शुक्रवार, 29 मई 2015

निर्जला एकादशी 11

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऋषि वेदव्यास जी के अनुसार इस एकादशी को भीमसेन ने धारण किया था. इसी वजह से इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पडा. शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी व्रत को निर्जल रखा जाता है. अर्थात इस व्रत में जल का सेवन नहीं करना चाहिए. इस एकादशी को करने से वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है. यह व्रत करने के पश्चात द्वादशी तिथि में ब्रह्मा बेला में उठकर स्नान,दान तथा ब्राह्माण को भोजन कराना चाहिए. इस दिन "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करके गौदान, वस्त्रदान, छत्र, फल आदि दान करना चाहिए. निर्जला एकादशी व्रत फल | Fruits of Nirjala Ekadashi Vrat निर्जला एकादशी व्रत के दिन अन्न का सेवन नहीं किया जाता है. मिथुन संक्रान्ति के मध्य ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जल व्रत किया जाता है. इस एकादशी व्रत में स्नान और आचमन में जल व्यर्थ नहीं करना चाहिए. आचमन करने के लिये कम से कम जल का प्रयोग करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार आचमन में अधिक जल का प्रयोग व्यक्ति के पापों में वृ्द्धि करता है. इसके अतिरिक्त इस एकादशी के दिन भोजन भी नहीं करना चाहिए. भोजन करने से व्रत के फल नष्ट हो जाते है. सूर्योदय से लेकर सूर्योस्त तक मनुष्य़ जलपान न करें, तो उससे 24 एकादशियों के व्रत करने के समान फल प्राप्त होते है. इसके अतिरिक्त द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए. इसके पश्चात भूखे ब्राह्माण को भोजन कराना चाहीए. इसके बाद ही भोजन करना चाहिए. इस एकादशी का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है. निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापोम से मुक्ति पाता है. जो मनुष्य़ निर्जला एकादशी का व्रत करता है. उनको मृ्त्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नही होता है. यह एकादशी पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है. इस व्रत को करने के बाद जो व्यक्ति स्नान, तप और दान करता है, उसे करोडों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है. निर्जला एकादशी व्रत विधि | Nirjala Ekadashi Vrat (Fast) Vidhi निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिये दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए. इस एकादशी में निर्जल व्रत करना चाहिए. और दिन में "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. इस दिन गौ दान करने का भी विशेष विधि-विधान है. इस दिन व्रत करने के अतिरिक्त स्नान, तप आदि कार्य करना भी शुभ रहता है. जो मनुष्य़ इस व्रत को करता है. इस व्रत में सबसे पहले श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए. इस दिन ब्राह्माणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए. व्रत के दिन इसकी कथा अवश्य सुननी चाहिए. तथा व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए. निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadasi Vrat Katha in Hindi एक समय की बात है, भीमसेन ने व्यास जी से कहा की हे भगवान, युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन व्रत करते थे. मगर मैं, कहता हूँ कि मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता. मैं दान देकर वासुदेव भगवान की अर्चना करके प्रसन्न कर सकता हूं. मैं बिना काया कलेश की ही फल चाहता हूं इस पर वेद व्याद जी बोले, हे भीमसेन, अगर तुम स्वर्गलोक जाना चाहते हो, तो दोनों एकादशियों का व्रत बिना भोजन ग्रहण किये करों. ज्येष्ठ मास की एकादशी का निर्जल व्रत करना विशेष शुभ कहा गया है. इस व्रत में आचमन में जल ग्रहण कर सकते है. अन्नाहार करने से व्रत खंडित हो जाता है. व्यास जी की आज्ञा अनुसार भीमसेन ने यह व्रत किया और वे पाप मुक्त हो गये.

निर्जला एकादशी 11


निर्जला एकादशी

हिंदू धर्ममें एकादशीका व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। ज्येष्ठमास की शुक्ल पक्षकी एकादशीकोनिर्जला एकादशीकहते है इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है इसिलिये इस निर्जला एकादशी कहते है। [1] कथा जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा? पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है। दूसरी कथा एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते है परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता है इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भ उसकी भूख शान्त नही होती है महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत मे स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नही होता है इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दुर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशीभी कहते हैं। विधान यह व्रत पर नर नारियो दोनो को करना चाहीए जलपान के निषिद्ध होने पर भी फलहार के साथ दुध लिया जा सकता है इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप मे भगवान विष्णु की अराधना का विशेष महत्व है इस दिन ऊँ नमो भगवते वासुदेवायः का जाप करके गोदान, वस्त्र दान, छत्र, फल आदि का दान करना चाहीए।

निर्जला एकादशी


शनिवार, 23 मई 2015

Rav kumpa jodhpur

राव कुंपा जोधपुरके राजा राव जोधा के भाई राव अखैराज के पोत्र व मेहराज के पुत्र थे इनका जनम वि.सं. 1559 कृष्ण द्वादशी माह को राडावास धनेरी (सोजत) गांव में मेहराज जी की रानी क्रमेती भातियानी जी के गर्भ से हुवा था राव जेता मेहराज जी के भाई पंचायण जी का पुत्र था अपने पिता के निधन के समय राव कुंपा की आयु एक साल थी,बड़े होने पर ये जोधपुर के शासक मालदेव की सेवा में चले गए मालदेव अपने समय के राजस्थान के शक्तिशाली शासक थे राव कुंपा व जेता जेसे वीर उसके सेनापति थे,मेड़ता व अजमेर के शासक विरमदेव को मालदेव की आज्ञा से राव कुंपा व जेता ने अजमेर व मेड़ता छीन कर भगा दिया था, Rao Kumpa and Viramdev अजमेर व मेड़ता छीन जाने के बाद राव विरमदेव ने डीडवाना पर कब्जा कर लिया लेकिन राव कुंपा व जेता ने राव विरमदेव को डीडवाना में फिर जा घेरा और भयंकर युद्ध के बाद डीडवाना से भी विरमदेव को निकाल दिया, विरमदेव भी उस ज़माने अद्वितीय वीर योधा था डीडवाना के युद्ध में राव विरमदेव की वीरता देख राव जेता ने कहा था कि यदि मालदेव व विरमदेव शत्रुता त्याग कर एक हो जाये तो हम पूरे हिन्दुस्थान पर विजय हासिल कर सकतें है Rao Kumpa and Sher Shah Suri राव कुंपा व राव जेता ने मालदेव की और से कई युधों में भाग लेकर विजय प्राप्त की और अंत में वि.सं. 1600 चेत्र शुक्ल पंचमी को सुमेल युद्ध में दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी की सेना के साथ लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की Battle of Sher Shah Suri With Rathore – Rao Kumpa इस युद्ध में बादशाह की अस्सी हजार सेना के सामने राव कुंपा व जेता दस हजार सेनिकों के साथ थे भयंकर युद्ध में बादशाह की सेना के चालीस हजार सेनिक काट डालकर राव कुंपा व जेता ने अपने दस हजार सेनिकों के साथ वीर गति प्राप्त की मातर भूमि की रक्षार्थ युद्ध में अपने प्राण न्योछावर करने वाले मरते नहीं वे Death of Rao Kumpa तो इतिहास में अमर हो जाते है अमर लोक बसियों अडर,रण चढ़ कुंपो राव सोले सो बद पक्ष में चेत पंचमी चाव उपरोक्त युद्ध में चालीस हजार सेनिक खोने के बाद शेरशाह सूरी आगे जोधपुर पर आक्रमण की हिम्मत नहीं कर सका व विचलित होकर शेरशाह ने कहा Sher Shah Suri Quote in Marwari बोल्यो सूरी बैन यूँ , गिरी घाट घमसान मुठी खातर बाजरी,खो देतो हिंदवान कि मुठी भर बाजरे कि खातिर में दिल्ली कि सल्तनत खो बैठता,और इसके बाद शेरशाह सूरी ने कभी राजपूताना में आक्रमण करने कि गलती नहीं कि |

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जोधपुर हमारा जोधाणा

1-दो ब्रेड के बीच में मिर्ची बड़ा दबा के खाना यहाँ का खास ब्रेकफास्ट माना जाता है. 2-मिठाई की दूकान पर खड़े-खड़े आधा किलो गुलाब जामुन खाते हुए जोधपुर में सहज ही किसी को देखा जा सकता है. ... 3-गर्मी से बचाव के लिए चूने में नील मिला कर घर को पोतने का रिवाज़ सिर्फ और सिर्फ जोधपुर में ही है. 4-बैंत मार गणगौर जैसा त्योंहार सिर्फ जोधपुर में मनाया जाता है,जिसमे पूरी रात सड़कों पर महिलाओं का राज़ चलता है. 5-दाल-बाटी-चूरमा के लिए जोधपुर में कहा जाता है....दाल हँसती हुई,चूरमा रोता हुआ ओर्बती खिल-खिल होनी चाहिए.मतलब-दाल चटपटी-मसालेदार,चूरमा ढेर सारे घी वाला और बाटी सिक के तिडकी हुई होनी चाहिए. 6-पानी की सप्लाई शुरू होते ही घर का आँगन धोने का रिवाज़ जोधपुर में ही है. 7-हरेक गली के नुक्कड़ पर पात्र की खुली कुण्डी जोधपुर में लगभग हर जगह मिल जायेगी,जहाँ घर का बचा-खुचा भोजन गायों को डाला जाता है. 8-किसी भी काम को सीधे मना करने की आदत किसी भी "जोधपुरी" की नहीं होती.बहाने बना के टाल देंगे,मगर सीधे मना नहीं करेंगे.इस शैली के लिए यहाँ एक खास शब्द है..."गोली देना"... 9-यहाँ फास्ट फ़ूड के नाम पर पिज्जा-बर्गर से ज्यादा मिर्ची बड़ा और प्याज की कचौरी ज्यादा पसंद की जाता है.यहाँ कहा जाता है कि जोधपुर में अखबारों से भी ज्यादा मिर्ची बड़े के बिक्री होती है. 10-सड़क पर लगे जाम में फँसने के बजाय जोधपुरी लोग पतली गालियों से निकल जाना पसंद करते हैं. 11-"घंटाघर"...जोधपुर में एक ऐसी जगह है जहाँ ,जन्म लेने वाले बच्चे के सामान से ले कर अंतिम संस्कार तक का सामान मिल जाता है. 12-जोधपुर के ऑटो रिक्शा अपनी विशेष साज-सज्जा के लिए दुनिया भर में मशहूर है. 13-"के.पी."...यानि खांचा पोलिटिक्स की ट्रिक खास जोधपुरी अंदाज़ है,जिसमे भीड़ से किसी भी आदमी को सबके सामने चुप चाप अलग कोने में ले जा कर सिर्फ इतना पुछा जाता है..कैसे हो आप? इससे उस आदमी का महत्व उस भीड़ में बढ़ा दिया जाता है.. 14-जोधपुरीयंस का खास जुमला है-"कांई सा" और "किकर"..इसका अर्थ है-कैसे हैं आप और इन दिनों क्या चल रहा है. 15 -"चैपी राखो"..इस शब्द कजोध्पुर में मतलब है-जो काम कर रहे हो,उसमे जुटे रहो. 16 - मिर्ची बड़ा,मावे की कचौरी और मेहरानगढ़ पर हर जोधपुर वासी को गर्व है. 17-जोधपुर में मिठाइयों की क्वालिटी उसमे डाली जाने वाली चीजों से नहीं आंकी जाती बल्कि इस से आंकी जाती है कि उनमे देसी घी कितना डाला गया है. 18-यहाँ की परंपरा में गालियों को घी की नालियाँ कहा जाता है.तभी तो यहाँ का बशीन्दा गाली देने पर भी नाराज़ नहीं होता,क्यों कि गाली भी इतने मीठे तरीके से दी जाती है,उसका असर ना के बराबर हो जाता है. 19-जोधपुर में रोजाना ६ हज़ार किलो बेसन सिर्फ मिर्ची बड़े बनाने में खर्च होता है. 20-"संध्या काल में शुभ - शुभ बोलना चाहिए " इसीलिए यहाँ शाम होते ही लोग बड़े से बड़ा पान मुहँ में दबा लेतें है , जिससे केवल ॐ की ध्वनि ही उच्चारित हो सके...a

जोधपुर हमारा जोधाणा


जोधपुर हमारा जोधाणा


हमारा जोधाणा

जोधपुर सिर्फ हमारा जोधाणा वो गर्मीयो की शाम, वो 'नई सड़क' रो जाम, वो "जैसलमेर रोड"री हवा, वो "उम्मेद हॉस्पिटल" की दवा, वो नेशनल हेडलूम की "शाँपींग", वो शहर रे मोय री"हिटिंग" वो " श्रीनाथ " री "पावभाजी, वो शहर री " आलू टिक्की" " वो " पार्श्वनाथ " रो "शेक", और "फ्रेश & ग्रीन "रो "केक", वो " अरोड़ा री छोटी कचोरी ", वो " जालोरी गेट" रो "शाही समोसा", वो "भाटी" री *Real-Gold* "चाय", वो "चौधरी रो मिर्चबडो" वो जोधपुर रो ब्रेड पकोडा और चतुर्भुज रो गुलाब जामुन वो गर्ल स्कूल के नजारे, वो माहविर पार्क के ठंडे "फवारे", वो के एन काँलेज" की "सडके", जहा कितने "दिल" धडके, वो मस्ती की बाते, एडि ही कई हमारे "जोधपुर" की "यादे.

