सोमवार, 23 मई 2016

राजस्थानी

आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत । मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत ॥ मैडी उभी कामणी कामणगारो फाग । उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥ प्रीत आपरी अचपळी घणी करै कुचमाद । सुपना मै सामी रवै जाग्या आवै याद ॥लाजाळू रस री लडी़, खडी़ रूप री खाण । जडी़ हेम रा झाड़ जिम, घडी़ ज विधना जाण।।

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