।। राम राम सा ।।
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मित्रो आजकल तेज रफ्तार की जिंदगी मे हम लोग चन्द पैसो के लालच में कहाँ से कहाँ जा रहे है हमारे देश में हर कोई एक दुसरे के साथ खिलवाड़ कर रहा है दुकानदार ,नेता ,डॉक्टर, आदि । नशीले पदार्थ बेचने वाले खुश है की हमने बड़े बड़े बंगले बणा दिये है चाहे कितने ही लोग बर्बाद क्यो न हो डॉक्टरो ने अपने और बेटो के लिये तो हॉस्पिटल रुपी दुकाने खोल रखी है पोतौ के लिये जमीन ले रखी है की और गरीब लोगो को एसे लुट रहे हैं कि आप देश के कोई भी हॉस्पिटल मे जाओ बिना जरुरत की दस बीस जांचें और अपने ही मेडिकल से दवाई लिखकर दे देंगे जो दस रुपए की दवाई पर दौ सौ रुपये की MRP हो गरीब को मजबुरी मे जांचें व दवाई खरीदनी पडती है
आज देश के सभी प्राईवेट छोटे बडे हॉस्पिटल भरे पड़े हैं उसका कारण सरकारी हॉस्पीटलो मे बराबर व्यवस्था नही है और दुसरा कारण नशा व आजकल की खाने वाली हर चीज़ों मे मिलावट होती है आज हर कोई भरतीय अपने मुनाफे के लिये कुछ भी कर सकता है चाहे वो दुकानदार हो नेता हो सरकारी तंत्र हो बस उनको तो पैसा चाहिये । नेता अपने वोट-बैंक के लिये आरक्षण के जाल मे फसे हुये हैं । जो गरीब है उनका तो नम्बर ही नही आता है । जब हम आरक्षण के माध्यम से किसी अयोग्य नेता ,डॉक्टर,इन्जीनियर,शिक्षक, को लाएंगे तो आने वाले समय में देश को बर्बादी के अलावा कुछ नही मिलेगा
एक कहावत है की दोनो हाथ की अंगुली भी बराबर नही होती है मै एक छोटा सा उदहारण के लिए कह रहा हुँ कि अपने आस-पास मे जो मकान की दिवार बनाते है उसमे दीवार चुनने वाला और हेल्पर के काम-काज मे फर्क देखिये और अगर हेल्पर को आप दीवार चुनने मे लगा दोगे तो मकान कैसा बनेगा ? वो कभी भी ढह जायेगा। उसके लिये भी दिमाग चाहिये । तो हमारे देश मे योग्यता के अनुसार नेता या सरकारी अधिकारी नही है। बस जिसके पास खर्च करने के लिये पैसा है आरक्षण है उनको सरपंच,प्रधान,विधायक, या सांसद चुन लेते है और वो अपने बेटे पोतौ के लिये बन्दोबस्त की तैयारी शुरुआत कर देते हैं सड़क चाहे एक ही महिने मे टूट जाये पुल एक साल मे ही ढह जाये ।
कहने को तो बहुत है पर आज मै अपने आस-पास प्रतिदिन घटित हो रही घटनाओं, देश व समाज के स्तर, वर्तमान राजनीति के स्तर, सरकारी सिस्टम, देश के आम नागरिकों की सोच के बारे में सोचता हूं तो आने वाले भविष्य के खयाल से ही डर लगने लगता है।
दिमाग में यह सोच उत्पन्न होती है कि हम कहां जा रहे हैं, क्या हम सच में तरक्की के पथ पर अग्रसर हैं? या फिर धीरे धीरे अपने समाज के, जीवन के, देश के विनाश की ओर तो कदम नही बड़ा रहे हैं। आज हम जिस भविष्य के लिये इतनी भाग-दौड़, इतनी मेहनत कर रहे हैं, हमारे बच्चे जिस सुनहरे भविष्य के सपने सजोकर दिन रात मेहनत कर रहे हैं, उनका वह कल कैसा होने वाला है? आज इस देश के 90 प्रतिशत लोग स्वार्थ सिद्ध करने में जुटे हुए हैं, बिना यह सोचे-समझे कि हम अपने आने वाले भविष्य को, इस देश को, अपने समाज को, जिंदगी को और सबसे महत्वपूर्ण अपनी आने वाली नस्ल को कहां ले जा रहे हैं। आज हर कोई इसी भागदोड़ में व्यस्त है कि कैसे अधिक कमाई करू, बंगला बनाऊं, नयी बाईक या कार खरीदूं, बच्चों का बड़े स्कूल में एडमिशन कराऊं, लेकिन इस भागदोड़ में किसी का भी इस और ध्यान नहीं है कि आज वो जो भी सामग्री खरीद कर अपने घर ले कर जा रहा है, उनमें अधिकतर वस्तुऐं या तो मिलावटी हैं, या जिंदगी के लिये खतरनाक केमिकल्स से युक्त हैं या फिर नकली हैं। इन बातों की तरफ ना हमारे नेताओं का ध्यान है, ना अधिकारियों का, ना मीडिया का और ना ही इस देश की जनता का।
