित्व, मादक मुस्कान और षटबंध उदर देख कर आपके साथी की कामाग्नि भी भड़क उठेगी। * अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन एवं लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे शक्तिशाली स्तंभन तो होता ही है साथ ही उत्कृष्ट और गतिशील शुक्राणुओं का निर्माण होता है। इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करते हैं जिससे सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है। * नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ओमेगा-3 फैट के अलावा सेलेनियम और जिंक प्रोस्टेट के रखरखाव, स्खलन पर नियंत्रण, टेस्टोस्टिरोन और शुक्राणुओं के निर्माण के लिए बहुत आवश्यक हैं। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार अलसी लिंग की लंबाई और मोटाई भी बढ़ाती है। * आपने देखा कि अलसी के सेवन से कैसे प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, जबर्दस्त अश्वतुल्य स्तंभन होता है, जब तक मन न भरे सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर एक आध्यात्मिक उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है। अलसी सेवन का तरीकाः- <<<<<<<>>>>>>>>> * हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं। * दूसरा एक तरीका है कि आप अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है .लेकिन आप इसे जादा मात्रा में बना के न रक्खे क्युकि ये खराब हो जाती है .एक हफ्ते के लिए बनाना ही चाहिए .अलसी आपको अनाज बेचने वाले तथा पंसारी या आयुर्वेदिक जड़ी बूटी बेचने वालो के यहाँ से मिल जायेगी . * अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है। * इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। * यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। * अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। * अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं। * अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। * पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा। * इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें। * बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है। * अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा। * इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है। * डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो) * अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है। * कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी। * जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया उपचार है अलसी। ­­ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी। * लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। * लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है। * त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है। * अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है। * अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी। * अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी। * आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी। *ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रियाआदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है। * फिर अभी भी क्या सोच रहे है आज ही अपनाए और देखे इसके फायदे ....गर्मी में आप इसकी मात्रा आधी कर ले सिर्फ 15 ग्राम ही सेवन करे .

अलसी को अपनाए हो सकता है शायद आप जो चाह रहे है वो आपको यहाँ से मिल जाए..


गौर करने की बात है:-

गौर से दो बार पढे:- -जिस दिन हमारी मोत होती है, हमारा पैसा बैंक में ही रह जाता है। -जब हम जिंदा होते हैं तो हमें लगता है कि हमारे पास खच॔ करने को पया॔प्त धन नहीं है। -जब हम चले जाते है तब भी बहुत सा धन बिना खच॔ हुये बच जाता गौर करने की बात है:- • मँहगे फ़ोन के 70% फंक्शन अनोपयोगी रहते है। • मँहगी कार की 70% गति का उपयोग नहीं हो पाता। • आलीशान मकानो का 70% हिस्सा खाली रहता है। • पूरी अलमारी के 70% कपड़े पड़े रहते हैं। • पुरी जिंदगी की कमाई का 70% दूसरो के उपयोग के लिये छूट जाता है। • 70% गुणो का उपयोग नहीं हो पाता 30% का पूण॔ उपयोग करने की विधि:- • स्वस्थ होने पर भी निरंतर चैक अप करायें। • प्यासे न होने पर भी अधिक पानी पियें। • जब भी संभव हो, अपना अहं त्यागें । • शक्तिशाली होने पर भी सरल रहेँ। • धनी न होने पर भी परिपूण॔ रहें। बेहतर जीवन जीयें !!! काबू में रखें - प्रार्थना के वक़्त अपने दिल को, काबू में रखें - खाना खाते समय पेट को, काबू में रखें - किसी के घर जाएं तो आँखों को, काबू में रखें - महफ़िल मे जाएं तो ज़बान को, काबू में रखें - पराया धन देखें तो लालच को, भूल जाएं - अपनी नेकियों को, भूल जाएं - दूसरों की गलतियों को, भूल जाएं - अतीत के कड़वे संस्मरणों को, छोड दें - दूसरों को नीचा दिखाना, छोड दें - दूसरों की सफलता से जलना, छोड दें - दूसरों के धन की चाह रखना, छोड दें - दूसरों की चुगली करना, छोड दें - दूसरों की सफलता पर दुखी होना, याद रखिये:- यदि आपके फ्रिज में खाना है, बदन पर कपड़े हैं, घर के ऊपर छत है और सोने के लिये जगह है, तो दुनिया के 75% लोगों से ज्यादा धनी हैं यदि आपके पर्स में पैसे हैं और आप कुछ बदलाव के लिये कही भी जा सकते हैं जहाँ आप जाना चाहते हैं तो आप दुनिया के 18% धनी लोगों में शामिल हैं यदि आप आज पूर्णतः स्वस्थ होकर जीवित हैं तो आप उन लाखों लोगों की तुलना में खुशनसीब हैं जो इस हफ्ते जी भी न पायें यदि आप मैसेज को वाकइ पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं तो आप उन करोड़ों लोगों में खुशनसीब हैं जो देख नहीं सकते और पढ़ नहीं सकते जीवन के मायने दुःखों की शिकायत करने में नहीं हैं बल्कि हमारे निर्माता को धन्यवाद करने के अन्य हजारों कारणों में है!!!

गौर करने की बात है:-


मंगलवार, 24 मार्च 2015

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समाकलन किसी फलन का निश्चित समाकल (definite integral) उस फलन के ग्राफ से घिरे क्षेत्र का चिह्नसहित क्षेत्रफल द्वारा निरूपित किया जा सकता है। ढाका समाकलन( Integral Calculus) यह एक विशेष प्रकार की योग क्रिया है जिसमें अत्यणु (infinitesimal) मान वाली किन्तु गिनती में अत्यधिक चर राशियों को को जोड़ा जाता है। इसका एक प्रमुख उपयोग वक्राकार क्षेत्रों का क्षेत्रफल निकालने में होता है। समाकलन को अवकलनकी व्युत्क्रम संक्रिया की तरह भी समझा जा सकता है। विभिन्न प्रकार के समाकल – अनिश्चि त समाकल – निश्चित समाकल(Definite integral) – अनंत समाकल improper integral (=infinite integral) – लेबेग समाकल (Lebesgue integral) – पृष्ठ समाकल (surface integral) – किसी बन्द वक्र के सापेक्ष वक्ररेखी समाकल इन्हें भी देखें

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क्षेत्रफल किसी तल(समतल या वक्रतल) के द्वि-बीमीय (द्वि-आयामी) आकार के परिमाण (माप) कोक्षेत्रफलकहते हैं। जिस क्षेत्र के क्षेत्रफल की बात की जाती है वह क्षेत्र प्रायः किसी बन्द वक्र (closed curve) से घिरा होता है। इसे प्राय: m2(वर्ग मीटर) में मापा जाता है। क्षेत्रफल की इकाइयाँ क्षेत्रफल के मापन के लिये प्रयुक्त कुछ प्रमुख इकाइयाँ इस प्रकार हैं: मेट्रिक वर्ग मीटर (मी² या m²) = SI व्युत्पन्न इकाइयाँ एयर (are) (a) = 100 वर्ग मीटर हेक्टेयर (hectare या ha) = 10,000 वर्ग मी वर्ग किलोमीटर (किमी² या km²) = 1,000,000 वर्ग मी वर्ग फुट (square foot) = 144 वर्ग इन्च (square inches) = 0.09290304 वर्ग मी वर्ग गज (square yard) = 9 वर्ग फीट = 0.83612736 वर्ग मीटर वर्ग मील (square mile) = 640 एकड (acres) = 2.5899881103 वर्ग किमी (km²) विभिन्न आकृतियों के क्षेत्रफल के सूत्र क्षेत्रफल के प्रमुख समीकरण: आकृतिसमीकरणचरों का अर्थ (meaning of variables) वर्ग (square)वर्ग के भुजा की लम्बाई है। त्रिभुज (triangle)is the length of one side of the triangle. सम षट्भुज (Regular hexagon)is the length of one side of the hexagon. सम अष्टभुज (Regular octagon)is the length of one side of the octagon. कोई भी सम बहुभुज (regular polygon)is the apothe m, or the radius of an inscribed circle in the polygon, andis the perimeter of the polygon. कोई भी सम बहुभुज (२)is the Perimeter andis the number of sides. कोई भी सम बहुभुज (३)is the Perimeter andis the number of sides. आयत (Rectangle)andare the lengths of the rectangle's sides (length and width). समान्तर चतुर्भुज (Parallelogram)andare the length of the base and the length of the perpendicular height, respectively. सम चतुर्भुज (Rhombus)andare the lengths of the two diagon alsof the rhombus. त्रिभुज (TRIANGLE)andare the baseand altitud e(measured perpendicular to the base), respectively. त्रिभुज (३)andare any two sides, andis the angle between them.वृत्त (Circle) oris the radius andthe diamete r. दीर्घ वृत्त (Ellipse)andare the semi-maj orand semi-min oraxes, respectively. समलम्ब चतुर्भुज (Trapezoid)andare the parallel sides andthe distance (height) between the parallels.बेलन का सम्पूर्ण पृष्ट (Total surface area of a Cylinder)andare the radiusandheight, respectively. बेलन का पार्श्व पृष्ट (Lateral surface)andare the radius and height, respectively.शंकु का सम्पूर्ण पृष्ट (Total surface area of a Cone) andare the radius and slant heig ht, respectively. शंकु का पार्श्व पृष्ट या वक्र पृष्ठandare the radius and slant height, respectively.गोले (sphere) का सम्पूर्ण पृष्ठ orandare the radius and diameter, respectively. दीर्घ वृत्ताभ का सम्पूर्ण पृष्ठ (Total surface area of an ellipsoid) See the article. वृत्तीय क्षेत्र (Circular sector)andare the radius and angle (in radians), respectively. x-अक्ष के परितः f(x) को घुमाने पर बने पृष्ठ का क्षेत्रफल -->f(x) को y-अक्ष के परितः घुमाने से बने तल का क्षेत्रफल विसम बहुभुजों (irregular polygons) का क्षेत्रफलसर्वेयर के सूत्रसे निकाला जा सकता है। [1]

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आयतन सभी पदार्थस्थान (त्रि-बीमीय स्थान) घेरते हैं। इसी त्रि-बीमीय स्थान की मात्रा की माप कोआयतनकहते हैं। एक-बीमीय आकृतियाँ (जैसे रेखा) एवं द्वि-बीमीय आकृतियाँ (जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज, वर्ग आदि) का आयतन शून्य होता है। आयतन के सूत्र आयतन के प्रमुख समीकरण: आकारसूत्रचर (Variables) का अर्थ घन (cube):s= एक भुजा की लम्बाई घनाभ (पैरेलोपाइप्ड) :l = लम्बाई, w = चौड़ाई, h = ऊँचाई r= समतल वृत्तीय फलक (face) की त्रिज्या,h= ऊँचाईलम्ब वृत्तीय बेलन (या, वृत्तीय प्रिज्म) : A= आधार का क्षेत्रफल,h= ऊंचाईकोई भी प्रिज्म, जिसकी पूरी ऊँचाई में सर्वत्र अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल समान हो**: गोला(sphere)r= गोले की त्रिज्या गोले का आयतन उसके वक्र पृष्ट के समाकलन (इन्टीग्रेशन) के बराबर होता है। दीर्घ वृत्ताभ (ellipsoid):a,b,c= दीर्घ वृत्ताभ के अर्धाक्ष (semi-axes) की माप सूची स्तम्भ (Pyramid):A= आधार का क्षेत्रफल,h= लम्बवत ऊँचाई शंकु (Cone) या वृत्तीय आधार वाला सूची-स्तम्भ (pyramid):r= वृत्तीय आधार की त्रिज्या,h= शीर्ष (tip) की आधार से लम्बवत दूरी किसी भी आकार के लिये (समाकलन का प्रयोग करना पड़ता है)h= आकृति का कोई बीमा (dimension),A(h) =hके लम्बवत क्षेत्रफल (आयतन की इकाईघन मीटर',घन सेमी,लीटरआदि होती हैं। किसी घनाभके आयतन के लिये सदिश(वेक्टर) सूत्र : किसी घनाभ के किसी एक शीर्ष पर मिलने वाली तीनों कोर () को सदिश रूप में व्यक्त करें तो उसका आयतन इन तीन सदिशों के अदिश गुणनफल (scalar triple product) के बराबर होता है। किसी चतुष्फलकी (tetrahedron) के आयतन के लिये सदिश सूत्र : किसी चतुष्फलकी के चारो शीर्षों के स्थिति सदिश(position vectors)a,b,canddहों तो उसका आयतन (a−b,b−c,c−d) के तिर्यक सदिश गुणनफल (scalar triple product) के १/६ के बराबर होता है। आयतन और घनत्व (density) किसी पदार्थ के इकाई आयतन में निहित द्रब्यमान (mass) को उस पदार्थ काघनत्वकहते हैं। लोहे का घनत्व लकड़ी के घनत्व से अधिक होता है।

