सोमवार, 11 मई 2015

ॐJAI JEEN BHAVANIΨ . राजस्थान के सीकर शहर से 32 कि.मी की ओर जयपुर शहर से 115कि.मी. दूर अरावली पर्वतमाला की उपत्यका में स्थित श्री जीण माता का स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहां नवरात्र में मेला लगता है, इस धार्मिक परिवेश के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि दुर्गा रूपों में प्रथम जयन्ती देवी के शक्तिपीठ नाम से प्रसिद्ध स्थल में श्री जीणमाता ने तपस्या करके देवत्व सिद्धि प्राप्त की थी। जयनती देवी का उल्लेख देवी भागवत पुराण के नवें स्कन्ध में किया गया है। यहीं भुवनेश्वरी देवी का वर्णन है जिसने अरूणत दैत्य का वध भौंवरे के रूप में किया था। भुवनेश्वरी देवी का मन्दिर भी श्री जीण माता के मुखय मन्दिर के पार्श्व में एक तलघर में है। इसे लोक भाषा में भँवरों की माता कहा जाता है। चुरू जिले के धाबू गांव में चौहान शासवकों के यहां जनमी श्री जीण माता ने अपनी भावज द्वारा अपमानित होकर ग्रह त्याग किया था। श्री जीण के भाई हर्ष ने यहां आकर बहन को घर लौटने का आग्रह किया किन्तु श्री जीणमाता अपने निश्चय पर अटल रही और विवश हो हर्ष भी बिना बहन को साथ लिये घर नहीं लौटा। दोनों भाई बहन आस-पास रह गये। दसवीं सदीं में निर्मित श्री जीणमाता के मन्दिर की स्थापत्य कला भी दर्शकों को प्रभावित करती है मन्दिर के मुखय मण्डप के स्तम्भों और छत पर उत्कीर्ण वाममार्गी मूर्तिया तथा फूल पत्तियां कलात्मकता की प्रतिक है। विशाल पत्थर पर उत्कीर्ण इस मूर्ति में देवी को अष्ठ भुजाधारी सिंह की सवारी पर राक्षस का मर्दन करते हुये दिखाया गया है किन्तु सिन्दुर पुता होने से देवी के श्री मुख का ही दर्शन किया जा सकता है। मन्दिर के समीप पर्वत पर चोटी का जल शिखर पर भी एक छोटा मन्दिर बना है जिसमें सिंह पर सवार चार भुजाधारी दुर्गा की मूर्ति है। जहां अखण्ड ज्योति जलती है। मंदिर परिसर में एक कुण्ड और शिव मन्दिर भी है। . चैत्र व अश्विन के नवरात्रों में और अन्य दिनों में यहां दर्शनार्थी लगातार आते रहते हैं। यहां तीन सौ तिबारियां बनी है और मन्दिर के सामने यात्रियों की पंक्तिबद्ध धर्मशालाएं है। श्री जीणमाता मन्दिर में विभिन्न कालों के आठ शिलालेख भी है जिनसे प्रमाणित होता है कि मन्दिर नवीं और दसवीं शताब्दी के लगभग बनवाया गया है। मन्दिर में सवामणियां, छत्र, झारी, नौबत एवं कलश भेंट स्वरूप चढ़ाये जाते हैं और जात-जडूलों के साथ मन के बोल भी लगते हैं।

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