हमारा जोधाणा


राजपूतों में प्राचीन परम्पराएँ

1) अगर आप के पिता जी /दादोसा बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर इतिआदि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी ! 2) पहले के वक़्त वक़्त राजपूत समाज में अमल का उपयोग इस लिए ज्यादा होता था क्योकि अमल खाने से खून मोटा हो जाता था, जिस से लड़ाई की समय मेंहदी घाव लगने पर खून कार रिसाव नहीं के बराबर होता था, और मल-मूत्र रुक जाता था जयमल मेड़तिया ने अकबर से लड़ाई के पूर्व सभी राजपूत सिरदारो को अमल पान करवाया ने 3) पहले कोई भी राजपूत बिना पगड़ी के घोड़े पर नही बैठते थे 4) सौराष्ट्र (काठियावाड़) और कच्छ में आज भी गिरासदार राजपूत घराने में अगर बेटे की शादी हो तो बारात नहीं जाती, उसकी जगह लड़केवालों की तरफ से घर के वडील (फुवासा, बनेविसा, मामासा) एक तलवार के साथ 3 या 5 की संख्या में लड़की के घर जाते हे जिसे "वेळ” या ‘खांडू" कहते है. लड़कीवाले उस तलवार के साथ विधि करके बेटीको विदा करते है. मंगल फेरे लड़के के घर लिए जाते है. 5) आज भी कही घरो में तलवार को मयान से निकालने नहीं देते, क्योकि तलवार को परंपरा है की अगर वो मयान से बाहर आई तो यहाँ तो उनके खून लगेगा, यहाँ लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार मयान से निकलते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से मयान में डालते है ! 6) राजपूत परम्परा के मुताबिक पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते 7) पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नांगारा निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे, हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से इनायत होते थे..!! 8) पहले सारे बड़े ताजमी ठिकानो में ठिकानेदारों को विवाह से पूर्व स्टेट महाराजा से अनुमति लेनी पढ़ती थी 9) हर राज दरबार के, ठिकाने के, यहाँ गोत्र उप्प गोत्र के इष्ट देवता होते थे, जो की ज्यादतर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूप में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार दुसरो को पुकारते है करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की , जय चारभुजाजी की 10) मल गोलना, चिलम, हुक्का यहाँ दारू की मनवार, मकसद होता था, भाई,बंधू, भाईपे,रिश्तेदार को एक जाजम पर लाना !!मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी मनवार के हाथ लगाके या हाथ में ले कर सर पर लगाके वापस दे दे, पीना जरुरी नहीं है , पर ना -नुकुर कर उसका अनादर न करे 11) जब सिर पर साफा बंधा होता है तोह तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता 12) दुल्हे की बन्दोली में घोडा या हाथी हो सकता है पर तोरण पर नहीं, क्योकि घोडा भी नर है, और वो भी आप के साथ तोरण लगा रहा होता है, इस्सलिये हमेशा तोरण पर घोड़ी या हथनी होती है !! 13) एक ठिकाने का एक ही ठाकुर,राव,रावत हो सकता था, जो गद्दी पर बैठा है, बाकि के भाई,काका ये टाइटल तभी लगा सकते थे जब की उनको ठिकाने की तरफ से अलग से जागीरी मिली हो,और वो उस के जागीरदार हो, अगर वो उसी ठिकाने /राज में रह रहे हो, तो उनके लिए "महाराज" का टाइटल होता था! 14) आज भी त्योहारों पर ढोल बजने के नट,नगरसी या ढोली आते है उन्हें बैठने के लिए उचित आसान (जाजम) दिए जाते है उनके ढोल में देवी का वास होता है और ऐसे आदर के लिए किया जाता है 15) राजपूत जनाना में राजपूत महिलाये नाच गान के बाद ढोली जी और ढोलन की तरफ जुक कर प्रणाम करती है 16) नजराने के भी अलग अलग नियम थे, अगर आप छोटे ठिकानेदार हो तो महाराजा साब या महाराणा साब आप के हाथ से उठा लेते थे, पर अगर आप उमराव या सिरायती ठिकानेदार हो तो महाराजा साब या महाराणा साब आप का हाथ अपने हाथ पर उल्टा करके, अपना हाथ नीचे रख कर नजराना लेते थे !! 17) कोर्ट में अगर आप छोटे ठिकानेदार हो तो महाराजा साब या महाराणा साब आप के आने पर खड़े नहीं होते थे, पर अगर आप उमराव या सिरायती ठिकानेदार हो तो महाराजा साब या महाराणा साब आप के आने और आप के जाने पर दोनों वक्त उनको खड़ा होना पड़ता है' 18) सिर्फ राठोरो के पास "कमध्वज" का टाइटल है, इसका मतलब है, सर काटने के बाद भी लड़ने वाला ! 19) राजपूतो में ठाकुर पदवी के इस्तेमाल के बारे में में कुछ बाते :यदि आपके दादोसा हुकम बिराज रहे है तो वो ही ठाकुर पदवी का प्रयोग कर सकते है, आपके दाता हुकम कुंवर का और आप भंवर का प्रयोग कर्रेंगे और आपके बना (चौथी पीढ़ी) के लिए तंवर का प्रयोग होगा. 20) एक ठिकाने में तीन से चार पाकसाला (रसोई) हो सकती थी, ठाकुरसाब, ठुकरानी के लिए विशेष पाकसाला होती थी, एक पाकसाला मरदाना में होती थी, जिस में मास इतीआदि बनते थे, जनाना में सात्विक भोजन की पाकसाला होती थी, विद्वाओ के लिए अलग भोजन बनता था, ठिकाने के कर्मचारी नौकरों के लिए अलग से पाकशाला होती थी, एक पाकशाला मेहमानों के लिए होती थी,

राजपूतों में प्राचीन परम्पराएँ


गुरुवार, 21 मई 2015

मेवाड़ के इतिहास में स्वामिभक्ति के लिए जहाँ पन्ना धाय का नाम आदर के साथ लिया जाता है वहीं मारवाड़ के इतिहास में त्याग,बलिदान,स्वामिभक्ति व देशभक्ति के लिए वीर दुर्गादास का नाम स्वर्ण अक्षरों में अमर है वीर दुर्गादास ने वर्षों मारवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया,ऐसे वीर पुरुष का जनम मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर सं. 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुवा था आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता,देशप्रेम,बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे | १-मायाड ऐडा पुत जाण,जेड़ा दुर्गादास भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश २-घर घोड़ों,खग कामनी,हियो हाथ निज मीत सेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत वीर दुर्गादास का निधन 22 nov. 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था "उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी "(

वीर दुर्गादास राठौड़ :

वीर शिरोमणी दुर्गादास राठौड़ (Durgadas Rathore) को आज की नई पीढ़ी मात्र इतना ही मानती है कि वे वीर थे, स्वामिभक्त थे, औरंगजेब का बड़ा से बड़ा लालच भी उन्हें अपने पथ से नहीं डिगा सका| ज्यादातर इतिहासकार भी दुर्गादास पर लिखते समय इन्हीं बिन्दुओं के आगे पीछे घूमते रहे, लेकिन दुर्गादास ने उस काल में राजनैतिक व कूटनीतिक तौर जो महान कार्य किया उस पर चर्चा आपको बहुत ही कम देखने को मिलेगी| उस काल जब भारत छोटे छोटे राज्यों में बंटा था| औरंगजेब जैसा धर्मांध शासक दिल्ली की गद्दी पर बैठा था| इस्लाम को तलवार व कुटनीति के जरीय फैलाने का इरादा रखता था| सभी शासक येनकेन प्रकारेण अपना अपना राज्य बचाने को संघर्षरत थे| उसी वक्त जोधपुर के शिशु महाराज (Maharaja Ajeet Singh, Jodhpur)को औरंगजेब के चुंगल से निकाला| उसका यथोचित लालन पालन करने की व्यवस्था की| मारवाड़ (Jodhpur State) की आजादी के लिए औरंगजेब की अथाह शक्ति के आगे मराठाओं की तर्ज पर छापामार युद्ध जारी रखकर उसे उलझाए रखा| औरंग द्वारा दिए बड़े बड़े प्रलोभनों को ठुकराकर स्वामिभक्ति का कहीं नहीं मिलने उदाहरण पेश किया| जो सब जानते है लेकिन मैं चर्चा करना चाहता हूँ दुर्गादास की कुटनीति, राजनैतिक समझ पर जिसे कुछ थोड़े से इतिहासकारों को छोड़कर बाकियों द्वारा आजतक विचार ही नहीं किया| दुर्गादास राठौड़ का बचपन अभावों में, कृषि कार्य करते बीता| ऐसी हालत में उन्हें शिक्षा मिलने का तो प्रश्न ही नहीं था| दरअसल दुर्गादास की माँ एक वीर नारी थी| उनकी वीरता के चर्चे सुनकर ही जोधपुर के सामंत आसकरण ने उससे शादी की| लेकिन दुर्गादास की वीर माता अपने पति से सामंजस्य नहीं बिठा सकी| इस कारण आसकरण ने दुर्गादास व उसकी माता को गुजर बसर के लिए कुछ भूमि देकर अपने से दूर कर लिया| जहाँ माता-पुत्र अपना जीवन चला रहे थे| एक दिन दुर्गादास के खेतों में जोधपुर सेना के ऊंटों द्वारा फसल उजाड़ने को लेकर चरवाहों से मतभेद हो गया और दुर्गादास ने राज्य के चरवाहे की गर्दन काट दी| फलस्वरूप जोधपुर सैनिकों द्वारा दुर्गादास को महाराजा जसवंतसिंह के सामने पेश किया गया| दरबार में बैठे उसके पिता ने तो उस वक्त उसे अपना पुत्र मानने से भी इनकार कर दिया था| लेकिन महाराजा जसवंत सिंह ने बालक दुर्गादास की नीडरता, निर्भीकता देख उसे क्षमा ही नहीं किया वरन अपने सुरक्षा दस्ते में भी शामिल कर लिया| दुर्गादास के लिए यही टर्निंग पॉइंट साबित हुआ| उसे महाराज के पास रहने से राजनीति, कूटनीति के साथ ही साहित्य का भी व्यवहारिक ज्ञान मिला| जिसका फायदा उसने महाराजा जसवंतसिंह के निधन के बाद पैदा हुई परिस्थितियों ने उठाया| दुर्गादास राठौड़ के पास ऐसा कोई पद नहीं था न ही वो मारवाड़ राज्य का बड़ा सामंत था फिर भी उस वक्त मारवाड़ में उसकी भूमिका और अहमियत सबसे बढ़कर थी| जब सब राज्य अपने अपने मामलों में उलझे थे, दुर्गादास ने औरंगजेब के खिलाफ राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, उदयपुर के राजपूतों को एक करने का कार्य किया| यही नहीं दुर्गादास ने राजपूतों व मराठों को भी एक साथ लाने का भरसक प्रयास किया और इसमें काफी हद तक सफल रहा| मेरी नजर में राणा सांगा के बाद दुर्गादास ही एकमात्र व्यक्ति था जिसने मुगलों के खिलाफ संघर्ष ही नहीं किया, बल्कि देश के अन्य राजाओं को भी एक मंच पर लाने की कोशिश की| और दुर्गादास जैसे साधारण राजपूत की बात मानकर उदयपुर, जयपुर, जोधपुर के राजपूत और मराठा संभा जी जैसे लोग औरंगजेब के खिलाफ लामबंद हुये, इस बात से दुर्गादास की राजनीतिक समझ और उसकी अहमियत समझी का सकती है| औरंगजेब के एक बेटे अकबर को औरंगजेब के खिलाफ भड़काकर उससे विद्रोह कराना और शहजादे अकबर के विद्रोह को मराठा सहयोग के लिए संभा जी के पास तक ले जाना, दुर्गादास की कुटनीति व देश में उसके राजनैतिक संबंधों के दायरे का परिचय कराता है| इस तरह की कूटनीति मुगलों ने खूब चली लेकिन हिन्दू शासकों द्वारा इस तरह की चाल का प्रयोग कहीं नहीं पढ़ा| लेकिन दुर्गादास ने यह चाल चलकर साथ ही अकबर की पुत्री व पुत्र को अपने कब्जे में रखकर औरंगजेब को हमेशा संतापित रखा| महाराष्ट्र से शहजादा अकबर को औरंगजेब के खिलाफ यथोचित सहायता नहीं मिलने पर दुर्गादास ने अकबर को ईरान के बादशाह से सहायता लेने जल मार्ग से ईरान भेजा| जो दर्शाता है कि दुर्गादास का कार्य सिर्फ मारवाड़ तक ही सीमित नहीं था| एक बार संभाजी की हत्या कर उसके सौतेले भाई को आरूढ़ करने की चाल चली गई| उस चाल में संभाजी के राज्य में रह रहे शहजादे अकबर को भी शामिल होने का प्रस्ताव मिला| अकबर को प्रस्ताव ठीक भी लगा क्योंकि संभाजी उसे उसके मनमाफिक सहायता नहीं कर रहे थे| लेकिन अचानक अकबर ने इस मामले में दुर्गादास से सलाह लेना मुनासिब समझा| तब दुर्गादास ने उसे सलाह दी कि इस षड्यंत्र से दूर रहे, बल्कि इस षड्यंत्र की पोल संभाजी के आगे भी खोल दें, हो सकता है संभाजी ने ही तुम्हारी निष्ठा जांचने के लिए पत्र भिजवाया हो| और अकबर ने वैसा ही किया| संभाजी की हत्या का षड्यंत्र विफल हुआ और उनके मन में अकबर के प्रति सम्मान बढ़ गया| इस उदाहरण से साफ़ है कि दुर्गादास षड्यंत्रों से निपटने के कितना सक्षम थे| उन्होंने एक ही ध्येय रखा कभी निष्ठा मत बदलो| जो व्यक्ति बार बार निष्ठा बदलता है वही लालच में आकर षड्यंत्रों में फंस अपना नुकसान खुद करता है| राजपूती शौर्य परम्परा और भारतीय संस्कृति में निहित मूलभूत मानदंडों के प्रति दुर्गादास पूरी तरह सजग था| यही कारण था कि उसके निष्ठावान तथा वीर योद्धाओं के दल में सभी जातियों और मतों के लोग शामिल था| उसकी धार्मिक सहिष्णुता तथा गैर-हिन्दुओं के धार्मिक विश्वासों और आचरणों के प्रति उसके वास्तविक आदर-भाव का परिचय शहजादे अकबर की बेटी को इस्लामी शिक्षा दिलाने की व्यवस्था करना था| जिसकी जानकारी होने पर खुद औरंगजेब भी चकित हो गया था और उसके बाद औरंग ने दुर्गादास के प्रति असीम आदरभाव प्रकट किये थे| दुर्गादास के जीवन का अध्ययन करने के बाद कर्नल टॉड ने लिखा – राजपूती गौरव में जो निहित तत्व है, दुर्गादास उनका एक शानदार उदाहरण है|शौर्य, स्वामिभक्ति, सत्य निष्ठा के साथ साथ तमाम कठिनाइयों में उचित विवेक का पालन, किसी भी प्रलोभन के आगे ना डिगने वाले गुण देख कहा जा सकता है कि वह अमोल था| इतिहासकार यदुनाथ सरकार लिखते है – “उसके पच्चीस साल के अथक परिश्रम तथा उसकी बुद्धिमत्तापूर्ण युक्तियों के बिना अजीतसिंह अपने पिता का सिंहासन प्राप्त नहीं कर पाता| जब चारों से और विपत्तियों से पहाड़ टूट रहे थे, सब तरफ दुश्मनों के दल था, जब उसके साथियों का धीरज डगमगा जाता था और उनमें जब अविश्वास की भावना घर कर बैठती, तब भी उसने अपने स्वामी के पक्ष को सबल तथा विजयी बनाये रखा| मुगलों की समृद्धि ने उसे कभी नहीं ललचाया, उनकी शक्ति देखकर भी वह कभी हतोत्साहित नहीं हुआ| अटूट धैर्य और अद्वितीय उत्साह के साथ ही उसमें अनोखी कूटनीतिक कुशलता और अपूर्व संगठन शक्ति पाई जाती थी|” “यह दुर्गादास राठौड़ की प्रतिभा थी, जिसके फलस्वरूप औरंगजेब को राजपूतों के संगठित विरोध का सामना करना पड़ा, जो कि उसके मराठा शत्रुओं की तुलना में किसी भी तरह कम भीषण नहीं था|”

वीर दुर्गादास राठौड़ :


बुधवार, 20 मई 2015

हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का महत्व है...

हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...! लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....????? दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया था l आपको 4t

हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का महत्व है...


यदि आप अच्छे इंसान बनना चाहते हैं तो निम्नलिखित काढे का निर्माण करके स्वयम प्रयोग करे7 (1) सच्चाई के पते '1' ग्राम (2) ईमानदारी की जड '3' ग्राम (3) परोपकार के बीज '5' ग्राम (4) रहम दिल का छिलका '4' ग्राम (5) दानशीलता का छिलका '4' ग्राम (6) स्वदेश प्रेम का रस'3' ग्राम (7) उदारता का रस '3' ग्राम (8) सत संगत का रस '4' ग्राम निर्माण विधि """"""""""""""""""""" उपरोक्त बताई हुई सब चीजों को एक साथ मिलाकर परमात्मा के बरतन में डालकर सनेहभावा के चूल्हे पर रखकर प्रेम की अग्नि में पकायें ! अच्छी तरह पक जाने पर नीचे उताउतारकर ठंडा करें ! फिर शुद्ध मन के कपडे से छानकर मस्तिष्क की शीशी में भर लें सेवन विधि """"""""""""""""""" इसको प्रतिदिन संतोष के गुलकंद के साथ इंसाफ के चमच में सुबह, दोपहर, शाम दिन में तीन बार सेवन करें परहेज """"""""""""" क्रोध की मिर्च , अहंकार का तेल, लोभ की मिठाई, स्वार्थ का घी, धोखे का पापड ! इन सबसे सावधान व दुराचरण की भावना से बचना है नोट """""""""" इसका निर्माण हर व्यक्ति के द्वारा सम्भव है

सोमवार, 11 मई 2015

Save birds

नमस्कार मित्रों..... आपसे विन्रम हाथ जोड़ कर एक अपील है.........................! _/\_ _/\_ करबद्ध प्रार्थना _/\_ _/\_ अपने आस पडौस में पक्षियों की रक्षा के लिए दाने पानी की व्यवस्था जरुर करें ...... एक मुट्टी अनाज ..... एक गिलास पानी का महादान पर्यावरण और जीव दया हित में कर अपना मानव धर्म निभाये. उम्मीद है आप मेरी इस बात को जरुर मानोगे !!

Job

आवश्यकता है ..... लड़के/लड़कियों की ,...!! कार्य - बाजरी की सिटियां तोड़ने एवं मूँग / मोठ , पाड़ने के लिये... योग्यता - 10/ 12/bcom/BA/MA...फ़ेल / पास सब चलेंगे ,,नौसिखिये भी आ सकते हैं । साथ मे लायें- खेत मे कार्य करते हुये की दो फोटो , और राशन कार्ड की फोटो कोपी ,, वेतन = कार्यानुसार..घंटानुसार अथवा बीघानुसार.. सुविधायें - दिन में तीन चाय, पुरुषों को अलग से दो बीड़ी के बण्डल.... खेत में लगे काकड़ी मतीरे धाप के खा सकते हैं.. * महिलाएं भी बीड़ी का बंडल ले सकती हैं परन्तु खेत में ही पीना होगा, अपने मोट्यार के लिए घर ले जाना मना है । * नौसिखियों को खेत में कोई एलर्जी या बीमारी होने की स्थिति में खेत मालिक श्री खेताराम जी द्वारा उक्त कार्मिक को हस्पताल तक पहुंचाया जावेगा, डॉक्टरी खरचा कार्मिक का लगेगा । बाकि भगवान मालिक है ।

Appliction for indra dev

सेवा मैं, श्रीमान इंद्र देव महोदय, अध्यक्ष वर्षा विभाग, विषय :- वर्षा सही समय पर उपलब्ध करवाने बाबत। श्रीमान जी, उपरोक्त विषयान्तर्गत निवेदन है की हमारे मारवाड़ मै तीव्र गर्मी पड़ने से मारवाड़ वासी अत्यंत परेशान हो रहे है साथ ही यहाँ गौधन व अन्य प्राणी भी गर्मी से त्राहि त्राहि कर रहे है अत: आपसे नम्र निवेदन है की मौसम को देखते हुए और सूर्यदेव के कोप को शांत करने के लिए उचित मात्रा मैं बादलों की व्यस्था करके बरसात करवाने की कृपा करें। धन्यवाद दिनांक 02/06/2015 भवदीय समस्त मारवाड़ वासी

दोहावली...... बहुत की काम की जानकारी.... १ दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय, होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय.. २ बहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल, यूकेलिप्टिस तेल लें, सूंघें डाल रुमाल.. ३ अजवाइन को पीसिये , गाढ़ा लेप लगाय, चर्म रोग सब दूर हो, तन कंचन बन जाय.. ४ अजवाइन को पीस लें , नीबू संग मिलाय, फोड़ा-फुंसी दूर हों, सभी बला टल जाय.. ५ अजवाइन-गुड़ खाइए, तभी बने कुछ काम, पित्त रोग में लाभ हो, पायेंगे आराम.. ६ ठण्ड लगे जब आपको, सर्दी से बेहाल, नीबू मधु के साथ में, अदरक पियें उबाल.. ७ अदरक का रस लीजिए. मधु लेवें समभाग, नियमित सेवन जब करें, सर्दी जाए भाग.. ८ रोटी मक्के की भली, खा लें यदि भरपूर, बेहतर लीवर आपका, टी० बी० भी हो दूर.. ९ गाजर रस संग आँवला, बीस औ चालिस ग्राम, रक्तचाप हिरदय सही, पायें सब आराम.. १० शहद आंवला जूस हो, मिश्री सब दस ग्राम, बीस ग्राम घी साथ में, यौवन स्थिर काम.. ११ चिंतित होता क्यों भला, देख बुढ़ापा रोय, चौलाई पालक भली, यौवन स्थिर होय.. १२ लाल टमाटर लीजिए, खीरा सहित सनेह, जूस करेला साथ हो, दूर रहे मधुमेह.. १३ प्रातः संध्या पीजिए, खाली पेट सनेह, जामुन-गुठली पीसिये, नहीं रहे मधुमेह.. १४ सात पत्र लें नीम के, खाली पेट चबाय, दूर करे मधुमेह को, सब कुछ मन को भाय.. १५ सात फूल ले लीजिए, सुन्दर सदाबहार, दूर करे मधुमेह को, जीवन में हो प्यार.. १६ तुलसीदल दस लीजिए, उठकर प्रातःकाल, सेहत सुधरे आपकी, तन-मन मालामाल.. १७ थोड़ा सा गुड़ लीजिए, दूर रहें सब रोग, अधिक कभी मत खाइए, चाहे मोहनभोग. १८ अजवाइन और हींग लें, लहसुन तेल पकाय, मालिश जोड़ों की करें, दर्द दूर हो जाय.. १९ ऐलोवेरा-आँवला, करे खून में वृद्धि, उदर व्याधियाँ दूर हों, जीवन में हो सिद्धि.. २० दस्त अगर आने लगें, चिंतित दीखे माथ, दालचीनि का पाउडर, लें पानी के साथ.. २१ मुँह में बदबू हो अगर, दालचीनि मुख डाल, बने सुगन्धित मुख, महक, दूर होय तत्काल.. २२ कंचन काया को कभी, पित्त अगर दे कष्ट, घृतकुमारि संग आँवला, करे उसे भी नष्ट.. २३ बीस मिली रस आँवला, पांच ग्राम मधु संग, सुबह शाम में चाटिये, बढ़े ज्योति सब दंग.. २४ बीस मिली रस आँवला, हल्दी हो एक ग्राम, सर्दी कफ तकलीफ में, फ़ौरन हो आराम.. २५ नीबू बेसन जल शहद , मिश्रित लेप लगाय, चेहरा सुन्दर तब बने, बेहतर यही उपाय.. २६. मधु का सेवन जो करे, सुख पावेगा सोय, कंठ सुरीला साथ में , वाणी मधुरिम होय. २७. पीता थोड़ी छाछ जो, भोजन करके रोज, नहीं जरूरत वैद्य की, चेहरे पर हो ओज.. २८ ठण्ड अगर लग जाय जो नहीं बने कुछ काम, नियमित पी लें गुनगुना, पानी दे आराम.. २९ कफ से पीड़ित हो अगर, खाँसी बहुत सताय, अजवाइन की भाप लें, कफ तब बाहर आय.. ३० अजवाइन लें छाछ संग, मात्रा पाँच गिराम, कीट पेट के नष्ट हों, जल्दी हो आराम.. ३१ छाछ हींग सेंधा नमक, दूर करे सब रोग, जीरा उसमें डालकर, पियें सदा यह भोग..

बातां की ब्यालू (बातों ही बातों में डिनर)

बात बहुत पुराणी है उस ज़माने में यातायात के लिए मोटर-गाड़ी नही हुआ करती थी और राजस्थान में तो ऊंट गाड़ी ही यातायात का मुख्य साधन था | रेत के टिल्लो के बीच से दूर-दूर तक सफर बिना ऊंट के सम्भव ही नही था इसीलिए गांवों में लोग यातायात और खेती बाड़ी के कामों के लिए ऊंट पालते थे | शोकिया लोगों के ऊंट तो देखते ही बनते थे और अपणा ताऊ भी एक शानदार ऊंट और सजी- धजी गाड़ी रखता था आस-पास के धनी लोगों में यातायात के लिए ताऊ की ऊंट-गाड़ी काफी मशहूर थी और ताऊ को भी ऊंट-गाड़ी के किराये से अच्छी आमदनी हो जाया करती थी | एक दिन गांव के सेठ जी को सेठानी के संग दूर रिश्तेदारी में कही जाना था सो सेठ जी ने ताऊ की गाड़ी किराये कर ली और चल दिए यात्रा पर |ताऊ के साथ रास्ते में लुट-पाट का खतरा भी नही रहता था क्योकि ताऊ के लट्ठ से दूर-दूर के लुटेरे व उच्चके डरते थे | चूँकि सफर काफी लंबा था सो सेठानी ने पुडी,मालपुए,गुंद के लड्डू और हलवा आदि बनाकर रास्ते में खाने के लिए गाड़ी में रख लिया,चलते चलते रात होने पर ताऊ ने एक टिल्ले के पास गाड़ी रोककर डेरा जमा लिया कि खाने के बाद रात्रि विश्राम यही करेंगे | ताऊ ने यह सोचकर कि सेठानी खाने में बड़ा अच्छा माल बनाकर लाएगी ही सो ताई को अपने साथ खाना बाँधने को मना कर दिया कि आज बाजरे के टिक्कड़ कौन खायेगा आज तो सेठानी जी के हाथ की बनी मिठाईयां ही खायेगे | और ये बात ताऊ की गठरी में खाना ना देख सेठानी भांप गई | डेरा ज़माने के बाद जैसे ताऊ पास ही की फोगडे की झाड़ी से ऊंट को बाँधने गया तभी मौका देख सेठानी ने सेठ से कहा कि ताऊ तो खाना लाया नही और हमने उसे खाने का पूछ लिया तो ये ताऊ हमारा सारा खाना खा जाएगा और हम भूखे रह जायेगे सो दोनों ने मिलकर प्लान बनाया कि किसी तरह ताऊ को बातों ही बातों में टरका दिया जाए और थक कर जब ताऊ सो जाएगा तब हम चुपचाप खाना खा लेंगे | इसी प्लान के अनुसार ताऊ के आते ही सेठ जी बोले - ताऊ खाना न तो आप लाये न हम, अब क्यों न हम बातों की ही ब्यालू (रात का खाना) करले | ताऊ भी अब सेठ जी व सेठानी का प्लान भांप गया आख़िर ताऊ भी तो ताऊ था | ताऊ- तो ठीक है सेठ जी पहले आप शुरू करो | सेठ जी - ताऊ जब रामपुर वाले शाह जी के बेटे की बारात में गए थे वहां क्या मिठाईयां बनी थी रस-गुल्ले, गाजर व दाल का हलवा वाह खा कर मजा आ गया और ताऊ श्यामगढ़ वाले शाह जी के यहाँ तो खाते-खाते पेट भर गया लेकिन दिल नही भरा क्या रस-मलाई थी इमरती का तो कोई जबाब ही नही था | इस तरह सेठ जी ने खाने की बातें करते करते अपनी तोंद पर हाथ फेरा,एक झूटी डकार ली और बोले ताऊ मेरा तो पेट भर गया अब तुम शुरू करो | ताऊ- सेठजी वो हमारे दोस्त है न भाटिया जी एक बार उनके यहाँ गए थे क्या खाना था भाटिया के यहाँ बकरे व मुर्गे का मीट और साथ में वो जर्मन वाली अंग्रेजी दारू, पीते गए और खाते गए नशा भी अच्छा हुआ और सेठ जी वो डूंगर सिंह जी के यहाँ बारात में जब गए थे मजा ही आ गया वो महणसर वाली महारानी दारू क्या नशा है उसमे, बस पीते गए पीते गए और इतना नशा हुआ कि कुछ पता ही नही, नशे में कितने लोगों को लट्ठ मार दिए | और सेठ जी अब तो उसे याद कर ही नशा चढ़ गया है | और ताऊ ने नशे में टल्ली होने का नाटक करते हुए जोर-जोर से हाट-हूट कर चिल्लाते हुए हाथ पैर इधर उधर मारने शुरू कर दिए जिनकी एक आद सेठ- सेठानी को भी पड़ गई और दोनों डर के मारे कि - अब ताऊ को नशा हो गया है कहीं लट्ठ उठाकर मारधाड़ न करने लग जाए अतः भाग कर पास ही एक फोगडे कि झाड़ी में जाकर छुप गए | तब ताऊ ने खोली खाने की पोटली और हाट-हूट का हल्ला करते हुए सेठानी का सारा खाना खा कर तन कर सो गया | बेचारे सेठ सेठानी को भूखे पेट कहाँ नींद आने वाली थी | सुबह ताऊ उठते ही दोनों से बोला रात को नशा कुछ ज्यादा ही हो गया था कहीं नशे में आपको कुछ कह दिया तो बुरा मत मानना | —

मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये...

मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम एम.ए. फर्स्ट डिवीजन हो मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये तुम फौजी अफसर की बेटी मैं तो किसान का बेटा हूं तुम रबडी खीर मलाई हो मैं तो सत्तू सपरेटा हूं तुम ए.सी. घर में रहती हो मैं पेड. के नीचे लेटा हूं तुम नई मारूति लगती हो मैं स्कूटर लम्ब्रेटा हूं इस तरह अगर हम छुप छुप कर आपस में प्यार बढाएंगे तो एक रोज तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जाएंगे सब हड्डी पसली तोड. मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम अरब देश की घोडी हो मैंहूं गदहे की नाल प्रिये तुम दीवाली का बोनस हो मैं भूखों की हड.ताल प्रिये तुम हीरे जडी तस्तरी हो मैं एल्युमिनियम का थाल प्रिये तुम चिकेन, सूप, बिरयानी होमैं कंकड. वाली दाल प्रिये तुम हिरन चौकडी भरती हो मैं हूं कछुए की चाल प्रिये तुम चन्दन वन की लकडी हो मैं हूं बबूल की छाल प्रिये मैं पके आम सा लटका हूं मत मारो मुझे गुलेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये मैं शनिदेव जैसा कुरूप तुम कोमल कंचन काया हो मैं तन से, मन से कांशी हूं तुम महाचंचला माया हो तुम निर्मल पावन गंगा हो मैं जलता हुआ पतंगा हूं तुम राजघाट का शांति मार्च मैं हिन्दू-मुस्लिम­ दंगा हूं तुम हो पूनम का ताजमहल मैं काली गुफा अजन्ता की तुम हो वरदान विधाता का मैं गलती हूं भगवन्ता की तुम जेट विमान की शोभा हो मैं बस की ठेलमपेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम नई विदेशी मिक्सी हो मैं पत्थर का सिलबट्टा हूं तुम ए.के. सैंतालिस जैसी मैं तो इक देसी कट्टा हूं तुम चतुर राबडी देवी सी मैं भोला-भाला लालू हूं तुम मुक्त शेरनी जंगल की मैं चिडि.याघर का भालू हूं तुम व्यस्त सोनिया गांधी सी मैं वी.पी. सिंह सा खाली हूं तुम हंसी माधुरी दीक्षित की मैं पुलिस मैन की गाली हूं गर जेल मुझे हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये मैं ढाबे के ढांचे जैसा तुम पांच सितारा होटल हो मैं महुए का देसी ठर्रा तुम चित्रहार का मधुर गीत मैं कृषि दर्शन की झाडी हूं मैं विश्व सुंदरी सी महान मैं ठेलिया छाप कबाडी हूं तुम सोनी का मोबाइल हूं मैं टेलीफोन वाला चोंगा तुम मछली मानसरोवर की मैं सागर तट का हूं घोंघा दस मंजिल से गिर जाउंगा मत आगे मुझे ढकेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम जयप्रदा की साडी हो मैं शेखर वाली दाढी हूं तुम सुषमा जैसी विदुषी हो मैं लल्लू लाल अनाडी हूं तुम जया जेटली सी कोमल मैं सिंह मुलायम सा कठोर मैं हेमा मालिनी सी सुंदर मैं बंगारू की तरह बोर तुम सत्ता की महारानी हो मैं विपक्ष की लाचारी हूं तुम हो ममता जयललिता सी मैं क्वारा अटल बिहारी हूं तुम संसद की सुंदरता हो मैं हूं तिहाड. की जेल प्रिये....... मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये......

Veer Tejaji maharaj

Jai Veer Teja . सातवीं शताब्दी के उतरार्ध्द में चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के निधन के बाद भारत अनेक जनपदों में विभक्त हो गया। वर्तमान नागौर क्षेत्र, जो नागवंच्ची जाटों के गणों की अधिकता के कारण प्राचीनकाल में नगाणा प्रदेश कहलाता था, जांगल प्रदेश से लेकर अजमेर-भीलवाड़ा तक फैला था। इसी नागाणा प्रदेच्च के खरनाल गण के शासक बोहित राव धौल्या गौत्री जाट थे। खरनाल गणपति बोहित राव के पुत्र ताहड देव की छठी संतान के रुप में कुंवर तेजपाल का जन्म विक्रम सम्वत्‌ ११३०, माद्य शुक्ला , चतुर्दशि वार गुरुवार तदनुसार २९ जनवरी १०७४ ई. के दिन हुआ। इनकी माता रानी रामकुंवरी थी। प्राचीन काल में बाल विवाह प्रतिष्ठा का सूचक था अतः एक बार जब ताहड जी पुष्कर स्नान करने गये तब वहीं पर कुंवर तेजपाल का विवाह पनेर निवासी रायमलजी झांझर की पुत्री पेमल के साथ कर दिया। कुंवर तेजपाल जब बडे हुए तो उन्होनें किसानों को कृषि की नई-नई तकनीकें बताई। पहले किसान बीज उछालकर खेती करते थे, उन्हें हल द्वारा जमीन में अनाज बीजकर खेती करना व फसल को कतार में बोना सिखाया। इसलिए कुंवर तेजपाल के परिवार के लोग वर्तमान खरनाल से लेकर मूण्डवा के बीच विच्चाल भू-भाग पर खेती करते थे। लोकगीतों में भी गाया जाता है-''तेजा बारह ऐ कोसी री जोती आवडी।'' एक बार बरसात के मौसम में खेती करते कुंवर तेजपाल अपनी भाभी के ताना देने पर पत्नी पेमल को पाने ससुराल पनेर गये। उसी रात लाछा नामक गूजरी की गायें डकेत चुराकर ले गये थे। उस वक्त पच्चुधन अमूल्य होता था। लाछा पूरे गांव में सहायतार्थ फिरती है, परन्तु चोरों के भय से उसकी कोई नही सुनता है। आखिर में यह कर्तव्य भार तेजाजी पर आता है। क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए द्रास्त्र सज्जित तेजाजी गायों की'वार'चढ़ चोरो का पीछा करते है। उसी वक्त मार्ग में एक काला नाग जंगल की आग में अधजला तडप रहा था। तेजाजी उसे भाले द्वारा अग्नि से बाहर फेंकते है, लेकिन काले नाग को बच जाने का पश्चाताप होता है। नाग नाराज होकर कहता है- ''तेजा! मेरी जीवन संगिनी चली गयी, मैं भी जल जाना चाहता था, तूने क्यों बचाया ? मैं तुझे डसुंगा।'' तेजाजी द्वारा गायें छुड़ाकर वापिस बम्बी पर आने का कहने पर नागराज को विच्च्वास नही होता है। तब तेजाजी उसे सूरज-चॉद व सूखे खेजडे की साख भराकर वचन देते है कि मैं हर हाल में वापिस लौटूंगा। तेजाजी वापिस लौट आने का वचन देकर सुरसुरा की घाटी में पहुंचते है जहां चोरों के साथ भयंकर संग्राम होता है। १५० चोरों को मारकर तेजाजी गायें मुक्त करवातें है लेकिल युध्द में अत्यधिक घायल भी हो जाते है। गायें गूजरी को सौंप वचनबध्द नायक सांप की बम्बी पर पहुंच जाता है। कुंवर तेजपाल की वचनबध्दता से नाग अत्यन्त प्रभावित होता है। वह तेजाजी को डंसना नही चाहता है और कहता है -''तेजा! तेरा पूरा शरीर लहूलुहान है, कहां डंक मारु ? ना ग राज़ कुंवारी जगह बिना नही डसता।''तब तेजाजी अपने मुह की कुंवारी जीभ नागराज के सामने कर भाला जमीन में गाड कर कहते है-''नागराज! तेजा कच्ची माटी का नही बना है। मुझे वचन हार मत कर और जीभ पर डस ले।''इस प्रकार भादवा सुद दच्चमीं सम्वत्‌ ११६० तद्‌नुसार २८ अगस्त ११०३ ई. को वीर तेजाजी वीर गति को प्राप्त हुए। सर्पदंच्च से तेजाजी की देह वहीं शांत होती है, परन्तु सर्पदंच्च से पीडित व्यक्ति तेरी तांती से ठीक होंगे, नागराज से यह वर पाते हैं। इस प्रकार प्राण देकर भी वचन निभाने के कारण तेजाजी सत्यवादी वीर कहलाये। तेजाजी के स्वर्गारोहण के पच्च्चात्‌ की कथा अत्यन्त कारुणिक हैं। सुख-दुख में साथ देने वाली घोङी'लीलण' शोक विहल होकर तेजाजी के पार्थिव भारीर और पैरों को आंसुओं से धोती है फिर खरनाल आकर तेजाजी के स्वर्गारोहण का सन्देच्च देती है। उधर आंसू देवासी तेजाजी द्वारा दिया गया साफा व अन्य सामान पत्नी पेमल तक पहुचंता है। पति के बिछुडने का गम पेमल सहन नही कर पाती है और उस समय की परम्परानुसार पति की देह गोद में लेकर सुरसुरा में सती हो जाती है। शोकमग्न गांव खरनाल के पूर्व में १ कि.मी. दूर तालाब की पाल पर तेजाजी की बहन राजल भी सती हो गई। यहां बना बूंगरी माता का मंदिर आज भी भाई-बहन के अपूर्व प्यार की याद दिलाता है। खरनाल आने वाला हर भक्त बुंगरी माता के अवच्च्य आता है। अपने मालिक के वियोग का दुःख सहन न कर सकने वाली तेजाजी की प्रिय घोडी लीलण ने यहीं पर प्राण त्याग दिये, जिसका नाम आज भी तेजाजी के भक्त बडी भान से अपने घरों व वाहनों पर लिखवाते हैं। .
ॐJAI JEEN BHAVANIΨ . राजस्थान के सीकर शहर से 32 कि.मी की ओर जयपुर शहर से 115कि.मी. दूर अरावली पर्वतमाला की उपत्यका में स्थित श्री जीण माता का स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहां नवरात्र में मेला लगता है, इस धार्मिक परिवेश के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि दुर्गा रूपों में प्रथम जयन्ती देवी के शक्तिपीठ नाम से प्रसिद्ध स्थल में श्री जीणमाता ने तपस्या करके देवत्व सिद्धि प्राप्त की थी। जयनती देवी का उल्लेख देवी भागवत पुराण के नवें स्कन्ध में किया गया है। यहीं भुवनेश्वरी देवी का वर्णन है जिसने अरूणत दैत्य का वध भौंवरे के रूप में किया था। भुवनेश्वरी देवी का मन्दिर भी श्री जीण माता के मुखय मन्दिर के पार्श्व में एक तलघर में है। इसे लोक भाषा में भँवरों की माता कहा जाता है। चुरू जिले के धाबू गांव में चौहान शासवकों के यहां जनमी श्री जीण माता ने अपनी भावज द्वारा अपमानित होकर ग्रह त्याग किया था। श्री जीण के भाई हर्ष ने यहां आकर बहन को घर लौटने का आग्रह किया किन्तु श्री जीणमाता अपने निश्चय पर अटल रही और विवश हो हर्ष भी बिना बहन को साथ लिये घर नहीं लौटा। दोनों भाई बहन आस-पास रह गये। दसवीं सदीं में निर्मित श्री जीणमाता के मन्दिर की स्थापत्य कला भी दर्शकों को प्रभावित करती है मन्दिर के मुखय मण्डप के स्तम्भों और छत पर उत्कीर्ण वाममार्गी मूर्तिया तथा फूल पत्तियां कलात्मकता की प्रतिक है। विशाल पत्थर पर उत्कीर्ण इस मूर्ति में देवी को अष्ठ भुजाधारी सिंह की सवारी पर राक्षस का मर्दन करते हुये दिखाया गया है किन्तु सिन्दुर पुता होने से देवी के श्री मुख का ही दर्शन किया जा सकता है। मन्दिर के समीप पर्वत पर चोटी का जल शिखर पर भी एक छोटा मन्दिर बना है जिसमें सिंह पर सवार चार भुजाधारी दुर्गा की मूर्ति है। जहां अखण्ड ज्योति जलती है। मंदिर परिसर में एक कुण्ड और शिव मन्दिर भी है। . चैत्र व अश्विन के नवरात्रों में और अन्य दिनों में यहां दर्शनार्थी लगातार आते रहते हैं। यहां तीन सौ तिबारियां बनी है और मन्दिर के सामने यात्रियों की पंक्तिबद्ध धर्मशालाएं है। श्री जीणमाता मन्दिर में विभिन्न कालों के आठ शिलालेख भी है जिनसे प्रमाणित होता है कि मन्दिर नवीं और दसवीं शताब्दी के लगभग बनवाया गया है। मन्दिर में सवामणियां, छत्र, झारी, नौबत एवं कलश भेंट स्वरूप चढ़ाये जाते हैं और जात-जडूलों के साथ मन के बोल भी लगते हैं।

रविवार, 10 मई 2015

घड़ला सीतल नीर रा, कतरा करां बखाण।

घड़ला सीतल नीर रा, कतरा करां बखाण। हिम सूं थारो हेत है, जळ इमरत रै पाण॥ घड़ला थारो नीर तो, कामधेन रो छीर। मन रो पंछी जा लगै, मानसरां रै तीर॥ घड़ला थारा नीर में, गंग जमन रो सीर। नरमद मिल गौदावरी, हर हर लेवै पीर॥ जितरी ताती लू चलै, उतरो ठंडो नीर। तन तिरलोकी राजवी, मन व्है मलयागीर॥ बियाबान धर थार में, एक बिरछ री छांव। मिल जावै जळ-गागरी, बो इन्नर रो गांव॥ रेत कणां झळ नीसरै, भाटै भाटै आग। झर झर सीतल जळ झरै, घड़ला थारा भाग॥ इक गुटकी में किसन है, दो गुटकी में राम। गटक-गटक पी लै मनां, होज्या ब्रह्म समान॥

साजन छोड़ शराब

पिण्ड झड़े , रोबा पडे़ , पड़िया सड़े पेंषाब । जीब अड़े पग लडथडे़, साजन छोड़ शराब ।। १ ।। कॉण रहे नह कायदो, अॅाण रहे नह आब। (जे) राण बाण नित रेवणो,(तो) साथी छोड शराब 11 २ 11 जमी साख जाति रहे ,ख्याति हुवे खराब । मुख न्याति रा मोड़ले ,साथी छोड़ शराब 11 ३ 11 परणी निरखे पीवने , दॉत आंगली दाब। भॉत भॉत मंाख्यंा भमे, साजन छोड़ शराब 11 ४ 11 आमद सू करणो इधक , खरचो घणो खराब । सदपुरखॉ री सीखहे, साथी छोड़ शराब 11 ५ 11 सरदा घटे शरीर री , करे न गुरदा काम। परदा हट जावे परा, आसव छोड़ अलाम 11 ६ 11 कहे सन्त अर ग्रंथ सब , निष्चय धरम निचोड़ । जे सुख चावे जीवणो, (तो) छाक पीवणो छोड़ 11 ७ 11 मोनो अरजी रे मनां , मत कर झोड़ झकाळ। छाक पीवणी छोड़दे, बोतल रो मुॅहबाळ 11 ८ 11 चंवरी जद कंवरी चढी, खूब बणाया ख्वाब । ख्वाब मिळगया खाक मे, पीपी छाक शराब 11 ९ 11 घर मांेही तोटो घणों, रांधण मिळेन राब। बिलखे टाबर बापड़ा , साजन छोड़ शराब ।। १0 ।। दारू में दुरगण घणा , लेसमात्र नह लाब । जग में परतख जोयलो , साथी छोड़ शराब ।। ११ ।।