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शब्द-शब्द में पीर है

शब्द-शब्द में पीर है, शब्द-शब्द में धीर। शब्द बनें संजीवनी, शब्द दहकते तीर। दुनिया का यह चलन है, जिसमें जितनी धार। उसको उतने क्षेत्र का, माने मंसबदार।

शब्द-शब्द में पीर है


प्यारी कवितायें

सावन की बरखा पड़ी,लगी झड़ी दिन रैन । साजन बिन कहो बदरिया,किस विद आवै चैन ।1। साजन बसेँ दूर देश मेँ,गये राज के काम । काम काम मेँ उधर जलेँ, इधर काम तमाम ।2। सावन जलाए बदन को, बरखा लेती प्राण । साजन बिन अब सांवरा, पाएं कैसे त्राण ।3। बूंद बूंद पानी पड़े, तन मेँ लागे आग । पिव वाणी के सामने,कड़वी कोयल राग ।4। मिल करझूला झूलती, पिव होते जो संग । बिन पिया तो ये सावन, करता कितना तंग ।5। धन कमाने पिया गए,आया सावन मास । धन को तन नहीँ जाने, मांगे प्रीतम पास ।6। अम्बर छाई बदरिया, धरती छाया नेह । प्रीतम आवन आस मेँ, सावन बरसे मेह ।7। आंखेँ बरसी प्रीत मेँ, प्रीतम देखूं आह । धरती बादल मिल लिये,मेरी उलझी चाह ।8। खत मेँ गत मैँ क्या लिखूं,आओ प्रीतम पास । सावन फीका जा रहा, तुझमेँ अटकी सांस ।9। तुम बिन ये घर घर नहीँ, लगता है बनवास । सावन मेँ जो सग रहो, जीवन बांधूं आस ।10।

प्यारी कवितायें


आदमी आदमी रह्यो न देखो-

झपकी लेत गरीब तो, माया छीने चैन । भूखा सोता ठाट से , धाया जागे रैन ।1। नेता सोता चैन से, ले वोटों की ओट । जनता खोले आंख तो , दे वोटों की चोट ।2। नेता जीता वोट से,खूब छापता नोट । नेता खोले आंख तब ,जब जब घटते वोट ।3। जनता पागल बावळी , भूली अपना जोर । खादी चोला पहन कर,नेता बन गए चोर ।4। भारत जाये भाड़ में , नेता भोगे राज । नेता सोता चैन से,जनता ऊपर गाज ।5

आदमी आदमी रह्यो न देखो-


देशी intresting..............

[1] डाढी पींवता दारू मिस्टर तुक्कल भल्ला । आखै दिन होयोड़ा रेंवता चूंच अर लल्ला ॥ ऐक दिन नीं टळता नीं मिल्यां बै बळता टिकता तो बस पड्यां मैडमजी रा खल्ला ॥ [2] बाज़ आळी खाली सीसी मांगी पाडोसी । थै तो रोज पीओ खाली तो पडी़ होसी ॥ घर में तो आत कोनी आग्या तो बात कोनी ल्याओ मंगाओ,खाली करां जल्दी सी ॥ [3] ऊंदरा बोल्या दारू पीवां पै’लै तोड़ री । दुनियां में होवै कोनी ईं रै जोड़ री ॥ छोड़ां कोनी आ दुआई छोड़ ई देस्यां लुगाई लुगाई ई हुवै बेलियो ज़ड झोड़ री ॥ [4] हथकढ री बोतल गटक’र डोल्यो । चांद धरती माथै उतरसी बोल्यो ॥ ऊंदरी बोली थम साळा कुत्ता जम खल्ल खळका चांद भेजूं अण्तोल्यो ॥ [5] बिलड़ी तो ही कोनीं हा फ़गत ऊंदरा । दारू आळै ठेकै में मोटी मोटी तूंद रा ॥ दिन मॆ पस्त रात में मस्त रोब सूं खांवता होटल में लाडू गूंद रा ॥ [6] गांव में स्सै सूं हुंस्यार हो सरपंच जी रो छोरो । आगे रेंवंतो जद होंवतो कोई मंत्री जी रो दोरो ॥ कईयां नैं फ़ंसावंतो कईयां नै मरवांवतो काढ्यां बिनां डी’ल में कोई छोटो-मोटो मोरो ॥ [7] बापू बोल्या बोट पडै़ घाल’र आ रै । मोड़ो हुवै खेत नै जल्दी कर जा रै ॥ ढोलकी खनै जद गया पतळा हा तिसळग्या खुद पड़्या मांय अर बोट रेग्यो बा’रै ॥ [8] गोष्ठी री बै’स में इस्सी लाम्बी बधी बात । कै ताण मारियां ई नीं सुळझी आखी रात ॥ आखतो हो सब्बळियो सिंझ्या गाडी चढ लियो निवड़ण सूं पै’ली दे आयो रूणीचै री जात ॥ [9] झब्बियै री लुगाई ही बोलाक बेजा । सामने आळां रा खाय जावंती भेजा ॥ घर में रेवंतो नी कोई बापडी़ पीवै कीं रो लोई छात माथै चढ़ बा गाया करती तेजा ॥ [10] झिंडियै री डीकरियां पतळी ही जंचा’र । धरियोडी हुवै जाणै सांगरियां पचा’र ॥ ऐक-ऐक कर’र सै भेळी कर’र तूळ्यां आळी पेटी में सुवावंता जंचा’र ॥ [11] ऐक सी सकल री ही मा अर बेटी । फ़ुटरापै में कोई नीं ही जाबक हेटी ॥ आयो जणां जुवाई करग्यो बो दुवाई मा नै सागै लेग्यो,घरां रै’गी बेटी ॥ [12] जाबक ई भोळो हो बापडो अल्लाद्दीन । कूकतो फ़िल्म में देख दर्द आळा सीन ॥ आई मुकळावै री घडी बीनणी बीं री रो पडी बोल्यो छोडो बपडी नै म्हैं नी ईंरो बीन ॥ [13] ऊपर सूं नीचै तांईं ऐकसा हा मिस्टर सपडा। डाडा जंचता जणां पै’रता नूआं-नूआं कपडा॥ मावडी मळ उतारिया बण पेट में उतारिया घाल्या जियां पाछा आग्या खाया जका बडा ॥ [14] पान खाय’र रमेसियै लाल कर लिया होट । घर आळी देख’र बोली ओ जी थानै फ़ोट ॥ पै’ली कसर ही आ’ई अब लागो हो लुगाई ल्यो पै’र ल्यो भलांई अब तो ओ पेटीकोट ॥ [15] लूंठा पै’लवान हा मिस्टर भूंडा राम भभूत । हरा नाख्या बां कुस्ती में पै’लवान मजबूत ॥ करता जणां बडाई आंख काढती लुगाई डरता होळै सी पैंट में कर देंवता लाई मूत॥ [16] जाबकलिगतो हो बोगड़ सिँह परमार। हरेक चीज खावण नै रैँ'वतो त्यार ॥ लुगाई कीँ घाल्यो कोनीँ ...जोर कीँ चाल्यो कोनी रीसां बळतो चाबग्यो लुगाई री सलवार।। [17] टींगर परनावण चाल्यो भत्तू मल मे'रा। बीन रूसग्यो बण लिया कोनीँ फेरा ॥ छोरी बोली आ ले रसमड़ी निभा ले फेरां सारु नीँ तो भेज दे बापू तेरा॥ [ 18] अमेरीका रा लूंठा सोखीन मिस्टर डांग । गंडक ल्यांता मोल,कई ल्यांता मांग ॥ इण रो होयो असर सरीर में होगी कसर मूत करता मतैई उठ जांवती एक टांग ॥ [19] ठुमक’र ऊंदरै कन्नै आ कैवण लागी ऊंदरी । देखो जी म्हूं लागूं हूं नी आज विश्व सुंदरी ॥ बोल्यो परनै जा रांड थोबड और आगै मांड नासां इयां लागै जाणै सीसी हुवै गूंद री ॥ [20] नितनेमी हा पंडत जी दोनूं टैम मांगता आटो । छोडता कोनी जे मिल जांवतो डांगरां रो चाटो ॥ कुत्तियां री ही अबखाई दिक्कत ही तो ही आ ई ईं सारू राखता साथळ ताईं प्लास्तर रो पाट्टो ॥ [21] चीज मांगतो जणां बोलतो ओ के प्लीज । आसूडो इस्सो पढ्यो कै भूलग्यो तमीज ॥ टैम ही भौर री हाजत ही जोर री हंगण बैठग्यो पैंट री जाग्यां खोल’र कमीज़॥ [22] रसगुल्लां री दुकान खोली प्रभु जी पूर । गाहक पटांवतां रै ऊडण लाग्यो बूर ॥ साल भर अड्या रे’या रसगुल्ला सारा पड्या रे’या छेकड जंवतां रा बिकग्या बांरा स्सै पूर ॥ [23] मुर्गी दांईं बांग देंवती मुर्गी बाई पंडा । मिनखां में बैठती जद गाळ देंवती गंडा ॥ आप रै सुभाव सूं नाम रै प्रभाव सूं दिन में दिया करती बा पांच-सात अंडा ॥ [24] लूंठा कवि हा चूणदान चोटिया । सुणाया करता दूहा फ़गत खोटिया ॥ पैली तो खूब गाजता पछै धोती चक भाजता सरोता जद चक लेता सोटियो ॥ [25] हज़ामत करावण गयौ डेमलौ डांगी । लम्बाई देख हज़ाम निसरनी मांगी ॥ ऐक ऐक पेड़ी चढ़तौ बोल्यौ बो रड़भड़तौ राम देखौ,ईं रै कठै जा’र भौडकी टांगी ॥ [26] दारू रा सौखीन हा भूतड़ जी पडि़हार । इण नसै लारै खो लियौ बां परिवार ॥ गळग्या जद गंडा लेय’र झौळी डंडा माळा फ़ेरण लागग्या जा’र हरिद्वार ॥ [27] दारू पींवतां जद कीं राख देवंता ढक्कण में । ऊंदरा मज़ा लेंवता सेठजी रै ईं लक्खण में ॥ सेठाणी भौत समझावै मक्खण क्यूं नी भावै ऊंदरा बोल्या.बी.पी.रो रोग होवै मक्खन में ॥ [28] फ़ोटू खैंचावण स्टूडियो गई चिमली ताई । सामनै बैठा,फ़ोटोग्राफ़र मींची आंख डाई ॥ ताई बठै सूं हटगी फ़ोटू खातर नटगी बोली,मरज्याणा पै’ली बण राखीबंद भाई ॥ [29] सै’र री ही बीनणी पै’ली बार देखी डाग । झूट में ही डागड़ी मुंडै ऊपड़ै हा झाग ॥ बोली फ़ूट्या करम ऊंटणी है बेसरम दोपारां देखो पेस्ट करै,लागौ ईं रै आग ॥ [30] ज़हाज़ री सवारी सारू अंटग्यौ लूधो सहारण । रिसाणौ होय भींतां में लाग्यौ टक्कर मारण ॥ लुगाई नै आई रीस खल्ल टेक्या बीस बिना ज़हाज़ ई उडग्यौ रोही में भैंसा चारण ॥ [31] बिना बीज धरती माथै पैदा नीं होवै कोई चीज । गुलाब जामण में भी होया करै छोटो सो बीज ॥ धणी री सुण पाखती लुगाई बोली आखती तो जाओ बीज देओ खेत में कूलर-पंखा-फ़्रीज ॥

देशी intresting..............