जब मैं अन्य विकसित देशों, वहां की सरकारों की सोच, आम जनता की सोच, मीडिया की सोच के बारे में इंटरनेट के माध्यम से पढता हूं, तब समझ आता है कि वे क्यों आज इतने विकसित हैं और हम क्यों नहीं। कई-कई देशो मे टेक्स का पैसा सबसे ज्यादा शिक्षा स्वास्थ्य पर ही खर्च करते है। हमारे देश में इंसान के जीवन की और इंसानियत की कोई कीमत नहीं है। इस देश में अस्पताल में भर्ती मरीज की जिंदगी, सीमा पर तैनात जवान की जिंदगी, सड़क पर जा रहे यात्री की जिंदगी और खेतों में काम करने वाले किसान की जिंदगी बस एक समाचार से बढ़कर कुछ नही है। लोग ट्रेनो बसो मे भेड़ बकरियो की तरह सफर कर रहे है। हमारे देश में लोगों के पास इतनी बड़ी-बड़ी समस्याओं से लड़ने के लिये, इस संबंध में विचार करने के लिये समय नही है, लेकिन हां छोटी-छोटी बातों पर झगड़ने, जमीन के टुकड़ों के लिए खून के प्यासे हो जाने, सड़क पर छोटी-सी बात पर मारपीट करने के लिए या फिर जात-पात के लिए एक दूसरे की जान ले लेने पर उतारू हो जाने के लिये समय ही समय है।
इन सब बातों में सबसे ज्यादा दुखः तब होता है जब इस देश की बागडोर जिन नेताओं, विधायकों, सांसदों के हाथों में होती है, उन्हें ही इन समस्याओं से कोई मतलब नहीं होता। आज तक मैंने किसी नेता को, विधायक को, सांसद को इस वादे के साथ चुनाव लड़ते नहीं देखा कि अगर वह चुनाव जीता तो सबसे पहले मिलावटी खाद्य पदार्थों की रोकथाम का कार्य करेगा, फलों, सब्जियों में खतरनाक जानलेवा केमिकल्स का प्रयोग बंद करवाएगा, नकली सामानों, वाहनो के कलपुर्जे बनाने वालों के कारखानों पर कार्यवाही करेगा, मिलावटी या घटतोली करने वाले पेट्रोल पंप और दुकानदारों का लाइसेन्स निरस्त करने का कानून बनवायेगा, घटियां निर्माण सामग्री की जगह कम से कम 10 बरसों तक खराब ना होने वाली सड़कों का निर्माण करवायेगा इत्यादि। आज इस देश का हर छोटा बड़ा नेता, प्रत्येक राजनीतिक दल, सभी वोट बैंक की राजनीति में लगे हुए हैंय़ उनकी चुनावी राजनीति विकास पर केन्द्रित ना हो कर सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक पर केन्द्रित है। आज प्रत्येक राजनीतिक दल का मुख्य अजेंडा जाति आधारित वोट बैंक, आरक्षण आधारित वोट बैंक के माध्यम से या दूसरों पर आरोप लगाने वाली राजनीति के माध्यम से किसी भी तरह बस सत्ता पाना रह गया है। कभी सोचा है आज से 50 बरसों के बाद हम कहां होंगे? यह देश कैसा हो जायेगा? आज हर किसी को आरक्षण चाहिए। हर व्यक्ति जाति, धर्म, क्षेत्र के नाम पर आरक्षण मांगने में लगा हुआ है। कोई भी मेहनत करना नही चाहता, लेकिन चाहता है कि देश तरक्की करे विकसित बने। ऐसे बनेगा देश विकसित? जब 20 प्रतिशत नंबर लाने वाला डॉक्टर बनेगा तो वो कैसे आपका इलाज करेगा, नेगेटिव नंबर लाने वाला रेलवे में इंजिनियर बनेगा तो आपका सफर सुरक्षित रहेगा? नकल करके पास होने वाला या फिर आरक्षण द्वारा नियुक्त होने वाला शिक्षक या प्रोफेसर आपके बच्चों को कैसी शिक्षा देगा? 30 प्रतिशत नंबर लाने वाला आरक्षित कोटे के माध्यम से सरकारी अधिकारी बनेगा तो कैसी नीतियाँ लागू करेगा? जब किसी देश के सूत्रधार ही मूर्ख होंगे तो क्या वह देश तरक्की कर सकता है? विकसित बन सकता है ? एक बार सोचके देखिए कि अगर एक अनपढ़ व्यक्ति को ही दूसरे अनपढ़ व्यक्ति को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाएगी तो फिर पड़ा लिखा व्यक्ति कहां से आएगा? क्या ऐसे भारत एक विकसित देश बन पायेगा? मै भी ओबीसी वर्ग मै ही आता हूँ पर मुझे तो लगता है कि की आज के दौर मे चल रही आरक्षण निति सरकार को बन्द करनी चाहिये आर्थिक आधार पर आरक्षण कर सकते हैं