गुरुवार, 5 मार्च 2015

प्यारी कवितायें

¥¥ ¥¥ कोयल बोल सुहावणां, बोलै इमरत वैण। किण कारण काळी भई, किण गुण राता नैण॥ बागां बागां हूँ फिरी, कठै न लाध्या सैण। तड़फ तड़फ काळी भई, रोय रोय राता नैण॥ आग लगी वन खंड में, दाइया चंदण बस। हम तो दाइया पंख बिन, तूं क्यूं दाझै हंस॥ पान मरोड़या रस पिया, बैठया एकण डाळ। तुम जळो हम उड़ चलें, जीणों किताक काळ॥ घर मोरां, वन कुंजरां, आंबा डाळ सूवांह। सज्जन कुवचण,जलमघर,बीसरसी मूवांह॥

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