ओ संग्रह घणो चोखो

पूंछ आळा दूहा 69 छबीस दूहा पूंछ आळा 1 चरका मरका चाबतां, चंचल होगी चांच । फीका लागै फलकिया, अकरा सेकै आंच । करमां रो कीट लागै । 2 नेता नाटक मांडिया, ले नेता री ओट । नेता नै नेता चुणै, जनता घालै बोट ।। लोक सिधारो परलोक ।। 3 लोक घालै बोटड़ा, नेता भोगै राज । लोकराज रै आंगणै, देखो कैड़ा काज ।। जोग संजोग री बात।। 4 हाकम रै हाकम नहीँ, चोर न जामै चोर । नेता तो नेता जणै, नीँ दाता रो जोर ।। नेता जस अमीबा ।। 5 चोरी जारी स्मगलिँग, है नेता रै नाम । आं कामां नै टालगै, दूजो केड़ो काम।। आप बिकै नी बापड़ा ।। 6 जनता हाथां हार गै, हाट करावै बंद। फेर ऐ खुल्ला सांडिया, खूब खिंडावै गंद ।। जिताओ बाळो आगड़ा।। 7 चोळा बदळै रोजगा, चालां रो नीँ अंत । भाषण देवै जोरगा, वादां में नीँ तंत।। कियां घड्या रामजी ।। 8 नेता मरियां कामणी, माता मरियां पूत। बो इज होवै पाटवी, जो मोटो है ऊत ।। मारो साळां रै जूत ।। 9 बोट घलावै बापजी, दे कंठां मेँ हाथ । जीत बजावै ढोलड़ा, अणनाथ्या हे नाथ ।। पोल मेँ बजावै ढोल ।। 10 बाजो बाजै जीत गो, नेता घर मेँ रोज । हारै जनता बापड़ी, भूखी टाबर फोज ।। घालो ओज्यूं बोट।। 11 नेता खावै धापगै, जनता भूखी भेड़ । पांच साल मेँ कतरगै, पाछी चाढै गेड़ ।। राम ई राखसी टेक ।। 12 नेता मुख है मोवणां, धोळा धारै भेस । जीत्यां जावै आंतरा, हार्‌यां करै कळेस ।। दे बोट काटो कळेस ।। 13 पाटै बैठ्या धाड़वी, नितगा खोसै कान । नेता भाखै आपनै, चोखो पावै मान ।। नमो कळजुगी औतार ।। 14 सेडो चालै नाक मेँ, मुंडै काढै गाळ । नेता मांगै बोटड़ा, कूकर गळसी दाळ ।। रामजी ई रुखाळसी ।। 15 लोकराज रै गोरवैं, खूब पळै है सांड । चरणो बांरो धरम है, बांध्यां राखो पांड ।। करणी तो भरणी पड़ै।। 16 काळू ल्यायो टिगटड़ी, बणग्यो काळूराम । जनता टेक्या बोटड़ा, जैपर बण्यो मुकाम ।। इयां ई तिरै ठीकरी ।। 17 धापी आई परणगै, नेता जी रै लार । नेता राखै चोकसी, बा टोरै सरकार ।। पतिबरता है बापड़ी।। 18 नेता पूग्यो सुरग मेँ, धापी रैगी लार। ओ'दो मांग्यो लारलां, धापी देगी धार।। धणी री तो ही कुरसी।। 19 नेता चाबी झालगै, कूए मेँ दी न्हाख । लोकराज रै बारणै, अब तूं बैठ्यो झांख ।। फसा ली कुतड़ी कादै।। 20 लोगां पूछी पारटी, नेता होग्यो मौन । नेता पूछी पारटी, कर नेता नै फोन ।। बदळी तो कोनीँ आज।। 21 बेल्यां मांगी पारटी, नेता मारी डांट।। पारटी म्हारी खुद गी, है देवणगी आंट ।। पारटी बदळै क देवै ।। 22 बोट घालो धपटवां, नीँ तो करस्यूं झोड़। नीँ छोडूंला गांव मेँ, भाज्या फिरस्यो खोड़।। बोट सूं कटसी पापो ।। 23 नेतावंश विशेष है, औ’दै रो हकदार । नेतण जाम्यौ सेडलौ, बणसी बो सरदार ॥ ऊंदर जामसी ऊंदर ॥ 24 नेता फ़ळ तलवार रो, बधै बुढापै धार । आडौ पटकै राज नै, खा जावै खार ॥ और के खाडा खोदै ॥ 25 नेता भासण ठोकियो, ढीली करगै राफ़ । म्हानै टेको बोटडा़, पाणी देस्यां साफ़ ॥ जा पछै नै’र बंद है ॥ 26 नेता टोरी बातडी़, दे वादां री पांड । अबकै आपां जीतगै, करस्यां खेत कमांड ॥ छावनी खोली छेकड़ ॥ बीस दूहा पूंछ आळा [१] साग बणायो सोहनी,मिरचां दी बुरकाय । जीमण बैठ्यौ सायबो, मुंडै लागी लाय ॥ बोलण री टाळ होगी ॥ [२] काचर छौलै कामणी,माळा पौवै बीन । डोरै चाढै ऐक-दो, कोठै ठौकै तीन ॥ जा रे काचर रा बीज ॥ [३] घरां बणाई लापसी ,मिंदर लागी धौक । मीट-मसाला नीं पकै।,दारू पर भी रोक ॥ देव ता सोफ़ी होणां ॥ [४] कार ल्याया काको सा,काकी मांग्या हिंडा । काको जाबक नाटग्या,काकी दिंधी खिंडा ॥ अब ले लै लाडी पींडा ॥ [५] देख जलेबी हाट पर,घरां ढूक्या बणाण । जेवडा़ सा गूंथ लिया, रस घाली रामाण ॥ ल्यो, और लेल्यौ पंगा ॥ [६] छोरै नै उडीकतां, टाबर होग्या पांच । चूण चाटियौ सफ़ाचट,भूखी सोवै चांच ॥ रोयल्यौ जामणियां नैं ॥ [७] जेबां राखै कांगसी, सिर में कोनीं बाळ । गंजो भाख्यां बाप जी,साम्हीं काढै गाळ ॥ ले ओ मोडां सूं पंगा ॥ [८] रूंख लगाया बापजी,बेटां दिया उपाड़ । कीकर फ़ळसी खेतडा़,खावण ढूकी बाड़ ॥ दो लगाओ कान तळै ॥ [९] रोटी दोरी खावणी, मैं’गाई में आज । आंख्यां मींची बापजी,बोटां थरप्यै राज ॥ बोट ई खोलसी आंख ॥ [१०] बोटां आळै राज में,है नोटां रा खेल । बिन नोटां रै भायला,सांचा जावै ज़ेल ॥ बोट में मिलग्यौ खोट ॥ [११] घणौ कमायो सायबा, घरां पधारो आय । रासण खूट्यो आसरै,बिज़ळी झपका खाय ॥ बो देस्सी तन्नै न्योळी ॥ [१२] चावळ खावै धपटवां, रोटी खावै सात । ऐडी़ म्हारै कामणी,क्या कै’णी है बात ॥ हाथै कीन्या कामणां [१३] पगां न चालै कामणीं,चढवां मांगै कार । टायरडा़ तौबा करै, देख मैम रो भार ॥ तो टरकडो़ बपराओ ॥ [१४] मामा ल्याया मायरौ,गाभां री भरमार । भाणूं गाभा छौडगै, मांगण ढूक्यौ कार ॥ के बाप परणायौ है ॥ [१५] टाबर मांगै टैम पर, रोटी गाभा चाय । धणीं न ल्यावै रोकडो,धीणै टळगी गाय ॥ चाल ो सांभौ कटौरो ॥ [१६] हेत हबोळा चालतां ,फ़ोन दियो घुंकाय । बातां चालै रसभरी ,कुण देवै छुडवाय ॥ बिल ई काट सी पापो ॥ [१७] मायत सोरी पाळगै,छोरी दी परणाय । वज़न पूछ्यौ सायबै,कुण देवै तुलवाय ॥ धरमक ांटो ई देखो ॥ [१८] गधो भाख्यां आप गधी,भेजो लियो लगाय । नैनो जुग रो हो भलो,ऐ.जी. सूं धिक जाय ॥ गळब ंधी तो बाज सी ॥ [१९] रोटी मांगी सायबां, काची दी झलाय । मैडम बैठी साम्हनै,डरतै ली गटकाय ॥ तो किस्सै कूए में पडै़ ॥ [२०] मायड़ भाषा रै बिनां, म्हारो मुंडौ बंद । नीं जाणां म्हे बापजी,कूकर कटसी फ़ंद ॥ घाल गळ में साफ़लियो ॥ दस दूहा पूंछ आळा [१] बाबो राखतो बकरी,दूध देंती छटांक । चारो चरगै धपटवों,पछै चूसती फ़ांक ॥ पढगी होणी दो आंक ॥ [२] मैडम करती नौकरी,धणी करतो राड़ । धणीं पीसतो पीसणौ,मैडम पीसै जाड़ ॥ धाकौ तो धिक्कै ई हो ॥ [३] पंडत पाळ्यौ कूकडो़,झांझरकै देंतो बांग । लौग रेंवता ताक में,ज़बरौ मंड्यौ सांग ॥ पंडत री पूछ बधगी ॥ [५] ठेको खुलग्यौ गांव में,सगळा होया चूंच ॥ रोज रोज गी पींवतां, बुक होई आगूंच ॥ सै’र रो भाडो़ बचग्यौ ॥ [६] डैण पींवतौ धपटवीं, डॊकरी ही नराज़ । पीहर जास्यूं भाजगै,छोडौ आजो आज ॥ आ डोकरी मरवा सी ॥ [७] काकै मांगी काकडी़, काकी घाली दाळ । काकै ठोकी लात री,काकी काढी गाळ ॥ काल पाछा राजी ल्यौ ॥ [८] रंग गौरा आंख बडी,काया ज अपरम्पार ॥ कहो भायली आपके, पातळिया भरतार ॥ म्हा रला बांदर लागै ॥ [९] जनता मांगी रोटडी,नेता मांग्या बोट । जनता तो भूखी सडी़,नेता जीमै नोट ॥ भाग है आप आप रा ॥ [१०] चोरी करतो पेमलौ,जारी भी भरपूर ॥ नेता बणग्यौ जीतगै,दिल्ली काढै़ टूर ॥ चलो कळेस तो कटग्यौ ॥

ओ संग्रह घणो चोखो


आदमी आदमी रह्यो न देखो-

देखो आज आदमी आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !! धरती बांटी, आभो बांटयो, बाँट डाल्यो नीर भी धर्म री दीवार खींच, बांटयो मालिक पीर भी ! नैणा रे नीर री, पीर यो न बाँट सक्यो खेंच डाल्यो लाश सूँ, कफ़न रो कोरो चीर भी ! मिनखपणों मानखे रो भूल गयो आदमी आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !! हाउडे सूँ डरतो चिपतो, भूल गयो छाती बा भूल्यो संस्कार री, गुरां पढाई पाटी बा ! जायदाद बाप री, में सीर यो न भूल सक्यो माँ-जाया दूर, भूल्यो माँ रे दूध री मिठास भी ! रिश्तां ने ताकड़ी में, तोल रह्यो आदमी आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !! जीवतां जिमायो कोनी, मरियां मौसर अनाप ता जिन्दगी उघाड़े लारे, कर रह्या ओढावणी ! माल यूँ उडाय रह्या, ब्याव ज्यूँ मंड्यो है कोई भूल रह्या है बगत री मार सूँ, बच्यो ना कोई! झूठी बड़ाई में बड़ाई, खोय रह्यो आदमी आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !! सोवतो जगाणो सोरो, जागतो जगावे कौन सूजतो भी खाड में, पड़े अहि तो बचावे कौन ! संस्कृति ने छोड़ के, मरजादा ने मरोड़ के खुद मारे खुद री आतमा, तो बोलो फिर बचावे कौन ! निरमल बणेलो भाईयाँ, फिर आदमी कद आदमी आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !!

आदमी आदमी रह्यो न देखो-


देशी intresting....................