पाळ पुराणी जळ नवो, हंसा बेठो आय।

पाळ पुराणी जळ नवो, हंसा बेठो आय। प्रीत पुराणी कारणे, चुग चुग कांकर खाय॥ साजन हम तौ मोर हे ,तुम सावन को मेह। हम तो जानत बरसबो, तुम देवत हो छेह॥ दिन सोळह उनमाद रा,सोले बरसा नार । ससि बदनी सोळह कला, सोले सज सिणगार॥ साजन ऐसा कीजिए, ढाल सरीसा होय । सुख मे तो पाछे रहे, दुख मे आगे होय॥॥ शेरी मिंतर सब मिळै ताळी मिंत अनेक। जिण मे सुख दुःख वामिये, सो लाखो में एक॥

'मनस्थिति' बदलो

'मनस्थिति' बदलो गुरू से शिष्य ने कहा: गुरूदेव ! एक व्यक्ति ने आश्रम के लिये गाय भेंट की है। गुरू ने कहा - अच्छा हुआ । दूध पीने को मिलेगा। एक सप्ताह बाद शिष्य ने आकर गुरू से कहा: गुरू ! जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, आज वह अपनी गाय वापिस ले गया । गुरू ने कहा - अच्छा हुआ ! गोबर उठाने की झंझट से मुक्ति मिली। 'परिस्थिति' बदले तो अपनी 'मनस्थिति' बदल लो । बस दुख सुख में बदल जायेगा.। "सुख दुख आख़िर दोनों मन के ही तो समीकरण हैं।"

Guruji

गुरूजी विद्यालय से घर लौट रहे थे । रास्ते में एक नदी पड़ती थी । नदी पार करने लगे तो ना जाने क्या सूझा , एक पत्थर पर बैठ अपने झोले में से पेन और कागज निकाल अपने वेतन का हिसाब निकालने लगे । अचानक....., हाथ से पेन फिसला और डुबुक ....पानी में डूब गया । गुरूजी परेशान । आज ही सुबह पूरे पांच रूपये खर्च कर खरीदा था । कातर दृष्टि से कभी इधर कभी उधर देखते , पानी में उतरने का प्रयास करते , फिर डर कर कदम खींच लेते । एकदम नया पेन था , छोड़ कर जाना भी मुनासिब न था । अचानक....... पानी में एक तेज लहर उठी , और साक्षात् वरुण देव सामने थे । गुरूजी हक्के -बक्के । कुल्हाड़ी वाली कहानी याद आ गई । वरुण देव ने कहा , " गुरूजी । क्यूँ इतने परेशान हैं । प्रमोशन , तबादला , वेतनवृद्धि ,क्या चाहिए ? गुरूजी अचकचाकर बोले , " प्रभु ! आज ही सुबह एक पेन खरीदा था । पूरे पांच रूपये का । देखो ढक्कन भी मेरे हाथ में है । यहाँ पत्थर पर बैठा लिख रहा था कि पानी में गिर गया । प्रभु बोले , " बस इतनी सी बात ! अभी निकाल लाता हूँ ।" प्रभु ने डुबकी लगाई , और चाँदी का एक चमचमाता पेन लेकर बाहर आ गए । बोले - ये है आपका पेन ? गुरूजी बोले - ना प्रभु । मुझ गरीब को कहाँ ये चांदी का पेन नसीब । ये मेरानाहीं । प्रभु बोले - कोई नहीं , एक डुबकी और लगाता हूँ । डुबुक ..... इस बार प्रभु सोने का रत्न जडित पेन लेकर आये ।बोले - "लीजिये गुरूजी , अपना पेन ।" गुरूजी बोले - " क्यूँ मजाक करते हो प्रभु । इतना कीमती पेन और वो भी मेरा । मैं टीचर हूँ सर , CRC नहीं । थके हारे प्रभु ने कहा , " चिंता ना करो गुरुदेव । अबके फाइनल डुबकी होगी । डुबुक .... बड़ी देर बाद प्रभु उपर आये । हाथ में गुरूजी का जेल पेन लेकर । बोले - ये है क्या ? गुरूजी चिल्लाए - हाँ यही है , यही है । प्रभु ने कहा - आपकी इमानदारी ने मेरा दिल जीत लिया गुरूजी । आप सच्चे गुरु हैं । आप ये तीनों पेन ले लो । गुरूजी ख़ुशी - ख़ुशी घर को चले । कहानी अभी बाकी है दोस्तों --- गुरूजी ने घर आते ही सारी कहानी पत्नी जी को सुनाई । चमचमाते हुवे कीमती पेन भी दिखाए । पत्नी को विश्वास ना हुवा , बोली तुम किसी CRC का चुरा कर लाये हो । बहुत समझाने पर भी जब पत्नी जी ना मानी तो गुरूजी उसे घटना स्थल की ओर ले चले । दोनों उ पत्थर पर बैठे , गुरूजी ने बताना शुरू किया कि कैसे - कैसे सब हुवा । पत्नी जी एक एक कड़ी को किसी शातिर पुलिसिये की तरह जोड़ रही थी कि अचानक ....... डुबुक !!! पत्नी जी का पैर फिसला , और वो गहरे पानी में समा गई । गुरूजी की आँखों के आगे तारे नाचने लगे । ये क्या हुवा ! जोर -जोर से रोने लगे । तभी अचानक ...... पानी में ऊँची ऊँची लहरें उठने लगी । नदी का सीना चीरकर साक्षात वरुण देव प्रकट हुवे । बोले - क्या हुआ गुरूजी ? अब क्यूँ रो रहे हो ? गुरूजी ने रोते हुए पूरी story प्रभु को सुनाई । प्रभु बोले - रोओ मत ।धीरज रखो । मैं अभी आपकी पत्नी को निकाल कर लाता हूँ। प्रभु ने डुबकी लगाईं , और ..... .. ........ ............ .................थोड़ी देर में वो सनी लियोनी को लेकर प्रकट हुवे । बोले - गुरूजी । क्या यही आपकी पत्नी जी है ?? गुरूजी ने एक क्षण सोचा , और चिल्लाए - हाँ यही है , यही है । अब चिल्लाने की बारी प्रभु की थी । बोले - दुष्ट मास्टर । टंच माल देखा तो नीयत बदल दी । ठहर तुझे श्राप देता हूँ । गुरूजी बोले - माफ़ करें प्रभु । मेरी कोई गलती नहीं । अगर मैं इसे मना करता तो आप अगली डुबकी में प्रियंका चोपड़ा को लातते । मैं फिर भी मना करता तो आप मेरो पत्नी को लाते । फिर आप खुश होकर तीनों मुझे दे देते । अब आप ही बताओ भगवन , इस महंगाई के जमाने में मैं तीन - तीन बीबीयाँ कैसे पालता । सो सोचा , सनी से ही काम चला लूँगा । छपाक ... एक आवाज आई । प्रभु बेहोश होकर पानी में गिर गए थे । गुरूजी सनी का हाथ थामे सावधानीपूर्वक धीरे - धीरे नदी पार कर रहे थे ।

फ़ोन टेंशन

नींद आखे बंद करने से नही Net बंद करने से आती है..!!... "भूखे को रोटी और android फ़ोन वाले को charger देना पुण्य का काम होता है.." शाश्त्रों में लिखना रह गया था...सोचा बता दूँ...!"! पहले लोग 'बेटा' के लिये तरसते थे.. और आजकल डेटा के लिये ! आज की सबसे बड़ी दुविधा..... मोबाइल बिगड़ जाये तो बच्चे जिम्मेदार और बच्चे बिगड़ जाये तो मोबाइल जिम्मेदार.... " बदल गया है जमाना पहले माँ का पेर छू कर निकलते थे,अब मोबाइल की बेटरी फुल करके निकलते है ।It is Awesome कुछ लोग जब रात को अचानक फोन का बैलेंस ख़त्म होजाता है इतना परेशान हो जाते हैं माने जैसे सुबह तक वो इन्सान जिंदा ही नहीं रहेगा जिससे बात करनी थी। ▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪ कुछ लोग जब फ़ोन की बैटरी 1-2% हो तो चार्जर की तरफ ऐसे भागते है जैसे उससे कह रहे हो "तुझे कुछ नहीं होगा भाई ! आँखे बंद मत करना मैं हूँ न ! सब ठीक हो जायेगा। ▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪ कुछ लोग अपने फोन में ऐसे पैटर्न लॉक लगाते हैं जैसे आई एस आई की सारी गुप्त फाइलें उनके फ़ोन में ही पड़ी हो। ▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪ कुछ लोग जब आपसे बात कर रहे होते हैं तो बार बार अपने फ़ोन को जेब से निकालते हैं, लॉक खोलते हैं और वापस लॉक कर देते हैं...वास्तव में वे कुछ देखते नहीं हैं, बस ये जताते हैं कि वो जाना चाहते हैं। ▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪ गलती से फ़ोन किसी दुसरे दोस्त के यहाँ छुट जाए तो ऐसा महसूस होता हैं जैसे अपनी भोली- भाली गर्लफ्रेंड को शक्ति कपूर के पास छोड़ आये हो। ▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪ डरपोक है वो लोग- जो online नहीं आतेे... साला जिगर चाहिए- टाइम बरबाद करने के लिए.. ▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪ सभी मोबाइल बनाने वाली कंपनीओं वालों से निवेदन है कि वह मोबाइल फोन बड़ा करवाते जा रहे है तो , उसमे ऐसी व्यवस्था और करा दें कि पीछे के ढक्कन के अंदर दो परांठे, आलू की सुखी सब्जी और अचार आ जाये।

तीन चीजें तीन चीजों में मन लगाने से उन्नति होती है - ईश्वर, परिश्रम और विद्या। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीन चीजों को कभी छोटी ना समझे - बिमारी, कर्जा और शत्रु। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीनों चीजों को हमेशा वश में रखो - मन, काम और लोभ। →→→←←←←→→→← •Ⓜ√. तीन चीज़ें निकलने पर वापिस नहीं आती - तीर कमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीन चीज़ें कमज़ोर बना देती है - बदचलनी, क्रोध और लालच। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अकल, चरित्र और हुनर। →→→←←←←→→→← •Ⓜ√. तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते हैं - स्त्री, भाई और दोस्त। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीनों व्यक्ति का सम्मान करो - माता, पिता और गुरु। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीनों व्यक्ति पर सदा दया करो - बालक, भूखे और पागल। →→→←←←←→→→← •Ⓜ√. तीन चीज़े कभी नहीं भूलनी चाहिए - कर्ज़, मर्ज़ और फर्ज़। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता। Ⓜ•√. तीन चीज़े याद रखना ज़रुरी हैं - सच्चाई, कर्तव्य और मृत्यु। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीन चीज़ें हमेशा दिल में रखनी चाहिए - नम्रता, दया और माफ़ी। →→→←←←←→→→← •√. तीन चीज़ों पर कब्ज़ा करो - ज़बान, आदत और गुस्सा। →→→←←←←→→→← •√Ⓜ. तीन चीज़ों से दूर भागो - आलस्य, खुशामद और बकवास। →→→←←←←→→→← •√Ⓜ. तीन चीज़ों के लिए मर मिटो - धेर्य, देश और मित्र। →→→←←←←→→→← •√Ⓜ. तीन चीज़ें इंसान की अपनी होती हैं - रूप, भाग्य और स्वभाव। →→→←←←←→→→← •√Ⓜ. तीन चीजों पर अभिमान मत करो – धन, ताकत और सुन्दरता। →→→←←←←→→→← •Ⓜ√. तीन चीज़ें अगर चली गयी तो कभी वापस नहीं आती - समय, शब्द और अवसर। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीन चीज़ें इन्सान कभी नहीं खो सकता - शान्ति, आशा और ईमानदारी। →→→←←←←→→→← Ⓜ•√. तीन चीज़ें जो सबसे अमूल्य है - प्यार, आत्मविश्वास और सच्चा मित्र।


थोड़ा दिना पछे ए शायद कोनी मिलेला थोड़ा दिना पछे ए शायद कोनी मिलेला ⌛

थोड़ा दिना पछे ए शायद कोनी मिलेला थोड़ा दिना पछे ए शायद कोनी मिलेला ⌛  लुगाईओ में लाज, दिलों में राज, चुल्हा री आग, सरसुं रो साग, सिर उपर पाग, संगीत रा राग, .... कोनी मिलेला सा ... औंगण में ऊखल, कूण म मूसल, घरां में लस्सी, लत्ते टांगण की रस्सी रिश्तों रो उजास, दोस्तों रो गरमास, पहलवानां री लंगोट, हनुमानजी रो रोट, घूंघट आली लुगाई, गावं म दाई, ..... कोनी मिलेला सा .... सासरा में लाडू , तैवार माथे साडू, दोस्तां साथे भोज, सुबह शाम नितरोज, िचड़ी बल्ला रो खेल, WHatsapp माते मेल, .......कोनी मिलेला सा ..... बात सुनती घरआली, हँस बतलावती साली, घरां में बुढ्ढा, बैठकां में मुड्डा, अलपता टाबर, सुहावता आखर, अनजानो री आशीष, कमतर ने बक्शीस, राज में भला, ने बंद गला, .....कोनी मिलेला सा... शहर री आन, मुछों री शान ताऊ रो हुक्का, ब्याह रो रुक्का, हिसाब री पर्ची, गली वालो दर्ज़ी , पाटडे माते नहाणो, पत्तल पे खाणा, पाणी भरेडा देग, बेन बेटी रो नेग, .........कोनी मिलेला सा ....

