सोमवार, 23 मई 2016

राजस्थानी 1

बुजरगौ की काहवत कैरा जाट,काला पंडित, भुरा चमार, चामरा ठाकर {खतरनाक होवै सै } ऐकला छौरा, ऊट बै मौहरा, दुर का नौहरा {हमैशा तगँ ही करै है} काश की कायरी, पुलिशयै की यारी, गधै की सवारी {कभी भी धौखा दै सकती है} भुरी चमारी, बुढी कुमहारी,जवान लुहारी {छौ मै तावली आती है} पछीत मै आला, आखँ मै जाला, घर मै साला {हमैशा सैधयगा} बीन बाजती, बीर नाचती, कौयल कुकानँती {दील कौ मौहलैती है} बाहण कै भाई, सुसराड जमाई, पडौश मै कशाई {डटणा आछा नही हौता} पुलीश की वफादारी, सालै की तरफदारी {कभी नही करणी चाहीऐ} बुढा कुमहार, गाडीया लुहार, जुती गाठता चमार {काबू मै नही आतै} टैकटर मैसी, घी दैशी, सुती खेशी {जाट की पहली पसदँ हौव सै} चौरी जैसी कार नही {अगर मार नही हौ तौ} जुऐ जैसी कार नही {अगर हार नही हौ तौ} औरत जैसा वजीर नही {अगर बदकार नही हौ तौ} अलकश नीदँ किसान न खौऐ, चौर न खौऐ खाशी बढता बयाज मुल न खावै, बीर न खौऐ हांसी।

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