दस पूंछ आळा दूहा ============ [१] सरदी आई सायबा,गाभा बधग्या डी’ल । थांरी आसां कूकतां,आंख्यां बणगी झील ॥ सरदी में नुहासी के ॥ [२] चाय बणाऊं सायबा,घालूं अदरख लूंग । खीचड़ रांधूं कूटवों, भेळ बाजरी मूंग ॥ पछै दळसी छाती पर ॥ [३] खेतां हरखै बाजरी,धरती करै रचाव । थारै आयां सायबा, ढूंढो करै बणाव॥ थारै काचरी तळीजै ॥ [४] भल आया थे सायबा,आंगण ढूक्यो चाव । घिरती फ़िरती नाचती,मन में उठै उमाव ॥ नोटडि़ या ल्यायो दिखै ॥ [५] थां बिन सूनां सायबा,गांव गुवाडी़ खेत । टाबर सेकै रोजगा , म्हानै थारो हेत ॥ ल्यो रमाओ टाबरिया ॥ [६] थारै आयां सायबा, बोल्या डेडर मोर । आभै चमकी बीजळी,बादळ गाज्या जोर ॥ फ़ेर तो पक्की रांद मंडगी ॥ [७] काग उडा़या सायबा ,थांरी आवण आस । कागै मनस्या पूरदी ,प्राण पांगरया ल्हास ॥ आ लागी कागलै री ॥ [८] थारै सारू सायबा , राता पै’रूं बेस । सुरमो सारूं आंख में,बीणी गूंथूं केस ॥ फ़ेर काढ़्सी अक्कल तो॥ [९] सेजां पोढो़ सायबा , छाती लेऊं भीड़ । सुणगै आखर प्रेम रा,मेटूं मन री पीड़ ॥ अब कोनीं बचै लाडी ॥ [१०] सूरज चढियो सायबा ,बेजां सोणो पाप । चाय बणाऊं सांतरी ,चूल्हो बाळो आप ॥ अब किस्सै कूए में पड़सी ॥

देशी intresting....................


गुरुवार, 12 मार्च 2015

ऐसी जानकारी जो शायद आपने पहले कभी नही पढ़ी होगी

ऐसी जानकारी जो शायद आपने पहले कभी नही पढ़ी होगी ******************************************************************** 1. दही को जल्दी और अच्छी जमाने के लिए रात को जमाते वक्त दूध में हरी मिर्च का डंठल तोड़ कर डाल दे ! दही जबरदस्त जमेगी. 2. अगर सब्जी में नमक ज्यादा हो गया हो तो आटे को गूंथ कर उसके छोटे - छोटे पेड़े ( लोइयां ) बना कर डाल दे नमक कम हो जायेगा. 3. प्याज को काट कर बल्ब या ट्यूब लाईट के साथ बाँधने से मच्छर व छिपकिली और मोर का पंख घर में कहीं भी लगाने से केवल छिपकिली नही आती यह आजमाए हुए हैं. 4. यदि फ्रिज में कोई भी खुशबू या बदबू आती है तो आधा कटा हुआ निम्बू रखने से ख़त्म हो जायेगी एक हज़ार बार अजमाया हुआ है . | 5. चावल के उबलने के समय २ बूँद निम्बू के रस की डाल दे चावल खिल जायेंगे और चिपकेंगे नही. 6. चीनी के डब्बे में तीन या चार लौंग डालने से चींटी नहीं आती. 7. बरसातों के दिनों में अक्सर नमक सूखा नही रह पाता वह सिल ( गीला गीला सा) जाता है आप नमक की डिबिया में ४-५ चावल के दाने डाल दें बहुत कम उसमे सीलापन आता है तब. 8. मेथी की कड़वाहट हटाने के लिये थोड़ा सा नमक डालकर उसे थोड़ी देर के लिये अलग रख दें. 9. आटा गूंधते समय पानी के साथ थोड़ा सा दूध मिलाये। इससे रोटी और पराठे का स्वाद बदल जाएगा.

ऐसी जानकारी जो शायद आपने पहले कभी नही पढ़ी होगी


रविवार, 8 मार्च 2015

अपनी आदतों से सुधारें अपना घर,

अपनी आदतों से सुधारें अपना घर, किसी गुरू से बातचीत के आधार पर : १) :: अगर आपको कहीं पर भी थूकने की आदत है तो यह निश्चित है कि आपको यश, सम्मान अगर मुश्किल से मिल भी जाता है तो कभी टिकेगा ही नहीं . wash basin में ही यह काम कर आया करें ! २) :: जिन लोगों को अपनी जूठी थाली या बर्तन वहीं उसी जगह पर छोड़ने की आदत होती है उनको सफलता कभी भी स्थायी रूप से नहीं मिलती.! बहुत मेहनत करनी पड़ती है और ऐसे लोग अच्छा नाम नहीं कमा पाते.! अगर आप अपने जूठे बर्तनों को उठाकर उनकी सही जगह पर रख आते हैं तो चन्द्रमा और शनि का आप सम्मान करते हैं ! ३) :: जब भी हमारे घर पर कोई भी बाहर से आये, चाहे मेहमान हो या कोई काम करने वाला, उसे स्वच्छ पानी जरुर पिलाएं ! ऐसा करने से हम राहू का सम्मान करते हैं.! जो लोग बाहर से आने वाले लोगों को स्वच्छ पानी हमेशा पिलाते हैं उनके घर में कभी भी राहू का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.! ४) :: घर के पौधे आपके अपने परिवार के सदस्यों जैसे ही होते हैं, उन्हें भी प्यार और थोड़ी देखभाल की जरुरत होती है.! जिस घर में सुबह-शाम पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध, सूर्य और चन्द्रमा का सम्मान करते हुए परेशानियों से डटकर लड़ पाते हैं.! जो लोग नियमित रूप से पौधों को पानी देते हैं, उन लोगों को depression, anxiety जैसी परेशानियाँ जल्दी से नहीं पकड़ पातीं.! ५) :: जो लोग बाहर से आकर अपने चप्पल, जूते, मोज़े इधर-उधर फैंक देते हैं, उन्हें उनके शत्रु बड़ा परेशान करते हैं.! इससे बचने के लिए अपने चप्पल-जूते करीने से लगाकर रखें, आपकी प्रतिष्ठा बनी रहेगी ६) :: उन लोगों का राहू और शनि खराब होगा, जो लोग जब भी अपना बिस्तर छोड़ेंगे तो उनका बिस्तर हमेशा फैला हुआ होगा, सिलवटें ज्यादा होंगी, चादर कहीं, तकिया कहीं, कम्बल कहीं ? उसपर ऐसे लोग अपने पुराने पहने हुए कपडे तक फैला कर रखते हैं ! ऐसे लोगों की पूरी दिनचर्या कभी भी व्यवस्थित नहीं रहती, जिसकी वजह से वे खुद भी परेशान रहते हैं और दूसरों को भी परेशान करते हैं.! इससे बचने के लिए उठते ही स्वयं अपना बिस्तर समेट दें.! ७):: पैरों की सफाई पर हम लोगों को हर वक्त ख़ास ध्यान देना चाहिए, जो कि हम में से बहुत सारे लोग भूल जाते हैं ! नहाते समय अपने पैरों को अच्छी तरह से धोयें, कभी भी बाहर से आयें तो पांच मिनट रुक कर मुँह और पैर धोयें.! आप खुद यह पाएंगे कि आपका चिड़चिड़ापन कम होगा, दिमाग की शक्ति बढेगी और क्रोध धीरे-धीरे कम होने लगेगा.! ८) :: रोज़ खाली हाथ घर लौटने पर धीरे-धीरे उस घर से लक्ष्मी चली जाती है और उस घर के सदस्यों में नकारात्मक या निराशा के भाव आने लगते हैं.! इसके विपरित घर लौटते समय कुछ न कुछ वस्तु लेकर आएं तो उससे घर में बरकत बनी रहती है.! उस घर में लक्ष्मी का वास होता जाता है.! हर रोज घर में कुछ न कुछ लेकर आना वृद्धि का सूचक माना गया है.! ऐसे घर में सुख, समृद्धि और धन हमेशा बढ़ता जाता है और घर में रहने वाले सदस्यों की भी तरक्की होती है.!

अपनी आदतों से सुधारें अपना घर,


आपका Mobile सदा निरोगी रहता है।

यदा यदा हि मोबाइलस्य ग्लानिर्भवति सिग्नलः आउट ऑफ रीच सूचनेन त्वरित जागृत संशयाः । विच्छेदितं संपर्का: कलहं मात्र भविष्यति। तस्मात चार्जिंग एवं रिचार्जिंग, कुर्वंतु तव सत्वरं।। मनसोक्तम् चॅटिंगं हास्यविनोदेन टेक्स्टिंगं। सत्वर सत्वर फाॅरवर्डिंगं, अखंडितं सेवाः प्रार्थयामि।। टच स्क्रीनं नमस्तुभ्यं अंगुलीस्पर्शं क्षमस्वमे। प्रसन्नाय इष्टमित्राणां, अहोरात्रं मेसेजम् करिष्ये॥ इति श्री मोबाईल स्तोत्रम् संपूर्णम् ॐ शांति शांति शांति: ॥शुभम् भवतु॥ "रोज सुबह शाम इसका ३ बार जाप करें तो Internet की सर्विस अखंड बनी रहती है और आपका Mobile सदा निरोगी रहता है।

आपका Mobile सदा निरोगी रहता है।


मुहावरो के आधुनिक अर्थ . .

मुहावरो के आधुनिक अर्थ . . . 1 सुख की जान दुःख में डालना_ शादी करना 2. आ बेल मुझे मार- पत्नी को लड़ाई के लिए आमन्त्रित करना 3. दिवार से सर फोड़ना-पत्नी को कुछ समजाना 4. चार दिन की चांदनी वहीँ अँधेरी रात- पत्नी का मायके से घर आना 5. आत्म हत्या के लिए प्रेरित करना- शादी की राय देना 6. दुश्मनी निभाना-दोस्तों की शादी करवना 7. खुद का स्वार्थ देखना-शादी ना करना 8. पाप की सजा मिलना-शादी हो जाना 9. लव मैरिज करना-लड़ाई के लिए जोड़ीदार खुद ढूढ़ना 10. जिंदगी के मज़े लेना-कुँवारा रहना 11. ओखली में सर देना-शदि के लिए हा करना 12. दो पाठो में पीसना-दूसरी शदि करना 13. खुद को लूटते हुऐ देखना-पत्नी का पर्स से पैसे निकलना 14. पेरो तले जमीन खिसकना-पत्नी सामने दिखना 15. शादी के फ़ोटो देखना-गलती पर पछताना 16. सर मुंडाते ही ओले पड़ना-परीक्षा में फेल होते ही शादी हो जाना 17. शादी के लिए हा करना-स्वेच्छा से जेल जाना 18. शादी -बिना अपराध की सजा 19. बेगाने शादी में अब्दुल्ला दीवाना-दुसरो के दुःख से खुश होना 20. साली आधी घर वाली-वो स्किम जो दूल्हे को बताई जाती है लेकिन दी नहीं जाती...

मुहावरो के आधुनिक अर्थ . .


"माँ"

"माँ" एक ऐसी बैंक होती है , जहाँ आप अपनी हर 'भावना' और 'दुख' जमा कर सकते है... . . और . . "पापा" एक ऐसे क्रेडिट कार्ड हैं , जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते रहते हैं.

"माँ"


राम राम सा... होली री घणी घणी बधायाँ...

राजस्थानी भाषा सूं प्यार है तो जरूर पढना __ . खाणो वाइफ रो, पाणी पाइप रो, ध्यान एक री, सलाह दो री, गावणो तीन रो, चोकडी चार री, पंचायती पान्च री, छाती कुटो छ: रो, प्यार भाई रो, नशो दवाई रो, दूध गाय रो, स्वाद मलाई रो, वेर दुश्मन रो, वगार राई रो, एको नाई रो, घर लुगाई रो, टांको दर्ज़ी रो, मेसेज दमजी रो, न्याय ताकडी रो, साग काकडी रो, जाल मकडी रो, बलितो लकडी रो, घी जाट रो, तेल हाट रो, तोलणो बाट रो, लाडु सुण्ठ रो, महीनो जून रो, कपडो ऊन रो, घाघरो वरी रो, और नाम बोलो हरी रो। थोड़ा दिना पछे ए शायद कोनी मिलेला लुगाईओ में लाज, दिलों में राज, चुल्हा री आग, सरसुं रो साग, सिर उपर पाग, संगीत रा राग, .... कोनी मिलेला सा ... औंगण में ऊखल, कूण म मूसल, घरां में लस्सी, लत्ते टांगणकी रस्सी रिश्तों रो उजास, दोस्तों रो गरमास,पहलवानां री लंगोट, हनुमानजी रो रोट, घूंघट आली लुगाई, गावं म दाई, ..... कोनी मिलेला सा .... सासरा में लाडू , तैवार माथे साडू, दोस्तां साथे भोज, सुबह शाम नितरोज, चिड़ी बल्ला रो खेल, WHatsapp माथे मेल, .......कोनी मिलेला सा ..... बात सुनती घरआली, हँस बतलावती साली, घरां में बुढ्ढा, बैठकां में मुड्डा, अलपता टाबर, सुहावता आखर, अनजानो री आशीष, कमतर ने बक्शीस, राज में भला, ने बंद गला, .....कोनी मिलेला सा... शहर री आन, मुछों री शान, ताऊ रो हुक्का, ब्याह रो रुक्का, हिसाब री पर्ची, गली वालो दर्ज़ी , पाटडे माथे नहाणो, पत्तल पे खाणो, पाणी भरेडा देग, बेन बेटी रो नेग, .........कोनी मिलेला.....

