।।राम राम सा।।
घणा हेत सुं , घणा कोड सूं ,घणा मान सूं , म्हारे हिवङे री घणी हरक सुं ,आप ने और आपरे सगले परिवार ने रक्षाबंधन की घणी-घणी बधाई!!
मित्रो आजकल के नये जमाने मे हर त्योहार मे बहुत बदलाव आया है बचपन में जब हम छोटे थे तो राखी के त्योहार से सात आठ दिन पहले हमारे गाँव के गंगा रामजी (ब्राह्मण) राखियाँ लेकर आते थे तो मै उनके पैर दबाकर तीन चार राखी ज्यादा ले लेता था । बाकी घर पर तो सब के लिये लाते ही थे सबसे पहले देवताओं को राखी बाँधी जाति थी और मेरी भुआये आती थी भाईयो को राखी बांधने से पहले मेरे घर मे तुलसी के वृक्ष को राखियाँ बांधती थी। फिर भाईयो को फिर हमारा नम्बर लगता था और मै तो लड़ झगड कर सात आठ राखियाँ बंधवा देता था भाई जब तक आधा हाथ राखियों से भर नही जाता था तब तक चैन नही होता था ।
राखियाँ भी आजकल के जैसी स्टाइल वाली नही होती थी एकदम सिम्पल ही होती थी । रक्षाबंधन के त्योहार का इन्तजार हम राखी के लिये कम बल्कि उस दिन बनाई जाने वाली गेंहू के आटे की सेवो के लिये ज्यादा करते थे।
जो रक्षाबंधन के सात आठ दिन पहले घर मे ही बनाई जाती थी
जिसका देशी शक्कर और घी डालकर खाने मे आनन्द ही कुछ और होता था। आजकल तो किसी को समय नहीं है पर पहले रक्षाबंधन के बाद से एक दो महिने तक हर रिस्तेदार आने का इंतजार करते थे और खासकर जमायौ का बेसब्री से इंतजार किया जाता था। पहले साल मे दो बार रिस्तेदारो का इन्तजार बड़ी बेसब्री से किया करते थे एक तो होली के बाद रँग के लिये और एक रक्षा बंधन के बाद सेवो खाने के लिये इन्तज़ार रहता था। जो भाई बाहर रहते थे उनके लिये महिने भर पहले बहिने राखियाँ पोस्ट करती थी ।
आजकल तो बहिने इ-मैल ,व्हट्सआप,फेसबुक, टविटर, आदि से ही राखियाँ भेज देती है।
आजकल सब भागमदौड़ मे रहते है किसी के पास समय नहीं है फिर भी कुछ लोग इस परंपरा को निभाते है ।
घणा हेत सुं , घणा कोड सूं ,घणा मान सूं , म्हारे हिवङे री घणी हरक सुं ,आप ने और आपरे सगले परिवार ने रक्षाबंधन की घणी-घणी बधाई!!
मित्रो आजकल के नये जमाने मे हर त्योहार मे बहुत बदलाव आया है बचपन में जब हम छोटे थे तो राखी के त्योहार से सात आठ दिन पहले हमारे गाँव के गंगा रामजी (ब्राह्मण) राखियाँ लेकर आते थे तो मै उनके पैर दबाकर तीन चार राखी ज्यादा ले लेता था । बाकी घर पर तो सब के लिये लाते ही थे सबसे पहले देवताओं को राखी बाँधी जाति थी और मेरी भुआये आती थी भाईयो को राखी बांधने से पहले मेरे घर मे तुलसी के वृक्ष को राखियाँ बांधती थी। फिर भाईयो को फिर हमारा नम्बर लगता था और मै तो लड़ झगड कर सात आठ राखियाँ बंधवा देता था भाई जब तक आधा हाथ राखियों से भर नही जाता था तब तक चैन नही होता था ।
राखियाँ भी आजकल के जैसी स्टाइल वाली नही होती थी एकदम सिम्पल ही होती थी । रक्षाबंधन के त्योहार का इन्तजार हम राखी के लिये कम बल्कि उस दिन बनाई जाने वाली गेंहू के आटे की सेवो के लिये ज्यादा करते थे।
जो रक्षाबंधन के सात आठ दिन पहले घर मे ही बनाई जाती थी
जिसका देशी शक्कर और घी डालकर खाने मे आनन्द ही कुछ और होता था। आजकल तो किसी को समय नहीं है पर पहले रक्षाबंधन के बाद से एक दो महिने तक हर रिस्तेदार आने का इंतजार करते थे और खासकर जमायौ का बेसब्री से इंतजार किया जाता था। पहले साल मे दो बार रिस्तेदारो का इन्तजार बड़ी बेसब्री से किया करते थे एक तो होली के बाद रँग के लिये और एक रक्षा बंधन के बाद सेवो खाने के लिये इन्तज़ार रहता था। जो भाई बाहर रहते थे उनके लिये महिने भर पहले बहिने राखियाँ पोस्ट करती थी ।
आजकल तो बहिने इ-मैल ,व्हट्सआप,फेसबुक, टविटर, आदि से ही राखियाँ भेज देती है।
आजकल सब भागमदौड़ मे रहते है किसी के पास समय नहीं है फिर भी कुछ लोग इस परंपरा को निभाते है ।
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