Niti ke dohe

नीति रा दुहा सदा न संग सहेलियां, सदा न राजा देश सदा न जुग में जीवणा, सदा न काळा केश ।। सदा न फूले केतकी, सदा न सावण होय सदा न विपदा रह सके, सदा न सुख भी कोय।। सदा न मौज बसंत री , सदा न ग्रीसम भांण सदा न जोबन थिर रहे, सदा न संपत मांण ।। सदा न काहूं की रही , गळ प्रीतम के बांह ढळतां-ढळतां ढळ गई, तरवर की सी छांह ।

मेवाड़ राजवंश का संक्षिप्त इतिहास

वीर प्रसूता मेवाड की धरती राजपूती प्रतिष्ठा, मर्यादा एवं गौरव का प्रतीक तथा सम्बल है। राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी अंचल का यह राज्य अधिकांशतः अरावली की अभेद्य पर्वत श्रृंखला से परिवेष्टिता है। उपत्यकाओं के परकोटे सामरिक दृष्टिकोण के अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। >मेवाड अपनी समृद्धि, परम्परा, अधभूत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है। स्वाधिनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। मेवाड की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराण प्रताप जैसे सूरवीर, यशस्वी, कर्मठ, राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड वरन संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है। स्वतन्त्रता की अखल जगाने वाले प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये, सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है। मेवाड का गुहिल वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है। मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं। श्री गौरीशंकर ओझा की पुस्तक “मेवाड़ राज्य का इतिहास” एक ऐसी पुस्तक है जिसे मेवाड़ के सभी शासकों के नाम एवं क्रम के लिए सर्वाधिक प्रमाणिक माना जाता है. मेवाड में गहलोत राजवंश – बप्पा ने सन 734 ई० में चित्रांगद गोरी परमार से चित्तौड की सत्ता छीन कर मेवाड में गहलौत वंश के शासक का सूत्रधार बनने का गौरव प्राप्त किया। इनका काल सन 734 ई० से 753 ई० तक था। इसके बाद के शासकों के नाम और समय काल निम्न था - 1.रावल बप्पा ( काल भोज ) -734 ई० मेवाड राज्य के गहलौत शासन के सूत्रधार। 2.रावल खुमान – 753 ई० 3.मत्तट – 773 – 793 ई० 4.भर्तभट्त – 793 – 813 ई० 5.रावल सिंह – 813 – 828 ई० 6.खुमाण सिंह – 828 – 853 ई० 7.महायक – 853 – 878 ई० 8.खुमाण तृतीय – 878 – 903 ई० 9.भर्तभट्ट द्वितीय – 903 – 951 ई० 10.अल्लट – 951 – 971 ई० 11.नरवाहन – 971 – 973 ई० 12.शालिवाहन – 973 – 977 ई० 13.शक्ति कुमार – 977 – 993 ई० 14.अम्बा प्रसाद – 993 – 1007 ई० 15.शुची वरमा – 1007- 1021 ई० 16.नर वर्मा – 1021 – 1035 ई० 17.कीर्ति वर्मा – 1035 – 1051 ई० 18.योगराज – 1051 – 1068 ई० 19.वैरठ – 1068 – 1088 ई० 20.हंस पाल – 1088 – 1103 ई० 21.वैरी सिंह – 1103 – 1107 ई० 22.विजय सिंह – 1107 – 1127 ई० 23.अरि सिंह – 1127 – 1138 ई० 24.चौड सिंह – 1138 – 1148 ई० 25.विक्रम सिंह – 1148 – 1158 ई० 26.रण सिंह ( कर्ण सिंह ) – 1158 – 1168 ई० 27.क्षेम सिंह – 1168 – 1172 ई० 28.सामंत सिंह – 1172 – 1179 ई० (क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह। ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के कीतू चौहान मेवाड पर अधिकार कर लिया। सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये। इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया। लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया। ) 1.कुमार सिंह – 1179 – 1191 ई० 2.मंथन सिंह – 1191 – 1211 ई० 3.पद्म सिंह – 1211 – 1213 ई० 4.जैत्र सिंह – 1213 – 1261 ई० 5.तेज सिंह -1261 – 1273 ई० 6.समर सिंह – 1273 – 1301 ई० (समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं। ) 35. रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) -इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा – बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा। 36. अजय सिंह ( 1303 – 1326 ई० ) –हमीर राज्य के उत्तराधिकारी थे किन्तु अवयस्क थे। इसलिए अजय सिंह गद्दी पर बैठे। 37. महाराणा हमीर सिंह ( 1326 – 1364 ई० ) -हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारण की । इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं। 38. महाराणा क्षेत्र सिंह ( 1364 – 1382 ई० ) 39. महाराणा लाखासिंह ( 1382 – 11421 ई० ) –योग्य शासक तथा राज्य के विस्तार करने में अहम योगदान। इनके पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र चुडा ने विवाह न करने की भीष्म प्रतिज्ञा की और पिता से हुई संतान मोकल को राज्य का उत्तराधिकारी मानकर जीवन भर उसकी रक्षा की। 40. महाराणा मोकल ( 1421 – 1433 ई० ) 41. महाराणा कुम्भा ( 1433 – 1469 ई० ) –इन्होने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि योग्य प्रशासक, सहिष्णु, किलों और मन्दिरों के निर्माण के रुप में ही जाने जाते हैं। कुम्भलगढ़ इन्ही की देन है. इनके पुत्र उदा ने इनकी हत्या करके मेवाड के गद्दी पर अधिकार जमा लिया। 42. महाराणा उदा ( उदय सिंह ) ( 1468 – 1473 ई० ) -महाराणा कुम्भा के द्वितीय पुत्र रायमल, जो ईडर में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे, आक्रमण करके उदय सिंह को पराजित कर सिंहासन की प्रतिष्ठा बचा ली। अन्यथा उदा पांच वर्षों तक मेवाड का विनाश करता रहा। 43. महाराणा रायमल ( 1473 – 1509 ई० ) -सबसे पहले महाराणा रायमल के मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन को पराजित किया और पानगढ, चित्तौड्गढ और कुम्भलगढ किलों पर पुनः अधिकार कर लिया पूरे मेवाड को पुनर्स्थापित कर लिया। इसे इतना शक्तिशाली बना दिया कि कुछ समय के लिये बाह्य आक्रमण के लिये सुरक्षित हो गया। लेकिन इनके पुत्र संग्राम सिंह, पृथ्वीराज और जयमल में उत्तराधिकारी हेतु कलह हुआ और अंततः दो पुत्र मारे गये। अन्त में संग्राम सिंह गद्दी पर गये। 44. महाराणा सांगा ( संग्राम सिंह ) ( 1509 – 1527 ई० ) -महाराणा सांगा उन मेवाडी महाराणाओं में एक था जिसका नाम मेवाड के ही वही, भारत के इतिहास में गौरव के साथ लिया जाता है। महाराणा सांगा एक साम्राज्यवादी व महत्वाकांक्षी शासक थे, जो संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहते थे। इनके समय में मेवाड की सीमा का दूर – दूर तक विस्तार हुआ। महाराणा हिन्दु रक्षक, भारतीय संस्कृति के रखवाले, अद्वितीय योद्धा, कर्मठ, राजनीतीज्ञ, कुश्ल शासक, शरणागत रक्षक, मातृभूमि के प्रति समर्पित, शूरवीर, दूरदर्शी थे। इनका इतिहास स्वर्णिम है। जिसके कारण आज मेवाड के उच्चतम शिरोमणि शासकों में इन्हे जाना जाता है। 45. महाराणा रतन सिंह ( 1528 – 1531 ई० ) 46. महाराणा विक्रमादित्य ( 1531 – 1534ई० ) –यह अयोग्य सिद्ध हुआ और गुजरात के बहादुर शाह ने दो बार आक्रमण कर मेवाड को नुकसान पहुंचाया इस दौरान 1300 महारानियों के साथ कर्मावती सती हो गई। विक्रमादित्य की हत्या दासीपुत्र बनवीर ने करके 1534 – 1537 तक मेवाड पर शासन किया। लेकिन इसे मान्यता नहीं मिली। इसी समय सिसोदिया वंश के उदय सिंह को पन्नाधाय ने अपने पुत्र की जान देकर भी बचा लिया और मेवाड के इतिहास में प्रसिद्ध हो गई। 47. महाराणा उदय सिंह ( 1537 – 1572 ई० ) –मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़गढ़ से उदयपुर लेकर आये. गिर्वा की पहाड़ियों के बीच उदयपुर शहर इन्ही की देन है. इन्होने अपने जीते जी गद्दी ज्येष्ठपुत्र जगमाल को दे दी, किन्तु उसे सरदारों ने नहीं माना, फलस्वरूप छोटे बेटे प्रताप को गद्दी मिली. 48. महाराणा प्रताप ( 1572 -1597 ई० ) –इनका जन्म 9 मई 1540 ई० मे हुआ था। राज्य की बागडोर संभालते समय उनके पास न राजधानी थी न राजा का वैभव, बस था तो स्वाभिमान, गौरव, साहस और पुरुषार्थ। उन्होने तय किया कि सोने चांदी की थाली में नहीं खाऐंगे, कोमल शैया पर नही सोयेंगे, अर्थात हर तरह विलासिता का त्याग करेंगें। धीरे – धीरे प्रताप ने अपनी स्थिति सुधारना प्रारम्भ किया। इस दौरान मान सिंह अकबर का संधि प्रस्ताव लेकर आये जिसमें उन्हे प्रताप के द्वारा अपमानित होना पडा। परिणाम यह हुआ कि 21 जून 1576 ई० को हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर और प्रताप का भीषण युद्ध हुआ। जिसमें 14 हजार राजपूत मारे गये। परिणाम यह हुआ कि वर्षों प्रताप जंगल की खाक छानते रहे, जहां घास की रोटी खाई और निरन्तर अकबर सैनिको का आक्रमण झेला, लेकिन हार नहीं मानी। ऐसे समय भीलों ने इनकी बहुत सहायता की।अन्त में भामा शाह ने अपने जीवन में अर्जित पूरी सम्पत्ति प्रताप को देदी। जिसकी सहायता से प्रताप चित्तौडगढ को छोडकर अपने सारे किले 1588 ई० में मुगलों से छिन लिया। 19 जनवरी 1597 में चावंड में प्रताप का निधन हो गया। 49. महाराणा अमर सिंह -(1597 – 1620 ई० ) –प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफ़ल हुए। अंत में खुर्रम ने मेवाड पर अधिकार कर लिया। हारकर बाद में इन्होनें अपमानजनक संधि की जो उनके चरित्र पर बहुत बडा दाग है। वे मेवाड के अंतिम स्वतन्त्र शासक है। 50. महाराणा कर्ण सिद्ध ( 1620 – 1628 ई० ) –इन्होनें मुगल शासकों से संबंध बनाये रखा और आन्तरिक व्यवस्था सुधारने तथा निर्माण पर ध्यान दिया। 51.महाराणा जगत सिंह ( 1628 – 1652 ई० ) 52. महाराणा राजसिंह ( 1652 – 1680 ई० ) -यह मेवाड के उत्थान का काल था। इन्होने औरंगजेब से कई बार लोहा लेकर युद्ध में मात दी। इनका शौर्य पराक्रम और स्वाभिमान महाराणा प्रताप जैसे था। इनकों राजस्थान के राजपूतों का एक गठबंधन, राजनितिक एवं सामाजिक स्तर पर बनाने में सफ़लता अर्जित हुई। जिससे मुगल संगठित लोहा लिया जा सके। महाराणा के प्रयास से अंबेर, मारवाड और मेवाड में गठबंधन बन गया। वे मानते हैं कि बिना सामाजिक गठबंधन के राजनीतिक गठबंधन अपूर्ण और अधूरा रहेगा। अतः इन्होने मारवाह और आमेर से खानपान एवं वैवाहिक संबंध जोडने का निर्णय ले लिया। राजसमन्द झील एवं राजनगर इन्होने ही बसाया. 53. महाराणा जय सिंह ( 1680 – 1698 ई० ) -जयसमंद झील का निर्माण करवाया. 54. महाराणा अमर सिंह द्वितीय ( 1698 – 1710 ई० ) -इसके समय मेवाड की प्रतिष्ठा बढी और उन्होनें कृषि पर ध्यान देकर किसानों को सम्पन्न बना दिया। 55. महाराणा संग्राम सिंह ( 1710 – 1734 ई० ) –महाराणा संग्राम सिंह दृढ और अडिग, न्यायप्रिय, निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय, अनुशासित, आदर्शवादी थे। इन्होने 18 बार युद्ध किया तथा मेवाड राज्य की प्रतिष्ठा और सीमाओं को न केवल सुरक्षित रखा वरन उनमें वृध्दि भी की। 56. महाराणा जगत सिंह द्वितीय ( 1734 – 1751 ई० ) –ये एक अदूरदर्शी और विलासी शासक थे। इन्होने जलमहल बनवाया। शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) को अपना “पगड़ी बदल” भाई बनाया और उन्हें अपने यहाँ पनाह दी. 57.महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय ( 1751 – 1754 ई० ) 58. महाराणा राजसिंह द्वितीय ( 1754 – 1761 ई० ) 59. महाराणा अरिसिंह द्वितीय ( 1761 – 1773 ई० ) 60.महाराणा हमीर सिंह द्वितीय ( 1773 – 1778 ई० ) -इनके कार्यकाल में सिंधिया और होल्कर ने मेवाड राज्य को लूटपाट करके तहस – नहस कर दिया। 61. महाराणा भीमसिंह ( 1778 – 1828 ई० ) –इनके कार्यकाल में भी मेवाड आपसी गृहकलह से दुर्बल होता चला गया। 13 जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कम्पनी और मेवाड राज्य में समझौता हो गया। अर्थात मेवाड राज्य ईस्ट इंडिया के साथ चला गया।मेवाड के पूर्वजों की पीढी में बप्पारावल, कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे तेजस्वी, वीर पुरुषों का प्रशासन मेवाड राज्य को मिल चुका था। प्रताप के बाद अधिकांश पीढियों में वह क्षमता नहीं थी जिसकी अपेक्षा मेवाड को थी। महाराजा भीमसिंह योग्य व्यक्ति थे\ निर्णय भी अच्छा लेते थे परन्तु उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नही देते थे। इनमें व्यवहारिकता का आभाव था।ब्रिटिश एजेन्ट के मार्गदर्शन, निर्देशन एवं सघन पर्यवेक्षण से मेवाड राज्य प्रगति पथ पर अग्रसर होता चला गया। 62.महाराणा जवान सिंह ( 1828 – 1838 ई० ) –निःसन्तान। सरदार सिंह को गोद लिया । 63.महाराणा सरदार सिंह ( 1838 – 1842 ई० ) –निःसन्तान। भाई स्वरुप सिंह को गद्दी दी. 64. महाराणा स्वरुप सिंह ( 1842 – 1861 ई० ) -इनके समय 1857 की क्रान्ति हुई। इन्होने विद्रोह कुचलने में अंग्रेजों की मदद की। 65. महाराणा शंभू सिंह ( 1861 – 1874 ई० ) – 1868 में घोर अकाल पडा। अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढा। 66 .महाराणा सज्जन सिंह ( 1874 – 1884 ई० ) –बागोर के महाराज शक्ति सिंह के कुंवर सज्जन सिंह को महाराणा का उत्तराधिकार मिला। इन्होनें राज्य की दशा सुधारनें में उल्लेखनीय योगदान दिया। 67. महाराणा फ़तह सिंह ( 1883 – 1930 ई० ) –सज्जन सिंह के निधन पर शिवरति शाखा के गजसिंह के अनुज एवं दत्तक पुत्र फ़तेहसिंह को महाराणा बनाया गया। फ़तहसिंह कुटनीतिज्ञ, साहसी स्वाभिमानी और दूरदर्शी थे। संत प्रवृति के व्यक्तित्व थे. इनके कार्यकाल में ही किंग जार्ज पंचम ने दिल्ली को देश की राजधानी घोषित करके दिल्ली दरबार लगाया. महाराणा दरबार में नहीं गए . 68. महाराणा भूपाल सिंह (1930 – 1955 ई० ) -इनके समय में भारत को स्वतन्त्रता मिली और भारत या पाक मिलने की स्वतंत्रता। भोपाल के नवाब और जोधपुर के महाराज हनुवंत सिंह पाक में मिलना चाहते थे और मेवाड को भी उसमें मिलाना चाहते थे। इस पर उन्होनें कहा कि मेवाड भारत के साथ था और अब भी वहीं रहेगा। यह कह कर वे इतिहास में अमर हो गये। स्वतंत्र भारत के वृहद राजस्थान संघ के भूपाल सिंह प्रमुख बनाये गये। 69. महाराणा भगवत सिंह ( 1955 – 1984 ई० ) 70. श्रीजी अरविन्दसिंह एवं महाराणा महेन्द्र सिंह (1984 ई० से निरंतर..) इस तरह 556 ई० में जिस गुहिल वंश की स्थापना हुई बाद में वही सिसोदिया वंश के नाम से जाना गया । जिसमें कई प्रतापी राजा हुए, जिन्होने इस वंश की मानमर्यादा, इज्जत और सम्मान को न केवल बढाया बल्कि इतिहास के गौरवशाली अध्याय में अपना नाम जोडा । यह वंश कई उतार-चढाव और स्वर्णिम अध्याय रचते हुए आज भी अपने गौरव और श्रेष्ठ परम्परा के लिये जाना पहचाना जाता है। धन्य है वह मेवाड और धन्य सिसोदिया वंश जिसमें ऐसे ऐसे अद्वीतिय देशभक्त दिये।