राम राम सा... होली री घणी घणी बधायाँ...

लुगाईयाँ का घाघरा खिचड़ी का बाजरा सिरसम का साग सर पै पाग आँगण मै ऊखल कूण मै मूसल ढूंढते रह जाओगे घरां मै लस्सी लत्ते टाँगण की रस्सी आग चूल्हे की संटी दुल्हे की कोरडा होली का नाल मौली का पहलवानां का लंगोट हनुमानजी का रोट ढूंढते रह जाओगे घूंघट आली लुगाई गाँम मै दाई लालटेण का चानणा बनछटीयाँ का बालणा बधाई की भेल्ली गाम मै हेल्ली घरां मै बुड्ढे बैठकाँ मै मुड्ढे ढूंढते रह जाओगे बास्सी रोटी अर अचार गली मै घूमते लुहार खांड का कसार टींट का अचार काँसी की थाली डांगरां के पाली बीजणा नौ डांडी का दूध दही घी हांडी का रसोई मै दरात बालकां की दवात ढूंढते रह जाओगे / बटेऊआँ की शान बहुआं की आन पील गर्मियां मैं गूँद सर्दियाँ मैं ताऊ का हुक्का ब्याह का रुक्का बोरला नानी का गंडासा सान्नी का कातक का नहाण मूंज के बाण ढूंढते रह जाओगे / चूल आली जोड़ी [ किवाड़ ] गिनती मै कौड़ी कोथली साम्मण की रौनक दाम्मण की पाटड़े पै नहाणा पत्तल पै खाणा छात्याँ मै खडंजे अर कड़ी गुग्गा पीर की छड़ी ढूँढते रह जाओगे / लूणी घी की डली गवार की फली पाणी भरे देग बाहण-बेटियां के नेग ढूंढते रह जाओगे मोटे सूत की धोत्ती घी बूरा अर रोटी पीले चावलाँ का न्यौता सात पोतियाँ पै पोत्ता धौण धड़ी के बाट मूँज - जेवड़ी की खाट घी का माट भुन्दे होए टाट गुल्ली - डंडे का खेल गुड की सेळ ब्याह के बनवारे सुहागी मैं छुहारे ताँगे की सवारी दूध की हारी पेचदार पगड़ी घोट्टे आली चुन्दडी सर पै भरोट्टी कमर पै चोट्टी ढूढ़ते रह जाओगे / कासण मांजन का जूणा साधूआँ का बलदा धुणा गुग्गे का गुलगला बालक चुलबला बोरले आली ताई सूत की कताई मुल्तानी अर गेरू बलध अर रेहडू कमोई अर करवे चा - पाणी के बरवे ब्याह मै खोड़िया बालकां का पोड़िया ढूंढते रह जाओगे / हटड़ी अर आला बुडकलाँ की माला दूध पै मलाई लोगाँ कै समाई खेताँ मै कोल्हू नामाँ मै गोल्हू ढूंढते रह जाओगे गुड़ की सुहाली खेताँ मै हाली हारे की सिलगती आग ब्याह मै पेठे का साग हाथ का बँटा बाण सरगुन्दी आली नाण हाथ मै झोला खीर का कचोला ड्योढ़ी की सोड बंदडे का मोड़ [सेहरा ] खेत में बैठ के खाना, डोल्ला का सिरहाना, लावणी करती लुगाईया, पानी प्याती पनहारिया, डेला नीचे खाट, भाटा के बाट, ढूंढते रह जाओगे ! सिर मैं भौरी अणपढ़ छौरी चरमक चूँ की जूती दुध प्यांण की तूती मावस की खीर पहंडे का नीर गर्मियां मैं राबड़ी खेताँ मैं छाबड़ी घरां मैं पौली कोरडे की होली चणे के साग की कढी चाबी तैं चालदी घडी काबुआ कांसी का काढ़ा खांसी का काजल कौंचे की शुद्धताई चौंके की गुलगला बरसात का चूरमा सकरात का सीठणे लुगाइयाँ के नखरे हलवाईयाँ के भजनी अर ढोलक माट्टी के गुल्लक ढूंढते रह जाओगे !!

ढूंढते रह जाओगे

लुगाईयाँ का घाघरा खिचड़ी का बाजरा सिरसम का साग सर पै पाग आँगण मै ऊखल कूण मै मूसल ढूंढते रह जाओगे घरां मै लस्सी लत्ते टाँगण की रस्सी आग चूल्हे की संटी दुल्हे की कोरडा होली का नाल मौली का पहलवानां का लंगोट हनुमानजी का रोट ढूंढते रह जाओगे घूंघट आली लुगाई गाँम मै दाई लालटेण का चानणा बनछटीयाँ का बालणा बधाई की भेल्ली गाम मै हेल्ली घरां मै बुड्ढे बैठकाँ मै मुड्ढे ढूंढते रह जाओगे बास्सी रोटी अर अचार गली मै घूमते लुहार खांड का कसार टींट का अचार काँसी की थाली डांगरां के पाली बीजणा नौ डांडी का दूध दही घी हांडी का रसोई मै दरात बालकां की दवात ढूंढते रह जाओगे / बटेऊआँ की शान बहुआं की आन पील गर्मियां मैं गूँद सर्दियाँ मैं ताऊ का हुक्का ब्याह का रुक्का बोरला नानी का गंडासा सान्नी का कातक का नहाण मूंज के बाण ढूंढते रह जाओगे / चूल आली जोड़ी [ किवाड़ ] गिनती मै कौड़ी कोथली साम्मण की रौनक दाम्मण की पाटड़े पै नहाणा पत्तल पै खाणा छात्याँ मै खडंजे अर कड़ी गुग्गा पीर की छड़ी ढूँढते रह जाओगे / लूणी घी की डली गवार की फली पाणी भरे देग बाहण-बेटियां के नेग ढूंढते रह जाओगे मोटे सूत की धोत्ती घी बूरा अर रोटी पीले चावलाँ का न्यौता सात पोतियाँ पै पोत्ता धौण धड़ी के बाट मूँज - जेवड़ी की खाट घी का माट भुन्दे होए टाट गुल्ली - डंडे का खेल गुड की सेळ ब्याह के बनवारे सुहागी मैं छुहारे ताँगे की सवारी दूध की हारी पेचदार पगड़ी घोट्टे आली चुन्दडी सर पै भरोट्टी कमर पै चोट्टी ढूढ़ते रह जाओगे / कासण मांजन का जूणा साधूआँ का बलदा धुणा गुग्गे का गुलगला बालक चुलबला बोरले आली ताई सूत की कताई मुल्तानी अर गेरू बलध अर रेहडू कमोई अर करवे चा - पाणी के बरवे ब्याह मै खोड़िया बालकां का पोड़िया ढूंढते रह जाओगे / हटड़ी अर आला बुडकलाँ की माला दूध पै मलाई लोगाँ कै समाई खेताँ मै कोल्हू नामाँ मै गोल्हू ढूंढते रह जाओगे गुड़ की सुहाली खेताँ मै हाली हारे की सिलगती आग ब्याह मै पेठे का साग हाथ का बँटा बाण सरगुन्दी आली नाण हाथ मै झोला खीर का कचोला ड्योढ़ी की सोड बंदडे का मोड़ [सेहरा ] खेत में बैठ के खाना, डोल्ला का सिरहाना, लावणी करती लुगाईया, पानी प्याती पनहारिया, डेला नीचे खाट, भाटा के बाट, ढूंढते रह जाओगे ! सिर मैं भौरी अणपढ़ छौरी चरमक चूँ की जूती दुध प्यांण की तूती मावस की खीर पहंडे का नीर गर्मियां मैं राबड़ी खेताँ मैं छाबड़ी घरां मैं पौली कोरडे की होली चणे के साग की कढी चाबी तैं चालदी घडी काबुआ कांसी का काढ़ा खांसी का काजल कौंचे की शुद्धताई चौंके की गुलगला बरसात का चूरमा सकरात का सीठणे लुगाइयाँ के नखरे हलवाईयाँ के भजनी अर ढोलक माट्टी के गुल्लक ढूंढते रह जाओगे !!

ढूंढते रह जाओगे


गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली है

होली का दिन था। क्लब में त्योहार मनाने की व्यवस्था थी होली खेलने, नहाने और खाने पीने का सब प्रबंध किया गया था। अच्छा हंगामा जमा और मधुर मधुर टुन्न होने के बाद घर को लौटते समय एक सज्जन ने क्लब से पुलिस को फोन पर घबराई हुई आवाज में रपट लिखवाई, "मेरी कार का क्लच, एक्सिलेटर, डैशबोर्ड आदि सब चोरी हो गए हैं।" पुलिस स्टेशन पर तैनात अधिकारी ने रपट लिखकर सब कुछ जल्दी ढूँढ देने का वायदा किया। फोन रखते ही फिर से घंटी बजी। पुलिस अधिकारी ने फोन उठाया, वही सज्जन बोल रहे थे, "माफ़ कीजिएगा दरोगा जी, सब कुछ सलामत है। मैं ही गलती से पिछली सीट पर बैठ गया था।"

