।। राम राम सा ।।
तन स पसीनो नैणां नीर झरै,
खेतां रा रुखाळा वीरा भूखा क्यूँ मरै
भूखा-भूखा मुखड़ा ए सूखा-सूखा तन
चुप-चुप दुखड़ा ए टूटा-टूटा मन
अंखियां स टप-टप आँसूड़ा झरै
हिवड़ा र जिवड़ा मं मोतीड़ा भरै
तो आँख को सूरज रात तळै
खेतां रा रुखाळा वीरा भूखा क्यूँ मरै
भोळा-भाळा चेहरा प काळी-काळी रेख
खुल-खुल देखै देखो करमां रा लेख
मूल चुकै भी नहीं व्याज घटै
सूद क सागै जद लाज लुटे
तो घड़ी-घड़ी विधना न याद करै
खेतां रा रुखाळा वीरा भूखा क्यूँ मरै
काळजै रा टुकड़ा ए तावड़ै बळै
लिछमी सरीखी नार खेतां मं गळै
तो भी प्राण प्यारी बेटी क्वांरी ही रही
गंगा जैसी गोमती भिखारी ही रही
तो भारत को भागीरथ जियै कि मरै
खेतां रा रुखाळा वीरा भूखा क्यूँ मरै
गीली-सूखी धरती पे उमर घटी
तो भी देखो जद-जद फसल कटी
अन्न देवता रा पेट खाली ही रह्या
सोना जैसा सपना सवाली ही रह्या
तो जद रखवाळो कैंया सहन करै
खेतां रा रुखाळा वीरा भूखा क्यूँ मरै
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