Maharana partap

मेवाड़ के राजा शासन1572–1597 राज तिलक1 मार्च 1572 उदय सिंह द्वितीयपूर्वाधिकारी महाराणा अमर सिंह [1]उत्तराधिकारी जीवन संगी(11 पत्नियाँ) [2] संतानअमर सिंह भगवान दास (17 पुत्र) राज घरानासिसोदिया उदय सिंह द्वितीयपिता मातामहाराणी जयवंता कँवर [2] हिन्दू धर्मधर्म महाराणा प्रताप(9 मई 1540 – 29 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाडमें शिशोदिया राजवंशके राजा थे। उनका नाम इतिहासमें वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबरके साथ संघर्ष किया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। उनके प्रिय अश्व चेतककी भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंतीत हुई। २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शा भी अमर हुआ। जीवन बिरला मंदिर, दिल्लीमें महाराणा प्रताप का शैल चित्र महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ। महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियाँ की थी उनके पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम है:- 1.महारानी अजब्धे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास 2.अमरबाई राठौर :- नत्था 3.शहमति बाई हाडा :-पुरा 4.अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह 5.रत्नावती बाई परमार :-माल 6.लखाबाई :- रायभाना 7.जसोबाई चौहान :-कल्याणदास 8.चंपाबाई जंथी :- कचरा, सनवालदास और दुर्जन सिंह 9.सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल 10.फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा 11.खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिये क्रमश: चार शान्ति दूतों को भेजा। 1.जलाल खान कोरची (सितम्बर १५७२) 2.मानसिंह (१५७३) 3.भगवान दास (सितम्बर–अक्टूबर १५७३) 4.टोडरमल (दिसम्बर १५७३) [3] हल्दीघाटी का युद्ध मुख्य लेख :हल्दीघाटी का युद्ध. यह युद्ध १८ जून १५७६ ईस्वी में मेवाड तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे -हकीम खाँ सूरी। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की। [2]

10 days

एक राजा था ।उसने 10 खूंखार जंगली कुत्ते पाल रखे थे ।जिनका इस्तेमाल वह लोगों को उनके द्वारा की गयी गलतियों पर मौत की सजा देने के लिए करता था । एक बार कुछ ऐसा हुआ कि राजा के एक पुराने मंत्री से कोई गलती हो गयी। अतः क्रोधित होकर राजा ने उसे शिकारी कुत्तों के सम्मुख फिकवाने का आदेश दे डाला। दस दिन की मोहलत… सजा दिए जाने से पूर्व राजा ने मंत्री से उसकी आखिरी इच्छा पूछी। “राजन ! मैंने आज्ञाकारी सेवक के रूप में आपकी 10 सालों से सेवा की है…मैं सजा पाने से पहले आपसे 10 दिनों की मोहलत चाहता हूँ ।” मंत्री ने राजा से निवेदन किया । राजा ने उसकी बात मान ली । दस दिन बाद राजा के सैनिक मंत्री को पकड़ कर लाते हैं और राजा का इशारा पाते ही उसे खूंखार कुत्तों के सामने फेंक देते हैं। परंतु यह क्या कुत्ते मंत्री पर टूट पड़ने की बाजए अपनी पूँछ हिला-हिला कर मंत्री के ऊपर कूदने लगते हैं और प्यार से उसके पैर चाटने लगते हैं। राजा आश्चर्य से यह सब देख रहा था उसने मन ही मन सोचा कि आखिर इन खूंखार कुत्तों को क्या हो गया है ? वे इस तरह क्यों व्यवहार कर रहे हैं ? आखिरकार राजा से रहा नहीं गया उसने मंत्री से पुछा ,” ये क्या हो रहा है , ये कुत्ते तुम्हे काटने की बजाये तुम्हारे साथ खेल क्यों रहे हैं?” ” राजन ! मैंने आपसे जो १० दिनों की मोहलत ली थी , उसका एक-एक क्षण मैं इन बेजुबानो की सेवा करने में लगा दिया। मैं रोज इन कुत्तों को नहलाता ,खाना खिलाता व हर तरह से उनका ध्यान रखता। ये कुत्ते खूंखार और जंगली होकर भी मेरे दस दिन की सेवा नहीं भुला पा रहे हैं परंतु खेद है कि आप प्रजा के पालक हो कर भी मेरी 10 वर्षों की स्वामीभक्ति भूल गए और मेरी एक छोटी सी त्रुटि पर इतनी बड़ी सजा सुन दी.! ” राजा को अपनी भूल का एहसास हो चुका था , उसने तत्काल मंत्री को आज़ाद करने का हुक्म दिया और आगे से ऐसी गलती ना करने की सौगंध ली। मित्रों , कई बार इस राजा की तरह हम भी किसी की बरसों की अच्छाई को उसके एक पल की बुराई के आगे भुला देते हैं। यह कहानी हमें क्षमाशील होना सीखाती है, ये हमें सबक देती है कि हम किसी की हज़ार अच्छाइयों को उसकी एक बुराई के सामने छोटा ना होने दें।

UPAR JISKA ANT NAHI USE AASMA KAHTE HAI AUR NICHE JISKA ANT NAHI USE MAA KAHTE HAI I LOVE U MOM HAPPY MOTHER DAY

एक समय की बात है , एक बच्चे का जन्म होने वाला था. जन्म से कुछ क्षण पहले उसने भगवान् से पूछा : ” मैं इतना छोटा हूँ, खुद से कुछ कर भी नहीं पाता , भला धरती पर मैं कैसे रहूँगा , कृपया मुझे अपने पास ही रहने दीजिये , मैं कहीं नहीं जाना चाहता.” भगवान् बोले, ” मेरे पास बहुत से फ़रिश्ते हैं , उन्ही में से एक मैंने तुम्हारे लिए चुन लिया है, वो तुम्हारा ख़याल रखेगा. “ “पर आप मुझे बताइए , यहाँ स्वर्ग में मैं कुछ नहीं करता बस गाता और मुस्कुराता हूँ , मेरे लिए खुश रहने के लिए इतना ही बहुत है.” ” तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हारे लिए गायेगा और हर रोज़ तुम्हारे लिए मुस्कुराएगा भी . और तुम उसका प्रेम महसूस करोगे और खुश रहोगे.” ” और जब वहां लोग मुझसे बात करेंगे तो मैं समझूंगा कैसे , मुझे तो उनकी भाषा नहीं आती ?” ” तुम्हारा फ़रिश्ता तुमसे सबसे मधुर और प्यारे शब्दों में बात करेगा, ऐसे शब्द जो तुमने यहाँ भी नहीं सुने होंगे, और बड़े धैर्य और सावधानी के साथ तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे बोलना भी सीखाएगा .” ” और जब मुझे आपसे बात करनी हो तो मैं क्या करूँगा?” ” तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करना सीखाएगा, और इस तरह तुम मुझसे बात कर सकोगे.” “मैंने सुना है कि धरती पर बुरे लोग भी होते हैं . उनसे मुझे कौन बचाएगा ?” ” तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे बचाएगा , भले ही उसकी अपनी जान पर खतरा क्यों ना आ जाये.” “लेकिन मैं हमेशा दुखी रहूँगा क्योंकि मैं आपको नहीं देख पाऊंगा.” ” तुम इसकी चिंता मत करो ; तुम्हारा फ़रिश्ता हमेशा तुमसे मेरे बारे में बात करेगा और तुम वापस मेरे पास कैसे आ सकते हो बतायेगा.” उस वक़्त स्वर्ग में असीम शांति थी , पर पृथ्वी से किसी के कराहने की आवाज़ आ रही थी….बच्चा समझ गया कि अब उसे जाना है , और उसने रोते-रोते भगवान् से पूछा ,” हे ईश्वर, अब तो मैं जाने वाला हूँ , कृपया मुझे उस फ़रिश्ते का नाम बता दीजिये ?’ भगवान् बोले, ” फ़रिश्ते के नाम का कोई महत्त्व नहीं है , बस इतना जानो कि तुम उसे“माँ”कह कर पुकारोगे .”

बुधवार, 6 मई 2015

सच सुनने से न जाने क्यों, हमेशा कतराते है लोग। तारीफ चाहे झूठी हो सुनकर, खूब मुस्कुराते है लोग।।

➖ बेटी v/s बहू ➖ ➖➖➖➖➖➖ ✅ बेटी ससुराल में खुश होती है तो खुशी होती हैऔर ☑बहू ससुराल में खुश है....तो खराब लगता है ➖➖➖➖➖➖ ✅ दामाद बेटी की मदद करे...तो अच्छा लगता हैऔर ☑बेटा बहू की मदद करे तो जोरू का गुलाम कहा जाए ➖➖➖➖➖➖ ✅बेटी जींस पहने तो खुश होते है कि मार्डन फेमिली है और ☑बहू जींस पहने तो ...उसे बेशर्म कहते है ➖➖➖➖➖➖ ✅बेटी को ससुराल में अकेले काम करना पड़े तो खराब लगता है कि मेरी बेटी थक जायेगी और ☑बहू सारा दिन अकेले काम करे....फिर भी बहू काम-चोर कहलाये ➖➖➖➖➖➖ ✅ बेटी की सास और ननद काम...ना करे तो गुस्सा आता है ♦और ☑ जब अपने घर में वो बहू की मदद ना करे तो वो सही लगता है ➖➖➖➖➖➖ ✅बेटी की ससुराल वाले ताना...मारे तो गुस्सा आता है ♦और ☑खुद बहू के मायके वालों को....ताना मारे तो सही लगता है ➖➖➖➖➖➖ ✅ बेटी.....को रानी बनाकर रखने वाली ससुराल चाहिए ♦और ☑ खुद को...बहू कामवाली चाहिए ➖➖➖➖➖➖ 👉 लोग यह क्यूं भूल जाते है कि बहू भी किसी की बेटी है 👉 वो भी तो अपने माता-पिता भाई-बहन शहर-सहेली आदि को छोड़कर..आपके साथ नये जीवन की शुरूवात करने आई है ◆जो भी सास-ससुर◆ यह..msg...पढ़ रहे है वे कोशिश करें कि बहू और बेटी में कभी फर्क ⭕ ना माने ⭕ तभी यह दुनिया बदलेगी समाज बदलेगा.......और ....आपकी बेटियां भी.... ससुराल में आनंद से रहेगीं

Rajasthani vaata

रंग बदळ किरकांटया होग्या, नीत बदल मन मेला होग्या , मिनखीचारो मरतो दीखे, पईसां लारे गेला होग्या। घर सुं भाग गुरुजी बणग्या, चोर उचक्का चेला होग्या, चंदो खार कार में घुमे, भगत मोकळा भेळा होग्या। कम्प्यूटर को आयो जमानो, पढ़ लिख ढ़ोलीघोड़ा होग्या, पढ़ी-लिखी लुगायां ल्याया काम करण रा फोड़ा होग्या। जवानी में बूढ़ा होग्या सांस फूलगी घायल होग्या, घर-घर गाड़ी-घोड़ा होग्या, जेब-जेब मोबाईल होग्या। छोरयां तो हूंती आई पण आज पराया छोरा होग्या, राल्यां तो उघड़बा लागी, न्यारा-न्यारा डोरा होग्या। इतिहासां में गयो घूंघटो, पोडर पुतिया मूंडा होग्या, झरोखां री जाल्यां टूटी, म्हेल पुराणां टूंढ़ा होग्या। भारी-भारी बस्ता होग्या, टाबर टींगर हळका होग्या, मोठ बाजरी ने कुछ पूछे, पतळा-पतळा फलका होग्या। रूंख भाडकर ठूंठ लेयग्या जंगळ सब मैदान होयग्या, नाडी नदियां री छाती पर बंगला आलीशान होयग्या। मायड़भाषा ने भूल गया, अंगरेजी का दास होयग्या, टांग कका की आवे कोनी ऐमे बी.ए. पास होयग्या। सत संगत व्यापार होयग्यो, बिकाऊ भगवान होयग्या, भगवा भेष ब्याज रो धंधो, धरम बेच धनवान होयग्या। ओल्ड बोल्ड मां बाप होयग्या, सासु सुसरा चौखा होग्या, सेवा रा सपनां देख्या पण आंख खुली तो धोखा होग्या। बिना मूँछ रा मरद होयग्या, लुगायां रा राज होयग्या, दूध बेचकर दारू ल्यावे, बरबादी रा साज होयग्या। तीजे दिन तलाक होयग्यों, लाडो लाडी न्यारा होग्या, कांकण डोरां खुलियां पेली परण्या बींद कंवारा होग्या। बिना रूत रा बेंगण होग्या, सियाळा में आम्बा होग्या, इंजेक्शन सूं गोळ टमाटर फूल-फूल कर लाम्बा होग्या। कविता म्हारी फिरे कंवारी तुकबंदी का फेरा होग्या, दिवलो करे उजास जगत में खुद रे तळे अंधेरा होग्या। मन मरजी रा भाव होयग्या, पंसेरी रा पाव होयग्या, महंगाई री मार सोनी, जीणां दोरा आज होयग्या।@@