होली है


हमारी नींद: हमारे सपने

किस-किस को देखिए,किस-किस को रोइए। आराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइए।। नींद भला किसे नहीं प्यारी होती? कड़ी मेहनत के बाद थकान से चूर व्यक्ति मौका लगते ही गहरी नींद में सो जाता है तो हर समय चिंतित रहने वाला व्यक्ति नींद न आने से परेशान रहता है। येन-केन-प्रकरेण वह भी सोने की हर चंद कोशिश करता है। सो कर वह भी चिंताओं से मुक्त होना चाहता है, चाहे थोड़ी देर के लिए ही सही। नींद की अपनी दुनिया है और उसका काफी हिस्सा सपनों से मिल कर बनता है। सपने कितने तरह के तो होते हैं ये सपने! कुछ रुलाने वाले, तो कुछ हँसाने वाले और कुछ तो ऐसे भयानक कि सोने में ही पसीना छुड़ा दें। मस्तिष्क की विद्युत तरंगों के अध्ययन के फलस्वरूप आज हम जान सके हैं कि इंसान ही नहीं, लगभग सभी स्तनधारी जीव सपने देखते हैं। चिड़ियाँ भी थोड़े-बहुत सपने देख ही लेती हैं। लेकिन सरीसृप तथा इससे नीचे की श्रेणी के जीव-जन्तु सपने नहीं देखते। सपने नींद में ही देखे जा सकते हैं, जागृत अवस्था में नहीं। जागृत अवस्था में हम मात्र कल्पना कर सकते हैं, जिसे भ्रमवश दिवा-स्वप्न का नाम दे दिया गया है। यहाँ हम नींद में देखे जाने वाले असली सपनों की ही बात करेंगे। आखिर हम सपने क्यों देखते हैं? क्या इनका कुछ अर्थ भी होता है? क्या इनसे हमारा अस्तित्व एवं भविष्य भी कुछ सीमा तक जुड़ा है? अनादि काल से ऐसे तमाम प्रश्नों के उत्तर पाने के प्रयास किए जाते रहे हैं और अक्सर इन सपनों को भविष्य की तरफ़ इशारा करने वाले साधन के रूप में देखा गया है। कुछ लोगों ने अपने सपनों को आगे चल कर सच होते हुए भी देखा है। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा अपनी ही हत्या का स्वप्न देखना और निकट भविष्य में उसे अपनी आँखों के आगे सच होते देखने की घटना से कौन नहीं परिचित है? इस संसार में ऐसे तथाकथित विद्वानों एवं विशेषज्ञों की कमी नहीं है जो हमारे देखे सपनों के अर्थ बताने तथा उससे संबंधित बातों के बारे में तरह-तरह के कयास लगाने का प्रयास करते रहते हैं। ऐसे लोग क्या करते हैं और क्या-क्या दावे करते हैं, इससे फिलहाल हमारा कोई सरोकार नहीं है। यहाँ हम आधुनिक यंत्रों-उपकरणों से लैस वैज्ञानिक तथा अनुसंधानकर्त्ताओं के खोजी नज़रिये से नींद और सपनों के पीछे के सच को जानने का प्रयास करेंगे। चूँकि सपनों का संबंध सोने से है तो आइए सबसे पहले हम नींद के विज्ञान को समझें। नींद एक प्रकार की लगभग संपूर्ण अचेतन की अवस्था है, जिससे हम मनुष्य २४ से २५ घंटे की अवधि में सामान्यत: एक बार अवश्य गुज़रते हैं। हम मनुष्य अक्सर लेट कर सोना पसंद करते हैं। इस अवस्था में हमारी आँखे बंद हो जाती हैं, कुछ सुनाई नहीं पड़ता (जब तक कि आवाज़ बहुत तेज़ न हो) हृदय की धड़कन कम हो जाती है, साँस की लय धीमी हो जाती है तथा मांस पेशियाँ पूरी तरह से ढीली पड़ जाती हैं। सोने में हम प्राय: करवट बदलते रहते हैं। शरीर के प्रत्येक अंग में सुचारू रूप से रक्त के प्रवाह को बनाए रखने के लिए संभवत: ऐसा किया जाता है। सोने एवं बेहोशी में सबसे बड़ा अंतर यह है कि सोते व्यक्ति को तो तेज़ आवाज़ या फिर झकझोर कर उठाया जा सकता है परंतु बेहोश आदमी को नहीं। सोते समय मस्तिष्क की कार्य प्रणाली में काफी बदलाव आता है परंतु यह अंग पूरी तरह शिथिल नहीं पड़ता। यहाँ नाना प्रकार की कार्यवाहियाँ चलती ही रहती हैं। कोई कितनी देर तक सोता है, इस संबंध में किसी प्रकार का निश्चित एवं कड़ाई से पालन किया जाने वाला नियम तो नहीं है फिर भी औसतन एक वयस्क व्यक्ति ७ से ९ घंटे सोता है। वहीं पर नवजात शिशु २० घंटे, ४ वर्ष का बालक १२ घंटे, १० वर्ष का बालक १० घंटे तो एक बूढ़े व्यक्ति को ६ से ७ घंटे की नींद की आवश्यकता होती है। इसके पहले कि हम अपनी नींद और सपनों की वैज्ञानिक दुरूहता को समझने के चक्कर में पड़ें, आइए अन्य जीव-जंतुओं की नींद संबंधी कुछ रोचक जानकारियों पर भी एक निगाह डालते चलें। कीट-पतंगे तो ऐसा लगता है कि सोते ही नहीं। हालाँकि इनमें से कुछ दिन में निष्क्रिय पड़े रहते हैं तो कुछ रात में। मछलियाँ एवं मेढक जैसे जंतु अपनी चेतना के स्तर को थोड़ा-बहुत घटा लेते हैं परंतु मनुष्यों की तरह निद्रा की अचेतन अवस्था में नहीं जाते। गाएँ खड़े-खड़े सो तो लेती हैं, परंतु सपने लेटी अवस्था में ही देख सकती हैं। ह्वेल तथा डॉलफिन्स हमारी तरह सोने में स्वत: साँस नही ले सकतीं। साँस की प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित रखने के लिए नींद में भी इनका आधा मस्तिष्क ही सोता है। अब आइए फिर से अपनी नींद और सपनों की दुनिया में वापस चलें। पहली बात -आखिर हमें नींद क्यों आती है तथा इसके पीछे क्या कारण हैं? इस प्रश्न का सटीक उत्तर वैज्ञानिक अब तक नहीं खोज पाए हैं फिर भी आज तक के अध्ययन का निचोड़ कुछ इस प्रकार है: जागृत अवस्था में ब्रेन स्टेम (जिसके द्वारा मस्तिष्क का मुख्य भाग मेरूदंड(spinal cord)से जुड़ा रहता है) की कुछ नर्व कोशिकाएँ सिरेटोनिन एवं नॉरएपीनेफिरन जैसे न्युरोट्रांसमिटर्स का स्राव करती हैं जो मस्तिष्क के उन विशेष भागों को सक्रिय रखता है जो हमें जगाए रखने के लिए आवश्यक है। सुसुप्ता अवस्था में इसी ब्रेन स्टेम की कुछ अन्य नर्व कोशिकाएँ दूसरे प्रकार के न्युरोट्रांसमिटर का स्राव करने लगती हैं जो उपरोक्त प्रकार के न्युरोट्रांसमिटर्स का स्राव बंद कर देती है फलस्वरूप मस्तिष्क के वे भाग निष्क्रिय होने लगते हैं जो हमें जगाए रखते हैं। कुछ अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जागृत अवस्था में हमारे रक्त में एडिनोसिन नामक रसायन का जमाव होने लगता है। यह रसायन हमें अर्धनिद्रा की स्थिति में ला देता है। जब हम सोते हैं तब इस रसायन का विघटन होने लगता है। मस्तिष्क की सक्रिय कोशिकाओं से इस रसायन का स्राव होता है। इनका एक सीमा से अधिक स्राव एवं जमाव संभवत: इस बात का संकेत होता है कि इन कोशिकाओं ने आवश्यकता से अधिक ऊर्जा का उपयोग कर लिया है और अब उन्हें कुछ समय के लिए विश्राम की आवश्यकता है, ताकि वे फिर से उर्जा के सामान्य स्तर को प्राप्त कर तरोताज़ा हो सकें। फलत: ये कोशिकाएँ कुछ समय के लिए निष्क्रिय हो जाती हैं। अपने सिर को एलेक्ट्रोएन्सिफैलोग्राक नामक उपकरण से जोड़ कर विभिन्न स्थितियों में मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली विद्युत तरंगों का आकलन एवं अध्ययन किया जा सकता है। पूरी तरह जागृत तथा आराम की स्थिति में मस्तिष्क से अल्फा तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिनके ऑसिलेशन की दर १० साइकिल्स प्रति सकेंड होती है। सुसुप्तावस्था में थीटा एवं डेल्टा नामक दो प्रकार की धीमी गति वाली विद्युत तरंगों का उत्पादन होता है। थीटा तरंगों की ऑसिलेशन दर ३.५ से ले कर ७ साइकिल्स प्रति सेकेंड होती है तथा डेल्टा तरंगों की ऑसिलेशन दर ३.५ साइकिल्स से भी कम होती है। इन तरंगों की कम होती दर गहन से गहनतम निद्रा की अवस्था को दर्शाती है। वास्तव में सोते समय हम निद्रा की क्रमश: पाँच अवस्थाओं से गुज़रते हैं- अवस्था १, अवस्था २, अवस्था ३, अवस्था ४ और फिर अंत में पुतली के तीव्र संचालन (Rapid Eyeball Movement - REM)की अवस्था। ये अवस्थाएँ इसी क्रम में बार-बार दुहराई जाती हैं। निद्रा की पहली अवस्था हल्की नींद की स्थिति होती है जिसे हम सामान्य बोल-चाल में कच्ची नींद या फिर तंद्रा की स्थिति कहते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति सोने और जगने की प्रक्रिया के बीच झूलता रहता है और उसे आसानी से जगाया जा सकता है। आँखें धीमी गति से घूमती रहती हैं तथा मांस पेशियाँ शिथिल पड़ने लगती हैं। यदि इस स्थिति मे व्यक्ति को जगा दिया तो वह अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं का वर्णन छोटे-छोटे टुकड़ों में कर सकता है, लेकिन उसे पूरी घटना का ज्ञान नहीं रहता। इस अवस्था में बहुत से लोग कभी - कभी मांसपेशियों में अचानक संकुचन का अनुभव करते हैं और वे चौंक उठते हैं, साथ ही उन्हें कभी-कभार अपनी जगह से गिरने का आभास भी होता है। जब हम निद्रा की दूसरी अवस्था में पहुँचते हैं तो हमारी आँखें लगभग स्थिर हो जाती हैं तथा मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली विद्युत तरंगें धीमी पड़ने लगती हैं परंतु बीच -बीच में तीव्र ऑसिलेशन वाली तरंगों का झोंका भी आता रहता है, जिसे 'स्लीप स्पिंडिल' भी कहते हैं। तीसरी अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते इन विद्युत तरंगों का ऑसिलेशन बहुत ही कम हो जाता है और अब डेल्टा तरंगों के उत्पादन की शुरुआत हो जाती है। इस अवस्था में भी कभी-कभी छोटी परंतु तीव्र ऑसिलेशन वाली तरंगें उत्पन्न होती रहती हैं। चौथी अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते तो मस्तिष्क केवल डेल्टा तरंगों का ही उत्पादन करता है। वास्तव में तीसरी एवं चौथी अवस्था गहन निद्रा की स्थिति होती है । इस समय आँखें तथा मांस पेशियाँ पूरी तरह शिथिल पड़ जाती हैं। इस अवस्था में किसी को जगाना बड़ा ही कठिन कार्य होता है। यदि किसी तरह व्यक्ति को जगा भी लिया जाय तो वह तुरंत अपने आस-पास के वातावरण से तारतम्य नहीं बिठा पाता और थोड़े समय के लिए उसकी चाल में लड़खड़ाहट देखी जा सकती है। साथ ही उसमें आत्मविस्मृति, दिशा-भ्रम तथा उलझन की स्थिति बनी रहती है। गहन निद्रा की स्थिति में ही कुछ बच्चे बिस्तर गीला कर देते हैं या फिर कुछ लोग निद्राचार(sleep walk)भी कर सकते हैं। सोने के