सोमवार, 11 मई 2015
बातां की ब्यालू (बातों ही बातों में डिनर)
बात बहुत पुराणी है उस ज़माने में यातायात के लिए
मोटर-गाड़ी नही हुआ करती थी और राजस्थान में
तो ऊंट गाड़ी ही यातायात का मुख्य साधन था | रेत
के टिल्लो के बीच से दूर-दूर तक सफर बिना ऊंट के
सम्भव ही नही था इसीलिए गांवों में लोग यातायात
और खेती बाड़ी के कामों के लिए ऊंट पालते थे |
शोकिया लोगों के ऊंट तो देखते ही बनते थे और
अपणा ताऊ भी एक शानदार ऊंट और सजी-
धजी गाड़ी रखता था आस-पास के धनी लोगों में
यातायात के लिए ताऊ की ऊंट-गाड़ी काफी मशहूर
थी और ताऊ को भी ऊंट-गाड़ी के किराये से
अच्छी आमदनी हो जाया करती थी | एक दिन गांव के
सेठ जी को सेठानी के संग दूर रिश्तेदारी में
कही जाना था सो सेठ जी ने ताऊ की गाड़ी किराये
कर ली और चल दिए यात्रा पर |ताऊ के साथ रास्ते
में लुट-पाट का खतरा भी नही रहता था क्योकि ताऊ
के लट्ठ से दूर-दूर के लुटेरे व उच्चके डरते थे | चूँकि सफर
काफी लंबा था सो सेठानी ने पुडी,मालपुए,गुंद के लड्डू
और हलवा आदि बनाकर रास्ते में खाने के लिए
गाड़ी में रख लिया,चलते चलते रात होने पर ताऊ ने
एक टिल्ले के पास गाड़ी रोककर
डेरा जमा लिया कि खाने के बाद रात्रि विश्राम
यही करेंगे |
ताऊ ने यह सोचकर कि सेठानी खाने में
बड़ा अच्छा माल बनाकर लाएगी ही सो ताई
को अपने साथ खाना बाँधने को मना कर दिया कि आज
बाजरे के टिक्कड़ कौन खायेगा आज तो सेठानी जी के
हाथ की बनी मिठाईयां ही खायेगे | और ये बात ताऊ
की गठरी में खाना ना देख सेठानी भांप गई |
डेरा ज़माने के बाद जैसे ताऊ पास ही की फोगडे
की झाड़ी से ऊंट को बाँधने गया तभी मौका देख
सेठानी ने सेठ से कहा कि ताऊ
तो खाना लाया नही और हमने उसे खाने का पूछ
लिया तो ये ताऊ
हमारा सारा खाना खा जाएगा और हम भूखे रह
जायेगे सो दोनों ने मिलकर प्लान
बनाया कि किसी तरह ताऊ को बातों ही बातों में
टरका दिया जाए और थक कर जब ताऊ सो जाएगा तब
हम चुपचाप खाना खा लेंगे | इसी प्लान के अनुसार
ताऊ के आते ही सेठ जी बोले -
ताऊ खाना न तो आप लाये न हम, अब क्यों न हम
बातों की ही ब्यालू (रात का खाना) करले |
ताऊ भी अब सेठ जी व सेठानी का प्लान भांप
गया आख़िर ताऊ भी तो ताऊ था |
ताऊ- तो ठीक है सेठ जी पहले आप शुरू करो |
सेठ जी - ताऊ जब रामपुर वाले शाह जी के बेटे
की बारात में गए थे
वहां क्या मिठाईयां बनी थी रस-गुल्ले, गाजर व दाल
का हलवा वाह खा कर मजा आ गया और ताऊ श्यामगढ़
वाले शाह जी के यहाँ तो खाते-खाते पेट भर
गया लेकिन दिल नही भरा क्या रस-मलाई
थी इमरती का तो कोई जबाब ही नही था |
इस तरह सेठ जी ने खाने की बातें करते करते
अपनी तोंद पर हाथ फेरा,एक झूटी डकार ली और बोले
ताऊ मेरा तो पेट भर गया अब तुम शुरू करो |
ताऊ- सेठजी वो हमारे दोस्त है न भाटिया जी एक
बार उनके यहाँ गए थे क्या खाना था भाटिया के
यहाँ बकरे व मुर्गे का मीट और साथ में वो जर्मन
वाली अंग्रेजी दारू, पीते गए और खाते गए
नशा भी अच्छा हुआ और सेठ जी वो डूंगर सिंह जी के
यहाँ बारात में जब गए थे मजा ही आ गया वो महणसर
वाली महारानी दारू क्या नशा है उसमे, बस पीते गए
पीते गए और इतना नशा हुआ कि कुछ पता ही नही, नशे
में कितने लोगों को लट्ठ मार दिए | और सेठ जी अब
तो उसे याद कर ही नशा चढ़ गया है |
और ताऊ ने नशे में टल्ली होने का नाटक करते हुए
जोर-जोर से हाट-हूट कर चिल्लाते हुए हाथ पैर इधर
उधर मारने शुरू कर दिए जिनकी एक आद सेठ-
सेठानी को भी पड़ गई और दोनों डर के मारे कि - अब
ताऊ को नशा हो गया है कहीं लट्ठ उठाकर मारधाड़
न करने लग जाए अतः भाग कर पास ही एक फोगडे
कि झाड़ी में जाकर छुप गए |
तब ताऊ ने खोली खाने की पोटली और हाट-हूट
का हल्ला करते हुए सेठानी का सारा खाना खा कर
तन कर सो गया | बेचारे सेठ सेठानी को भूखे पेट
कहाँ नींद आने वाली थी |
सुबह ताऊ उठते ही दोनों से बोला रात को नशा कुछ
ज्यादा ही हो गया था कहीं नशे में आपको कुछ कह
दिया तो बुरा मत मानना | —
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