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IPL CRICKET

''आज नहीं तो कल मैच के लिए चीयरबालाएँ अपरिहार्य हो जाएँगी।'' ''उनका रूप कैसा होगा हमें पता नहीं लेकिन हमें कल्पना के घोड़े दौडाने से कौन रोक सकता है।'' किसी क्रिकेट मैच के पहले टीम की घोषणा होगी तो लोग कहेंगे, ''हमें खिलाड़ी में इंटरेस्ट नहीं है। चाहे पोवार को लो या हरभजन को। हमें ये बताओ कि चीयर कौन करेगा? कायदे का चीयर न हुआ तो समझ लो गया मैच हाथ से। क्रिकेट की कमेंट्री के साथ-साथ चीयरबालाओं की भी कमेंट्री होने लगे शायद। कमेंट्रेटर चीयरिंग अप का आँखों देखा हाल सुनाते हुये बोले- ''अब मैच शुरू होने वाला है। गेंदबाज रन अप पर। बल्लेबाज क्रीज पर। चीयरबालाएँ तैयार। चीयरबालाओं के वर्णन के लिये रीतिकाल विशेषज्ञ आने ही वाले हैं। तब तक हम शुरू होते हैं।'' चीयर बाला ने तीन ठुमके बायीं तरफ़ की पब्लिक के लिए लगाए। जनता चौथे ठुमके की आशा में थी लेकिन उसने चौथी बार रिवर्स ठुमका लगा दिया है और ये दायीं तरफ़ की जनता के कलेजे के पार। -ये बहुत सीनियर चीयरबाला हैं। सालों तक क्रिकेट की सेवा की है। कई बार इनके उत्साही ठुमकों कारण क्रिकेट की टीम बची है। कभी-कभी लोग कहने लगते हैं कि इनको जो करना था कर चुकीं लेकिन अभी भी इनके अन्दर दो तीन साल के ठुमके बचे हुए हैं। जब ज़रूरत नहीं होती तब वे अपना शानदार 'चीयर' निकाल के सामने दिखा देती हैं। -युवराज सिंह बल्लेबाजी ठीक से कर नहीं पा रहे हैं। उन्होंने चीयरबालाओं के कप्तान को इशारा किया है। चीयरबालाओं का स्थान परिवर्तन हो रहा है। वही कम्बीनेशन जमा दिया गया है जिसको देखते हुए पिछ्ले मैच में उन्होंने धुआँधार बल्लेबाजी की थी। और ये छ्क्का। -पहला पावर प्ले शुरू होने वाला है। युवा चीयरबालाऒं को स्टैंड के सामने से हटाकार ठीक बैट्समैन के सामने लगा दिया गया है। बल्लेबाज को बहुत सावधान होकर खेलना होगा। ज़रा-सी चूक होते ही वे विकेट के नज़दीक से हटकर चीयरबाला के नज़दीक से होते हुए पवेलियन तक जा सकते हैं। -चीयरबालाओं के चेहरे पर आत्मविश्वास। पिछला मैच उन्होंने, जो भारत की टीम लगभग हार चुकी थी, केवल अपनी चीयरिंग से जितवा दिया था। उनको देखकर खिलाडियों की साँसें सेन्सेक्स की तरह ऊपर-नीचे हो रही हैं। -ये एकदम साफ़ मामला था। अम्पायर एकदम पास में खड़े थे। लेकिन चूँकि उनका ध्यान चीयरग्रुप की तरफ़ था इसलिए वे खेल को देख नहीं पाए। उन्होंने तीसरे अम्पायर की सेवा लेने का फ़ैसला लिया है। लेकिन अफ़सोस कि वहाँ से भी कुछ पता नहीं चला पाया क्योंकि सभी कैमरे भी चीयरग्रुप के ऊपर लगे हुए थे। आखिर में दोनों कप्तानों की सहमति से खिलाड़ी के आउट/नाटआउट होने का निर्णय टास उछाल कर किया जा रहा है। आउट होने पर खिलाड़ी उछलता हुआ बाहर चला जाएगा। आने वाले खिलाड़ी का मुँह लटका होगा। उसकी चीयर-चेन जो टूट गई है। चीयरबालाओं की तर्ज़ पर महिला खिलाड़ियों के मैच में चीयरबालकों की माँग होगी। कुछ दिनों में मिक्स चीयरग्रुप का प्रचलन भी शुरू हो जाएगा। तब मज़े रहेंगे। बारिश के कारण मैच रद्द हो जाएगा लेकिन चीयरग्रुप का कार्यक्रम चालू रहेगा। लोग मैच के पहले हवन वगैरह करेंगे- हे भगवान आज पानी बरसा दो। टिकट का पूरा मज़ा लेने दो। खेल तो देखते ही रहते हैं। आज जी भर के चीयरिंग हो लेन दो। खिलाड़ी भी कामना करेंगे- काश पानी बरस जाए तो पवेलियन में टाँग पसार के चीयरफ़ुल हो जाएँ। खिलाड़ियों के काम्बिनेशन से ज़्यादा चीयरग्रुप का काम्बिनेशन मायने रखेगा। उनके चयन में सिर फ़ुटौव्वल होगी। बचे हुए कपड़े तक फ़ाड़े जाएँगे। खिलाड़ी जैसे आजकल अपना बल्ला बदलते हैं, ग्लव्स बदलते हैं वैसे ही कल को कहेंगे- फ़लानी वाली चीयरबाला को इधर लगाओ, इनको उधर करो। साइड स्क्रीन की तरह वे उनको इधर से उधर खिसकवाते रहेंगे। होने को हो तो यह भी सकता है कि कल को चीयरबालाएँ और चीयरबालकों का ही जलवा हो सकता है। यह जलवा इतना तक हो सकता है कि वे कहें - इन खिलाडियों को रखो, इनको बाहर करो तभी हम चीयर करेंगे। अगर ये कम्बीनेशन रखेंगे तभी हमारा चीयरइफ़ेक्ट काम करेगा। पता लगा कि अच्छा खासा रन बनाता खिलाड़ी अपना मुँह बनाता हुआ मैच से बाहर। कोई हल्ला नहीं कोई टेंशन नहीं। मैच चीयर हो रहा है आराम से। कोई पूछेगा भी नहीं कि पिछले मैच का हीरो कहाँ चला गया। आपको शायद यह मजाक लग रहा होगा कि खिलाड़ी से ज्यादा उनका हौसला बढ़ाने वाले की औकात कैसे हो जायेगी। क्रिकेट है तो चीयरबालायें /चीयरबालक हैं। क्रिकेट ही नहीं होगा तो बालायें क्या करेंगी? मज़ाक तो हम कर ही रहे हैं। लेकिन लगता है कि यह हो भी सकता है। जब क्रिकेट में जीत हार को देश की जीत-हार मान लिया जाए। क्रिकेट में जीत गए तो मानो दुनिया जीत गए। सारा देश क्रिकेट के पीछे पगलाया घूमता है। इसके ग्लैमर के नशे में टुन्न। तो यह भी काहे नहीं हो सकता है। आखिर यह भी तो ग्लैमर है। ये चीज़ बड़ी है मस्त-मस्त।

भाग्य से ज्यादा और समय से पहले.... न किसी को मिला है... और न मिलेगा......

भाग्य से ज्यादा और समय से पहले.... न किसी को मिला है... और न मिलेगा...... 🌳एक सेठ जी थे... जिनके पास काफी दौलत थी और सेठ जी ने उस धन से निर्धनों की सहायता की.. अनाथ आश्रम एवं धर्मशाला आदि बनवाये... इस दानशीलता के कारण सेठ जी की नगर में काफी ख्याति थी... सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी... परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी, सट्टेबाज निकल गया... जिससे सब धन समाप्त हो गया.. बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती... कि आप दुनिया की मदद करते हो... मगर अपनी बेटी परेशानी मेंहोते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो... सेठ जी कहते कि भाग्यवान... जब तक बेटी-दामाद का भाग्य उदय नहीं होगा तब तक मैं उनकी कीतनी भी मदद करूं तो भी कोई फायदा नहीं... जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे... परन्तु मां तो मां होती है... बेटी परेशानी में हो तो मां को कैसे चैन आयेगा... इसी सोच-विचार में सेठानी रहती थी... कि किस तरह बेटी की आर्थिक मदद करूं... एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि... तभी उनका दामाद घर आ गया.. सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया... और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दीजाये... जिससे बेटी की मदद भी हो जायेगी... और दामाद को पता भी नही चलेगा... यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी... और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू जिनमे अर्शफिया थी... वह दामाद को दिये...दामाद लड्डू लेकर घर से चला.. दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें.. और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया.. और पैसे जेब में डालकर चला गया... उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू ... और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे ... मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया... जो उनके दामाद को उसकी सास ने दिया थे... सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा.. तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया... सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात सेठ जीसे कह डाली... सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था... कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा... देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी... और न ही मिठाई वाले के भाग्य में... इसलिये कहते हैं कि भाग्य सेज्यादा...और...समय..से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मिलेगा

रविवार, 3 मई 2015

अक्षय तृतीया या आखातीज

वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अक्षय तृतीया या आखातीज के नाम से जानी जाती है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। भविष्यपुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मीनारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी के मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। इस तिथि का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है।यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है। धार्मिक परंपराएँ अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। संस्कृति का अनूठा त्यौहार 'अक्षय-तृतीया' इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्‌डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। इस प्रकार गाँवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गाँव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है। कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के सगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं। राजपूत समुदाय में आने वाला वर्ष सुखमय हो, इसलिए इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा है। प्रचलित कथाएँ अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर सन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा। जैन धर्म में अक्षय-तृतीया जैन धर्मावलम्बियों का महान धार्मिक पर्व है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बंधनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य अंगीकार कर लिया। सत्य और अहिंसा के प्रचार करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पधारे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था। प्रभु का आगमन सुनकर सम्पूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर उसने आदिनाथ को पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया। भगवान श्री आदिनाथ ने लगभग ४०० दिवस की तपस्या के पश्चात पारायण किया था। यह लंबी तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी अत: जैन धर्म में इसे वर्षीतप से संबोधित किया जाता है। आज भी जैन धर्मावलंबी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं, यह तपस्या प्रति वर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होती है और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है। तपस्या आरंभ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है। इस प्रकार का वर्षीतप करीबन 13 मास और दस दिन का हो जाता है। उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है। वर्षीतप जब पूर्ण हो जाता है तब भारत विख्यात जैन तीर्थ श्री शत्रुंजय पर जाकर अक्षय तृतीय के दिन पारायण किया जाता है। इस दिन विशाल स्तर पर पारायण की व्यवस्था की जाती है। जहाँ पर तपस्या करनेवाले तपस्वियों को उनके संबंधी पारायण कराते हैं। अक्सर तपस्वी बहन को भाई पारायण कराता है। इसे पारणा कहते हैं। चांदी के बने छोटे से आकार के कलश इक्षु के रस के १०८ भरे कलशों से पारायण आरम्भ होता है। धार्मिक गतिविधियों से ओत-प्रोत इस भव्य समारोह में संवेदनाएँ स्वत: ही उमड़ पड़ती हैं। चारों ओर धर्म चर्चा का वातावरण बन जाता है। पुष्पों की बौछार होती है। रंग-बिरंगे परिधान एवं आभूषण तपस्वी को उनके सगे-संबंधी भेंट करते हैं, फूलों के हार पहनाकर तपस्वियों का आदर सत्कार होता है। चारों ओर हर्ष, उमंग एवं उदास का वातावरण बन जाता है। तपस्वियों का विशेष जलूस समारोहपूर्वक निकाला जाता है और सभी तपस्वियों को तपस्या करने वाले परिवार के सदस्य कुछ न कुछ उपहार भेंट करते हैं। इसे प्रभावना कहते हैं। उपहार में चांदी, स्टील, पीतल आदि के बर्तनों के अतिरिक्त धार्मिक सामग्री भी भेंट दी जाती है। इस प्रकार की तपस्या में हज़ारों नर-नारी भाग लेते हैं। जिसमें वृद्ध, युवा एवं बाल अवस्था के लोग भी सम्मिलित होते हैं। श्री शत्रुंज्य जैसे महान तीर्थ पर अक्षय तृतीय के दिन विशाल पैमाने पर मेला लगता है जिसमें देश के विभिन्न भागों से हज़ारों लोग आते हैं। कई तपस्वी ऐसे होते हैं जो इस तीर्थ पर वर्ष भर रहकर वर्षीतप की आराधना करते हैं। यहाँ तपस्या करने वाले श्री शत्रुंज्य पर्वत की ९९ बार यात्रा करने का लाभ भी उठाते हैं। भारत वर्ष में इस प्रकार की वर्षी तपश्चर्या करने वालों की संख्या हज़ारों तक पहुँच जाती है। यह तपस्या धार्मिक दृष्टिकोण से अन्यक्त ही महत्वपूर्ण है, वहीं आरोग्य जीवन बिताने के लिए भी उपयोगी है। संयम जीवनयापन करने के लिए इस प्रकार की धार्मिक क्रिया करने से मन को शान्त, विचारों में शुद्धता, धार्मिक प्रवृत्रियों में रुचि और कर्मों को काटने में सहयोग मिलता है। इसी कारण इस अक्षय तृतीया का जैन धर्म में विशेष धार्मिक महत्व समझा जाता है। मन, वचन एवं श्रद्धा से वर्षीतप करने वाले को महान समझा जाता है। विभिन्न प्रांतों में अक्षय तृतीया बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं। अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुंड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है। मालवा में नए घड़े के ऊपर ख़रबूज़ा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरंभ किसानों को समृद्धि देता है। भगवान परशुराम का अवतरण स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयंती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं।

अक्षय तृतीया या आखातीज