लगभग ७० से ९० मिनट के बाद हम तीव्र नेत्र गोलक संचालन-आरइएम-की अवस्था में पहुँचते हैं। इस अवस्था में सांस लेने की गति अनियमित परंतु तेज़ हो जाती है, आँख की पुतलियाँ झटके के साथ तेज़ गति से विभिन्न दिशाओं में घूमने लगती हैं तथा हाथ-पैर अस्थाई रूप से शिथिल पड़ जाते हैं। साथ ही हृदय की धड़कन तथा रक्त-चाप बढ़ जाता है। यही वह अवस्था होती है, जब हम सपने देखते हैं। यदि इस अवस्था में व्यक्ति जाग जाय तो उसे सपने आधे-तीहे याद भी रहते हैं जिनका वर्णन वह कर सकता है। आरईएम सहित नींद का पहला चक्र ९० से ११० मिनट का होता है। पहले चक्र में आरईएम का समय थोड़ा कम होता है परंतु जैसे-जैसे रात बीतती है, हर चक्र में गहन निद्रा का समय कम होता जाता है और आरईएम का समय बढ़ता जाता है। सुबह के समय तो नींद का अधिकांश भाग पहली, दूसरी अवस्था तथा आरईएम को मिला कर ही पूरा होता है। एक वयस्क व्यक्ति अपनी नींद का ५० प्रतिशत निद्रा की दूसरी अवस्था में बिताता है, २० प्रतिशत आरईएम की अवस्था में तथा बाकी ३० प्रतिशत अन्य अवस्थाओं में। वही एक नवजात शिशु अपनी निद्रा काल का ५० प्रतिशत आरईएम की अवस्था में बिताता है। बुढ़ापे में तो लंबे समय वाली लगातार निद्रा का अभाव होने लगता है तथा इसमें गहन निद्रा की अवस्था तो लगभग गायब ही हो जाती है। बूढ़े व्यक्ति को अक्सर अनिद्रा की शिकायत रहती है। इतने ज्ञान के बाद आइए अब हम सपनों के वैज्ञानिक पहलुओं पर नज़र दौड़ाएँ। सामान्य अवस्था में हम हर रात नींद के कम से कम दो घंटे सपने देखते हुए बिताते हैं। हम क्यों और कैसे सपने देखते हैं, इस संबंध में वैज्ञानिकों को कुछ ज़्यादा ज्ञान नहीं है। १९५३ में पहली बार अनुसंधान- कर्त्ताओं ने नवजात शिशु के मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली 'आरईएम' अवस्था के विद्युत तरंगों का ग्राफ लेने तथा उसे समझने में सफलता पाई। इसके बाद ही वे यह समझ पाए कि नींद की आरईएम अवस्था में ही हम अक्सर स्वप्न देखते हैं। 'आरईएम' स्थिति का प्रारंभ मस्तिष्क के पिछले भाग, स्टेम के पॉन्स नामक हिस्से से उत्पन्न होने वाली विद्युत तरंगों रूपी संकेतों से होता है। ये संकेत मस्तिष्क के थैलमस नामक भाग तक पहुँचते हैं जो इन्हें मस्तिष्क के वाह्य भाग सेरिब्रल कॉर्टेक्स को प्रेषित कर देता है। यह भाग प्राप्त सूचनाओं को पुनर्व्यवस्थित करने, नई बातों को सीखने तथा सोचने समझने के लिए ज़िम्मेदार है। पॉन्स से ही ऐसे संकेत भी उत्पन्न होते हैं जो मेरूदंड में अवस्थित न्युरॉन्स को निष्क्रिय कर हमारे हाथों एवं पैरों की मांस पेशियों को भी शिथिल कर देते हैं। यदि ऐसा न हो तो व्यक्ति स्वप्न के साथ अपने हाथ-पैर भी चलाने लगता है। ऐसा कभी-कभी होता भी है। यदि व्यक्ति मार-पीट का सपना देख रहा हो तो ऐसी स्थिति में बगल में सोए व्यक्ति को दो-चार लात-घूँसों का सामना भी करना पड़ सकता है। आरईएम अवस्था की निद्रा मस्तिष्क के उस भाग को उत्प्रेरित करता है जहाँ नई बातें सीखी-समझी जाती हैं। किसी नई बात को सीखने के तुरंत बाद यदि व्यक्ति को आरईएम अवस्था वाली निद्रा से वंचित कर दिया जाय तो वह सीखा हुआ सारा ज्ञान भूल भी सकता है। जैसा कि हमें पता है, नींद की आरईएम अवस्था की आवृति लगभग प्रत्येक ९० से १०० मिनटों के अंतराल पर होती रहती है। निश्चय ही हर बार इनका प्रारंभ पॉन्स से उठने वाली ऐसी ही विद्युत तरंगों के कारण होता है। वास्तव में ये तरंगें अनियमित एवं बेतरतीब होती हैं। चूँकि ये तरंगें सेरिब्रल कॉर्टेक्स को प्रभावित करती हैं, फलत: यह भाग इन्हें जोड़-तोड़ कर कुछ अर्थ देने का प्रयास करता है। यही प्रयास एक अर्थहीन कहानी के रूप में चित्र एवं आवाज़ के साथ स्वप्न के रूप में दीखता है। इसका मतलब यह नहीं है कि सारे सपने अर्थहीन ही होते हैं। यदा-कदा हमारा मस्तिष्क इस आरईएम की अवस्था में इन विद्युत तरंगों के सहारे अवचेन में गहरे बैठी किसी गंभीर समस्या का समाधान तलाशने का प्रयास करता है और कभी-कभी हमारे व्यक्तित्व तथा भविष्य की ओर भी इशारे करने का प्रयास करता है। इस दिशा में अभी विस्तृत एवं गहन अनुसंधान की आवश्यकता है। सपनों के बारे में अब तक हम जो कुछ समझ सके हैं उनका सार-संक्षेप निम्न है: सपने अक्सर कहानी के रूप में होते हैं। इनमें पात्र भी होते हैं, चित्र भी होते हैं तथा आवाज़ भी होती है। सपनों में स्वप्न देखने वाला सदैव शामिल रहता है। सपनों में हमारे साथ घटित नई बातें अक्सर शामिल रहती हैं और कभी-कभी हमारे मन में गहरे पैठी चिंताएँ तथा डर का भी समावेश होता है। स्वप्न देखते समय यदि आस-पास आवाज़ हो रही हो तो अक्सर ये आवाज़ें भी सपने का हिस्सा बन जाती हैं। सपनों को हम सामन्यतया नियंत्रित नहीं कर सकते। तो ये रहीं सपनों की बातें। अब आइए हकीकत पर वापस चलें और जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलू अर्थात नींद से संबंधित कुछ और बातें भी जानें। यथा - क्या सोना ज़रूरी है? यदि हाँ, तो हमें अच्छी नींद के लिए क्या-क्या करना चाहिए? हम मनुष्यों के लिए सोने की आवश्यकता के बारे में वैज्ञानिकों में अभी भी दुविधा की स्थिति बनी हुई है। फिर भी जानवरों पर किए गए कुछ प्रयोग नींद के महत्त्व को भली भाँति दर्शाते हैं। चूहे सामन्यत: २ से ३ साल तक जीवित रहते हैं। यदि उन्हें नींद की आरईएम अवस्था से स्थाई रूप से वंचित कर दिया जाय तो वे बड़ी मुश्किल से ५ सप्ताह तक ही जीवित रह पाते हैं। और यदि उन्हें नींद से पूरी तरह वंचित कर दिया जाय तो वे केवल ३ सप्ताह तक ही जीवित रह पाते हैं। उनके शरीर का तापक्रम भी असामान्य रूप से बहुत ही कम हो जाता है। उनकी पूँछ तथा पैरों पर घाव दीखने लगते हैं। अनिद्रा रोग- प्रतिरोधक क्षमता को हानिकारक सीमा तक कम कर सकती है। हमारे स्नायु तंत्र की कार्य क्षमता को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए भरपूर नींद आवश्यक है। लंबे समय तक बिना भरपूर नींद के जगे रहने का कुपरिणाम दूसरे दिन उनींदेपन तथा किसी कार्य में ध्यान न लगने के रूप में देखा जा सकता है। इसका दुष्प्रभाव स्मरण शक्ति तथा शारीरिक क्षमता में कमी के रूप में परिलक्षित होता है। व्यक्ति अन्कों के जोड़-घटाव, गुण-भाग आदि में ज़्यादा गल्तियाँ करता है। यदि अनिंद्रा की स्थिति आगे भी बनी रहे तो व्यक्ति विभ्रमित हो सकता है तथा उसकी मनोदशा में भारी उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार निद्रा हमारी स्नायु कोशिकाओं को कुछ देर के लिए विश्राम तथा क्षतिपूर्ति का अवसर प्रदान करती है। बिना नींद के इन कोशिकाओं का ऊर्जा-स्तर खतरनाक हद तक नीचे गिर सकता है या फिर सक्रिय अवस्था में इनमें सामान्य जैव रसायनिक प्रतिक्रियाओं के लगातार चलते रहने के कारण विषाक्त पदार्थों का जमाव भी खतरनाक सीमा तक पहुँच सकता है। ऐसी परिस्थिति में ये कोशिकाएँ सुचारू ढंग से कार्य नही कर सकतीं। नींद, इनमें ऊर्जा के स्तर की पुनर्प्राप्ति तथा विषैले पदार्थों से मुक्ति का एक सहज उपाय प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त यह भी पाया गया है कि गहन निद्रा की स्थिति में बच्चों तथा युवाओं में वृद्धि -हॉर्मोन्स का स्राव अधिक मात्रा में होता है। शरीर की बहुत सी कोशिकाओं में विशेष प्रकार के प्रोटीन्स का उत्पादान भी अधिक मात्रा में होते देखा गया है। ये प्रोटीन्स कोशिकाओं की वृद्धि तथा जागृत अवस्था में उनमें हुई टूट-फूट की भरपाई के काम आते हैं। गहन निद्रा को एक प्रकार के सौंदर्य-निद्रा की संज्ञा भी दी जा सकती है। भरपूर नींद लेने वाले व्यक्ति का भवनात्मक एवं सामाजिक व्यावहारिकता का पक्ष भी संतुलित रहता है। कुल मिला कर संक्षेप मे कहा जा सकता है कि नींद हमारे सामान्य जीवन का अति आवश्यक अंश है। तो अब प्रश्न यह उठता है कि भरपूर अच्छी गहन निद्रा के लिए हमें क्या करना चाहिए? इस बारे में विशषज्ञों के सुझाओं का सार-संक्षेप निम्न है: *. पर्याप्त शारीरिक श्रम तथा चिंता-मुक्त रहना अच्छे नींद की संभवत: पहली शर्त है। *. अच्छी नींद के लिए २० से ३० मिनट का नियमित व्यायाम अवश्य करें, लेकिन सोने के समय के तथा व्यायाम के बीच पर्याप्त अंतराल होना चाहिए। *. सोने तथा जगने के समय के बारे में नियमिता बरतें। हर रात एक निश्चित समय पर सोएँ तथा सूर्योदय के साथ जगने का प्रयास करें । सूर्योदय के साथ जगने पर हमारे शरीर की जैविक घड़ी पर्यावरण के साथ आसानी से ताल-मेल बिठा लेती है और हमारा दिन अच्छा बीतता है। *. सोने के पूर्व गुनगुने पानी से नहाना, पढ़ना अथवा अन्य किसी साधन का सहारा, जिससे शरीर तथा मन पूरी तरह आराम की स्थिति में आ जाय - अच्छी नींद में सहायक होते हैं। *. सोने के पूर्व शराब जैसे नशीले या व्यसनी बनाने वाले पदार्थों यथा कॉफ़ी जैसे कैफ़ीन युक्त पेय आदि का सेवन न करें। एल्कोहल हमें गहन तथा आरईएम अवस्था वाली निद्रा से वंचित करता है। *. धूम्रपान करने वाले व्यक्ति भी गहन निद्रा की स्थिति में कम ही जा पाते हैं। जैसे ही उनके शरीर में निकोटिन की मात्रा कम होती है वैसे ही उनकी नींद टूट जाती है। सोने की गोलियों का सेवन बिना डॉक्टर की सलाह के तो कदापि न करें। *. नींद न आने की स्थिति में बिस्तर पर लेटे रहने से कोई लाभ नहीं होता। नींद नहीं आ रही है-इस बात की चिंता भी अनिद्रा की स्थिति ला सकती है। हमें उठ कर किसी हल्के फुल्के कार्य में लग जान चाहिए। ऐसा करने से थोड़ी देर में नींद आ जाती है। *. शयन कक्ष का नियंत्रित तापक्रम नींद की दृष्टिकोण से अच्छा है। बहुत ठंड या गर्मी नींद में बाधा उपस्थित करते हैं।

हमारी नींद: हमारे सपने


अक्षय तृतीया

वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अक्षय तृतीया या आखातीज के नाम से जानी जाती है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। भविष्यपुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मीनारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी के मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। इस तिथि का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है।यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है। धार्मिक परंपराएँ अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। संस्कृति का अनूठा त्यौहार 'अक्षय-तृतीया' इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्‌डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। इस प्रकार गाँवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गाँव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है। कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के सगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं। राजपूत समुदाय में आने वाला वर्ष सुखमय हो, इसलिए इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा है। प्रचलित कथाएँ अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर सन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा। जैन धर्म में अक्षय-तृतीया जैन धर्मावलम्बियों का महान धार्मिक पर्व है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बंधनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य अंगीकार कर लिया। सत्य और अहिंसा के प्रचार करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पधारे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था। प्रभु का आगमन सुनकर सम्पूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर उसने आदिनाथ को पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया। भगवान श्री आदिनाथ ने लगभग ४०० दिवस की तपस्या के पश्चात पारायण किया था। यह लंबी तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी अत: जैन धर्म में इसे वर्षीतप से संबोधित किया जाता है। आज भी जैन धर्मावलंबी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं, यह तपस्या प्रति वर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होती है और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है। तपस्या आरंभ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है। इस प्रकार का वर्षीतप करीबन 13 मास और दस दिन का हो जाता है। उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है। वर्षीतप जब पूर्ण हो जाता है तब भारत विख्यात जैन तीर्थ श्री शत्रुंजय पर जाकर अक्षय तृतीय के दिन पारायण किया जाता है। इस दिन विशाल स्तर पर पारायण की व्यवस्था की जाती है। जहाँ पर तपस्या करनेवाले तपस्वियों को उनके संबंधी पारायण कराते हैं। अक्सर तपस्वी बहन को भाई पारायण कराता है। इसे पारणा कहते हैं। चांदी के बने छोटे से आकार के कलश इक्षु के रस के १०८ भरे कलशों से पारायण आरम्भ होता है। धार्मिक गतिविधियों से ओत-प्रोत इस भव्य समारोह में संवेदनाएँ स्वत: ही उमड़ पड़ती हैं। चारों ओर धर्म चर्चा का वातावरण बन जाता है। पुष्पों की बौछार होती है। रंग-बिरंगे परिधान एवं आभूषण तपस्वी को उनके सगे-संबंधी भेंट करते हैं, फूलों के हार पहनाकर तपस्वियों का आदर सत्कार होता है। चारों ओर हर्ष, उमंग एवं उदास का वातावरण बन जाता है। तपस्वियों का विशेष जलूस समारोहपूर्वक निकाला जाता है और सभी तपस्वियों को तपस्या करने वाले परिवार के सदस्य कुछ न कुछ उपहार भेंट करते हैं। इसे प्रभावना कहते हैं। उपहार में चांदी, स्टील, पीतल आदि के बर्तनों के अतिरिक्त धार्मिक सामग्री भी भेंट दी जाती है। इस प्रकार की तपस्या में हज़ारों नर-नारी भाग लेते हैं। जिसमें वृद्ध, युवा एवं बाल अवस्था के लोग भी सम्मिलित होते हैं। श्री शत्रुंज्य जैसे महान तीर्थ पर अक्षय तृतीय के दिन विशाल पैमाने पर मेला लगता है जिसमें देश के विभिन्न भागों से हज़ारों लोग आते हैं। कई तपस्वी ऐसे होते हैं जो इस तीर्थ पर वर्ष भर रहकर वर्षीतप की आराधना करते हैं। यहाँ तपस्या करने वाले श्री शत्रुंज्य पर्वत की ९९ बार यात्रा करने का लाभ भी उठाते हैं। भारत वर्ष में इस प्रकार की वर्षी तपश्चर्या करने वालों की संख्या हज़ारों तक पहुँच जाती है। यह तपस्या धार्मिक दृष्टिकोण से अन्यक्त ही महत्वपूर्ण है, वहीं आरोग्य जीवन बिताने के लिए भी उपयोगी है। संयम जीवनयापन करने के लिए इस प्रकार की धार्मिक क्रिया करने से मन को शान्त, विचारों में शुद्धता, धार्मिक प्रवृत्रियों में रुचि और कर्मों को काटने में सहयोग मिलता है। इसी कारण इस अक्षय तृतीया का जैन धर्म में विशेष धार्मिक महत्व समझा जाता है। मन, वचन एवं श्रद्धा से वर्षीतप करने वाले को महान समझा जाता है। विभिन्न प्रांतों में अक्षय तृतीया बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं। अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुंड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है। मालवा में नए घड़े के ऊपर ख़रबूज़ा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरंभ किसानों को समृद्धि देता है। भगवान परशुराम का अवतरण स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयंती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं।

अक्षय तृतीया


होली है होली- है होली

होलिका फाल्गुन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। इस दिन इस पर्व को वसंतोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर फाल्गुन पूर्णिमा के कुछ दिन पूर्व ही वसंत ऋतु की रंगरेलियाँ प्रारंभ हो जाती हैं। वस्तुत: वसंत पंचमी से ही वसंत के आगमन का संदेश मिल जाता है। होलिकोत्सव को फाल्गुन-उत्सव भी कहते हैं। यह प्रेम, नव-सृजन और सदभावना का पर्व है। फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन कर वर्ष की समाप्ति की घोषणा के साथ पारस्पारिक वैर-विरोध को समाप्त कर आगामी वर्ष में प्रेम और पारस्पारिक सौहार्द का जीवन व्यतीत करने का संदेश दिया जाता है। दूसरे दिन अर्थात नववर्ष के प्रथम दिवस (चैत्र प्रतिपदा) को समानता का उदघोष कर अमीर-गरीब सभी को प्रेम के रंग (लाल रंग) में रंग दिया जाता है। सड़क पर, गलियों में, गृह-द्वार पर धनी-निर्धन, जाति-पंक्ति का भेद मिट जाता है। इस प्रकार होली प्रेम, उल्लास और समानता का पर्व है। प्रह्लाद का अर्थ आनंद होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद(आनंद) अक्षुण्ण रहता है। पहले होली का त्यौहार पाँच दिन तक मनाया जाता था इसके कारण पहले रंग पंचमी भी मनाई जाती थी। लेकिन अब यह दो दिन ही मनाया जाता है। होली है बसंतोत्सव का आगमन नईं कोपलें, हरितिमा, लालिमा एवं नटी प्रकृति का शृंगार। वसंत के साथ ही प्रकट होते हैं- अनेक रंग के फूल, सुगंध, भौंरों के गुंजार और तितलियों के बहुरंगी विहार। सर्दी की जाती गलन और सुहानी धूप में जब सरसों के पीले फूलों की आमद होती है तब आती है ऋतुराज बसंत की बारी और महक उठती है फूलों की क्यारी। हर तरफ़ रंग घुलने लगते हैं, मस्ती के, हंसी के मन मोहक गुलाल, अबीर कोई टोकाटाकी नहीं। बस गुलाल तो लगानी ही है। कवियों और कलाकारों का सदाबहार विषय ऋतुराज वसंत केवल प्रकृति को ही नवीन नहीं करता भिन्न कलाकारों को भिन्न प्रकार की प्रेरणाओं से भी अभिभूत करता है। लोक साहित्य हो या इतिहास पुराण, चित्रकला या संगीत इस ऋतु ने हर कला को प्रभावित किया है। यहाँ तक कि संगीत की एक विशेष शैली का नाम ही होली है। इतिहास पुराण भी इसके उल्लेखों से बचे नहीं हैं। किंवदंतियों और हास्य कथाओं के ख़ज़ानों में भी इस पर्व का ज़ोरदार दख़ल है। एक किंवदंती यह है कि जब पार्वती के लाख प्रयत्न के बाद भी भगवान भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए तो नारद के कहने पर कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया। कामदेव ने शंकर को रिझाने के लिए कई यत्न किए थे लेकिन भगवान शंकर ने रुष्ट होकर कामदेव को ही जला दिया ऐसे में संसार का सृजन चक्र ही रुक गया। रति ने अपने पति को जीवित करने के लिए भगवान को मनाया और कामदेव नि:शरीर जीवित हो गए। इस खुशी में भी होली मनाई जाती है। हिरण्यकश्यपु की कहानी भी इससे जुड़ी हुई है। लाख मना करने पर भी प्रह्लाद ने भगवान विष्णु का नाम जपना नहीं छोड़ा। उधर हिरण्यकश्यपु भी महान प्रतापी था, उसने भगवान ब्रह्मा एवं शिव से ऐसे वरदान माँग रखे थे कि उसे कोई सामान्य नर, नारी, पशु या पक्षी कोई भी मार नहीं सकता था। ऐसी स्थिति में भगवान नृसिंह को उग्र रूप धारण करके विशेष समय, परिस्थिति और रूप में अवतरित हो कर भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए आना पड़ा। कृष्ण और राधा की अनेक कथाओं के साथ होली और वसंतोत्सव के वर्णन मिलते हैं। गोकुल की ग्वालिनें अपने आराध्य कान्हा को रिझाने के लिए अनेक लीलाएँ रचा करती थी जिसमें रंग, गुलाल और जल क्रीडाएँ शामिल थीं। एक अन्य किंवदंती के अनुसार पूतना राक्षसी के वध की खुशी में भी होली मनाई जाती है। कृष्ण की जन्म और कर्म भूमि मथुरा वृंदावन ब्रज बरसाने और गोकुल में आज भी होली की धूम देखते ही बनती है। होली के पर्व का सुंदर विवरण संस्कृत में दशकुमार चरित एवं गरूड पुराण में तथा हर्ष द्वारा रचित नाटक रत्नावली (जो सातवीं सदी में लिखा गया था) में मिलता है। उस समय इसे वसंतोत्सव के रूप में मदनोत्सव के रूप में मनाते थे। भवभूति, कालिदास आदि ने भी अपने महाकाव्यों में रंग रंगीली होली के बारे में दत्त चित्त हो कर वर्णन किया है। समय के साथ अनेक चीज़ें बदली हैं लेकिन इस पर्व की मोहकता और मादकता की मिसाल नहीं। सभी इसका इंतज़ार करते हैं। आज भी भारत के गाँव में इस दिन जितना हो सके पुराने कपड़े पहनते हैं तथा धूल कीचड़ रंग गोबर काला जो भी हाथ लगे रंग देते हैं, कह देते हैं बुरा न मानों होली है। इन रंगों के घुलने के साथ ही तरोताज़ा रहती है साल भर होली की यादें प्यारी-सी हँसी, घूँघट से झाँकती प्रेयसी इसी इंतज़ार में निहारती है कि कब मुझे रंगेगा मेरा यार। भूल जाते हैं गम़ सब हो जाते हैं एकसार। ऐसा है होली का त्यौहार।

होली है होली- है होली


होली


प्यारी कवितायें

¥¥ ¥¥ कोयल बोल सुहावणां, बोलै इमरत वैण। किण कारण काळी भई, किण गुण राता नैण॥ बागां बागां हूँ फिरी, कठै न लाध्या सैण। तड़फ तड़फ काळी भई, रोय रोय राता नैण॥ आग लगी वन खंड में, दाइया चंदण बस। हम तो दाइया पंख बिन, तूं क्यूं दाझै हंस॥ पान मरोड़या रस पिया, बैठया एकण डाळ। तुम जळो हम उड़ चलें, जीणों किताक काळ॥ घर मोरां, वन कुंजरां, आंबा डाळ सूवांह। सज्जन कुवचण,जलमघर,बीसरसी मूवांह॥

आमलकी एकादशी 11

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन व्रती को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए तथा आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें। तत्पश्चात 'मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये' इस मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें। भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुरामजी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें। भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्रमें एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

आमलकी एकादशी 11

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन व्रती को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए तथा आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें। तत्पश्चात 'मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये' इस मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें। भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुरामजी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें। भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्रमें एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

आमलकी एकादशी 11


आमलकी एकादशी

हिंदू धर्म में प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आमलकी एकादशी या कहें आंवला एकादशी का शास्त्रों में वही श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है जैसा नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान विष्णु को मिला हुआ है। विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए अपनी नाभि से ब्रह्मा को जन्म दिया था। उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को उत्पन्न किया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उसका व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का व्रत हिंदू धर्म मानने वाले लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। विधि इस दिन आप स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें। भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सर्वप्रथम वृक्ष के चारों आेर की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें। कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें। पूजा करते समय मंत्र जाप अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते वसुन्धरे। मृत्तिके हर मे पापं जन्मकोटयां समर्जितम्॥ यानी हे पृथ्वी देवी तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते हैं तथा वामन अवतार के समय भगवान विष्णु ने भी तुम्हें अपने पैरों से नापा था। मैंने करोड़ों जन्मों में जो पाप किए हैं, मेरे उन सब पापों को हर लो। स्नान करते समय मंत्र का जाप त्वं मात: सर्वभूतानां जीवनं तत्तु रक्षकम्। स्वेदजोद्भिज्जजातीनां रसानां पतये नम:॥ स्नातोअहं सर्वतीर्थेषु ह्रदप्रस्रवणेषु च्। नदीषु देवखातेषु इदं स्नानं तु मे भवेत्॥ यानी जल की अधिष्ठात्री देवी! तुम सम्पूर्ण भूतों के लिए जीवन हो। वही जीवन, विभिन्न जाति के जीवों का भी रक्षक है। तुम रसों की स्वामिनी हो। तुम्हें नमस्कार है। आज मैं सम्पूर्ण तीर्थों, कुण्डों, झरनों, नदियों और देवसम्बन्धी सरोवरों में स्नान कर चुका । मेरा यह स्नान उक्त सभी स्नानों का फल देनेवाला हो।

आमलकी एकादशी